दो दशकों का कष्ट
मैं 1991 में ईसाई बना, फिर कुछ साल बाद कलीसिया का प्रचारक बना। 1995 में प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के राजनीतिक सुरक्षा अनुभाग की पुलिस मुझे यह जानने की माँग करते हुए थाने ले गई कि मैं कहाँ प्रचार कर रहा था और मेरा अगुआ कौन था। जब मैंने जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने मुझे लात-घूँसे मारे और चार-पाँच घंटे तक यातनाएँ दीं, जिससे मुझे बुरी तरह चोटें आईं। फिर उन्होंने मुझे प्रांतीय हिरासत केंद्र में बंद कर दिया। पुलिस और अन्य कैदियों ने मुझे 42 दिनों तक प्रताड़ित किया, जिससे मैं मौत के कगार तक पहुँच गया। बाद में मेरी पत्नी ने मुझे छुड़ाने के लिए कुछ संपर्कों का इस्तेमाल किया और लगभग 10,000 युआन का जुर्माना अदा किया। मैं समझ नहीं पाया। विश्वासियों के रूप में सुसमाचार साझा करके हमने प्रभु की शिक्षाओं का पालन करने, अच्छे लोग बनने, सहिष्णु होने और अपने समान प्यार करने में दूसरों का मार्गदर्शन किया था। कम्युनिस्ट पार्टी हमें इतनी क्रूरता से क्यों सताएगी? फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था प्राप्त करने के बाद परमेश्वर के वचनों द्वारा किए गए प्रकाशनों और व्यक्तिगत अनुभव से मैंने सीसीपी के सत्य से घृणा और परमेश्वर का विरोध करने का शैतानी सार समझा।
दिसंबर 1999 में एक दिन जब मैं और मेरी पत्नी नाश्ता कर रहे थे, तीन अधिकारी आ धमके। उनमें से एक अधिकारी वह था, जिसने मुझे प्रभु में मेरी आस्था के कारण पहले गिरफ्तार किया था। उसने मुझे कई बार ऊपर-नीचे देखा और सख्ती से कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए तुम्हारी रिपोर्ट की गई है। तुमने वाकई कोई सबक नहीं सीखा!” इसके बाद उन्होंने पूरी जगह की अंदर-बाहर तलाशी लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह लगभग एक घंटे तक चलता रहा और उन्होंने मेरा घर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया, लेकिन उन्हें आस्था के बारे में कोई किताब या सामग्री नहीं मिली। फिर वे मुझे एक कार में बैठाकर थाने ले गए। रास्ते में मेरे मन में पिछली बार गिरफ्तारी और प्रताड़ित किए जाने के दृश्य एक के बाद एक घूमने लगे। मैं काफी डरा हुआ था, सोच रहा था, “ये दानव विश्वासियों से खास तौर पर घृणा करते हैं तो वे मुझे कैसे प्रताड़ित करेंगे?” मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना कर उसकी कही एक बात याद की : “जिस किसी को मैं अपनी महिमा दूँगा, वह मेरा गवाह बनेगा और मेरे लिए अपना जीवन देगा। इसे मैंने पहले से नियत किया हुआ है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?)। सच—उस दिन मेरी गिरफ्तारी और मैं कितना कुछ सहूँगा, इसके लिए परमेश्वर की अनुमति थी, मैं जियूँगा या मर जाऊँगा, यह सब परमेश्वर के हाथों में था। मुझे गवाही देनी थी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी और मैं शांत महसूस करने लगा।
मेरी तलाशी लेने और पूछताछ करने के लिए वे पहले मुझे थाने ले गए थे, लेकिन यह देखकर कि मैं बोलूँगा नहीं, वे मुझे प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो ले गए। वहाँ कई अधिकारियों ने घेरकर मुझे लात-घूँसे मारे और कुछ ने मुझ पर पुलिस के डंडों का इस्तेमाल किया। उनकी पिटाई से मैं जमीन पर गिर पड़ा। मेरी नाक और मुँह से खून बह रहा था, मेरे कपड़े फट गए थे और मेरा सिर घूम रहा था। मुझमें खड़े होने की भी ताकत नहीं बची थी। फिर प्रधान अधिकारी ने मुझे गर्दन से पकड़ लिया और बोला, “अगर मैंने तुम्हें तुम्हारी औकात नहीं दिखाई, तो तुम नहीं जान पाओगे कि तुम किससे पंगा ले रहे हो! बोलो! तुम्हारा अगुआ कौन है? तुमने किसको उपदेश दिया है?” मैं काफी व्यग्र महसूस कर रहा था। अगर मैं नहीं बोला, तो ये निश्चित रूप से मुझे पीटते रहेंगे और अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मुझे लगा कि या तो मैं विकलांग हो जाऊँगा या मर जाऊँगा। मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना कर उसकी सुरक्षा और मार्गदर्शन माँगा। तब मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मुझे