नाम और लाभ के लिए संघर्ष के वो दिन
जून, 2020 में, मैंने कलीसिया के सिंचन-कार्य की जिम्मेदारी संभाली। चूँकि सिंचन-कार्य करने वालों की कमी के कारण हमारा काम प्रभावित हो रहा था, तो इसे लेकर मुझे थोड़ी चिंता हुई। मैंने सोचा, अगर मैं इसकी भरपाई नहीं कर पाई तो अगुआओं को लगेगा कि मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया। मैं इसी उलझन में थी, तभी अगुआ ने मुझे बताया कि अभी-अभी तबादले पर आई बहन शाओदान सिंचन-कार्य कर सकती है। इससे मुझे खुशी हुई और मेरा मन शांत हो गया। मैंने शाओदान को नए विश्वासियों के सिंचन की जिम्मेदारी देने के लिए उसके साथ तुरंत बैठक की।
उसे तेज़ी से सिंचन-कार्य का प्रशिक्षण देने और नए विश्वासियों के हालात से परिचित कराने के लिए मैंने कुछ लोगों को इस काम पर लगा दिया। कुछ ही दिन बाद अगुआ ने संदेश भेजा कि बहन झोउ नुओ, जो वीडियो कार्य के लिए जिम्मेदार थी, उसे वीडियो बनाने में मदद के लिए शाओदान की ज़रूरत है, और शाओदान इसके लिए तैयार है। मैं यह देखकर दंग रह गई : मैंने उससे संपर्क करने से लेकर उसके कर्तव्य की व्यवस्था करने तक, हर चीज़ का ध्यान रखा था, मैं चाहती थी कि हमारे काम में सुधार लाने के लिए वो फ़ौरन सीख ले, लेकिन झोउ नुओ ने बीच में ही टांग अड़ा दी। मैंने सोचा अगर शाओदान चली गई, तो मदद के लिए मुझे किसी और को ढूंढ़ना पड़ेगा, और अगर कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिला तो नवागंतुकों का सिंचन-कार्य लटक जाएगा। और अगर ऐसा हुआ तो अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या शाओदान को दिया गया मेरा प्रशिक्षण व्यर्थ चला जाएगा? ऐसा तो नहीं चलेगा। किसी तरह मैं उसे रोककर रखना चाहती थी। तो मैंने अगुआ को तुरंत उत्तर दिया कि हमें सिंचन-कार्य करने वालों की सख्त ज़रूरत है और हमें लोगों को दूसरे काम सौंपते समय कार्य की जरूरतों और लोगों की क्षमता का आकलन करना चाहिए। इसके अलावा, मैंने इस बात पर भी जोर दिया कि शाओदान पहले भी सिंचन-कार्य कर चुकी है, इसलिए मैं चाहती थी कि अगुआ झोउ नुओ से बात कर शाओदान को सिंचन-कार्य में ही बने रहने दें। दो दिन बाद उनका जवाब मिला कि शाओदान को वीडियो प्रोडक्शन का काम अच्छे से आता है। उसे भी इस काम में रुचि है, तो कुल मिलाकर, वह इस काम के लिए बेहतर है। मैं निराश हो गई और सोचने लगी कि अगर झोउ नुओ ने नहीं कहा होता, तो शाओदान वहाँ जाने की कभी न सोचती। चूँकि अब यह तय हो चुका था, इसलिए मुझे तुरंत किसी और को ढूंढना था, वरना काम का नुकसान होगा और अगुआ कहेंगे कि मैं व्यावहारिक काम नहीं कर रही। मैंने कलीसिया के बाकी लोगों को जाँचा-परखा और पाया कि कुछ बहनें सक्षम और अच्छी खोजी हैं, उनसे बात बन जाएगी। उनमें से बहन यांग मिंग्यी मुझे स्नेही और बात करने में अच्छी लगी, नवागंतुकों को भी उसके साथ बैठक करना अच्छा लगता था। वह इस काम के लिए सही थी। मैं खुश होकर उन बहनों को काम सिखाने लगी और मिंग्यी पर खास ध्यान देने लगी। मुझे लगा इस काम को अहमियत देकर मुझे मिंग्यी को जल्दी से जल्दी तैयार कर देना चाहिए ताकि सब मुझे काबिल समझें।
