क्या बाइबल में आस्था और परमेश्वर में आस्था एक ही बात है?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बहुत सालों से, लोगों के विश्वास (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत) का परंपरागत साधन बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास करना नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक पाखंड और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकें पढ़ते हैं, तो उन पुस्तकों की बुनियाद भी बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम प्रभु में विश्वास करते हो तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, और बाइबल के अलावा तुम्हें ऐसी किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए, जिसमें बाइबल शामिल न हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो। ... बाइबल लोगों के मन में एक आदर्श बन चुकी है, वह उनके मस्तिष्क में एक पहेली बन चुकी है, और वे यह विश्वास करने में सर्वथा असमर्थ हैं कि परमेश्वर बाइबल के बाहर भी काम कर सकता है, वे यह विश्वास करने में असमर्थ हैं कि लोग बाइबल के बाहर भी परमेश्वर को पा सकते हैं, और यह विश्वास करने में तो वे बिलकुल ही असमर्थ हैं कि परमेश्वर अंतिम कार्य के दौरान बाइबल से प्रस्थान कर सकता है और नए सिरे से शुरुआत कर सकता है। यह लोगों के लिए अचिंत्य है; वे इस पर विश्वास नहीं कर सकते, और न ही वे इसकी कल्पना कर सकते हैं। लोगों द्वारा परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में बाइबल एक बहुत बड़ी बाधा बन गई है, और उसने परमेश्वर के लिए इस नए कार्य का विस्तार करना कठिन बना दिया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन प्रभु में हमारी पहले की आस्था की समस्याएं उजागर करते हैं। पहले धर्म का पालन करते समय मैं सोचती थी कि बाइबल में आस्था ही परमेश्वर में आस्था है। मेरा यह भी विश्वास था कि बाइबल परमेश्वर से ऊँचा है। बाइबल के कुछ खास पदों से मैं चिपकी हुई थी। खास कर जब प्रभु के स्वागत की बात आती है, तो मैं परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान नहीं दे रही थी। मैंने किसी को गवाही देते सुना कि प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, सत्य व्यक्त कर रहा है, अंत के दिनों का न्याय-कार्य कर रहा है, लेकिन मैंने उसे नहीं खोजा। मैंने प्रभु के स्वागत का मौक़ा लगभग गँवा ही दिया था। परमेश्वर के अद्भुत मार्गदर्शन के कारण मैं प्रभु का स्वागत कर सकी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार सकी।
2001 में, बपतिस्मा लेकर मैंने प्रभु यीशु को औपचारिक रूप से स्वीकारा, फिर मैं कलीसिया की सेवा में बहुत सक्रिय हो गयी। लेकिन जल्द ही मुझे पता चला कि पादरी उन्हीं धर्मसंदेशों को दोहराते रहते थे, प्रचार के लिए नया कुछ नहीं था। उन्होंने कलीसिया के पैसे भी गबन किए। सहकर्मी लगातार रुतबे के लिए स्पर्धा करते थे। यह सब बहुत निराशाजनक था तो मैंने कलीसिया की सेवा से खुद को दूर कर लिया। अगले कुछ वर्षों में, मैं प्रार्थना करती रही, बाइबल पढ़ती रही, मगर आध्यात्मिक खालीपन महसूस करती ही रही। मैंने एक बेहतर मार्ग की खोज शुरू कर दी, इस शायद पवित्र आत्मा के कार्य से युक्त कोई कलीसिया या आध्यात्मिक मार्गदर्शक मिले, जो मेरे आध्यात्मिक खालीपन को कम कर दे।
