क्या बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व कर सकती है?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य नहीं माने जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है" (वचन देह में प्रकट होता है)। मैं अपनी आस्था में, यह सोचकर बाइबल के शाब्दिक अर्थ से ही चिपकी रही कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है और इसी से जीवन मिलता है। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि ये महज़ मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं। केवल परमेश्वर ही सत्य और इंसानी जीवन का स्रोत है। बाइबल तो परमेश्वर के कार्य का लेखा-जोखा मात्र है, यह उसके वर्तमान कार्य और वचनों की जगह नहीं ले सकती। अगर हम विश्वासी बाइबल के वचनों से ही चिपके रहें और परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण न करें या अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को स्वीकार न करें, तो अंत तक हमें न सत्य मिलेगा और न ही जीवन।
2017 की गर्मियों में एक दिन, एक सहकर्मी ने मुझसे सख्ती से कहा, "शायद तुम्हारी मॉम चमकती पूर्वी बिजली के संपर्क में है। ज़रा सावधान रहना। उनके मार्ग में बाइबल का अनुसरण नहीं किया जाता, ये बाइबल से हटकर बातें करते हैं।" मुझे यकीन नहीं हुआ। मेरी मॉम कलीसिया की उपयाजक हैं और पूरी तरह से बाइबल को मानती हैं। वो चमकती पूर्वी बिजली के संपर्क में कैसे हो सकती हैं? मैं बेचैन हो गयी और तुरंत घर गयी, मैं खुद इस बात की तसल्ली करना चाहती थी।
घर पहुँची तो मॉम ने कहा कि प्रभु यीशु लौट आया है, वह वचन व्यक्त कर रहा है और परमेश्वर के घर से न्याय का कार्य शुरू कर रहा है। उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच-पड़ताल करने को कहा। मैं बोली, "पादरी तो कहते हैं कि बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, इसमें सब परमेश्वर के ही वचन हैं। हमारी आस्था प्रभु में है, जिसका अर्थ है बाइबल में आस्था। इसके अलावा कुछ भी प्रभु में आस्था नहीं है। चमकती पूर्वी बिजली का मार्ग बाइबल से हटकर है, ये लोग प्रभु के मार्ग से भटक गए हैं। अब उनसे कोई संबंध मत रखना।" मॉम ने बड़े प्यार से कहा, "मैं कुछ दिनों से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों से मिलजुल रही हूँ और थोड़े-बहुत सत्य जाने हैं। आस्था को लेकर मेरे मन में बहुत से भ्रम थे, जो अब दूर हो गये हैं। उनकी सहभागिता में रोशनी है। उसमें पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और प्रबोधन है। पादरी इन बातों की चर्चा कभी नहीं करते। उनसे मिलकर मुझे बड़ा आनंद आया और पोषण भी मिला। प्रभु का स्वागत करना कोई छोटी बात नहीं है। पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ो और भाई-बहनों की संगति सुनो।" उनकी ज़िद देखकर, मैं आगे कुछ नहीं बोली। अपने कमरे में जाकर मैं उनकी बातों पर शांति से विचार करने लगी। उनकी बात सही थी। मैं चमकती पूर्वी बिजली की बातों को जाने बिना, उसे बेरुखी से आँक रही थी। जो कि सही नहीं था। लेकिन फिर मैंने सोचा, "पादरी हमेशा कहते हैं कि बाइबल की हर बात परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, यह हमारी आस्था की नींव है। ये बात भी सही है।" मेरे मन में दो तरह की बातें चल रही थीं, समझ में नहीं आ रहा था कि किसकी सुनूँ। मैंने प्रभु से प्रार्थना की कि मुझे राह दिखाए और सही-गलत का ज्ञान कराए।