हालाँकि मुझे सिंचन का कार्य करने के लिए कई बहनें मिल चुकी थीं, लेकिन फिर भी मैं चाहती थी कि शाओदान वापस आ जाए। एक दिन सभा में, एक दूसरी अगुआ ने शाओदान के बारे में पूछ लिया और मेरे मन से एक आह-सी निकली और मैंने सोचा : “मुझे उसे बताना चाहिए कि किस तरह झोउ नुओ ने वीडियो बनाने के लिए शाओदान को ले लिया ताकि वो झोउ नुओ की काट-छाँट कर शाओदान को मुझे लौटाने में मेरी मदद करे। तब मेरे पास सिंचन-कार्य के लिए एक और सहायक होगा और हम बेहतर कर पाएँगे।” इसलिए मैंने उस अगुआ को बताया कि झोउ नुओ शाओदान को वीडियो बनाने के लिए ले गई और इस बात पर ज़ोर दिया कि पहले मैं उसे प्रशिक्षण दे रही थी, पर झोउ नुओ ने उसे मुझसे छीन लिया। लेकिन आशा के विपरीत उसने कहा, “कलीसिया एक इकाई है, इसे विभाजित नहीं किया जा सकता। उसे वहाँ हमारे काम के लिए ही भेजा गया है, वीडियो प्रोडक्शन के लिए अधिक लोगों की आवश्यकता होती है, इसलिए हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए। चूंकि शाओदान को वह काम सौंपा गया है, इसलिए हमें मान लेना चाहिए।” मैं यह देखकर निराश थी कि अगुआ ने मेरा पक्ष नहीं लिया।
कुछ समय बाद, सिंचन-कार्य में अच्छी तरह तैयार हो चुकी बहनों ने स्वतंत्र रूप से नवागंतुकों का सिंचन-कार्य करना शुरू कर दिया, तो मुझे लगा मेरा प्रयास व्यर्थ नहीं गया और जब अगुआओं को इस काम के बारे में पता चलेगा, तो मैं उनकी नज़र में अच्छी बन जाऊँगी। लेकिन मुझे हैरानी तब हुई, जब मेरी सहयोगी, बहन ली शियांगझेन ने बताया कि झोउ नुओ को वीडियो प्रोडक्शन के लिए मिंग्यी भी चाहिए। मुझे बहुत झुंझलाहट हुई और मैंने कहा : “मैं तो मिंग्यी को प्रशिक्षित कर चुकी हूँ, तो अब झोउ नुओ को वो वीडियो बनाने के लिए क्यों चाहिए? पहले शाओदान को ले लिया और अब मिंग्यी चाहिए। मैंने अपनी मेहनत से जिसे भी तैयार किया है वो सब वह छीन रही है और मेरे पास कुछ नहीं छोड़ रही। मेरे सारे प्रयास क्या व्यर्थ नहीं जा रहे?” मेरे मन में उथल-पुथल मच गई, मैंने शियांगझेन से कहा, “क्या आप झोउ नुओ से यह बात नहीं कह सकतीं कि मिंग्यी पहले से ही सिंचन-कार्य कर रही है, उसे कोई और व्यक्ति ढूँढ़ लेना चाहिए?” शियांगझेन शर्मिंदा हो गई और बोलीं, “सिंचन-कार्य और वीडियो प्रोडक्शन, दोनों ही अहम हैं, लेकिन वीडियो प्रोडक्शन के लिए लोग आसानी से नहीं मिलते। हमें इस पर आगे चर्चा करनी चाहिए कि आने वाले काम की व्यवस्था कैसे की जाए।” मैंने मन-ही-मन सोचा : “कैसी चर्चा? मुझे जिनकी जरूरत है, झोउ नुओ उन्हें छीन रही है। मैं अपने किसी भी प्रशिक्षु तक को रोक नहीं पा रही, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? ऐसा नहीं चलेगा। चाहे कुछ हो जाए, इस बार तो मुझे अगुआओं से बात करनी ही होगी कि वे बीच में पड़ें, वरना तो यह अपमानजनक होगा।”
मैंने घर पहुँचते ही उन्हें एक पत्र लिखने का फैसला किया, लेकिन समझ नहीं आया कि क्या लिखूँ। सोचा, “जाने दो। मैं समय तय करके सीधे मिंग्यी से बात करूंगी, उससे कहूँगी कि वह सिंचन-कार्य करती रहे, ताकि वह मेरे साथ ही बनी रहे।” जैसे ही मैं मिंग्यी को लिखने बैठी, लगा जैसे दिमाग काम नहीं कर रहा, समझ में नहीं आया क्या लिखूँ। मैं बेचैन हो गई और जो कुछ हुआ था उस पर फिर से विचार किया। प्रशिक्षुओं को झोउ नुओ के यहाँ भेजने से मैं इतनी नाराज़ क्यों थी, यहाँ तक कि मैं अगुआओं से शिकायत करना चाहती थी? मैं मिंग्यी को वापस पाने के लिए इतनी अड़ क्यों गई? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और अपने मन को शांत करने लगी, और फिर परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर के घर में, सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग परमेश्वर के सामने एकजुट होते हैं, विभाजित नहीं होते। वे सभी एक ही सामान्य लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं : अपने कर्तव्य को निभाना, मिला हुआ कार्य करना, सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना, परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कार्य करना और उसकी इच्छा को पूरा करना। यदि तुम्हारा लक्ष्य इसके लिए नहीं है बल्कि तुम्हारे अपने लिए है, अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए है, तो यह एक भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का उद्गार है। परमेश्वर के घर में लोग सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाते हैं, जबकि अविश्वासियों के कार्य उनके शैतानी स्वभावों द्वारा नियंत्रित होते हैं। ये दो बहुत अलग रास्ते हैं। अविश्वासी अपने में ही रहते हैं, उनमें से हर एक के अपने लक्ष्य और योजनाएँ होती हैं और हर कोई अपने हितों के लिए जी रहा होता है। यही कारण है कि वे सभी अपने लाभ के लिए छीना-झपटी करते रहते हैं और जो भी उन्हें मिलता है उसका एक इंच भी छोड़ने को तैयार नहीं होते। वे विभाजित होते हैं, एकजुट नहीं होते, क्योंकि उनका एक सामान्य लक्ष्य नहीं होता। वे जो करते हैं उसके पीछे का इरादा और उद्देश्य एक ही होता है। वे सभी अपने लिए ही प्रयास करते हैं। इस पर सत्य का शासन नहीं होता बल्कि इस पर भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का शासन होता है और वही इसे नियंत्रित करता है। वे अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के नियंत्रण में रहते हैं और अपनी सहायता नहीं कर सकते और इसलिए वे पाप में गहरे से गहरे धंसते चले जाते हैं। परमेश्वर के घर में, यदि तुम लोगों के कार्यों के सिद्धांत, तरीके, प्रेरणा और प्रारंभ बिंदु अविश्वासियों से अलग नहीं होंगे, यदि तुम भी भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के कब्जे, नियंत्रण और बहकावे में रहोगे और यदि तुम्हारे कार्यों का प्रारंभ बिंदु तुम्हारे अपने हित, प्रतिष्ठा, गर्व और हैसियत होगी, तो फिर तुम लोग अपना कर्तव्य उसी तरह निभाओगे जैसे अविश्वासी लोग कार्य करते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। फिर मैंने अपने हाल ही के व्यवहार पर मंथन किया। क्या मैं अपने नाम और रुतबे के लिए दूसरों से झगड़ा नहीं कर रही थी? जैसे ही मुझे पता चला कि शाओदान हमारी कलीसिया में आ रही है, पहली बात मेरे मन में यही आई कि उसे प्रशिक्षण देकर हम अपनी सिंचन-टीम के परिणाम बेहतर कर सकेंगे और मैं अपना हुनर दिखाकर अगुआओं की स्वीकृति पा सकूँगी। तो मैंने उसके प्रशिक्षण में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब मुझे पता चला कि झोउ नुओ उसे वीडियो प्रोडक्शन में भेज रही है, तो मुझे लगा कोई और अच्छा प्रत्याशी नहीं मिला तो हमारे काम का नुकसान होगा, अगुआओं के आगे मेरी साख गिर जाएगी और मैं अपना पद गँवा बैठूँगी। मैं झोउ नुओ के प्रति पक्षपाती हो गई, मैंने चाहा कि अगुआ शाओदान को वापस मेरे पास भेजने की व्यवस्था करें। जब मिंग्यी के तबादले की बात सुनी, तो मैंने बहन ली को बुरा-भला कहा, यहाँ तक कि मैं अगुआओं से शिकायत कर उसे वापस पाना चाहती थी, मैंने ये सब अपना रुतबा और छवि बनाए रखने के लिए किया। मैं एक अविश्वासी की तरह बर्ताव कर रही थी, अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ते हुए घिनौने शैतान की तरह जी रही थी। परमेश्वर का घर लोगों को इसलिए तैयार करता है ताकि भाई-बहन अपनी क्षमता का उपयोग करें, सुसमाचार फैलाने में अपना योगदान