काट-छाँट और निपटारे को किस ढंग से लें

21 अप्रैल, 2023

—एक भक्त की डायरी

बुधवार, अगस्त 17, 2022, आसमान साफ

मैंने आज से एक नई ड्यूटी संभाली है। मैं लिखने का काम कर रही हूँ। यह काम है तो अप्रत्याशित, लेकिन मैं इससे खुश हूँ। परमेश्वर मुझ पर अनुग्रह कर अभ्यास का एक अवसर दे रहा है। मैं अच्छा काम करना चाहती हूँ। लेकिन जब सोचती हूँ कि मैं इस काम से एकदम अनजान हूँ और इस प्रकार के काम में हठी और सिद्धांतहीन होने के कारण कैसे दूसरों को काट-छाँट कर निपटाया जा रहा है, यह सोचकर मुझे चिंता होने लगती है : “क्या इस काम में मेरी भी काट-छाँट होगी, मुझे भी निपटाया जाएगा? लेकिन इसमें एक अच्छी बात भी है, अपनी काट-छाँट से मैं सबक सीख सकती हूँ। यह सत्य पाने का बहुत ही अच्छा अवसर है!” आखिरकार, मैंने यह काम स्वीकार कर लिया।

रविवार, 4 सितम्बर 2022, घटा छाई हुई

समय के पँख होते हैं। लेखन काम करते-करते पंद्रह दिन कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। सिद्धांतों पर अगुआ की संगति और काम को लेकर मार्गदर्शन से मुझे काम थोड़ा समझ में आ गया है, मैंने कुछ सिद्धांत भी सीखे लिए हैं। आज मैंने कुछ भाई-बहनों का निपटारा होते देखा, वे सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं कर रहे थे और दुराग्रही हो रहे थे। मैं काफी घबरा गई, लगा कि मेरा भी निपटारा किया जाएगा। जानती हूँ कि अगुआ की काट-छाँट परमेश्वर के वचनों के अनुरूप भ्रष्ट स्वभाव और समस्याओं के सार की ओर इशारा है, इससे हम खुद को जानकर सत्य के सिद्धांतों में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन फिर भी नहीं चाहती कि मेरी काट-छाँट या निपटारा हो। सिद्धांतों के अनुरूप काम न करने पर आज भाई साओल के साथ निपटा गया। अगुआ ने उसके साथ बार-बार संगति कर इसका निवारण किया था, पर वह वही गलती दोहराता रहा। अगुआ ने कहा कि उसे आध्यात्मिक मामलों और सिद्धांतों की समझ नहीं है। हालांकि यह बात सीधे मुझे नहीं कही गई थी, लेकिन जब मैंने यह बात सुनी तो लगा जैसे यह बात मुझे अंदर तक हिला गई है। मैंने खुद को आगाह किया : “मुझे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है और मैं कोई गलती नहीं कर सकती वरना मुझसे निपटा जाएगा। अगर मैं आध्यात्मिक रूप से नासमझ दिख गई तो मुश्किल में पड़ जाऊँगी। ऐसे व्यक्ति को कैसे बचाया जा सकता है? क्या वह आगे बढ़ाए जाने लायक भी है?” इन बातों ने मुझे और भी चिंतित कर दिया। आज पूरी शाम काम करते हुए, मैं तनाव में रही। मैंने बेहद सावधानी से काम किया कि कहीं कोई गलती न हो जाए। लेकिन मुझे यह समझ नहीं आया कि दूसरों के निपटारे का असर मुझ पर क्यों पड़ रहा है।

