मैं पिताजी की दखलंदाजी से कैसे मुक्त हुई
18 नवंबर 2021 को इंटरनेट पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से मेरा परिचय हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर और उनकी संगति सुनकर मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। खुश होकर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। मैं यह खुशखबरी जल्दी से अपने परिवार को सुनाना चाहती थी, खासकर अपने पिताजी को। वे तीस साल की उम्र से ईसाई थे। अब वे साठ साल के थे और उन्होंने पूरे समय प्रभु की वापसी की राह देखी थी। मुझे यकीन था कि प्रभु यीशु के लौट आने की खबर सुनकर वे भी मेरी तरह खुशी-खुशी इसे स्वीकार लेंगे। आशा के विपरीत प्रभु की वापसी का समाचार सुनकर उन्होंने मुझे इस पर यकीन न करने को कहा। बोले, "बाइबल में कहीं नहीं लिखा कि परमेश्वर देहधारण करके लौटेगा। बाइबल कहती है कि परमेश्वर विश्वासियों को स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए बादल पर उतरेगा।" मैंने उनसे कहा, "पापा, प्रभु यीशु ने कई बार कहा था कि अंत के दिनों में वह मनुष्य के पुत्र के रूप में लौटेगा। उदाहरण के लिए, 'क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा' (मत्ती 24:27)। 'जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा' (मत्ती 24:37)। 'इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा' (मत्ती 24:44)। बाइबल के पदों में उल्लेख है कि प्रभु मनुष्य के पुत्र के रूप में आएगा। यानी परमेश्वर मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करेगा—" मेरी बात खत्म होने से पहले ही पिताजी ने मुझे टोका, "प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र है। उसका मनुष्य के पुत्र के रूप में लौटना असंभव है। प्रभु सिर्फ बादल पर आकर हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा।" मैंने कहा, "बादल पर आना ही प्रभु के लौटने का एकमात्र तरीका नहीं है। बाइबल में उसकी वापसी के दो तरीकों की भविष्यवाणी की गई है। वह गुप्त रूप से देहधारण करके और फिर खुले तौर पर बादल पर आएगा। प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणी है, 'देख, मैं चोर के समान आता हूँ' (प्रकाशितवाक्य 16:15)। 'यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा' (प्रकाशितवाक्य 3:3)। और मत्ती 25:6 में लिखा है, 'आधी रात को धूम मची : "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।"' ये सभी भविष्यवाणियां कहती हैं कि प्रभु यीशु चोर की तरह वापस आएगा। यानी वह बिना किसी के जाने चुपचाप आएगा। अगर प्रभु यीशु खुले तौर पर सफेद बादल पर सवार होकर आया, तो हर कोई उसे देख लेगा। फिर ये भविष्यवाणियाँ कैसे साकार होंगी? अंत के दिनों में, परमेश्वर पहले गुप्त रूप से देहधारण कर मनुष्य के पुत्र के रूप में आएगा, ताकि सत्य व्यक्त कर न्याय का कार्य कर सके। बुद्धिमान कुँवारियाँ परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत करेंगी, परमेश्वर अपने वचनों से उनका न्याय और शुद्धिकरण कर उन्हें विजेता बनाएगा। फिर बड़ी-बड़ी आपदाएँ आनी शुरू होंगी और देह में परमेश्वर के गुप्त कार्य का चरण समाप्त हो जाएगा। बड़ी आपदाओं के बाद परमेश्वर बादल पर उतरकर सबके सामने प्रकट होगा। इससे प्रकाशितवाक्य की यह भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी, 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे' (प्रकाशितवाक्य 1:7)।" मैंने पिताजी से कहा, "पापा, इस पर सोचिए। यह समझा जा सकता है कि जब प्रभु यीशु बादल पर लौटेगा, तो उद्धारकर्ता के आने से सब खुश होंगे। तो फिर ऐसा क्यों कहा गया है 'और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे'? क्योंकि जब परमेश्वर देहधारी मनुष्य के पुत्र के रूप में कार्य करेगा, तो वह न्याय और शुद्धिकरण का कार्य पूरा करेगा। जो लोग केवल प्रभु के बादल पर आने की प्रतीक्षा करते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं, वे अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय और शुद्धिकरण स्वीकारने का मौका चूक जाएँगे और जब प्रभु अच्छे को इनाम और दुष्ट को दंड देने के लिए बादल पर सवार होकर आएगा, तो वे आपदा में पड़कर फूट-फूटकर रोएंगे।" फिर मैंने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और सुसमाचार की गवाही का एक वीडियो दिखाया, लेकिन फिर भी वे अपनी बात पर अड़े रहे। अहंकारी और गुस्सैल रवैया अपनाकर उन्होंने मुझसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास न करने के लिए कहा।
