सुसमाचार प्रचार की समस्याओं का सामना कैसे करें

18 अक्टूबर, 2022

मैं पेरू के एक छोटे से शहर में रहता था। अधिकांश ग्रामीणों के साथ-साथ मेरा पूरा परिवार भी कैथोलिक था। लेकिन चूँकि गाँव में कैथोलिक कलीसिया को संभालने वाला कोई पादरी नहीं था, इसलिए काफी समय से कोई भी बाइबल पढ़ने कलीसिया नहीं गया था। फिर 22 मई, 2020 को, मैंने ऑनलाइन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि प्रभु यीशु लौट आया है और वह अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को खुशी-खुशी स्वीकार लिया। फिर, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में इसे पढ़ा : "चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे 'जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना' चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। मैं जानता था कि विश्वासी होने के नाते, हमें परमेश्वर के कार्य को जानना और उसके पदचिह्नों पर चलना चाहिए। गाँव में बहुत सारे विश्वासी थे, पर किसी ने भी न तो कभी परमेश्वर की वाणी सुनी थी, न लौटकर आए प्रभु यीशु का स्वागत किया था, इसलिए मैं उन्हें प्रभु की वापसी की अविश्वसनीय खबर सुनाना चाहता था। लेकिन थोड़ा डर भी था। मुझे लगा मैं अभी छोटा हूँ, पता नहीं सुसमाचार प्रचार कैसे करते हैं, वो लोग मेरी बात बिल्कुल नहीं मानेंगे। वे लोग बरसों पुराने विश्वासी थे, क्या वे प्रभु यीशु की वापसी की मेरी गवाही सुनेंगे? अगर उनकी कोई धारणा या उलझन हुई, तो उसे दूर करने के लिए मैं संगति कैसे कर पाऊँगा? अगर वो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था रखने और सुसमाचार प्रचार करने के विरुद्ध हुए तो? मेरे साथ कैसे पेश आएँगे? शायद मुझे हिकारत से देखकर कहेंगे, "तुम अभी बच्चे हो। स्कूल जाने या कोई काम-धंधा करने के बजाय सुसमाचार प्रचार के चक्कर में क्यों पड़ते हो?" बहुत सोचा, लेकिन मैं जानता था कि सुसमाचार फैलाना परमेश्वर की इच्छा है। मुझे सुसमाचार प्रचार करना था और परमेश्वर की गवाही देनी थी।

मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाया। उसके वचनों में मैंने पढ़ा : "क्या तू अपने कधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी चमकती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दु:ख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? सभी बातों को नज़र में रखते हुए, तू एक असाधारण जीवन व्यतीत करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की व्याख्या कैसे करेगा? क्या सच में तुझमें एक धर्म-परायण, परमेश्वर-सेवी जैसा अर्थपूर्ण जीवन जीने का संकल्प और विश्वास है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?)। मुझे पता चला कि सुसमाचार का प्रचार करना हमारा कर्तव्य है। बहुत से लोगों ने अभी तक परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी है, उन्हें पता ही नहीं कि प्रभु लौट आया है और लोगों को शुद्ध करने के लिये न्याय-कार्य कर रहा है। वे अभी भी शैतान की भ्रष्टता के दुख में जी रहे हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम सब उसकी इच्छा पर विचार करें और साथ आकर उसका सहयोग करें। चाहे कोई भी समस्या या मुश्किल हो, हमें प्रार्थना कर परमेश्वर पर ही निर्भर रहना चाहिए और राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। लेकिन