शुक्रवार, 9 सितंबर, 2022, साफ आसमान

कुछ समय से मैं लगातार घबराई हुई हूँ कि काम में कोई गलती न हो जाए। मुझे गड़बड़ कर देने का डर है। कभी-कभी लोग मेरी राय माँगते हैं, लेकिन उन सुझावों को लेकर भी जिन पर मैं आश्वस्त हूँ, डरती हूँ कि कुछ गलत न कह बैठूँ। मुझे अपनी राय व्यक्त करने से पहले औरों से पूछकर उनका अनुमोदन लेना पड़ता है। सच कहूँ तो, इस तरह काम करना बहुत थकाऊ है, लगता है मैं परमेश्वर से दूर हो गई हूँ। आज मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जो मुझे छू गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “कुछ मसीह-विरोधी, जो परमेश्वर के घर में काम करते हैं, वे चुपचाप संकल्प लेते हैं कि वे सावधानी से काम करेंगे, गलतियाँ करने, काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने, ऊपर वाले को नाराज करने या कुछ बुरा करते हुए अपने अगुआ द्वारा पकड़े जाने से बचेंगे, और जब वे अच्छे कर्म करते हैं तो दर्शकों का होना सुनिश्चित करते हैं। फिर भी, चाहे वे कितने भी सावधान क्यों न रहें, इस तथ्य के कारण कि वे गलत प्रस्थान-बिंदु से चलते हैं और गलत मार्ग अपनाते हैं, सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम करते हैं और कभी सत्य नहीं खोजते, वे अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन कर देते हैं, कलीसिया का कार्य बाधित और अव्यवस्थित कर देते हैं, शैतान के अनुचरों के रूप में कार्य करते हैं, यहाँ तक कि अकसर अपराध कर बैठते हैं। ऐसे लोगों के लिए अकसर सिद्धांतों का उल्लंघन और अपराध करना बहुत आम बात है। इसलिए, बेशक, उनके लिए काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने से बचना मुश्किल होता है। अब जब काट-छाँट और निपटारा नहीं किया जा रहा होता, तो मसीह-विरोधी इतनी सावधानी से कार्य क्यों करते हैं? निश्चित रूप से इसका एक कारण यह होता है कि वे सोचते हैं, ‘मुझे सावधान रहना होगा—आखिरकार, “सावधानी ही सुरक्षा की माँ है” और “अच्छे लोगों का जीवन शांतिपूर्ण होता है।” मुझे इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और हर पल खुद को गलत काम करने या परेशानी में पड़ने से बचने की याद दिलानी चाहिए, और मुझे अपनी भ्रष्टता और इरादे दबा देने चाहिए। अगर मैं गलत न करूँ और अंत तक डटा रह सकूँ, तो मैं आशीष पाऊँगा, आपदाओं से बचूँगा, और परमेश्वर में अपने विश्वास में सफल होऊँगा!’ वे अकसर खुद को इस तरह से राजी, प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं। उनका मानना है कि अगर वे गलत करते हैं, तो वे आशीष प्राप्त करने के अपने अवसर काफी कम कर देंगे। क्या यह गणना और विश्वास ही उनके दिल की गहराइयों में घर नहीं किए रहता? इसे एक तरफ रखते हुए कि मसीह-विरोधियों की यह गणना या विश्वास सही है या गलत, इस विश्वास के आधार पर निपटे और काट-छाँट किए जाने पर उन्हें सबसे ज्यादा चिंता किस बात की होगी? (अपनी संभावनाओं और भाग्य की।) वे निपटारे और काट-छाँट किए जाने को अपनी संभावनाओं और भाग्य के साथ जोड़ते हैं—इसका संबंध उनकी दुष्ट प्रकृति से है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग आठ))। इस अंश ने मेरी स्थिति का सटीक वर्णन कर दिया। दूसरों के निपटारे को, मैं परमेश्वर की इच्छा नहीं मान पाती या यह नहीं खोजती कि इन लोगों का निपटारा क्यों किया जा रहा है, ये लोग कैसे भटक गए हैं, मैं उनकी असफलताओं से कैसे सीख सकती हूँ और भविष्य में सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करने के लिए मैं उनकी तरह भटकने से कैसे बच सकती हूँ। इसके बजाय, मैं निपटाए जाने और अपनी नियति के बीच एक अनदेखा लेकिन अंतरंग संबंध बना लेती हूँ। मुझे लगता है कि हमारे साथ जितनी अधिक गंभीरता से निपटा जाता है, हमें आशीष मिलने की उम्मीद उतनी ही कम हो जाती है। मैं यह सोचकर और अधिक चौकन्नी और सतर्क हो गई हूँ कि अगर मैं ज्यादा गलतियाँ न करूँ या मेरा निपटारा न हो, तो मेरे आशीष पाने की उम्मीद है। चूँकि निपटाए जाने को लेकर मुझमें गलतफहमियाँ हैं और मैं आशीषों को बहुत अधिक महत्व देती हूँ, मैं उन चीजों के प्रति बेहद संवेदनशील हूँ जो मेरी नियति से जुड़े हैं और अपने हर काम में बहुत सावधान रहती हूँ। मुझे डर रहता है कि अगर मैं सतर्क नहीं रही, तो मुझसे निपटा जाएगा और मैं अच्छा परिणाम खो दूंगी। मैं कितनी दुष्ट और कपटी हूँ! अगुआ कई बार हमारे साथ सिद्धांतों की संगति करता है और बच्चों की तरह समझता है, लेकिन हम उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते। हम दुराग्रही और अंधे होकर कार्य करते और काम को बाधित करते हैं। क्या हमारा निपटारा होना एकदम सामान्य बात नहीं है? एक समझदार व्यक्ति इन बातों पर विचार करता है कि कहाँ कमी है या कहाँ आध्यात्मिक समझ नहीं है, वह सत्य खोजकर फौरन अपने भटकाव रोकेगा। ऐसा व्यक्ति सकारात्मक प्रवेश वाला होता है और सत्य खोजता है। हमारा निपटारा इसलिए किया जाता है ताकि हम सत्य में प्रवेश करें और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाएँ। लेकिन मैं न सत्य खोजती हूँ और न ही आत्म-चिंतन करती हूँ, बल्कि डरकर गलतफहमियाँ पालती हूँ। मैं अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर सकती! शुक्र है परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन का, अब मुझे अपनी स्थिति की कुछ समझ है।

