एक विश्वासी द्वारा बुढ़ापे में झेली गई कठिनाइयाँ

07 दिसम्बर, 2022

2007 की शरद ऋतु में, मैंने और मेरी पत्नी ने अंत के दिनों का ईश-कार्य स्वीकारा। हम रोज परमेश्वर के वचन पढ़ते, सभाओं में जाते, भाई-बहनों के साथ अपने कर्तव्य निभाते, पूर्ण जीवन का आनंद लेते थे। हम परमेश्वर के बहुत आभारी थे। पहले हमारा बेटा और बहू हमारी आस्था का समर्थन करते थे। लेकिन अच्छी चीज ज्यादा देर नहीं रहती। अगले वर्ष, हमारी बहू ने टीवी पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर लगाए गए कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ फर्जी आरोप सुने, और झाँसे में आ गई। उसने कहा कि हम पार्टी के खिलाफ हैं और हमारी आस्था का विरोध करने लगी। जब भाई-बहन सभाओं के लिए आते, तो वह मुँह बना लेती, उन्हें अंदर आने नहीं देती, कभी-कभी तमाशा खड़ा कर देती।

एक बार उसने हमें आस्था छोड़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश की, बोली, सीसीपी को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासी का पता चला, तो उसके परिवार की तीन पीढ़ियाँ बरबाद हो जाएँगी। उनके बच्चे कॉलेज, सेना, पार्टी में नहीं जा पाएँगे, न कहीं पदाधिकारी बन पाएँगे। उन्हें न नौकरी मिलेगी, न शादी होगी। उसके यह कहने पर मैं भड़क गया। मैंने उससे कहा, "लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथ में है। यहाँ पार्टी की नहीं चलती।" वह गुस्से से बोली, "पार्टी अब सत्ता में है। अगर वे कहें कि आप कॉलेज नहीं जा सकते, तो आप नहीं जा सकते। अगर वे काम न करने दें, तो नहीं कर सकते। आपकी आस्था आपके पोते-पोतियों का भविष्य बिगाड़ देगी!" फिर वह गुस्से से चली गई। उसकी नाराजगी के चलते भाई-बहन सभा करने हमारे घर नहीं आ सके, इसलिए हम छह महीने तक कलीसियाई जीवन नहीं जी पाए। जब हम पहले-पहल विश्वासी बने थे, तो हमारी बहू को लगा कि हम ऊर्जा से भर गए हैं, हमारा स्वास्थ्य सुधर गया है, और वह हमारा साथ देती थी। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के झूठ में फँसने के बाद वह हमारी दुश्मन बन गई, दिन भर हमें डाँटती रहती, हमसे आस्था छोड़ने के लिए कहती। गाँव वाले भी हमारा मजाक उड़ाते। मुझे थोड़ी कमजोरी महसूस हुई, मानो परमेश्वर पर विश्वास करना बहुत कठिन हो, इसलिए मैंने तुरंत प्रार्थना की। सोचने लगा कि जब दो बार परमेश्वर देहधारी हुआ और इंसान को बचाने के लिए पृथ्वी पर आया, तो उसे लोगों द्वारा ठुकराया और बदनाम किया गया। परमेश्वर सर्वोच्च और महान है, पर उसने इंसान को बचाने के लिए यह अपमान और दुख सहन किया है। मैं, एक भ्रष्ट इंसान, परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, ताकि मुझे बचाया जा सके, लेकिन सिर्फ अपनी बहू के तिरस्कार और अपमान, और पड़ोसियों के उपहास और निंदा के कारण मैं नकारात्मक होकर शिकायत करने लगा। यह बहुत गलत है। अपनी आस्था और सत्य की खोज में मुझे यह कष्ट सहना होगा, मुझमें परमेश्वर पर भरोसा कर आगे बढ़ने का संकल्प होना चाहिए। हम घर पर कर्तव्य नहीं निभा सकते पर सुसमाचार साझा करने के लिए बाहर तो जा ही सकते थे। यह कर्तव्य हमें करना ही चाहिए! हम बाद में कुछ भाई-बहनों के साथ काम करने के लिए निकले जल्दी ही 10 से ज्यादा मित्रों और रिश्तेदारों को परमेश्वर के सामने ले आए। इसके बाद, सुसमाचार फैलाने का हमारा उत्साह और बढ़ गया।

