परमेश्वर के वचन मेरी शक्ति है

29 दिसम्बर, 2019

लेखिका जिंगनियाँ, कनाडा

मैंने बचपन से ही प्रभु में मेरे परिवार के विश्वास का अनुसरण किया है, अक्सर बाइबल को पढ़ा है और सेवाओं में हिस्सा लिया है। मैंने शादी के बाद मेरी सास को प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाया और तब से उन्होंने कभी अपना आपा नहीं खोया, जब चीज़ें पूरी तरह से उनकी मर्जी से होने और चलने लगीं, जैसा कि पहले होता था। हमारे परिवार के रिश्ते सुधरने लगे। अपनी माँ में आये इस बदलाव को देखकर, मेरे पति ने भी 2015 से प्रभु में विश्वास करना शुरू कर दिया और वे हर सप्ताह कलीसिया जाने लगे। प्रभु के सुसमाचार को स्वीकार करने के बाद मेरे परिवार का जीवन सुकून से गुजरने लगा। जब मैंने ऐसा देखा तो मैं जानती थी कि यह प्रभु का अनुग्रह था—मैंने अपने दिल की गहराइयों से प्रभु को धन्यवाद दिया।

फरवरी 2017 में एक दिन जब मैं काम पर थी, एक महिला ग्राहक मुझे देखकर काफ़ी उत्साहित हो गई। उन्होंने मुझे एक तरफ़ खींचते हुए कहा, "आप काफ़ी हद तक मेरी एक सहेली की तरह लगती हैं। क्या मैं उससे आपका परिचय करा सकती हूँ? वह हाल ही में कनाडा आई है और शायद ही किसी को जानती है। क्या आप उससे मिलना चाहेंगी और अगर आपके पास थोड़ा समय हो तो उससे बात करना चाहेंगी?" यह सुनकर मैं वाकई बहुत हैरान थी और मैंने सोचा: क्या ऐसा भी हो सकता है? क्या उसकी सहेली वाकई बिलकुल मेरी तरह दिखती है? लेकिन मुझे एहसास हुआ कि प्रभु की उदार इच्छा हर चीज़ में छिपी है और प्यार से दूसरों की मदद करना प्रभु के उपदेशों में से एक है, इसलिये मैंने उनके अनुरोध को मान लिया। कुछ दिनों के बाद, मैं उनकी सहेली शाओ हान से मिली, जो वाकई बिलकुल मेरी तरह दिख रही थी; हमें देखने वाले यही पूछते कि क्या हम दोनों जुड़वां बहनें हैं। मुझे नहीं पता कि ऐसा इसलिये था क्योंकि हम बिलकुल एक जैसे दिखते थे या क्योंकि इन चीज़ों के पीछे प्रभु की व्यवस्थाएं थीं, लेकिन जब मैंने उसे देखा, तो तुरंत अपने आपको उसके बहुत करीब महसूस किया। हम सिर्फ़ कुछ ही बार मिले और बहनों की तरह बन गये, जो किसी भी चीज़ के बारे में बेधड़क बातें कर सकती थीं। मेरे लिये सबसे हैरानी की बात यह थी कि शाओ हान के माध्यम से, मैंने अंत के दिनों में लौटकर आये प्रभु यीशु का सुसमाचार सुना था।

एक दिन शाओ हान मुझे अपनी आंटी के घर ले गईं, जहां उनकी आंटी ने हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया। उन्होंने अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा बोले गये वचन हमें पढ़कर सुनाये और आदम एवं हव्वा को बनाने में परमेश्वर की इच्छा के बारे में हमसे सहभागिता की। साथ ही, उन्होंने परमेश्वर के उस समय के विचारों और इरादों के बारे में भी बताया जब उन्होंने संदूक का निर्माण करने के लिए नूह को बुलाया था, और कैसे नूह के ज़माने के लोगों को नष्ट करने के बाद परमेश्वर के हृदय में पीड़ा हुई थी, आदि आदि। उन्होंने कहा कि इन सभी रहस्यों को अंत के दिनों के परमेश्वर के वचनों में प्रकट किया गया है, अन्यथा कोई भी उन्हें समझ नहीं पाता। मुझे उन पर विश्वास था, क्योंकि सिर्फ़ परमेश्वर ही अपने हर कार्य के पीछे की मंशा को समझा सकता था। अगर परमेश्वर निजी तौर पर वचन बोलने और कार्य करने नहीं आया होता, तो भला और कौन परमेश्वर के विचारों और इरादों को पूरी तरह से समझा सकता था? मैं परमेश्वर के वचनों की ओर पूरी तरह से आकर्षित थी और मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की गंभीरता से जांच-पड़ताल करने का फैसला कर लिया। इसकी जांच करते हुए एक अवधि बीत जाने पर, मेरे मन में कई सवाल पैदा हो गए जिन्हें मैं बाइबल पढ़ते हुए कभी समझ नहीं पाई थी। अब शाओ हान की आंटी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के आधार पर इन सवालों के जवाब मुझे दिये—ये जवाब बहुत विस्तार से दिये गए थे, जो बहुत ही स्पष्ट थे और मेरी समझ में आ गये। परमेश्वर के ज़्यादा से ज़्यादा वचनों को पढ़ने के बाद, मेरे दिल की उलझन धीरे-धीरे दूर हो गई और मुझे यह समझ में आ गया कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने वचनों के माध्यम से न्याय का कार्य करता है, जिससे बाइबल की यह भविष्यवाणी पूरी होती है: "पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। परमेश्वर के कार्य का यह चरण प्रभु यीशु के कार्य का विस्तार और उसकी गहराई है, यह मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिये अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है। एक समयावधि तक जांच-पड़ताल करने के बाद, मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आये प्रभु यीशु हैं; मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को खुशी से स्वीकार कर लिया और अपने भाई-बहनों के साथ सभाओं में हिस्सा लेने लगी।