एहसास हुआ कि मेरी कायरता और डर शैतान की ओर से आ रहा है और पुलिस चाहे कितनी भी भयंकर क्यों न हो, वह सिर्फ मेरी देह को ही क्षत-विक्षत और प्रताड़ित कर सकती थी, मेरी आत्मा को नहीं छू सकती थी। अगर वह उस दिन मुझे पीट-पीटकर मार भी डाले, तो भी मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में होगी। इस विचार ने मुझे आस्था और शक्ति दी और मैंने निश्चय किया कि मैं परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगा, न ही अपने भाई-बहनों को धोखा दूँगा, चाहे इसका मतलब मृत्यु ही क्यों न हो। मैंने अपने दाँत भींच लिए और एक शब्द भी नहीं बोला। उनके कई बार पूछने के बाद भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने मुझे लात मारकर जमीन पर गिरा दिया, फिर एक पुलिस का डंडा लिया, उसे कंक्रीट के फर्श पर रख दिया और दो लोगों से मुझे खिंचवाकर उस पर मेरे घुटने टिकवा दिए। मेरी पिंडली की हड्डियों पर दबाव पड़ने के कारण तेज दर्द हो रहा था और मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। एक अधिकारी ने कई बार मेरी पिंडलियाँ क्रूरता से कुचल दीं, जिससे मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं चीख उठा और फर्श पर गिर गया और हाथों से पैरों को पकड़कर दोहरा हो गया। अधिकारी चिल्लाया, “खड़े हो जाओ!” लेकिन मैं अपने पैर नहीं हिला पा रहा था—मुझमें खड़े होने की ताकत नहीं बची थी। बेहद दुखी महसूस करते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं इसे अब और नहीं सह सकता और पता नहीं, ये मुझे और कैसे यातना देंगे। परमेश्वर, मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता—कृपया मुझे आस्था और शक्ति दो।” तभी मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मेरी रोशनी का मार्गदर्शन नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय मेरी विजय के सबूत के रूप में असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा को चमकाओगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था और शक्ति बढ़ा दी। मुझे वास्तव में परमेश्वर पर निर्भर रहना था और उसके वचनों के मार्गदर्शन से मैं निश्चित रूप से शैतान पर विजय प्राप्त कर सकता था और अपनी गवाही में अडिग रह सकता था। छह-सात घंटे की भयानक यातना के दौरान मुझे इतनी बुरी तरह पीटा गया था कि मेरी बायीं पिंडली क्षत-विक्षत हो गई थी। चूँकि मैं फिर भी नहीं बोला, इसलिए पुलिस मुझे एक हिरासत केंद्र में ले गई। वहाँ के कर्मचारियों ने यह देखकर कि मैं कितनी बुरी तरह घायल हूँ, मुझे लेना नहीं चाहा और पुलिस के उनसे थोड़ी देर बातचीत किए जाने के बाद ही वे अंततः मुझे लेने के लिए तैयार हुए।
वे मुझे एक कोठरी में ले गए, जहाँ मुझे कुछ दुर्गंध आई। यह लगभग 10 वर्गमीटर की एक छोटी सी जगह थी, जिसमें शौचालय के साथ ही कुछ गंदे, बदबूदार कंबल रखे थे। पंद्रह-सोलह लोग वहाँ खाते, पीते, सोते और हलके होते थे—यह सीलनभरा और गंदा कमरा था। दूसरे कैदियों ने मुझे उग्रता से देखा। मुझे बहुत घबराहट हो रही थी और मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था। मुझे उसकी कही एक बात याद आई : “डरो मत, क्योंकि मेरे हाथ तुम्हें सहारा देते हैं, और मैं तुम्हें सभी बुरे लोगों से दूर रखूँगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 28)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिलासा और आस्था दी और मुझे अब उतनी घबराहट महसूस नहीं हुई। अगले दिन प्रधान कैदी ने जानबूझकर झगड़ा किया और दूसरों से मुझे पिटवाया, जिससे मैं जमीन पर लुढ़क गया। दर्द से मैं दोहरा होकर पड़ा रहा और हिलने-डुलने में असमर्थ था। इसके बाद पुलिस मुझसे समय-समय पर पूछताछ करती, कलीसिया के साथ विश्वासघात करने के लिए कहती, फिर जब वह मुझसे कुछ हासिल न कर पाती तो कम प्रत्यक्ष तरकीबें अपनाती। एक बार मेरी पत्नी के चाचा ली मुझसे पूछताछ करने आए। वे सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के राजनीतिक सुरक्षा अनुभाग में सामग्री का प्रबंधन करते थे। उन्होंने चिंता जताने का दिखावा करते हुए मुझसे पूछा, “क्या कोई