यह देखकर कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भाग लेती हूँ, मुझे रोकने के बहाने से उन्होंने मुझसे कहा, "तुम अपना ज्यादातर वक्त फोन पर सभाओं में भाग लेने में बिताती हो। मैं चाहता हूं कि तुम काम करके घर-खर्च के लिए पैसे कमाओ। अब से मैं तुम्हें और पैसे नहीं दूँगा! नौकरी न मिले, तो तुम घर छोड़कर जा सकती हो!" पिताजी की बातों ने मुझे बेचैन कर दिया। अगर नौकरी की, तो मुझे सभाओं में शामिल होने और परमेश्वर के वचन पढ़ने का समय नहीं मिलेगा। लेकिन अगर नौकरी नहीं मिली, तो पिताजी मुझे घर से निकाल देंगे। मैं बहुत डर गई, इसलिए मैंने सुबह छह से शाम चार बजे तक की एक नौकरी कर ली। समय बीतने के साथ मैं अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने लगी। काम के दौरान फोन न कर पाने के कारण मैं नवागतों का सिंचन नहीं कर पा रही थी। काम से घर लौटकर मैं इतनी टूट जाती कि सभा में बहुत थकान महसूस होती। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरे कर्तव्य निभाने का कोई मार्ग खोले। कुछ दिनों बाद मैंने वह नौकरी छोड़ दी। मुझे घर की सफाई करने का काम मिल गया, जहां दिन में सिर्फ चार घंटे काम करना था। कमाई ज्यादा नहीं थी, लेकिन सभाओं में शामिल होने और कर्तव्य निभाने का समय मिल जाता था। मुझे फिर से सभाओं में भाग लेते देख पिताजी ने भी फिर से हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया सभा से पहले वे अक्सर मुझे अपना कोई काम करने के लिए कह देते, और कभी-कभी, जब मैं ऑनलाइन सभा में भाग ले रही होती, मुझे अपने साथ बाहर चलने को कहते। पहले तो मुझे ठीक से समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। मुझे लगता, मुझे उनकी बात माननी चाहिए, लेकिन इससे मेरे लिए सभाओं में भाग लेना मुश्किल हो रहा था। एक बार, जब उन्होंने मुझसे अपने साथ चलने को कहा, तो मैंने कहा, मेरी सभा चल रही है, जिससे वे काफी नाराज हो गए। मुझे समझ नहीं आया, इन चीजों से कैसे निपटूँ।
बाद में, एक सभा में भाई-बहनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े, जिनसे मैं चीजें साफ देख पाई। "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। "जब परमेश्वर कार्य करता है, किसी की देखभाल करता है, उस पर नजर रखता है, और जब वह उस व्यक्ति पर अनुग्रह करता और उसे स्वीकृति देता है, तब शैतान करीब से उसका पीछा करता है, उस व्यक्ति को धोखा देने और नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है। अगर परमेश्वर इस व्यक्ति को पाना चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और खराब करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; परमेश्वर जिन्हें पाना चाहता है, वह उसकी संपत्ति छीन लेना चाहता है, वह उन पर नियंत्रण करना, उनको अपने अधिकार में लेना चाहता है, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है?" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं शैतान की चालें समझ गई। जब परमेश्वर किसी को बचाना चाहता है, तो शैतान परमेश्वर द्वारा उसे पाने से रोकने के लिए हर इंसान और चीज का इस्तेमाल करता है। मेरे साथ यही हो रहा था। मेरे सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने का पता चलने पर पिताजी ने मुझे रोकने की पूरी कोशिश की। उन्होंने कहा कि मुझे नौकरी करनी पड़ेगी, हर सभा से पहले वे मुझे कोई काम बता देते, और सभा में बाधा डालने के लिए मुझे किसी काम से बाहर चलने को कहते। यह शैतान था, जो पिताजी का इस्तेमाल कर रहा था ताकि मैं सभाओं में भाग न ले पाऊँ या परमेश्वर के वचन न पढ़ पाऊँ। मुझे शैतान की चालों की समझ नहीं थी, इसलिए घर से निकाले जाने के डर से मैं पिताजी की धमकी बरदाश्त कर लेती। शैतान के प्रलोभन में आकर मैं न तो सभाओं में शामिल हो पाती और न ही अपना कर्तव्य निभा पाती। अब मुझे समझ आ गया कि शैतान मुझे परमेश्वर के उद्धार से वंचित करने के लिए पिताजी से गड़बड़ी करवा रहा है। शैतान बहुत दुष्ट है। लेकिन परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों के हिसाब चलती है। इस माहौल का अनुभव कर मैंने सत्य खोजा, सबक सीखा, शैतान की चालें पहचानीं और अपनी गवाही पर अडिग रहकर शैतान को नीचा दिखाया। परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन से ही मैंने चीजों की वास्तविक स्थिति समझी। मुझे अपनी गवाही पर दृढ़ रहना था और अब शैतान के जाल में नहीं फँसना था।
इसके बाद, मैंने सभाओं में भाग लेने और कर्तव्य निभाने पर जोर दिया। पिताजी मुझे रोकते और परेशान करते रहे, यहाँ तक कि कई बार मुझे घर से निकालना चाहा। वे इतने नाराज थे कि मुझसे बात तक नहीं करना चाहते थे। उन्होंने मेरे साथ जो भी किया, पर मुझे उनसे बात करनी थी। एक दिन मैंने उनसे पूछा, "पापा, आप मुझसे बात क्यों नहीं करते? आप मुझे घर से क्यों निकालना चाहते हैं?" वे बोले, "तुम्हें सिर्फ सभाओं की पड़ी है, तुम मेरी बात नहीं मानती।" मैंने कहा, "परमेश्वर ने माता-पिता का सम्मान करने को कहा है, इसलिए मैं आपसे बात करना बंद नहीं करूँगी, लेकिन मैं सभाओं में शामिल होना भी बंद नहीं करूंगी।" वे चुप रहे और उसके बाद फिर कभी कुछ नहीं कहा। बाद में, मैंने अपनी सौतेली माँ को सुसमाचार सुनाया। उन्हें यह अच्छा लगा और वे महीने भर तक सभाओं में भाग लेती रहीं। लेकिन जब पिताजी को पता चला तो उन्होंने उन्हें रोक दिया और मुझे घर से निकालना चाहा। इससे मुझे दुख हुआ। मैं पिताजी के साथ संबंध खराब करना नहीं चाहती थी। एक सुबह, मैं अपने फोन पर परमेश्वर के वचन पढ़ रही थी। पिताजी ने देखा तो मुझे डांटा, "अगर तुम फोन पर सभाओं में शामिल होती रही, तो मैं फोन छीन लूंगा!" यह कहकर उन्होंने मेरा फोन छीनने की कोशिश की। मैंने फोन नहीं दिया, तो वे गुस्से से बोले, "अगर मेरी बात नहीं माननी, तो सामान उठाओ और घर से निकल जाओ!" मेर दिल टूट गया। पिताजी से मेरे संबंध हमेशा अच्छे रहे थे। मैं उन्हें या घर छोड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन उनका रवैया और बातें इतनी चुभने वाली थीं कि मैं बता नहीं सकती। अगर मुझे घर से निकाल दिया गया, तो मेरा कोई ठिकाना नहीं था। न मेरे पास पैसे थे। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। मैं रोने लगी, मेरे सीने में दर्द होने लगा। पिताजी द्वारा पैदा की गई बाधा और अशांति से मुझे बहुत परेशानी हुई, मैंने बहुत कमजोरी और पीड़ा महसूस की। इन कठिनाइयों का सामना करने से बचने के लिए, मैं आत्महत्या की सोचने लगी।
मैंने परमेश्वर से मदद की प्रार्थना की और भाई-बहनों को अपनी स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने मुझसे परमेश्वर के ये वचन साझा किए। "अगर तुम पर ऐसी कई चीजें आ पड़ती हैं, जो तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप नहीं होतीं, परंतु फिर भी तुम उन्हें एक तरफ रखने और इन चीजों से परमेश्वर के क्रियाकलापों का ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होते हो, और अगर शोधनों के बीच तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरा अपना हृदय प्रकट करते हो, तो यह गवाही देना है। अगर तुम्हारे घर में शांति है, तुम देह-सुख का आनंद लेते हो, कोई तुम्हारा उत्पीड़न नहीं करता, और कलीसिया में तुम्हारे भाई-बहन तुम्हारा आज्ञापालन करते हैं, तो क्या तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरा अपना हृदय प्रदर्शित कर सकते हो? क्या यह स्थिति तुम्हारा शोधन कर सकती