अगले दिन मॉम ने फिर कहा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच-पड़ताल करूँ। उन्होंने कहा कि अगर मैं प्रभु का स्वागत करने का मौका चूक गयी, तो मुझे पश्चाताप का अवसर भी नहीं मिलेगा। मैंने सोचा, "पता तो करूँ कि वो लोग क्या उपदेश देते हैं, ताकि जान सकूँ कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर सचमुच लौटकर आया प्रभु यीशु ही है।" मैंने उनकी संगति सुनने का मन बना लिया। सभा में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई यांग ने इंसान को बचाने की परमेश्वर की छह हज़ार वर्षीय प्रबंधन योजना पर चर्चा की, कि कैसे शैतान इंसान को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर चरण-दर-चरण इंसान के उद्धार के लिए कार्य करता है। ऐसी प्रबोधक संगति मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी। मैं उसकी ओर खिंचती जा रही थी। मैंने तय किया कि मैं चमकती पूर्वी बिजली की जाँच-पड़ताल करूँगी।
मैंने एक बार एक सभा में भाई यांग से पूछा, "पादरी तो कहते हैं कि बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है और उसमें कही गयी हर बात उसके वचन हैं। फिर ऐसा आप क्यों कहते हैं कि उसमें कही गयी हर बात परमेश्वर के वचन नहीं हैं?" उन्होंने तसल्ली से कहा, "बहुत से धार्मिक लोग सोचते हैं कि पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, उसकी हर बात परमेश्वर का वचन है। लेकिन कभी किसी ने इस बात की जाँच-पड़ताल नहीं की कि क्या यह वाकई परमेश्वर के वचनों पर आधारित है। सच तो यह है, पवित्र आत्मा ने ऐसा कभी नहीं कहा, न ही प्रभु यीशु ने ऐसा कहा, ऐसा नबियों की पुस्तकों में भी नहीं लिखा। पौलुस ने कहा, 'पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है'। पौलुस एक आम इंसान था, उसके शब्द सत्य नहीं थे। अगर हम तथ्यों की जाँच-पड़ताल न करें और उस कथन के आधार पर पूरी बाइबल को परमेश्वर के वचन मान लें, तो क्या ऐसा करना एकतरफा नहीं होगा? सच तो ये है कि नबियों की पुस्तकों का एक हिस्सापरमेश्वर द्वारा प्रेरित है, यानी उसके वचन हैं। 'ऐसा यहोवा ने कहा,' 'यहोवा ने मुझसे कहा,' या 'यशायाह के दर्शन' आदि के ज़रिए साफ तौर पर यह संकेत दिया गया है। बाकी सब इंसान के शब्द हैं, और वे ज़्यादातर इंसान द्वारा परमेश्वर के कार्य का लेखा-जोखा हैं। अगर हम बिना किसी आधार के कहें कि बाइबल में इंसान के शब्द परमेश्वर द्वारा प्रेरित हैं, परमेश्वर के वचन हैं, तो क्या यह भ्रमित करने और भटकाने वाली बात नहीं है? नए नियम में, प्रभु यीशु के वचनों और प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणियों के अलावा, ज़्यादातर शिष्यों और कलीसियाओं के प्रेरितों के पत्र हैं, जिनमें इंसान का अनुभव और ज्ञान है। इनमें पवित्र आत्मा का प्रबोधन है और वे सत्य के अनुरूप हैं। वे शिक्षाप्रद होते हुए भी इंसान के शब्द ही हैं। उन्हें परमेश्वर के वचन या परमेश्वर द्वारा प्रेरित कैसे कहा जा सकता है? परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। सिर्फ़ वही सत्य व्यक्त कर सकता है। कोई इंसान परमेश्वर के वचन या सत्य व्यक्त नहीं कर सकता। परमेश्वर परमेश्वर है, और इंसान इंसान है। इंसान के शब्दों और परमेश्वर के वचनों को बराबर नहीं माना जा सकता। अगर बाइबल में दिए गए इंसान और पौलुस के शब्दों को परमेश्वर के वचन मान लिया जाए, तो यह ईश-निंदा है! और इसलिए, बाइबल को परमेश्वर द्वारा प्रेरित या उसके वचन मानना बेतुकी इंसानी व्याख्या है। इसका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।"
मैं भाई यांग की संगति से सहमत थी। बाइबल में यकीनन इंसान के शब्द हैं, परमेश्वर के वचन नहीं, लेकिन मैं इसे तुरंत स्वीकार नहीं कर पायी। मैंने सोचा, "पूरा धार्मिक जगत बाइबल को परमेश्वर द्वारा प्रेरित मानता है। क्या हर इंसान गलत हो सकता है?" मैंने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की : "हे प्रभु, अगर बाइबल की हर बात तुझसे नहीं आयी है, तो इसे समझने के लिए तू मुझे प्रबुद्ध कर, राह दिखा।"
