नाम और लाभ के लिए संघर्ष के वो दिन

04 फ़रवरी, 2022

क्षीयो दान, चीन

पिछले जून, मैंने कलीसिया के सिंचन-कार्य की जिम्मेदारी संभाली, सिंचन-कार्य करने वालों की कमी के कारण हमारा काम प्रभावित हो रहा था। इसे लेकर मुझे थोड़ी चिंता हुई। मैंने सोचा, अगर मैं इसकी भरपाई नहीं कर पाई तो अगुआओं को लगेगा कि मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया। मैं इसी उलझन में थी, तभी अगुआ ने मुझे बताया कि अभी-अभी तबादले पर आई बहन शाओदान यह काम कर सकती है। इससे मुझे खुशी हुई और मेरा मन शांत हो गया। मैंने तुरंत बहन शाओदान के साथ बैठक की। उसे तेज़ी से सिंचन-कार्य का प्रशिक्षण देने और सिद्धांतों से परिचित कराने के लिए मैंने कुछ लोगों को इस काम पर लगा दिया। और उसकी प्रगति की खबर लेती रही। कुछ ही दिन बाद अगुआ ने संदेश भेजा कि बहन झोउ को वीडियो बनाने में मदद के लिए बहन शाओदान की ज़रूरत है, और वो इसके लिए तैयार हैं। मैं यह देखकर दंग रह गई। मैंने उससे संपर्क करने से लेकर उसके काम की व्यवस्था करने तक, हर चीज़ का खुद ध्यान रखा था, मैं चाहती थी कि हमारे काम में सुधार लाने के लिए वो फ़ौरन सीख ले, लेकिन बहन झोउ ने बीच में ही टांग अड़ा दी। अब मदद के लिए मुझे किसी और को ढूंढ़ना पड़ेगा, अगर कोई नहीं मिला तो नवागंतुकों का सिंचन-कार्य लटक जाएगा। अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? और फिर, बहन शाओदान के प्रशिक्षण के बाद सब बहन झोउ को ही सक्षम मानेंगे, मेरे प्रयास तो व्यर्थ हो जाएँगे। किसी तरह मैं उसे रोककर रखना चाहती थी। तो मैंने अगुआ को उत्तर दिया कि हमें सिंचन-कार्य करने वालों की सख्त ज़रूरत है और हमें लोगों की क्षमता का आकलन करना चाहिए। बहन शाओदान पहले भी सिंचन-कार्य कर चुकी है, इसलिए मैं चाहती थी अगुआ बहन झोउ से बात कर उन्हें यहीं रहने दें। दो दिन बाद उनका जवाब मिला कि बहन शाओदान को कॉलेज से ही छवि-संपादन के काम का अनुभव है, इसलिए उसे वीडियो प्रोडक्शन का काम अच्छे से आता है। उसे भी इस काम में रुचि है, तो कुल मिलाकर, वह इस काम के लिए बेहतर है। मैं निराश हो गई और सोचने लगी कि अगर बहन झोउ ने नहीं कहा होता, तो बहन शाओदान वहाँ जाने की कभी न सोचती। चूँकि अब यह तय हो चुका था, इसलिए मुझे तुरंत किसी और को ढूंढना था, वरना काम का नुकसान होगा और अगुआ कहेंगे कि मैं व्यावहारिक काम नहीं कर रही। मैंने कलीसिया के बाकी लोगों जाँचा-परखा और पाया कि कुछ बहनें सक्षम और अच्छी खोजी हैं, उनसे बात बन जाएगी। उनमें से बहन यांग मुझे स्नेही और बात करने में अच्छी लगी, नवागंतुकों को भी उसके साथ बैठक करना अच्छा लगता था। वह इस काम के लिए सही थी। मैं खुश होकर उन बहनों को काम सिखाने लगी और यांग पर खास ध्यान देने लगी। मुझे लगा इस काम को अहमियत देकर मुझे यांग को जल्दी से जल्दी तैयार कर देना चाहिए ताकि सब मुझे काबिल समझें।

एक दिन सभा में, एक दूसरी अगुआ ने बहन शाओदान के बारे में पूछ लिया और मेरे मन से एक आह-सी निकली। मैं उन्हें बताना चाहती थी कि बहन झोउ ने वीडियो प्रोडक्शन के लिए बहन शाओदान को ले लिया ताकि वो बहन झोउ से निपटकर शाओदान को मुझे लौटाने में मदद करें। तब मेरे पास सिंचन-कार्य के लिए एक और सहायक होगा और हम बेहतर कर पाएँगे। मैंने उन्हें बताया की बहन झोउ बहन शाओदान को वीडियो प्रोडक्शन सिखाने ले गई इस पर ज़ोर दिया कि पहले मैं उसे प्रशिक्षण दे रही थी, पर बहन झोउ ने