तभी मैं 2018 में बहन ली से मिली। उसने मुझे बताया कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की जाँच कर रही है, प्रभु यीशु, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है, और मुझे भी इस पर गौर करना चाहिए। मैं यह सोचकर चौंक गई, "पादरी और एल्डर हमेशा कहते हैं बाइबल सच्चा ईसाई अधिनियम है, और उसका अधिकार संपूर्ण है, हमारी आस्था बाइबल पर आधारित है, अन्य हर चीज विधर्म है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का मार्ग बाइबल से बाहर है, इसलिए वह कितना भी महान लगे, हम उसे सुन या पढ़ नहीं सकते, न ही उससे संपर्क कर सकते हैं।" मैंने आदर से बहन ली की बात सुनने से मना कर दिया। लेकिन फिर इसको लेकर मैं थोड़ा परेशान हुई, सोचा, "प्रभु का लौटना बहुत बड़ी बात है। क्या प्रभु चाहता है कि मैं आँखें बंद करके इस पर गौर करने से बिल्कुल इनकार कर दूँ? प्रभु यीशु ने कहा था, 'धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है' (मत्ती 5:3)। प्रभु की वापसी की बात सुनकर मुझे खुले दिमाग से खोजना चाहिए।" लेकिन पादरी की बातों के बारे में सोचकर मेरी हिम्मत नहीं हुई। उस रात मैं सो नहीं पाई, करवटें बदलती रही। बड़ी दुविधा में थी, समझ नहीं आया क्या करूँ। खोया हुआ महसूस करके मैंने प्रभु से प्रार्थना की, मुझे सही विकल्प चुनने का रास्ता दिखाने की विनती की। अगले कुछ दिनों में, मुझे इंटरनेट पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया और उसके मार्ग के बारे में अधिक जानकारी मिली। अखबारों में छपी कुछ नकारात्मक बातें देख कर मुझे झिझक हुई। मैंने सवाल किया, "क्या मुझे इस पर गौर करना चाहिए?" लेकिन फिर मुझे याद आया कि प्रभु की वापसी कितनी महत्वपूर्ण है। मैं बस आँखें बंद करके दूसरों की बातें नहीं सुन सकती, भीड़ के पीछे नहीं चल सकती थी। मुझे सच में शोध करने की जरूरत थी। मैंने कलीसिया की वेबसाइट और उसके वीडियो देखे। फिर मुझे एक भजन का संगीत वीडियो मिला जिसका नाम था, "मसीह का राज्य है स्नेह से भरा घर।" यह दिल को बड़ा सुकून देनेवाला था—मैं फ़ौरन आकर्षित हो गई। मैंने साइट के बाकी अंश देखे, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा बनाए गए तरह-तरह के बढ़िया वीडियो और फ़िल्में मिलीं, इनमें समवेत संगीत, संगीत वीडियो, सुसमाचार फ़िल्में, परमेश्वर के वचनों का पाठ, और अनुभव आधारित गवाही की फ़िल्में आदि शामिल थीं। वे सभी अच्छा सबक देते और बहुत ही जोशपूर्ण थे। इन सबने मेरा दिल छू लिया। मैंने एक-एक करके उन्हें देखना शुरू किया।
उस एक हफ्ते में ही दर्जन भर देख डाले। उनमें मिली संगति मुझे व्यावहारिक और प्रबुद्ध करने वाली लगी। इसने दर्शाया कि धार्मिक संसार में खालीपन क्यों है, उसमें पवित्र आत्मा का कार्य क्यों नहीं है, इसने यह भी अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया कि हमें प्रभु का स्वागत कैसे करना चाहिए। वीडियो में यह भी समझाया गया था कि परमेश्वर किसे आशीष देता है और किसे दंड, आदि। बरसों से मेरे मन में बसी दुविधाओं और सवालों के जवाब मिल गए। मुझे लगा कि कलीसिया की फ़िल्में बहुत सहायक हैं और संतोष देती हैं। इन्हें देख मैं सच में सोचने लगी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया विधर्मी नहीं लगती! अगर यह सच में अच्छी नहीं होती, तो यह इतनी प्रकाशित और प्रबुद्ध करने वाली फ़िल्में कैसे बना पाती? सभी वर्ग, सच्ची आस्था