किसने दी मुझे मेरी आजादी?

24 जनवरी, 2022

रुईजी, चीन

जब मैंने पहले-पहल आस्था रखने का फैसला किया तो मेरे पति ने कहा कि ये बहुत अच्छी बात है, कभी-कभी तो वे मेरे साथ सभाओं में भी जाते। फिर 28 मई 2014 को, कम्युनिस्ट पार्टी ने झाओयुआन मामला गढ़कर इसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर थोप दिया। पूरे मीडिया—टीवी, रेडियो, अख़बार, पर अफवाहें फ़ैली हुई थीं। बहुत बुरा वक्त था। बहुत-से भाई-बहन गिरफ़्तार हो गए थे। एक दोपहर, जब मैं सभा से घर लौटी, तो मेरे पति ने घबराई आवाज़ में कहा, "आह, तुम आ गयी! परमेश्वर में विश्वास रखने की रिपोर्ट कर दी गई है!" मेरा दिल रुक-सा गया, मानो गोली लग गयी हो, फिर मैंने उनसे पूछा, "आपको कैसे पता चला?" उन्होंने नीची आवाज़ में कहा, "आज सुबह दफ़्तर में, मेरी कार्य इकाई के प्रमुख और अनुशासन जांच कमीशन ने मुझे मिलने के लिए बुलाया, उन्होंने बस तुम्हारे धर्म पर बात की। उन्होंने कहा कि केंद्रीय आयोग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को पहले ही शी जियाओ नामित कर दिया है, अब वे सचमुच उस पर कार्रवाई कर रहे हैं। राष्ट्र भर में, नगरों, कारखानों, व्यवसायों और लोगों के घरों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों की तलाश हो रही है। उन लोगों को निष्कासित कर दिया जाएगा, उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के सदस्य किसी धर्म का पालन नहीं कर सकते, अगर वे ऐसा करते पाए गए, तो वे अपनी सिविल सर्विस की नौकरियाँ गँवा देंगे, उनके बच्चों को यूनिवर्सिटी, सैनिक स्कूल, और सिविल सर्विस की नौकरियाँ भी नहीं मिलेंगी।" उन्होंने कहा कि उनकी सहकर्मी मिस झाओ एक विश्वासी थी। उसे न केवल नौकरी से निकाल दिया गया, उसके पति को भी सिविल सर्विस से निकाल दिया गया। उनके बेटे को प्रवेश परीक्षा में बहुत बढ़िया अंक मिलने के बावजूद, कॉलेज में नहीं लिया गया। मेरे पति ने मुझे बताया कि अगर मैं अपनी आस्था पर कायम रहूँगी, तो हमारे पूरे परिवार को नुकसान होगा। थोड़ी देर चुप रहने के बाद वे बड़ी गंभीरता से बोले, "मैंने इस बारे में बहुत समय तक सोचा है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना हमारे हित में नहीं है। इसलिए हमारे परिवार की खातिर, मैंने आस्था छोड़ने का फैसला किया है। अगर तुम विश्वास रखना चाहती हो, तो घर पर ही अभ्यास करो। घर के बाहर बिलकुल नहीं। अगर तुम्हारे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने की सूचना फिर गई, तो तुम्हारे साथ-साथ हमारे पूरे परिवार पर मुसीबत आ जाएगी।" ईमानदारी से कहूँ तो इस बात की उम्मीद नहीं थी। पहले तो समझ ही नहीं आया, क्या करूँ, मैं सच में बहुत परेशान थी। मुझे समझ आ गया कि इस विषय पर मेरे पति का फैसला अंतिम था, पार्टी की धमकियों से डरकर, उनमें अब विश्वास रखने की हिम्मत नहीं रही। वे चाहते थे कि मैं भी अब विश्वास न रखूँ, अपना कर्तव्य न निभाऊँ। लेकिन मैं परमेश्वर में विश्वास रखे बिना नहीं रह सकती थी। मुझे विश्वास था कि यही सच्चा मार्ग है, यह परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है, वह मनुष्य को शुद्ध कर बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। मुझे हर हाल में विश्वास रखना था। फिर मैंने सोचा, पुलिस को मेरी सूचना दी जा चुकी है, मेरे पति मेरा साथ नहीं दे रहे हैं। अगर मैं अपना कर्तव्य निभाती रही, तो यकीनन मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा, मेरे गिरफ़्तार होने से