सुसमाचार साझा करने का फल

24 जनवरी, 2022

छनक्षिण, दक्षिण कोरिया

कुछ समय पहले, मैं फ़िलीपींस की एक ईसाई महिला, टेरेसा से ऑनलाइन मिली। उससे बातें करते हुए, मैंने पाया कि उसे प्रभु में सच्ची आस्था है। उसने कहा कलीसिया से उसे कुछ हासिल नहीं हो रहा था उसे ज़्यादा से ज़्यादा विश्वासी धर्मनिरपेक्ष चलनों का अनुसरण करते दिख रहे थे। उसे उसकी कलीसिया वीरान लगने लगी थी, वह ऐसी कलीसिया चाहती थी जहां पवित्र आत्मा का कार्य हो। वह परमेश्वर को जानने के लिए उसके और वचन पढ़ना और एक नई जिंदगी जीना चाहती थी। उसकी आध्यात्मिक तड़प देखते हुए, मैं उसके साथ सुसमाचार साझा करना चाहती थी ताकि वह परमेश्वर की वाणी सुन सके और उसके घर से जुड़ सके। एक बार मैंने उससे पूछा कि वह अपनी आस्था में क्या चाहती है। उसने कहा, "मैं परमेश्वर के राज्य में जाना चाहती हूँ, जहां मैं हमेशा उसके साथ रहूँ, लेकिन मैं एक पापी हूँ, उसके राज्य में जाने लायक नहीं।" मैंने उससे कहा कि अगर हम परमेश्वर के राज्य में जाना चाहते हैं, तो हमें उसके मानकों को समझना होगा, मैंने पूछा कि क्या उसे और जानना है। उसने बड़े उत्साह से कहा, "बिल्कुल!" वह सच्ची विश्वासी थी जो सत्य खोजना चाहती थी, इसलिए मैं भी परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देना चाहती थी। मगर उसके काम का समय हो गया था, इसलिए हमें अपनी बातचीत खत्म करनी पड़ी।

वो अपने काम में बहुत व्यस्त हो गई, वह सुबह से देर रात तक काम करती थी, काम के बाद थकान के कारण उसे आराम की ज़रूरत होती। हर हफ़्ते उसके पास जो भी समय बचता उसमें वह कलीसिया जाती, इसलिए हमें बात करने का मौका नहीं मिला। हर बार उससे संपर्क करने पर वह व्यस्त मिलती, इसलिए बात करने का समय बिल्कुल नहीं था। कुछ समय के बाद मुझे निराशा महसूस होने लगी। मैं सोचने लगी, हमें ऑनलाइन बातचीत करनी होगी, क्योंकि हम एक देश में नहीं रहते, ऐसे में अगर उसके पास समय नहीं है, तो मैं परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य कैसे साझा कर पाऊँगी? मैं सोचने लगी कि मेरे हाथ तो बंधे हैं, मुझे इसे भूल जाना चाहिए। शायद कोई और उसके साथ सुसमाचार साझा कर पाए। मैं कोशिश को छोड़ने ही वाली थी कि मुझे परमेश्वर की कही यह बात याद आ गई। "क्या तू अपने कधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी चमकती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दु:ख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के बाद, मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने उसके साथ सुसमाचार साझा करने की सारी कोशिशें नहीं की थीं, न ही मैंने उसे बताया कि प्रभु यीशु पहले ही लौट आया है। उसे प्रभु यीशु में गहरी आस्था थी और वह उसकी इच्छा समझना चाहती थी, मगर वह पोषण के बिना, आध्यात्मिक अंधकार में जी रही थी। जब उसे सचमुच मदद की ज़रूरत थी, मैं उसका साथ छोड़ने जा रही थी। फिर वह परमेश्वर की वाणी कब सुनेगी? अब तो आपदाएं बढ़ती जा रही हैं, अगर मैंने फ़ौरन परमेश्वर के कार्य की गवाही नहीं दी, तो वह उद्धार का अवसर गँवा सकती है। यह सोचकर मुझे और भी बुरा लगा, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैं जानती हूँ कि तुम चाहो तो सब मुमकिन है। अगर वह तुम्हारी भेड़ों में से एक है, तो मैं सुसमाचार साझा करने की हर मुमकिन कोशिश करना चाहती हूँ। मुझे राह दिखाओ।" प्रार्थना के बाद, अचानक मुझे याद आया कि भले ही उसके पास समय की कमी है, मगर हम साथ में प्रार्थना करने का समय पहले तय कर सकते हैं। मैंने उससे पूछा तो वह फौरन तैयार हो गई। हमने सुबह 5 बजे का समय तय किया। उस समय मैं अपने काम में काफ़ी व्यस्त रहती थी, हर रात 2 से 3 बजे तक काम करती थी। मुझे लगा, अगर मुझे इतनी जल्दी उठना पड़ा तो नींद पूरी नहीं होगी। मगर मैंने खुद से कहा कि अगर मैंने अपने आराम की सोची, तो इससे टेरेसा के परमेश्वर के करीब आने में देरी हो जाएगी। मैं जानती थी कि यह गलत है। मैंने परमेश्वर की बातों को याद किया, "देह शैतान से संबंधित है। इसके भीतर असंयमित इच्छाएँ हैं, यह केवल अपने बारे में सोचता है, यह आरामतलब है और फुरसत में रंगरलियाँ मनाता है, सुस्ती और आलस्य में धँसा रहता है, और इसे एक निश्चित बिंदु तक संतुष्ट करने के बाद तुम अंततः इसके द्वारा खा लिए जाओगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। मैं जानती थी कि शरीर को संतुष्ट करना मतलब शैतान को संतुष्ट करना। इससे मैं कर्तव्य निभाने में नाकाम हो जाऊँगी और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देने का मौका गँवा दूँगी। मैंने प्रार्थना की, मैं दैहिक इच्छाओं से मुँह मोड़ने और उसके साथ सुसमाचार साझा कर उसे परमेश्वर के घर में लाने के लिए इससे भी अधिक कीमत चुकाने को तैयार हूँ। हमने सुबह की प्रार्थना के लिए मिलना शुरू कर दिया, जब मैंने उससे एक बहुत सच्ची