मैंने परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझा—मुझे लगा, छोटा होने के कारण, मैं सुसमाचार का प्रचार नहीं कर सकता। मुझे डर था कि गांव वाले मेरी बात नहीं मानेंगे और मुझे हिकारत से देखेंगे, मैं ख्याली मुश्किलों में फंसकर, चिंताओं के बोझ तले दब गया था। परमेश्वर की इच्छा पर विचार किए बगैर मैं केवल अपनी परेशानियों की सोच रहा था, मैंने यह नहीं सोचा कि इन संघर्षों के बीच मुझे प्रार्थना कर परमेश्वर पर निर्भर रहना चाहिए और अपना काम करते हुए जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जब यह सोचा कि कितने ही लोग प्रभु की वापसी और अंधेरे से बचाए जाने के लिए तरस रहे हैं, तो मुझे इसकी तात्कालिक जरूरत का आभास हुआ। मैंने संकल्प लिया कि परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार फैलाने और गवाही देने की भरसक कोशिश करूंगा, अपना सारा समय और ऊर्जा सुसमाचार के कार्य में लगाऊँगा।

उसके बाद, मैं उनके साथ सुसमाचार साझा करने की योजनाएँ बनाने लगा। सबसे पहले, मैंने अपने घर पर धर्मोपदेश सुनने के लिए दस परिवारों के लिए निमंत्रण-पत्रों की कॉपी बनवाई। सबको हैरानी हुई और मेरे प्रयास को लेकर उत्साह बढ़ाने वाली बातें कहीं। मैं बहुत खुश था। उसके बाद, मैंने सोचा, अगर उस शाम बहुत सारे लोग आ गए, तो प्रवचन सुनते समय मेरे छोटे से सेलफोन से सबके लिए परमेश्वर के वचन पढ़ना मुश्किल होगा। तो मैं एक दोस्त से उसका लैपटॉप माँग लाया। उस शाम 13 लोग प्रवचन सुनने आए, सभी को सभा में परमेश्वर के वचन पढ़ना अच्छा लगा। जो कोई भी पढ़ना चाहता वो खड़ा हो जाता और पढ़ता, उन्हें यह बहुत पसंद आया। सभा के बाद सब लोग बहुत खुश थे। उन्होंने कहा कि परमेश्वर के वचन शानदार और पोषण देने वाले थे, इकट्ठा होकर परमेश्वर के वचन पढ़ना बहुत अच्छा था। अगले दिन वे लोग अपने घरवालों को भी लाना चाहते थे। परमेश्वर के वचनों के लिए सबकी ललक देखकर, मुझे बड़ी खुशी हुई। लेकिन हर बार दोस्त का लैपटॉप लाना आसान नहीं था, तो मैंने इसे खरीदने की सोची। लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि लैपटॉप खरीदा जा सके। मैं असमंजस की स्थिति में था। आसपास पूछने पर पता चला कि प्रोजेक्टर कंप्यूटर से सस्ते होते हैं, तो मैंने प्रोजेक्टर खरीदने के लिए कर्ज लेने की सोची ताकि गाँव वाले परमेश्वर के वचन पढ़ सकें। मैंने बैंक से ऋण लेकर प्रोजेक्टर खरीद लिया। अगली सभा शुरू होने से पहले मैंने सारी तैयारियाँ कर लीं। गाँव वालों ने भी जल्दी आना शुरू कर दिया। उन्नीस लोगों से पूरा कमरा भर गया। मैंने देखा कि परमेश्वर ने सब कुछ व्यवस्थित कर दिया था और मैं बहुत उत्साहित था। मैं स्पीकर ले आया ताकि सब लोग परमेश्वर के वचन सुन सकें। मैंने सत्य पर संगति की कि कैसे प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियां साकार हो गई हैं, उसका स्वागत कैसे करें, कैसे पक्का करें कि प्रभु यीशु लौट आया है और परमेश्वर हर प्रकार के लोगों को उजागर करने आया है। सभा में मौजूद लोग पूरे जोश से परमेश्वर के वचन पढ़ रहे थे और कुछ बच्चे भी परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए उत्साहित थे। लोगों में परमेश्वर के वचनों की प्यास देखकर, मुझे यकीन था कि यह सब परमेश्वर का कार्य है। कुछ लोग सभा खत्म होने के बाद भी रुके रहे और बोले कि उन्हें बहुत आनंद आया। ग्राम प्रधान