तीन महीनों से कुछ ज़्यादा समय के बाद, एक दिन सुबह मैं हमेशा की तरह अन्य बहनों के साथ सभा कर रही थी, तभी अचानक मेरे मोबाइल फ़ोन पर बीप की आवाज़ आने लगी। फ़ोन पर मैंने एक सूचना देखी कि कोई मेरे आईफ़ोन का इस्तेमाल करके मेरी जगह का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। मैं बहुत हैरान थी और मुझे नहीं पता था कि क्या चल रहा है, लेकिन इसके फ़ौरन बाद मेरे पति ने एक वीचैट मैसेज भेजकर पूछा, "तुम कहाँ हो?" मैंने संदेश को देखा तो थोड़ी झिझक महसूस हुई; मुझे याद आया कि करीब एक महीने पहले कलीसिया की सेवा से लौटने के बाद, मेरे पति ने मुझे कहा था कि पादरी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में कई नकारात्मक बातें कही थी, उन्होंने विश्वासियों को अपनी सुरक्षा खुद करने और चमकती पूर्वी बिजली के लोगों के संपर्क में बिलकुल नहीं आने की चेतावनी दी थी। उस समय, मुझे भय था कि कहीं पादरी और एल्डर ने मेरे पति को गुमराह न कर दिया हो और उनके द्वारा फ़ैलायी गई अफ़वाहों ने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के ख़िलाफ़ न कर दिया हो। मैं उनको सुसमाचार सुनाने से पहले थोड़ा इंतज़ार करना चाहती थी, जब तक कि मैं कुछ और सत्यों को न समझ लूं और साफ़ तौर पर अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की गवाह न बन जाऊँ। इसलिये मैंने कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बहनों के साथ मेरी सभाओं के बारे में उन्हें बताने की हिम्मत नहीं की। इस बात को ध्यान में रखकर, मैंने उनको जवाब दिया, "मैं अपने काम पर जा रही हूँ।" लेकिन जब मैंने दोबारा इस बारे में सोचा तो मुझे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, "वे इस समय कभी मुझे मैसेज नहीं भेजते हैं। अब वे अचानक ऐसा क्यों पूछ रहे हैं कि आज मैं कहाँ हूँ? क्या चल रहा है?"

उस दिन शाम को जब मैं काम से घर लौटी, तो मैंने देखा कि मेरे पति गुस्से में बिस्तर पर बैठे हुए थे। उन्हें परमेश्वर के वचनों की वह पुस्तक मिल गई थी जिसे मैंने घर में छिपा कर रखा था, अब उन्होंने इसे डेस्क पर रखा हुआ था। यह नज़ारा देखकर मुझे वाकई झटका लगा, लेकिन इससे पहले कि मुझे कुछ भी सोचने का समय मिलता, मेरे पति ने मुझसे पूछा, "तुमने कब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में ढेर सारी नकारात्मक चीज़ें ऑनलाइन उपलब्ध हैं, क्या तुम्हें नहीं पता? तुमने आज मुझसे झूठ बोला। आज सुबह तुम अपने काम पर नहीं जा रही थी। तुम कहाँ थी?" मैंने कुछ नाराज़गी भरे अंदाज़ में जवाब दिया, "आज जब मेरा फ़ोन बज रहा था तो आप ही मेरा पता लगाने की कोशिश कर रहे थे!" उन्होंने कहा, "आज सुबह काम के दौरान थोड़ा अवकाश मिलने पर मैं यह जानना चाहता था कि तुम कहाँ हो, इसलिये मैंने तुम्हारी जगह की जानकारी देखी, तब मुझे पता चला कि तुम वहाँ नहीं थी जहां होने के बारे में तुमने मुझे बताया था।" उन्होंने अपना लहज़ा नरम करते हुए आगे कहा, "चीनी सरकार ने ऑनलाइन कहा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों में पुरुषों और महिलाओं के बीच की सीमाएं साफ़ तौर पर बनाकर नहीं रखी जाती, और कई तरह की अन्य नकारात्मक बातें भी हैं। क्या तुम अब उनसे संपर्क करना बंद करोगी? तुम्हारे लिये बेहतर यही होगा कि तुम बस कलीसिया की सेवाओं में ध्यान दो। मैं हर हफ़्ते तुम्हारे साथ जा सकता हूँ। तुम उन लोगों के साथ कोई संबंध क्यों रखती हो?" ऐसा कहने के बाद उन्होंने ऑनलाइन जाकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में ढेर सारी नकारात्मक जानकारी निकाली और मुझे पढ़ने के लिये कहा। इन निराधार अफ़वाहों को पढ़ने के बाद, मैंने गुस्से से कहा, "इन लोगों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के साथ कभी कोई संबंध नहीं रहा। वे इसके बारे में अनाप-शनाप बातें क्यों कर रहे हैं? यह पूरी तरह से आधारहीन है, यह कोरी अफ़वाह है। ये सभी झूठ और अफ़वाहें हैं और इनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है! इन पिछले कुछ महीनों में, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों के आस-पास रही हूँ और मैंने यही देखा है कि उनका पहनावा साधारण और सौम्य है, वे सम्मानजनक तरीके से बोलते और व्यवहार करते हैं। वहां भाई-बहनों के बीच निश्चित रूप से सीमाएं हैं और उनकी आपसी बातचीत सिद्धांतों के दायरे में होती है। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी अफ़वाहें सीसीपी सरकार और पादरी एवं एल्डर फ़ैला रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा जारी, राज्य के युग की प्रशासनिक आज्ञाओं में से एक यह कहता है, 'मनुष्य का स्वभाव भ्रष्ट है और इसके अतिरिक्त, उसमें भावनाएँ हैं। अपने आप में, परमेश्वर की सेवा करते समय विपरीत लिंग के दो सदस्यों को एक साथ मिलकर काम करना निषिद्ध है। जो भी ऐसा करते हुए पाए जाते हैं, उन्हें, बिना किसी अपवाद के, निष्कासित कर दिया जाएगा—किसी को भी छूट नहीं है' ("वचन देह में प्रकट होता है" में "दस प्रशासनिक आज्ञाएँ जिनका परमेश्वर के चयनित लोगों द्वारा राज्य के युग में पालन अवश्य किया जाना चाहिए")। परमेश्वर पवित्र और न्यायी है, वह अनैतिक व्यवहार से ज़्यादा किसी भी चीज़ से घृणा नहीं करता। इसलिये परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों के लिये सख्त प्रशासनिक आज्ञाएं जारी की हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहन परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का सख्ती से पालन करते हैं और कोई भी उनका उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करता। इसे मैंने निजी तौर पर देखा और अनुभव किया है। सीसीपी सरकार और पादरियों एवं एल्डर द्वारा फ़ैलायी गई यह अफ़वाह कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के पुरुषों और महिलाओं के बीच की सीमाएं स्पष्ट नहीं हैं, यह झूठ और बदनामी के अलावा कुछ भी नहीं है!" लेकिन मैंने जो कुछ भी कहा, मेरे पति ने एक भी बात नहीं सुनी और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मैं अब से भाई-बहनों के साथ सभाओं में हिस्सा लेने न जाऊं। यह देखकर कि वे कितने जिद्दी बन रहे हैं, मुझे थोड़ी निराशा महसूस होने लगी, क्योंकि इस नई जगह में एकमात्र व्यक्ति जो मेरे करीब था वह मेरे पति ही थे और मैं उनसे लड़ना नहीं चाहती थी। सबसे बड़ी बात, मुझे इस बात डर था कि वे चीन में मेरे परिवार को इस बारे में बता देंगे और पादरी मेरे लिए ज़्यादा परेशानियां खड़ी करेगा। इसलिये, जब उन्होंने इस पर जोर दिया कि मैं सभाओं में न जाऊं, मैं सहमत हो गई, लेकिन मैंने कहा कि मैं परमेश्वर के वचनों को घर में ही पढ़ना चाहती हूँ, तो वे सहमत हो गये। इस तरह, उस समय के लिए तूफ़ान टल गया।