कैदी तुम्हें पीट रहा है? क्या तुम्हें पर्याप्त खाना मिल रहा है?” फिर उन्होंने एक दूसरे अधिकारी से मेरे लिए कुछ स्टीम्ड बन और सिगरेट के कुछ पैकेट खरीदकर लाने के लिए कहा। उन्होंने एक आह भरी और चिंताभरी नजर से देखते हुए कहा, “अगर तुम कबूल नहीं करोगे, तो शायद तुम्हें कुछ साल की जेल हो जाए और मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊँगा। अगर तुम कबूल कर लो, तो तुम नए साल के लिए समय पर घर जा पाओगे। इस पर थोड़ा विचार करो!” जब उन्होंने यह कहा, तो मुझे खयाल आया कि मेरे माता-पिता 70 साल से ज्यादा के हो गए हैं और मेरी पत्नी हमारे तीन छोटे बच्चों की देखभाल अपने बूते कर रही है। अगर मैं वाकई तीन से पाँच साल के लिए जेल चला गया, तो वे कैसे गुजारा करेंगे? कम्युनिस्ट पार्टी की जेलें नरक की तरह हैं और तुम्हें किसी भी समय यातना देकर मौत के घाट उतारा जा सकता है। अगर मैं मर गया, तो वे क्या करेंगे? जितना ज्यादा मैं इसके बारे में सोचता, उतना ही ज्यादा निराश महसूस करता, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर मेरी निगरानी करने के लिए कहा। मैंने परमेश्वर के वचनों से इस उद्धरण के बारे में सोचा : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए; उन्हें एक दूसरे को सहारा दे पाना और एक दूसरे का भरण-पोषण कर पाना चाहिए, ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे जगा दिया। पुलिस अपने परिवार के प्रति मेरे स्नेह और मेरी दैहिक कमजोरियों का इस्तेमाल करके मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाना चाहती थी। यह बहुत कपटपूर्ण था! मैं इसमें लगभग फँसने ही वाला था। मेरा जीवन परमेश्वर द्वारा दिया गया था और मेरा जीना-मरना उसी पर निर्भर था। मेरे माता-पिता और मेरी पत्नी की किस्मत भी परमेश्वर के हाथों में थी—अंतिम निर्णय उसी का था। अगर मुझे जेल की सजा मिलती भी है, तो यह परमेश्वर की अनुमति से ही होगा। भले मेरी जान चली जाए, मुझे अडिग रहना था! इसलिए मैंने उनसे कहा, “मुझे जो कुछ कहना था, वह सब कह चुका हूँ और मैं और कुछ नहीं जानता।” जब उनकी ये छोटी-सी चाल काम नहीं आई, तो उन्होंने मुझे एक नजर देखा, फिर आवेश में आकर चले गए।
जेल-प्रहरी हमेशा दूसरे कैदियों से कहते रहते कि वे मुझे कई तरह से यातना दें, जैसे “पकौड़ी खाना,” “आईने में देखना,” “कोहनी खाना,” और ऊँचे स्वर में जेल के नियम दोहराना। “पकौड़ी खाना” मुझे बिस्तर में लपेटकर दूसरों से लात-घूँसे लगवाना था, जिससे मुझे चक्कर आ जाता और मैं दिग्भ्रमित हो जाता था। “आईने में देखना” मेरा सिर शौचालय में डालना था, जहाँ मल-मूत्र होता था और अगर मैं सावधान नहीं रहता तो मेरा दम घुट जाता था। “कोहनी खाना” मेरी पीठ में कोहनी मारना था। साथ ही वे मुझसे ऊँचे स्वर में जेल के नियम भी बुलवाते और अगर मैं एक शब्द भी गड़बड़ करता तो वे मेरी पैंट उतार देते और प्लास्टिक के तले वाले जूते से मुझे तब तक पीटते, जब तक कि मेरे पिछले हिस्से पर खूनी छाले न पड़ जाते। इससे भी बढ़कर, जेल-प्रहरी अक्सर मुझसे दिन-रात काम करवाते। चोटें लगी होने के कारण मैं धीरे-धीरे काम कर पाता और दूसरे कैदी मुझे और काम देते रहते। अगर मैं उन्हें पूरा न करता, तो मुझे पीटा जाता। इस तरह की यातना का सामना करना मेरे लिए बेहद दर्दनाक और कष्टमय था। कभी-कभी मैं इतना कमजोर हो जाता कि वह पीड़ा खत्म करने के लिए मरने की इच्छा करता। मैं हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना कर अपनी रक्षा करने के लिए कहता रहता। एक दिन अचानक मेरे मन में प्रभु यीशु के सूली पर चढ़ने का ख्याल आया। परमेश्वर सर्वोच्च, पवित्र और निष्पाप है और वह व्यक्तिगत रूप से देहधारी होकर मानवता को बचाने के लिए कार्य करने आया, लेकिन उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। अब परमेश्वर एक बार फिर से देहधारी होकर चीन में कार्य करने के लिए आया है और ठीक उसी तरह मानवजाति की अस्वीकृति, बदनामी, तिरस्कार और ईशनिंदा सहता है। कम्युनिस्ट पार्टी भी उसका पीछा करती है। लेकिन फिर भी वह मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता रहता है। मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत बड़ा है! मैं उद्धार का अनुसरण करने वाला एक विश्वासी हूँ—इतनी छोटी-सी पीड़ा क्या मायने रखती है? इसके अलावा, पीड़ित होना मसीह के राज्य और उसके कष्ट में हिस्सा लेना है। यह गौरव की बात है। इसमें मूल्य और अर्थ है। इस एहसास ने मेरी आस्था और शक्ति का नवीनीकरण कर दिया और चाहे कैदी कितना भी सताएं, मैं अब उतना दुखी नहीं रह गया था।
