परमेश्वर का कार्य कितना ज्ञानपूर्ण है
कलीसिया में एक अगुआ के रूप में काम करने के मेरे समय के दौरान, मेरा अगुआ अक्सर ही हमारे लिए सबक के रूप में काम आने के लिए दूसरों की असफलताओं के उदाहरण साझा किया करता था। उदाहरण के लिए: कुछ अगुआ केवल पत्रों और सिद्धांतों की बातें करते थे लेकिन अपनी खुद की भ्रष्टता का उल्लेख करने या वास्तविकता के साथ सत्य को कैसे लागू किया जाए इस बारे में अपनी समझ के संबंध में संगति करने में असफल रहते थे। परिणामस्वरूप, वे व्यवहारिक कार्य करने में असमर्थ थे, प्रतिस्थापित किये जाने के लिए झूठे अगुआ बन गए थे। कुछ अगुआ अपनी हैसियत को बचाने के लिए दिखावा करते, खुद को ऊँचा दिखाते और खुद की गवाही देते थे। अंत में, ऐसे अगुआ लोगों को अपने समक्ष लाते थे और मसीह विरोध बन जाते थे जो हर प्रकार के कपटपूर्ण कार्य करते थे और जो कलीसिया से निकाले जाते थे। कुछ अगुआ, अपने कार्य के दौरान, अपनी खुद की देह के लिए बहुत ज्यादा परवाह दिखाया करते, विश्राम की लालसा रखते और कभी भी कोई असली कार्य नहीं करते। ऐसे अगुआ कलीसिया की हैसियत के फायदों पर जीने वाले परजीवियों की तरह थे। अंत में, उन्हें उजागर करके अलग कर दिया गया था। ...असफलता की ऐसी कहानियों को सुनकर, मेरे मन में एक सवाल आया: क्या परमेश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है? यह देखते हुए कि वे अगुआ बुराई कर रहे हैं, परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं और कलीसिया के कार्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं, परमेश्वर ने शीघ्र ही इन झूठे अगुओं को उजागर करने और हटाने के लिए हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? इस प्रकार से, क्या मेरे भाई-बहनों का जीवन और कलीसिया के सभी कार्यों को नुकसान से मुक्ति नहीं मिल जाती? यह सवाल किसी समाधान के बिना मेरे विचारों में बना रहा।
फिर एक दिन, मैंने एक उपदेश से निम्न अंश को पढ़ा: "कुछ लोग हमेशा हर स्तर के अगुवाओं की जोर से आलोचना कर रहे हैं और गैरज़िम्मेदार अभ्युक्तियाँ कर रहे हैं। इन लोगों में यह बर्ताव क्या उजागर करता है? यह उजागर करता है कि वे अहंकारी और दंभी और अतार्किक हैं, और उन्हें परमेश्वर के कार्य की कोई समझ नहीं है, और इसलिए वे सही समझ धारण करने में अक्षम हैं। अगर तुम यह पहचान सकते कि इस व्यक्ति में पवित्र आत्मा के कार्य का अभाव है और यह अपने कार्य से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य में नहीं ले जा रहा है, तो क्या इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम सत्य में प्रवेश कर चुके हो? अगर कोई व्यक्ति इस प्रकार की चीजें होता देखता है—अगर झूठे कार्यकर्ता या झूठे प्रेरित दिखाई देते हैं—तो परमेश्वर के चुने हुए व्यक्ति का क्या कर्तव्य है? परमेश्वर के चुने हुए व्यक्तियों को इस स्थिति को कैसे सँभालना चाहिए? उन्हें इस तरह के मुद्दे पर कैसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? तुम अपने वरिष्ठों को इस मामले की सूचना दे सकते हो और प्रश्नगत व्यक्ति को उजागर कर सकते हो। उचित माध्यमों से गुजरें ताकि परमेश्वर के चुने हुए और भी अधिक लोगों को समझ हो, और सूचित करने, उजागर करने, और सुझाव प्रस्तावित करने के लिए उचित उपायों को अपनाएँ—क्या समस्या का इस तरह से समाधान नहीं हो जाता है? इस तरह, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को जिम्मेदारी अवश्य लेनी चाहिए और ऐसे मामलों को हल करने के सही तरीके को अवश्य जानना चाहिए। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य के बिना हैं, तो वे निश्चित रूप से इन समस्याओं को हल करने के लिए उचित रूप से कार्य नहीं करेंगे। कुछ लोगों में न्याय की समझ होती है—वे परमेश्वर के कार्य में व्यवधान डालने वालों और विध्वंसकों को बस अपनी कलीसिया के अंदर अनुमति ही नहीं देंगे। जैसे ही उन्हें ऐसे व्यक्ति मिलते हैं, वे तुरंत सूचना देकर उन्हें उजागर कर देते हैं। कुछ लोग व्यवधान डालने वालों और विध्वंसकों का विरोध करेंगे, जबकि कुछ आँख मूँदकर उनका आज्ञापालन करेंगे। कुछ लोग आँख मूँदकर अगुवा की आराधना और उसका अनुसरण करते हैं फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो, अन्य लोग विवेक के बिना कार्य करते हैं, कोई कुछ भी कहता है उस पर ध्यान देते हैं ओर उसे स्वीकार कर लेते हैं। तो तुम देखो, कि इस तरह सभी विभिन्न प्रकार के लोगों को उजागर किया जाता है। जब इस प्रकार की चीजें होती हैं, तो वे वास्तव में लोगों को उजागर करती हैं, और उनके पीछे यह परमेश्वर की अच्छी मंशा होती है। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य की दृढ़ समझ हो, तो उनमें से अधिसंख्य लोग झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकताओं के प्रकट होने पर उन्हें पहचानने, उनका विरोध करने और उन्हें अस्वीकार करने में समर्थ होंगे। यह क्या दर्शाता है? यह दर्शाता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन परिपक्व और वयस्क हो गए हैं, यह कि उन्होंने पूरी तरह से उद्धार प्राप्त कर लिया है और यह कि उन्हें परमेश्वर के द्वारा प्राप्त कर लिया गया है और पूर्ण बना दिया गया है। इसलिए, जो कुछ भी घटित होता है उसके पीछे परमेश्वर की अच्छी मंशाएँ होती हैं" (जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति)। इसने मेरे भ्रम को पूरी तरह से दूर कर दिया। जैसा कि पता चला, परमेश्वर झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकताओं को हमारे कलीसिया के अंदर प्रकट होने देता है, क्योंकि यह परमेश्वर को सभी अलग-अलग तरह के लोगों को उजागर करने देता है। यह परमेश्वर को लोगों के अंदर सत्य रोपने करने देता है और लोगों को पहचान और ज्ञान देता है, ताकि वे सत्य का अहसास कर सकें और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। ऐसे सभी लोग जो सत्य को खोजते हैं और जिन्हें न्याय की समझ है, झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकर्ताओं द्वारा बुरे कार्य करने और कलीसिया के कार्य को बाधित करने पर, उठ खड़े होंगे और उनकी सूचना देंगे उन्हें उजागर करेंगे, उनका विरोध करेंगे और उनके कार्यों को त्याग देंगे, ताकि कलीसिया के हितों की रक्षा की जाए और परमेश्वर की गवाही दी जाए। क्योंकि उनमें पहचानने का अभाव है, वे केवल भीड़ के साथ चलने में सक्षम हैं, आँख मूँदकर दूसरों का अनुसरण करते हैं और दूसरों की चुपचाप मान लेते हैं, इसलिए वे लोग जो सत्य को नहीं खोजते हैं, लेकिन विवेकहीनता से दूसरों का अनुसरण करते हैं अंतत: दुष्ट-कुकर्मियों के साथ षडयंत्र रचने लगते हैं। क्योंकि वे सत्य को प्रेम नहीं करते हैं, बल्कि दूसरों की आराधना और उनका अनुसरण करते हैं, इसलिए प्रभावशालियों के उन निम्न समर्थकों और चापलूसों को झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकताओं द्वारा ठगा जाएगा। क्योंकि वे परमेश्वर के कार्य को नहीं पहचानते हैं, इसलिए ये अहंकारी और अज्ञानी कलीसिया के कार्य के बारे में केवल विचार करते हैं और अवधारणाएँ विकसित कर लेते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य पर भी संदेह व्यक्त करते या आलोचना करते हैं। इसके लिए, उन्हें उजागर किया जाता है। जैसा कि स्पष्ट है, परमेश्वर का कार्य बहुत विवेकी है! परमेश्वर मनुष्य को उजागर, प्रशिक्षित करने और सिद्ध बनाने के लिए इन चीज़ों के माध्यम से कार्य करता है, जो लोगों की अवधारणाओं के समान नहीं हैं। जो सच में परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य की खोज करते हैं, वे सत्य को खोजने, परमेश्वर की इच्छा को समझने, सत्य का अभ्यास करने, और परमेश्वर को संतुष्ट करने हेतु गवाही देने और परमेश्वर से उपचार और सिद्धता प्राप्त करने में सक्षम हैं। जो लोग सत्य की खोज नहीं करते हैं वे केवल दूसरों के वचनों को प्रतिबिंबित करते हैं, आँख मूँदकर आराधना करते हैं, या अपनी खुद की अवधारणाओं और कल्पनाओं के प्रसंग में परमेश्वर पर पर राय बनाते हैं। इसके लिए, उन्हें उजागर करके अलग कर दिया जाता है। मैंने परमेश्वर के वचन के निम्नलिखित अंश के बारे में सोचा, "कई नकारात्मक और विपरीत चीज़ों की सेवा और शैतान के तमाम प्रकटीकरणों—उसके कामों, आरोपों और उसकी बाधाओं और धोखों के माध्यम से परमेश्वर तुम्हें शैतान का भयानक चेहरा साफ़-साफ़ दिखाता है और इस प्रकार शैतान को पहचानने की तुम्हारी क्षमता को पूर्ण बनाता है, ताकि तुम शैतान से नफ़रत करो और उसे त्याग दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। निस्संदेह, यह सत्य है। लोग किसी घटना को प्रतिकूल या नकारात्मक मान सकते हैं, लेकिन परमेश्वर लोगों को पहचान और ज्ञान प्राप्त करने देने के लिए इस प्रतिकूल स्थिति के माध्यम से कार्य कर रहा है। वह लोगों को सत्य पर विश्वास दिलाने, परमेश्वर की बुद्धि, सर्वशक्तिमत्ता और चमत्कारिक कृत्यों को स्वीकार कराने और शैतान को त्यागने और परमेश्वर की ओर लौटने के लिए शैतान के षड्यंत्रों की वास्तविक प्रकृति को समझाने के लिए इस स्थिति के माध्यम से कार्य कर रहा है। यह मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए परमेश्वर का उन चीजों के माध्यम से कार्य करने के पीछे का कारण है, जो लोगों की अवधारणाओं के समान नहीं है। अगर इन झूठे अगुओं और झूठे कार्यकर्ताओं के उभरते ही परमेश्वर ने उजागर करके अलग कर दिया होता, तो लोग, सत्य को समझने की अपनी अयोग्यता को देखते हुए और दूसरों की सच्ची प्रकृति को पहचानने और देखने की अपनी अयोग्यता के परिणामस्वरूप, उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के सतही बलिदानों और निवेशों द्वारा बहका दिए जाते। परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर के कार्य के बारे में अवधारणाएँ और आलोचना विकसित करते, उलाहना की आवाज उठाते और यहाँ तक कि इन झूठे अगुओं या झूठे कार्यकताओं द्वारा किए गए कल्पित अन्याय की रक्षा के लिए भी सामने आते। इस प्रकार, परमेश्वर मनुष्य को सिद्ध करने का अपना लक्ष्य हासिल करने में असमर्थ होता। परमेश्वर ने इन झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को इसलिए उजागर नहीं किया था क्योंकि वह सर्वशक्तिमान नहीं है या क्योंकि वह उनकी असत्यता को नहीं पहचानता है। बल्कि, वह इन नकारात्मक क्रियाओं को लोगों को प्रशिक्षित करने के तरीके के रूप में बाहर लाना चाहता था, ताकि वे उनके बीच अंतर कर सकें जिनके पास पवित्र आत्मा का कार्य है और जिनके पास नहीं है, सच्चे और झूठे अगुओं और कार्यकर्ताओं के बीच, और उन लोगों के बीच जो सिद्धांतों की बात करते हैं और जिनके पास सत्य की वास्तविकता है अंतर कर सकें। वह हमें उन लोगों का दिल देखने के लिए प्रशिक्षित करना चाहता था, जो सत्य की खोज करते हैं और जिनमें न्याय की समझ है और जो सत्य की खोज नहीं करते हैं और जिनमें पहचान की कमी है, और वे अहंकारी लोग जो परमेश्वर के कार्य के संबंध में लगातार अवधारणाएँ रखते हैं। एक बार सभी लोग सत्य को समझ लें, परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश कर जाएँ, और परमेश्वर के अधिकार में चले जाएँ, तो उन झूठे प्रेरितों, झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं का काम पूरा हो गया होगा। इस प्रकार से, जब परमेश्वर इन लोगों को पूरी तरह से हटा देता है, तो न केवल लोग परमेश्वर को गलत नहीं समझेंगे, बल्कि वे उसकी धार्मिकता और सर्वशक्तिमत्ता की सराहना भी करेंगे। जैसा कि स्पष्ट है, कि परमेश्वर लोगों को सत्य को जानने, विभिन्न प्रकार के लोगों को पहचानने और परमेश्वर के वास्तविक कार्य की सच्ची समझ पाने देने के लिए इन प्रतिकूल और नकारात्मक घटनाओं के माध्यम से कार्य करता है।
तेरी प्रबुद्धता और मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर तेरा धन्यवाद, जिससे मुझे यह समझने दिया कि परमेश्वर का अच्छा इरादा और बुद्धि उन घटनाओं में भी होते हैं जो लोगों की अवधारणाओं के अनुसार नहीं होते हैं। ठीक जैसा कि परमेश्वर का वचन कहता है, "मैं अपनी बुद्धि शैतान के षडयंत्रों के आधार पर प्रयोग में लाता हूँ," और "परमेश्वर सभी चीज़ों का युक्तिपूर्वक इस्तेमाल करता है, ताकि वो उसकी सेवा करें" ताकि सबसे सार्थक तरीके सेमनुष्य को उजागर किया जा सके और सिद्ध बनाया जाए। भविष्य में, मैं परिस्थितियों के अच्छा या बुरा होने को मापने के लिए अपने अधम मानवीय परिप्रेक्ष्य का उपयोग न करने की शपथ लेता हूँ। मैं जिन भी मामलों में शामिल होता हूँ, उनमें सत्य को वाकई में समझने और सत्य के अधिकार में आने की, सत्य की खोज करने, परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता, और परमेश्वर के स्वभाव और उसके स्वरूप को पहचानने की खोज करने की शपथ लेता हूँ।
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