भाई यांग ने आगे कहा : "अगर पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित होती, तो उसमें कहीं भी कोई गलती नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन सच तो ये है कि उसमें काफी गलतियाँ हैं। मिसाल के तौर पर, यहोयाकीन के सिंहासन पर आरूढ़ होने को ही लें। इतिहास 2 के 36:9 में कहा गया है, 'जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का था, और तीन महीने और दस दिन तक यरूशलेम में राज्य करता रहा।' राजाओं 2 के 24:8 में यह कहा गया है, 'जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह अठारह वर्ष का था, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा।' इन दोनों पदों में कहा गया है कि यहोयाकीन ने राजा के रूप में राज किया, लेकिन एक जगह 'आठ' लिखा है जबकि दूसरी जगह 'अठारह'। एक जगह कहा गया है कि उसने तीन महीने और दस दिन राज किया, जबकि दूसरी जगह लिखा है कि तीन महीने राज किया। ऐसे भी अभिलेख हैं जहाँ पतरस ने चार सुसमाचारों में प्रभु को नकारा है। मत्ती 26:75 में लिखा है, 'मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।' लेकिन मरकुस 14:72 में लिखा है, 'मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।' घटना वही है, लेकिन समय को लेकर दोनों में साफ मदभेद है। इससे ज़ाहिर है कि बाइबल के कुछ भाग इंसानी अभिलेख हैं, परमेश्वर की प्रेरणा नहीं।"
भाई यांग की संगति ने मुझे अवाक कर दिया। मैंने सोचा, "यह सही है! एक ही घटना को दर्ज करने में समय को लेकर अलग-अलग पदों में स्पष्ट विसंगतियाँ हैं। अगर ये पवित्र आत्मा से आयी होतीं, तो उनमें अंतर नहीं होता। मैंने इन मसलों पर पहले कभी गौर नहीं किया था। मुझे लगता था कि पूरी बाइबल ही परमेश्वर द्वारा प्रेरित है और सब परमेश्वर के वचन हैं, लेकिन अब मुझे यह गलती समझ में आयी।"
सभा के बाद मैंने भाई यांग की संगति पर गंभीरता से विचार किया और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन फिर से पढ़े जिनकी हम जाँच कर चुके थे। "आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। ... यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है?" (वचन देह में प्रकट होता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर स्पष्ट करता है कि बाइबल में कौन-से परमेश्वर के वचन हैं और कौन-से इंसान के शब्द, अनुभव और समझ है। मुझे यकीन हो गया कि बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर के वचन नहीं है। यहोवा परमेश्वर के वचन, प्रभु यीशु के वचन, और नबियों के परमेश्वर द्वारा प्रेरित वचन, साथ ही प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणियाँ परमेश्वर के वचन हैं। बाकी सब इंसानी शब्द और अभिलेख हैं।
अगले दिन सभा में मैंने भाई यांग से कहा, "अब मुझे समझ में आया कि पौलुस का यह कहना कि 'पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है' सही नहीं है, लेकिन एक बात को लेकर मैं अभी भी उलझन में हूँ। हमारे पादरी कहते हैं कि बाइबल ईसाई धर्म की नींव है, यह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है, बाइबल में आस्था रखकर ही हम परमेश्वर में आस्था रख सकते हैं। मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ, लेकिन पता नहीं यह सही है या नहीं।"
भाई यांग ने कहा, "धर्म में बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं। वे लोग बाइबल और परमेश्वर को बराबर मानते हैं, बल्कि परमेश्वर से ऊँचा भी मानते हैं। क्या यह प्रभु की इच्छा के अनुरूप है? परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, हर जीवन का स्रोत है। वह जीवन के जल का झरना है जो कभी सूखता नहीं। परमेश्वर के पास अक्षय भंडार है। लेकिन बाइबल परमेश्वर के कार्य का लेखा-जोखा मात्र है। यह एक ऐतिहासिक पुस्तक है। परमेश्वर के कार्य और वचनों का इसका अभिलेख बहुत ही