चूंकि मैं घर में अकेले रहकर परमेश्वर के वचनों को पढ़ रही थी, ऐसी कई बातें थीं जो मैं समझ नहीं पाई। इसलिये, जब मेरे पति काम पर थे, तब मैंने अपने मोबाइल फ़ोन पर अपनी एक बहन से संपर्क किया, जिसके बाद मैं बहनों के साथ सभाओं में हिस्सा लेने लगी। जब मैंने अपनी बहनों को बताया कि कैसे मेरे पति ने मुझे सभाओं में जाने से रोक दिया था, तो उनमें से एक बहन ने परमेश्वर के वचनों का यह अंश मुझे पढ़कर सुनाया, "मनुष्य के भीतर परमेश्वर के द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य के चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो कि यह मानव व्यवस्थाओं के द्वारा, या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किन्तु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाला सब कुछ, शैतान के द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षा करता है कि परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में वे अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था: पर्दे के पीछे, शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और किस प्रकार उसकी लिए गवाही में तुम्हें अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है जब परमेश्वर चाहता है तुम उसके लिए एक गवाही दो" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है")। मेरी बहन ने सहभागिता करते हुए कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने के फ़ौरन बाद जब हम इस तरह की चीज़ों का सामना करते हैं, तो बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि हमारा परिवार हमारे मार्ग के बीच खड़ा है और हमें सभाओं में जाने से रोक रहा है, लेकिन जब हम इसे परमेश्वर के वचनों के माध्यम से देखते हैं, तो इसके पीछे शैतान का अवरोध होता है: यह एक आध्यात्मिक लड़ाई है। परमेश्वर हमें बचाना चाहता है, लेकिन शैतान इतनी आसानी से हार नहीं मानना चाहता। इसलिये, वह हमें रोकने के लिए परमेश्वर के पीछे पड़ जाता है और हमें परमेश्वर के समक्ष आने से रोकने के लिए हमारे आस-पास के लोगों का इस्तेमाल करता है। शैतान का मकसद होता है परमेश्वर के साथ हमारे सही संबंध को बिगाड़ना, हमें निराश और कमज़ोर महसूस कराना, ताकि हम परमेश्वर से दूरी बना सकें और उसे धोखा दे सकें और अंततः उसके अधिकार क्षेत्र में लौट आएं और परमेश्वर द्वारा बचाये जाने का हमारा अवसर गँवा दें। इसलिये हमें इस पर विचार करना, चीज़ों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखना, शैतान की चालबाजियों को समझना, परमेश्वर की प्रार्थना करना और उन पर भरोसा करना सीखना चाहिए, साथ ही, हमारे विश्वास में हमें परमेश्वर की गतिविधियों को समझना चाहिए।" परमेश्वर के वचनों और बहन की सहभागिता को सुनने के बाद मुझे यह समझ में आया, "मेरे पति परमेश्वर पर मेरे विश्वास और अनुसरण के मार्ग में आ रहे हैं क्योंकि शैतान मुझे रोकने के लिये उनका इस्तेमाल कर रहा है, ताकि मैं उसे धोखा दे दूं—यह बिलकुल उसी परीक्षा के समान है जिससे अय्यूब को गुज़रना पड़ा था। शैतान ने अय्यूब को प्रलोभन देने के लिये अपने हर संभव तरीका आज़माया था। इससे उसे अपनी अकूत संपत्ति और मवेशियों एवं भेड़ों का नुकसान उठाना पड़ा, उसका शरीर भयानक घावों से भर गया। इतना ही नहीं, अय्यूब को रोकने और उस पर हमला करने के लिये उसके दोस्तों तक का इस्तेमाल किया गया। शैतान ने अय्यूब को परमेश्वर का त्याग करने का प्रलोभन देने के लिए उसकी पत्नी का भी इस्तेमाल किया। शैतान ने अहंकारपूर्वक परमेश्वर में अय्यूब के विश्वास को तोड़ने और उसके द्वारा परमेश्वर को इनकार और अस्वीकार कराये जाने की पूरी कोशिश की। शैतान वाकई दुष्ट और निंदनीय है!" इन विचारों से मेरे दिल में शैतान के लिए घृणा भर गई, लेकिन फिर मैंने सोचा, "हालांकि शैतान ने अय्यूब को पागलों की तरह सताया था, लेकिन उसने परमेश्वर की अनुमति के बिना कभी मृत्यु जैसा नुकसान पहुंचाने की हिम्मत नहीं की,तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि जिन हालातों से मैं गुज़र रही हूँ, वह भी परमेश्वर के हाथों में है? जब तक मैं सचमुच परमेश्वर की ओर देखती हूँ और उस पर भरोसा करती हूँ, वे निश्चित रूप से शैतान के प्रलोभनों से बचने में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।" इस विचार ने परमेश्वर में मेरे विश्वास को और बढ़ा दिया। मैंने बहनों के संपर्क में बने रहने, सभाओं में हिस्सा लेते रहने और अपने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से सहभागिता करने का संकल्प लिया।