है? केवल शोधन के माध्यम से ही परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम दर्शाया जा सकता है, और केवल अपनी धारणाओं के विपरीत घटित होने वाली चीजों के माध्यम से ही तुम पूर्ण बनाए जा सकते हो। कई नकारात्मक और विपरीत चीजों की सेवा और शैतान की तमाम तरह की अभिव्यक्तियों—उसके कामों, उसके आरोपों, उसकी बाधाओं और धोखों के माध्यम से—परमेश्वर तुम्हें शैतान का भयानक चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाता है और इस प्रकार शैतान को पहचानने की तुम्हारी क्षमता को पूर्ण बनाता है, ताकि तुम शैतान से नफरत करो और उसे त्याग दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। "आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! ... इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे समझ आया कि राज्य की राह आसान नहीं है। परमेश्वर की स्वीकृति और आशीष पाने के लिए हमें कीमत चुकानी होगी और सभी तरह के परीक्षण सहने होंगे। परमेश्वर पर विश्वास के पथ पर, बिना कष्ट और शुद्धिकरण के, परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम पैदा नहीं हो सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास के कारण पिताजी ने मेरा विरोध किया। मुझे सभाओं से रोकने और मेरे कर्तव्य में बाधा डालने की कोशिश की, यहाँ तक कि कई बार मुझे घर से निकालना चाहा। यह मेरे लिए बहुत पीड़ादायक था। मुझे समझ नहीं आया कि परमेश्वर मुझे ऐसी मुसीबतें क्यों दे रहा है, लेकिन मैंने परमेश्वर की इच्छा नहीं समझी, न यह खोजा कि इन हालात से कैसे गुजरूँ। मैं बस दुखी, परेशान और चिंतित होती रही, उन मुश्किलों से डर गई जिन्हें घर से निकलने पर मुझे झेलना पड़ता। मैं इतनी कमजोर थी कि मौत को ही सबसे अच्छा विकल्प मान रही थी। मैं अपने नकारात्मक विचारों के कब्जे में थी। अब परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मेरे विचार कितने गलत थे। मैं कायर थी। मुझे बहादुरी और मजबूती से हर मुश्किल का सामना करना चाहिए था, क्योंकि इन हालात के जरिये परमेश्वर मेरी आस्था पूर्ण करना चाहता था, मुझे हर मुश्किल स्वीकारने और आज्ञापालन के योग्य बनाना चाहता था, वह चाहता था कि मैं प्रार्थना और गवाही में डटे रहकर शैतान को शर्मिंदा करूँ। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मेरा हृदय चमक उठा। मुझे कायरता छोड़कर आगे बढ़ना था, क्योंकि मदद करने के लिए परमेश्वर मेरे साथ था। तो मैंने सभाओं में जाना और कर्तव्य निभाना नहीं छोड़ा।
कुछ दिनों बाद मेरा बड़ा भाई लौट आया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गवाही देकर उसे सभाओं में निमंत्रित किया, तो उसने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद पिताजी को पता चल गया और वे उसे रोकने और परेशान करने लगे, तो भाई ने सभाओं में आना बंद कर दिया। पिताजी ने मुझे चेतावनी भी दी कि मैं फिर कभी परिवार में सुसमाचार न सुनाऊँ। मैं थोड़ी दुखी हुई, लेकिन मुझे पता था कि सतही तौर पर यह पिताजी की बाधा है, लेकिन वास्तव में यह शैतान की गड़बड़ी है, तो मैंने शांत रहने की कोशिश की। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : "तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। "परमेश्वर के वचन किस सिद्धांत द्वारा लोगों से दूसरों के साथ व्यवहार किए जाने की अपेक्षा करते हैं? जिससे परमेश्वर प्रेम करता है उससे प्रेम करो, और जिससे वह घृणा करता है उससे घृणा करो : यही वह सिद्धांत है, जिसका पालन किया जाना चाहिए। परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने और उसकी इच्छा का पालन कर सकने वालों से प्रेम करता है। हमें भी ऐसे लोगों से प्रेम करना चाहिए। जो लोग परमेश्वर की इच्छा का पालन नहीं कर सकते, जो परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं—परमेश्वर ऐसे लोगों का तिरस्कार करता है, और हमें भी उनका तिरस्कार करना चाहिए। परमेश्वर इंसान से यही अपेक्षा करता है। अगर तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, यदि वे अच्छी तरह जानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास सही मार्ग है और यह उनका उद्धार कर सकता है, फिर भी ग्रहणशील नहीं होते, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे सत्य से उकताए हुए लोग हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं और इसमें कोई शक नहीं है कि वे परमेश्वर का विरोध और उससे घृणा करते हैं—और स्वाभाविक तौर पर परमेश्वर उनसे घृणा और उनका तिरस्कार करता है। क्या तुम ऐसे माता-पिता का तिरस्कार कर सकते हो? वे परमेश्वर का विरोध और उसकी आलोचना कर सकते हैं—ऐसा है तो, वे निश्चित रूप से दानव और शैतान हैं। क्या तुम भी उनका तिरस्कार करके उन्हें धिक्कार सकते हो? ये सब वास्तविक प्रश्न हैं। यदि तुम्हारे माता-पिता तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकें, तो तुम्हें उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? जैसा कि परमेश्वर चाहता है, परमेश्वर जिससे प्रेम करता है उससे प्रेम करो, और जिससे वह घृणा करता है उससे घृणा करो। अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु ने कहा, 'कौन है मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?' 'क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और मेरी बहिन, और मेरी माता है' (मत्ती 12:48, 50)। यह कहावत अनुग्रह के युग में पहले से मौजूद थी, और अब परमेश्वर के वचन और भी अधिक स्पष्ट हैं : 'उससे प्रेम करो, जिससे परमेश्वर प्रेम करता है और उससे घृणा करो, जिससे परमेश्वर घृणा करता है।' ये वचन बिलकुल सीधे हैं, फिर भी लोग अकसर इनका वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाते" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारने से लेकर पिताजी की सारी हरकतें याद आईं। मैंने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाए थे और अंत के दिनों के उसके कार्य की गवाही दी थी। मेरी बातों का खंडन न पाने पर भी वे अपनी धारणाओं पर अड़े रहे, उन्होंने परमेश्वर के कार्य को नकारा और उसकी निंदा की, हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने की हर संभव कोशिश की। पर अब मैं समझ गई थी कि पिताजी ने हमारा विरोध इसलिए किया, क्योंकि उन्हें सत्य से प्रेम नहीं, घृणा थी। वे प्रभु यीशु का विरोध करने वाले फरीसियों जैसे थे। जब उन्हें पता चला कि प्रभु यीशु नया कार्य करने आया है, तो खोजने और पड़ताल करने के बजाय उन्होंने उसका विरोध और निंदा की, जिससे उनका सत्य से घृणा और परमेश्वर का विरोध करने वाला स्वभाव प्रकट हो गया। परमेश्वर में पिताजी की आस्था को 30 वर्ष हो गए थे, लेकिन प्रभु यीशु के वापस लौटने पर वे धार्मिक धारणाओं से चिपक गए और खोज नहीं की, उन्होंने परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी और हमें रोका। वे हमारा नहीं, सत्य और परमेश्वर का विरोध कर रहे थे। वे परमेश्वर की भेड़ नहीं थे, परमेश्वर ने उन्हें नहीं स्वीकारा। परमेश्वर प्रभु में तुम्हारे विश्वास की अवधि, तुम्हारा रुतबा या बाइबल का तुम्हारा ज्ञान नहीं देखता। वह यह देखता है कि तुम सत्य खोज सकते हो या नहीं, परमेश्वर की वाणी समझकर परमेश्वर का प्रकटन और कार्य स्वीकार सकते हो या नहीं। मेरे पिताजी परमेश्वर पर विश्वास करने और सत्य खोजने वाले व्यक्ति नहीं थे। प्रभु पर उनका विश्वास कितना भी पुराना हो, अगर उन्होंने अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य नहीं स्वीकारा और इसी तरह विरोध और निंदा करते रहे तो उन्हें परमेश्वर का उद्धार प्राप्त नहीं होगा, वे परमेश्वर द्वारा धिक्कारे जाएँगे। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध कर राह दिखाई और मुझे सत्य की समझ दी, मैं अपने पिताजी का स्वभाव और सार पहचान पाई। मैं अब भावुकता से काम नहीं कर सकती थी। मुझे सत्य के सिद्धांतों और परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करना था, आस्था को बनाए रखना और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रहना था।