सोमवार, सितम्बर 12, 2022, भारी बारिश

आज एक सभा के दौरान, अगुआ को पता चला कि निपटारे के बाद साओल नकारात्मक हो गया है और खुद को बेबस और दबा हुआ महसूस कर रहा है। अगुआ ने हमसे पूछा कि क्या हम बेबस महसूस करते हैं। मैंने अपनी हाल की स्थिति को याद करके कहा कि मैंने थोड़ा बेबस महसूस किया था। फिर अगुआ ने संगति की जिसने मुझे सच में छू लिया। उसने कहा : “कुछ लोग बार-बार के निपटारे के बाद भी सत्य प्राप्त क्यों नहीं कर पाते और कहते हैं कि वे बेबस, दबे हुए और पीड़ित महसूस करते हैं? इसकी वजह है कि वे सत्य समझने या प्राप्त करने पर कोई ध्यान नहीं देते, यानी उन्हें कुछ हासिल नहीं होता। निपटाए जाने पर उनमें प्रतिरोध और क्रोध पैदा हो जाता है। वे लोगों के खिलाफ हो जाते हैं। क्या ऐसा व्यक्ति सत्य स्वीकारता है? असल में, उन लोगों से इसलिए निपटा जाता है क्योंकि उन्होंने सत्य के सिद्धांतों का उल्लंघन किया होता है, लेकिन वे आत्म-चिंतन नहीं करते, बल्कि सुस्त पड़े रहते हैं। इससे जाहिर है कि वे सत्य स्वीकार नहीं करते, वे सत्य के विरुद्ध जाते हैं और सत्य से उनकी ठनी रहती है। सत्य के विरुद्ध होने का मतलब है, परमेश्वर के विरुद्ध होना। इसकी प्रकृति बहुत गंभीर होती है।” अगुआ की संगति से अंतत: मुझे एहसास हुआ कि सत्य नकारने या निपटाए जाने की प्रकृति कितनी गंभीर होती है और यह स्थिति कितनी खतरनाक है। घर आकर मैं काफी दिनों तक अशांत रही और एक लंबे अरसे तक बिस्तर पर पड़ी करवटें बदला करती थी। मुझे लगता है कि यह स्थिति कोई संयोग नहीं है, इसके पीछे परमेश्वर की इच्छा है। मुझे हैरानी होने लगी है, सत्य स्वीकार न करना कैसे अभिव्यक्त होता है? मैं इस स्थिति में सबक सीखकर आत्म-चिंतन कैसे कर सकती हूँ?