प्रार्थना कही, इस उम्मीद में कि उसके पास परमेश्वर के वचनों पर संगति करने के लिए अधिक समय होगा, तो उसने बड़ी गंभीरता से कहा, "मैं महसूस कर सकती हूँ कि आप कितनी सच्ची हैं। आपकी प्रार्थना के लिए धन्यवाद। मुझे बहुत प्रेरणा मिली है।" उसकी बातें सुनकर मेरा दिल खुश हो गया, मैंने देखा कि लोग दूसरों की सच्चाई महसूस कर सकते हैं। मैंने मन ही मन परमेश्वर से संकल्प किया कि मैं टेरेसा को उसके घर में ज़रूर लेकर आऊँगी। इसलिए मैंने उसे सुझाया कि हम कुछ समय साथ मिलकर बाइबल के बारे में संगति करें। उसने हाँ कर दी और रोज़ाना 30 मिनट की संगति के लिए समय निकाल लिया, साथ ही उसने फिर कहा कि वह परमेश्वर के राज्य में जाने का तरीका जानना चाहती है।

अगले ही दिन संगति में हमने उस बारे में बात की। मैंने कहा, "हर विश्वासी राज्य में प्रवेश पाना चाहता है, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें प्रभु के वचन सुनने चाहिए। प्रभु यीशु ने कहा था, 'जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। प्रभु के वचन बिल्कुल स्पष्ट हैं। स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की कुंजी है परमेश्वर की इच्छा पूरी करना। इसका क्या मतलब है? सरल शब्दों में कहें, तो परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का मतलब है प्रभु के वचनों पर अमल कर उसकी आज्ञाओं का पालन करना। यानी खुद को पाप से दूर रखना और परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना, साथ ही, दिल से परमेश्वर से प्रेम करना और उसके प्रति समर्पित होना। जो लोग हमेशा झूठ बोलते, पाप करते, परमेश्वर का विरोध करते और उसकी अपेक्षाओं के विरुद्ध जाते हैं, वे उसकी इच्छा पूरी नहीं कर रहे, तो क्या वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक हैं?" उसने कहा, "नहीं। हम अपनी बातों में लगातार झूठ बोलते हैं, पाप करते हैं, और ज़्यादातर लोग सांसारिक चलन का अनुसरण करते हैं, पैसे के पीछे भागते हैं। हम सचमुच परमेश्वर की आराधना नहीं करते, यहां तक कि पादरी भी ऐसा नहीं करते। इस तरह हम राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?" मैंने जवाब दिया, "हाँ। प्रभु यीशु ने हमें छुटकारा दिलाया है, हमारे पाप क्षमा हुए हैं, मगर हम झूठ बोलते और पाप करते रहते हैं। हम दिन में पाप करते और रात में उसे कबूलते हैं। बाइबल कहती है, 'पवित्रता जिसके बिना कोई इंसान प्रभु को कभी नहीं देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। हम राज्य में प्रवेश करने लायक नहीं हैं। मगर हम सब जानते हैं कि परमेश्वर इंसान से प्रेम करता है और वह हम सबको बचाकर अपने राज्य में ले जाना चाहता है, ताकि हम उसकी रोशनी में रह सकें। तो फिर परमेश्वर हमारे लिए यह कैसे करता है? बाइबल कहती है, 'वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा' (इब्रानियों 9:28)। प्रभु अंत के दिनों में हमें बचाने के लिए, हमें पाप के बंधनों से पूरी तरह मुक्त करने, हमें परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उसकी इच्छा पूरी करने वाले इंसान बनाने के लिए दोबारा आता है, ताकि हम पूरी तरह बचाये जा सकें और उसके राज्य में प्रवेश कर सकें।" यह सुनकर वो काफी उत्साहित हो गई और कहा, "मैं पाप करना बंद कर दूँगी। तो परमेश्वर हमें पाप से कैसे बचाता है?" फिर मैंने उसे बाइबल के कुछ पद भेजे। पहला पद था, "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17)। फिर ये: "जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था, 'इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?' ... 'देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है'" (प्रकाशितवाक्य 5:1-5)। मैंने कहा, "प्रभु कहता है कि वह इंसान को सत्य से पवित्र करेगा, प्रकाशित वाक्य और दानिय्येल की पुस्तक, दोनों कहते हैं कि अंत के दिनों में एक मुहरबंद किताब खोली जाएगी। यह किताब अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचनों का संदर्भ देती है, यही वह सत्य है जो इंसान को पवित्र करेगा। इस किताब को सिर्फ़ स्वयं परमेश्वर ही खोल सकता है, इंसान को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर सकता है। अंत के दिनों में जब प्रभु आता है, तो वह हमें शुद्ध करके बदलने और हमें पाप से बचाने के लिए बहुत-से सत्य व्यक्त करता है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में कई बार यह भी कहा गया है, 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है' (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2,3)। अंत के दिनों में परमेश्वर कलीसियाओं से बात करेगा। हमें बस उसकी वाणी सुननी होगी। उसकी वाणी सुने बिना हम प्रभु का स्वागत नहीं कर पाएंगे, शुद्ध करके बचाये जाने और राज्य में प्रवेश करने लायक बनने का ये एकमात्र अवसर है।"