दें। लेकिन मैंने लोगों को तैयार करने को अपना नाम और रुतबा पाने के जरिए के तौर पर इस्तेमाल किया, मैं अपना नाम और रुतबा बचाने के लिए दूसरों से होड़ कर रही थी। यह सामान्य मानवीयता नहीं है! मुझे खुद से पूछना पड़ा कि मैं अपने नाम और रुतबे के लिए क्यों लड़ रही थी। अपनी खोज में, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “जब मसीह-विरोधी कलीसिया के अगुआई के पदों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच प्रसिद्धि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो वे दूसरों पर हमला करने और खुद को ऊपर उठाने के लिए हर संभव साधनों का उपयोग करते हैं। वे यह नहीं सोचते कि वे परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को कितनी बुरी तरह नुकसान पहुँचा सकते हैं। वे सिर्फ इस बात पर विचार करते हैं कि क्या उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं, और क्या उनकी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा बचाई जा सकती है। कलीसियाओं में और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच उनकी भूमिका राक्षसों, दुष्टों, शैतान के अनुचरों जैसी होती है। वे ऐसे लोग बिल्कुल नहीं होते जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, न ही वे परमेश्वर के अनुयायी होते हैं, और ऐसे लोग तो वे बिल्कुल नहीं होते जो सत्य से प्रेम करते और उसे स्वीकारते हैं। जब उनके इरादे और लक्ष्य अभी पूरे नहीं हुए होते, तो वे कभी आत्मचिंतन नहीं करते, वे कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि उनकी प्रेरणाएँ और लक्ष्य सत्य के अनुरूप हैं या नहीं, वे कभी इस बात की खोज नहीं करते कि उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य के अनुसरण के मार्ग पर कैसे चलें। वे आज्ञाकारी मनःस्थिति के साथ परमेश्वर में विश्वास नहीं करते और वह मार्ग नहीं चुनते जो उन्हें लेना चाहिए; इसके बजाय, वे इसमें दिमाग लड़ाते हैं : ‘अगुआ या कार्यकर्ता का पद कैसे पाएँ? कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे करें? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को धोखा देकर और नियंत्रित करके मसीह को महज एक पुतला कैसे बनाएँ? कलीसिया में अपने लिए जगह कैसे सुरक्षित करें? यह कैसे सुनिश्चित करें कि कलीसिया में उनकी पकड़ मजबूत हो, रुतबा कैसे हासिल करें, रुतबा हासिल करने की लड़ाई में खुद को असफल कैसे न होने दें, और अंततः परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करने और अपना राज्य स्थापित करने का अपना लक्ष्य कैसे हासिल करें?’ ये ही वे चीजें हैं, जिनके बारे में मसीह-विरोधी दिन-रात चिंतित रहते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। “मसीह-विरोधी इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं कि सत्य सिद्धांतों, परमेश्वर के आदेशों और परमेश्वर के घर के कार्य से किस ढंग से पेश आया जाए या उनके सामने जो चीजें आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। वे इन बातों पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी की जाए, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने से कैसे बचा जाए, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया जाए या भाई-बहनों को कैसे लाभ पहुँचाया जाए; वे लोग इन बातों पर विचार नहीं करते। मसीह-विरोधी किस बात पर विचार करते हैं? वे सोचते हैं कि कहीं उनके अपने रुतबे और प्रतिष्ठा