पूरा परिवार फंस जाएगा। मैंने सोचा कि सभाओं में जाना, कर्तव्य निभाना बंद कर दूं; सिर्फ घर पर ही अभ्यास करूँ। शायद यही हमारे लिए सुरक्षित होगा। शायद इससे मेरा परिवार बच जाएगा। लेकिन इस विचार से मैने बहुत दोषी अनुभव किया। कुछ नये विश्वासियों पर कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा फैलायी गई अफवाहों और झूठ का असर हो गया था, उन्हें मदद और सहारा देने के लिए सत्य के बारे में संगति करने की ज़रूरत थी। अगर मैं बाहर नहीं गयी, अपना कर्तव्य नहीं निभाया, तो क्या मैं युद्ध छोड़ने वाली भगोड़ी नहीं हो जाऊँगी? यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है। मैं अपनी अंतरात्मा की अनदेखी नहीं कर सकी। मेरे मन में आया कि चीजें उतनी सरल नहीं हैं जितनी मैंने सोची थीं, मुझे हड़बड़ी में कुछ नहीं करना चाहिए। मैं अपनी अगुआ बहन ली से बात करने, साथ में खोजने उनके पास गई।

रास्ते में वही सारी बातें मन में घूम रही थीं। मेरे पति कहा करते थे, "आस्था बड़ी अच्छी चीज़ है," कर्तव्य में भी मेरा साथ देते थे। लेकिन एकाएक उन्होंने अपने बॉस की बात सुनी और विश्वास रखना छोड़ दिया। वे नहीं चाहते थे कि मैं भी आस्था रखूँ। यह अचानक आया बदलाव था। बहुत सोच-विचार के बाद, मुझे एहसास हुआ कि उन्हें डर था कि इसका उनके जीवन और पद पर बुरा असर पड़ेगा। यह अपने संरक्षण की बात थी। इस बात ने मुझे बहुत बेचैन कर दिया, मैंने सोचा, "मनुष्य का सृजन परमेश्वर ने किया, आस्था रखना और परमेश्वर की आराधना करना सही और स्वाभाविक है। तो फिर पार्टी क्यों नहीं चाहती कि लोग आस्था रखें? आस्था से आपके पूरे परिवार का भविष्य खतरे में क्यों हो? क्या राष्ट्र का संविधान हर किसी के लिए विश्वास की आजादी सुनिश्चित नहीं करता? फिर, पार्टी, विश्वासियों का ऐसा अंधाधुंध दमन क्यों कर रही है?" मैं उलझनों से भर गई। बहन ली ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ने को दिया। "इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है? लोगों की स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधकारपूर्ण समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उसकी बनायी दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। इसे पढ़ लेने के बाद, बहन ली ने कहा : "अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मनुष्य को शुद्ध कर बचाने के लिए सत्य व्यक्त करने आया है। अनेक सच्चे विश्वासियों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है, लेकिन पार्टी को डर है कि लोग परमेश्वर में आस्था पाकर उसे ठुकरा देंगे। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा और तिरस्कार करने के लिए तरह-तरह की चालें चलती है, ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ़्तार कर उन्हें सताती है, ईसाइयों के परिवारों की कई पीढ़ियों को घसीटती है। यह कलीसिया का तिरस्कार कर उसे बदनाम करने के लिए अफवाहें बुनती है, ताकि लोग झांसे में आकर परमेश्वर के खिलाफ हो जाएँ, ताकि वह तानाशाही शासन कायम रखने के अपना क्रूर लक्ष्य में सफल हो जाए। पार्टी परमेश्वर से घृणा करने वाले, उसका विरोध करने वाले दुष्ट दानवों का झुंड है। विदेशों में, यह धर्म की आज़ादी को समर्थन देने का दावा करती है, लेकिन यह पूरी दुनिया के लोगों के साथ हेरफेर करने के लिए फैलाया गया एक झूठ भर है। अब 28 मई के झाओयुआन मामले को देखो, यह सीसीपी द्वारा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा कर, उसे