फिर संगति के दौरान टेरेसा ने मुझसे पूछा, "प्रभु को अंत के दिनों में नये वचन बोलने की क्या ज़रूरत है? मैंने जीवन भर बाइबल पढ़ी है, इसने मुझे आस्था दी है, बहुत कुछ सिखाया है, सहनशील बनना, धीरज रखना और क्षमा करना सिखाया है। मुझे लगता है बाइबल काफी है, हमारे पादरी हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में हैं, उसके बाहर जो भी है वह परमेश्वर का वचन नहीं है।" टेरेसा के मन में अंत के दिनों में प्रभु के वचन बोलने के बारे में कुछ धारणाएं थीं, वो इसे स्वीकार नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने सीधे उसकी बात को ख़ारिज नहीं किया। मैंने अपना अनुभव उसके साथ साझा किया। मैंने कहा, "मेरी सोच भी ऐसी ही थी, कि प्रभु ने जो भी कहा वह बाइबल में है, उसके बाहर परमेश्वर का कोई भी नया वचन नहीं है। मगर बाद में, मैंने एक भाई को प्रभु की एक बात का जिक्र करते सुना, जिससे मेरा नजरिया बदल गया। प्रभु यीशु ने कहा था, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। यह वही बात थी जो प्रभु ने उस समय अपने शिष्यों से कही थी। उसने कहा था कि उसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर लोगों का आध्यात्मिक कद कम है तो वो इसे समझ नहीं पाएंगे। उसे सभी सत्य समझने और उसमें प्रवेश करने में लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए अंत के दिनों में और भी बातें कहनी हैं, ताकि हम पाप के बंधनों से मुक्त होकर पूरी तरह बचाये जा सकें।" फिर मुझे उसके साथ साझा करने के लिए एक अच्छा उदाहरण याद आया। "एक छोटे बच्चे के बारे में सोचो। जब वह छोटा होता है, उसकी माँ उसे बोलना और चलना सिखा रही होती है, तो क्या वह ऐसा कहती है कि उसे अच्छा कमाना चाहिए ताकि वो अपने माता-पिता का ध्यान रख सके? बेशक नहीं। उस बात को समझने के लिए उसकी उम्र बहुत कम है, तो उस उम्र में उसके माता-पिता उसे वही बताते हैं जो वह समझ सके। बड़ा होने पर वह और सीखता है, वे उसे जीवन के बारे में कुछ और बताते हैं, जैसे कि नौकरी ढूंढना और परिवार बसाना। यह वैसा ही है जैसे कि प्रभु यीशु का लोगों की ज़रूरतों के आधार पर, अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य करना, पश्चाताप का मार्ग बताना, लोगों को विनम्र और सहनशील बनना, क्रूस धारण करना, सत्तर गुना सात बार दूसरों को क्षमा करना सिखाना। मगर ऐसी चीज़ें भी हैं जिनके बारे में प्रभु ने लोगों को नहीं बताया—वह है इंसान को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी सत्य। उसने इन बातों को उस समय के लिए बचाया जब वह अंत के दिनों में आएगा, यही वह मुहरबंद किताब है जिसकी भविष्यवाणी प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में की गई है। इन 2,000 बरसों में, किसी ने भी उस किताब को नहीं पढ़ा, क्योंकि अंत के दिनों में प्रभु के लौटकर आने से पहले ये नहीं खुली थी। क्या तुम्हें लगता है कि उस किताब में जो लिखा है वह बाइबल में हो सकता है?" उसने ईमानदारी से कहा, "यह बाइबल में नहीं हो सकता।" मैंने यह संगति उसके साथ कई बार साझा की, तब जाकर वह इसे अच्छी तरह समझ पाई।

मगर अगले दिन जब मैंने फिर से अंत के दिनों में प्रभु के बोलने का ज़िक्र किया, तो उसने कहा कि अंत के दिनों के प्रभु के सभी वचन बाइबल में होने चाहिए। पहले तो मुझे लगा कि मैंने गलत सुना, तो मैंने उससे दोबारा पूछा। उसने सचमुच यही बात कही थी। मैं बहुत निराश हो गई, सोचने लगी, लगता है उसे कुछ समझ नहीं आया। मुझे बहुत निराशा महसूस हुई। मैंने सोचा उसके साथ मिलने का समय तय करना ही इतना मुश्किल था, अब कई बार समझाने के बाद भी उसे कुछ समझ नहीं आया। क्या वो इसे समझ पाएगी? मैंने कुछ नहीं कहा, मगर मैं पीछे हटने के बारे में सोचने लगी। मगर फिर मुझे एहसास हुआ, ऐसा नहीं है कि उसने हमारी संगति से कुछ नहीं सीखा। किसी पर यूं लेबल लगा देना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है। फिर अचानक मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "परमेश्वर ने तुम्हें यह कर्तव्य दिया; तुम्हें सुसमाचार के हर लक्ष्य के साथ प्रेम और धैर्य के साथ अपनी सर्वोत्तम क्षमता से व्यवहार करना चाहिए, जो भी कठिनाई सहनी जरूरी हो, सहन करनी चाहिए, अपना कार्य अंत तक जिम्मेदारी की भावना के साथ करना चाहिए, और अपने सभी कार्यों का लेखा परमेश्वर को देने में सक्षम होना चाहिए। यही वह रवैया है, जिसके साथ तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है')। "जिस व्यक्ति को सुसमाचार सुनाया जा रहा है, यदि वह बार-बार कोई प्रश्न पूछता है, तो तुम्हें कैसे उत्तर देना चाहिए? तुम्हें उसका उत्तर देने में, उसके प्रश्न के समाधान के लिए हर संभव उपाय सोचने में लग रहे समय और परेशानियों का बुरा नहीं मानना चाहिए, जब तक कि वह समझ न जाए और आश्वस्त न हो जाए। तभी तुम्हारा दायित्व पूरा होगा, और तुम्हारा हृदय अपराध-बोध