ईसाई आत्मिक जीवन के लिए 3 सिद्धांत

16 अगस्त, 2020
सूचीपत्र
1. भक्ति के समय अपना ध्‍यान परमेश्‍वर के समक्ष अपने आप को शांत करने पर केंद्रित करें
2. भक्ति में परमेश्‍वर के वचनों का मनन करने पर ध्यान केंद्रित करें
3. अपनी भक्ति में व्यवहारिक समस्याओं और कठिनाइयों पर विचार करें

क्या आपने कभी इस उलझन का सामना किया है कि भक्ति और प्रार्थना के बावजूद भी, कुछ ज्यादा हासिल नहीं हो रहा है या प्रेरणा का अनुभव नहीं हो रहा है? ऐसा क्यों है? हमें अपनी दैनिकभक्ति से फल कैसे प्राप्‍त हो सकता है? निम्‍नांकित अभ्यास के तीन सिद्धांतों का पालन करके, हम अपना आत्मिक जीवन से प्राप्त होने वाले फलों में सुधार ला सकते हैं और इससे जीवन में हम तेजी से विकसित होंगे।

1. भक्ति के समय अपना ध्‍यान परमेश्‍वर के समक्ष अपने आप को शांत करने पर केंद्रित करें

भक्ति का सही नजरिया हमारे आत्मिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है। सबसे पहले, हमें परमेश्‍वर के सामने अपने आपको शांतचित्‍त करना चाहिए। जितना ज्‍़यादा हम ऐसा करेंगे, उतना ही पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी आसानी से मिलेगी। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय हमारे मन में काम, स्कूल और परिवार जैसी बाते आती हैं। ऐसे में हम बस खानापूर्ति करते हैं और अपनी भक्ति में बस परमेश्‍वर का मान-मनुहार करने का प्रयास करते हैं क्योंकि हम तन-मन से परमेश्‍वर की भक्ति करने और प्रार्थनापूर्वक उसके वचनों को पढ़ने पर ध्यान नहीं केंद्रित करते हैं। इस कारण कोई संभावना नहीं रह जाती है कि हमें पवित्र आत्मा द्वारा कोई प्रबुद्धता मिलेगी, भले ही हम परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझने सक्षम क्यों न हों।

