परमेश्वर की सेवा करते समय नई चालाकियाँ मत ढूँढो
मुझे अभी-अभी कलीसिया के अगुआ का उत्तरदायित्व लेने के लिए चुना गया था। लेकिन कुछ अवधि तक की कठिन मेहनत के बाद, न केवल कलीसिया का इंजील समूह का कार्य फीका पड़ गया था, बल्कि इंजील दल में मौजूद मेरे सभी भाई-बहन भी नकारात्मकता और कमज़ोरी में जी रहे थे। इस परिस्थिति का सामना करके, मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं रख सकी। मैं पृथ्वी पर इंजील के कार्य में नए प्राण भरने के लिए कैसे कार्य कर सकती थी? अपने दिमाग पर जोर डालने के बाद, अंतत: मेरे विचार में एक अच्छा समाधान आया: यदि मैं इंजील समूह और चयनित उत्कृष्ट व्यक्तियों और आदर्श उपदेशकों के लिए मासिक पुरस्कार समारोह का आयोजन करूँ, जो भी परमेश्वर के लिए ज्यादा आत्माएँ जीतता है उसे पुरस्कृत किया जाए, और जो भी कम आत्माएँ जीतता है उसे चेतावनी दी जाए। इससे न केवल उनके उत्साह में जोश भरेगा, बल्कि यह नकारात्मक और कमज़ोर भाई—बहनों को ऊपर उठाएगा। जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मैं अपनी इस "कुशल चाल" पर बहुत उत्साहित थी। मैं सोचती थी कि: "इस बार मैं वाकई सभी को आश्चर्यचकित कर दूँगी।"
मैं इंजील समूह के पास गई और उन्हें अपना विचार समझाया। हर कोई बहुत खुश और सहयोग करने का इच्छुक था। मैं रोमांचित थी, इसे सफल होते हुए देखने का इंतजार करने लगी। लेकिन कुछ दिनों के बाद, वे भाई—बहन जिन्होंने कोई भी आत्मा नहीं जीती थी और भी ज्यादा नकारात्मक हो गए और मेरे तरीकों पर राय रखने लगे। वे यहाँ तक कि इस इंजील समूह को छोड़ना भी चाहते थे। इन सब चीजों का सामना करके, मैं चकरा गई थी। मैं नहीं जानती थी कि मुझे क्या करना चाहिए। इस बारे में सुनने के बाद, मेरा अगुआ तुरंत मेरे साथ संगति करने के आ गया, और उसने परमेश्वर और कार्य की व्यवस्था से संवाद को पढ़कर मेरी स्थिति को संबोधित किया: "मनुष्य की परमेश्वर की सेवा में सबसे बड़ी वर्जना क्या है? क्या तुम लोग जानते हो? जो अगुवाओं के रूप में सेवा करते हैं वे हमेशा अधिक चतुरता प्राप्त करना चाहते हैं, बाकी सब से श्रेष्ठ बनना चाहते हैं, नई तरकीबें पाना चाहते हैं ताकि परमेश्वर देख सके कि वे वास्तव में कितने सक्षम हैं। हालाँकि, वे सत्य को समझने और परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं। वे हमेशा दिखावा करना चाहते हैं; क्या यह निश्चित रूप से एक अहंकारी प्रकृति का प्रकटन नहीं है? कुछ तो यह भी कहते हैं: 'ऐसा करके मुझे विश्वास है कि परमेश्वर बहुत प्रसन्न होगा; वह वास्तव में इसे पसंद करेगा। इस बार मैं परमेश्वर को देखने दूँगा, उसे एक अच्छा आश्चर्य दूँगा।' इस आश्चर्य के परिणामस्वरूप, वे पवित्र आत्मा के कार्य को गँवा देते हैं और परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाते हैं। जो कुछ भी तुम्हारे मन में आता है उसे उतावलेपन में न करें। यदि तुम कृत्यों के परिणामों पर विचार नहीं करते हो तो यह ठीक कैसे हो सकता है? ... यदि तुम परमेश्वर की सेवा में ईमानदार, खरे, धर्मनिष्ठ या विवेकशील नहीं हो, तो तुम कभी न कभी परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों का अपमान करोगे" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य से रहित होकर कोई परमेश्वर को नाराज़ करने का भागी होता है')। "परमेश्वर की सेवा करने वाले व्यक्ति को अवश्य सभी चीज़ों में उसकी इच्छा को ग्रहण करना चाहिए। किसी भी समस्या का सामना करते समय, उन्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और सभी कार्य परमेश्वर के वचन के आधार पर किए जाने चाहिए। केवल इसी तरीके से वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके कार्य परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं" (कार्य