से मुक्त होगा। क्या इसका अर्थ उनकी ओर से अपराध-बोध से मुक्त होना है? नहीं, इसका यह अर्थ नहीं है। तुम परमेश्वर की ओर से अपराध-बोध से मुक्त होगे, क्योंकि यह कर्तव्य, यह उत्तरदायित्व तुम्हें परमेश्वर ने सौंपा था" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है')। जब मैंने परमेश्वर की अपेक्षाओं के बारे में सोचा, तो मुझे खुद पर शर्म आई। मैंने तो बस कुछ ही बार संगति की थी, मगर मैं और कोशिश नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उसने अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ीं। मैं स्नेही नहीं बन रही थी। जब मैं विश्वासी बनी थी, तो मेरी भी बहुत-सी धारणाएं थीं, मगर भाई-बहनों ने बार-बार मेरे साथ संगति की और मेरे लिए प्रार्थना भी की, तब जाकर मैंने अपनी धारणाओं को छोड़ा और परमेश्वर के सामने आकर उसका उद्धार स्वीकारा। यह परमेश्वर के प्रेम और सहनशीलता के कारण हुआ। तो फिर सुसमाचार साझा करते वक्त मैं धीरज रखकर उसके साथ संगति क्यों नहीं कर पा रही? शर्मिंदगी महसूस करते हुए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, अगर वह तुम्हारी भेड़ों में से एक है, तो मुझे राह दिखाओ। मैं तुम्हारे साथ सहयोग करने की हर मुमकिन कोशिश करूंगी।" प्रार्थना के बाद, मैंने सोचा कि बाइबल बरसों से टेरेसा की आस्था की नींव है। यह समझा जा सकता है कि वो फौरन इस बात को पूरी तरह नहीं स्वीकार कर पाई होगी कि अंत के दिनों के परमेश्वर के नए वचन बाइबल में मौजूद नहीं हैं। मैंने तय किया कि अब मैं एक अलग नज़रिये से इस पर उससे बात करूंगी। उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश उसके साथ साझा किये। "परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य की तरह पूजे नहीं जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। "मैं जो बात समझाना चाहता हूँ वह यह है : परमेश्वर जो है और उसके पास जो है, वह सदैव अक्षय और असीम है। परमेश्वर जीवन का और सभी वस्तुओं का स्रोत है; उसकी थाह किसी भी रचित जीव के द्वारा नहीं पाई जा सकती। अन्त में, मुझे सभी को याद दिलाते रहना होगा : परमेश्वर को फिर कभी पुस्तकों, वचनों या उसकी अतीत की उक्तियों में सीमांकित मत करना। परमेश्वर के कार्य की विशेषताओं का वर्णन करने के लिए केवल एक ही शब्द है : नवीन। वह पुराने रास्ते लेना या अपने कार्य को दोहराना पसंद नहीं करता; इसके अलावा, वह नहीं चाहता कि लोग उसे एक निश्चित दायरे के भीतर सीमांकित करके उसकी आराधना करें। यह परमेश्वर का स्वभाव है" ("वचन देह में प्रकट होता है" का 'अंतभाषण')। उसके बाद, मैंने उसके साथ संगति की, "परमेश्वर सभी सत्यों का स्रोत है और उसकी बुद्धि अनंत है। परमेश्वर हमेशा इंसान की ज़रूरतों के आधार पर और सत्य व्यक्त कर सकता है। उसे सिर्फ बाइबल में कही बातों तक सीमित कैसे किया जा सकता है? क्या यह परमेश्वर को बाइबल की सीमाओं में बाँधना नहीं है?" फिर मैंने एक कुएं के तल में बैठे मेंढक की चीनी कथा उसे सुनायी। मैंने कहा, "एक मेंढक कुएं के तल में रहता था, वह सिर्फ कुएं के मुहाने से ही आकाश को देख पाता था, उसने सोचा कि आकाश उस कुएं के मुहाने जितना ही बड़ा होगा। फिर एक दिन जोर का तूफ़ान आया, बहुत बारिश हुई, वह उछलकर कुएं से बाहर निकल आया। उसने अनंत तक फैले आकाश को देखा, जो दरअसल कुएं के मुहाने के मुकाबले बहुत विशाल था। उसे एहसास हुआ कि कुएं के तल में रहने के कारण वह पूरे आकाश को देख ही नहीं पाया था।" मैंने कहा कि मुझे भी ऐसा ही महसूस हुआ था, परमेश्वर के बारे में मेरी समझ भी बहुत उथली थी। परमेश्वर कितना महान है और हम कितने छोटे हैं। परमेश्वर अनंत और अथाह है, जो वह स्वयं है और उसके पास जो है, उसके बारे में हम अपनी समझ से कभी नहीं जान सकते। हम परमेश्वर को सीमाओं में कैसे बाँध सकते हैं? प्रभु यीशु ने कहा, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। परमेश्वर सत्य का सोता है। मैंने उससे पूछा कि बाइबल में जो कहा गया है, क्या परमेश्वर उससे अधिक सत्य व्यक्त कर सकता है, उससे भी ऊँची बातें, अंत के दिनों में लोगों की ज़रूरत की हर बात बोल सकता है। उसने कहा, "बेशक, वो ऐसा कर सकता है।" मैं देख सकती थी कि उसकी धारणाएं मिटने लगी हैं, उसका हृदय खुलने लगा है। मैंने उसे वही पद भेजा : "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। मैंने उससे कहा कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से जो कहता है वह साफ तौर पर वही है जो प्रभु अंत के दिनों में लौटने पर कहता है। बाइबल में वही सब कुछ दर्ज है जो परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में और अनुग्रह के युग में कहा और किया है। जब मैंने पूछा कि क्या प्रभु के लौटने पर उसके द्वारा व्यक्त किये गए वचन बाइबल में पहले से दर्ज हो सकते हैं, तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अब मैं समझ गई। प्रभु के लौटने पर बोले गए उसके वचन बाइबल में नहीं हैं, और परमेश्वर बाइबल के बाहर भी वचन बोल सकता है।" उसके दिल पर काफी गहरा असर पड़ा, उसने कहा कि लोग परमेश्वर को ज़्यादा नहीं जानते हैं। वह परमेश्वर के और वचन पढ़ना चाहती थी, उसे और अधिक समझना चाहती थी।