बुधवार, सितंबर 14, 2022, साफ आसमान

साओल को आज बर्खास्त कर दिया गया। कुछ और भी लोगों को बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने सत्य नहीं स्वीकारा था और अपने काम में भी प्रगति नहीं की थी। मुझे एक बहन से पता चला कि साओल अपने काम में दुराग्रही था और सिद्धांतों का उल्लंघन करता था, अगुआ ने बार-बार उसके साथ सिद्धांतों पर धैर्यपूर्वक संगति की। कभी-कभी वह उसकी काट-छाँट कर उसकी समस्या का सार बताता, लेकिन साओल ने न तो सत्य खोजा और न ही आत्म-चिंतन किया। काट-छाँट के बाद वह सुस्त हो जाता था और कार्य-चर्चाओं में कभी अपने विचार साझा नहीं करता था। एक बार एक सभा में उसने यहाँ तक कह दिया : “जब मैं अच्छा काम करता हूँ तो अगुआ देखता नहीं देता लेकिन अगर अच्छा न करूँ तो मुझसे निपटा जाता है।” विश्वास करना मुश्किल था कि उसने ऐसी बात कही और यह जाहिर कर दिया कि वह सत्य कतई नहीं स्वीकारता! मैंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़े। “जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट और निपटारा किया जाता है, तो सबसे पहले वे उसका विरोध करते हैं और पूरी ताकत से उसे नकार देते हैं। वे उससे लड़ते हैं। और ऐसा क्यों करते हैं? ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि मसीह-विरोधियों की प्रकृति और सार सत्य से ऊबने और घृणा करने का होता है और वे सत्य जरा-भी नहीं स्वीकारते। स्वाभाविक-सी बात है कि एक मसीह-विरोधी का सार और स्वभाव उन्हें अपनी गलतियों को मानने या अपने भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकारने से रोकता है। इन दो तथ्यों के आधार पर, काट-छाँट और निपटाए जाने के प्रति एक मसीह-विरोधी का रवैया उसे पूरी तरह से नकारने और विरोध करने का होता है। वे दिल की गहराइयों से इससे घृणा और इसका विरोध करते हैं, उनमें जरा-सा भी स्वीकृति या समर्पण का भाव नहीं होता, तो सच्चे आत्मचिंतन या पश्चात्ताप की तो बात ही दूर है। जब किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट कर उससे निपटा जाता है, तो यह किसने किया है, यह किससे संबंधित है, उस मामले के लिए वह किस हद तक दोषी है, भूल कितनी स्पष्ट है, उसने कितनी दुष्टता की है या कलीसिया के लिए उसकी दुष्टता के क्या परिणाम होते हैं—मसीह-विरोधी इनमें से किसी बात पर कोई विचार नहीं करता। एक मसीह-विरोधी के लिए, उसकी काट-छाँट और उससे निपटने वाला बस उसी के पीछे पड़ा है या जानबूझकर उसे दंडित करने के लिए उसमें दोष ढूंढ़ रहा है। मसीह-विरोधी तो यह तक सोच सकता है कि उसे धमकाया और अपमानित किया जा रहा है, उसके साथ मानवीय व्यवहार नहीं किया जा रहा, उसे नीचा दिखाकर उसका उपहास किया जा रहा है। मसीह-विरोधी काट-छाँट और निपटारे के बाद भी, इस बात पर कभी विचार नहीं करते कि उन्होंने आखिर क्या गलती की है, उन्होंने किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया, क्या उन्होंने इस मामले में सिद्धांतों की खोज की, क्या उन्होंने सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया या अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कीं। वे न तो अपनी जांच करते हैं, न ही इन बातों पर चिंतन करते हैं और न ही इन मुद्दों पर विचार करते हैं। बल्कि, वे निपटारे और काट-छाँट से अपनी मनमर्जी और गुस्सैल दिमाग से पेश आते हैं। जब भी किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है और उससे निपटा जाता है, तो वह क्रोध, आक्रोश और असंतोष से भर जाता है और किसी की सलाह नहीं मानता। वह अपनी काट-छाँट और निपटारे को स्वीकार नहीं पाता, वह अपने बारे में जानने और आत्म-चिंतन करने, और अनमना या लापरवाह होने या अपना कर्तव्य निरंकुशता से करने जैसी सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाली हरकतों का समाधान करने के लिए कभी परमेश्वर के सामने नहीं आता, न ही वह इस अवसर का उपयोग अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करने के लिए करता है। इसके बजाय, वह अपना बचाव करने के लिए, खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बहाने ढूंढता है, यहां तक कि वह कलह पैदा करने वाली बातें कहकर लोगों को उकसाता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद बारह : जब कोई पद या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं)। “चाहे जो भी परिवेश सामने आए—विशेष रूप से मुश्किलों में, और खासकर जब परमेश्वर लोगों को प्रकट या उजागर करे—सबसे पहले इंसान को परमेश्वर के सामने आकर चिंतन करना चाहिए और अपने शब्दों, कर्मों और भ्रष्ट स्वभाव की जाँच करनी चाहिए, न कि यह जाँच, अध्ययन और आलोचना करनी चाहिए कि परमेश्वर के वचन और कार्य सही हैं या गलत। यदि तुम अपनी उचित स्थिति में रहते हो, तो तुम्हें ठीक से पता होना चाहिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए। लोगों का स्वभाव भ्रष्ट है और वे सत्य को नहीं समझते। यह कोई ज्यादा बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन जब लोगों का स्वभाव भ्रष्ट होता है और वे सत्य को नहीं समझते, और फिर भी वे सत्य की खोज नहीं करते—तब असली समस्या होती है। तुम्हारा स्वभाव भ्रष्ट है और तुम सत्य नहीं समझते, इसलिए तुम अभी भी मनमाने ढंग से परमेश्वर की आलोचना कर सकते हो, और अपनी मनोदशा, प्राथमिकताओं और भावनाओं के अनुसार उसके पास जाकर उससे बातचीत कर सकते हो। लेकिन अगर तुम सत्य की खोज और अभ्यास नहीं करते, तो चीजें इतनी सरल नहीं होंगी। तब तुम न केवल परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं कर पाओगे, बल्कि तुम उसे गलत समझ सकते हो और उसकी शिकायत कर सकते हो, उसकी निंदा कर सकते हो, उसका विरोध कर सकते हो, यहाँ तक कि मन ही मन उसे फटकार और अस्वीकार