एक रात मैंने अपना फ़ोन टेबल पर रखा था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे पति उसे उठाकर देखने लगेंगे—उन्होंने बहन के साथ मेरी चैट के रिकॉर्ड देखे। उन्होंने बहुत गुस्से से मुझसे कहा, "तुम अब भी उनके संपर्क में बनी हुई हो और तुम एक बार में दो घंटे तक उनसे चैट करती हो।" फिर उन्होंने ऑनलाइन और अधिक नकारात्मक अफ़वाहों से मुझ पर हमला किया, फिर उन्होंने कई साधनों से मेरी निगरानी करना शुरू कर दिया। अब मैं अपने फ़ोन पर बहन से संपर्क नहीं कर सकती थी। इस तरह एक बार फिर मेरा कलीसिया का जीवन छूट गया और बहन से मुझे कोई मदद भी नहीं मिल पाई। इसके बाद, मेरे पति ने आये दिन ऑनलाइन मिलने वाली अफ़वाहें मुझे भेजनी शुरू कर दी, वे मुझे परेशान करने लगे और भाई-बहनों के साथ कोई संपर्क करने से भी मुझे रोक दिया। पति के दबावों और बाधाओं का सामना करते हुए, मैं पूरी तरह लाचार हो गई, मैं फिर से कमज़ोर और बेबस महसूस करने लगी। मैंने सोचा, "मेरे पति सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरे विश्वास करने का इतना अधिक विरोध क्यों करते हैं? मैं सिर्फ़ परमेश्वर में विश्वास करना चाहती हूँ, ऐसा करना इतना मुश्किल क्यों है? इस तरह परेशान हुए बिना भला मैं कब अपने विश्वास का अभ्यास कर पाऊँगी? क्या अब से यही मेरा जीवन होगा?" इस विचार के साथ, मैं अपनी आँखों से बहते आंसुओं को रोक न पाई—मैंने अपने आप को खास तौर पर अकेला और असहाय महसूस किया। मुझे नहीं पता कि अब मैं यहाँ से कहाँ जाऊं। मैं तो यह भी नहीं गिन सकती थी कि इस बात पर मैं कितनी बार रोई। अपनी दयनीय स्थिति में, मैं बस परमेश्वर से यही प्रार्थना कर सकती थी, "परमेश्वर! मुझे नहीं पता कि पति की रुकावटों के सामने मैं क्या करूँ या मैं इस स्थिति से कैसे बाहर निकलूँ, लेकिन मुझे विश्वास है कि स्थिति चाहे जैसी भी हो, इसमें आपकी उदार इच्छा निहित है। कृपा करके आप मेरा मार्गदर्शन करें और मुझे इस स्थिति से बाहर निकलने का विश्वास प्रदान करें।"

जैसे ही मैंने अपनी प्रार्थना पूरी की, चमत्कारिक ढंग से बहन की ओर से भेजे परमेश्वर के वचन के ये दो अंश मुझे मिल गये, "शैतान परमेश्वर के साथ युद्ध में है, उसके पीछे-पीछे चलता रहता है। उसका उद्देश्य परमेश्वर के समस्त कार्य को नष्ट करना है जिसे परमेश्वर करना चाहता है, उन लोगों पर कब्‍ज़ा एवं नियन्त्रण करना है जिन्हें परमेश्वर चाहता है, उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है जिन्हें परमेश्वर चाहता है। यदि उन्हें मिटाया नहीं जाता है, तो वे शैतान के द्वारा उपयोग होने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। "तुम में हिम्मत और सिद्धांत होने चाहिए जब तुम उन रिश्तेदारों का सामना करो जो विश्वास नहीं करते। परन्तु मेरी वजह से तुम किसी भी अन्धकार की शक्ति के अधीन ना होओगे। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के षडयंत्रों को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो और मैं तुम्हें आराम और शान्ति दूंगा और तुम्हारे हृदय में आनंद दूंगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 10")। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करके, मुझे शैतान के दुष्ट इरादों की थोड़ी समझ आई। परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिये कार्य करता है जबकि शैतान परमेश्वर के कार्य को बिगाड़ने में अपना दिमाग लगाता है और लोगों के लिये परमेश्वर से होड़ लगाता है, ताकि वह लोगों को गुमराह करने और धोखा देने के लिये इंटरनेट पर सभी तरह की अफ़वाहें फ़ैला सके। वह हमें रोकने और परेशान करने के लिये हमारे परिवारों का इस्तेमाल करता है, ताकि हम उद्धार पाने के लिये परमेश्वर के समक्ष नहीं आ सकें। मेरे पति शैतान द्वारा फ़ैलायी अफ़वाहों के धोखे में आकर अँधे हो गए थे क्योंकि वे सत्य को नहीं जानते थे। यही वह एकमात्र कारण था कि वे जिद्दी बनकर मेरे विश्वास के मार्ग में खड़े थे। शैतान ने मुझे बेड़ियों में बाँधने और नुकसान पहुंचाने के लिए मेरी अपनी कमजोरियों का फ़ायदा उठाया था। शैतान जानता था कि मेरी सबसे बड़ी कमजोरी मेरी भावनाएं हैं, इसलिये वह मेरे पति के प्रति मेरी भावनाओं के माध्यम से मुझ पर हमला कर रहा था। वह शारीरिक जुड़ावों को लेकर मेरी चिंता और अपने पारिवारिक सद्भाव को सुरक्षित रखने की मेरी इच्छा के कारण मुझसे परमेश्वर का अनुसरण करना छुड़वाने की कोशिश कर रहा था, ताकि इस तरह में सच्चे मार्ग को छोड़ दूं और परमेश्वर का उद्धार पाने का अपना अवसर गँवा दूं। शैतान सचमुच निंदनीय है! साथ ही साथ, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर अपने वचनों से मुझे राहत दे रहे हैं, शैतान की अंधेरी ताकतों के सामने मुझे आत्मसमर्पण नहीं करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके अलावा, परमेश्वर मुझे अभ्यास का मार्ग भी दे रहे हैं। परमेश्वर ने कहा, "पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो।" ऐसे माहौल में भला मैं कैसे परमेश्वर के साथ सहयोग करूं और कैसे सभाओं में जाने के लिए उनकी बुद्धि का इस्तेमाल करूं? मुझे याद आया कि पिछली बार जब मेरे पति ने मुझ पर नज़र रखने के लिये मेरे फ़ोन का इस्तेमाल किया था, ताकि मैं सभाओं के लिये अपनी बहन के घर न जा सकूं, और मैं उनसे मिलने के लिये भी अपने फ़ोन का इस्तेमाल नहीं कर सकती थी, लेकिन मैं मॉल में बैठने वाली किसी जगह पर जाकर उनसे मिल सकती थी। अगर मेरे पति ने फिर से पूछा तो मैं कह सकती हूँ कि मैं शॉपिंग के लिये जा रही थी। इस तरह, परमेश्वर के मार्गदर्शन से, मैं दोबारा उनसे मिल सकती थी। जब उन्होंने मेरी परेशानियों को समझा, तो उन्होंने मेरे साथ परमेश्वर के वचनों की सहभागिता की। उन्होंने मुझे सांत्वना दी और मेरा हौसला बढ़ाया। सत्य को समझने के बाद, मेरी निराशा तत्काल दूर हो गई।