एक दिन नाश्ते के बाद कुछ पुलिस अधिकारी मुझे मेरे घर से लगभग 5.5 मील दूर एक बाजार में ले गए, फिर मुझे और एक दर्जन भर अन्य कैदियों को एक मंच पर खड़ा कर दिया। मुझे एहसास हुआ कि वे एक निंदा-रैली कर रहे थे। मंच पर प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के काडर एक पंक्ति में बैठे थे और नीचे लोगों की घनी भीड़ थी। उनमें से कई आपस में कानाफूसी करते हुए मेरी ओर इशारा कर रहे थे। मेरा चेहरा तपने लगा, दिल तेजी से धड़कने लगा और मेरी सिर उठाने की हिम्मत नहीं हुई। मैं सोच रहा था कि मेरे कुछ रिश्तेदार, दोस्त और परिचित और साथ ही मेरे पिछले संप्रदाय के सहकर्मी भी उसी क्षेत्र में थे। मुझे अन्य कैदियों के साथ गले में एक चिह्न लटकाए, मुकदमे का सामना करते खड़ा देख वे क्या सोचेंगे? इसके बाद मैं अपना मुँह कैसे दिखा पाऊँगा? मैंने इस बारे में जितना सोचा, उतना ही मुझे बुरा लगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर शक्ति माँगी। मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “मुझे आशा है कि सभी लोग बड़े लाल अजगर के सामने मेरे लिए सशक्त और शानदार ज़बर्दस्त गवाही दे सकते हैं, कि वे मेरे लिए अंतिम बार स्वयं को समर्पित कर सकते हैं और एक आखिरी बार मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। क्या तुम लोग वाकई ऐसा कर सकते हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। विश्वासियों के रूप में हम सही रास्ते पर हैं। हम कानून नहीं तोड़ते या बुरे काम नहीं करते, इसलिए शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं। मैंने जिस अपमान का सामना किया, वह धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहना था। मुझे गर्व महसूस होना चाहिए। इस विचार ने मुझे शांत कर दिया। उन्होंने मुझे “गैरकानूनी आस्था रखने” और “सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने” के आरोप लगाकर थप्पड़ मारे और मुझे तीन साल की सश्रम पुनर्शिक्षा की सजा दी। मंच पर वे तमाम पाखंडी, आत्म-संतुष्ट चेहरे देखकर मुझे उन दानवों से बेहद नफरत हो गई और मैंने कसम खाई कि अगर वे मुझे तीन साल की नहीं, 30 साल की सजा भी देंगे, तो भी मैं कभी परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगा, शैतान के आगे कभी नहीं झुकूँगा!
निंदा-रैली के दो दिन बाद मुझे श्रमिक-शिविर में भेज दिया गया। वहाँ मुझे एक निर्माण-स्थल पर खाइयाँ खोदने के लिए नियुक्त किया गया, जहाँ मुझे एक इकपहिया ठेले में सीमेंट और रेत लाना-ले जाना होता था। मुझे इस तरह का भारी श्रम एक दर्जन या उससे भी ज्यादा घंटे रोज करना पड़ता था। पिंडली घायल होने के कारण कभी-कभी मैं धीरे-धीरे काम करता था, जिसे देख सुधारक अधिकारी मुझे पीटता। मुझे इस विचार से कुछ कमजोरी महसूस हुई कि मुझे वहाँ तीन साल तक रहना होगा। मुझे नहीं पता था कि यह कठिन समय कैसे गुजारूँगा या मैं जीवित भी बचूँगा या नहीं। उस दौरान मैंने परमेश्वर से बहुत प्रार्थना की और उसके प्रेम के बारे में सोचा। हमें—एक भ्रष्ट मानवजाति को—बचाने के लिए उसने जो पीड़ा और अपमान सहा था, उसके बारे में सोचना मेरे लिए बेहद प्रेरक था। इसने मुझे समर्पित होने के लिए तैयार किया और मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करना चाहता था, चाहे मुझे कितने भी कष्ट क्यों न उठाने पड़ें।