दिसंबर 2012 में एक धार्मिक व्यक्ति ने मेरे सुसमाचार फैलाने की रिपोर्ट कर दी और पुलिस ने मुझे घंटों तक एक बंदीगृह में रखा। पर मेरे बुढ़ापे के कारण मुझे जाने दिया, इसलिए भी कि वे मेरा मुँह नहीं खुलवा पाए। गाँव लौटने पर ब्रिगेड शाखा सचिव ने मुझे देखकर मजाक उड़ाते हुए कहा, "मैंने तो सोचा था कि आप तीन-चार साल के लिए गए। आप जल्दी निकल आए! इस उम्र में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण क्यों कर रहे हैं?" गाँव के लोग मुझे अनदेखा करते, पीठ पीछे मुझ पर हँसते और मेरी आलोचना करते। मेरे चचेरे भाई ने खुलेआम मेरा मजाक उड़ाया : "यह आस्था में पगला गया है! अगर पार्टी इससे इसकी जमीन छीन ले और यह किसानी न कर पाए, तब देखना इसकी आस्था!" मैं बहुत क्रोधित था। हमारी आस्था सही मार्ग है, पर कम्युनिस्ट पार्टी हमें गिरफ्तार कर सताती है, हमारे जानने वाले हमारा मजाक उड़ाते, अपमानित करते हैं। यह वाकई दर्दनाक था। मुझे परमेश्वर का यह कथन याद आया : "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। सही है! इस नास्तिक देश चीन में परमेश्वर पर विश्वास करने और सही मार्ग अपनाने पर हमारा अपमानित और उत्पीड़ित होना तय है। लेकिन यह दुख अस्थायी है, यह परमेश्वर का अनुसरण कर बचाए जाने के लिए है, जो एक सम्मान की बात है। इस दुख का मूल्य और अर्थ है। यह समझकर मुझे राहत मिली, और मैंने ज्यादा बेबस महसूस नहीं किया।

मेरा बेटा और बहू बाहर गए थे, उस महीने के अंत में नववर्ष के लिए वे घर लौटे। हमारी बहू लौटते ही मेरी पत्नी और मुझ पर बरस पड़ी, "हमने कहा था कि परमेश्वर पर विश्वास मत करो, लेकिन आप नहीं सुनते, जिद किए बैठे हैं! अगर आपको यही करना है, तो हमें इसमें न घसीटें। अपनी आस्था छोड़ दें, तो आप यहाँ रह सकते हैं, लेकिन अगर अड़े रहे, तो यहाँ से जाना होगा। हम संबंध पूरी तरह से तोड़ लेंगे, कोई किसी के आड़े नहीं आएगा।" यह कहते हुए उसने गुस्से से मेरी पत्नी को थप्पड़ मार दिया। मैंने तेजी से बीच में आकर कहा, "तुम इन पर हाथ कैसे उठा सकती हो?" उसने जवाब दिया, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आपकी आस्था पार्टी के खिलाफ है, और अब हमारा पूरा परिवार फँस गया है।" मैंने कहा, "अपनी आस्था में हम सिर्फ इकट्ठे होकर परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं। पार्टी विश्वासियों को गिरफ्तार कर सताती है, यहाँ तक कि हमारे परिवार के सदस्यों को भी फँसा देती है। कम्युनिस्ट पार्टी दुष्ट है! पर तुम पार्टी से नफरत करने के बजाय हमें सता रही हो। तुम सत्य को उल्टा कर रही हो, सही को गलत समझ रही हो!" इसके बाद उसने और कुछ नहीं कहा। वह एक तरफ खड़ा रहा, और उसे हमारे साथ ऐसा बरताव करने दिया, हम दोनों बूढ़ों को घर से जाने के लिए कहने दिया। मैं बुरी तरह निराश था मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। यह चीनी नववर्ष था, दूसरों के बच्चे खुशी-खुशी घर वापस आकर उनसे मिल रहे थे, पर हमारी बहू हमें बाहर निकालना चाहती थी। हम कहाँ जाएँगे? अपनी पत्नी को बार-बार आँसू पोंछते देखकर भी बहुत बुरा लग रहा था। हम दोनों साठ के ऊपर थे और स्वास्थ्य भी पहले जैसा नहीं था। अगर हम बीमार हो गए और देखभाल के लिए बच्चे हमारे पास न हुए, तो हम क्या करेंगे? अगर हम घर पर रहे, तो शरीर को आराम तो मिलेगा, पर आस्था का अभ्यास करने का कोई उपाय न होगा। मैं वाकई दुविधा में था, परमेश्वर को पुकारकर उसका मार्गदर्शन माँग रहा था। मैंने अय्यूब की परीक्षा लिए जाने के बारे में सोचा। अय्यूब ने अपने सभी बच्चे और परिवार की संपत्ति खो दी, उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गए, पर उसने कभी परमेश्वर को दोष नहीं दिया, उसे नकारा नहीं, बल्कि उसके नाम की स्तुति की। अय्यूब को परमेश्वर पर सच्ची आस्था थी, वह उसकी गवाही में दृढ़ रहा, और उससे प्रशंसा पाई। उस समय, मैं भी एक दोराहे पर था : आराम से जीते हुए शैतान का अनुसरण, या कष्ट उठाते हुए परमेश्वर का अनुसरण। परमेश्वर मेरी सोच देख रहा था। यह सोचकर मैंने निश्चय किया कि चाहे कठिनाई या उत्पीड़न का सामना करना पड़े, मैं परमेश्वर का अनुसरण करूँगा, गवाही में दृढ़ रहूँगा और शैतान को शर्मसार करूँगा!

मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया : "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक घिनौना जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि आस्था में सत्य पाने के लिए दुख झेलना और कीमत चुकानी पड़ती है। सत्य का अनुसरण करने के लिए घर और दैहिक सुख छोड़ने में मूल्य और अर्थ है। साथ ही, अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य उसके द्वारा बचाए और पूर्ण किए जाने का एकमात्र अवसर है। केवल दैहिक सुखों का आनंद लेने के लिए सत्य का अनुसरण कर उसे प्राप्त करने का अवसर खोना, और अंततः परमेश्वर द्वारा बचाया न जाना, भारी मूर्खता होगी! मैंने हमेशा से एक सामंजस्यपूर्ण घर का आनंद चाहता था जहां मेरा बेटा साथ हो। मुझे चिंता थी कि मेरे बुढ़ापे में मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा, और मैं जी नहीं पाऊँगा। मुझमें न तो परमेश्वर के प्रति आस्था थी और न ही दुख सहने की शक्ति। मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा था। अय्यूब को परमेश्वर पर आस्था थी और वह अपनी गवाही पर दृढ़ रहा, जो बहुत महिमा की बात थी! मैं अय्यूब की तरह बनकर सत्य पाने के लिए कष्ट सहना चाहता था—यह कष्ट सहने योग्य था!

मैंने बाद में परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, जिससे मैं उसकी इच्छा थोड़े बेहतर ढंग से समझा। "यह 'विश्वास' शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा और ईमानदार हृदय है, जो मनुष्यों के पास तब होना चाहिए जब वे किसी चीज को देख या छू न सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप न होता हो, जब वह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। मैं इसी विश्वास की बात करता हूँ। कठिनाई और शोधन के समय लोगों को विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास वह चीज है जिसके बाद शोधन होता है; शोधन और विश्वास को अलग नहीं किया जा सकता। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, तुम जीवन का अनुसरण करने, सत्य की खोज करने, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान को तलाशने, उसके क्रियाकलापों की समझ रखने और सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो। ऐसा करना ही सच्चा विश्वास रखना है, ऐसा करना यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है। तुम केवल तभी परमेश्वर में सच्चा विश्वास रख सकते हो, जब तुम शोधन द्वारा सत्य का अनुसरण करते रहने में समर्थ होते हो, जब तुम सच में परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होते हो और उसके बारे में संदेह विकसित नहीं करते, जब तुम उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो चाहे वह कुछ भी करे, और जब तुम गहराई में उसकी इच्छा का पता लगाने में समर्थ होते हो और उसकी इच्छा के प्रति विचारशील होते हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचन बिलकुल स्पष्ट हैं। जब हम मुसीबतों और परीक्षणों का सामना करते हैं, नहीं जानते कि क्या करें, तो हमें परमेश्वर पर आस्था करने, उसके सर्वशक्तिमान शासन पर विश्वास कर, उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं को मानना चाहिए। केवल यही परमेश्वर पर सच्ची आस्था है। ठीक अय्यूब की तरह, जिसने परमेश्वर की गवाही के लिए अपनी आस्था पर भरोसा किया, शैतान को नीचा दिखाया और परमेश्वर को सुकून दिया। इस बारे में जितना सोचा, मैं उतना ही प्रेरित हुआ। भले ही मेरे बच्चे मुझे छोड़ दें, मेरे पास कोई विकल्प न बचे, मैं फिर भी परमेश्वर का अनुसरण करूँगा! मैंने पत्नी को दिलासा दिया, "हम परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए कष्ट और उत्पीड़न मिल रहे हैं—यह भोगने लायक है! भीख माँगकर भी खाना पड़ा, तो भी हमें परमेश्वर के साथ जाना होगा!" उसने अपने आँसू पोंछे और कहा, "तो ठीक है, चलो इस घर को छोड़ दें!"