और प्रभु यीशु मसीह का होने का दावा करते हैं, लेकिन किसी भी दूसरे ने परमेश्वर की गवाही देने वाली इतनी फ़िल्में नहीं बनाई हैं। मैंने पादरी और एल्डरों की यह बात भी याद की कि विभिन्न वर्गों के बहुत-से सच्चे विश्वासियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया अब दुनिया भर में है। इससे मुझे गमलीएल की बात याद आई : "यदि यह धर्म या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे। कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो" (प्रेरितों 5:38-39)। परमेश्वर से आई हुई चीज बढ़ेगी ही, बहुत संभव था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया सच में परमेश्वर से आई है। लेकिन अब भी मेरे मन में बहुत-से सवाल थे : "उनकी हर फिल्म में एक विशेष किताब वचन देह में प्रकट होता है का जिक्र है। इस कलीसिया के सदस्य बाइबल क्यों नहीं पढ़ते? क्या यह बाइबल को त्यागना नहीं है? पादरी और एल्डर बार-बार कहते थे कि बाइबल ईसाई धर्म का अधिनियम है, इसका अधिकार संपूर्ण है, बाइबल का अनुसरण करना सबसे महत्वपूर्ण है, दूसरी तमाम चीजें विधर्म हैं।" मैंने इस बारे में बार-बार सोचा, लेकिन बहुत सोचने पर भी मैं समझ नहीं पाई। उस वक्त प्रभु यीशु के ये वचन मेरे दिमाग में कौंधे : "माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। मैंने दिल को समझाया, "लोग कहते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, इसलिए मेरे मन में चाहे जितनी भी शंकाएं हों, अगर इसके सच होने की जरा-भी गुंजाइश है, तो मुझे आशा की उस किरण को खोजना होगा। मैं प्रभु के स्वागत का अपना मौक़ा नहीं गँवा सकती।"
एक बार जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट पर नजर दौड़ा रही थी, तो मैंने बाइबल से बाहर निकलें नामक फिल्म का एक अंश देखा, और "क्या परमेश्वर बाइबल के अनुसार कार्य करता है?" नामक विषय ने फौरन मेरा ध्यान खींचा। मैं इंतज़ार नहीं कर पाई—उसी समय मैंने फिल्म देखना शुरू कर दिया, उसमें मैंने एक इंजीलवादी बहन वांग को एक पादरी से यह पूछते देखा : "आपने अभी-अभी कहा कि परमेश्वर अपना उद्धार कार्य करने के लिए बाइबल से परे नहीं जा सकता, बाइबल से बाहर की हर चीज विधर्म है। तो फिर सच में पहले क्या आया, बाइबल या परमेश्वर का कार्य?" ये सवाल सुनकर मेरी अंतरात्मा ने कहा, "जाहिर है, परमेश्वर का कार्य बाइबल से पहले आया!" बहन वांग ने कहा, "आरंभ में परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों का सृजन किया। वह संसार में बाढ़ ले आया, सदोम और अमोरा को जला दिया, और भी बहुत-कुछ किया। उसने जब ये सब किया, तो क्या पुराना नियम अस्तित्व में था?" मेरी आत्मा मुझसे कह रही थी, "नहीं। परमेश्वर ही आरंभ है। उसी ने सभी चीजों का सृजन किया, लेखन के अस्तित्व से भी पहले, बाइबल तो दूर की बात है।" बहन वांग ने आगे कहा : "जब परमेश्वर ने अपना कार्य किया, तो कोई शास्त्र नहीं थे। यानी परमेश्वर का कार्य पहले हुआ, फिर उसके बारे में शास्त्रों में लिखा गया। और जब अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो नया नियम था ही नहीं। तीन सौ साल से भी ज्यादा समय बाद, दुनिया भर के अनेक धार्मिक अगुआओं के साथ एक सम्मलेन आयोजित किया गया। उन्होंने चार सुसमाचारों को प्रभु यीशु के कार्य के रिकॉर्ड के रूप में चुना, कलीसियाओं को नबियों द्वारा लिखे कुछ पत्र, और यूहन्ना द्वारा