और अन्य सभी लोग बहुत प्रेरित हुए, ग्राम प्रधान चाहता था कि सभी स्थानीय लोग यहाँ आकर परमेश्वर के वचन सुनें। यह एक सुखद आश्चर्य था। इस परिणाम ने मेरी धारणाओं और कल्पनाओं को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया—मुझे शर्म आ रही थी। मैंने सच में परमेश्वर का कार्य और मार्गदर्शन देखा, इससे सुसमाचार साझा करने की मेरी आस्था और भी प्रबल हुई। उसके बाद मैंने गाँव वालों को हर दिन प्रवचन सुनने के लिए आमंत्रित किया, अधिक से अधिक लोग आने लगे। सब लोग रोमांचित थे और बोले, "हमने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं पढ़ा। परमेश्वर देहधारी बनकर लौटा है और हम उससे रूबरू हो सकते हैं। हम बहुत भाग्यशाली हैं जो प्रभु का स्वागत कर पा रहे हैं।" उन्होंने आसपास के शहरों से भी और लोगों को सभा में आमंत्रित करने की योजना बनाई। उन्होंने बताया, "तुम इतने छोटे होकर भी गाँव वालों के लिए यह सब कर रहे हो, हमें परमेश्वर के वचन सुना रहे हो और उसके प्रति इतने निष्ठावान हो। हमारे लिए पहले कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं किया। हमने कभी नहीं सोचा था कि तुम जैसा युवा ऐसा करेगा—यह शानदार है।" मुझे पता था कि ये परमेश्वर के कर्म हैं जो मुझे उत्साहित कर मेरे विश्वास को मजबूत कर रहे हैं।

लेकिन इन नए विश्वासियों के सिंचन-कार्य के वक्त मुझे बहुत-सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कभी-कभी जब इंटरनेट कनेक्शन ठीक से काम न करता तो मुझे सभाओं के संचालन के लिए घर-घर जाना पड़ता। ऊपर से भयंकर बारिश की मुसीबत, बारिश से सड़कें कीचड़ बन जातीं और चलना कठिन हो जाता। सिंचन-कार्य के लिए मुझे घर-घर दौड़ना पड़ता। कभी-कभी किसी नए विश्वासी के घर मैं बारिश शुरू होने से पहले पहुँच तो जाता लेकिन वो घर पर न होता और उसके आने की प्रतीक्षा करनी पड़ती। जब संगति खत्म करके निकलता तो पता चलता कि रास्ते की हालत खराब हो चुकी है। थककर चूर होने पर जब मैं नकारात्मक और कमजोर महसूस करता, तो प्रार्थना कर परमेश्वर के वचन पढ़ता। फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। "जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। ... तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद चाहे जो भी हो, तुममें पहले कठिनाई झेलने की इच्छा और सच्चा विश्वास, दोनों होने चाहिए, और तुममें देह-सुख त्यागने की इच्छा भी होनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना करने और अपने व्यक्तिगत हितों का नुकसान उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। तुम्हें अपने हृदय में अपने बारे में पछतावा महसूस करने में भी समर्थ होना चाहिए : अतीत में तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ थे, और अब, तुम पछतावा कर सकते हो। तुममें इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं होनी चाहिए—इन्हीं चीजों के द्वारा परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। अगर तुम इन कसौटियों पर खरे नहीं उतर सकते, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों से मुझे उत्साह मिलता, दिलासा मिलती ताकि मैं कमजोर न पड़ूँ, परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन कर मेरी सहायता करता। सुसमाचार साझा करने के दौरान मुझे थोड़ी शारीरिक तकलीफें भी हुईं और मैंने