हमें एक पुराना परित्यक्त घर मिल गया और हम वहाँ चले गए। हम वहाँ आठ साल रहे। उस दौरान हालाँकि हम झोपड़ियों में रह रहे थे और कुछ शारीरिक परेशानियाँ भी थीं, लेकिन अपनी बहू की विघ्न-बाधाओं के बिना, हम इकट्ठे होकर परमेश्वर के वचन पढ़ सकते थे, सुसमाचार साझा कर सकते थे और कर्तव्य निभा सकते थे। हमने कुछ सत्य सीखे, और हमारे भीतर शांति और आनंद की भावना पैदा हो गई। कभी-कभी जब हमारे जीवन में कठिनाइयाँ आतीं, तो भाई-बहन उत्साहपूर्वक मदद करते। जब हम कमजोर और नकारात्मक महसूस करते, तो वे हमें समर्थन देने आते। हम जान गए कि यह पूरी तरह से परमेश्वर का प्रेम है, और हमने उसे हृदय से धन्यवाद दिया! पर आठ साल बाद हम फिर से मुश्किल में पड़ गए।

हम एक जर्जर मकान में रह रहे थे, नवंबर 2020 में पर्यावरण ब्यूरो ने उसे तोड़ने का फैसला किया। उन्होंने हमें तीन दिन का समय दिया। मैं तुरंत घबरा गया। हम कहाँ जाएँगे? हम घर वापस नहीं जा सकते थे, चीनी नववर्ष आने वाला था, हमारा किसी और के घर जा पाना भी मुश्किल था। हमारे पास रहने की कोई जगह नहीं थी। मेरी पत्नी को ठंड जल्दी लग जाती है और सीने में बहुत दर्द होता है। जगह नहीं मिली तो क्या होगा? मैं इतना चिंतित था कि उसके साथ रोने लगा। हमें बेघर होते देख गांववालों ने हमारा मजाक उड़ाया : "अब आपको विश्वासी होने का फल मिलेगा! आप पार्टी के खिलाफ गए, अब रहने के लिए भी जगह नहीं। जैसी करनी वैसी भरनी!" उन अविश्वासियों के ताने और अपमान झेलते हुए मैंने कम्युनिस्ट पार्टी की दुष्टता और भी ज्यादा देखी! उसने वे झूठ गढ़े और आम लोगों को गुमराह कर उनसे परमेश्वर का विरोध करवाया। मुझे उससे बहुत घिन हुई। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : "परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है। अर्थात, परमेश्वर विजय का कार्य उन्हीं लोगों के माध्यम से करता है जो उसका विरोध करते हैं, और केवल इसी प्रकार परमेश्वर की महान सामर्थ्य प्रत्यक्ष की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, केवल अशुद्ध देश के लोग ही परमेश्वर की महिमा का उत्‍तराधिकार पाने के योग्य हैं, और केवल यही परमेश्वर की महान सामर्थ्‍य को उभारकर सामने ला सकता है। इसी कारण अशुद्ध देश से ही, और अशुद्ध देश में रहने वालों से ही परमेश्वर की महिमा प्राप्त की जाती है। ऐसी ही परमेश्वर की इच्छा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मैंने पाया कि परमेश्वर हम पर उत्पीड़न और कठिनाइयाँ इसलिए आने देता है, ताकि हमारी आस्था और प्रेम पूर्ण हो जाए, हम कम्युनिस्ट पार्टी की बुराई, उसका परमेश्वर विरोधी सार स्पष्ट देख सकें, और उसे हृदय से त्यागकर नकार सकें, उस स्थिति से निकलने के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहें।