दर्ज प्रकाशितवाक्य भी जोड़े। इन सबको मिलाकर उन्होंने ऐसा संकलन तैयार किया जिसे हम नया नियम कहते हैं। बाइबल की रचना-प्रक्रिया से हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य पहले आया, फिर उसे बाइबल में लिखा गया। परमेश्वर के कार्य के बिना, बाइबल का अस्तित्व भी नहीं होता। यानी, परमेश्वर बाइबल के आधार पर कार्य नहीं करता, वह उसकी सीमा से बंधा नहीं है। वह अपनी योजना और मनुष्य की विशिष्ट जरूरतों के अनुसार कार्य करता है। इसलिए हम परमेश्वर के कार्य को बाइबल में मौजूद चीजों तक सीमित नहीं कर सकते, या बाइबल से उसके कार्य को सीमा में नहीं बाँध सकते। हम सच में यह दावा नहीं कर सकते कि बाइबल से परे हर चीज विधर्म है।"
इसके बाद फिल्म की बहन यांग ने और भी अधिक उपयोगी संगति साझा की : "प्रभु यीशु ने अपना कार्य पुराने नियम के अनुसार नहीं किया। उसने प्रायश्चित के मार्ग का प्रचार किया, रोगियों का इलाज किया, दानवों को दूर भगाया, और सब्त के दिन भी काम किया। उस वक्त शास्त्रों में इनमें से किसी के बारे में भी नहीं लिखा गया था। ऐसा भी लगा मानो यह पुराने नियमों की व्यवस्था के विपरीत हो। सभी मुख्ययाजकों, धर्मशास्त्रियों, और फरीसियों ने, प्रभु यीशु की निंदा की, क्योंकि उसका कार्य और उसके वचन उस समय के शास्त्रों के विरुद्ध थे। अगर हम बस यह कहते हैं कि बाइबल से परे की हर चीज विधर्म है, तो क्या यह परमेश्वर के सभी युगों के कार्य की निंदा करना नहीं होगा?"
मैं चौंक गई, मुझे एकाएक एहसास हुआ कि यह सच है। प्रभु यीशु ने सब्त के दिन कार्य किया, प्रचार किया, रोगियों का इलाज किया और दानवों को दूर भगाया। पुराने नियम में इस तरह की किसी भी बात का जिक्र नहीं था। उसका कार्य शास्त्रों से बाहर था, इसलिए मुख्ययाजकों, धर्मशास्त्रियों, ख़ास तौर से फरीसियों ने प्रभु यीशु के कार्य की विधर्म कहकर निंदा की, और आखिरकार सूली पर चढ़वाकर उसे मार डाला। परमेश्वर ने उन्हें दंडित किया। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में वापस लौटा हुआ प्रभु यीशु है, और हम विश्वास करते हैं कि बाइबल से परे हर चीज विधर्म है, तो क्या यह परमेश्वर के कार्य की निंदा नहीं होगी? यह परमेश्वर के लिए अपमानजनक होगा! इस विचार ने मुझे सच में बहुत डरा दिया। मैं जान गई थी कि अब मैं अपनी पुरानी सोच से चिपकी नहीं रह सकती। मैं फिल्म देखती रही।
फिल्म में बहन ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। "बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))। "बाइबल एक ऐतिहासिक पुस्तक है, और यदि तुमने अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान को खाया और पीया होता—यदि तुम अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान के समय में जो अपेक्षित था, उसे व्यवहार में लाए होते—तो यीशु ने तुम्हें अस्वीकार कर दिया होता, और तुम्हारी निंदा की होती; यदि तुमने पुराने विधान को यीशु के कार्य में लागू किया होता, तो तुम एक फरीसी होते। यदि आज तुम पुराने और नए विधान को खाने और पीने के लिए एक-साथ रखोगे और अभ्यास करोगे, तो आज का परमेश्वर तुम्हारी निंदा करेगा; तुम पवित्र आत्मा के आज के कार्य में पिछड़ गए होगे! यदि तुम पुराने विधान और नए विधान को खाते और पीते हो, तो तुम पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हो! यीशु के समय में, यीशु ने अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार यहूदियों की और उन सबकी अगुआई की थी, जिन्होंने उस समय उसका अनुसरण किया था। उसने जो कुछ किया, उसमें उसने बाइबल को आधार नहीं बनाया, बल्कि वह अपने कार्य के अनुसार बोला; उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया कि बाइबल क्या कहती है, और न ही उसने अपने अनुयायियों की अगुआई करने के लिए बाइबल में कोई मार्ग ढूँढ़ा। ठीक अपना कार्य आरंभ करने के समय से ही उसने पश्चात्ताप के मार्ग को फैलाया—एक ऐसा मार्ग, जिसका पुराने विधान की भविष्यवाणियों में बिलकुल भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसने न केवल बाइबल के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि एक नए मार्ग की अगुआई भी की, और नया कार्य किया। उपदेश देते समय उसने कभी बाइबल का उल्लेख नहीं किया। व्यवस्था के युग के दौरान, बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने के उसके चमत्कार करने में कभी कोई सक्षम नहीं हो पाया था। इसी तरह उसका कार्य, उसकी शिक्षाएँ, उसका अधिकार और उसके वचनों का सामर्थ्य भी व्यवस्था के युग में किसी भी मनुष्य से परे था। यीशु ने मात्र अपना नया काम किया, और भले ही बहुत-से लोगों ने बाइबल का उपयोग करते हुए उसकी निंदा की—और यहाँ तक कि उसे सलीब पर चढ़ाने के लिए पुराने विधान का उपयोग किया—फिर भी उसका कार्य पुराने विधान से आगे निकल गया; यदि ऐसा न होता, तो लोग उसे सलीब पर क्यों चढ़ाते? क्या यह इसलिए नहीं था, क्योंकि पुराने विधान में उसकी शिक्षाओं, और बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की उसकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं कहा गया था? उसका कार्य एक नए मार्ग की अगुआई करने के लिए था, वह जानबूझकर बाइबल के विरुद्ध लड़ाई करने या जानबूझकर पुराने विधान को अनावश्यक बना देने के लिए नहीं था। वह केवल अपनी सेवकाई करने और उन लोगों के लिए नया कार्य लाने के लिए आया था, जो उसके लिए लालायित थे और उसे खोजते थे। वह पुराने विधान की व्याख्या करने या उसके कार्य का समर्थन करने के लिए नहीं आया था। उसका कार्य व्यवस्था के युग को विकसित होने देने के लिए नहीं था, क्योंकि उसके कार्य ने इस बात पर कोई विचार नहीं किया कि बाइबल उसका आधार थी या नहीं; यीशु केवल वह कार्य करने के लिए आया था, जो उसके लिए करना आवश्यक था। इसलिए, उसने पुराने विधान की भविष्यवाणियों की व्याख्या नहीं की, न ही उसने पुराने विधान के व्यवस्था के युग के वचनों के अनुसार कार्य किया। उसने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि पुराने विधान में क्या कहा गया है, उसने इस बात की परवाह नहीं की कि पुराना विधान उसके कार्य से सहमत है या नहीं, और उसने इस बात की परवाह नहीं की कि लोग उसके कार्य के बारे में क्या जानते हैं या कैसे उसकी निंदा करते हैं। वह बस वह कार्य करता रहा जो उसे करना चाहिए था, भले ही बहुत-से लोगों ने उसकी निंदा करने के लिए पुराने विधान के नबियों के पूर्वकथनों का उपयोग किया। लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो उसके कार्य का कोई आधार नहीं था, और उसमें बहुत-कुछ ऐसा था, जो पुराने विधान के अभिलेखों से मेल नहीं खाता था। क्या यह मनुष्य की ग़लती नहीं थी? क्या परमेश्वर के कार्य पर सिद्धांत लागू किए जाने आवश्यक हैं? और क्या परमेश्वर के कार्य का नबियों के पूर्वकथनों के अनुसार होना आवश्यक है? आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))।