उसे मुझसे छीन लिया। उसने कहा, "परमेश्वर का घर एक इकाई है, इसे विभाजित नहीं किया जा सकता। उसे वहाँ हमारे काम के लिए ही भेजा गया है, वीडियो प्रोडक्शन के लिए अधिक लोगों की आवश्यकता होती है, इसलिए हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए। चूंकि बहन शाओदान को वह काम सौंपा गया है, इसलिए हमें मान लेना चाहिए।" मुझे भी पता था यह सही है, लेकिन मैं यह देखकर निराश थी कि अगुआ ने मेरा पक्ष नहीं लिया। हमने जिन बहनों को तैयार किया था, उन्होंने सिंचन-कार्य शुरू कर दिया, तो मुझे लगा मेरा प्रयास व्यर्थ नहीं गया, मैं अगुआओं की नज़र में अच्छी बनी रहूँगी। लेकिन मुझे हैरानी तब हुई, जब सिंचन-कार्य की टीम अगुआ बहन ली ने बताया कि बहन झोउ को वीडियो प्रोडक्शन के लिए बहन यांग भी चाहिए। मुझे बहुत झुंझलाहट हुई। मैं तो बहन यांग को प्रशिक्षित कर चुकी थी, अब बहन झोउ को वो क्यों चाहिए? पहले बहन शाओदान को ले लिया और अब यांग चाहिए। मैंने मेहनत से जो तैयार किया उसने वो छीन लिया, मेरे पास कुछ नहीं बचा। मेरे सारे प्रयास क्या व्यर्थ नहीं जा रहे थे? मेरे मन में उथल-पुथल मच गई, मैंने बहन ली से कहा, "क्या आप बहन झोउ के साथ संगति नहीं कर सकतीं? बहन यांग सिंचन-कार्य में लगी हुई है, कहिए वो कोई और ढूँढ़ लें।" उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करना है, वे बोलीं, "सिंचन-कार्य और वीडियो प्रोडक्शन, दोनों ही अहम हैं। हमें इस पर आगे चर्चा करनी चाहिए कि परमेश्वर के घर के काम को किससे ज़्यादा फायदा होगा।" मैंने सोचा: "कैसी चर्चा? मुझे जिनकी जरूरत है, बहन झोउ उन्हें छीन रही है, मैं अपने किसी भी प्रशिक्षु को रोक नहीं पा रही, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? चाहे कुछ हो जाए, इस बार तो मुझे अगुआओं से बात करनी ही होगी कि वे बीच में पड़ें, वरना तो यह अपमानजनक होगा।"

मैंने घर पहुँचते ही उन्हें एक पत्र लिखने का फैसला किया, लेकिन समझ नहीं आया कि क्या लिखूँ। सोचा, जाने दो। मैं समय तय करके सीधे बहन यांग से बात करूंगी, उससे कहूँगी कि वह सिंचन-कार्य करती रहे, ताकि वह मेरे साथ ही बनी रहे। जैसे ही मैं बहन यांग को लिखने बैठी, लगा जैसे दिमाग काम नहीं कर रहा, समझ में नहीं आया क्या लिखूँ। मैं बेचैन हो गई और जो कुछ हुआ था उस पर फिर से विचार किया। प्रशिक्षुओं को बहन झोउ के यहाँ भेजने से मैं इतनी नाराज़ क्यों थी, यहाँ तक कि मैं अगुआओं से शिकायत करना चाहती थी? मैं बहन यांग को वापस पाने के लिए इतनी अड़ क्यों गई? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और अपने मन को शांत करने लगी, और परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "परमेश्वर के घर में, जब तक लोग सत्य का अनुसरण करते हों, तब तक वे परमेश्वर के सामने एकजुट रहते हैं, विभाजित नहीं होते, और वे एक ही लक्ष्य साझा करते हैं: अपना कर्तव्य पूरा करना, अपने कार्य करना, सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना, और परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करना। यदि तुम्हारे इरादे इस लक्ष्य के प्रति नहीं हैं, बल्कि अपने लिए हैं, अपनी ही स्वार्थी इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए हैं, तो यह एक बेहद भ्रष्ट शैतानी स्वभाव दर्शाता है। परमेश्वर के घर में, अपने कर्तव्य का प्रदर्शन सत्य के सिद्धांतों के अनुसार होता है। अविश्वासियों के कार्य, उनके