मुझे यह देखकर भी बहुत खुशी हुई कि टेरेसा ये स्वीकारने को तैयार थी कि प्रभु लौटकर आएगा और वचन बोलेगा। इसलिए मैंने उससे पूछा, "चूंकि प्रभु लौटकर आएगा और ज़्यादा वचन बोलेगा, तो तुम्हें क्या लगता है कि वह अपने कथनों के लिए कौन-सा माध्यम चुनेगा?" उसने कहा, "आत्मा का माध्यम।" मैंने उससे कहा कि मैं भी ऐसा ही सोचती थी, मगर मैंने भाई-बहनों के साथ बाइबल की जांच-पड़ताल की, देखा कि इसमें कहा गया है: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। ये अंश भी है "जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा" (लूका 17:26), और "तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा" (मत्ती 24:44)। मैंने कहा, "इन सभी पदों में प्रभु के 'मनुष्य के पुत्र' के रूप में लौटने की बात की गई है। 'मनुष्य के पुत्र' का मतलब है कि वह मनुष्य से पैदा हुआ है और उसमें सामान्य मानवता है। अगर वह आध्यात्मिक रूप में होता, तो उसे ऐसा नहीं कहा जाता। यहोवा परमेश्वर आध्यात्मिक रूप में था, इसलिए उसे ऐसा नहीं कहा गया। इसका मतलब है कि प्रभु अंत के दिनों में देह में लौटता है। अगर वह पुनर्जीवित आध्यात्मिक शरीर में आया, बादल पर सवार होकर खुले तौर पर सभी लोगों के बीच प्रकट हुआ, तो हर कोई उसके आगे दंडवत हो जाएगा, डर से काँपेगा और उसे अस्वीकार करने की हिम्मत नहीं करेगा। फिर प्रभु के ये वचन कि 'पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ' कैसे पूरे होंगे?" ऐसा लगा कि टेरेसा कुछ सोच रही है, तो मैंने उससे आगे कहा, "प्रभु अंत के दिनों में आत्मा नहीं बल्कि देहधारी होकर आने का फैसला क्यों करेगा?" उसने कुछ नहीं कहा। मैंने कहा, "लोग आध्यात्मिक रूप में परमेश्वर को देख या छू नहीं सकते। अगर कोई आध्यात्मिक शरीर अचानक प्रकट होकर बोलने लगा, तो तुम्हें कैसा महसूस होगा?" लोग डर जाएंगे और उलझन में पड़ जाएंगे। क्या परमेश्वर ऐसा चाहेगा कि जब वह हमसे बोले तो हर कोई डरा हुआ महसूस करे? बिल्कुल नहीं। और भ्रष्ट इंसानियत भी तो दागदार है; हम परमेश्वर का आत्मा देखने के काबिल नहीं हैं। परमेश्वर का आत्मा देखकर तो हम मर ही जाएंगे। यह सब समझाने के बाद, मैंने परमेश्वर के कुछ और वचन उसे पढ़कर सुनाये। "परमेश्वर द्वारा मनुष्य को सीधे पवित्रात्मा की पद्धति और पवित्रात्मा की पहचान का उपयोग करके नहीं बचाया जाता, क्योंकि उसके पवित्रात्मा को मनुष्य द्वारा न तो छुआ जा सकता है, न ही देखा जा सकता है, और न ही मनुष्य उसके निकट जा सकता है। यदि उसने पवित्रात्मा के दृष्टिकोण के उपयोग द्वारा सीधे तौर पर मनुष्य को बचाने का प्रयास किया होता, तो मनुष्य उसके उद्धार को प्राप्त करने में असमर्थ होता। यदि परमेश्वर एक सृजित मनुष्य का बाहरी रूप धारण न करता, तो मनुष्य के लिए इस उद्धार को प्राप्त करने का कोई उपाय न होता। क्योंकि मनुष्य के पास उस तक पहुँचने का कोई तरीका नहीं है, बहुत हद तक वैसे ही जैसे कोई मनुष्य यहोवा के बादल के पास नहीं जा सकता था। केवल एक सृजित मनुष्य बनकर, अर्थात् अपने वचन को उस देह में, जो वह बनने वाला है, रखकर ही वह व्यक्तिगत रूप से वचन को उन सभी लोगों में ढाल सकता है, जो उसका अनुसरण करते हैं। केवल तभी मनुष्य व्यक्तिगत रूप से उसके वचन को देख और सुन सकता है, और इससे भी बढ़कर, उसके वचन को ग्रहण कर सकता है, और इसके माध्यम से पूरी तरह से बचाया जा सकता है। यदि परमेश्वर देह नहीं बना होता, तो कोई भी देह और रक्त से युक्त मनुष्य ऐसे बड़े उद्धार को प्राप्त न कर पाता, न ही एक भी मनुष्य बचाया गया होता। यदि परमेश्वर का आत्मा मनुष्यों के बीच सीधे तौर पर काम करता, तो पूरी मानवजाति खत्म हो जाती या फिर परमेश्वर के संपर्क में आने का कोई उपाय न होने के कारण शैतान द्वारा पूरी तरह से बंदी बनाकर ले जाई गई होती" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। "यह परमेश्वर के देह बनने का लाभ था : वह मानवजाति के ज्ञान का लाभ उठा सकता था और लोगों से बात करने और अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए मानवीय भाषा का उपयोग कर सकता था। उसने मनुष्य को अपनी गहन, दिव्य भाषा, जिसे समझने में लोगों को संघर्ष करना पड़ता था, मानवीय भाषा में, मानवीय तरीके से समझाई या 'अनुवादित' की। इससे लोगों को उसकी इच्छा को समझने और यह जानने में सहायता मिली कि वह क्या करना चाहता है। वह मानवीय भाषा का प्रयोग करके मानवीय परिप्रेक्ष्य से लोगों के साथ वार्तालाप कर सकता था, और लोगों के साथ उस तरीके से बातचीत कर सकता था, जिसे वे समझ सकते थे। यहाँ तक