ईर्ष्या एक घिनौनी चीज है
जून 2021 में मैंने नए सदस्यों के सिंचन का प्रशिक्षण शुरू किया। मुझे पता था कि मुझमें बहुत सारी कमियाँ हैं, इसलिए मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करता और खुद को परमेश्वर के वचन खाने-पीने में समर्पित कर देता। थोड़े समय बाद मुझे कुछ सत्य सिद्धांत समझ आ गए और मैं अपनी संगति में समस्याओं पर थोड़ा प्रकाश डालने में सक्षम हो गया। मेरे सभी भाई-बहनों ने कहा कि मैं वाकई अच्छी संगति करता हूँ। यह कहने के बावजूद कि “परमेश्वर का धन्यवाद! यह सब परमेश्वर का प्रबोधन था,” मैंने अंदर से काफी प्रसन्न महसूस किया। हर सभा में मैं हमेशा सबसे ज्यादा दिखाई देने वाला सदस्य था और अन्य सभी मेरा सम्मान करते थे—इसने मुझे अपना कर्तव्य सक्रिय रूप से निभाने के लिए और भी ज्यादा उत्साह मिला। बाद में मुझे भाई जियाँग मिंग के साथ जोड़ दिया गया। वह आस्था में नया था और जब सत्य की संगति करने की बात आती, तो वह उसे सही तरह से नहीं कर पाता था, इसलिए जब उसने पहली बार नए सदस्यों के सिंचन का प्रशिक्षण शुरू किया, तो उसके लिए यह काफी कठिन था, लेकिन वह सत्य का अनुसरण करने के प्रति समर्पित था और उसने तेजी से प्रगति की। वह एक बहुत ही स्पष्टवादी किस्म का इंसान भी था और अपनी भ्रष्टता प्रकट होने पर वह उसके बारे में खुलकर बताता और खुद को उजागर कर देता और समस्याएँ आने पर वह सत्य खोजने और आत्मचिंतन करके खुद को जानने पर ध्यान केंद्रित करता। सभी भाई-बहन उसे सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति मानते थे। यह देखकर मुझे थोड़ा खतरा महसूस हुआ : “जियाँग मिंग बहुत तिकड़मी है—अगर ऐसे ही चलता रहा, तो वह कुछ ही समय में मेरी बराबरी कर लेगा। फिर मुझे कौन पूछेगा? यह नहीं चलेगा, मुझे जल्दी से खुद को सत्य से लैस करना होगा। मैं उसे अपने से आगे नहीं निकलने दे सकता।” इसके बाद मैंने पहले से भी ज्यादा मेहनत की।
एक बार जियाँग मिंग ने मुझसे कहा : “भाई-बहनों के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए मैंने कई सत्य समझ लिए हैं और मैं बहुत खुश और मुक्त महसूस करता हूँ। मैं वास्तव में अपनी नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक रूप से अपना कर्तव्य निभाना शुरू करना चाहता हूँ, लेकिन मार्ग में कुछ बाधाएँ आ रही हैं और मैं नहीं जानता कि आगे कैसे बढ़ा जाए।” यह सुनकर मैंने तुरंत सोचा : “अगर इसने पूर्णकालिक रूप से अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया, तो यह और भी तेजी से प्रगति करेगा और बहुत जल्दी मेरे बराबर आ जाएगा। अगर दूसरे इसे ही पूछने लगे और मैं पीछे छूट गया, तो मैं क्या करूँगा? बेहतर होगा कि यह नौकरी छोड़ने से पहले थोड़ा और इंतजार करे।” इसलिए मैंने उससे कहा : “हमें समर्पण और प्रतीक्षा का अभ्यास करना चाहिए। परमेश्वर से प्रार्थना करो, वह तुम्हारे लिए उपयुक्त अवसर तैयार करेगा।” हालाँकि जैसे ही मैंने यह कहा, मुझे थोड़ा अपराध-बोध हुआ। मैंने सोचा : “क्या मैं जानबूझकर जियाँग मिंग को सत्य का अनुसरण करने से नहीं रोक रहा?” लेकिन मुझे अब भी चिंता थी कि वह मेरा रुतबा खतरे में डाल सकता है, इसलिए मैंने कुछ और नहीं कहा। इसके बाद जियाँग मिंग परमेश्वर पर भरोसा करके अपनी समस्याएँ हल करने में सक्षम हो गया और