शैतानी स्वभावों द्वारा नियंत्रित होते हैं। ये दो बिल्कुल अलग रास्ते हैं। अविश्वासियों के बीच, प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही बात रखता है, प्रत्येक के निजी लक्ष्य होते हैं और योजनाएँ होती हैं, प्रत्येक अपने स्वयं के हितों के लिए जीता है। इस तरह वे किसी भी लाभ के लिए लड़ने के लिए बाध्य हो जाते हैं। वे असमान, विभाजित, असंयुक्त होते हैं, क्योंकि वे एक ही लक्ष्य साझा नहीं करते। फिर भी उनके उद्देश्यों की प्रकृति एक ही होती है—वे सभी अपने लिए कार्य करते हैं। इसमें, सत्य का शासन नहीं होता, शैतान के भ्रष्ट स्वभाव की संपूर्ण शक्ति और उसी का प्रभुत्व होता है, उनके आत्म-नियंत्रण को उनके भ्रष्ट शैतानी स्वभावों द्वारा छीन लिया जाता है—जिसके परिणाम-स्वरुप वे पाप में और भी गहरे उतर जाते हैं। परमेश्वर के घर में, यदि तुम्हारे कार्यों का सिद्धांत, तरीका, उनकी प्रेरणा और उनका प्रारंभिक बिंदु अविश्वासियों से अलग न हों, यदि तुम्हारे कार्य भी एक भ्रष्ट शैतानी स्वभाव की हेराफेरी, उसके नियंत्रण और उसकी चालों के अधीन रहते हों, और तुम्हारे अपने हित, आत्म-अभिमान हैसियत और प्रसिद्धि ही उनका प्रारंभिक बिंदु हो, तो तुम लोगों द्वारा अपने कर्तव्य का प्रदर्शन अविश्वासियों के कार्यों से अलग नहीं होगा" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपने कर्तव्यों में परमेश्वर के वचनों का अनुभव कैसे करें')। "क्रूर मानवजाति! साँठ-गाँठ और साज़िश, एक-दूसरे से छीनना और हथियाना, प्रसिद्धि और संपत्ति के लिए हाथापाई, आपसी कत्लेआम—यह सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर द्वारा बोले गए लाखों वचनों के बावजूद किसी को भी होश नहीं आया है। लोग अपने परिवार और बेटे-बेटियों के वास्ते, आजीविका, भावी संभावनाओं, हैसियत, महत्वाकांक्षा और पैसों के लिए, भोजन, कपड़ों और देह-सुख के वास्ते कार्य करते हैं। पर क्या कोई ऐसा है, जिसके कार्य वास्तव में परमेश्वर के वास्ते हैं? यहाँ तक कि जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, उनमें से भी बहुत थोड़े ही हैं, जो परमेश्वर को जानते हैं। कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। फिर मैंने अपने हाल ही के व्यवहार पर मंथन किया। क्या मैं अपने नाम और रुतबे के लिए दूसरों से झगड़ा नहीं कर रही थी? एक अगुआ ने मुझे बहन शाओदान को तैयार करने के लिए कहा और मेरा पहला विचार था कि इससे हमारी सिंचन-टीम के परिणाम बेहतर होंगे और मैं अपना हुनर दिखाकर अगुआओं की स्वीकृति पा सकूँगी। तो मैंने उसके प्रशिक्षण में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब मुझे पता चला कि उसे वीडियो प्रोडक्शन में भेजा जा रहा है, तो मुझे लगा कोई और अच्छा प्रत्याशी नहीं मिला तो हमारे काम का नुकसान होगा, अगुआओं के आगे मेरी साख गिर जाएगी, मैं अपना पद गँवा बैठूँगी। मैं बहन झोउ के प्रति पक्षपाती हो गई, मैंने चाहा कि अगुआ मेरे पक्ष में खड़े हो जाएँ और उससे निपटें। जब बहन यांग के तबादले की बात सुनी, तो मैंने बहन ली को बुरा-भला कहा कि उसने बहन यांग को न जाने देने के लिए बहन झोउ से बात नहीं की, यहाँ तक कि मैं अगुआओं से शिकायत कर उसे वापस पाना चाहती थी, मैंने ये सब भाई-बहनों के बीच अपना रुतबा और छवि बनाए रखने के लिए किया। मैं एक अविश्वासी की तरह बर्ताव कर रही थी, अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ते हुए शैतान की तरह जी रही थी। परमेश्वर का घर लोगों को इसलिए तैयार करता है ताकि भाई-बहन अपनी क्षमता का उपयोग करें, सुसमाचार फैलाने में अपना योगदान दें। लेकिन मैं लोगों को तैयार करने के अपने काम द्वारा निजी हित साधना चाहती थी, अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए दूसरों से होड़ कर रही थी। यह सामान्य मानवीयता नहीं है! मुझे खुद से पूछना पड़ा मैं अपने नाम और रुतबे के लिए क्यों लड़ रही थी।