कि वह मानवीय भाषा और ज्ञान का उपयोग करके बोल और कार्य कर सकता था, ताकि लोग परमेश्वर की दयालुता और घनिष्ठता महसूस कर सकें, ताकि वे उसके हृदय को देख सकें" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III)। फिर मैंने अपनी संगति जारी रखी : "परमेश्वर ने देहधारी होकर आने और हमारे बीच एक असली जीवन जीने का फैसला किया है, कि वो हमारे करीब हो और हमें बचाने के लिए सत्य प्रदान करे। यह वैसे ही है जैसा माता-पिता अपने बच्चों के साथ करते हैं। क्या माता-पिता यह चाहेंगे कि बच्चा उन्हें देखकर डरा हुआ महसूस करे?" बेशक नहीं। तो मैंने उससे कहा, "माता-पिता कभी नहीं चाहते कि उनका बच्चा डरा हुआ महसूस करे, उन्हें देखकर छिपे, तो परमेश्वर के बारे में क्या कहोगी? अगर परमेश्वर स्वर्ग से बात करे, तो हम डर जाएंगे और उससे दूर हो जाएंगे। परमेश्वर नहीं चाहता कि हम उससे दूर हो जाएं, उसके करीब जाने से डरें, प्रभु की वापसी वैसी ही है जैसे प्रभु यीशु आया था। वह एक साधारण मनुष्य के पुत्र के रूप में देह बनकर आया, अपने शिष्यों के साथ खाता-पीता और बोलता रहा, हमेशा उनकी समस्याओं और उलझनों को हल करता रहा। असली जीते-जागते परमेश्वर को लोगों के बीच रहते हुए देखकर हमें लगता है कि हम परमेश्वर के बहुत करीब हैं। साथ ही, परमेश्वर सत्य व्यक्त करने, हमें पोषण और जीवन देने के लिए हमारी भाषा का इस्तेमाल कर सकता है। वह मिसालों और उपमाओं का इस्तेमाल कर सकता है, ताकि हम उसकी इच्छा बेहतर ढंग से समझें। फिर हमारे लिये सत्य समझना और उसमें प्रवेश करना आसान हो जाता है। हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत व्यावहारिक, बहुत कीमती है! देहधारण करके, परमेश्वर अत्यधिक अपमान सहता है, वचन बोलने और कार्य करने के लिए कष्ट उठाता है, ताकि हम सत्य समझ सकें, पाप से मुक्त होकर पूरी तरह बचाये जा सकें। यह भ्रष्ट इंसान के लिए उसका सबसे बड़ा उद्धार है।" इस बात पर टेरेसा की आँखों से आंसू छलक आये। उसने कहा, "अब मैं समझ गई। प्रभु देहधारी रूप में लौटेगा। मैं भी चाहती हूँ कि परमेश्वर देहधारी होकर हमारे बीच आये। वह हमसे बहुत प्रेम करता है। हम इसके काबिल नहीं हैं ..." टेरेसा पर कितना गहरा असर हुआ है, यह देखकर मेरा दिल भर आया, फिर मुझे परमेश्वर की ये बातें याद आईं : "क्या तू 'हर युग में परमेश्वर द्वारा व्यक्त स्वभाव' को ठोस ढंग से ऐसी भाषा में बता सकता है जो उपयुक्त तरीके से युग की सार्थकता को व्यक्त करे? क्या तू, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का वर्णन विस्तार से कर सकता है? क्या तू स्पष्ट एवं सटीक ढंग से परमेश्वर के स्वभाव की गवाही दे सकता है? तू उन दयनीय, बेचारे और धार्मिकता के भूखे-प्यासे धर्मनिष्ठ विश्वासियों के साथ, जो तेरी देखरेख की आस लगाए बैठे हैं, अपने दर्शनों और अनुभवों को कैसे बांटेगा?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?)। "परमेश्वर के कार्यों के लिए गवाही देने हेतु तुम्हें अपने अनुभव, ज्ञान और तुम्हारे द्वारा चुकाई गयी कीमत पर निर्भर होना होगा। केवल इसी तरह तुम उसकी इच्छा को संतुष्ट कर सकते हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। मैंने याद किया जब मैं सुसमाचार साझा करती थी तो लोगों के साथ ज़्यादातर सिद्धांत ही साझा किया करती थी, मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मुझे परमेश्वर की सच्ची समझ है या नहीं, मैं अपने असली, निजी अनुभवों से गवाही साझा कर सकती हूँ या नहीं। इस अनुभव ने मुझे दिखाया कि सुसमाचार साझा करने का मतलब दूसरों से बात करना ही नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर को बेहतर ढंग से जानने अवसर भी है। टेरेसा के साथ मेरी संगति से, मैं परमेश्वर का प्रेम महसूस कर पाई। अगर वह देहधारण करके काम करने और वचन बोलने नहीं आया होता, तो हम किसी भी तरह से सत्य समझ नहीं पाते या हमारे भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध नहीं किये जाते। हम बस आपदाओं में घिर कर नष्ट हो जाते। इस बारे में मैंने जितना सोचा, उतना ही मुझे महसूस हुआ कि हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महान है। फिर टेरेसा ने कहा, "आज की संगति मेरे लिए पूरी तरह से नई है। इससे मुझे वाकई बहुत कुछ हासिल हुआ है।"