सीमित है। यह परमेश्वर के बराबर कैसे हो सकती है? यह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकती है?" उन्होंने मुझे परमेश्वर के वचनों के पाठ के दो वीडियो भी दिखाए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो।" "वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापोंपर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत सेलोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, औरविश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्तीसे पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे। बाइबल के हितों की रक्षा करने, बाइबल की गरिमा बनाए रखने और बाइबल की प्रतिष्ठा बचाने के लिए वे यहाँ तक चले गए कि उन्होंने दयालु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। ऐसा उन्होंने सिर्फ़ बाइबल का बचाव करने के लिए और लोगों के हृदय में बाइबल के हर एक वचन की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए किया। इस प्रकार उन्होंने अपना भविष्य त्यागने और यीशु की निंदा करने के लिए उसकी मृत्यु के रूप में पापबलि देने को प्राथमिकता दी, क्योंकि यीशु पवित्रशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। क्या वे लोग पवित्रशास्त्र के एक-एक वचन के नौकर नहीं थे?" (वचन देह में प्रकट होता है)।
फिर उन्होंने यह संगति की : "अगर हम बाइबल की अंध-भक्ति करें या इसे प्रभु और उसके कार्य की जगह रखें, तो यह असल में प्रभु में नहीं, बाइबल में आस्था रखना है। पवित्र आत्मा के कार्य की खोज किए बिना या परमेश्वर के पदचिह्नों पर चले बिना, बाइबल से चिपके रहना, प्रभु का विरोध करना है। फरीसी धर्म-शास्त्रों को सबसे ऊपर मानते थे और उनके वचनों से कसकर चिपके रहते थे। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया तो उन्हें पता चला कि उसके कार्य और वचनों में अधिकार है, लेकिन उन्होंने न तो उनकी खोज की, न ही जाँच-पड़ताल की। बस यह कहकर गलतियाँ ढूँढ़ने की कोशिश करते रहे कि उसके वचन और कार्य धर्म-शास्त्रों से हटकर है, तो उन्होंने उसकी निंदा की और उसे सूली पर चढ़ाने की साज़िश रची। बहुत से धार्मिक लोग भी अंत के दिनों में बाइबल की अंध-भक्ति करते हैं बल्कि उसे परमेश्वर से भी ऊँचा स्थान देते हैं। जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय-कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, तो वे उसकी जाँच-पड़ताल नहीं करते। वे पागलों की तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों की निंदा और विरोध करते हैं क्योंकि उनका समावेश बाइबल में नहीं है। उनका यह व्यवहार धर्म-शास्त्रों से चिपके रहने वाले फरीसियों के प्रभु-विरोध से अलग कैसे हुआ? यह साफ है कि पवित्र आत्मा के कार्य की खोज किए बिना या परमेश्वर के पदचिह्नों पर चले बिना, बाइबल की आराधना करना गलत है, और प्रभु के मार्ग से पूरी तरह हट जाना है।"
यह सुनकर मैं बेहद शर्मिंदा हुई और पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी। मुझे एहसास हुआ कि मैं बाइबल में विश्वास रख रही थी, न कि प्रभु में। मैं अपनी आस्था में प्रभु की इच्छा की खोज नहीं कर रही थी, बल्कि आँख मूंदकर पादरी और एल्डरों की बातों पर विश्वास कर रही थी। मुझे लगता था कि परमेश्वर का सारा कार्य और वचन बाइबल में हैं, यह प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है, इसे छोड़कर कुछ भी प्रभु में आस्था रखना नहीं है। क्या मैं वही गलती नहीं कर रही थी जो फरीसियों ने की? मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत पसंद आये। मैंने सोचा, "उसके वचन बाइबल की सच्चाई को बखूबी समझाते हैं और उसके प्रति इंसान के रवैये को भी अच्छी तरह उजागर करते हैं। क्या ये सचमुच परमेश्वर के वचन हो सकते हैं?"