एक दिन, जब मैं काम से घर लौटी और परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहती थी; मैंने हर एक दराज़ और आलमारी को खंगाल दिया, जहां मैं आम तौर पर अपनी पुस्तकें रखा करती थी, लेकिन कुछ भी नहीं मिला। मैं बहुत अधिक परेशान हो गई और सोचा, "अच्छा, तो ये बात है। मेरे पति ने मेरी पुस्तकें कहीं फ़ेंक दी होगी। लेकिन वे बड़े ही सचेत इंसान हैं, इसलिये उन्होंने ऐसी जगह पर तो नहीं फ़ेंका होगा जहां से मैं ढूंढ सकूं। अगर उन्होंने अपने ऑफ़िस में छिपाया होगा, तो मैं कभी ढूंढ नहीं पाउंगी।" इस सोच ने मझे असहाय कर दिया और मुझे नहीं पता था कि अब मैं क्या करूं।

कुछ दिनों बाद, मेरे पति की ड्राइविंग लाइसेंस की परीक्षा के लिये जब मैं उनके साथ गई तो एक बहन को वहां पर देखा। मैंने चोरी-छिपे उन्हें बताया कि परमेश्वर के वचनों की मेरी पुस्तक गायब हो गई थी। उन्होंने मुझे और अधिक प्रार्थना करने, परमेश्वर पर भरोसा करने और एक बार फिर से अच्छी तरह खोजने के लिए कहा। उन्होंने मुझसे कहा, परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन और नियंत्रण करता है, इसलिये मेरे पति ने दरअसल उस पुस्तक को परमेश्वर के हाथों में फ़ेंक दिया होगा, मुझे अपनी कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाकर तुरंत कोई फ़ैसला नहीं करना चाहिए। घर लौटने के बाद मैंने इसके बारे में एक और बहन को मैसेज किया, उन्होंने भी मुझे वही बात बतायी। दो अलग-अलग बहनों से एक ही सहभागिता मिलने पर, मुझे यकीन हो गया कि इसके पीछे परमेश्वर के नेक इरादे होंगे। क्या परमेश्वर मुझे याद दिलाने के लिए बहनों का इस्तेमाल कर रहा है? तब मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी चीज़ों और घटनाओं पर हावी है! जब तक हमारे दिल आशा से हर वक्त उसकी ओर देखते हैं और हम आत्मा में प्रवेश करते हैं और उसके साथ सहयोग करते हैं, तब तक वह हमें उन सभी चीज़ों को दिखाएगा जिन्हें हम चाहते हैं और उसकी इच्छा का हमारे सामने प्रकट होना निश्चित है; तब हमारे दिल आनंद और शांति में होंगे, और पूर्ण स्पष्टता के साथ स्थिर होंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 7")। परमेश्वर के वचनों से मैं यह समझ गई कि परमेश्वर हमेशा आस-पास मौजूद हैं, ताकि लोग उनके सामने झुककर मुसीबत के समय मदद मांग सकें। जब हम परेशानियों का सामना करते हैं और हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचता है, तो परमेश्वर को सच्चे दिल से याद करने पर वह हमारा प्रबोधन और मार्गदर्शन करता है, हमारी परेशानियों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन के लिए उनका धन्यवाद, परमेश्वर पर मेरा विश्वास एक बार फिर मजबूत हो गया था और मुझे अभ्यास का मार्ग मिल गया था। मैं यह भी समझ गई कि जहां तक परमेश्वर के वचनों की मेरी पुस्तक के खो जाने की बात है, अगर मैं सिर्फ़ अपने ही प्रयासों पर भरोसा करती रही तो कभी भी उन्हें ढूंढ नहीं पाउंगी। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और जब मैं परमेश्वर पर भरोसा करके उसकी ओर देखूंगी और फिर पुस्तक को खोजने के लिये एक व्यावहारिक तरीके से उसके साथ सहयोग करूंगी, तो मेरा यकीन था कि परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन करेगा और मेरी मदद करेगा। इसलिये, मैंने परमेश्वर के समक्ष आकर प्रार्थना की, "परमेश्वर! मैं आपके वचनों की मेरी पुस्तक नहीं ढूंढ पा रही हूँ। सबसे पहले, मैंने यह अंदाज़ा लगाने के लिए कि असल में क्या हुआ होगा, मेरी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा किया। मैंने आपको सबसे ऊपर नहीं रखा, मैंने यह नहीं समझा कि सब कुछ आपके नियंत्रण में है। अब मैं आपकी ओर देखना चाहती हूँ और इस मामले को आपके हाथों में सौंपना चाहती हूँ, और फिर मेरी अगली खोज में आपके साथ सहयोग करना चाहती हूँ। पुस्तक मुझे मिलेगी या नहीं, यह आपकी अनुमति से होगा। मुझे आपका मार्गदर्शन चाहिये।"