अपनी खोज में, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "जब मसीह-विरोधी कलीसिया की अगुआई के पदों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच प्रसिद्धि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो वे इस बात पर विचार नहीं करते कि वे परमेश्वर के घर के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को कितनी बुरी तरह से नुकसान पहुँचा रहे हैं। वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं या नहीं, और उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा को कोई खतरा तो नहीं। कलीसियाओं में हर जगह और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच उनकी भूमिका शैतान के अनुचरों से अलग कुछ नहीं होती। वे ऐसे लोग नहीं होते, जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, न ही वे परमेश्वर के अनुयायी होते हैं, वे ऐसे लोग तो बिल्कुल नहीं होते जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसे स्वीकार करते हैं। इसलिए, जब उनके इरादे और लक्ष्य पूरे नहीं होते, तो उनका पहला नजरिया सत्य की तलाश करना या उसके साथ आज्ञाकारिता से पेश आना नहीं होता। इसके बजाय, वे यह सोचने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौडाते हैं कि हर स्तर के कलीसिया-अगुआओं से कैसे लड़ें, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के घर और मसीह से कैसे लड़ें, कलीसिया में अपनी स्थिति की मजबूती कैसे सुनिश्चित करें, और हैसियत कैसे हासिल करें। वे हैसियत हासिल करने की अपनी लड़ाई में खुद को असफल नहीं होने देते, और उनका लक्ष्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर नियंत्रण हासिल करना होता है। ये वे चीजें हैं, जिनसे वे दिन-रात सरोकार रखते हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन)')। "मसीह-विरोधी इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं कि सत्य के सिद्धांतों, परमेश्वर के आदेशों और परमेश्वर के घर के कार्य से किस ढंग से पेश आया जाए या उनके सामने जो चीजें आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। वे इन बातों पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी की जाए, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने से कैसे बचा जाए, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया जाए या भाई-बहनों को कैसे लाभ पहुँचाया जाए; वे लोग इन बातों विचार नहीं करते। मसीह-विरोधी इस बात पर विचार करते हैं कि कहीं उनके अपने रुतबे और प्रतिष्ठा पर तो आँच नहीं आएगी, कहीं उनकी प्रतिष्ठा तो कम नहीं हो जाएगी। अगर सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कुछ करने से कलीसिया के काम को फायदा होता है और भाई-बहनों को लाभ पहुँचता है, लेकिन इससे उनकी अपनी प्रतिष्ठा को धक्का लगता है, लोगों को उनके वास्तविक कद का एहसास हो जाता है और पता चल जाता है उनकी