सकते हो और कह सकते हो कि वह धार्मिक नहीं है, कि वह जो कुछ भी करता है, जरूरी नहीं कि वह सही हो। क्या यह खतरनाक नहीं है कि तुम अभी भी ऐसी चीजों को हवा देते हो? (खतरनाक है।) यह बहुत ही खतरनाक है। सत्य की खोज न करने से व्यक्ति की जान जा सकती है! और यह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर हो सकता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग तीन))। “जो लोग अक्सर निष्क्रिय रहते हैं, उनमें यह सत्य न स्वीकार पाने के कारण होता है। अगर तुम सत्य नहीं स्वीकारते, तो निष्क्रियता तुम्हें किसी राक्षस की तरह परेशान करेगी, जिसके कारण तुम एक सतत निष्क्रियता की स्थिति में रहोगे और परमेश्वर के प्रति तिरस्कारपूर्ण, अवज्ञाकारी और असंतुष्ट रवैया विकसित कर लोगे। जब बात इस हद तक पहुँच जाती है कि तुम परमेश्वर का विरोध, उसके प्रति विद्रोह और उसके विरोध में चिल्लाना शुरू कर देते हो, तो तुम टूटने के कगार पर पहुँच जाते हो। जब लोग तुम्हारा विश्लेषण करना और तुम पर ठप्पा लगाना शुरू करेंगे, तो तुम्हें स्थिति की विकट वास्तविकता का एहसास बहुत देर से होगा और तुम अपनी छाती पीटते हुए जमीन पर गिर पड़ोगे। तब तुम सिर्फ परमेश्वर के दंड की प्रतीक्षा ही कर सकते हो!(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के वचनों ने आखिरकार मुझे समझा दिया कि कोई व्यक्ति सत्य स्वीकारता है या नहीं, इसका सबसे स्पष्ट संकेत यह है कि वह अपने निपटारे को कैसे लेता है। जब निपटा जाता है, तो सत्य का अनुसरण करने वाले उसे स्वीकार कर आत्म-चिंतन करते हैं, चाहे उनके साथ कितनी भी सख्ती से निपटा गया हो, वे हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, विचार करते हैं कि उनसे कहाँ गलती हुई, उसके क्या कारण हैं और उनका कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव उजागर हुआ, फिर वे सत्य खोजकर उससे सीखते हैं। हालांकि कुछ नकारात्मकता और कमजोरी हो सकती है, क्योंकि वे अपनी भ्रष्टता की गहराई और अपराधों की गंभीरता देखते हैं, वे ग्लानि और पश्चात्ताप करते लगते हैं, और इस प्रकार वे अपने आपसे बेहद घृणा करते हैं। लेकिन यह नकारात्मकता टिकती नहीं है। वे सत्य खोजकर उन असफलताओं पर आत्म-चिंतन करते रह सकते हैं और जब वे अपनी समस्या को जानकर अपने कार्यों की प्रकृति को साफ तौर पर देख लेते हैं, तो वे अपने निपटारे में परमेश्वर के प्रेम और सुरक्षा को भी देख लेते हैं और परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। उस पल-विशेष में व्यक्ति की स्थिति सही और सकारात्मक होती है। लेकिन जो व्यक्ति सत्य नहीं स्वीकारता, उसके साथ अलग तरह से निपटा जाता है। हालांकि कुछ लोग खुले तौर पर शिकायत नहीं करते, लेकिन वे कभी आत्म-चिंतन नहीं करते और न ही परमेश्वर के वचनों के जरिए खुद को जानते हैं। वे आपस में ही बहस करते हैं, विरोध करते हैं और बहाने बनाते हैं, यानी जितना अधिक वे इस बारे में सोचते हैं, उतने ही अधिक दुखी और पीड़ित होते हैं, उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। स्वाभाविक है कि इससे उनमें नकारात्मक भावनाएँ पैदा होती हैं। इन नकारात्मक भावनाओं में वास्तविकता और दूसरों के प्रति उनका असंतोष होता है। जो सत्य स्वीकार लेते हैं उन्हें निपटारे से अपने भ्रष्ट स्वभाव का पता चल जाता है, वे पश्चात्ताप कर बदल जाते हैं और यहीं उनके विश्वास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आता है। लेकिन जो लोग सत्य नहीं स्वीकारते उन्हें उजागर कर निष्कासित कर दिया जाता है। जो लोग बहुत ज्यादा नकारात्मक हो जाते हैं वे सत्य नहीं स्वीकारते, आदतन सत्य से घृणा करते हैं और बरसों की आस्था के बाद भी आगे नहीं बढ़ पाते। जब साओल से निपटा गया, तो न तो उसने आत्म-चिंतन किया, न ही दुराग्रही बनकर काम करने की अपनी प्रकृति और परिणामों को पहचाना, अभ्यास के सिद्धांत तो बिल्कुल नहीं खोजे। बल्कि वह विवश, नकारात्मक और लापरवाह था। पहले तो मैंने सोचा निपटारे के बाद निराश होना एक सामान्य बात है, कुछ दिन आत्म-चिंतन करेगा तो ठीक हो जाएगा। लेकिन कुछ भाई-बहनों ने कहा कि वह पहले भी ऐसा ही था—देखने में उत्साही और सक्रिय, लेकिन जैसे ही काम में दिक्कतें आईं और उससे निपटा गया, वह नकारात्मक और लापरवाह हो जाता था और समस्याओं पर चर्चा करते समय कोई योगदान नहीं करता था। कहता कि वह कार्य से जुड़े जितने अधिक सुझाव देता, गलतियाँ उतनी ही अधिक उजागर हो जातीं, इसलिए वह कम से कम सुझाव और राय देगा। ताजातरीन काट-छाँट के बाद वह अपने काम में विवश, दबा हुआ, उदास और पीड़ित महसूस करने लगा था। उसका यह नकारात्मक रवैया सत्य को नकारता है और परमेश्वर को दोष देकर उसका विरोध करता है। वह अपना मसीह-विरोधी स्वभाव उजागर कर रहा है। आखिरकार मुझे समझ आ गया कि इस नकारात्मकता के पीछे परमेश्वर-विरोधी शैतानी स्वभाव छिपा है। क्या साओल का भटकना मेरे लिए खतरे की घंटी नहीं है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “सत्य की खोज न करने से व्यक्ति की जान जा सकती है! और यह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर हो सकता है।” इसका मुझे पहले कोई ज्यादा व्यक्तिगत अनुभव नहीं था, लेकिन हाल ही में मैं जिन हालात से गुजरी हूँ, ये वचन मेरे दिल की बात कह रहे हैं। निपटाए जाने पर सत्य न खोजना या उसे न स्वीकारना कितना खतरनाक होता है। हाल ही में बर्खास्त किए गए भाई-बहन प्रतिभाशाली थे, लेकिन उनकी भयंकर कमजोरी सत्य न खोजना और उससे ऊबना था, जिससे उन्हें अपने काम में कोई परिणाम नहीं मिल रहे थे, अंतत: उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। मैं इस बारे में जितना अधिक सोचती हूँ, उतना ही अधिक मुझे सत्य खोजने का महत्व समझ में आता है।

