मेरा सपना टूटने के बाद
बचपन से, मुझे हमेशा से ही नृत्य करना बहुत पसंद रहा है। मेरी माँ ने मुझे बताया कि जब मैं बहुत छोटी थी, तो जब भी कोई संगीत बज रहा होता था, मैं स्वाभाविक रूप से उसकी ताल पर झूमने लगती थी। जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मेरा नृत्य के प्रति जुनून और भी बढ़ता गया और मैं नृत्य से जुड़ी हर चीज में विशेष रुचि लेने लगी। खासतौर पर जब मैं टीवी पर किसी मंच पर नर्तकों को नृत्य करते हुए और कठिन नृत्य मुद्राओं को बिना किसी परेशानी के करते हुए, और मंत्रमुग्ध दर्शकों को ताली बजाते और जयकारे लगाते हुए देखती थी, तो अपनी नजरें उनसे हटा नहीं पाती थी और उनके प्रदर्शन का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ता था। यह बहुत ही खूबसूरत होता था! मैंने सोचती थी कि, “अगर मैं भी एक नर्तकी बन पाऊँ, अपने नृत्य से खुद को व्यक्त कर पाऊँ और अपने दर्शकों की तालियाँ और प्रशंसा प्राप्त कर पाऊँ, तो यह कितना अच्छा होगा!” अपना सपना साकार करने के लिए, मैंने एक नृत्य प्रशिक्षण देने वाली कक्षा में दाखिला लिया और पेशेवर प्रशिक्षण की अवधि शुरू हो गई। कक्षा के दौरान मैं अपने शिक्षक की हरकतों को बहुत ध्यान से देखती थी और हर एक हरकत को सही से करने की कोशिश करती थी। मेरे शिक्षक का कहना था कि मुझमें नर्तकी बनने की बहुत संभावना है और मेरे सारे साथी भी कहते थे कि निश्चित रूप से मेरे लिए नृत्य में भविष्य था। मुझे यह सुनकर खुशी होती थी, मैं सोचती थी कि मेरे अंदर एक नर्तकी के रूप में वास्तविक प्रतिभा है और मैं नृत्य में करियर बना सकती हूँ। इस जीवन में नृत्य का अनुसरण करने का मिशन शायद ऊपर से ही बनकर आया था।
बाद में, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने का सौभाग्य मिला और कलीसिया के वीडियो देखकर मुझे पता चला कि कलीसिया में भी नृत्य की एक सेवा है। भाई-बहनों को गाते, नृत्य करते और परमेश्वर की स्तुति करते देख, मैंने मन ही मन में सोचा, “धर्मनिरपेक्ष दुनिया में नृत्य करना अविश्वासियों के लिए होता है और इसका कोई मूल्य नहीं होता, लेकिन कलीसिया में नृत्य करना एक कर्तव्य है और इससे मैं परमेश्वर की स्तुति कर सकती हूँ, यह काफी सार्थक है! इसके अलावा कलीसिया के वीडियो ऑनलाइन अपलोड किए जाते हैं और दुनिया भर के लोग उन्हें देखते हैं। अगर मैं उन वीडियो में अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन कर सकूँ, तो क्या मुझे और भी अधिक प्रशंसा और सराहना नहीं मिलेगी? आगे चलकर, मुझे नृत्य का अभ्यास करने में और भी अधिक समय लगाना होगा, ताकि मुझे नृत्य से संबंधित कोई कर्तव्य मिल सके।” बाद में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा हमारी कलीसिया को सताया गया और कई भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया, जिसके कारण हमें बमुश्किल इकट्ठा होने और सामान्य रूप से अपने कर्तव्य करने के मौके मिल पाते थे, एक नृत्य समूह शुरू करने की तो कोई संभावना ही नहीं थी। मैं किसी भी तरह चीन को छोड़ना चाहती थी और एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में जाकर अपनी आस्था का अभ्यास और कर्तव्य करना चाहती थी। खुद को तनावमुक्त रखने के लिए, जब भी मेरे पास खाली समय होता, मैं स्ट्रेचिंग और व्यायाम करती। कभी-कभी, जब मैं संगीत सुनती, तो मैं खुद को एक मंच पर नृत्य करते हुए कल्पना करती। इसके तुरंत बाद, एक सभा के दौरान, अचानक पुलिस आ पहुँची और गिरफ्तारियाँ करने लगी। मुझे 37 दिनों तक हिरासत में रखा गया और बाद में अगली सुनवाई तक जमानत पर रिहा कर दिया गया। दोबारा गिरफ्तार किए जाने के डर से, मैं घर से भाग गई और कहीं छिप गई। हर दिन मैं खिड़की से बाहर विशाल नीले आकाश को देखती और इसमें एकदम खो सी जाती थी, सोचती थी कि, “अब जबकि मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है, तो लग