प्रार्थना करने के बाद, अचानक मेरी इच्छा हुई कि भंडारण कक्ष में जाकर जूतियों की एक जोड़ी उठा लाऊं। जब मैं उन्हें उठाने के लिये घुटनों के बल झुकी, तो हैरान रह गई। मुझे एक सफ़ेद रंग का बैग दिखा और इसी के साथ अचानक एक स्पष्ट सोच मेरे मन में उभरी: परमेश्वर के वचनों की पुस्तक इस बैग में है। मैंने इसे उठाया और देखा, तो यह बात सही थी! हैरानी और खुशी के मिले-जुले भावों के साथ, मैं चिल्ला उठी, "परमेश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद! परमेश्वर, आपका धन्यवाद!" तब मुझे यह एहसास हुआ कि पुस्तकों को ढूंढने में परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। मैंने वाकई देखा कि हर चीज़ परमेश्वर की सत्ता के अधीन है, परमेश्वर लोगों के सोच और विचारों को भी व्यवस्थित करता है। जब हम परमेश्वर के आगे झुक जाते हैं और उनकी ओर देखते हैं, तो कुछ भी असंभव नहीं होता। मैंने पुस्तकों को बेडरूम में वापस लाने में एक पल भी नहीं गंवाया और उन्हें सावधानी से अपने दराज़ में रख दिया। उस दिन शाम को जब मेरे पति वापस लौटे, तो उन्होंने देखा कि मुझे परमेश्वर के वचनों की पुस्तक मिल गई थी जिन्हें उन्होंने भंडारण कक्ष में छिपाकर रखा था। उन्होंने मुझसे वे पुस्तकें सौंप देने देने की मांग की। इस बार, मैंने वाकई परमेश्वर पर भरोसा किया और उनसे मुझे आत्मविश्वास और शक्ति देने के लिये कहा। मैंने अब उनसे समझौता करने से इनकार कर दिया। मेरे दृढ़-संकल्प को देखकर, उन्होंने मुझ पर और दबाव नहीं डाला।

बाद में बहन ने सिर्फ़ उपदेश सुनने के लिये मुझे एक मोबाइल फ़ोन दिया, जिस पर परमेश्वर के ढेर सारे वचन डाउनलोड किये हुए थे; इसका उद्देश्य मेरे लिये सभाओं में हिस्सा लेने और परमेश्वर की भक्ति करने को आसान बनाना था। एक बार जब मैं अपने बैगों को अदल-बदलकर इस्तेमाल कर रही थी, मैंने असावधानी से उस फ़ोन को घर पर ही छोड़ दिया और मेरे पति को पता चल गया कि मैं फिर से सभाओं में जा रही हूँ। उन्होंने मुझसे यह जानने के लिये मैसेज किया, "तुम क्यों अभी तक उनके संपर्क में बनी हो? तुम चोरी-छिपे सभाओं में क्यों जाती हो?" इन मैसेजों को देखकर मुझे गुस्सा आया और चिंता भी हुई, लेकिन फिर पिछले कुछ दिनों के अनुभव मुझे याद आ गये, कैसे हर बार मेरे मार्ग के बीच आ गये या मुझे दबाने की कोशिश की। मैंने हर बार समझौता किया, अपने निर्णय को बदला, मैंने निराश और कमज़ोर महसूस किया, मुझमें सबसे बड़ी कमी परमेश्वर पर भरोसा करने और परमेश्वर की गवाही देने की मेरी क्षमता की थी। मैं जानती थी कि इस बार मैं शैतान के कब्जे में नहीं आयी थी। अब मैं परमेश्वर पर भरोसा करूंगी, परमेश्वर की ओर देखूंगी, अपने विश्वास से शैतान पर विजय पाऊँगी और परमेश्वर के लिये गवाही दूंगी। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा, "यदि तुम मुझे अपने दिल से देखते हो, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहां या कब, या वातावरण कितना प्रतिकूल है, मैं तुम्हें स्पष्टता से दिखाऊंगा और मेरा दिल तुम्हारे लिए प्रकट किया जाएगा; इस तरह तुम रास्ते में आगे निकल जाओगे और कभी अपने रास्ते से नहीं भटकोगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 13")। इसलिये, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! अब आपने मुझे अपने पदचिह्नों पर चलने के लिये चुना है और इसकी अनुमति दी है। अगर मैं अपनी पूरी क्षमता से आपका अनुसरण नहीं करती हूँ, अगर मैं शैतान की ताकतों के आगे के आगे झुक जाती हूँ, तो उद्धार में अपना अवसर गँवा दूंगी। हे परमेश्वर, मैं अपनी मौजूदा परेशानियाँ आपको सौंप देना चाहती हूँ। अगर मेरे पति सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरे विश्वास के बारे में मेरे परिवार या पादरी को बता भी देते हैं या वे मेरे साथ जो कुछ भी करते हैं, मैं आपके प्रति समर्पित रहूँगी। इस बार, मैं आपकी गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए आपके ऊपर भरोसा करूंगी।"