गुरुवार, सितम्बर 15, 2022, हल्की बारिश

अगुआ की उस रात की संगति कुछ दिनों से मेरे दिमाग में घूम रही है और बार-बार मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन आ रहे हैं : “अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है, फिर भी तुम सत्य को या परमेश्वर की इच्छा को नहीं खोजते, न ही उस मार्ग से प्यार करते हो, जो परमेश्वर के निकट लाता है, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है, और यह कि तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो, जो महान श्वेत सिंहासन से भागता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। पहले जब मैं परमेश्वर के ये वचन पढ़ती थी : “तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है,” और “तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो, जो महान श्वेत सिंहासन से भागता है,” तो धार्मिक दुनिया के वे लोग जो धार्मिक धारणाओं से चिपके रहते हैं, तुरंत मेरे दिमाग में आते। वे केवल अनुग्रह के द्वारा बचाए जाना चाहते हैं। वे परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते। वे कठपुतलियाँ और गद्दार हैं जो परमेश्वर के महान श्वेत सिंहासन से भाग रहे हैं। पर मैं सोचती हूँ, क्या परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने का अर्थ उसके न्याय को स्वीकारना भी है? क्या परमेश्वर इसे इस तरह देखता है? परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को वास्तव में स्वीकारने का क्या अर्थ है? परमेश्वर के वचनों पर विचार कर, मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने का मतलब अंत के दिनों में उसके न्याय को स्वीकारना नहीं है। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय को स्वीकारने के लिए तुम्हें कम से कम इस योग्य होना चाहिए कि निपटाए जाना स्वीकार कर सको। अगर तुम निपटाए जाना स्वीकार नहीं कर सकते, तो तुम किसी भी तरह से परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार नहीं करोगे। मैंने परमेश्वर के कुछ और वचन पढ़े कि कैसे निपटाए जाने को सही तरीके से लेना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “जब काट-छाँट करने और निपटने की बात आती है, तो लोगों को कम से कम क्या पता होना चाहिए? अपना कर्तव्य यथेष्ट रूप से निभाने के लिए काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने का अनुभव होना चाहिए, यह अपरिहार्य है। ये ऐसी चीजें हैं, जिनका लोगों को प्रतिदिन सामना करना चाहिए और जिन्हें परमेश्वर में अपने विश्वास और उद्धार की प्राप्ति में अकसर अनुभव करना चाहिए। कोई भी काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने से अलग नहीं रह सकता। क्या किसी की काट-छाँट और उसके निपटारे में उसका भविष्य और नियति भी शामिल होते हैं? (नहीं।) तो व्यक्ति के लिए काट-छाँट और निपटारा क्या होता है? क्या यह लोगों की निंदा करने के लिए किया जाता है? (नहीं, यह लोगों को सत्य समझने और अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार निभाने में मदद करना है।) सही है। यह इसकी एकदम सही समझ है। किसी की काट-छाँट करना और उससे निपटना एक तरह का अनुशासन है, ताड़ना है, यह एक प्रकार से लोगों की मदद करना भी है। काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने से तुम समय रहते अपने गलत लक्ष्य को बदल सकते हो। इससे तुम अपनी मौजूदा समस्याएँ तुरंत पहचान सकते हो और समय रहते अपने उजागर हुए भ्रष्ट स्वभाव को पहचान सकते हो। चाहे कुछ भी हो, काट-छाँट किया जाना और निपटा जाना तुम्हें अपने कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार पूरा करने में मदद करते हैं, ये तुम्हें समय रहते गलतियाँ करने और भटकने से बचाते हैं और तबाही मचाने से रोकते हैं। क्या यह लोगों की सबसे बड़ी सहायता, उनका सबसे बड़ा उपचार नहीं है? जमीर और विवेक रखने वालों को निपटे जाने और काट-छाँट किए जाने को सही ढंग से लेने में सक्षम होना चाहिए(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग आठ))। निपटारे को लेकर हमारा सही रवैया और अभ्यास का मार्ग क्या होना चाहिए, इस पर परमेश्वर के वचन एकदम स्पष्ट हैं। असल में निपटाए जाने का नियति से कोई लेना-देना नहीं है। भाषा भले ही कठोर, कष्टदायक या निंदनीय हो, इसका एकमात्र उद्देश्य हमारी भ्रष्टता, हठधर्मिता, कार्यों में सिद्धांतों की कमी को पहचानने और और काम में भटकाव समझने में मदद करना है। इसका लक्ष्य सत्य खोजने और सिद्धांतों के साथ अपना काम करने में मदद करना है। अक्सर या कठोरता से निपटारा करने का मतलब किसी व्यक्ति की नियति का खराब होना नहीं है, न ही निपटारा न होने का अर्थ किसी व्यक्ति की नियति का अच्छा होना है। हालांकि कुछ लोगों की काट-छांट और निपटारा किया जा सकता है और कभी-कभी यह कठोर और मार्मिक भी हो सकता है, खुलासे या निंदा की तरह लग सकता है, लेकिन ये लोग बाद में सत्य खोजकर आत्म-चिंतन कर पाते हैं और अपने भ्रष्ट स्वभाव की, दोषों और भटकावों की कुछ समझ हासिल करने योग्य हो जाते हैं। वे जीवन में बदलने और आगे बढ़ने लायक हो जाते हैं और अंत में, महत्वपूर्ण कार्य भी कर सकते हैं। जब से मैं विश्वासी बनी हूँ, तब से मैंने निपटाए जाने के प्रति अपने रवैये पर विचार करना शुरू कर दिया है। मुझे परमेश्वर में विश्वास रखे नौ साल हो चुके हैं और इतने बरसों में, शायद ही कभी मुझसे निपटा गया हो या मुझे बड़े आघात या असफलताएँ मिली हों। निपटारे को लेकर मेरा नजरिया हमेशा अलग रहा है। मैंने यही महसूस किया है कि निपटारा होना एक बुरी बात है, यह उजागर या निंदा किए जाने जैसा है। किसी का निपटारा होते देख यह सोचकर मैं बहुत डर जाती हूँ कि अगर मैं सावधान नहीं रही तो मेरे साथ भी ऐसा होगा। मैंने निपटारे को निंदा, उजागर करना, नकारना और प्रतिरोध करना समझ लिया है, मैं अपनी आस्था को लेकर आरामदायक दायरे में रहना चाहती हूँ। मेरा अनुसरण उन लोगों से अलग कैसे है जो धर्म को सिर्फ अपनी रोजी-रोटी बनाए रखना चाहते हैं? मैंने परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े हैं और मैं अच्छे से जानती हूँ कि अंत के दिनों में उसका कार्य न्याय, शुद्धिकरण, काट-छाँट और निपटारे से इंसान को शुद्ध और पूर्ण करना है। लेकिन मुझे कोई सच्चा ज्ञान नहीं है और मैं निपटाए जाने या परिशोधित किए जाने को स्वीकारने को तैयार नहीं हूँ, इसलिए भले ही मैं कितने भी सालों से परमेश्वर की विश्वासी हूँ, मैं कोई प्रगति नहीं कर पाऊँगी। मैं सत्य नहीं पा सकूँगी या अपने जीवन स्वभाव में परिवर्तन नहीं ला पाऊँगी और अंत में, मुझे सजा भुगतनी ही पड़ेगी। इस बारे में जितना अधिक सोचती हूँ, अपनी स्थिति उतनी ही खतरनाक लगती है। सुख और अनुग्रह के पीछे भागने वाले मेरे जैसे लोगों के साथ अगर नहीं भी निपटा जाता है, तो भी इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें उत्तम परिणाम प्राप्त होगा। अगर मैं सत्य खोजकर अपना भ्रष्ट स्वभाव न बदलूँ, तो अंत में मुझे बचाया नहीं जाएगा। किसी व्यक्ति का निपटारा करने से उसके परिणाम का पता नहीं चलता, बल्कि सत्य के प्रति उसके रवैये से ज्ञात होता है कि वह कौन है। मुझे हमेशा लगता रहा कि निपटारा बुरी चीज है और शायद यह परमेश्वर की नाराजगी या निंदा का प्रतीक है। लेकिन अब लगता है कि मैं कितनी गलत थी! मैंने रोते हुए प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, आखिरकार मैं अपनी अज्ञानता और मूर्खता समझ चुकी हूँ। अपनी बरसों की आस्था में, मैंने कभी सत्य नहीं खोजा, मेरी प्रकृति सत्य से घृणा करने की रही है। मैं हमेशा काट-छाँट और निपटारे से बचती रही हूँ। परमेश्वर, मैं पश्चात्ताप करना चाहती हूँ। मैं निपटाए जाने से सबक सीखने को तैयार हूँ।” प्रार्थना से मुझे काफी सुकून मिला और मेरे अंदर तड़प और ललक पैदा हुई। मैं चाहती हूँ कि आगे चलकर मुझे काट-छाँट और निपटारे का अनुभव हो ताकि जीवन में आगे बढ़ सकूँ।