मैं उसके मुँह से यह सुनकर बहुत खुश हुई और उससे कहा, "प्रभु यीशु पहले ही देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने नए वचन बोले हैं और वह इंसान को पूरी तरह से शुद्ध करके बचाने के लिए अंत के दिनों का न्याय-कार्य कर रहा है। इससे बाइबल की यह भविष्यवाणी पूरी होती है, 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17), और 'पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है' (यूहन्ना 5:22)।" टेरेसा यह सुनकर बेहद उत्साहित थी कि प्रभु पहले ही लौट आया है, मगर वह उलझन में भी थी। उसने मुझसे पूछा, "प्रभु यीशु पहले ही सूली पर चढ़कर, हमारे पापों को क्षमा कर चुका है। तो फिर उसे अंत के दिनों में लौटने और इंसान को बचाने के लिए न्याय-कार्य करने की क्या ज़रूरत?" मैंने परमेश्वर के कुछ वचन उसे पढ़कर सुनाये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। "तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैंने कहा, "प्रभु यीशु ने हमें छुटकारा दिलाया। इस छुटकारे से क्या हासिल हुआ? हमें हमारे पापों से छुटकारा दिलाया गया, अब हमें व्यवस्था के उल्लंघन के लिए दंड नहीं दिया जाता। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से यही हासिल हुआ है। प्रभु में हमारी आस्था के ज़रिए हमारे पापों को माफ़ कर दिया गया है, मगर हम अब भी हर वक्त झूठ बोलते और पाप करते हैं। हम दिन में पाप करने और रात को कबूल करने के दुष्चक्र में जी रहे हैं, पाप की बेड़ियों से कभी बचकर नहीं निकल पाते। ऐसा क्यों है? इसका कारण यह है कि हमने अपनी पापी प्रकृति से छुटकारा नहीं पाया है। यह पापी प्रकृति हमारे अंदर एक घातक ट्यूमर की तरह मौजूद है। अगर इसे हटाया नहीं गया, तो भले ही हमें हज़ारों बार, दसियों हज़ार बार माफ़ किया जाए, मगर हम पाप से कभी मुक्त नहीं होंगे या राज्य के काबिल नहीं बनेंगे। यही कारण है कि प्रभु को लौटकर आने और न्याय-कार्य करने की ज़रूरत है। न्याय-कार्य हमारी पापी प्रकृति को ठीक करने के लिए है, ताकि हम पाप की बेड़ियों से मुक्त हो सकें और शुद्ध करके पूरी तरह बचाये जा सकें।"

यह सुनकर टेरेसा बहुत खुश हुई और कहा, "क्या आप मुझे न्याय-कार्य के बारे में बता सकती हैं? हमें पाप से बचाने के लिए परमेश्वर न्याय कैसे करता है?" मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़कर सुनाया। "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। इसे पढ़ने के बाद, मैंने कहा, "अंत के दिनों में, परमेश्वर वचनों के ज़रिए न्याय करता है, ताकि इंसान की परमेश्वर विरोधी शैतानी प्रकृति उजागर करे। इससे हमारे शैतानी स्वभाव और परमेश्वर के विरोध की हमारी सभी अभिव्यक्तियां उजागर हो जाती हैं, इससे हम यह जान पाते हैं कि शैतान ने हमें कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है, हम परमेश्वर के पवित्र, धार्मिक स्वभाव को भी देख पाते हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, काट-छाँट और निपटान के बाद, हम अपने द्वारा प्रकट सभी शैतानी स्वभाव देख पाते हैं जैसे कि अहंकारी, कपटी, स्वार्थी और लालची होना। हम परमेश्वर के लिए त्याग करने के काबिल हो सकते हैं, मगर जब कुछ ऐसा होता है जो हमें पसंद नहीं, जैसे कि बीमार होना या आपदा का सामना करना, तो हम परमेश्वर को गलत समझकर उसे दोष देने लगते हैं। यह न्याय हमारे लिए इस बात को समझने का एकमात्र रास्ता है कि भले ही हम परमेश्वर के लिए त्याग करते हैं, मगर यह सिर्फ आशीष और इनाम पाने और राज्य में प्रवेश करने के लिए होता है। हम परमेश्वर के साथ एक सौदा कर रहे होते हैं। हम उसके प्रति सच्चा समर्पण नहीं करते हैं, सच्चे प्रेम की तो बात ही दूर रही। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना, और हमारे साथ होने वाली घटनाओं से उजागर हुई बातों से, हम अपनी भ्रष्टता के सच को जानकर इससे नफ़रत करने लगते हैं। हम परमेश्वर के पवित्र, धार्मिक स्वभाव का भी अनुभव करते हैं जो कोई अपमान नहीं सहता, फिर हममें उसके लिए श्रद्धा और समर्पण का भाव आता है। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम देख सकते हैं कि शैतान हमें कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर चुका है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना के बिना हम अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को कभी नहीं देख पाएंगे, न इससे मुक्त होंगे। खास तौर पर, हममें कभी परमेश्वर के लिए प्रेम या आज्ञाकारिता नहीं होगी। जिस तरह किसी बीमार इंसान को अगर यह पता न हो कि उसके साथ कुछ गड़बड़ है, वह इलाज के लिए नहीं जाएगा या न ये जानेगा कि उसे किस इलाज की ज़रूरत है, तो वह ठीक भी नहीं हो पाएगा। लेकिन अगर वह डॉक्टर के पास जाता है, तो डॉक्टर उसे बता सकता है कि क्या गड़बड़ है, इसकी वजह और इलाज क्या है, डॉक्टर की सलाह मानने पर वह ठीक हो जाएगा। इस तरह, परमेश्वर अंत के दिनों में अपने वचनों से इंसान का न्याय करता है, ताकि हमारी पापी प्रकृति और भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव ठीक कर सके। हमें पाप से मुक्त होने, अपने भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव से छुटकारा पाने, परमेश्वर द्वारा बचाये जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए, उस न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना होगा।" इस बात पर टेरेसा ने कहा, "अब मैं समझ गई। परमेश्वर का हमें शुद्ध करके