भाई यांग ने अपनी संगति जारी रखी। "इससे बाइबल का मूल्य कम नहीं हो जाता, बल्कि इससे हम बाइबल को सही नज़रिए से देख सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था, 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39-40)। प्रभु यीशु के वचन एकदम स्पष्ट हैं। बाइबल महज़ परमेश्वर की गवाही देती है, यह व्यवस्था और अनुग्रह के युगों का लेखा-जोखा है। अगर हम मसीह का अनुसरण किए बिना या परमेश्वर के वर्तमान कार्य के प्रति समर्पित हुए बिना बाइबल से चिपके रहेंगे, तो हमें आजीवन सत्य की प्राप्ति नहीं होगी, अनंत जीवन पाने की तो बात ही दूर है। हम मसीह का अनुसरण करके ही अनंत जीवन पा सकते हैं। पूरी मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु सूली पर चढ़ गया और हमें पश्चाताप का मार्ग दिया। हालाँकि प्रभु में आस्था रखने से हमारे पाप क्षमा किए जा सकते हैं, लेकिन हमारी पापी प्रकृति बनी रहती है। हम अब भी पाप करके उसे स्वीकार करने की स्थिति में जीते हैं, हम पाप से बच नहीं पाए हैं, हमें शुद्ध नहीं किया गया है। प्रभु पवित्र है, तो वह पापियों और अपने विरोधियों को अपने राज्य में प्रवेश कैसे दे सकता है? इसलिए प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वह वचन बोलने और न्याय-कार्य करने के लिए एक बार फिर आएगा ताकि वह इंसान को शुद्ध कर सके, बचा सके और परमेश्वर के राज्य में ले जा सके। जैसी कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी : 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)।" "'जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:48)। 1 पतरस में कहा गया है: 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)।" प्रभु यीशु लौट आया है। वह अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। वह न्याय का कार्य कर रहा है, इंसान को पूरी तरह से शुद्ध करने और बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, जैसे कि परमेश्वर और उसके कार्य को कैसे जानें, परमेश्वर के उद्धार कार्य के तीन चरणों की कहानी और इससे प्राप्त होने वाला फल क्या है, शैतान इंसान को कैसे भ्रष्ट करता है, परमेश्वर इंसान को कैसे बचाता है, हम शैतान द्वारा अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को कैसे समझें, अपने भ्रष्ट स्वभाव को कैसे शुद्ध करें। और यह भी कि परमेश्वर का भय मानने, उससे प्रेम करने और उसके प्रति समर्पित होने के क्या मायने हैं, आदि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य और वचन प्रभु के लौटने की भविष्यवाणियों को पूरी तरह से साकार करते हैं। अगर हम ध्यान से मेमने के पदचिह्नों पर चलें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करें, परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण से गुज़रें, तो हम सत्य और जीवन पाकर, उसके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।"
मैं परमेश्वर के वचनों के कुछ और ऐसे वीडियो दिखाना चाहूँगी जिनका ज़िक्र भाई यांग ने। "परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य नहीं माने जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है।" "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं" (वचन देह में प्रकट होता है)।
इसे सुनकर सचमुच मेरा दिल रोशन हो गया। मुझे एहसास हुआ कि भले ही बाइबल परमेश्वर के पिछले कार्य का लेखा-जोखा हो, लेकिन यह जीवन का स्रोत नहीं है। मात्र परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है। हम बाइबल से चिपके नहीं रह सकते। परमेश्वर के वर्तमान कार्य और वचनों का पालन करना बेहद अहम है। मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन वर्तमान समय के लिए हैं। वे हमारी धारणाओं और बाइबल के पीछे की कहानी को विस्तार से समझाते हैं। परमेश्वर के अलावा ये बातें और कौन कह सकता था? अगले कुछ दिनों तक मुझे जब भी मौका मिला, मैंने भाई-बहनों के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर संगति की। मुझे परमेश्वर के देहधारण के रहस्य की थोड़ी-बहुत समझ हासिल हुई और जाना कि अंत के दिनों में कैसे परमेश्वर इंसान का न्याय करके उसे शुद्ध करता है, किस किस्म की आस्था परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होती है, लोगों के परिणामों, मंज़िलों और अन्य सत्यों के बारे में भी जानकारी मिली। मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु ही है और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!
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