व्यवस्था)। इन वचनों ने मुझे गँवारू जागरूकता और डर और काँपने की गहरी भावना दी। मैं महसूस करती थी कि "पुरस्कार समारोह" जिसके लिए मैंने अपने दिमाग पर इतना जोर दिया था वह बस एक नई कुशल चाल खोजना था। यह ऐसा कुछ है जो परमेश्वर में अत्यधिक घृणा उकसाता है; यह परमेश्वर की सेवा करने में सबसे बड़ी वर्जना है। परमेश्वर की सेवा करना बच्चों का खेल नहीं है। परमेश्वर के सामने, मनुष्य को अपने दिल में आदर अवश्य बनाए रखना चाहिए, और उन्हें कठोरता से कार्य व्यवस्थाओं का अवश्य पालन करना चाहिए और परमेश्वर की सेवा करने के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए। किसी समस्या से सामना होने पर, उन्हें अवश्य सत्य की खोज करनी चाहिए। केवल इस प्रकार से ही, वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके कार्य परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं। अब, परमेश्वर ने मुझे एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए उठा दिया है। जब इंजील कार्य सफल नहीं हो रहा था और मेरे भाई-बहन नकारात्मक और कमजोर थे, तब मुझे परमेश्वर की इच्छा को खोजने, समस्या की जड़ का पता लगाने के लिए उसके समक्ष जाना चाहिए था, और फिर मेरे भाई-बहनों की स्थिति के लिए उपयुक्त परमेश्वर के वचनों को खोजकर सत्य के साथ उस समस्या को हल करना चाहिए था। वह समस्य कार्य जो मैं करती हूँ, परमेश्वर के वचनों पर आधारित अवश्य होना चाहिए। लेकिन जब मैं कठिनाइयों का सामना करती थी, तो मैं सत्य की खोज बिल्कुल भी नहीं करती थी। मैं अपने कार्यों के लिए सिद्धांतों की खोज नहीं करती थी। वास्तव में, मैं उचित कार्य नहीं करती थी, बल्कि सतही तरीकों में अपने प्रयास लगाया करती थी। मैंने अपनी थोड़ी सी चतुराई पर भरोसा किया; मैंने बेहतरीन लोगों को चुनने के लिए पुरस्कार समारोह शुरू करते हुए, सांसारिक कारखाना प्रबंधन तकनीकों में से कुछ लिया था। परिणामस्वरूप, न केवल इंजील का कार्य सफल नहीं हुआ, बल्कि मेरे भाई-बहनों की स्थिति का भी समाधान नहीं हुआ था, और मेरे तरीकों की वजह से वे इंजील समूह छोड़ने की हद तक और भी अधिक नकारात्मक हो गए थे। यह मेरे अपने कर्तव्य को पूरा करना कैसे हो सकता था? मैं तो बस दुष्टता कर रही थी, कलीसिया के कार्य की उचित कार्यविधि को खोखला कर रही थी। मैं एक अगुआ बनने के योग्य कैसे थी? यदि मैंने इसी प्रकार से अपने भाई-बहनों का नेतृत्व करना जारी रखा होता, तो वे मेरे द्वारा पथभ्रष्ट कर दिए होते, और अंत में, मेरी उत्साही सेवा के माध्यम से, मैंने परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का अपमान कर दिया होता और उसका दंड भुगता होता।
यह परमेश्वर के प्रकाशन में था कि मैंने अंतत: अपनी स्वयं की अहंकारी और धृष्ट प्रकृति को पहचाना: मुझमें परमेश्वर के समक्ष थोड़ा सा भी आदर नहीं था। मैंने उसी समय यह भी अनुभव किया कि मानव मन दुर्गंधयुक्त पानी का गड्ढा है। मेरा "चालाक" तरीका, हालाँकि अच्छा था, लेकिन वह शैतान की इच्छा थी, और परमेश्वर इससे केवल घृणा ही कर सकता था। यह केवल उसका अपमान और उसके कार्य को बाधित कर सकता था। उस दिन के बाद से, मैं अपने मन में यह सबक धारण करने और परमेश्वर की सेवा करने के सिद्धांतों में ज्यादा प्रयास लगाने, अपनी खुद की अहंकारी प्रकृति को बदलने के लिए सत्य का अनुसरण करने हेतु अपनी पूरी कोशिश करने की इच्छुक हूँ। हर चीज़ में मैं सत्य की खोज करूँगी, सभी कार्यों के सिद्धांतों को खोजूँगी, और परमेश्वर के लिए आदर का हृदय रखूँगी। मैं अपनी सर्वोत्तम क्षमता से अपने कर्तव्य को पूरा करूँगी और पूरी ईमानदारी और आज्ञाकारिता से परमेश्वर के दिल को आराम पहुँचाऊँगी।
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