रहा है जैसे मुझे सीसीपी ने कैद कर लिया है। आगे चलकर, मैं कहीं भी स्वतंत्र रूप से नहीं जा सकती और न ही देश छोड़ सकती हूँ। तो फिर मुझे मंच पर प्रदर्शन करने का कोई मौका कैसे मिलेगा? क्या इसका मतलब यह नहीं कि मेरा नृत्य करने का सपना टूट चुका है?” इन विचारों के कारण मुझे बहुत बुरा महसूस होता था। बाद में, कलीसिया ने मुझे भजन रचने के लिए कहा, लेकिन भले ही मैं बाहर-बाहर से अपना कर्तव्य निभा रही थी, मेरा दिल उसमें नहीं लगता था। मैं यहाँ तक सोचने लगी कि मैं सिर्फ नर्तकी बनने के लिए ही बनी हूँ और यह कर्तव्य मेरे लिए उपयुक्त नहीं है। जब मेरी अगुआ ने देखा कि मैं उस नकारात्मक अवस्था में डूबी हूँ और सुधार करने में विफल हूँ, तो उसने मुझे मेरे कर्तव्य से बरखास्त कर दिया।
बरखास्त होने के बाद, मैंने हर दिन बोझिल और उलझन भरी स्थिति में बिताया। जब भी मैं नृत्य का सपना कुचले जाने के बारे में सोचती, तो मुझे बहुत कष्ट होता और मैं खुद को दिशाहीन महसूस करती। अपनी इस बेबसी के बीच, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे पता है कि जब से मुझे बरखास्त किया गया है, तुम्हें किसी न किसी तरह मुझसे घृणा हुई होगी लेकिन मैं बहुत असंवेदनशील हूँ और नहीं जानती कि मैंने कहाँ गलती की है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं खुद को जान सकूँ।” मैंने हर दिन इसी तरह परमेश्वर से प्रार्थना की। एक बार भक्ति के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे अपनी समस्या के बारे में कुछ समझ दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “लोगों को लगता है कि ज्ञान अर्जित करने में कुछ भी गलत नहीं है, यह पूरी तरह स्वाभाविक है। इसे आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करना, ऊँचे आदर्श पालना या महत्वाकांक्षाएँ होना प्रेरणा प्राप्त करना है, और यही जीवन में सही मार्ग होना चाहिए। अगर लोग अपने आदर्श साकार कर सकें, या सफलतापूर्वक करियर बना सकें, तो क्या यह जीने का और भी अधिक गौरवशाली तरीका नहीं है? ये चीजें करने से व्यक्ति न केवल अपने पूर्वजों का सम्मान कर सकता है, बल्कि इतिहास पर अपनी छाप छोड़ने का मौका भी पा सकता है—क्या यह अच्छी बात नहीं है? सांसारिक लोगों की दृष्टि में यह एक अच्छी बात है, और उनकी निगाह में यह उचित और सकारात्मक होनी चाहिए। लेकिन क्या शैतान, अपने भयानक इरादों के साथ, लोगों को इस प्रकार के मार्ग पर ले जाता है, और बस इतना ही होता है? बिलकुल नहीं। वास्तव में, मनुष्य के आदर्श चाहे कितने भी ऊँचे क्यों न हों, उसकी इच्छाएँ चाहे कितनी भी यथार्थपरक क्यों न हों या वे कितनी भी उचित क्यों न हों, वह सब जो मनुष्य हासिल करना चाहता है और खोजता है, वह अटूट रूप से दो शब्दों से जुड़ा है। ये दो शब्द हर व्यक्ति के जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें शैतान मनुष्य के भीतर बैठाना चाहता है। वे दो शब्द कौन-से हैं? वे हैं ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’। शैतान एक बहुत ही धूर्त किस्म का तरीका चुनता है, ऐसा तरीका जो मनुष्य की धारणाओं से बहुत अधिक मेल खाता है; जो बिल्कुल भी क्रांतिकारी नहीं है, जिसके जरिये वह लोगों से अनजाने ही जीने का अपना मार्ग, जीने के अपने नियम स्वीकार करवाता है, और जीवन के लक्ष्य और जीवन में उनकी दिशा स्थापित करवाता है, और वे अनजाने ही जीवन में महत्वाकांक्षाएँ भी पालने लगते हैं। जीवन की ये महत्वाकांक्षाएँ चाहे जितनी भी ऊँची क्यों न प्रतीत होती हों, वे ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। इस अंश को पढ़ने के दौरान मुझे अचानक एहसास हुआ और मैं तुरंत समझ गई कि मैं प्रसिद्धि और लाभ पाने के रास्ते पर चल रही थी। अतीत में, मैंने हमेशा यही सोचा था कि अपने सपनों को साकार करने का प्रयास करना ही जीवन का सही मार्ग है। मैंने सोचा था कि अपने जीवन में कुछ हासिल करना यह दर्शाता है कि मुझमें अभिलाषा और महत्वाकांक्षा है और अपने साथियों से आगे बढ़ना और अपना नाम बनाना ही मेरी योग्यता को दर्शाने का एक तरीका था। यह मुझे उन लोगों से बहुत बेहतर बना देगा जिनके पास न तो कोई सपना है और न ही कोई महत्वाकांक्षा और जो अपने औसत दर्जे के जीवन से संतुष्ट हैं। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं का अनुसरण करना शैतान द्वारा लोगों को भ्रष्ट करने और उन्हें प्रसिद्धि और लाभ पाने के मार्ग पर चलने को प्रेरित करने के तरीकों में से एक है। जितना अधिक कोई प्रसिद्धि और लाभ खोजता है, उतना ही वह परमेश्वर की माँगों से दूर चला जाता है। परमेश्वर चाहता है कि हम ईमानदारी और व्यावहारिकता से सृजित प्राणियों के रूप में कार्य करें और अपने कर्तव्यों को पूरा करें, लेकिन जो लोग प्रसिद्धि और लाभ खोज रहे होते हैं, वे केवल यह सोचते हैं कि कैसे अपने साथियों से आगे निकलें और वे कभी भी चीजों से संतुष्ट नहीं होते। मैंने आत्म-चिंतन किया कि मैं नर्तकी बनने के लिए इतनी मेहनत क्यों कर रही थी। जब भी मैं टीवी पर नर्तकों को अपने कठिन मुद्राओं के साथ दर्शकों की तालियाँ बटोरते देखती, तो मुझे उनसे बेहद जलन होने लगती थी और मैं उस दिन का सपना देखती कि जब मैं भी मंच के केंद्र में खड़ी होऊँगी, सभी के ध्यान का केंद्र बनूँगी, उनकी जय-जयकार और तालियाँ बटोरूँगी और खुद को अलग पहचान दिलाने का अपना लक्ष्य साकार करूँगी। अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए, मैं सुबह से शाम तक नृत्य का अभ्यास करती थी और बहुत प्रेरित रहती थी। लेकिन सीसीपी द्वारा गिरफ्तारी के बाद से मेरा आपराधिक रिकॉर्ड बन गया था, मैंने विदेश जाने का अवसर खो दिया था। जब मुझे एहसास हुआ कि मेरा सपना चकनाचूर हो गया है, तो मैं काफी उदास और निराश हो गई और अपने कर्तव्य को निभाने में लापरवाह और असावधान हो गई। ऐसा लगा जैसे मैं एक अलग व्यक्ति बन गई हूँ। तब जाकर मैंने देखा कि प्रसिद्धि और लाभ वे साधन हैं जिनके द्वारा शैतान लोगों को बहकाता और भ्रष्ट करता है। बाहर से देखने पर वे लोगों को प्रशंसा और सराहना तो दिला सकते हैं, लेकिन वास्तव में, वे लोगों को वैचारिक रूप से भ्रष्ट कर देते हैं और फिर वे केवल प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही सोचते हैं और सत्य का अनुसरण करना और अपने कर्तव्यों को निभाना तो दूर की बात है, वे परमेश्वर की आराधना करना भी भूल जाते हैं। आखिरकार इसके कारण लोग परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और वे उद्धार पाने का अवसर पूरी तरह खो देते हैं।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के प्रति मसीह-विरोधियों का चाव सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होता है, और यह एक ऐसी चीज है जो उनके स्वभाव सार के भीतर होती है; यह कोई अस्थायी रुचि या उनके परिवेश का क्षणिक प्रभाव नहीं होता—यह उनके जीवन, उनकी हड्डियों में समायी हुई चीज है, और इसलिए यह उनका सार है। कहने का तात्पर्य यह है कि मसीह-विरोधी लोग जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का होता है, और कुछ नहीं। मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा ही उनका जीवन और उनके जीवन भर का लक्ष्य होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार यही होता है : ‘मेरे रुतबे का क्या होगा? और मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? क्या ऐसा करने से मुझे अच्छी प्रतिष्ठा मिलेगी? क्या इससे लोगों के मन में मेरा रुतबा बढ़ेगा?’ यही वह पहली चीज है जिसके बारे में वे सोचते हैं, जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उनमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है; वे अन्यथा इन समस्याओं पर विचार नहीं करेंगे। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा कोई अतिरिक्त आवश्यकता नहीं है, कोई बाहरी चीज तो बिलकुल भी नहीं है जिसके बिना उनका काम चल सकता हो। ये मसीह-विरोधियों की प्रकृति का हिस्सा हैं, ये उनकी हड्डियों में हैं, उनके खून में हैं, ये उनमें जन्मजात हैं। मसीह-विरोधी इस बात के प्रति उदासीन नहीं होते कि उनके पास प्रतिष्ठा और रुतबा है या नहीं; यह उनका रवैया नहीं होता। फिर उनका रवैया क्या होता है? प्रतिष्ठा और रुतबा उनके दैनिक जीवन से, उनकी दैनिक स्थिति से, जिस चीज का वे रोजाना अनुसरण करते हैं उससे, घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। और इसलिए मसीह-विरोधियों के लिए रुतबा और प्रतिष्ठा उनका जीवन हैं। चाहे वे कैसे भी जीते हों, चाहे वे किसी भी परिवेश में रहते हों, चाहे वे कोई भी काम करते हों, चाहे वे किसी भी चीज का अनुसरण करते हों, उनके कोई भी लक्ष्य हों, उनके जीवन की कोई भी दिशा हो, यह सब अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा रुतबा पाने के इर्द-गिर्द घूमता है। और यह लक्ष्य बदलता नहीं; वे कभी ऐसी चीजों को दरकिनार नहीं कर सकते। यह मसीह-विरोधियों का असली चेहरा और सार है। तुम उन्हें पहाड़ों की गहराई में किसी घने-पुराने जंगल में छोड़ दो, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे दौड़ना नहीं छोड़ेंगे। तुम उन्हें लोगों के किसी भी समूह में रख दो, फिर भी वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में ही सोचेंगे। भले ही मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के अनुसरण को परमेश्वर में आस्था के बराबर समझते हैं और उसे समान महत्व देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब वे परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलते हैं, तो वे प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण भी करते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर ने उजागर किया कि कैसे मसीह-विरोधी विशेष रूप से प्रतिष्ठा और रुतबे को सँजोते हैं यहाँ तक कि प्रतिष्ठा और रुतबे को अपना जीवन और जीवन में जो लक्ष्य पाना चाहते हैं उसके रूप में देखते हैं चाहे वे किसी भी समय या स्थान पर हों, उनके उद्देश्य की दिशा में कुछ भी बदलाव नहीं आता। वास्तव में, मैं भी बिल्कुल ऐसी ही थी। छोटी उम्र से ही, मुझे दिखावा करना और दूसरों से अपनी प्रशंसा और सराहना करवाना अच्छा लगता था। यह देखकर कि टीवी पर नर्तकों को दर्शकों से कैसे प्रशंसा और सराहना मिलती है, मैं भी उनकी प्रशंसा करने लगी थी और उनके जैसी बनने की ख्वाहिश रखने लगी। मैंने तो एक बेहतरीन नृत्य कलाकार बनने का लक्ष्य भी निर्धारित कर लिया था। आस्था में प्रवेश करने और अपना कर्तव्य निभाने के बाद भी, मैंने अपने जीवन के लक्ष्य को नहीं बदला था और जब मैं अपनी स्थानीय कलीसिया में नृत्य का कर्तव्य नहीं कर पाई, तो मैंने एक कलाकार के रूप में एक कलाकार के बतौर मंच पर कदम रखने का महान सपना पूरा करने के लिए विदेश जाने की ख्वाहिश की। सीसीपी द्वारा गिरफ्तारी और आपराधिक रिकॉर्ड बन जाने के बाद मैं देश छोड़कर नहीं जा सकती थी, फिर भी मैं अपने नृत्य के सपने के बारे में लगातार सोचना बंद नहीं कर पाई। और अपने लक्ष्य को हासिल न कर पाने के कारण मैं नकारात्मक और पीड़ित महसूस करने लगी मैं अपने कर्तव्य को बेपरवाही और नकारात्मक मनोस्थिति में निभाने लगी और ढिलाई बरतने लगी। मैं अक्सर अपने भविष्य और प्रतिष्ठा के बारे में सोचती और उस पर विचार करती थी। मैंने अपने कर्तव्य को एक ऐसे स्प्रिंगबोर्ड के रूप में देखा जो मुझे अपने सपनों को हासिल करने में मदद करेगा। मैं अपने उचित कर्तव्यों पर ध्यान देने में विफल रही और परमेश्वर का विरोध कर रही थी! इस हकीकत को समझते हुए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, तुम्हारे वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से, मैंने देखा है कि मैं प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे की ख्वाहिश में कितनी जुनूनी हूँ। मैं हमेशा अपने सपने पूरे करने की कोशिश में रहती हूँ और अपने उचित कर्तव्य निभाने में विफल रहती हूँ। मैं पश्चात्ताप करने, इन असाधारण इच्छाओं को त्यागने और बस अपना कर्तव्य पूरा करने की कोशिश करने के लिए तैयार हूँ।”
बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश मिला : “तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, और अपनी स्वार्थी इच्छाओं, मंशाओं और उद्देश्यों को दूर रखना चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखानी चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। कुछ समय तक ऐसे अनुभव के बाद, तुम पाओगे कि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। यह सरलता और ईमानदारी से जीना और नीच और भ्रष्ट व्यक्ति न होना है, यह घृणित, नीच और निकम्मा होने की बजाय न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है। तुम पाओगे कि किसी व्यक्ति को ऐसे ही कार्य करना चाहिए और ऐसी ही छवि को जीना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। मैंने आत्म-चिंतन किया कि अतीत में, मैं केवल अपनी महत्वाकांक्षा और इच्छा को पूरा करने के लिए ही अपना कर्तव्य निभाती थी। मैंने परमेश्वर के इरादों का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा और मैं एक नीच और घृणित तरीके से जीती रही। मुझे पता था कि अगर मुझे फिर से कर्तव्य करने का मौका मिलता है, तो मुझे अपनी निजी इच्छाओं को एक तरफ रखकर परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना होगा। मैं खुद को और अधिक पछतावे और अपराधबोध में नहीं छोड़ सकती थी। एक अवधि तक आत्म-चिंतन करने के बाद, मैंने फिर से कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। हालाँकि वह कर्तव्य सामान्य मामलों से जुड़ा था और नृत्य से इसका कुछ लेना-देना नहीं था, लेकिन मैं जानती थी कि असल में परमेश्वर मुझे पश्चात्ताप करने का एक मौका दे रहा था, इसलिए मैं एक सृजित प्राणी के रूप में समर्पण करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार थी।
बस इस तरह, आधे वर्ष से भी अधिक बीत गया और हालाँकि मैं अब अपने सपनों को पूरा न कर पाने के कारण नकारात्मक और उदास महसूस नहीं करती थी, फिर भी मुझे कुछ उलझन सी रहती थी। कभी-कभी मैं सोचती थी कि, “बहुत से लोगों में प्रतिभाएँ, रुचियाँ और शौक होते हैं, क्या ये सभी चीजें नकारात्मक होती हैं? क्या लोगों को सच में इन चीजों का अनुसरण नहीं करना चाहिए?” एक दिन, मैंने इस मुद्दे के बारे में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसने मुझे मेरे सवालों के कुछ जवाब दिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “लोगों की रुचियाँ और शौक स्वाभाविक रूप से गलत नहीं होते, और यकीनन उन्हें नकारात्मक चीजें कहना भी सही नहीं होगा। उनकी निंदा या आलोचना नहीं करनी चाहिए। कुछ क्षेत्रों में लोगों की रुचि, उनमें शौक और प्रतिभाएँ होना सामान्य मानवता का हिस्सा है—ये हर व्यक्ति में होते हैं। कुछ लोगों को नाचना पसंद होता है, तो कुछ को गाना, चित्रकारी करना, अभिनय करना; कुछ लोगों को मैकेनिक्स, अर्थशास्त्र, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, खेती-बारी, नौयाकन या कुछ खास खेलों में मन लगता है, जबकि अन्य लोगों को भूगोल, भूविज्ञान या विमानन के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है, और बेशक, ऐसे लोग भी हैं जिनकी रुचि कुछ गूढ़ विषयों का अध्ययन करने में हो सकती है। चाहे व्यक्ति की रुचि और शौक जो भी हो, वे सभी मानवता और सामान्य मानव जीवन का हिस्सा हैं। उन्हें नकारात्मक चीजें बताकर कलंकित नहीं किया जाना चाहिए, और न ही उनकी आलोचना करनी चाहिए, और उन पर प्रतिबंध तो बिल्कुल नहीं