उसने एक हफ्ते बाद ही अपनी नौकरी छोड़ दी। जब मैंने इस बारे में सुना, तो न केवल मुझे जियाँग मिंग के लिए खुशी नहीं हुई, बल्कि मुझे वास्तव में थोड़ी निराशा हुई। चूँकि मुझे चिंता थी कि जियाँग मिंग सबकी प्रशंसा का पात्र बन जाएगा, इसलिए मैं उसके साथ साझेदारी करते समय कुछ चीजें रोकने लगा। अपनी भक्ति के दौरान जब मैं उसकी स्थिति के लिए प्रासंगिक परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश देखता, तो मैं उन्हें उसके साथ वैसे साझा न करता, जैसे मैं पहले किया करता था। जब वह अपनी समस्याओं के बारे में प्रश्न लेकर मेरे पास आता, तो मैं यह सोचकर अपनी सारी सूझबूझ उसके साथ साझा न करता : “मुझे इतनी सूझबूझ हासिल करने में ही दो साल लग गए। अगर मैंने इसे सब-कुछ बता दिया, तो यह बहुत तेजी से प्रगति करेगा और सारे भाई-बहन इसे ही पूछेंगे। अगर ऐसा हुआ, तो मैं क्या करूँगा?” कुछ समय बाद जियाँग मिंग और मुझमें दूरी बढ़ने लगी। हमने एक-दूसरे से खुलकर बात करना बंद कर दिया और हम अब एक-दूसरे की मदद न करते। अपने कर्तव्य निभाने के समय को छोड़ दें, तो हम शायद ही कभी बातचीत करते थे। मेरी स्थिति थोड़ी खराब हो गई और परमेश्वर के वचन खाते-पीते समय मुझे प्रबुद्धता की कोई स्पष्ट समझ नहीं होती थी। हालाँकि उस समय मुझे पता नहीं चला कि मेरी स्थिति में कुछ भी गलत है और मैं सत्य खोजने और आत्मचिंतन करने के लिए परमेश्वर के सामने नहीं आया।
बाद में काम की जरूरतों के कारण जियाँग मिंग और मुझे अलग होना पड़ा और हम नए सदस्यों का सिंचन अलग-अलग करने लगे। जब मैंने सुना कि हम अलग हो रहे हैं, तो मैं मन ही मन खुश हुआ : “आगे जाकर मुझे अब उसके साथ सभाओं के लिए सामग्री तैयार नहीं करनी पड़ेगी। स्वाभाविक रूप से मेरी मदद के बिना वह इतनी जल्दी प्रगति नहीं कर पाएगा। मुझे बस ऐसे ही जुटे रहना है, अपने नतीजे सुधारने हैं और उसे अपने बराबर नहीं आने देना है। सब देख लेंगे कि वह अक्षम है और उसके सारे प्रयास व्यर्थ हो जाएँगे।” एक बार एक सभा के बाद घर लौटते समय जियाँग मिंग और मैं इस बारे में बात कर रहे थे कि नए सदस्यों के साथ हमारी सभाएँ कैसी चल रही हैं। उसने कहा कि वह बहुत दुखी महसूस कर रहा है, क्योंकि कुछ नए सदस्य, जिनकी जिम्मेदारी उस पर है, सभाओं में नहीं आते थे और वह उनका ठीक से सिंचन करने में असमर्थ था। यह सुनकर मैंने सोचा : “इसे कुछ दिक्कतें आ रही हैं और यह निराश हो रहा है, मुझे तुरंत इसकी मदद करनी चाहिए।” लेकिन साथ ही मैं यह सोचते हुए मन ही मन काफी खुश भी हुआ : “आज मेरी सभा काफी अच्छी रही और अगुआ ने कहा कि मैंने वाकई अच्छी संगति की।” तब जियाँग मिंग ने मुझसे पूछा कि मेरी सभा कैसी रही। मुझे लगा कि अगर मैंने इससे कहा कि वह अच्छी रही, तो यह और ज्यादा निराश हो जाएगा, लेकिन मैं दिखावा किए बिना नहीं रह सका। मैं उसे यह दिखाना चाहता था कि मैं उससे कितना आगे हूँ और उसके मनोबल पर आघात करना चाहता था। तो आत्म-संतुष्ट स्वर में मैंने उससे कहा, “मेरी सभा वास्तव में बहुत अच्छी रही।” जब जियाँग मिंग ने यह सुना तो वह और भी दुखी लगा, वह कुछ और नहीं बोला। जब मैंने उसका उदास हाव-भाव देखा, तो मैंने थोड़ा दोषी महसूस किया और सोचा : “मैं चुप क्यों नहीं रहा? क्या इससे जियाँग मिंग के अपने काम के प्रति उत्साह पर बुरा असर नहीं पड़ेगा? मैं बहुत बुरा हूँ!” घर पहुँचकर हमने थोड़ी और संगति की, लेकिन जियाँग मिंग की स्थिति फिर भी नहीं सुधरी। मैंने सोचा : “जितने बेहतर तरीके से हो सकता था, मैंने इसके साथ संगति की, इसलिए अगर इसकी स्थिति अभी भी खराब है, तो यह मेरी समस्या नहीं है।”