प्रकृति और सार कैसा है, तो वे निश्चित रूप से सत्य के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। यदि किसी निश्चित तरीके से काम करने से वे परमेश्वर के घर के भीतर अधिक उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं और ज्यादा लोग उनके बारे में अच्छी राय बना लेते हैं, उनका सम्मान और प्रशंसा करते हैं, उनकी बातों में अधिकार आ जाता है जिससे और अधिक लोग उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, तो फिर वे काम को उस प्रकार करना चाहेंगे; अन्यथा, वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों पर ध्यान देते हुए अपने हितों को तिलाँजलि कभी नहीं देंगे। यह मसीह-विरोधी की प्रकृति और सार है। क्या यह स्वार्थ और नीचता नहीं है? किसी भी स्थिति में मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को सर्वोच्च महत्व देते हैं; उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन)')। परमेश्वर मसीह-विरोधियों को स्वार्थी और अपने हितों को सबसे ऊपर रखने वाले के रूप में उजागर करता है, अगर कोई उनके नाम और रुतबे पर बुरा असर डालता है, तो वे उनसे लड़ने के लिए दिमाग दौड़ाने लगते हैं, बिना यह सोचे कि परमेश्वर के घर को किससे लाभ होगा। मैंने आत्मचिंतन किया तो लगा कि मैं मसीह-विरोधी की तरह पेश आ रही हूँ। मैं बहन शाओदान और यांग को वापस पाना चाहती थी ताकि उन्हें प्रशिक्षित कर उनके इस्तेमाल से अपने काम में सुधार ला सकूँ और अगुआओं की स्वीकृति पा सकूँ। जब बहन झोउ ने उनका तबादला कर मेरी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचाया तो मैं उसके साथ भिड़ जाना चाहती थी, बिना यह विचार किए कि कहीं मेरे व्यवहार से भाई-बहनों और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान तो नहीं पहुंचेगा। मैं केवल अपने हित के बारे में सोच रही थी। मैं स्वार्थी हो गई थी, मुझमें न इंसानियत बची थी, न विवेक। भाई-बहन परमेश्वर के हैं—वे किसी की निजी संपत्ति नहीं हैं। उनकी क्षमता और काबिलियत सब परमेश्वर ने तय की है, और अपने काम के लिए उन्हें यह योग्यता दी गई है। "यह मेरा है, वह तुम्हारा है," या "पहले आओ, पहले पाओ," जैसा कुछ नहीं है। परमेश्वर के घर में जहाँ-कहीं ज़रूरत हो, लोगों को वहाँ जाना चाहिए। एकदम सही बात है। यह उचित और सही था कि बहन झोउ सिद्धांतों का पालन कर रही थी लोगों की क्षमता के अनुसार परमेश्वर के घर के लिए प्रशिक्षण दे रही थी। लेकिन मैंने उन दो बहनों पर नज़रें गड़ा रखी थीं, इसलिए मुझे लगा कि उन्हें कोई न छुए, परमेश्वर के घर के लिए लोगों को प्रशिक्षण देने के नाम पर, मैंने उन्हें अपनी निजी संपत्ति, निजी सहायक समझकर व्यवहार किया, उनका इस्तेमाल अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया। जब बहन झोउ के कारण मेरे नाम और रुतबे पर बुरा असर पड़ा, तो मैंने चालबाज़ी से उसके रास्ते की दीवार बनकर अपनी भड़ास निकालने की कोशिश की। क्या यह कलीसिया के याजक-वर्ग की तरह यह दावा करना नहीं है, "ये मेरी भेड़ें हैं, इन्हें कोई नहीं चुरा सकता"? पादरी और एल्डर विश्वासियों के सामने अपने रुतबे और रोज़ी-रोटी के लिए परमेश्वर के कार्य की आलोचना और निंदा करते हैं। वे उन्हें सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने से रोकते हैं, वे भक्त-जनों को मज़बूती से अपनी मुट्ठी में रखना चाहते हैं। मैं भी अपने प्रशिक्षित लोगों को अपनी मुट्ठी