उस वक्त मैंने अपनी बेटी के घर जाने की सोचकर उसे फोन किया, आश्चर्य हुआ जब उसने रुखाई से कहा, "आपका एक बेटा है। आपकी देखभाल करना मेरा काम नहीं है!" मुझे खयाल आया, मेरा बेटा और बहू नौकरी करने के लिए शहर से बाहर थे और घर खाली था, हम घर की देखभाल में उनकी मदद कर सकते हैं। मैंने उन्हें फोन कर कहा कि हम वापस जाकर घर की देखभाल कर सकते हैं। पर किसने सोचा होगा, मेरी बहू ने शातिर अंदाज में कहा, "मैं घर की चाबियाँ तब तक नहीं दूँगी, जब तक आप यह नहीं कहते कि आप अब विश्वासी नहीं हैं। वरना आप दहलीज पार नहीं कर पाएँगे!" यह ठीक वैसा ही था, जैसे कम्युनिस्ट पार्टी भाई-बहनों को "तीन पत्रों" पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर करती है। मैंने परमेश्वर के ये वचन याद किए : "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। ऐसा लगता था, जैसे मेरी बहू अत्याचार कर हमें परमेश्वर को धोखा देने के लिए कह रही है, पर असल में यह शैतान की परीक्षा थी, हम उसकी चाल में नहीं फँस सकते! मुझे परमेश्वर का यह कथन याद आया : "विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन से मैंने देखा कि विश्वासी और अविश्वासी अलग लोग होते हैं। मेरे बच्चे अविश्वासी हैं, इसलिए वे अच्छी संभावनाओं और जीवनके लिए धन और आजीविका के लिए काम करते हैं। वे भौतिक सुख के पीछे भागने के अविश्‍वासी मार्ग पर हैं। हम विश्वासी हैं, इसलिए हम सत्य और जीवन का अनुसरण करते हैं, और हम उद्धार के मार्ग पर हैं। हम अलग मार्गों पर हैं और हमारे परिणाम भी अलग होंगे। जिन्हें परमेश्वर पर आस्था है और जो उसके प्रति समर्पित हैं, उन्हें ही अच्छा परिणाम और गंतव्य मिलेगा। मेरे बच्चों में आस्था नहीं है, वे परमेश्वर के विरुद्ध भी जाते हैं, इसलिए अंत में उन्हें परमेश्वर दंड देगा! परमेश्वर लोगों के भाग्य और परिणामों का प्रभारी है। मेरे बच्चों का तो खुद पर कोई बस नहीं था, पर मैंने उन पर भरोसा करना चाहा। क्या यह मूर्खता नहीं थी? इसलिए मैंने उन दोनों से ईमानदारी से कड़े स्वर में कहा, "मैं आस्था के इस मार्ग पर पूरी तरह से कायम हूँ। मैं भीख माँगकर खाना और सड़कों पर भटकना पसंद करूँगा। फिर भी मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगा!" जैसे ही हम परमेश्वर द्वारा निर्धारित स्थितियों से जरने के लिए तैयार हुए, अचानक मेरी बेटी ने फोन करके कहा कि हम उसके साथ रह सकते हैं। मैं जान गया कि परमेश्वर हमारे लिए रास्ता खोल रहा है, और मैंने उसे बार-बार धन्यवाद दिया!

अपनी बेटी के घर पर हम घर के आस-पास थोड़ा-बहुत काम करते, फिर परमेश्वर के वचन पढ़ते और खाली समय में सभाओं में जाते। पर हमारा वहाँ ज्यादा समय रहने का विचार नहीं था। मुझे और मेरी पत्नी को एक खाली जमीन मिल गई, जिस पर हमने गेहूँ की बिक्री से मिले लगभग 5,000 युआन से छोटा घर बनाया, और अपनी बेटी के घर से चले गए। तब से हम अपने बच्चों की बाधा से दूर हैं। हम परमेश्वर के वचन खा-पी सकते हैं, सभाओं में जा सकते हैं और कर्तव्य निभा सकते हैं। मैं बहुत आजाद और तनावमुक्त महसूस करता हूँ।

हालाँकि उस अनुभव के माध्यम से हमने कुछ शारीरिक कष्ट झेले, लेकिन हमने कम्युनिस्ट पार्टी की दुष्टता और परमेश्वर-विरोधी सार को समझ लिया, अपने बच्चों का परमेश्वर-विरोधी सार भी देख लिया। परमेश्वर ही हमारी एकमात्र चट्टान, हमारा एकमात्र उद्धार है। मैं परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन का आभारी हूँ, जिसने मुझसे कठिन परिस्थितियों में सही चुनाव करवाया।

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