कुछ समय बाद मुझे पता चला कि वहाँ शांग जिन नामक एक कैदी था, जो प्रभु का विश्वासी था और चूँकि हम दोनों ईसाई थे, इसलिए मौका मिलने पर हम अपनी आस्था के बारे में बात किया करते थे। मैंने देखा कि भाई शांग जिन में अच्छी मानवता थी और वह प्रभु की वापसी के लिए लालायित था, इसलिए मैं उसके साथ अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य साझा करना चाहता था। लेकिन उसकी सजा पूरी हो गई थी और मुझे मौका मिलने से पहले ही उसे रिहा कर दिया गया। मुझे लगा कि यह बहुत शर्म की बात है, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर कोई रास्ता निकालने के लिए कहा, ताकि मुझे शांग जिन के साथ सुसमाचार साझा करने का मौका मिल जाए। उसकी रिहाई के कुछ समय बाद मैं हमेशा की तरह कार्यस्थल पर श्रम कर रहा था। एक दिन मेरे पेट में दर्द हुआ और मुझे सामान्य से ज्यादा बार बाथरूम जाना पड़ा। मैंने गौर किया कि बाथरूम की दीवार बहुत ऊँची नहीं थी और उसके दूसरी तरफ एक बड़ी फैक्ट्री थी। जब मैं बाथरूम में था, तो बाहर एक गार्ड अखबार पढ़ रहा था। मुझे यकीन नहीं था कि यह परमेश्वर मेरे लिए रास्ता खोल रहा है, इसलिए मैंने प्रार्थना की। प्रार्थना करने के बाद मुझे अपने दिल में यकीन हो गया कि परमेश्वर ही मुझे बाहर निकलने का रास्ता दे रहा था, इसलिए गार्ड का ध्यान हटते ही मैं दीवार फाँदकर फैक्टरी में चला गया। मैंने जल्दी से जेल की वर्दी उतारी, उसे अपने कंधे पर लटकाया और मुख्य द्वार से बाहर निकल गया। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच बच निकलूँगा। मैं परमेश्वर का बहुत आभारी था।
लेकिन जल्दी ही मैंने अपने पीछे सायरन की आवाज सुनी। मैं भागकर पेड़ों के झुरमुट में छिप गया और बिना रुके प्रार्थना करने लगा। मैंने अँधेरा होने तक इंतजार किया, फिर बहुत सावधानी से पेड़ों के झुरमुट से बाहर आया। मैंने एक छोटी ग्रामीण सड़क पकड़ी और रास्ता पूछते हुए शांग जिन के घर की ओर बढ़ने लगा। देर रात, जैसे ही मैं उसके घर जाने वाले राजमार्ग पर पहुँचा, मैंने देखा कि आगे कुछ पुलिस अधिकारी एक चौकी पर तैनात हैं और मैं बहुत डर गया। अगर उन्होंने मुझे ढूँढ़ लिया तो? अगर उन्होंने मुझे पकड़ लिया, तो वे मुझे छोड़ेंगे नहीं। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने सूखी घास का एक ढेर देखा और दौड़कर उसमें छिप गया, एक घंटे से ज्यादा समय तक मैं वहाँ रहा। पुलिस की गाड़ी जाते देखने के बाद मैं बहुत सावधानी से बाहर निकला, फिर मुश्किल से शांग जिन के घर की ओर बढ़ता गया। मैं ज्यादा दूर नहीं जा पाया था कि मेरी पिंडली में तेज दर्द हुआ और मैं और नहीं चल पाया, इसलिए मैंने बैठकर आराम किया और फिर चलना शुरू किया। चलते हुए मैंने “परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है” भजन गुनगुनाया :
1 आज मैं परमेश्वर के न्याय को स्वीकारता हूँ, कल मैं उसके आशीष पाऊँगा। परमेश्वर के महिमा दिवस को देखने के लिये मैं अपनी जवानी को त्यागने और अपना जीवन अर्पित करने के लिए तैयार हूँ। वह कार्य करता और सत्य व्यक्त करता है, इंसान को जीवन का मार्ग प्रदान करता है। परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के प्रेम ने मेरे हृदय को मोह लिया है। मैं कड़वा प्याला पीने और सत्य पाने के लिये कष्ट उठाने को तैयार हूँ। मैं बिना किसी शिकायत के अपमान सह लूँगा। मैं अपना जीवन परमेश्वर का अनुग्रह चुकाने में बिताना चाहता हूँ।
2 अपने हृदय में परमेश्वर के उपदेशों के साथ, मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने नहीं टेकूंगा। यद्यपि हमारे सिर धड़ से अलग हो सकते हैं और हमारा खून बह सकता है, लेकिन परमेश्वर के लोगों की रीढ़ की हड्डी झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए शानदार गवाही दूँगा, और राक्षसों और शैतान को अपमानित करूँगा। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, और मैं मृत्युपर्यंत उसके प्रति वफादार और समर्पित रहूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के रोने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा। मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और उसे महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा।
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—मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ
इसे गुनगुनाने के दौरान मैंने अपनी आस्था बढ़ती महसूस की। आखिरकार मैं अगले दिन दोपहर के आसपास शांग जिन के घर पहुँच गया। एक-दूसरे को देखते ही हम खुशी के आँसू रो पड़े। पुलिस के आने का खयाल करके उसने मेरी मेजबानी के लिए किसी और को तैयार किया। जैसा कि अपेक्षित था, तीसरे दिन दोपहर के आसपास पुलिस शांग जिन के घर आ पहुँची। मुझे न पाकर वह खिन्न होकर चली गई। उसके बाद मैंने शांग जिन के साथ अंत के दिनों का परमेश्वर का सुसमाचार साझा किया। परमेश्वर के मार्गदर्शन से उसके संप्रदाय के सौ से ज्यादा भाई-बहन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने आ गए।
श्रमिक शिविर से भागने के बाद मैं वांछित अपराधी बन गया था। सुसमाचार साझा करने के लिए मैं इधर-उधर यात्रा करता रहता था, मेरी घर लौटने की हिम्मत नहीं हुई। एक झटके में दस साल बीत गए, फिर सितंबर 2010 में मैं चोरी-छिपे अपने गृहनगर लौटा और अपनी बहन के यहाँ गया। मुझे वहाँ मेरी पत्नी दिखी, जिसने बताया कि श्रमिक-शिविर से मेरे भाग जाने के बाद पुलिस हमारे घर आई थी और उसने हमारे घर की और हमारे रिश्तेदारों के घरों की भी तलाशी ली थी। यहाँ तक कि उन्होंने मेरी पत्नी, माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों को भी धमकी भरे तरीके से मनाने की कोशिश की, ताकि वे मेरा पता-ठिकाना बता दें। पुलिस ने कुछ दिनों तक मेरे घर के आसपास के इलाके की गुप्त रूप से निगरानी भी की। इतने सालों तक पुलिस ने मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा था। नए साल और मेरे माता-पिता के जन्मदिन पर वे हमेशा मेरे बारे में पूछते और देखते कि क्या मैं घर लौट आया हूँ। 2002 में मेरी पत्नी भी अपनी आस्था के कारण गिरफ्तार कर ली गई थी और हमारे परिवार को उसे बाहर निकालने के लिए 2,000 युआन खर्च करने पड़े और संपर्कों का उपयोग करना पड़ा था। मुझे और मेरी पत्नी दोनों की गिरफ्तारी और जुर्माना लगाए जाने के कारण हमारे परिवार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई थीं। हमारे बच्चों को प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने से पहले विद्यालय छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया और आजीविका कमाने के लिए उन्हें वह इलाका छोड़ना पड़ा। यह सुनकर मैं बहुत परेशान हुआ। मेरे लौट आने की बात सुनकर मेरे माता-पिता मुझसे मिलने के लिए मेरी बहन के घर आए। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वे बिना एक शब्द भी बोले रोने लगे, लेकिन इस डर से कि कोई और न सुन ले, उन्होंने ज्यादा जोर से रोने की हिम्मत नहीं की। उन्होंने कहा कि वे हर समय मेरा सपना देखते रहते थे और रो-रोकर अंधे हो गए थे। जब मैंने देखा कि मेरे माता-पिता कितने कमजोर दिख रहे हैं, तो मैं अपने आँसू नहीं रोक पाया। कुछ दिनों बाद मुझसे मिलने के लिए अपनी बाइक पर सवार होकर दोबारा मेरी बहन के घर आते हुए मेरे पिताजी अचानक गिर गए और उनकी जाँघ की हड्डी टूट गई। जब मैंने इसके बारे में सुना, तो मैं उन्हें लेकर बहुत चिंतित हो गया और मैंने आधी रात को उनसे मिलने घर जाने का जोखिम उठाया। मेरे पिताजी ने मुझे देखकर रोना शुरू कर दिया और बोले, “डॉक्टर ने कहा कि वह मेरी जाँघ की हड्डी ठीक नहीं कर सकता। मुझे बस मरने का इंतजार है। हम शायद आखिरी बार एक-दूसरे से मिल रहे हैं।” मैंने अपने आँसू रोकते हुए उन्हें दिलासा दिया। गिरफ्तार होने के डर से मैं ज्यादा देर रुकने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए लगभग एक घंटे बाद चला आया। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के डर से मैं एक दशक से ज्यादा समय से भागा-भागा फिर रहा था, घर वापस नहीं जा सकता था, अपने परिवार से नहीं मिल सकता था, अपने माता-पिता के प्रति संतानोचित दायित्व नहीं निभा सकता था, न अपनी पत्नी और तीन बच्चों के प्रति पति और पिता के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ ही पूरी कर सकता था और अब मेरे पिता बीमार थे और मैं एक दिन भी उनकी देखभाल नहीं कर सकता था। मुझे लगा कि मैंने सचमुच अपने माता-पिता को निराश किया है और मेरा मन दुखने लगा। मैंने जल्दी से परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, उससे मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे आस्था और शक्ति प्रदान करने के लिए कहा। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े, जिनमें कहा गया है : “परमेश्वर हमें राह दिखाता हुआ जिस मार्ग पर ले जाता है, वह कोई सीधा मार्ग नहीं है, बल्कि वह गड्ढों से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सड़क है; इसके अतिरिक्त, परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना ही ज़्यादा पथरीला होगा, उतना ही ज़्यादा वह हमारे स्नेहिल हृदयों को प्रकट कर सकता है। लेकिन हममें से कोई भी ऐसा मार्ग उपलब्ध नहीं करा सकता। अपने अनुभव में, मैं बहुत-से पथरीले, जोखिम-भरे मार्गों पर चला हूँ और मैंने भीषण दुख झेले हैं; कभी-कभी मैं इतना शोकग्रस्त रहा हूँ कि मेरा मन रोने को करता था, लेकिन मैं इस मार्ग पर आज तक चलता आया हूँ। मेरा विश्वास है कि यही वह मार्ग है जो परमेश्वर ने दिखाया है, इसलिए मैं सारे कष्टों के संताप सहता हुआ आगे बढ़ता जाता हूँ। चूँकि यह परमेश्वर का विधान है, इसलिए इससे कौन बच सकता है? मैं किसी आशीष के लिए याचना नहीं करता; मैं तो सिर्फ़ इतनी याचना करता हूँ कि मैं उस मार्ग पर चलता रह सकूँ, जिस पर मुझे परमेश्वर के इरादों के मुताबिक चलना अनिवार्य है। मैं दूसरों की नकल करते हुए उस मार्ग पर नहीं चलना चाहता, जिस पर वे चलते हैं; मैं तो सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि मैं आखिरी क्षण तक अपने निर्दिष्ट मार्ग पर चलने की अपनी निष्ठा का निर्वाह कर सकूँ। ... ऐसा इसलिए है, क्योंकि मेरा हमेशा से यह विश्वास रहा है कि किसी व्यक्ति को जितना भी दुख भोगना है और अपने मार्ग पर जितनी दूर तक चलना है, वह सब परमेश्वर ने पहले से ही तय किया होता है, और इसमें सचमुच कोई किसी की मदद नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (6))। “तुम लोगों ने आज के दिन जो विरासत पाई है वह युगों-युगों तक परमेश्वर के प्रेरितों और नबियों की विरासत से भी बढ़कर है और यहाँ तक कि मूसा और पतरस की विरासत से भी अधिक है। आशीष एक या दो दिन में प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं; वे बड़े त्याग के माध्यम से ही कमाए जाने चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है, तुम लोगों को उस प्रेम से युक्त होना ही चाहिए जो शुद्धिकरण से गुज़र चुका है, तुममें अत्यधिक आस्था होनी ही चाहिए, और तुम्हारे पास कई सत्य होने ही चाहिए जो परमेश्वर अपेक्षा करता है कि तुम प्राप्त करो; इससे भी बढ़कर, भयभीत हुए या टाल-मटोल किए बिना, तुम्हें न्याय की ओर जाना चाहिए, और मृत्युपर्यंत परमेश्वर-प्रेमी हृदय रखना चाहिए। तुममें संकल्प होना ही चाहिए, तुम लोगों के जीवन स्वभाव में बदलाव आने ही चाहिए; तुम लोगों की भ्रष्टता का निदान होना ही चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के सारे आयोजन बिना शिकायत स्वीकार करने ही चाहिए, और तुम्हें मृत्युपर्यंत समर्पित होना ही चाहिए। यह वह है जो तुम्हें प्राप्त करना ही है, यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम लक्ष्य है, और यह वह है जो परमेश्वर लोगों के इस समूह से चाहता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचन पढ़ना मेरे लिए प्रबोधनकारी था। परमेश्वर ने पहले से तय कर रखा है कि व्यक्ति अपने जीवन-काल में कितना कष्ट उठाएगा। मुझे अपने माता-पिता को परमेश्वर के हाथों में छोड़कर उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना था। मैंने युगों-युगों के उन संतों के बारे में भी सोचा, जिन्होंने उत्पीड़न और कष्ट झेलकर परमेश्वर के लिए जबरदस्त गवाही दी थी। मैंने अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकार किया था और उसके द्वारा व्यक्त सत्यों का आनंद लिया था। मैंने उन सभी प्रेरितों और नबियों से कहीं ज्यादा प्राप्त किया था, लेकिन जब मैंने उत्पीड़न का सामना किया, तो मैं दुखी और कमजोर पड़ गया—मेरा अध्यात्मिक कद बहुत छोटा था। तब मैंने संतों की मिसाल पर चलने, अपनी आस्था में दृढ़ रहने और परमेश्वर का अनुसरण करने का संकल्प लिया!