पर तो आँच नहीं आएगी, कहीं उनकी प्रतिष्ठा तो कम नहीं हो जाएगी। अगर सत्य सिद्धांतों के अनुसार कुछ करने से कलीसिया के काम और भाई-बहनों को लाभ पहुँचता है, लेकिन इससे उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है और लोगों को उनके वास्तविक कद का एहसास हो जाता है और पता चल जाता है कि उनका प्रकृति सार कैसा है, तो वे निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। यदि व्यावहारिक काम करने से और ज्यादा लोग उनके बारे में अच्छी राय बना लेते हैं, उनका सम्मान और प्रशंसा करते हैं, उन्हें और ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त करने देते हैं, या उनकी बातों में अधिकार आ जाता है जिससे और अधिक लोग उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, तो फिर वे काम को उस प्रकार करना चाहेंगे; अन्यथा, वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों पर ध्यान देने के लिए अपने हितों की अवहेलना करने का चुनाव कभी नहीं करेंगे। यह मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है। क्या यह स्वार्थ और नीचता नहीं है? किसी भी स्थिति में मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को सर्वोच्च महत्व देते हैं। उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचन मसीह-विरोधियों को स्वार्थी और अपने हितों को सबसे ऊपर रखने वाले के रूप में उजागर करते हैं, अगर कोई उनके नाम और रुतबे पर बुरा असर डालता है, तो वे उनसे लड़ने के लिए दिमाग दौड़ाने लगते हैं, बिना यह सोचे कि कलीसिया को और भाई-बहनों को किससे लाभ होगा। मैंने आत्मचिंतन किया तो लगा कि मैं मसीह-विरोधी की तरह पेश आ रही हूँ। मैं शाओदान और मिंग्यी को नए विश्वासियों के सिंचन की जिम्मेदारी देना चाहती थी ताकि उनके इस्तेमाल से अपने काम में सुधार ला सकूँ और अगुआओं की स्वीकृति पा सकूँ। जब झोउ नुओ ने उनका तबादला किया तो मुझे चिंता हुई कि इसका असर मेरे काम के परिणाम पर पड़ेगा, जिससे मेरा नाम और रुतबा संकट में पड़ जाएगा। मैं दोनों बहनों को वापस पाने के लिए उसके साथ भिड़ जाना चाहती थी, बिना यह विचार किए कि कहीं मेरे व्यवहार से कलीसिया के हितों को नुकसान तो नहीं पहुंचेगा। मैं केवल अपने नाम और रुतबे के बारे में सोच रही थी। मैं स्वार्थी हो गई थी, मुझमें न इंसानियत बची थी, न विवेक। भाई-बहन किसी की निजी संपत्ति नहीं हैं। उनकी क्षमता और काबिलियत सब परमेश्वर ने तय की है, और अपने काम के लिए उन्हें यह योग्यता दी गई है। “यह मेरा है, वह तुम्हारा है,” या “पहले आओ, पहले पाओ,” जैसा कुछ नहीं है। कलीसिया में जहाँ-कहीं ज़रूरत हो, लोगों को वहाँ जाना चाहिए। एकदम सही बात है। यह उचित और सही था कि झोउ नुओ सिद्धांतों का पालन कर रही थी लोगों की क्षमता के अनुसार कलीसिया के लिए प्रशिक्षण दे रही थी। लेकिन मैंने सोचा चूँकि उन दोनों बहनों को प्रशिक्षण के लिए पहले मैंने चुना है, तो उन्हें कोई और न छुए, कलीसिया के लिए लोगों को प्रशिक्षण देने के नाम पर, मैंने भाई-बहनों को अपना निजी सहायक समझकर व्यवहार किया, उनका इस्तेमाल अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया ताकि लोग मेरी प्रशंसा करें। जब झोउ नुओ के कारण मेरे नाम और रुतबे पर बुरा असर पड़ा, तो मैंने चालबाज़ी से उसके रास्ते की दीवार बनकर अपनी भड़ास निकालने की कोशिश की। क्या यह कलीसिया के याजक-वर्ग की तरह यह दावा करना नहीं है, “ये मेरी भेड़ें हैं, इन्हें कोई नहीं