बदनाम करने के लिए रचा हुआ झूठा मामला है, उसकी चाल मतभेद रखने वालों को दबा देने की है। लेकिन पार्टी कितनी भी क्रूर क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथों सेवा की एक वस्तु ही है। परमेश्वर इसे ऐसे काम करने की अनुमति देता है ताकि आप उसे सही से समझ सकें, इसके दुष्ट सार को समझकर आगे इसकी चालों में न फंसें। आखिरकार, आप शैतान को पूरी तरह से ठुकराकर परमेश्वर की ओर मुड़ सकेंगे। यही है परमेश्वर का उद्धार।" बहन ली की बातों ने सीसीपी के परमेश्वर और सत्य से घृणा करने के दुष्ट सार को समझने में मेरी मदद की। वह मुझे धमकी देने के लिए मेरे पति और बच्चे के भविष्य का इस्तेमाल कर रही थी, कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मैं शैतान के साथ समझौता नहीं करूँगी! पार्टी मेरा कितना भी दमन करे, चाहे मेरे पति मेरे आड़े आएं, मुझे आस्था रखकर परमेश्वर का अनुसरण करना होगा, अपना कर्तव्य निभाना होगा।

हाँ, मैंने उसी रात संगति की, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं मानी। उन्होंने यह भी कहा, "मैंने इतने साल से इस सिस्टम में काम किया है, मैंने सीसीपी को अनगिनत, अनुचित झूठे मामले गढ़ते हुए देखा है। क्या मैं तुमसे बेहतर नहीं जानता? चीन एक तानाशाही मुल्क है, हम चीन में पैदा हुए हैं। तुम्हें कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों का पालन करना होगा। वरना तुम्हें दंड दिया जाएगा। कमजोर लोग ताकतवर लोगों को नहीं हरा सकते। मुझे लगता था, तुम्हारी आस्था बहुत अच्छी चीज है, यह लोगों को सही मार्ग पर लाती है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि पार्टी इस पर ऐसी पाबंदी लगा देगी कि लोग अपनी नौकरियाँ गँवा दें, गिरफ्तार होकर जेल में बंद हो जाएं, यहाँ तक कि पीट-पीट कर मार डाले जाएं। इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं। अगर तुमने विश्वास रखने की जिद की, तो सिर्फ तुम ही गिरफ्तार नहीं होगी। मैं; मैं अपनी नौकरी नहीं कर पाऊंगा. फिर हम लोग क्या खायेंगे? क्या पियेंगे? हमारा बच्चा कभी कॉलेज नहीं जा पायेगा, न सिविल सर्विस में काम कर पायेगा, न ही मिलिटरी स्कूल में पढ़ सकेगा। क्या तुम सच में अपने परमेश्वर के लिए हमारे बच्चे का पूरा भविष्य बरबाद कर दोगी?" उनकी ये बातें सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, साथ ही, भयंकर पीड़ा भी हो रही थी। अगर मैं अपनी आस्था पर अमल करती रही, तो मुझे नौकरी से निकाल दिया जाएगा, मेरे पति की नौकरी जा सकती है, हमारा बेटा कभी कॉलेज में दाखिला नहीं ले पायेगा। एक परिवार के रूप में हमारा जीवन, मेरे पति और बेटे का भविष्य, सब मुश्किल में पड़ जाएगा। यह हमारा परिवार बरबाद कर देगा, और सारी गलती मेरी होगी। फिर मैं उनका सामना कैसे करूँगी? मैं पूरी रात करवटें बदलती हुई बिस्तर पर पड़ी रही; पल भर के लिए भी मेरी आँख नहीं लगी। उस पल, मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की, परमेश्वर से मदद की विनती की; मार्गदर्शन करने, निगाह रखने, और मुझे रास्ता दिखाने का आग्रह किया।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में, यह अंश पढ़ा : "मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। इसे पढ़ने के बाद, मुझे लगा जैसे मेरे भीतर विशाल विस्तार खुल गया हो। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर हर चीज पर शासन करता है, इंसान का दिल और उसकी आत्मा पूरी तरह उसकी मुट्ठी में हैं, मेरे पति और बेटे का भाग्य और भविष्य भी उसके हाथ में है। मेरे पति की नौकरी रहना या जाना, मेरे बेटे को कॉलेज में दाखिला मिलना या न मिलना— क्या इसका अंतिम फैसला परमेश्वर नहीं करेगा? कोई भी इंसान इसका फैसला नहीं कर सकता। इसके अलावा, आस्था रखने का अर्थ जीवन में सही मार्ग पर चलना होता है, मैंने तो व्यवस्था के विरुद्ध कुछ गलत नहीं किया था। अगर इस मामले में मेरे परिवार को घसीटा गया, तो यह कम्युनिस्ट पार्टी की करतूत है। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि पार्टी दुष्ट है। एक बार यह समझ लेने के बाद, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, अपने पति और बेटे का भविष्य उसके हाथों सौंप दिया। प्रार्थना के बाद मैंने बहुत बेहतर महसूस किया। फिर खुद को संभाल कर मैंने अपने पति से कहा, "मनुष्य को परमेश्वर ने रचा है, उसमें विश्वास रखकर उसकी आराधना करना हमारे लिए सही है। मैं अपने परिवार को बचाए रखने के लिए अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती। यह परमेश्वर के साथ धोखा होगा। मैं परमेश्वर के विरुद्ध नहीं हो सकती, उसे दुख नहीं दे सकती। आप अब विश्वास नहीं रखते क्योंकि आप पार्टी से और नौकरी खोने से डरते हैं। यह आपकी पसंद है। लेकिन मुझे विश्वास है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, मैंने उसकी बहुत कृपा पाई है, सत्य का उसका पोषण पाया है। मैं कृतघ्न होकर उससे मुँह नहीं फेर सकती। इसके अलावा, परमेश्वर मनुष्य के भाग्य पर राज करता है, सब कुछ उसके हाथ में है। मुझे निकाला जाएगा या नहीं, आपकी नौकरी जाएगी या रहेगी, हमारे बेटे को कॉलेज में दाखिला मिलेगा या नहीं, यह सब परमेश्वर के हाथ में है, कोई भी इंसान इसका फैसला नहीं कर सकता।" इस बात से नाराज होकर कि मैं उनकी बात नहीं मान रही, मेरे पति ने ऊंची आवाज़ में कहा, "तुम चाहे जो कहो, मुझे कोई परवाह नहीं। तुम सभाओं में नहीं जा सकती। घर में ही अपनी आस्था पर अमल करो।" मैंने जवाब दिया, "सभाओं में गए बिना यह आस्था कैसे हुई? क्या सत्य हासिल करने का यह कोई तरीका है? सिर्फ नाम के लिए आस्था रखना गैर-विश्वासी होना है। हमारे परिवार के मामलों का फैसला आप कर सकते हैं, लेकिन आस्था के मामले में मैं आपकी बात नहीं मान सकती।" मेरा पक्का इरादा देखकर, वे पैर पटकते हुए, गुस्से से दरवाज़ा बंद कर बाहर चले गए।

उस शाम जब मैं एक सभा से लौटी, तो हमारा लिविंग रूम लोगों से भरा हुआ था। मेरे उम्रदराज पिता वहां बैठे हुए थे, मेरे चाचा, जीजा, बहन और मेरा भाई, सब मुझे घूर रहे थे। मुझे देखकर मेरे डैड बहुत गुस्सा हो गए, एक हाथ से खुद को सोफे पर संभालते हुए, दूसरा मेरी ओर दिखाते हुए बोले, "तू सभा में गई थी, है न? तूने ऐसा क्यों किया? पार्टी ईसाइयों को पागलों की तरह गिरफ्तार कर रही है! क्या तुझे गिरफ्तारी का डर नहीं है? तू गिरफ्तार हो गयी तो तेरे बेटे का क्या होगा? सबकी ज़िंदगी कैसे चलेगी? कल से, तू इस घर से बाहर नहीं जा सकती! मैं यहाँ रहकर तेरी निगरानी करूँगा!" मायूस दिखते हुए मेरे चाचा ने आह भरकर कहा, "अब चीन में ईसाइयों पर कार्रवाई बहुत गंभीर हो गई है। तेरे आस्था बनाए रखने से क्या फ़ायदा होगा? तू गिरफ़्तार हो गई तो इस परिवार के सब लोग फंस जाएंगे। क्या तू अपने परिवार के साथ सही व्यवहार नहीं कर सकती?" फिर आँखें फाड़कर मेरे भाई ने कहा, "पार्टी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को पूरी तरह से मिटा देना चाहती है। मेरी कार्य इकाई सभी कर्मचारियों के चाल-चलन की निगरानी