बचाना न्याय-कार्य है। मैं पाप करने और उसे कबूलने के जीवन से निकलना चाहती हूँ, तो मुझे परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार करना होगा।" उसके बाद हमने सुसमाचार की कुछ फ़िल्में साथ मिलकर देखी, फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े। टेरेसा ने मुझसे कहा, "इन वचनों में बहुत अधिकार और सामर्थ्य है। ये धरती हिला देते हैं। यह परमेश्वर की वाणी है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई लौटकर आया यीशु है। वह हमें शुद्ध करके बचाने के लिए वापस आया प्रभु है!" फिर उसने मुझसे तुरंत पूछा, "मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की कॉपी कहाँ मिलेगी? मैं दूसरे विश्वासियों के साथ आमने-सामने संगति कहाँ कर सकती हूँ?" मैंने उसका स्थानीय कलीसिया के सदस्यों से कराने को कहा और उसे वचन देह में प्रकट होता है का ऑनलाइन संस्करण भेज दी। वह बहुत उत्साहित थी—हैरानी में उसकी आँखें फैल गईं, उसने कहा कि वह जल्द से जल्द सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की किताब पाना और उसे पढ़ना चाहती है।

यह देखकर कि प्रभु का स्वागत करने के लिए वह कितनी खुश थी, मैंने परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन का बहुत आभार माना, जिसने टेरेसा को परमेश्वर की वाणी सुनने और उसके घर आने की अनुमति दी। दो या तीन दिन बाद, उसने मुझसे कहा, उसने अपनी सबसे करीबी दोस्त को प्रभु के पहले ही लौट आने की खबर सुनाई, तो उसने उस पर विश्वास करने को लेकर चेतावनी दी। उसके पादरी भी लगातार उसे फ़ोन करके धमकी दे रहे हैं कि ऐसा करने पर उसे कलीसिया से निकाल बाहर किया जाएगा। उसने कहा, "मुझे यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही अंत के दिनों का मसीह है, क्योंकि उसके वचन सत्य हैं और केवल मसीह ही सत्य व्यक्त कर सकता है। वह लौटकर आया यीशु है। मैं अपनी दोस्त की बातों में नहीं आऊँगी और पादरी भी मुझे रोक नहीं सकते।" उसने यह भी कहा, "मैं बरसों से एक असली कलीसिया की तलाश में थी, मगर मुझे हमेशा निराशा ही हाथ लगी। उनमें से कहीं भी पोषण नहीं मिलता, ज़्यादा से ज़्यादा सदस्य सांसारिक चलन का अनुसरण करते हैं। मैं बेबस महसूस कर रही थी। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत कर पाऊँगी। अब मुझे परमेश्वर की कलीसिया मिल गई है।" वो बहुत भावुक हो गई। मैंने उसकी आँखों में आंसू देखे—वह काफी आशावान दिख रही थी। मेरा दिल भी भर आया। मैंने देखा कि परमेश्वर की भेड़ उसकी वाणी सुनकर उसका अनुसरण करती है, शैतान चाहे कितना भी दखल दे, वो अपनी आस्था कायम रखती है। मगर यह सोचकर कि अड़चन आने पर मैं कितनी हताश हो गई थी और अपनी कोशिश छोड़ देना चाहती थी, उसे भूल जाने के लिए तैयार थी, उसके साथ परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही साझा करना बंद करने ही वाली थी, तो मैं पछतावे और अपराध बोध से भर गई। मैंने यह भी देखा कि कैसे सिर्फ़ परमेश्वर हमसे प्रेम करता और हमारा ध्यान रखता है, क्योंकि जब मैं अपनी कोशिश छोड़ने ही वाली थी, तभी परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध करके राह दिखाई, जिससे मैं अपने विद्रोही स्वभाव को जान पाई और इंसान को बचाने की परमेश्वर की तत्पर इच्छा समझ सकी। फिर मैं टेरेसा को थोड़ा-थोड़ा करके परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही देने के लिए परमेश्वर के साथ काम कर पाई।

यह मेरे लिए भी गहरा अनुभव था कि सुसमाचार साझा करने से लोगों को बचाने में मदद होती है। यह अपने असली जीवन के अनुभवों और भावनाओं से परमेश्वर के कार्य की गवाही देना है, यह ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर में लाना है जो प्रभु के आगमन के लिए तरस रहे हैं, जो अंधकार की दुनिया में जी रहे हैं। इससे अधिक सार्थक कुछ नहीं है। मैंने प्रभु की वापसी के लिए तरस रही इंसान की प्रभु की वाणी सुनने और उसका स्वागत करने पर होने वाली खुशी को भी देखा। मैंने महसूस किया कि कैसे परमेश्वर को उम्मीद है कि ज़्यादा से ज़्यादा सच्चे विश्वासी उसके पास आएंगे और उसका उद्धार पाएंगे। इस दुनिया में और भी बहुत से लोग हैं जो अंधकार में जी रहे हैं, परमेश्वर के आगमन के लिए तड़प रहे हैं। परमेश्वर बहुत दुखी है, वह उनके लिए फ़िक्रमंद है। इस तरह, मुझे और भी अधिक लगा कि सुसमाचार साझा करना मेरी ज़िम्मेदारी है, यह मेरी बुलाहट है। मैंने परमेश्वर के सामने कसम खाई कि चाहे मेरे सामने कैसी भी अड़चन आये, मैं परमेश्वर के सहारे सुसमाचार साझा करने का अपना कर्तव्य निभाऊंगी। परमेश्वर के बारे में अपनी सच्ची समझ के आधार पर गवाही दूँगी, उसकी भेड़ को उसके सामने लाऊँगी, ताकि वे जल्द से जल्द अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार का अनुग्रह पा सकें।

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