चुरा सकता”? पादरी और एल्डर परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की आलोचना और निंदा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते, ताकि उनकी रोज़ी-रोटी बची रहे, विश्वासी सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल न करें, भक्त-जन मज़बूती से उनकी मुट्ठी में रहें। मैं भी अपने प्रशिक्षित लोगों को अपनी मुट्ठी में रखना चाहती थी, ताकि अगुआओं की स्वीकृति और कलीसिया के सदस्यों का सम्मान मिले, मैं उन्हें निजी संपत्ति समझ रही थी और नहीं चाहती थी कि उनका तबादला हो। मैं याजक-वर्ग के उन सदस्यों से अलग कैसे थी? क्या मैं परमेश्वर के विरुद्ध मसीह-विरोधी मार्ग पर नहीं चल रही थी? इसका एहसास होने पर मुझे पसीना आने लगा। मैं बेहद स्वार्थी और नीच थी, मैं कलीसिया के हितों को नहीं, बल्कि अपना रुतबा कायम कर रही थी। मैं नाम और रुतबे की चाहत में अंधी हो गई थी—कितनी खतरनाक स्थिति थी। मुझे उन मसीह-विरोधियों का ख्याल आया जिन्हें निकाल दिया गया क्योंकि वे पश्चात्ताप किए बिना नाम और रुतबे के पीछे भागते रहे, और हद दर्जे की दुष्टता की। अगर मैं भी उसी रास्ते पर चलती रही, तो एक दिन मेरा भी यही हश्र होगा।
मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “जब तुम्हें रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की निरंतर तीव्र इच्छा होती है, तो तुम्हें यह बात पता होनी चाहिए कि अगर इस तरह की स्थिति को अनसुलझा छोड़ दिया जाए तो कैसी बुरी चीजें हो सकती हैं। इसलिए समय बर्बाद न करते हुए सत्य खोजो, इससे पहले कि रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा बढ़कर प्रबल हो जाए, इसे मिटा दो और इसके स्थान पर सत्य का अभ्यास करो। जब तुम सत्य का अभ्यास करने लगोगे, तो रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की तुम्हारी इच्छा कम हो जाएगी और तुम कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालोगे। इस तरह, परमेश्वर तुम्हारे कार्यों को याद रखेगा और उनकी प्रशंसा करेगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों से मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। जब मैं अपने हितों के लिए लड़ रही थी, तो मुझे तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना कर अपने स्वार्थ को त्यागना चाहिए था, अपनी अभिलाषाओं को त्यागकर, सत्य सिद्धांतों की खोज कर उनका पालन करना चाहिए था। दरअसल, शाओदान और मिंग्यी को कहीं भी क्यों न भेजा जाए, उसका मकसद था कलीसिया के लोगों को तैयार करना, और अंतिम लक्ष्य था हर एक के अंदर से उसकी काबिलियत को बाहर लाना ताकि वे बेहतरीन तरीके से अपना कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर की गवाही दें। मुझे अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ने के बजाय खुश होना चाहिए था। कलीसिया में लोगों को तैयार करना सिद्धांत के मुताबिक है। यह काम कलीसिया के कार्य की ज़रूरतों और लोगों की क्षमता के अनुसार किया जाता है। किसी भी कर्तव्य के लिए लोगों की क्षमता के अनुसार ही उनकी उपयुक्तता तय की जानी चाहिए। अगर किसी में कई प्रतिभाएं हैं, तो उसे उसी कर्तव्य में भेजना चाहिए जहाँ उसकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा हो, यह देखा जाना चाहिए कि किस कर्तव्य में अधिक लोगों की जरूरत है, किस कार्य के लिए तुरंत सहयोग चाहिए, और यह भी कि वह किस कर्तव्य को करने का अधिक इच्छुक है। वीडियो प्रोडक्शन