बहन वांग ने यह साझा किया : "हमने बरसों से परमेश्वर और बाइबल को यह सोचकर एक समान स्थान दिया, कि उसका कार्य बाइबल से परे नहीं जा सकता, और बाइबल से बाहर की आस्था को आस्था नहीं बल्कि विधर्म कहा जाएगा। सच कहें, तो बाइबल परमेश्वर के कार्य के प्रथम दो चरणों का रिकॉर्ड मात्र है। यह परमेश्वर द्वारा स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों व मनुष्य के सृजन के बाद, मनुष्य को राह दिखाते हुए उसे बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य के प्रथम दो चरणों की गवाही है। यह मनुष्य को बचाने के उसके पूरे कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता। बाइबल में परमेश्वर के वचन बहुत सीमित हैं। इसमें परमेश्वर के जीवन स्वभाव के कुछ संकेत हैं, मगर पूरा वर्णन नहीं है। परमेश्वर न बाइबल के अनुसार कार्य करता है, न अपने कार्य में इसका संदर्भ देता है। वह इसके द्वारा अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करने का मार्ग भी निर्धारित नहीं करता। उसका कार्य लगातार आगे बढ़ता रहता है। परमेश्वर ने एक नया युग प्रारंभ किया है और वह नया कार्य कर रहा है। वह लोगों को नया मार्ग और बड़े सत्य दिखा रहा है, ताकि हम और भी महान उद्धार हासिल कर सकें। इसलिए, परमेश्वर अपने पुराने कार्य के आधार पर मनुष्य की अगुआई नहीं करता। यानी, परमेश्वर बाइबल के आधार पर कार्य नहीं करता। वह सब्त के साथ ही बाइबल का भी प्रभु है। बाइबल के परे कार्य करने, और अपनी योजना और मनुष्य की जरूरत के आधार पर नया कार्य करने का उसे पूरा अधिकार है। एक युग से दूसरे युग में परमेश्वर का कार्य यकीनन एक ही नहीं हो सकता। किसी भी अर्थ में यह दावा उचित नहीं है कि बाइबल से बाहर की हर चीज विधर्म है।"
फिल्म देखकर मुझे शर्मिंदगी हुई। उसकी साझा की हुई संगति सच्चाई के अनुरूप थी। अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु का कार्य पुराने नियम से बहुत आगे का था। क्या यह हमें नहीं दर्शाता कि सृजन के प्रभु के रूप में, परमेश्वर बाइबल से परे कार्य करने में पूरी तरह सक्षम है? मैंने इन सबके बारे में पहले क्यों नहीं सोचा? यह कहना कि "बाइबल से बाहर की हर चीज विधर्म है" एक झूठ है और टिक नहीं सकता। मैं बहुत मूर्ख और अज्ञानी थी!
फिल्म के आगे के अंश में, बहन की कही बात ने मेरा ध्यान खींचा। उसने कहा, "बाइबल सिर्फ एक गवाही है, परमेश्वर के कार्य का रिकॉर्ड है। यह अनंत जीवन नहीं दे सकता। हालांकि यह पारंपरिक विचारों से अलग है, लेकिन ये निर्विवाद है, जैसे बहुत समय पहले प्रभु यीशु ने फरीसियों को यह कहकर फटकारा था, 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39-40)। प्रभु यीशु ने हमें स्पष्ट रूप से बताया कि शास्त्रों में कोई अनंत जीवन नहीं मिल सकता, उनमें अनंत जीवन ढूँढ़ने की कोशिश करना सरासर गलत है। सत्य और जीवन हासिल करने के लिए बाइबल अपने आप में काफी नहीं है। ये चीजें हमें सिर्फ स्वयं मसीह में ही मिल सकती हैं।" ये बातें आँखें खोलने वाली थीं। मैं समझ गई कि प्रभु यीशु ने हमें बहुत पहले ही बता दिया था कि बाइबल में कोई अनंत जीवन नहीं है। केवल परमेश्वर ही सत्य, मार्ग और जीवन है, सिर्फ परमेश्वर ही हमें अनंत जीवन दे सकता है। इसे पढ़ते समय मुझे यह एहसास क्यों नहीं हुआ?