बुधवार, अक्टूबर 5, 2022, काली घटा

आज एक ऐसी बात हुई जो कभी भुलाए नहीं भूलेगी। किसी प्रोजेक्ट पर काम करते समय, मेरी हठधर्मिता और सिद्धांत न खोजने के कारण, काम फिर से करना पड़ा जिससे प्रगति में देरी हुई। अगुआ ने इस समस्या की प्रकृति की ओर इशारा किया और मुझसे अहंकारी और नाकाबिल होने के कारण निपटा गया। उसने कहा कि इससे मेरी आध्यात्मिक मामलों की नासमझी दिखती है। उसके शब्द मेरे दिमाग में घूमते रहे। मैं बहुत परेशान थी और यह सोचकर खुद को सीमित कर लिया : “अगुआ ने मेरी सच्चाई जान ली है। उसे लगता है कि मैं इस कार्य के योग्य नहीं हूँ। अब मुझे किसी भी दिन बर्खास्त कर दिया जाएगा।” मैं और भी ज्यादा दुखी हो गई। अपनी गलत स्थिति का एहसास होने पर मैंने प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, आज मेरा निपटारा हुआ। समझ नहीं आ रहा कि मैं इससे क्या सीखूँ या कैसे आत्म-चिंतन करूँ। मुझे प्रबुद्ध कर राह दिखा ताकि मैं खुद को जानकर इन नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकूँ।” प्रार्थना के बाद मुझे याद आया कि निपटाए जाने पर सत्य खोजना महत्वपूर्ण होता है। नकारात्मक होने से क्या हल होने वाला है? मुझे यह सोचना चाहिए कि मेरी समस्या क्या है और मुझे आध्यात्मिक मामलों की समझ क्यों नहीं है। मैंने इत्मीनान से विचार किया, इस बार मेरे साथ मुख्यत: इसलिए निपटा गया क्योंकि मैं अपने काम में दुराग्रही थी, न तो मैंने सिद्धांतों पर विचार किया और न ही उन्हें खोजा। अगुआ ने इससे जुड़े सिद्धांतों पर संगति की थी, लेकिन मैं तो बस नियमों से चिपकी रही। मुझे तो यह भी लगा कि इन सिद्धांतों को कई बार सुनकर मैंने इन पर महारत हासिल कर ली है और अब उन पर काम करने की जरूरत नहीं है। मैंने सिद्धांतों को दरकिनार कर खुद पर भरोसा किया, अपनी राय को सही माना और दूसरों की राय नहीं ली। मैं बहुत दुराग्रही थी, सिद्धांतों के अनुसार काम करने के बजाय मैंने आँख मूँदकर नियमों का पालन किया। क्या यह आध्यात्मिक मामलों की समझ है? अगर मेरे साथ निपटा न गया होता, तो मैं यह सोचकर ऐंठी रहती कि मैंने अपना काम ठीक से किया है, मुझे यह समझ ही नहीं आता कि मुझसे क्या दुष्टता हो सकती थी। मेरा निपटारा होना मेरे लिए एक चेतावनी है और सुरक्षा भी। चूँकि अब मैं समझ गई हूँ इसलिए नकारात्मक नहीं होती। मैं सिद्धांत खोजने पर ध्यान दे सकती हूँ और खुद को याद दिला सकती हूँ कि इस तरह की गलतियाँ दोबारा न हों।