थोड़ी कीमत भी चुकाई, लेकिन यह सार्थक और मूल्यवान था और एकदम धार्मिक कार्य था जिससे परमेश्वर की स्वीकृति और आशीषें मिलती हैं। मुझे पतरस, मत्ती और प्रभु यीशु के अन्य प्रेरितों का ख्याल आया जिन्होंने सुसमाचार के प्रचार के लिए बहुत कष्ट सहे, कुछ तो सुसमाचार के प्रचार के दौरान अपनी जान भी गँवा बैठे। लेकिन वे परमेश्वर के सुसमाचार प्रचार कार्य में मजबूती से डटे रहे और कभी पीछे नहीं हटे। उनकी तुलना में, मैंने जो कुछ भी झेला, वह बताने लायक भी नहीं था। मुझे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारने और राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने का सौभाग्य मिलना परमेश्वर का उत्कर्ष और अनुग्रह था। मैं छोटी-मोटी मुश्किलों से डरकर, केवल अपने दैहिक-सुख की नहीं सोच सकता था। मुझे कष्ट सहने को तैयार रहना था। मैं किसी भी मुश्किल में निराश नहीं हो सकता था। तमाम शारीरिक तकलीफों के बावजूद, मुझे सुसमाचार का प्रचार कर परमेश्वर के कार्य की गवाही देनी थी और परमेश्वर की संतुष्टि के लिए कार्य करना था।

एक बार मैं बीमार पड़ गया, मुझे कई दिनों तक सर्दी-जुकाम रहा। शाम तक मुझे बुखार, सिरदर्द और पेट दर्द भी हो गया। मैं बात भी नहीं कर सकता था। एक बहन मेरी हालत खराब देखकर बोली, "तुम्हें आज रात की सभा में नहीं जाना चाहिए।" उस समय तो मैं मान गया। लेकिन फिर नए विश्वासियों को उनके हाल पर छोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा। मुझे लगा तबियत खराब होना भी मेरा इम्तहान है, मुझे अपना कर्तव्य बखूबी निभाते रहना चाहिए। मुझे याद है, एक बार मेरे पैर में चोट लगी थी, लेकिन मैंने फुटबॉल खेलना जारी रखा था। तो अब मैं अपना कर्तव्य क्यों नहीं निभा सकता? यह सोचकर, मैंने मोटरसाइकिल उठाई और सभा में चला गया। कमाल की बात थी कि वहाँ पहुँचकर मेरी तबीयत ठीक लगी। मुझे बहुत खुशी हुई। मैं कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गया।

फिर एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद, शहर से बाहर काम करने वालों को छोड़कर अधिकांश गाँव वालों ने, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार स्वीकार लिया। बाद में मैंने सोचा, हालाँकि मैंने सभी गाँव वालों से सुसमाचार साझा कर लिया है, लेकिन परमेश्वर की इच्छा पूर्ति के लिए इतना काफी नहीं है। मैं चाहता था कि और भी लोग परमेश्वर की वाणी सुनें, क्योंकि अभी भी बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, वह बहुत से सत्य व्यक्त कर इंसान को शुद्ध करने और बचाने का कार्य कर रहा है। इसलिए मैंने अन्य गांवों में भी सुसमाचार का प्रचार करने का फैसला किया। मैंने मन ही मन प्रार्थना की, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन कर ताकि मेरा विश्वास न टूटे और मैं आगे बढ़ता रहूं। मुझे विश्वास है कि तू हर मुश्किल को दूर करने में मेरी मदद करेगा।" उसके बाद, मैं एक पड़ोसी गाँव में सुसमाचार साझा करने के लिए गया। मुझे वहाँ सुसमाचार का प्रचार करने के लिए आधा घंटा कीचड़ भरे पहाड़ी रास्तों पर चलना पड़ा, जब मैं पहले तीन परिवारों से मिला तो यह कहकर मुझे लौटा दिया गया कि उनके पास समय नहीं है। मुझे बहुत निराशा हुई और मेरा जोश ठंडा पड़ गया। उस रात मैं बहुत देर से घर पहुँचा। बहन एनी ने फोन कर पूछा कि मेरा सुसमाचार प्रचार कैसा रहा, फिर उसने मेरे