में रखना चाहती थी, नहीं चाहती थी कि उनका तबादला हो, ताकि अगुआओं की स्वीकृति और कलीसिया के सदस्यों का सम्मान मिले। मैं उन पाखंडी, चालाक याजक-वर्ग से अलग कैसे थी? क्या मैं परमेश्वर के विरुद्ध मसीह-विरोधी मार्ग पर नहीं चल रही थी? इसका एहसास होने पर मुझे पसीना आने लगा। मैं बेहद स्वार्थी और नीच थी, मैं परमेश्वर के घर के काम को नहीं, बल्कि अपने हित को कायम रख रही थी। मैं नाम और रुतबे की चाहत में अंधी हो गई थी—कितनी खतरनाक स्थिति थी। मुझे उन मसीह-विरोधियों का ख्याल आया जिन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया है। वे निकाले गए क्योंकि वे पश्चाताप किए बिना नाम और रुतबे के पीछे भागते रहे, और हद दर्जे की दुष्टता की। अगर मैं भी उसी रास्ते पर चलती रही, तो एक दिन मेरा भी यही हश्र होगा।

मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : "तुम्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि तुममें प्रतिस्पर्धा करने की निरंतर इच्छा है। इसका समाधान न करने पर, प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा का नतीजा केवल बुरी चीजें ही हो सकती हैं, इसलिए समय बर्बाद न करो और सत्य खोजो, अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को शुरुआत में ही नष्ट कर दो, और इस प्रतिस्पर्धी व्यवहार को सत्य का अभ्यास करने से बदल दो। सत्य का अभ्यास करने पर तुम्हारी प्रतिस्पर्धात्मकता, अदम्य आकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी तरह से घट जाएँगी, और फिर वे परमेश्वर के घर के काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगी। इस तरह, परमेश्वर द्वारा तुम्हारे कार्यों को याद रखा जाएगा और उनकी प्रशंसा की जाएगी" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन)')। इससे मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। जब मैं अपने हितों के लिए लड़ रही थी, तो मुझे तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना कर अपने स्वार्थ को त्यागना चाहिए था, अपनी अभिलाषाओं को त्यागकर, सत्य के सिद्धांतों की खोज कर उनका पालन करना चाहिए था। शाओदान और यांग को कहीं भी क्यों न भेजा जाए, परमेश्वर के घर का दायित्व था लोगों को तैयार करना, और अंतिम लक्ष्य था अपना कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर की गवाही देना। मुझे अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ने के बजाय खुश होना चाहिए था। परमेश्वर के घर में लोगों को तैयार करना सिद्धांत के मुताबिक है। यह काम कलीसिया के कार्य की ज़रूरतों और लोगों की क्षमता के अनुसार किया जाता है। किसी भी काम के लिए लोगों की क्षमता के अनुसार ही उनकी उपयुक्तता तय की जानी चाहिए। अगर किसी में कई प्रतिभाएं हैं, तो उसे वहीं भेजना चाहिए जहाँ उसकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा हो। अगर किसी काम के लिए अधिक लोग चाहिए और कोई उचित व्यक्ति न मिल रहा हो, और प्रतिभाशाली व्यक्ति तैयार हो, तो उसे उस काम में लगा देना चाहिए। वीडियो प्रोडक्शन की काबिलियत और हुनर बहुत कम लोगों में होता है। लेकिन जहाँ तक सिंचन-कार्य का सवाल है, समझदार और अच्छी संगति करने वाले स्नेही और धैर्यवान लोग, उस काम को अच्छे से कर सकते हैं। हमारे पास वीडियो प्रोडक्शन के बजाय, सिंचन-कार्य के लिए अधिक लोग हैं। बहन शाओदान कॉलेज में छवि-संपादन करती थी, तो उसमें वीडियो