कर रही है, सभी शक के घेरे में हैं। ऐसे में तू बाहर जाने की हिम्मत कैसे कर रही है? क्या तुझे डर नहीं लगता? गिरफ्तारी का डर? कल से, मैं काम पर नहीं जाऊंगा। मैं तुझ पर निगरानी करने के लिए यहीं रहूँगा।" फिर मेरे जीजा जी ने अपनी बात जोड़ी, "अपने हर काम में तुमने हमारे परिवार को हमेशा सबसे आगे रखा है। मैं तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ; मैंने तुम्हारी निष्ठा को हमेशा से सराहा है। लेकिन अब तुम एक बिल्कुल बदल गई हो। तुम हमारी बात क्यों नहीं मानती? खुद के बारे में सोचो न सोचो, कम-से-कम परिवार की तो सोचो! अगर तुम्हें कुछ हो गया तो इस कमरे में मौजूद सभी पर इसका असर होगा। हम तुम्हें हमारे पूरे परिवार को नष्ट नहीं करने दे सकते। कल से तुम जहां भी जाओगी, मैं अपनी कार में तुम्हारा पीछा करूँगा।" वे सब बार-बार यही सब बोलते रहे। यह सांस्कृतिक क्रांति में जनता के बीच भर्त्सना करने जैसा था। जैसी बातें हो रही थीं, उन्हें सुनकर मैंने सख्ती से कहा : "और कोई भी बात हो तो मैं आप सबकी बात सुनूँगी, लेकिन अपनी आस्था को लेकर मेरे विचार तय हैं, मैं आपका कहा नहीं मान सकती। सर्वशक्तिमान परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, और अंत के दिनों में उसने मनुष्य को बचाने के लिए सत्य व्यक्त किए हैं। यह जीवन में बस एक ही बार मिलने वाला मौक़ा है। आस्थाहीन इंसान जो सत्य स्वीकार नहीं करता, वह अंत के दिनों में महाविपत्ति में फँसकर ख़त्म हो जाएगा। मैंने आपके साथ सुसमाचार साझा किया है, आप जानते हैं कि आस्था एक अच्छी चीज़ है। तो आप विश्वास न रखकर पार्टी के पीछे चलते हुए मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? क्या ये सब सच में मेरी भलाई के लिए है? आप अच्छे-बुरे, गलत-सही का फर्क नहीं कर पाते। सिर्फ सीसीपी के पीछे चलते हैं, परमेश्वर का विरोध करते हैं। अगर आपने प्रायश्चित नहीं किया, तो आप नरक जाएंगे, उन्हीं के साथ दंडित होंगे।" उनके पास कहने को कुछ नहीं रहा। मेरे बूढ़े पिता अपने वादे के अनुसार मुझ पर निगरानी रखने के लिए रुक गए, बाकी सब लोग चले गए। अगली सुबह, मैं बाहर जाने के लिए अपनी बाइक निकाल रही थी, लेकिन मेरे डैड ने मुझे रोकने के लिए मेरी बाइक पकड़ ली। मेरा भाई भी हर दिन यह पक्का करने के लिए आने लगा कि मैं बाहर तो नहीं गयी। एक सुबह जब मैंने जाने की कोशिश की, तो वह एक स्टूल उठाकर मेरी पीठ पर मारने ही वाला था, लेकिन उसने गुस्से से उसे फर्श पर दे मारा, और उसके दो टुकड़े कर दिये। अपने परिवार को इस तरह पेश आते देखकर मुझे बहुत ज़्यादा निराशा हुई। ये सब कैसे प्रियजन हैं? हम एक बड़ा खुशहाल परिवार हुआ करते थे–जैसा होना चाहिए, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के दमन ने इन्हें उस मुकाम पर पहुंचा दिया जहां ये मुझसे दुश्मन जैसा बर्ताव कर रहे हैं। मेरा दिल कमजोर पड़ने लगा, मैंने सोचा, "ये भयावह दिन कम ख़त्म होंगे? अगर मैं सभाओं में जाना बंद कर दूँ, तो ये सब मुझसे इस तरह पेश नहीं आयेंगे।" उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतान की चाल में फंस रही हूँ। शैतान मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए मेरे स्नेह का फ़ायदा उठा रहा था। मैं जानती थी कि मुझे नहीं फँसना है। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसकी इच्छा को समझने का रास्ता दिखाने की विनती की ताकि मैं उसकी गवाही दे सकूँ।