परमेश्वर का वचन कहता है, "एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन परमेश्वर के सामने जिया जाने वाला जीवन है। प्रार्थना करते समय, एक व्यक्ति परमेश्वर के सामने अपना हृदय शांत कर सकता है, और प्रार्थना के माध्यम से वह पवित्र आत्मा के प्रबोधन की तलाश कर सकता है, परमेश्वर के वचनों को जान सकता है और परमेश्वर की इच्छा को समझ सकता है। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने से लोग उसके मौजूदा कार्य के बारे में अधिक स्पष्ट और अधिक गहन समझ प्राप्त कर सकते हैं। वे अभ्यास का एक नया मार्ग भी प्राप्त कर सकते हैं, और वे पुराने मार्ग से चिपके नहीं रहेंगे; जिसका वे अभ्यास करते हैं, वह सब जीवन में विकास हासिल करने के लिए होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के विषय में)। "यदि तुम सचमुच अपने हृदय को परमेश्वर के समक्ष शांत करना चाहते हो, तो तुम्हें समझदारी के साथ सहयोग का कार्य करना होगा। कहने का अर्थ यह है कि तुममें से प्रत्येक को अपने धार्मिक कार्यों के लिए समय निकालना होगा, ऐसा समय जब तुम लोगों, घटनाओं, और वस्तुओं को खुद किनारे कर देते हो, जब तुम अपने हृदय को शांत कर परमेश्वर के समक्ष स्वयं को मौन करते हो। हर किसी को अपने व्यक्तिगत धार्मिक कार्यों के नोट्स लिखने चाहिए, परमेश्वर के वचनों के अपने ज्ञान को लिखना चाहिए और यह भी कि किस प्रकार उसकी आत्मा प्रेरित हुई है, इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए कि वे बातें गंभीर हैं या सतही। सभी को समझ-बूझके साथ परमेश्वर के सामने अपने हृदय को शांत करना चाहिए। यदि तुम दिन के दौरान एक या दो घंटे एक सच्चे आध्यात्मिक जीवन के प्रति समर्पित कर सकते हो, तो उस दिन तुम्हारा जीवन समृद्ध अनुभव करेगा और तुम्हारा हृदय रोशन और स्पष्ट होगा। यदि तुम प्रतिदिन इस प्रकार का आध्यात्मिक जीवन जीते हो, तब तुम्हारा हृदय परमेश्वर के पास लौटने में सक्षम होगा, तुम्हारी आत्मा अधिक से अधिक सामर्थी हो जाएगी, तुम्हारी स्थिति निरंतर बेहतर होती चली जाएगी, तुम पवित्र आत्मा की अगुआई वाले मार्ग पर चलने के और अधिक योग्य हो सकोगे, और परमेश्वर तुम्हें और अधिक आशीषें देगा। तुम लोगों के आध्यात्मिक जीवन का उद्देश्य समझ-बूझ के साथ पवित्र आत्मा की उपस्थिति को प्राप्त करना है। यह नियमों को मानना या धार्मिक परंपराओं को निभाना नहीं है, बल्कि सच्चाई के साथ परमेश्वर के सांमजस्य में कार्य करना और अपनी देह को अनुशासित करना है। मनुष्य को यही करना चाहिए, इसलिए तुम लोगों को ऐसा करने का भरसक प्रयास करना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन लोगों को सही मार्ग पर ले जाता है)। परमेश्वर के वचनों से हम देख सकते हैं कि अच्छे आत्मिक जीवन के लिए परमेश्वर के समक्ष अपना मन शांत करना जरूरी है। भक्ति से पहले, हमें ध्यान से ऐसी हर चीज़ से दूर हो जाना चाहिए जो हमारी भक्ति में बाधा डाल सकती है। ऐसे सभी लोगों, कार्यक्रमों और चीजों से दूर हो जाना चाहिए जो हमारे मन को परमेश्वर से विमुख कर सकते हैं। आम तौर पर, हमारा मन जीवन और कामकाज में सामने आने वाली अनगिनत मामूली मसलों से निपटने से पहले सुबह ज्‍यादा शांत होता है। इस समय हम परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं, उसे अपनी मुश्किलें और अपनी कमजोरियां बता सकते हैं; हम उसकी इच्छा और साधना के मार्ग का मनन और अमल करते हुए ध्यानपूर्वक परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकते हैं। जितना ज्‍यादा हम इस तरह परमेश्वर के समक्ष अपने आपको शांत करेंगे, उतना ही ज्‍यादा पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त होने की संभावना होगी। अपनी भक्ति से कुछ पाने का यह बेहतर तरीका है और हमारी आत्मिक स्थिति में निरंतर सुधार होता रहेगा।