साथ परमेश्वर के वचनों पर संगति की और मेरा उत्साह बढ़ाया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन पढ़े। "अब मैं तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और आज्ञाकारिता में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारे विश्वास का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना, और किसी और के प्रति नहीं, और अंत तक आज्ञाकारी बने रहना। इससे पहले कि मैं अपने कार्य का अगला चरण आरंभ करूँ, तुम मेरी गवाही कैसे दोगे? तुम मेरे प्रति वफादार और आज्ञाकारी कैसे बने रहोगे? तुम अपने कार्य के प्रति अपनी सारी निष्ठा समर्पित करते हो या उसे ऐसे ही छोड़ देते हो? इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे? मैं तुम्हारी ताड़ना करता हूँ ताकि तुम मेरी गवाही दो, और मेरे प्रति निष्ठावान और आज्ञाकारी बनो। इतना ही नहीं, ताड़ना वर्तमान में मेरे कार्य के अगले चरण को प्रकट करने के लिए और उस कार्य को निर्बाध आगे बढ़ने देने के लिए है। अतः मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम बुद्धिमान हो जाओ और अपने जीवन या अस्तित्व के महत्व को बेकार रेतकी तरह मत समझो। क्या तुम सही-सही जान सकते हो कि मेरा आने वाला काम क्या होगा? क्या तुम जानते हो कि आने वाले दिनों में मैं किस तरह काम करूँगा और मेरा कार्य किस तरह प्रकट होगा? तुम्हें मेरे कार्य के अपने अनुभव का महत्व और साथ ही मुझ पर अपने विश्वास का महत्व जानना चाहिए। मैंने इतना कुछ किया है; मैं उसे बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ, जैसा कि तुम सोचते हो? मैंने ऐसा व्यापक काम किया है; मैं उसे नष्ट कैसे कर सकता हूँ? निस्संदेह, मैं इस युग को समाप्त करने आया हूँ। यह सही है, लेकिन इससे भी बढ़कर तुम्हें जानना चाहिए कि मैं एक नए युग का आरंभ करने वाला हूँ, एक नया कार्य आरंभ करने के लिए, और, सबसे बढ़कर, राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए। अतः तुम्हें जानना चाहिए कि वर्तमान कार्य केवल एक युग का आरंभ करने और आने वाले समय में सुसमाचार को फैलाने की नींव डालने तथा भविष्य में इस युग को समाप्त करने के लिए है। मेरा कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम समझते हो, और न ही वैसा बेकार और निरर्थक है, जैसा तुम्हें लग सकता है। इसलिए, मैं अब भी तुमसे कहूँगा : तुम्हें मेरे कार्य के लिए अपना जीवन देना ही होगा, और इतना ही नहीं, तुम्हें मेरी महिमा के लिए अपने आपको समर्पित करना हगा। लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम मेरी गवाही दो, और इससे भी बढ़कर, लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम सुसमाचार फैलाओ। तुम्हें समझना ही होगा कि मेरे हृदय में क्या है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?)। परमेश्वर के ये वचन पढ़कर मुझे थोड़ी हिम्मत मिली। मुझे लगा जैसे परमेश्वर कह रहा हो कि मैं उसमें आस्था रखूं, कितनी भी मुश्किलें आएँ, मुझे कमजोर या नकारात्मक नहीं होना है, हताश या निराश नहीं होना है, क्योंकि परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। अगर मैं परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होकर उसके राज्य के सुसमाचार का प्रचार करूँगा, तो वह मेरे लिए रास्ता खोलेगा। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि सुसमाचार साझा करने का मार्ग आसान नहीं है, इसमें कष्ट उठाने होते हैं और कीमत चुकानी पड़ती है। नूह ने 120 वर्षों तक सुसमाचार का प्रचार किया तो लोगों ने उसका उपहास उड़ाया, निंदा की और उसे बदनाम किया। उसने बहुत कुछ सहा, हालाँकि उसने किसी का मत-परिवर्तन नहीं किया, फिर भी उसने न तो हार मानी और न ही वह कमजोर पड़ा—वह सुसमाचार का प्रचार करता रहा। नूह पूरी श्रद्धा से परमेश्वर के प्रति समर्पित रहा। उसने एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाया और परमेश्वर की स्वीकृति एवं आशीर्वाद प्राप्त किया। दुनिया की तबाही के लिए जब परमेश्वर ने बाढ़ का प्रकोप भेजा, तो नूह के आठ लोगों के परिवार को परमेश्वर ने ही बचाया था। वे जीवित रहे। और मैंने क्या किया, सिर्फ तीन परिवारों में सुसमाचार का प्रचार किया और उनके न स्वीकारने पर निराश हो गया। मुझे परमेश्वर में सच्ची आस्था ही नहीं थी। दरअसल, परमेश्वर ने मेरे लिए ऐसे कठिन हालात पैदा किये ताकि परमेश्वर के प्रति मेरी आस्था एवं भक्ति पूर्ण हो। उनके सुसमाचार स्वीकारने, न स्वीकारने की चिंता किए बगैर, मुझे सुसमाचार का प्रचार करते जाना था। वही मेरा कर्तव्य था।

परमेश्वर के वचनों ने मुझे हिम्मत दी। मैं अगले ही दिन दूसरे गाँव में सुसमाचार साझा करने के लिए गया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना भी की कि वह सुसमाचार सुनने वालों को प्रबुद्ध करे ताकि वे उसके वचन समझ सकें। उसी शाम, मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसे सुसमाचार सुनने में रुचि थी, इसके अलावा, उसके बाद मुझे सुसमाचार के प्रचार के लिए दूसरे लोग मिलते रहे, उसी रात मैंने छह लोगों का मत परिवर्तन कर दिया। हैरानी की बात थी कि सुसमाचार सुनने वाले कुछ लोग कैथोलिक थे जिनमें अनेक धारणाएँ थीं, लेकिन परमेश्वर के वचनों पर मेरी संगति सुनकर उनमें समझ पैदा हुई और उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार स्वीकार लिया। उसके बाद मैं दूसरी जगह गया, मैं हर बार सुसमाचार साझा करने के लिए जाते वक्त प्रार्थना करता कि परमेश्वर मुझे प्रबुद्ध कर मार्गदर्शन करे ताकि मैं जान सकूँ कि कैसे प्रचार करना है और कैसे परमेश्वर के वचनों की गवाही देनी है। परमेश्वर का सुसमाचार स्वीकारने वालों की संख्या बढ़ते देख, मेरा विश्वास भी बढ़ता गया। हालाँकि अलग-अलग गाँवों के अजनबियों के बीच प्रचार करते हुए थोड़ी झिझक होती और डर लगा रहता था, लेकिन परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मुझमें आत्मविश्वास और हिम्मत आ जाती थी। मुझे हर हाल में उनके साथ संगति करनी थी क्योंकि यह मेरा कर्तव्य था, अगर मैं सुसमाचार साझा न करता, तो मेरे पास अभ्यास का कोई और अवसर न होता, मैं और अधिक सत्य न तो सीख पाता और न ही हासिल कर पाता। उसके बाद, लगातार सुसमाचार साझा करने के अभ्यास से, मेरी घबराहट खत्म हो गई और डर जाता रहा, और मुझमें दर्शनों के सत्य की स्पष्ट समझ विकसित होती गई। मुझे सुकून और मुक्ति का एहसास हो रहा था।

सुसमाचार साझा करने की इस प्रक्रिया से मैंने बहुत कुछ हासिल किया। अगर ये सब अनुभव न होते, तो मैं परमेश्वर की सर्वशक्तिमान सत्ता को कभी समझ न पाता, मैं कर्तव्य-निर्वहन के महत्व को या कठिनाइयों से परमेश्वर की खोज की अहमियत को न जान पाता।

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