लगाया जाना चाहिए। यानी, तुम्हारी कोई भी रुचि या शौक सही है। चूँकि कोई रुचि या शौक सही है और उसे बने रहने देना चाहिए, तो उनसे संबंधित आदर्शों और इच्छाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाए? उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को संगीत पसंद होता है। वे कहते हैं, ‘मैं संगीतकार या कंडक्टर बनना चाहता हूँ,’ और फिर सब कुछ छोड़-छाड़कर वे संगीत में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए पढ़ाई करने चले जाते हैं; अपने जीवन के लक्ष्यों और दिशा को संगीतकार बनने की ओर मोड़ देते हैं। क्या ऐसा करना सही है? (ऐसा करना सही नहीं है।) अगर तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, अगर तुम इस संसार का हिस्सा हो और अपनी रुचियों और शौक द्वारा निर्धारित किए गए आदर्शों और इच्छाओं को साकार करने में अपना जीवन बिताते हो, तो हमारे पास इस बारे में कहने को कुछ नहीं है। लेकिन, परमेश्वर का विश्वासी होने के नाते, अगर तुम्हारी ऐसी रुचियाँ और शौक हैं जिनकी खातिर तुम अपना पूरा जीवन न्योछावर करना चाहते हो, अपनी रुचियों और शौक द्वारा निर्धारित आदर्शों और इच्छाओं को साकार करने के लिए आजीवन कीमत चुकाना चाहते हो, तो यह मार्ग अच्छा है या बुरा? क्या यह बढ़ावा देने लायक है? (वह इस लायक नहीं है।) चलो अभी इस बारे में बात नहीं करते हैं कि यह बढ़ावा देने लायक है या नहीं; हर चीज पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, ऐसे में तुम यह कैसे निर्धारित कर सकते हो कि यह बात सही है या गलत? तुम्हें इस पर विचार करना होगा कि तुमने अपने लिए जो लक्ष्य, आदर्श, और इच्छाएँ निर्धारित की हैं उनका परमेश्वर की शिक्षाओं, उसके उद्धार और तुमसे उसकी अपेक्षाओं, मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के इरादे, तुम्हारे उद्देश्य, और तुम्हारे कर्तव्य से कोई संबंध है या नहीं, क्या वे तुम्हारा उद्देश्य पूरा करने और तुम्हारे कर्तव्य को अधिक कुशलता से पूरा करने में तुम्हारी मदद करेंगे, या क्या वे तुम्हारे बचाए जाने की संभावनाएँ बढ़ाएँगे और परमेश्वर के इरादों को पूरा करने में तुम्हारी मदद करेंगे। एक सामान्य व्यक्ति के रूप में, अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण करना तुम्हारा अधिकार है, लेकिन जैसे-जैसे तुम अपने आदर्शों और इच्छाओं को साकार करोगे और इस मार्ग पर आगे बढ़ोगे, तो क्या ये तुम्हें उद्धार के मार्ग पर लेकर जाएँगे? क्या ये तुम्हें परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर लेकर जाएँगे? क्या ये अंत में तुम्हें परमेश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण और उसकी आराधना के परिणाम तक लेकर जाएँगे? (नहीं ले जाएँगे।) इसमें कोई शक नहीं। चूँकि वे नहीं ले जाएँगे, तो परमेश्वर का विश्वासी होने के नाते, जो आदर्श और इच्छाएँ तुम्हारी रुचियों, तुम्हारे शौक, और यहाँ तक कि तुम्हारी प्रतिभाओं और गुणों से विकसित हुई हैं, वे सकारात्मक हैं या नकारात्मक? तुम्हारे पास ये होनी चाहिए या नहीं? (वे नकारात्मक चीजें हैं, जो हमारे पास नहीं होनी चाहिए।) तुम्हारे पास वे चीजें नहीं होनी चाहिए” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण कैसे करें (8))। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैंने महसूस किया कि रुचियाँ और शौक लोगों की सामान्य मानवता का एक हिस्सा हैं, जो परमेश्वर द्वारा मनुष्य को दिए गए हैं और यह स्वाभाविक रूप से नकारात्मक नहीं होते, लेकिन जब लोग अपने शौक और रुचियों को ऐसे आदर्शों और इच्छाओं के रूप में देखना शुरू कर देते हैं जिनका अनुसरण किया जाना चाहिए, तो फिर इस समस्या की प्रकृति बदल जाती है। जैसे ही कोई व्यक्ति अपने शौक को एक ऐसे आदर्श के रूप में मानने लगता है जिसका उसे अनुसरण करना है, तो फिर वह निश्चित रूप से उस पर बहुत सारा