2. भक्ति में परमेश्‍वर के वचनों का मनन करने पर ध्यान केंद्रित करें

अपनी भक्ति से और ज्‍यादा प्राप्‍त करने का दूसरा तरीका परमेश्‍वर के वचनों के मनन पर ध्यान केंद्रित करना है। बहुत सारे लोग अपनी भक्ति के दौरान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, लेकिन वास्तव में वे उन पर मनन नहीं करते है—बस वे सरसरी नजर से उन्‍हें देखते हैं और सतही अर्थ समझकर संतुष्ट हो जाते हैं। हालांकि, उनको परमेश्वर की इच्छा या अपेक्षाओं की कोई सच्ची समझ नहीं मिलती है। इस दृष्टिकोण के साथ, चाहे वे परमेश्वर के वचनों को कितना भी पढ़ें, वे सत्य को नहीं समझ पायेंगे। हम सभी को पता है कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वे उसके स्वभाव की अभिव्यक्ति हैं और वे उसका जीवन प्रकट करते हैं। वे परमेश्वर की अपनी इच्छा से भरे हुए हैं, इसलिए वे ऐसे नहीं हैं जिन्‍हें हम वास्तव में एक पल विचार करके समझ सकते हैं। हमें पवित्र आत्मा से प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करने के लिए उन्‍हें श्रद्धा और लालसा भरे हृदय के साथ प्रार्थनापूर्वक पढ़ना और उन पर मनन करना होगा। यही परमेश्वर के वचनों में निहित सत्य को समझने और यह समझने का एकमात्र तरीका है कि वे वास्तव में हमसे क्या कह रहे हैं। परमेश्वर कहता है, "परमेश्वर के वचनों के प्रति हार्दिक समर्पण में मुख्यत: सत्य की खोज करना, परमेश्वर के वचनों में उसके इरादों की खोज करना, परमेश्वर की इच्छा को समझने पर ध्यान केन्द्रित करना, और परमेश्वर के वचनों से सत्य को समझना तथा और अधिक प्राप्त करना शामिल है। उसके वचनों को पढ़ते समय, पतरस ने सिद्धांतों को समझने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया था और धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर तो उसका ध्यान और भी केंद्रित नहीं था; इसके बजाय, उसने सत्य को समझने और परमेश्वर की इच्छा को समझने पर, साथ ही उसके स्वभाव और उसकी सुंदरता की समझ को प्राप्त करने पर ध्यान लगाया था। पतरस ने परमेश्वर के वचनों से मनुष्य की विभिन्न भ्रष्ट अवस्थाओं के साथ ही मनुष्य की भ्रष्ट प्रकृति को तथा मनुष्य की वास्तविक कमियों को समझने का भी प्रयास किया, और इस प्रकार परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, उसकी इंसान से अपेक्षाओं के सभी पहलुओं को प्राप्त किया। पतरस के पास ऐसे बहुत से अभ्यास थे जो परमेश्वर के वचनों के अनुरूप थे; यह परमेश्वर की इच्छा के सर्वाधिक अनुकूल था, और यह वो सर्वोत्त्म तरीका था जिससे कोई व्यक्ति परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए सहयोग कर सकता है" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')। हम यहाँ देख सकते हैं कि परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय, हमें इस पर गौर करना होगा कि वह सब कहने के पीछे परमेश्वर का उद्देश्य, परमेश्वर की इच्छा क्या है, उसके वचन हमारे भीतर क्या हासिल कर सकते हैं, किस तरह से हम विद्रोही हैं, हममें क्या कमियाँ हैं, और इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य का अभ्यास कैसे करें। जब हम इस तरह से प्रयास और मनन करेंगे, तो पता लगने से पहले ही हमें परमेश्वर की प्रबुद्धता प्राप्त हो जायेगी, जिससे हम यह समझ सकेंगे कि परमेश्वर के वचन सचमुच में क्या कह रहे हैं, और परमेश्वर का उद्देश्य और इरादा क्या है। इसके बाद, जब हम परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करेंगे, तो हम धीरे-धीरे सत्य और वास्तविकता को समझ सकेंगे। इससे अपनी भक्ति से फल प्राप्‍त करना आसान हो जाएगा।

चलिए हम बाइबल की इस छंद का एक उदाहरण लेते हैं: "तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम रखना" (मरकुस 12:30)। इससे हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर की अपेक्षा है कि हम उससे अपने पूरे तन-मन से प्रेम करें : वह हमसे यह क्यों चाहता है? परमेश्वर की इच्छा क्या है? हम इस पर मनन कर सकते हैं और महसूस कर सकते हैं कि परमेश्वर को पता है कि शैतान ने हमे भ्रष्ट कर दिया है इसलिए हम सभी का स्वभाव स्वार्थ से भरा है। हम हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि हर चीज में अपना हित कैसे साधें, इसलिए जब हम अपने आपको परमेश्‍वर के लिए खपाते हैं तो यह सिर्फ परमेश्वर के साथ सौदा करना होता है, उससे आशीर्वाद और अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश होती है, और जब हमारी इच्छाएँ पूरी नहीं होती हैं तो हम परमेश्‍वर से शिकायत करते हैं। हम किसी और चीज के साथ नहीं बल्कि शैतानी स्वभाव के साथ जीवन जी रहे हैं। यह परमेश्वर का विरोध और उसे धोखा देना है। परमेश्वर का स्वभाव पवित्र, धार्मिक है, इसलिए अगर हम इस प्रकार का रवैया जारी रखेंगे, तो हम चाहे परमेश्वर के लिए कितनी भी मेहनत से काम क्‍यों न करें, हमें परमेश्वर का समर्थन प्राप्त नहीं होगा और हम उसके राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। परमेश्‍वर ने हमारी अपनी कमियों और जरूरतों के अनुसार हमसे यह अपेक्षा की है, यह उम्मीद करते हुए कि जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे, तो यह मिलावटी या लेन-देन से भरा नहीं होगा। वह आशा करता है कि हम अपने स्वार्थी, नीच भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं रहेंगे, बल्कि हम खुशी से परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के कारण काम करने और खुद को अर्पित करेंगे और सच्ची मानवीय अनुरूपता जी पाएंगे। केवल इससे ही परमेश्‍वर का अनुमोदन मिलेगा। जब हम इन बातों पर विचार और विश्‍वास करते हैं, तो हमारे भीतर सत्य के लिए प्यास और देह भूल जाने का संकल्प उत्पन्न होता है, और हम अपने पूरे तन-मन से परमेश्वर से प्रेम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। यही वह चीज है जो परमेश्वर के वचनों को प्रार्थनापूर्वक पढ़ने से हासिल होती है। जब हम हर समय इस तरह परमेश्वर के वचनों के निकट आएंगे और परमेश्वर के समक्ष रहेंगे, तो हमारा आत्मिक जीवन निरंतर सुधरता जाएगा।