कुछ दिनों बाद जब हम अपनी सभाओं के बाद घर जा रहे थे, मैंने जियाँग मिंग से पूछा कि उसकी सभा कैसी रही। उसने कहा कि उसने नए सदस्यों के सभाओं में न आने के मुद्दे पर परमेश्वर के वचनों की संगति की थी और वह अच्छी रही। यह सुनकर मुझे थोड़ा दुख हुआ। मुझे लगा, इसका मतलब है कि मैं अपनी सफल सभा की तुलना उसकी कम प्रभावी सभा से नहीं कर सकता। इसलिए मैंने सीधे उसकी संगति में समस्याएँ बता दीं। नतीजतन, कुछ सुधरी उसकी हालत फिर हताशा में डूब गई। जियाँग मिंग ने उत्तर दिया : “मैं अभी इतना ही जानता हूँ और मैं नए सदस्यों के साथ सिर्फ उसी बात पर संगति कर सकता हूँ, जो मैं जानता हूँ।” जब उसने यह कहा तो मैंने यह सोचकर थोड़ा दोषी महसूस किया : “मैं जियाँग मिंग का उत्साह फिर से भंग कर रहा हूँ! यह देखते हुए कि वह आस्था में बिल्कुल नया है, सभाओं से कुछ नतीजे प्राप्त कर पाना प्रगति का संकेत है। मुझे उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।” मैं वास्तव में उससे माफी माँगना चाहता था, लेकिन मैं थोड़ा शर्मिंदा और चिंतित हुआ कि वह मेरे बारे में क्या सोचेगा। अगर मैंने उसे बताया तो क्या वह यह नहीं सोचेगा कि मैं एक शातिर व्यक्ति हूँ? इस मामले पर आगे-पीछे सोचने के बाद मैंने आखिरकार उससे कुछ न कहने का फैसला किया। घर जाते हुए मैंने मन ही मन सोचा : “मैं किसी का उत्साह इस तरह भंग क्यों करता हूँ?” मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी और को अच्छा काम करते हुए नहीं देख सकता और मैं जियाँग मिंग से ईर्ष्या करने लगा हूँ। मुझे इस बात की चिंता थी कि अगर उसकी स्थिति सुधर गई और उसे अच्छे परिणाम मिलने लगे, तो भाई-बहन उसका सम्मान और प्रशंसा करने लगेंगे और मेरे बारे में सब-कुछ भूल जाएँगे। यह पक्का करने के लिए कि वह अपनी अलग पहचान न बना पाए, मैंने उस पर हमला कर उसे निराश रहने को मजबूर कर दिया। यह एहसास होने पर मैंने खुद को बुरा और दोषी महसूस किया। घर पहुँचते ही मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि मैं पश्चात्ताप कर बदलाव करने के लिए तैयार हूँ और उससे मेरा भ्रष्ट स्वभाव पहचानने में मार्गदर्शन करने के लिए प्रार्थना की।
अपनी खोज के दौरान मुझे परमेश्वर के कुछ वचन मिले : “कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्रेम नहीं होता” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर के प्रति समर्पण करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि शोहरत, लाभ और रुतबा प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य कर रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य करते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? ... अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग शोहरत, लाभ और रुतबे जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक साधन बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन मेरी वर्तमान स्थिति को पूरी तरह