इन हालात का अनुभव कर मैं अपने पिताजी के बारे में बहुत-कुछ समझ गई, जब भी वे मुझे रोकते, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती। भाई-बहनों ने भी मेरी मदद के लिए मुझसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन साझा किए, जिनसे मैंने परमेश्वर की इच्छा समझी और उसका अनुसरण करने की आस्था पाई। परमेश्वर का प्रेम महसूस कर मैं बहुत प्रसन्न और परमेश्वर की आभारी हुई। इसके बाद जब पिताजी मुझे रोकते या परेशान करते, मैं विवश न होती। मैं उनका सामना कर उनसे कह देती कि चाहे जो हो, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखूंगी, मुझे अपनी जिम्मेदारियों का पता है, मेरे लिए मेरा कर्तव्य सर्वोपरि है, मुझे सुसमाचार का प्रचार कर कर्तव्य अच्छे से निभाना है।
बाद में, मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े। "आज, मुझे वह आदमी पसंद है, जो मेरी इच्छा पर चल सके, जो मेरी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रख सके, और जो मेरे लिए सच्चे दिल और ईमानदारी से अपना सब-कुछ दे सके। मैं उन्हें लगातार प्रबुद्ध करूँगा, उन्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगा। मैं अकसर कहता हूँ, 'जो ईमानदारी से मेरे लिए स्वयं को खपाता है, मैं निश्चित रूप से तुझे बहुत आशीष दूँगा।' 'आशीष' किस चीज़ का संकेत करता है? क्या तुम जानते हो? पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य के संदर्भ में, यह उन ज़िम्मेदारियों का संकेत करता है, जो मैं तुम्हें देता हूँ। वे सभी, जो कलीसिया के लिए ज़िम्मेदारी वहन कर पाते हैं, और जो ईमानदारी से मेरे लिए खुद को अर्पित करते हैं, उनकी ज़िम्मेदारियाँ और उनकी ईमानदारी दोनों आशीष हैं, जो मुझसे आते हैं। इसके अलावा, उनके लिए मेरे प्रकटन भी मेरे आशीष हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 82)। "उठो और मेरे साथ सहयोग करो! मैं निश्चित रूप से उन लोगों के साथ क्षुद्रता से व्यवहार नहीं करूँगा, जो ईमानदारी से खुद को मेरे लिए खपाते हैं। जो लोग अपने आप को ईमानदारी से मेरे प्रति समर्पित करते हैं, मैं उन्हें अपने सभी आशीष प्रदान करूँगा। अपने आप को पूरी तरह से मेरे प्रति अर्पित कर दो! तुम जो खाते हो, जो पहनते हो, और तुम्हारा भविष्य, ये सब मेरे हाथों में हैं; मैं सब ठीक प्रकार से व्यवस्थित कर दूँगा, ताकि तुम असीमित आनंद पा सको, जो कभी खत्म नहीं होगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मैंने कहा है, 'जो ईमानदारी से मेरे लिए स्वयं को खपाता है, मैं निश्चित रूप से उसे बहुत आशीष दूँगा।' हर उस व्यक्ति पर, जो खुद को ईमानदारी से मेरे लिए खपाता है, सारे आशीष आएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 70)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं समझ गई कि अपने कर्तव्य में दायित्व उठाना और ईमानदार होना बहुत जरूरी है। मैंने खुद से पूछा, "क्या मैं राज्य-सुसमाचार का प्रचार करने के प्रति समर्पित हूँ? क्या मैंने परमेश्वर की अपेक्षानुसार अपना कर्तव्य निभाया है?" मैं जानती थी, पिताजी मुझे घर पर सभाओं और कर्तव्य के लिए अधिक समय नहीं देंगे, क्योंकि वे हमेशा मुझे रोकने की कोशिश करते थे। अगर मुझे सुसमाचार-कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित होना है, तो मुझे घर छोड़कर कहीं और जाना होगा। परमेश्वर चाहता है कि राज्य का सुसमाचार तेजी से फैले, ताकि अधिक से अधिक लोग अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार पा सकें। परमेश्वर का राज्य का सुसमाचार फैलाना मेरी जिम्मेदारी है, ताकि अधिक से अधिक लोग परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत कर सकें। इसलिए मैं सामान लेकर एक नए शहर में चली गई, और अंतत: सुसमाचार के प्रचार के लिए आजाद हो गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद!
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