एक सभा में, अगुआ को मेरी समस्या का समाधान करने वाला अंश मिला। "अभी जब लोगों को बचाया नहीं गया है, तब शैतान के द्वारा उनके जीवन में प्रायः हस्तक्षेप, और यहाँ तक कि उन्हें नियंत्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है शैतान के क़ैदी होते हैं, उन्हें कोई स्वतंत्रता नहीं होती, उन्हें शैतान द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान द्वारा उनका क़रीब से पीछा और उन पर क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कहने को भी कोई खुशी नहीं होती है, उनके पास कहने को भी सामान्य अस्तित्व का अधिकार नहीं होता, और इतना ही नहीं, उनके पास कहने को भी कोई गरिमा नहीं होती है। यदि तुम डटकर खड़े हो जाते हो और शैतान के साथ संग्राम करते हो, शैतान के साथ जीवन और मरण की लड़ाई लड़ने के लिए शस्त्रास्त्र के रूप में परमेश्वर में अपने विश्वास और अपनी आज्ञाकारिता, और परमेश्वर के भय का उपयोग करते हो, ऐसे कि तुम शैतान को पूरी तरह परास्त कर देते हो और उसे तुम्हें देखते ही दुम दबाने और भीतकातर बन जाने को मज़बूर कर देते हो, ताकि वह तुम्हारे विरुद्ध अपने आक्रमणों और आरोपों को पूरी तरह छोड़ दे—केवल तभी तुम बचाए जाओगे और स्वतंत्र हो पाओगे। यदि तुमने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ने का ठान लिया है, किंतु यदि तुम शैतान को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करने वाले शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित नहीं हो, तो तुम अब भी खतरे में होगे; समय बीतने के साथ, जब तुम शैतान द्वारा इतना प्रताड़ित कर दिए जाते हो कि तुममें रत्ती भर भी ताक़त नहीं बची है, तब भी तुम गवाही देने में असमर्थ हो, तुमने अब भी स्वयं को अपने विरुद्ध शैतान के आरोपों और हमलों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया है, तो तुम्हारे उद्धार की कम ही कोई आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तब भी तुम शैतान के शिकंजे में होगे, अपने आपको मुक्त करने में असमर्थ, और इस प्रकार तुम्हारे पास कभी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो, निहितार्थ यह है कि ऐसे लोग पूरी तरह शैतान की दासता में होंगे" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। उनकी संगति के बाद, मैं समझ गयी कि सीसीपी परमेश्वर के कार्य में बाधा पहुँचाने और गड़बड़ी पैदा करने की भरसक कोशिश कर रही थी, यहाँ तक कि मेरे परिवार को अंधाधुंध अफवाहों से भ्रमित कर रही थी, ताकि वे पार्टी की तरफ रहें, मेरी आस्था पर हमला कर उसका दमन करें। वह मुझे काबू में कर मेरा मार्ग बदलना चाहती थी, ताकि मैं परमेश्वर का अनुसरण न कर सकूँ, और उसके साथ दंडित होकर नरक में सडूँ। अगर मैं अपने परिवार की चिंता में शैतान का अनुसरण करूँ, अपनी आस्था पर अमल करना छोड़ दूँ, शैतान की चालों में फंस जाऊँ, तो शैतान मेरा हरण कर लेगा और मैं उद्धार का मौक़ा गँवा दूँगी। मेरे परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मेरा परिवार मुझसे दुश्मन जैसा बर्ताव कर रहा था, इसका अर्थ यह था कि वे बड़े लाल अजगर के अनुयाई और उसकी कठपुतलियाँ थे। मैं शैतान को जीतने नहीं दे सकती थी। इसलिए मुझे ज़रूरत थी कि परमेश्वर के सहारे रहूँ, गवाही दूँ और शैतान को हराऊँ। इसके बाद, मेरे परिवार ने तय कर लिया कि मैं हाथ से निकल गयी हूँ, और उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैंने अपना कर्तव्य निभाना जारी रखा।