का हुनर बहुत कम लोगों में होता है। लेकिन जहाँ तक सिंचन-कार्य का सवाल है, समझदार लोग जिन्हें परमेश्वर के कार्य के दर्शन वाले सत्यों की स्पष्ट समझ है, जो स्नेही और धैर्यवान हैं, उस काम को अच्छे से कर सकते हैं। हमारे पास वीडियो प्रोडक्शन के बजाय, सिंचन के लिए अधिक लोग हैं। शाओदान को छवि-संपादन का अनुभव था, तो उसमें वीडियो बनाने का कौशल था। उसे वीडियो बनाना पसंद भी था, तो बहन झोउ का उसे उस कर्तव्य में लगाना सही था। भले ही शाओदान और मिंग्यी मेरे यहाँ से चली गईं, लेकिन मैं अभी भी कलीसिया से दूसरे भाई-बहनों को ढूँढ़कर उन्हें तैयार कर सकती थी। इसमें बस थोड़ा ज़्यादा समय और प्रयास लगना था। यह सब समझ कर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। अब मैं अपने सही इरादों के साथ अपने कर्तव्य में सिद्धांतों का पालन करने को तैयार थी, नाम और रुतबे के लिए झोउ नुओ के साथ झगड़ने के बजाय, सहमत होने को तैयार थी।
कुछ दिनों के बाद, मुझे झोउ नुओ का एक संदेश मिला, लिखा था कि दूसरी कलीसिया ने उसके लिए कुछ लोगों की व्यवस्था कर दी है, इसलिए वह अब शाओदान और मिंग्यी को उसके पास वापस भेज सकती है। उसने कहा कि मैं उन्हें जो भी ठीक समझूँ, वो कर्तव्य सौंप सकती हूँ। यह खबर सुनकर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। उसके बाद, मैंने उन बहनों के लिए नए विश्वासियों का सिंचन करने पर लौटने की व्यवस्था कर दी। कुछ समय बाद ही, मैंने सुना कि कलीसिया-अगुआ मिंग्यी को चित्र बनाने के कार्य के लिए बुला रही है। मैंने सोचा, “जब मिंग्यी सिंचन-कार्य इतने अच्छे से कर रही है, तो उसे उस कर्तव्य के लिए क्यों भेजा जाए? अगर उसका तबादला कर दिया गया, तो क्या उसके प्रशिक्षण के लिए किए गए मेरे सारे प्रयास व्यर्थ नहीं हो जाएँगे? मुझे उससे बात करके कहना होगा कि वह सिंचन-कार्य में ही रहे।” इन विचारों के सिर उठाते ही, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से नाम और रुतबे के लिए लड़ रही हूँ, मैंने तुरंत प्रार्थना की, परमेश्वर, मुझे राह दिखा ताकि मैं स्वार्थ त्यागकर कलीसिया के हितों को प्राथमिकता दे सकूँ। मिंग्यी को जहाँ कहीं भी भेजा जाएगा, वह कलीसिया की ज़रूरत के अनुसार ही होगा। मुझे अपने नाम और रुतबे के लिए काम करने के बजाय, समर्पित हो जाना चाहिए। इस तरह सोचने पर मुझे काफी शांति मिली। फिर मैं उस अगुआ से मिली और उसने कहा कि मिंग्यी चित्र बनाने के काम में अच्छी है, तो सिद्धांतों के अनुसार वह उस कर्तव्य के लिए अधिक उपयुक्त है। यह सुनकर न मुझे गुस्सा आया, न निराशा हुई, बल्कि मैंने मुस्कुराकर कहा, “परमेश्वर का धन्यवाद! अगर ऐसा पहले हुआ होता, तो मैं अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ती, लेकिन परमेश्वर के वचनों में जो कुछ प्रकट हुआ है, उससे मुझे समझ आया कि मैं कितनी स्वार्थी हूँ, इससे परमेश्वर को घृणा है, अब जान गई हूँ कि कलीसिया की हर एक व्यवस्था, सिद्धांतों के आधार पर की जाती है। मिंग्यी चित्र बनाने के काम में अच्छी है, तो उसे उस कर्तव्य में रखना सिद्धांतों के अनुसार है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।” यह बात सुनकर अगुआ मुस्कुरा दी।
इस अनुभव से मुझे समझ आया कि अपने नाम और रुतबे के लिए लड़ने के बजाय, कलीसिया और भाई-बहनों के हितों को ध्यान में रखना ज़्यादा राहत और दिल को सुकून देता है। परमेश्वर का धन्यवाद!
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