उजागर करते थे। जब मैंने देखा कि जियाँग मिंग जीवन में तेजी से प्रगति कर रहा है और सभी भाई-बहन उसकी ओर आदर से देख रहे हैं, तो मुझे चिंता हुई कि कहीं वह सबकी प्रशंसा का पात्र न बन जाए और मुझे दूसरों की प्रशंसा से वंचित न कर दे, इसलिए मैं जानबूझकर उससे दूर हो गया। जब मुझे परमेश्वर के वचन खाने-पीने से प्रबुद्धता प्राप्त हुई, तो मैंने उसे उसके साथ साझा नहीं करना चाहा। जब उसने अपना कर्तव्य पूर्णकालिक रूप से करने की इच्छा जताई, तो मैंने जानबूझकर कुछ बातें कहकर उसे रोकने की कोशिश की। जब उसे अपने कर्तव्य में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जब उसे अच्छे परिणाम नहीं मिले और वह हताश हो गया, तो मैंने उसके सामने यह शेखी भी बघारी कि मेरा काम कितना अच्छा चल रहा है, जिससे वह और ज्यादा हताश हो गया। फिर जब अंततः उसकी स्थिति बदलनी शुरू हुई और उसने प्रगति करनी शुरू कर दी, तो मैंने जानबूझकर उसकी संगति में खामियाँ निकालकर उस पर हमला किया। क्या मैं किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति से वैसे ही ईर्ष्या नहीं कर रहा था, जैसा परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया था? चूँकि मैं केवल अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के बारे में सोचता था, इसलिए मैं यह एहसास नहीं कर पाया कि जियाँग मिंग का निराशा में रहना उसके सिंचन-कार्य पर असर डालेगा और नए सदस्य अपने जीवन में प्रगति नहीं कर पाएँगे। मैं अच्छी तरह से जानता था कि सिंचन-कार्य कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन फिर भी मैंने जियाँग मिंग पर हमला किया। क्या मैं सिर्फ शैतान के एक अनुचर के रूप में काम नहीं कर रहा था और कलीसिया का कार्य बिगाड़ और नष्ट नहीं कर रहा था? मैं कितना स्वार्थी, नीच और दुष्ट था! कलीसिया ने मुझे जियाँग मिंग के साथ जोड़ा था, ताकि हम एक-दूसरे की खूबियों और कमजोरियों के पूरक बन सकें और नए सदस्यों का अच्छी तरह सिंचन कर सकें। पर मैंने न केवल जियाँग मिंग की खूबियों से सीखने में असफल रहकर दोनों को एक-दूसरे की मदद करने और एक-साथ सत्य में प्रवेश करने से रोका, बल्कि मैं उसके प्रति ईर्ष्या और नाराजगी से भी भरा हुआ था और इस डर से अपना जाना हुआ सत्य उसके साथ साझा नहीं करता था कि वह मुझसे आगे निकल जाएगा। मैं ईर्ष्या, स्वार्थ और घृणित स्थिति में फँस गया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मेरा दिल अंधकारमय और खिन्न हो गया था और मैं परमेश्वर के वचन खाने-पीने से कोई स्पष्ट प्रबुद्धता प्राप्त नहीं कर पाया। परमेश्वर ने मुझे अनदेखा कर दिया था। मैं वास्तव में एक खतरनाक स्थिति में था और मुझे जितनी जल्दी हो सके, परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करना था।
बाद में मुझे परमेश्वर के कुछ वचन मिले : “मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों का सार्वजनिक दमन, लोगों को निकालना, लोगों के विरुद्ध हमले, और लोगों की समस्याएँ उजागर करना, सब निशाना बनाने के लिए होते हैं। निस्संदेह, वे ऐसे साधनों का उपयोग उन लोगों को निशाना बनाने के लिए करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उन को पहचान सकते हैं। इन लोगों को तोड़कर वे अपनी स्थिति मजबूत करने का लक्ष्य