शनिवार, अक्टूबर 8, 2022, साफ आसमान

हम आज अगुआ के साथ एक सभा में थे। उसने हमारे साथ काम करने के सिद्धांतों पर धैर्यपूर्वक संगति की और पूछा कि क्या हमने हाल ही में कुछ हासिल किया है। उसने हमें सत्य का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों, सबक सीखना सबसे महत्वपूर्ण है। उसने हमें परमेश्वर के वचनों का एक अंश भी पढ़कर सुनाया। “परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते समय, चाहे तुम कितनी भी बार असफल हुए हो, गिरे हो, तुम्हारी काट-छाँट की गई हो या उजागर किए गए हो, ये बुरी चीजें नहीं हैं। भले ही तुम्हारी कैसी भी काट-छाँट या निपटारा किया गया हो, चाहे किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने किया हो या तुम्हारे भाई-बहनों ने, ये सब अच्छी चीजें होती हैं। तुम्हें यह बात याद रखनी चाहिए : चाहे तुम्हें कितना भी कष्ट हो, तुम्हें असल में इससे लाभ होता है। कोई भी अनुभव वाला व्यक्ति इसकी पुष्टि कर सकता है। चाहे कुछ भी हो जाए, काट-छाँट, निपटारा और उजागर किया जाना हमेशा अच्छा होता है। यह कोई निंदा नहीं है। यह परमेश्वर का उद्धार है और तुम्हारे लिए स्वयं को जानने का सर्वोत्तम अवसर है। यह तुम्हारे जीवन अनुभव को गति दे सकता है। इसके बिना, तुम्हारे पास न तो अवसर होगा, न ही परिस्थिति, और न ही अपनी भ्रष्टता के सत्य की समझ तक पहुँचने में सक्षम होने के लिए कोई प्रासंगिक आधार होगा। अगर तुम सत्य को सचमुच समझते हो, और अपने दिल की गहराइयों में छिपी भ्रष्ट चीजों का पता लगाने में सक्षम हो, अगर तुम स्पष्ट रूप से उनकी पहचान कर सकते हो, तो यह अच्छी बात है, इससे जीवन में प्रवेश की एक बड़ी समस्या हल हो जाती है, और यह स्वभाव में बदलाव के लिए भी बहुत लाभदायक है। स्वयं को सही मायने में जानने में सक्षम होना, तुम्हारे लिए अपने तरीकों में बदलाव कर एक नया व्यक्ति बनने का सबसे अच्छा मौका है; तुम्हारे लिए यह नया जीवन पाने का सबसे अच्छा अवसर है। एक बार जब तुम सच में खुद को जान लोगे, तो तुम यह देख पाओगे कि जब सत्य किसी का जीवन बन जाता है, तो यह निश्चय ही अनमोल होता है, तुममें सत्य की प्यास होगी, तुम सत्य का अभ्यास करोगे और इसकी वास्तविकता में प्रवेश करोगे। यह कितनी बड़ी बात है! यदि तुम इस अवसर को थाम सको और ईमानदारी से मनन कर सको, तो कभी भी असफल होने या नीचे गिरने पर स्वयं के बारे में वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर सकते हो, तब तुम नकारात्मकता और कमज़ोरी में भी फिर से खड़े हो सकोगे। एक बार जब तुम इस सीमा को लांघ लोगे, तो फिर तुम एक बड़ा कदम उठा सकोगे और सत्य की वास्तविकता में प्रवेश कर सकोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, मामलों और चीज़ों से सीखना चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे भावुक कर दिया और मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। हालांकि निपटाया जाना परेशान करने वाला और पीड़ादायी था, कई बार तो ऐसा लगा कि मैं नकारात्मक होकर टूट जाऊँगी, लेकिन इस अनुभव ने मुझे परमेश्वर के प्रेम के दर्शन कराए हैं। इस स्थिति ने मुझे अपना भ्रष्ट स्वभाव जानने के लिए परमेश्वर के सामने आकर आत्म-चिंतन को मजबूर किया, ताकि जान सकूँ कि मेरी समस्या की जड़ कहाँ है। जब मुझे अपने बारे में कुछ समझ हासिल होती है, तो मैं शांत और सहज महसूस करती हूँ। अगर मेरा निपटारा न हुआ होता, तो न जाने अपने काम में क्या परेशानियाँ खड़ी कर लेती या कैसी समस्याएँ और त्रुटियाँ सामने आतीं। इस तरह निपटे जाने से ही मैं अपने काम में सिद्धांत खोजने पर ज्यादा ध्यान दे पाई। मैंने जान लिया है कि आपका निपटारा आपके काम का हिस्सा है। इस अनुभव ने काट-छाँट और निपटारे के प्रति मेरे दृष्टिकोण को बदलकर रख दिया।

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