फिल्म में बहन ने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "जब एक उच्चतर मार्ग मौजूद है, तो फिर निम्न, पुराने मार्ग का अध्ययन क्यों करते हो? जब यहाँ अधिक नवीन कथन और अधिक नया कार्य उपलब्ध है, तो पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों के मध्य क्यों जीते हो? नए कथन तुम्हारा भरण-पोषण कर सकते हैं, जिससे साबित होता है कि यह नया कार्य है; पुराने अभिलेख तुम्हें तृप्त नहीं कर सकते, या तुम्हारी वर्तमान आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकते, जिससे साबित होता है कि वे इतिहास हैं, और यहाँ का और अभी का कार्य नहीं हैं। उच्चतम मार्ग नवीनतम कार्य है, और नए कार्य के साथ, भले ही अतीत का मार्ग कितना भी ऊँचा हो, वह सिर्फ इतिहास है जिसे लोग पीछे मुड़कर देख रहे हैं, और भले ही संदर्भ के रूप में उसका कितना भी महत्व हो, वह फिर भी एक पुराना मार्ग है। भले ही वह 'पवित्र पुस्तक' में दर्ज किया गया हो, फिर भी पुराना मार्ग इतिहास है; भले ही 'पवित्र पुस्तक' में नए मार्ग का कोई अभिलेख न हो, फिर भी नया मार्ग यहाँ का और अभी का है। यह मार्ग तुम्हें बचा सकता है, और यह मार्ग तुम्हें बदल सकता है, क्योंकि यह पवित्र आत्मा का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। फिर उसने यह साझा किया : "बाइबल में अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सिर्फ भविष्यवाणियाँ हैं, कार्य का ब्योरा नहीं है, लेकिन यह वास्तव में, मनुष्य की मौजूदा जरूरतों के आधार पर कार्य का एक अधिक गहरा और उन्नत चरण है। व्यवस्था के युग के अंत समय में, सभी लोग गहराई तक भ्रष्ट थे और किसी भी पल व्यवस्था के तहत मृत्युदंड पा सकते थे। परमेश्वर स्वयं देहधारण कर पृथ्वी पर आया और फिर उसे मनुष्य के लिए पाप बलि के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया। परमेश्वर ने व्यवस्था के कार्य के आधार पर छुटकारे का कार्य किया। भले ही शास्त्रों में ये लिखा नहीं था, पर उसने मनुष्य की जरूरतों और अपनी योजना के अनुसार कार्य किया। उसने कभी भी व्यवस्था का अंत नहीं किया, बल्कि उसका पालन किया। अब अंत के दिनों में, परमेश्वर अपनी योजनाओं और मनुष्य की जरूरतों के अनुसार कार्य कर रहा है, जो प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य पर आधारित है। वह परमेश्वर के घर से शुरू करके अपना न्याय कार्य कर रहा है, ताकि हमें हमारी पापी प्रकृति से बचाकर हमें पाप के बंधनों से मुक्त करे, और हमें सदा के लिए सुंदर मंजिल में ले जाये। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को शुद्ध करके उसे बचाने को सत्य व्यक्त करता है, वह अपनी प्रबंधन योजना के सभी रहस्य प्रकट करता है। उसने व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में, इनमें से कोई भी वचन नहीं कहे थे। यही वह अंत के दिनों में खोली गयी पुस्तक है, सात मुहरें है। जो प्रकाशितवाक्य में लिखीभविष्यवाणी को पूरा करता है : 'जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है' (प्रकाशितवाक्य 2:7)। और यह भी : 'देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है' (प्रकाशितवाक्य 5:5)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन राज्य के युग के लिए जो बाइबल है : वचन देह में प्रकट होता है, में मिलते हैं। जीवन जीने के लिए ये विशेष वचन हैं, और परमेश्वर द्वारा मनुष्य को दिए गए अनंत जीवन का मार्ग हैं, पूर्ण उद्धार का एकमात्र सच्चा मार्ग हैं। अगर हम इन्हें स्वीकार करने से मना कर दें, तो परमेश्वर के सजीव जल से कभी हमारा पोषण नहीं होगा, न ही हमें उसका सत्य और जीवन मिलेगा।"