2018 में अगस्त का महीना था। मुझे शहर से बाहर एक काम था। जब मैं घर लौटी, तो मेरे पति ने मुझसे कहा, "शाओयू, तुमने जिससे सुसमाचार साझा किया, उसकी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण तलाश हो रही थी। पुलिस ने मेरे दफ़्तर आकर सवाल पूछे। मेरे बॉस ने मुझसे पूछा कि क्या उसके साथ तुम्हारा और मेरा कोई संबंध है, क्या मुझे उसके ठिकाने का पता है। उसका पति हर दिन मुझे फोन कर उसके बारे में पूछता है, कहता है, तुमने उसे सुसमाचार सुनाया इसलिए वे अलग हो गए। मैं सारी रात तुम्हारी चिंता में सो ही नहीं पाया। मुझे डर है कि तुम गिरफ्तार हो जाओगी। फिर हमारे परिवार का क्या होगा? हमारा गुजारा कैसे होगा?" ये बातें सुनकर मैं भी बेचैन हो गयी। फिर, आँखों में आंसू भरकर उन्होंने कहा, "क्या तुम्हारे लिए परमेश्वर में विश्वास रखना बहुत ज़रूरी है? क्या यह तुम्हारे लिए इतना अहम है? तुम्हें अभी चुनना होगा। तुम परमेश्वर को चुनोगी या अपने परिवार को?" मैं बिल्कुल टूट गयी, उस पल दोनों में से किसी से भी दूर नहीं रह सकती थी। एक ओर मेरे पति थे, पिछले 20 साल से मैं जिनके साथ रही हूँ, और दूसरी ओर परमेश्वर था, जिसने मुझे जीवन दिया। मुझे समझ नहीं आया क्या कहूँ। मैंने जल्दी से परमेश्वर से मेरे हृदय की रक्षा करने की प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद, मैंने अपने पति से कहा, "अगर आप मुझे दोनों में से किसी एक को चुनने पर मजबूर कर रहे हैं, तो मैं परमेश्वर को चुनती हूँ।" उन्होंने कहा, "तुमने परमेश्वर को चुना है, तो हम तलाक ले लेंगे। अगर तुम मुझे चाहती हो तो तुम्हें अपनी आस्था छोड़नी होगी, ताकि हम खुशहाल जीवन जी सकें।" मैंने जवाब दिया, परमेश्वर ने मनुष्य को रचा, इसलिए मनुष्य को परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए। मैंने आस्था को चुना है, इसलिए मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। "आप आस्था न रखने के लिए आजाद हैं, मैं आपको मजबूर नहीं करूंगी, लेकिन आस्था रखने का चुनाव करना मेरी आजादी है। रही तलाक की बात, तो मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ।" यह सुनकर वे मुझसे आगे कुछ नहीं बोले।

जब सर्दियों की छुट्टी में हमारा बेटा घर लौटा, तो उसने मुझसे कहा, "डैड कहते हैं कि आपने परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ने से इनकार कर दिया है, इसी कारण से वे आपको तलाक दे रहे हैं। मैं नहीं चाहता कि आप दोनों तलाक लें, मैं चाहता हूँ कि हमारा परिवार साथ रहे।" यह सुनकर मेरा दिल टूट गया। मैंने असल तलाक के बारे में सोचा। अब हम तीनों साथ नहीं रहेंगे, खुशहाल परिवार नहीं होगा—मेरे बेटे के लिए बहुत मुश्किल होगा। अगर मैं अपनी आस्था पर अमल करती रहूँ, तो परिवार को साथ रखना संभव नहीं। यह मेरे लिए बहुत तकलीफ़देह था। फिर परमेश्वर के ये वचन मेरे मन में कौंधे। "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है, जब परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके लिए गवाही दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास दिलाया भले ऐसा लगे कि मेरे बेटे को एक भरा-पूरा खुशहाल परिवार चाहिए, लेकिन दरअसल यह मेरे लिए शैतान का प्रलोभन था। मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए शैतान मेरी भावनाओं के साथ खेल रहा था, लेकिन इसके द्वारा परमेश्वर मेरी आस्था की परीक्षा ले रहा था, देख रहा था मैं कितनी सच्ची हूँ, और क्या मैं परमेश्वर की ओर से गवाही दे सकती हूँ। अपनी खोज में, मैंने एक दूसरा अंश पढ़ा : "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शक्ति दी। मैं जान गयी कि सत्य के लिए कष्ट सहना सार्थक है। अगर मैं अपने परिवार के प्रति अपनी भावनाओं के चलते परमेश्वर को छोड़ दूँ, तो मेरा जीवन बेमानी है। मैं प्रतिष्ठा के बिना जियूंगी। मैंने सोचा, किस तरह से पार्टी ने मुझसे मेरी आस्था छुड़वाने के लिए मेरे पति और परिवार का इस्तेमाल किया। कुछ बार मैंने कमजोर भी महसूस किया, अपना कर्तव्य छोड़ देने के बारे में सोचा, शैतान के साथ समझौता कर अपने परिवार के साथ रहने के बारे में सोचा, लेकिन परमेश्वर मेरी शक्ति के रूप में हमेशा मेरे साथ था, अपने वचनों से मुझे प्रबुद्ध करते हुए, सत्य में जाने का मार्ग दिखा रहा था, सीसीपी के परमेश्वर-विरोधी सार को समझने में मेरी मदद की, ताकि वह मुझे गुमराह न कर सके। यही था परमेश्वर का प्रेम और उद्धार। मैं अपनी भावुकता के लिए परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती थी, बल्कि मुझे एक सार्थक जीवन जीने के लिए सत्य का अनुसरण करना था। इसलिए मैंने अपने बेटे से कहा, "तुम्हारे डैड तलाक इसलिए चाहते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि मेरी आस्था तुम सबके जीवन पर बुरा असर डालेगी। मैं तुम्हें इसमें नहीं घसीटना चाहती, लेकिन आस्था रखना जीवन का सही मार्ग है, मैं इसे नहीं छोड़ सकती। लेकिन तुम्हें मालूम होना चाहिए कि परिवार को तोड़नेवाली मैं नहीं—सीसीपी है।" उसने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।

कई दिन बाद, मेरे पति ने मुझे तलाक के कागजात दिये। 25 साल तक संजोई हुई हर चीज ख़त्म हो गयी, मेरा दिल रो पड़ा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं जानती हूँ यह आपकी अनुमति से हुआ है। मेरे दिल की देखभाल करो, मुझे शक्ति दो।" बाद में परमेश्वर के वचन मेरे मन मेंआए : "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं।" "जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। ... यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मेरे पति ने बार-बार मुझ पर पाबंदियाँ लगाईं, क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी गँवाने का डर था, मुझे विश्वास रखने से रोकने के लिए उन्होंने मेरे बेटे और मेरे परिवार को मेरे खिलाफ कर दिया। मुझे आश्वस्त न कर पाए तो उन्होंने तलाक लेना चाहा, मुझे परमेश्वर और परिवार के बीच चुनने को मजबूर किया। उन्होंने अपने निजी हितों को सुरक्षित रखने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी को चुना। उनका रास्ता तबाही का था। मैंने परमेश्वर का अनुसरण करना, सत्य हासिल करना चुना, जोकि स्वर्ग के राज्य का रास्ता है। हम दो अलग रास्तों पर थे। इस तरह जीते हुए—हम किसी भी हाल में सुखी वैवाहिक जीवन बसर नहीं कर सकते थे। सोचती हूँ तो लगता है तलाक सही चीज़ थी, जो हम दोनों को आजाद कर देती। अब उन्हें मेरे कारण तकलीफ होने का डर नहीं था, मैं भी अपने कर्तव्य पर ध्यान दे सकती थी। मैंने तलाक के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिये।

इस पूरे दौरान मैं सुसमाचार के काम में लगी रही हूँ, हालांकि चीन में आस्था रखने के लिए हमें अभी भी सताया जाता है, और हमारे सामने हमेशा गिरफ्तार होने या अपनी जान गँवाने का खतरा बना रहता है, फिर भी मुझे कभी एक बार भी इसे चुनने को लेकर पछतावा नहीं हुआ। मैं अंत तक, सुसमाचार फैलाने, परमेश्वर की गवाही देने और उसका अनुसरण करने का काम करती रहूँगी!

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