हासिल करते हैं। इस तरह से लोगों पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देना एक दुर्भावनापूर्ण प्रकृति का कार्य है। उनकी भाषा और बोलने के तरीके में आक्रामकता होती है : उजागर करना, निंदा करना, बदनामी करना और दुष्टतापूर्वक चरित्रहनन करना। यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, सकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं, मानो वे नकारात्मक हों और नकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे, मानो वे सकारात्मक हों। इस तरह काले और सफेद को उलटना और सही और गलत को मिश्रित करना मसीह-विरोधियों का लोगों को हराने और उनका नाम खराब करने का लक्ष्य पूरा करता है। कौन सी मानसिकता विरोधियों पर इस आक्रमण और उन्हें निकाल देने को जन्म दे रही है? ज्यादातर समय यह ईर्ष्यालु मानसिकता से आता है। शातिर स्वभाव में ईर्ष्या के साथ तीव्र घृणा रहती है; और अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी लोगों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं। इस तरह की स्थिति में, अगर मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है, उनकी रिपोर्ट की जाती है और वे अपनी हैसियत खो देते हैं और उनके दिमाग पर एक वार होता है; तो वे न तो समर्पण करते हैं और न ही इससे खुश होते हैं, और उनके लिए प्रतिशोध की एक मजबूत मानसिकता बनाना और भी आसान हो जाता है। बदला एक तरह की मानसिकता है, और वह एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव भी है। जब मसीह-विरोधी देखते हैं कि किसी ने जो किया है, वह उनके लिए नुकसानदेह है, कि दूसरे उनसे ज्यादा सक्षम हैं, या किसी के कथन और सुझाव उनसे बेहतर या समझदारीपूर्ण हैं, और हर कोई उस व्यक्ति के कथनों और सुझावों से सहमत है, तो मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि उनका पद खतरे में है, उनके दिलों में ईर्ष्या और घृणा पैदा हो जाती है, और वे आक्रमण कर बदला लेते हैं। बदला लेते समय मसीह-विरोधी आम तौर पर अपने लक्ष्य पर पूर्वनिर्धारित वार करते हैं। वे तब तक लोगों पर आक्रमण करने और उन्हें तोड़ने में सक्रिय रहते हैं, जब तक दूसरा पक्ष समर्पण नहीं कर देता। तब जाकर उन्हें लगता है कि उनकी भड़ास निकल गई। लोगों पर आक्रमण और उन्हें निकालने की और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (दूसरों को नीचा दिखाना।) दूसरों को नीचा दिखाना इसे अभिव्यक्त करने के तरीकों में से एक है; चाहे तुम कितना भी अच्छा काम करो, मसीह-विरोधी फिर भी तुम्हें नीचा दिखाएँगे या तुम्हारी निंदा करेंगे, जब तक कि तुम नकारात्मक, कमजोर और खड़े होने में अक्षम नहीं हो जाते। तब वे प्रसन्न होंगे, और उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया होगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। “मसीह-विरोधी जो भी चीज करते हैं, वह लोगों के दिल जीतने, विरोधियों पर आक्रमण करने और उन्हें निकाल देने, अपने रुतबे को मजबूत करने, शक्ति छीनने और लोगों को नियंत्रित करने के लिए होता है। इन क्रियाकलापों की क्या प्रकृति है? क्या वे सत्य का अभ्यास कर रहे हैं? क्या वे परमेश्वर के वचनों में प्रवेश करने और परमेश्वर के सामने आने में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई कर रहे हैं? (नहीं।) तो वे क्या कर रहे हैं? वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे होड़ कर रहे हैं, लोगों के दिलों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, और अपना खुद का, स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रयास कर रहे हैं। लोगों के दिलों में किसे जगह मिलनी चाहिए? परमेश्वर को जगह मिलनी चाहिए। लेकिन मसीह-विरोधी जो भी करते हैं, वह ठीक इसका उल्टा होता है। वे परमेश्वर या सत्य को लोगों के दिलों में जगह लेने नहीं देते हैं; इसके बजाय, वे चाहते हैं कि मनुष्य को, अगुआ को जो कि वे खुद ही हैं, और शैतान को लोगों के दिलों में जगह मिले” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधी अपने से ज्यादा प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करते हैं। अपनी हैसियत सुरक्षित और सुदृढ़ करने के लिए वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें बाहर कर देते हैं। सार यह है कि वे सभी के दिलों में जगह चाहते हैं और लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं। क्या ठीक ऐसा ही व्यवहार मैंने जियाँग मिंग के प्रति नहीं किया था? जैसे ही उसे अपने कर्तव्य में कुछ परिणाम मिलने लगे और उसकी निराशा कम होने लगी, तो मैंने जानबूझकर उसके काम में खामियाँ निकालीं और उससे वह मानक पूरा करने के लिए कहा, जिस तक वह अभी नहीं पहुँचा था। उसे यह सोचने पर मजबूर करके कि सिंचन-कार्य मुश्किल है और शायद वह यह कार्य नहीं कर पाएगा, मैंने उसे वापस निराशा में धकेल दिया था। इस पर आत्मचिंतन करते हुए कि मैंने जियाँग मिंग पर हमला क्यों किया, मुझे एहसास हुआ कि मैं चाहता था कि सभी भाई-बहन मेरा आदर और आराधना करें। मैं चाहता था कि जब भी कोई पूछे कि अपने काम में सबसे प्रभावी और सत्य का अनुसरण करने में सबसे कर्मठ कौन है, तो वे मेरे बारे में सोचें। मैं हर भाई-बहन के दिल में जगह बनाने के लिए लालायित था। राज्य के युग के दौरान जारी प्रशासनिक आदेशों में परमेश्वर ने अपेक्षा की थी कि मनुष्य केवल परमेश्वर को ऊँचा उठा सकता है, फिर भी मैं कोशिश करता रहा कि हर कोई मेरे बारे में ऊँची राय रखे और मेरी आराधना करे। क्या मैं परमेश्वर का विरोध नहीं कर रहा था? जियाँग मिंग खुद एक नया सदस्य था और उसकी नींव गहरी नहीं पड़ी थी—अगर वह मेरे हमलों के कारण लंबे समय तक निराशा में डूबा रहता, तो इससे परमेश्वर और अपने कर्तव्य में उसका विश्वास प्रभावित होता। वह कलीसिया छोड़ने पर भी विचार कर सकता था। भले ही वह अपनी आस्था में दृढ़ था, फिर भी मेरे हमले उसका जीवन-प्रवेश रोक सकते थे और नए सदस्यों की जीवन-प्रगति प्रभावित कर सकते थे। परमेश्वर का कार्य समापन पर है और लोगों के पास सत्य का अनुसरण करने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। अगर मैं भाई-बहनों की उनके कर्तव्य अच्छे से निभाने में मदद नहीं करता, उसके प्रति उनका उत्साह भंग करता हूँ, तो क्या इससे उनके जीवन-प्रवेश में देरी और उस पर बुरा असर नहीं पड़ेगा? हम पर शैतान की नजर है और वह चाहता है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति निराशा और कमजोरी में पड़ जाए, खुद को परमेश्वर से दूर कर ले और उसके साथ विश्वासघात करे। फिर भी मैं शैतान की भूमिका निभा