प्रार्थना करने के बाद मैं धीरे-धीरे अधिक शांत महसूस करने लगी। मैंने अपना फ़ोन उठाकर उन्हें एक जवाब भेजा। "हाँ, मैं फिर से सभाओं में हिस्सा ले रही हूँ। आइये, कल शाम को बैठकर इसके बारे में ठीक से बात करते हैं।" मैसेज भेजने के बाद, मैंने महसूस किया कि मेरा परिशोधन हो रहा है: ऐसा क्यों है कि हर बार जब मैं गंभीरता से सत्य का अनुसरण करना चाहती हूँ, तो मेरे सामने रुकावटें आ जाती हैं? फिर अय्यूब का अनुभव मुझे याद आया, जिनके बारे में बहनों ने कई बार मेरे साथ सहभागिता की थी। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में भी सोचा, "और जब अय्यूब को इस यंत्रणा के अधीन किया गया था तो परमेश्वर ने क्या किया? परमेश्वर ने परिणाम का अवलोकन किया, उसे देखा, और उसकी प्रतीक्षा की। जब परमेश्वर ने अवलोकन किया और देखा, तो उसे कैसा महसूस हुआ? निस्संदेह उसने शोक में डूबा हुआ महसूस किया" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। मैंने परमेश्वर के वचनों के महत्व को समझा और अय्यूब के अनुभव पर विचार किया। उसने अपना पूरा जीवन परमेश्वर के भय और शैतान से दूर रहने में गुज़ारा, लेकिन शैतान अय्यूब को परमेश्वर द्वारा हासिल किये जाने को लेकर संतुष्ट नहीं था और उसने कई बार उसे प्रलोभन दिया। लेकिन जब शैतान अय्यूब को प्रलोभन दे रहा था, परमेश्वर हर चीज़ को देख रहा था और उस पर नज़र बनाये हुए था, फिर परमेश्वर ने शैतान को एक कड़ी सीमा में बाँध दिया: शैतान अय्यूब का जीवन नहीं ले सकता था, इससे अय्यूब की सुरक्षा सुनिश्चित हुई। मैं यह समझ सकती थी कि परमेश्वर लोगों का ध्यान रखता है, वह नहीं चाहता कि हम कष्ट उठाएं और वह हमें शैतान के प्रभाव में गिरने और नुकसान उठाने नहीं देना चाहता है। इसके अलावा, परमेश्वर की उदार इच्छा इसमें निहित है कि वह अय्यूब को प्रलोभन देने की अनुमति शैतान को दे। परमेश्वर ने अय्यूब से गवाही हासिल करने और परमेश्वर के प्रति अय्यूब के विश्वास एवं उसकी आज्ञाकारिता को पूर्ण करने की उम्मीद की थी। क्या यह बिलकुल वही स्थिति नहीं थी जिसमें मैंने खुद को पाया था? भले ही शैतान ने मुझे बार-बार प्रलोभन दिया था, लेकिन परमेश्वर ने मुझे कभी नहीं छोड़ा और उस समय तक मेरा मार्गदर्शन किया। परमेश्वर ने इस उम्मीद में उन परिस्थितियों की व्यवस्था की थी जिससे कि मैं अपने जीवन में ऊपर उठ सकूं, उसके लिए गवाही दे सकूं और शैतान को शर्मिंदा कर सकूं। इसलिये, उस समय मैं यह जानती थी कि परमेश्वर की गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिये मुझे संघर्ष करना पड़ेगा। मैंने एक बार फिर परमेश्वर में अधिक विश्वास महसूस किया और मैं परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति समर्पित होने, परमेश्वर के पक्ष में खड़ी होने और फिर कभी शैतान से समझौता नहीं करने के लिए दृढ़-संकल्पित थी।

अगले दिन शाम को जब मैं काम से घर लौटी, तो मेरे पति पहले से मेरा इंतज़ार कर रहे थे। जब मैं बैठ गई, तो उन्होंने कहा, "क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ सकती हो?" फिर उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में सभी तरह की नकारात्मक अफ़वाहों के बारे में बात करना शुरू कर दिया, जिन्हें उन्होंने ऑनलाइन देखा था। मेरा जवाब था, "नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। आप सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में क्या जानते हैं? आपने ऑनलाइन जो कुछ भी देखा है वे सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा, अपमान और बदनामी करने के लिए सीसीपी सरकार द्वारा साजिश के तहत फ़ैलायी गई अफ़वाहें हैं। इनमें से कोई भी बात सच नहीं है। सीसीपी एक एक नास्तिक राजनीतिक पार्टी है जो सत्य और परमेश्वर से खास तौर पर घृणा करती है। इसलिये, वह लोगों को गुमराह करने के लिये सभी तरह सी साजिशें रचने और अफ़वाहें फ़ैलाने की हर संभव कोशिश करती है। वह व्यर्थ में परमेश्वर का विरोध करने के लिए लोगों को धोखा देने और अंततः उसके साथ नष्ट हो जाने की उम्मीद करती है। यह सीसीपी सरकार का कपटी इरादा है। लेकिन परमेश्वर में विश्वास करके मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, ना ही मैंने आपको नीचा दिखाने वाला कोई काम किया है। मेरा विश्वास का मार्ग जीवन का सही मार्ग है और मैंने इस पर चलते रहने का फ़ैसला किया है। मैंने इस पर काफ़ी विचार किया है और यह निर्णय लिया है कि आप बेशक आगे बढ़कर पादरी और प्रचारकों को इसके बारे में बता दें। उन्हें अपने उपदेशों में मेरी निंदा करने दें और फिर कलीसिया से मुझे निकाल देने दें। आप भी मेरे माता-पिता को इसके बारे में बता दें और उन्हें भी मुझ पर वार करने दें, मेरा विरोध करने दें। लेकिन आप चाहे जो भी करेंगे, मैं अपना मन नहीं बदलूंगी। अब मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया है। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और परमेश्वर द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों से गुज़रकर, मुझे यकीन हो गया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आए प्रभु यीशु हैं। चाहे जो भी हो जाये, मैं अपने रास्ते पर दृढ़ता से बनी रहूँगी।" मेरे पति ने कहा, "तुम्हें यह एहसास है कि तुम प्रभु से धोखा कर रही हो, है ना? प्रभु ने तुम पर इतना अनुग्रह किया है। तुम उसे कैसे धोखा दे सकती हो?" मैंने कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना प्रभु को धोखा देना नहीं है; यह मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करना है, क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि मैंने प्रभु यीशु के अनुग्रह का इतना अधिक आनंद उठाया है कि जब मैंने यह समाचार सुना कि प्रभु यीशु अब लौट आए हैं, तो मैं जानती थी कि मुझे इसकी जांच-पड़ताल करनी चाहिये और उसके बाद ही मैंने इसे स्वीकार किया। प्रभु यीशु अब नये वचन बोलने और परमेश्वर के कार्य एवं इच्छा के बारे में सब कुछ समझाने के लिये देह में लौट आये हैं। मैंने परमेश्वर की वाणी सुनी है, इसलिये अपने अनुसरण में मुझे और अधिक परिश्रम करना होगा, अधिक से अधिक सभाओं में जाना होगा और मेरे प्रति परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाना होगा।" आख़िरकार मेरे पति ने कहा, "अच्छा, चलो इसे भूल जाओ! जो मन चाहे वही करो! मैं पादरी को यह बताने जा रहा हूँ, अब वही तुम्हें कलीसिया में वापस लौटने के लिये राज़ी करेंगे। मैं तुम्हारे माता-पिता को भी इसके बारे में बताने जा रहा था, लेकिन मुझे डर था कि वे परेशान हो जाएंगे और बीमार पड़ जाएंगे। अब तुम जिस पर चाहो, उस पर विश्वास करो—मैं बीच में नहीं आऊँगा।"