3. अपनी भक्ति में व्यवहारिक समस्याओं और कठिनाइयों पर विचार करें

अपने आत्मिक जीवन में फल प्राप्‍त करने के लिए, हमें परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने की ज़िम्मेदारी लेनी है, और हमें इसे अपनी वास्तविक स्थिति से जोड़ना और सत्य की तलाश करना सीखना होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है। बिल्‍कुल जैसा कि परमेश्वर का वचन कहता है, "जब तुम परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हो, तो तुम्हें इनके सामने अपनी स्थिति की वास्तविकता को मापना चाहिए। यानी, जब तुम्हें अपने वास्तविक अनुभव के दौरान अपनी कमियों का पता चले, तो तुम्हें अभ्यास का मार्ग ढूँढ़ने, गलत अभिप्रेरणाओं और धारणाओं से मुँह मोड़ने में सक्षम होना चाहिए। अगर तुम हमेशा इन बातों का प्रयास करो और इन बातों को हासिल करने में अपने दिल को उँड़ेल दो, तो तुम्हारे पास अनुसरण करने के लिए एक मार्ग होगा, तुम अपने अंदर खोखलापन महसूस नहीं करोगे, और इस तरह तुम एक सामान्य स्थिति बनाए रखने में सफल हो जाओगे। तब तुम ऐसे इंसान बन जाओगे जो अपने जीवन में भार वहन करता है, जिसमें आस्था है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7))