रहा था और उसके अनुचर की तरह काम कर रहा था—मैं बहुत भयानक था! मेरे कार्यों ने स्पष्ट रूप से मेरा मसीह-विरोधी स्वभाव उजागर कर दिया था। मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था और अगर मैंने जल्द ही पश्चात्ताप नहीं किया, तो परमेश्वर मुझे ठुकरा देगा। यह एहसास होते ही मैं थोड़ा भयभीत हो गया, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! मैं स्वार्थी और नीच रहा हूँ और प्रसिद्धि और रुतबे के चक्कर में पड़ गया हूँ। मैं खुद के खिलाफ विद्रोह कर तुम्हारे वचनों के अनुसार जीने के लिए तैयार हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो।”
प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों के निम्नलिखित अंश मिले : “जब तुममें स्वार्थ और अपने फायदे के लिए साजिशें प्रकट हों, और तुम्हें इसका एहसास हो जाए, तो तुम्हें इसे हल करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करके सत्य को खोजना चाहिए। पहली बात जो तुम्हें पता होनी चाहिए वह यह है कि अपने सार में इस तरह का व्यवहार सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन है, कलीसिया के काम के लिए नुकसानदायक है, यह स्वार्थी और घृणित व्यवहार है, यह ऐसा व्यवहार नहीं है जो अंतरात्मा और विवेक वाले लोगों को करना चाहिए। तुम्हें अपने निजी हितों और स्वार्थ को एक तरफ रखकर कलीसिया के काम के बारे में सोचना चाहिए—यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। प्रार्थना और आत्मचिंतन करने के बाद, अगर तुम्हें सच में यह एहसास होता है कि इस तरह का व्यवहार स्वार्थी और घृणित है, तो अपने स्वार्थ को दरकिनार करना आसान हो जाएगा। जब तुम अपने स्वार्थ और फायदे के लिए साजिशें रचने को एक तरफ रख दोगे, तो तुम खुद को स्थिर महसूस करोगे, और तुम्हें सुख-शांति का एहसास होगा, लगेगा कि अंतरात्मा और विवेक वाले व्यक्ति को कलीसिया के काम के बारे में सोचना चाहिए, उन्हें अपने निजी हितों पर ध्यान गड़ाए नहीं रहना चाहिए, जो कि स्वार्थी, घृणित और अंतरात्मा या विवेक से रहित होना कहलाएगा। निस्वार्थ ढंग से काम करना, कलीसिया के काम के बारे में सोचना, और विशेष रूप से ऐसी चीजें करना जिससे परमेश्वर संतुष्ट होता है, यह न्यायसंगत और सम्मानजनक है और इससे तुम्हारे अस्तित्व का महत्व होगा। पृथ्वी पर इस तरह का जीवन जीते हुए तुम खुले दिल के और ईमानदार रहते हो, सामान्य मानवता और मनुष्य की सच्ची छवि के साथ जीते हो, और न सिर्फ तुम्हारी अंतरात्मा साफ रहती है बल्कि तुम परमेश्वर की सभी कृपाओं के भी पात्र बन जाते हो। तुम जितना ज्यादा इस तरह जीते हो, खुद को उतना ही स्थिर महसूस करते हो, उतनी ही सुख-शांति और उतना ही उज्जवल महसूस करते हो। इस तरह, क्या तुम परमेश्वर में अपनी आस्था के सही रास्ते पर कदम नहीं रख चुके होगे?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। “अगर तुम वाकई परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्त करने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्हारा कर्तव्य के प्रति वफादारी प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्चेतना और तर्क तो होना ही चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया : मुझे अपने स्वार्थ के पीछे दौड़ना छोड़ देना चाहिए, परमेश्वर के इरादों पर ध्यान देना चाहिए और कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए। जियाँग मिंग में काबिलियत है, इसलिए मुझे उसकी और मदद करनी चाहिए, ताकि वह नए सदस्यों के सिंचन-कार्य की जिम्मेदारी जल्द से जल्द पूरा कर सके। मानवता वाले व्यक्ति को यही करना चाहिए। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, जो कहते हैं : “कार्य समान नहीं हैं। एक शरीर है। प्रत्येक अपना कर्तव्य करता है, प्रत्येक अपनी जगह पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है—प्रत्येक चिंगारी के लिए प्रकाश की एक चमक है—और जीवन में परिपक्वता की तलाश करता है। इस प्रकार मैं संतुष्ट हूँगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21)। परमेश्वर हम में से हर एक को अलग-अलग प्रतिभा देता है, ताकि हम कलीसिया में अपना प्रत्येक कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने में उनका उपयोग कर सकें। सृजित प्राणियों के रूप में हमें यही करना चाहिए। जियाँग मिंग और मैं, हम दोनों की कलीसिया में विशिष्ट भूमिकाएँ थीं, इसलिए मुझे उससे ईर्ष्या करके उसे बाहर नहीं करना चाहिए था। मुझे उसके साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से सहयोग करना चाहिए और अपने कर्तव्य पूरे करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए एक-साथ काम करना चाहिए—काम करने का केवल यही तरीका अर्थपूर्ण है।
बाद में मैंने जियाँग मिंग के साथ संगति में उस समय की अपनी स्थिति और इस बारे में खुलकर बताया कि मैंने अपने बारे में क्या समझा था। हमारी संगति के बाद मैंने कहीं ज्यादा शांत और स्थिर महसूस किया। मुझे ऐसा लगा, जैसे मैं एक बार फिर से रोशनी में जी रहा हूँ, जैसे लंबे समय तक साँस फूलने और हाँफने के बाद आखिरकार मैं ताजी हवा में गहरी साँस ले सकता हूँ। अंततः मैंने आराम महसूस किया और जियाँग मिंग और मैं और ज्यादा करीब आ गए। इसके बाद हमने नए सदस्यों के सिंचन के लिए सौहार्दपूर्ण ढंग से सहयोग करने का संकल्प लिया। तब से हम अक्सर अपनी वर्तमान स्थितियों के बारे में एक-दूसरे के सामने खुलकर बात करते और नए सदस्यों के सिंचन के लिए मिले अभ्यास के विभिन्न मार्ग साझा करते। जब भी जियाँग मिंग के सामने मुश्किलें आतीं, मैं उसकी मदद करने के लिए सत्य पर सहभागिता करने की पूरी कोशिश करता। जियाँग मिंग की खूबियों से मुझे भी फायदा हुआ। उदाहरण के लिए, मैंने सहभागिता के दौरान उसके द्वारा साझा की गई खास सूझबूझ से बहुत-कुछ पाया, जिसके बारे में मैं खुद कभी नहीं सोच पाया था। इसके जरिये मैंने जाना कि अपने अनुभवों और स्वयं द्वारा प्राप्त की गई चीजों पर दूसरों के साथ खुलकर बात करना और संगति करना सिर्फ दूसरों को आपूर्ति का मामला नहीं है, बल्कि यह सत्य का अभ्यास करने का मार्ग भी है, जो हमें अपनी कुछ कमजोरियाँ सुधारने और पवित्र आत्मा का ज्यादा कार्य प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है। वास्तव में सही इरादे रखकर अपनी कमजोरियाँ दूर करने के लिए दूसरों की खूबियों से सीखकर और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करके हम सभी को लाभ होता है और हम अपने जीवन में प्रगति करते हैं।
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