समय और ऊर्जा खर्च करेगा। साधारण लोगों को लग सकता है कि ऐसा करना उनकी स्वतंत्रता और अधिकार है, लेकिन परमेश्वर पर विश्वास करने वालों के लिए, अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण करना कुछ हद तक केवल उनके कर्तव्य को निभाने में बाधा ही डालेगा। इसके अलावा, अगर लोग अपने आदर्शों को पूरा करने में लगे रहते हैं, तो वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित नहीं हो सकते और वे केवल परमेश्वर से अधिक दूर भटकते जाएँगे। इसका चीज का मुझे व्यक्तिगत अनुभव है। मैंने कम उम्र में ही परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया था और अपना कर्तव्य करना शुरू कर दिया था और मुझे सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने का अवसर मिला। लेकिन मैं सही मार्ग पर नहीं चली, परमेश्वर द्वारा दिए गए अवसर की कदर नहीं की, और अपने सपनों को साकार करने का प्रयास करती रही। क्योंकि मैंने अपने सभी विचारों और ऊर्जा को अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण करने में लगा दिया, और सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, इसलिए मैंने लंबे समय तक अपने कर्तव्य में कोई प्रगति नहीं की। जीवन के प्रति मेरा नजरिया और मेरे मूल्य सभी शैतानी प्रकृति के थे। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद, मैंने सत्य की तलाश नहीं की और उस अनुभव से कुछ नहीं सीखा, बल्कि मैं प्रतिरोधी बन गई और परमेश्वर को उसकी योजना से बने परिवेश के लिए दोषी ठहराने लगी क्योंकि मेरे आपराधिक रिकॉर्ड के कारण मुझे विदेश यात्रा करने से रोक दिया गया था और नर्तकी बनने का मेरा सपना टूट गया था। एक सृजित प्राणी के रूप में, मुझे सृष्टिकर्ता की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए था और अपने अनुभव के माध्यम से परमेश्वर के इरादे को समझना चाहिए था। लेकिन मैं अपने सपने से हठपूर्वक चिपकी रही, परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं से असंतुष्ट रही, और अपने कर्तव्य में अनमने ढंग से कार्य करती रही और भटकती रही। भला मेरे रवैये और व्यवहार से परमेश्वर कैसे अप्रसन्न नहीं होता? अगर मैंने अपने सपनों और इच्छाओं का अनुसरण करना नहीं छोड़ा होता, और एक दिन नर्तकी के रूप में एक कर्तव्य निभाने में सक्षम हो जाती, तो निश्चित रूप से मैं अपनी गवाही देती और अपने सपने को पूरा करने के लिए खुद को प्रसिद्ध करने की कोशिश करती। अपने कर्तव्य में परमेश्वर के बजाय अपनी गवाही देना परमेश्वर के प्रति विरोध करने जैसा था और यह परमेश्वर के शाप का कारण बन सकता था!
मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। “अगर किसी को कला में रुचि है तो क्या उसे इसी काम में लग जाना चाहिए और क्या उसे जीवन भर यही काम करना चाहिए? यह जरूरी नहीं है। यह परमेश्वर के विधान पर निर्भर करता है, इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर कैसे अपनी संप्रभुता का इस्तेमाल और चीजों की व्यवस्था करता है। अगर परमेश्वर उसके लिए कलाक्षेत्र में काम करने की व्यवस्था करता है तो वह अपने जीवनकाल में कभी भी इस क्षेत्र को नहीं छोड़ेगा। लेकिन अगर परमेश्वर ने उसके लिए इस क्षेत्र में काम करने की व्यवस्था या विधान तय नहीं किया है तो उसके पास केवल यह रुचि और शौक होगा; और भले ही उसे इस काम में आनंद आता हो, लेकिन वह इस काम में जुट नहीं पाएगा। कुछ लोग बचपन से ही कला को पसंद करते हैं। अपने बच्चे में यह रुचि और शौक देखकर माता-पिता सोचते हैं, ‘चलो फिर इसे विकसित करते हैं। मुमकिन है कि हमारा परिवार कला के क्षेत्र में कोई प्रतिभा पैदा कर दे। शायद वह मशहूर हो जाए या एक महान कलाकार भी बन जाए!’ इसलिए वे अपने बच्चे को प्रशिक्षित करना शुरू करते हैं, उसे नृत्य और गायन सिखाने के लिए लेकर जाते हैं और फिर बच्चे का दाखिला किसी कला विद्यालय में कराया जाता है। हालाँकि स्नातक होने के बाद भी कला के प्रति बच्चे की रुचि और जुनून कम नहीं होता है, लेकिन वह इस कार्यक्षेत्र में जुटेगा या नहीं, यह पक्का नहीं है। संभव है कि जब उसे इस काम में जुटने की जरूरत पड़े हो तो उसका मन बदल जाए, इस कार्य के प्रति उसका रवैया और दृष्टिकोण बदल जाए; यह भी संभव है कि वस्तुगत माहौल में विभिन्न कारणों से वह इस क्षेत्र का हिस्सा बनने से चूक जाए। ये सभी चीजें संभव हैं; यह परमेश्वर के विधान पर निर्भर करता है” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में II, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। इस अंश को पढ़ने के बाद, मुझे बहुत राहत महसूस हुई। अतीत में, मैं सोचती थी कि मुझे अपनी रुचियों और शौकों से जुड़े कार्य ही करने हैं। मुझे लगता था कि मेरे शौक शायद परमेश्वर द्वारा मुझे दिया गया एक मिशन है, और क्योंकि मुझे नृत्य में रुचि थी, तो मुझे नृत्य से संबंधित कर्तव्य निभाना चाहिए। इसलिए, जब मुझे एक ऐसा कर्तव्य सौंपा गया जिसका नृत्य से कोई संबंध नहीं था, तो मुझे लगा कि वह कर्तव्य मेरे लिए उपयुक्त नहीं है और मैं उसे करना नहीं चाहती थी। लेकिन वास्तविक जीवन में मुझे निराशा ही मिलती रही, मैं नृत्य से संबंधित कोई भी कर्तव्य प्राप्त नहीं कर सकी। अब मैं समझती हूँ कि यह सब परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाएँ थीं। मैंने सोचा कि कैसे एक प्रसिद्ध नर्तकी की भतीजी ने कम उम्र से ही नृत्य में प्रतिभा दिखाई थी, और उस नर्तकी, उसकी चाची, ने चाहा था कि वह परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षण देने के बावजूद, उसकी भतीजी नृत्य में नहीं गई और उसके बजाय एक अभिनेत्री बन गई। ऐसे अनगिनत उदाहरण भी हैं जहाँ लोगों के पास विशेष कौशल या प्रतिभा होती है, लेकिन फिर भी वे अपने परिवार का पेट पालने के लिए सामान्य नौकरियों में अपना जीवन बिताते हैं और अपनी रुचियों और शौक से संबंधित क्षेत्र में कार्य नहीं कर पाते। इससे, मैंने देखा कि परमेश्वर ही इस बात पर संप्रभुता रखता है और इसकी व्यवस्था करता है कि हमारे जीवन में हम कौन सा कार्य करेंगे; लोगों की इसमें नहीं चलती और न ही अपनी इच्छा से ऐसी चीजें करवा सकते हैं। हालाँकि मैं अपनी रुचियों से संबंधित कर्तव्य नहीं निभा पाई, परमेश्वर ने मुझे अन्य कर्तव्यों को निभाने की काबिलियत प्रदान की। अब मैं पाठ-आधारित कार्य कर रही हूँ, एक ऐसा कर्तव्य जिसे मैंने पहले कभी करने की कल्पना नहीं की थी। विभिन्न लेखों और उपदेशों को पढ़ने के माध्यम से, मैंने दर्शनों से संबंधित कुछ सत्य सीखे हैं, परमेश्वर के कार्य के बारे में थोड़ा बहुत समझा है और प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है कि परमेश्वर हमारे लिए जो परिस्थितियाँ तैयार करता है, वे सर्वश्रेष्ठ होती हैं और हमारे जीवन के लिए लाभकारी होती हैं। भविष्य में चाहे मुझे नृत्य से संबंधित कर्तव्य करने का अवसर मिले या न मिले, मैं परमेश्वर की व्यवस्थाओं के तहत किसी भी परिवेश में समर्पण करने, सत्य की खोज करने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के लिए तैयार हूँ। इसके अलावा, अपने खाली समय में, मैं कलीसिया के नृत्य अभ्यास सीख रही हूँ, ताकि मैं अपनी रुचियों को बनाए रख सकूँ। कभी-कभी रात के खाने के बाद, मैं थोड़ी देर के लिए नृत्य करती हूँ और ऐसा करने के बाद मैं हमेशा थोड़ा खुश महसूस करती हूँ। मुझे लगता है कि यह मेरे शौक और रुचियों को पूरा करने का सही तरीका है। मैं अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ कि उसने मुझे यह शौक दिया है, जिससे मेरी जिंदगी थोड़ी और दिलचस्प बन गई है। मुझे अपने कर्तव्य को पूरा करने और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए और अधिक मेहनत करनी चाहिए।
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।