बाद में मैंने दूसरी फिल्म में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन सुने। "अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। उस फिल्म में एक भाई ने यह साझा किया : "अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए सभी सत्य व्यक्त करता है। इनका दायरा भरपूर और व्यापक है, और ये सही मायनों में परमेश्वर से पोषण मुहैया कराते हैं। ये सभी आँखें खोलने और प्रबुद्ध करने वाले हैं। ये सभी हमें दिखाते हैं कि मसीह ही मार्ग, सत्य और जीवन है, अनंत जीवन का मार्ग है। राज्य के युग में परमेश्वर के वचन व्यवस्था और अनुग्रह के युगों के वचनों से बहुत आगे जाते हैं। ख़ास तौर से, वचन देह में प्रकट होता है में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' में मनुष्य से परमेश्वर ने पहली बार सीधी बात की है, पहली बार इंसानों ने पूरी मानवता से बोले गए सृजन के प्रभु के वचन सुने। इन वचनों ने ब्रह्मांड में हलचल मचा दी और हम सबकी आँखें खोल दीं। राज्य का युग वह है जब परमेश्वर अपना न्याय कार्य करता है, और जब वह मनुष्य के सामने अपना धार्मिक स्वभाव पूरी तरह प्रकट करता है। इसीलिए वह इस युग में, मनुष्य का न्याय करने, उसे शुद्ध और पूर्ण करने के लिए वचन बोलता है, वह विपत्तियाँ बरसाता है, नेक लोगों को पुरस्कृत करता है, दुष्टों को दंड देता है, और अपनी धार्मिकता प्रकट करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को शुद्ध करने, बचाने और सचमुच पूर्ण करने के लिए जो सत्य बोलता है, वह अंत के दिनों में उसके द्वारा मनुष्य को दिया गया अनंत जीवन का मार्ग है। यह जीवन जल है, जो उसके सिंहासन से प्रवाहित होता है।"
इस मुकाम पर, मुझे आखिर एहसास हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा वचन देह में प्रकट होता है, अनंत जीवन का वो मार्ग है जो अंत के दिनों में परमेश्वर मनुष्य को देता है। मुझे बस परमेश्वर के नए कार्य की जानकारी रखनी होगी और उसके सभी नए वचन पढ़ने होंगे, ताकि मुझे उसके जीवन जल का पोषण और उसका पूर्ण उद्धार प्राप्त हो सके। इसके बाद जल्दी ही, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से संपर्क किया, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़े। मैं समझ गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में सभी रहस्य प्रकट करता है। परमेश्वर की प्रबंधन योजना, उसके देहधारण के रहस्य, बाइबल की असली अंदरूनी कहानी, और सत्य के सभी पहलू प्रकट किए जाते हैं। परमेश्वर में आस्था के एक दशक में मैंने जितना सीखा था, उससे कहीं अधिक सीख लिया! आखिरकार मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया।
मैंने याद किया कि किस तरह पादरी और एल्डरों ने मुझे भटका दिया था। मैंने विश्वास कर लिया था कि परमेश्वर का कार्य और वचन सिर्फ बाइबल में ही हैं, और सोचा था कि बाकी सब विधर्म है। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों को प्रभु यीशु के वापस लौटने की गवाही देते सुना, लेकिन इसकी खोजबीन नहीं की। मैंने आँखें बंद करके कलीसिया के पादरियों का अनुसरण किया, अपने पुराने विश्वास के कारण परमेश्वर का कार्य ठुकरा दिया। एक विश्वासी होकर भी मैंने परमेश्वर का प्रतिरोध किया। मैं इतनी अंधी और बेवकूफ कैसे हो सकती थी! परमेश्वर के मार्गदर्शन से मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में और उनकी फिल्मों में उसकी वाणी सुनी, और सचमुच अपनी पुरानी सोच को छोड़ दिया। अब मैं बाइबल की अंधभक्त नहीं रही। मैंने जान लिया कि यह सच में विश्वास रखना नहीं है और बाइबल अनंत जीवन नहीं देती। सिर्फ मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। सिर्फ अंत के दिनों का मसीह ही हमें अनंत जीवन का मार्ग दिखा सकता है, हम अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखकर ही सत्य और जीवन हासिल कर सकते हैं। यही एकमात्र आस्था है, जिसकी परमेश्वर स्वीकृति देता है। मैं प्रभु का स्वागत परमेश्वर की कृपा और आशीष से ही कर पाई। मैं उसकी कृपा और उद्धार के लिए आभारी हूँ!
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