मेरे पति की यह बात सुनकर मैं काफ़ी खुश थी कि अब वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरे विश्वास के मार्ग में खड़े नहीं होंगे। मैं जानती थी कि यह परमेश्वर का मार्गदर्शन था और मेरे पति का दिलो-दिमाग भी परमेश्वर के हाथों में ही था। उनके मुँह से ऐसी बातें निकलना पूरी तरह से परमेश्वर की सत्ता के कारण था; परमेश्वर ने ही मेरे लिये रास्ता खोला था। इस अनुभव से मैंने देखा कि परमेश्वर मेरे दिल को जीतना चाहते हैं और जब मैं सचमुच उस पर भरोसा करती हूँ, उसकी ओर देखती हूँ और उसे संतुष्ट करने के लिये सब कुछ दांव पर लगा देती हूँ, तो मुझे परमेश्वर के कर्म दिखाई पड़ते हैं। मैं समझती हूँ कि वह हमेशा से चुपचाप मेरी मदद और मेरा मार्गदर्शन करता रहा है। तब मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा: "जब कभी भी शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है या निरंकुश क्षति में संलग्न होता है, तो परमेश्वर बेपरवाही से चुपचाप नहीं देखता रहता है, ना ही वह अपने चुने हुओं की उपेक्षा करता है या उन्हें अनदेखा करता है। शैतान जो कुछ भी करता है वह बिलकुल स्पष्ट है और परमेश्वर के द्वारा समझा जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि शैतान क्या करता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस प्रवृत्ति को उत्पन्न करता है, परमेश्वर वह सब जानता है जिसे शैतान करने का प्रयास कर रहा है, और परमेश्वर उन लोगों को नहीं छोड़ता है जिन्हें उसने चुना है। इसके बजाए, कोई ध्यान आकर्षित किए बिना, गुप्त रूप से, चुपचाप, परमेश्वर वह सब करता है जो आवश्यक है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। जब मैंने इन वचनों पर विचार किया तो वाकई मेरा दिल भर आया। मैंने फिर से उस इस अवधि में हुए अनुभव के बारे में सोचा—जब शैतान ने मुझे परेशान करने और दबाने के लिये मेरे पति का इस्तेमाल किया, ताकि मुझे सभाओं में जाने से रोका जा सके। परमेश्वर ने मुझे शैतान की चालों को समझने और परमेश्वर के वचनों पर भाई-बहनों की सहभागिता के माध्यम से मुझे अपनी निराशा से बाहर निकलने में मेरी मदद की। जब मेरे पति ने परमेश्वर के वचनों की मेरी किताबें छिपा दी और मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने की कोशिश की, तो मैंने सच्चे दिल से परमेश्वर पर भरोसा किया और उनकी ओर देखा, तब मैंने परमेश्वर के चमत्कारिक कर्मों को देखा; जब मैंने परमेश्वर के साथ खड़े होने का संकल्प लिया और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो गई, तब शैतान शर्मिंदा हुआ और उसने अपना निर्णय बदल दिया। अपने अनुभवों से, मैंने देखा कि परमेश्वर वाकई मेरे पक्ष में खड़ा है और वह मेरे आध्यात्मिक कद के अनुसार मेरे लिये चीज़ों को व्यवस्थित करता है। परमेश्वर ने मुझे ऐसा बोझ नहीं दिया जिसे मैं सहन नहीं कर सकती थी। मैंने सोचा कि कैसे अतीत में, परमेश्वर के प्रति अपने हृदय को समर्पित करने से पहले, मैं हमेशा देह की इच्छाओं के वश में रहती थी, समस्याओं का सामना करने के लिए इंसानी साधनों पर भरोसा करती थी और शैतान का त्याग करने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। नतीजतन, शैतान ने मेरी सबसे बड़ी कमजोरी का फ़ायदा उठाया, बार-बार मेरा शोषण किया और मुझ पर हमला किया, मुझे बुरी तरह सताया। लेकिन जब मैंने सचमुच परमेश्वर पर भरोसा किया और सब कुछ दांव पर लगाने के लिये तैयार हो गई, तब परमेश्वर ने मेरे लिये रास्ता खोला और शैतान को शर्मिंदा होकर हार का सामना करना पड़ा, उसके पास कोई उपाय नहीं बचा। इन सारे अनुभवों से गुजरने के बाद मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता के साथ-साथ मेरे अपने विद्रोही स्वभाव की सही समझ आ गई। परमेश्वर के प्रति मेरा विश्वास और मेरी आज्ञाकारिता बढ़ गई, मैंने शैतान की साजिशों को समझा और मैंने शैतान की निंदनीय एवं दुष्ट प्रकृति को देखा। मेरे अंदर शैतान के प्रति असली घृणा उत्पन्न हो गई। परमेश्वर के मार्गदर्शन और प्रबोधन का धन्यवाद कि मैं इन सारी बातों को समझ पाई। मैं सचमुच परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ!

उस अवधि के दौरान मैंने जो अनुभव किया, उसका मुझे काफ़ी फ़ायदा हुआ। इस दौरान मैंने कमज़ोरी और निराशा का सामना किया, लेकिन परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन एवं सहयोग और मेरी बहनों की मदद ने मुझे शैतान के प्रलोभनों और हमलों से बचने का विश्वास दिया। मैं आज भी उस विश्वास पर बनी हुई हूँ। मैंने अपने व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से परमेश्वर के प्रेम को देखा है। मैंने जाना है कि परमेश्वर ने हमेशा मेरी अगुवाई की है और हर चीज़ में एक बार भी मेरा पक्ष नहीं छोड़ा है। जब हम सचमुच अपना हृदय परमेश्वर को सौंप देते हैं, परमेश्वर की ओर देखते हैं और उस पर भरोसा करते हैं, तो हम उसके चमत्कारिक कर्मों को देख सकते हैं और अपनी पीड़ा से मुक्ति पा सकते हैं। अब से, मैं परमेश्वर के अन्य कार्यों का अनुभव करना चाहती हूँ और परमेश्वर के सच्चे ज्ञान को खोजना चाहती हूँ!

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