"चूँकि तुम परमेश्वर के सामने बोझ से दबे हुए आते हो, और चूँकि तुम हमेशा महसूस करते हो कि तुममें कई तरह की कमियाँ हैं, कि ऐसे कई सत्य हैं जिन्हें जानना तुम्हारे लिए जरूरी है, तुम्हें बहुत सारी वास्तविकता का अनुभव करने की आवश्यकता है, और कि तुम्हें परमेश्वर की इच्छा का पूरा ध्यान रखना चाहिए—ये बातें हमेशा तुम्हारे दिमाग़ में रहती हैं। ऐसा लगता है, मानो वे तुम पर इतना ज़ोर से दबाव डाल रही हों कि तुम्हारे लिए साँस लेना मुश्किल हो गया हो, और इस प्रकार तुम्हारा हृदय भारी-भारी महसूस करता हो (हालाँकि तुम नकारात्मक स्थिति में नहीं होते)। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता स्वीकार करने और परमेश्वर के आत्मा द्वारा प्रेरित किए जाने के योग्य हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर मानवजाति की कमियों को दूर करने और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, इसलिए जब हम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं तो हमें अपनी वास्तविक समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य की तलाश करना चाहिए। हमें परमेश्वर के वचनों के आलोक में अपनी वास्तविक समस्याओं और कठिनाइयों को देखना चाहिए ताकि हमें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता मिल सके। उदाहरण के लिए, अगर वह हमें मिल जाती है तो, जब हम भाइयों और बहनों के साथ होते हैं या अपने कर्तव्य में किसी का सहयोग कर रहे होते हैं, तो हम हमेशा अहंकार प्रदर्शित करते है, अपनी खुद की राय से चिपके रहते हैं, दूसरों को अपनी बात सुनने के लिए विवश करते हैं, और यहाँ तक कि हम दूसरों को उपदेश पिलाते और दबा देते हैं, हमें अपनी भक्ति में इस समस्या पर ध्‍यानपूर्वक सोचना चाहिए। हम हमेशा इस तरह का भ्रष्टाचरण क्‍यों दिखाते हैं, ऐसा क्यों लगता है कि हम कभी बदल नहीं पाएंगे? हम पाप के बंधन से क्यों नहीं निकल सकते, पाप करना क्यों रोक नहीं सकते हैं? और हम अक्सर अपनी इज्ज़त और हैसियत बनाए रखने के लिए झूठ बोले और धोखा दिये बिना नहीं रह पाते हैं—ऐसा क्यों है? ईमानदार आदमी बनना इतना मुश्किल क्यों है? प्रभु यीशु ने हमारे पापों को माफ कर दिया था, तो हम लगातार पाप क्यों कर रहे हैं? क्या हम जैसे लोग, जो हमेशा पाप करते रहते हैं, सचमुच स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? इन सवालों कों और इनके अलावा भी बहुत कुछ पूछें। विशेष रूप से अब जबकि एक महामारी दुनिया को तबाह कर रही है और हम पर आपदाएं टूट पड़ी हैं, हमने अभी भी प्रभु को बादल पर आते नहीं देखा है, इसलिए हम देरसवेर आपदाओं से हारने को बाध्य हैं। हम प्रभु से प्रार्थना करने और यह पता लगाने में कोई समय बर्बाद नहीं कर सकते हैं कि अब उसकी इच्छा क्या है क्‍योंकि आपदाएं आ गई हैं। हमें कुछ व्यावहारिक सवालों पर पूरी तरह से विचार करना होगा : अंत के दिन आने पर प्रभु कहाँ दिखाई देंगे और काम करेंगे? पवित्र आत्मा कलीसिया से कहाँ बात करेगा? हम बुद्धिमान कुंवारियां कैसे बन सकते हैं और प्रभु का कैसे स्वागत कर सकते हैं? फिलाडेल्फिया की कलीसिया किस तरह की कलीसिया है जो स्वर्गारोहित की जाएगी? अपनी भक्ति में इन व्यवहारिक प्रश्नों को लाकर, परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, और परमेश्वर की वास्तविक इच्छा की खोज कर, हम ज्यादा आसानी से परमेश्वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन पा सकते हैं। इससे हमारी समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान हो सकता है, जिससे हमें अभ्यास का मार्ग मिल सकता है। अगर हम बस यांत्रिक रूप से धर्मशास्त्रों को पढ़ते हैं और प्रार्थना करते हैं, अपनी भक्ति को सिर्फ एक और कार्य मानते हैं, खानापूर्ति करते हैं, तो हमारे आत्मिक जीवन को नुकसान पहुँचेगा और यह कुछ और नहीं बस एक धार्मिक अनुष्ठान, एक धार्मिक रिवाजबनकर रह जाएगा।

तो ये अभ्‍यास के वे तीन सिद्धांत हैं जिन्हें हमें अपनी आत्मिक भक्ति में समझना होगा। अगर हम इन सिद्धांतों को लागू करेंगे और अपनी दैनिक भक्ति में इनको अमल में लाएंगे, तो हमें पवित्र आत्मा से ज्‍यादा से ज्‍यादा प्रबुद्धता मिलेगी, हम अपने आत्मिक जीवन में निरंतर सुधार देखेंगे, और हम धीरे-धीरे जीवन में वृद्धि का अनुभव करेंगे।

संपादक की टिप्पणी: क्या भक्ति के लिए अभ्यास के ये तीन सिद्धांत आपके लिए मददगार हैं? अगर हाँ, तो बेझिझक इन्हें अन्य भाई-बहनों के साथ साझा करें ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को अपनी भक्ति करने का बेहतर तरीका मिल सके। अगर आपको लगता है कि आपकी अपनी आस्‍था में कोई अन्य समस्याएं या प्रश्न हैं, तो मैसेंजर या व्हाट्सएप के माध्यम से हमारे साथ संपर्क में रहें, और हमें आपके साथ उन पर चर्चा करने में खुशी होगी।

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