बनाने का कौशल था। वह सीखना भी चाहती थी, तो बहन झोउ का उसे उस काम में लगाना सही था। भले ही बहन शाओदान मेरे यहाँ से चली गई, लेकिन मैं अभी भी दूसरे भाई-बहनों को ढूँढ़कर उन्हें तैयार कर सकती थी। इसमें बस थोड़ा ज़्यादा समय और प्रयास लगना था। यह सब समझ कर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, अब मैं अपने सही इरादों के साथ सिद्धांतों का पालन करने के लिए तैयार थी। अगर बहन यांग में वीडियो प्रोडक्शन की काबिलियत है, तो मैं अपने नाम और रुतबे के लिए बहन झोउ के साथ झगड़ने के बजाय, सहमत होने को तैयार थी।

कुछ दिनों के बाद, मुझे बहन झोउ का एक संदेश मिला, लिखा था कि दूसरी कलीसिया ने उसके लिए कुछ लोगों की व्यवस्था कर दी है, इसलिए उसे अब बहन शाओदान और यांग की ज़रूरत नहीं है। उसने कहा कि मैं उन्हें जो भी ठीक समझूँ, वो काम सौंप सकती हूँ। मुझे यकीन हो गया कि इसका आयोजन परमेश्वर ने ही किया है। जब मैंने अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ त्याग दीं, तो चीजें बदल गईं। मुझे एहसास हुआ कि इस दौरान मैं एक जोकर की तरह पेश आ रही थी। यह वाकई शर्मनाक था। उसके बाद, मैंने उन बहनों के लिए सिंचन-कार्य पर लौटने की व्यवस्था कर दी। कुछ समय बाद ही, मैंने सुना कि एक अन्य कलीसिया-अगुआ बहन यांग को लेखन-कार्य के लिए बुला रही है। मैंने सोचा, जब बहन यांग सिंचन-कार्य इतने अच्छे से कर रही है, तो उसे उस काम के लिए क्यों भेजा जाए? मैं उससे बात करके उसे सिंचन-कार्य में ही रखना चाहती थी। वो लेखन-कार्य करेगी तो क्या मेरे सारे प्रयास व्यर्थ नहीं हो जाएँगे? इन विचारों के सिर उठाते ही, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से नाम और रुतबे के लिए लड़ रही हूँ, मैंने तुरंत प्रार्थना की, परमेश्वर, मुझे राह दिखा ताकि मैं स्वार्थ त्यागकर तुम्हारे घर के हितों को प्राथमिकता दे सकूँ। बहन यांग को जहाँ कहीं भी भेजा जाएगा, वह कलीसिया की ज़रूरत के अनुसार ही होगा। मुझे अपने नाम और रुतबे के लिए काम करने के बजाय, समर्पित हो जाना चाहिए। इस तरह सोचने पर मुझे काफी शांति मिली। फिर मैं उस अगुआ से मिली और उसने कहा, उसने हाल ही में बहन यांग की कुछ गवाहियाँ पढ़ी हैं, वे व्यावहारिक हैं और अच्छी तरह से लिखी गई हैं। बहन यांग को भी लिखना पसंद है, उसके निबंध सुव्यवस्थित होते हैं, उनमें गहराई होती है। वह उस काम के लिए एकदम उपयुक्त लगती है। यह सुनकर न मुझे गुस्सा आया, न निराशा हुई, बल्कि मैंने मुस्कुराकर कहा, "परमेश्वर का धन्यवाद! अगर ऐसा पहले हुआ होता, तो मैं अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ती, लेकिन परमेश्वर के वचनों में जो कुछ प्रकट हुआ है, उससे मुझे समझ आया कि मैं कितनी स्वार्थी हूँ, इससे परमेश्वर को घृणा है, अब जान गई हूँ कि हर व्यवस्था, सिद्धांतों के आधार पर की जाती है। बहन यांग अच्छी लेखिका है, तो उसे लेखन-कार्य में रखना परमेश्वर की इच्छा है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।" यह बात सुनकर अगुआ मुस्कुरा दी।

इस अनुभव से मुझे समझ आया कि अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ने के बजाय, परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के हितों को ध्यान में रखना ज़्यादा राहत और दिल को सुकून देता है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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