2011 में एक भाई एक पत्र लाया, जिसमें कहा गया था कि पुलिस मेरी पत्नी से मेरे पते-ठिकाने के बारे में पूछने के लिए वापस मेरे घर गई थी। तब से मेरी पत्नी और मेरे बीच संपर्क नहीं हुआ है।
दिसंबर 2012 में एक दिन मैं कुछ भाई-बहनों के साथ बारिश में एक परिवार के साथ सुसमाचार साझा करने के लिए बाहर निकला। चार अधिकारी प्रकट हुए, एक कार से बाहर निकले और मुझे पकड़ लिया। बचने के लिए दो बहनें अपनी इलेक्ट्रिक बाइक पर भाग निकलीं और तीन अधिकारियों ने अपनी कार से उनका पीछा किया। एक अधिकारी ने मुझे कसकर पकड़ लिया और मैं छूटने के लिए संघर्ष करने लगा। एक बड़ी बहन ने मुझे बचाने के लिए अधिकारी को पकड़ लिया, जिससे मैं भाग निकला। लेकिन मैं कुछ दर्जन मीटर ही दौड़कर जा पाया था कि अधिकारी ने आकर मुझे पकड़ लिया, तब दो बहनों ने आकर फिर उसे पकड़ लिया, जिससे मैं आजाद हो गया। घर आने के बाद मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और जो अभी-अभी हुआ था, मैं उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर सका। मैं केवल इसलिए बच पाया, क्योंकि उन बहनों ने मुझे बचाने के लिए अधिकारी को पीछे से पकड़ लिया था। पता नहीं, उन्हें गिरफ्तार किया गया या नहीं, उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा या नहीं और अन्य भाई-बहन गिरफ्तार किए गए या नहीं। मैंने पिछली दो बार खुद को गिरफ्तार और प्रताड़ित किए जाने के बारे में सोचा। मुझे लगा कि चीन में सुसमाचार फैलाना इतना खतरनाक है कि तुम्हें किसी भी समय, किसी भी स्थान पर गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है। मैं बहुत उदास महसूस कर रहा था, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तक खोली और यह देखा : “सभी लोगों के लिए शोधन कष्टदायी होता है, और उसे स्वीकार करना बहुत कठिन होता है—परंतु शोधन के दौरान ही परमेश्वर मनुष्य के समक्ष अपना धर्मी स्वभाव स्पष्ट करता है और मनुष्य से अपनी अपेक्षाएँ सार्वजनिक करता है, और अधिक प्रबुद्धता, अधिक व्यावहारिक काट-छाँट करता है; तथ्यों और सत्य के बीच की तुलना के माध्यम से मनुष्य अपने और सत्य के बारे में बृहत्तर ज्ञान प्राप्त करता है, और उसे परमेश्वर के इरादों की और अधिक समझ प्राप्त होती है, और इस प्रकार उसे परमेश्वर के प्रति सच्चा और शुद्ध प्रेम प्राप्त होता है। शोधन का कार्य क्रियान्वित करने में परमेश्वर के लक्ष्य ऐसे होते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शोधन का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है)। “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने आत्मचिंतन करना शुरू कर दिया। मैंने देखा कि परमेश्वर के लिए मेरा प्रेम मिलावटी था और मैंने वास्तव में उसके प्रति समर्पण नहीं किया था। पिछली दो बार जब मुझे गिरफ्तार किया गया था, तो प्रताड़ित किए जाने पर मैंने शैतान के आगे घुटने नहीं टेके थे और मैं अपनी गवाही पर अडिग था, इसलिए मैंने सोचा कि मुझमें आध्यात्मिक कद था, कि मुझमें परमेश्वर के प्रति कुछ आस्था और समर्पण था। लेकिन समय-समय पर शैतान द्वारा लुभाए और हमला किए जाने से मेरा असली आध्यात्मिक कद सामने आ गया। पहले अडिग रह पाना मेरा वास्तविक आध्यात्मिक कद नहीं था, यह उस आस्था और साहस के कारण था जो परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिया था। इस बार मैंने देखा कि परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग वास्तव में शैतान की चाल के आधार पर किया जाता है। शैतान ने मुझे गिरफ्तार कर प्रताड़ित करने, मुझे पूरी तरह से हराकर परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने पर मजबूर करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, लेकिन परमेश्वर ने उन स्थितियों का इस्तेमाल मुझे अपने दोष देखने और कमियाँ समझने में मदद करने के लिए किया और उन दीर्घकालिक परीक्षाओं के माध्यम से मेरी आस्था और सच्चे समर्पण को पूर्ण किया गया। परमेश्वर के सच्चे इरादे समझने के बाद मैंने खुद को निराश या दुखी महसूस नहीं किया और मैंने पतरस के उदाहरण का अनुसरण करने, हर चीज में परमेश्वर के आयोजनों का पालन करने और चाहे मुझे जितने उत्पीड़न और कष्टों का सामना करने पड़े, अपना कर्तव्य पूरा करने, सुसमाचार साझा करने और परमेश्वर के लिए गवाही देने का संकल्प लिया।
दो दशकों तक मुझे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा क्रूरतापूर्वक गिरफ्तार किया गया, सताया गया और प्रताड़ित किया गया, अपने घर से भागने और अपने परिवार को टूटते देखने के लिए मजबूर किया गया, और मैं कई बार कमजोर पड़ा। परमेश्वर के वचनों ने बार-बार मुझे शक्ति दी और मुझे आज तक जीवित रखा। इन उत्पीड़नों और कठिनाइयों के कारण मैंने कुछ शारीरिक कष्ट अनुभव किए हैं, लेकिन मैं परमेश्वर के और करीब आया। मुझे परमेश्वर की बुद्धि, सर्वशक्तिमत्ता, प्रेम और उद्धार की कुछ वास्तविक समझ भी प्राप्त हुई। मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि कम्युनिस्ट पार्टी एक परमेश्वर-विरोधी शैतानी दानव है। मैंने पूरी तरह से उसके विरुद्ध विद्रोह किया, उसे त्याग दिया, और परमेश्वर का अनुसरण करने में दृढ़-संकल्प हो गया। मेरे लिए यह सब व्यवस्था करने और जीवन में सबसे कीमती खजाना प्राप्त करवाने के लिए मैं परमेश्वर का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
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