एक अत्यंत दुखदायी फैसला

04 फ़रवरी, 2022

छें मीन, चीन

1999 में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने के बाद, जल्दी ही मैं एक कलीसिया में अगुआ का कर्तव्य निभाने लगी। साल 2000 के दिसंबर महीने में मैंने अपनी पहली गिरफ़्तारी का अनुभव किया। दोपहर का समय था और मैं अपने दोनों बच्चों को खाना खिला रही थी, जब अचानक पाँच अफ़सर ज़बरदस्ती घर में घुस आए और बिना किसी वारंट के घर की तलाशी लेने लगे, उन्होंने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। बच्चों ने डर के मारे मेरे कपड़े को कस कर पकड़ रखा था और मैं अपने बेटे के काँपते हुए हाथ को महसूस कर पा रही थी। तब वो सिर्फ छह साल का था। घर में बाइबल और मेरी लिखी हुई धार्मिक कार्यों की किताब मिलते ही उन्होंने मुझे अपने साथ ले जाने का फैसला कर लिया। मुझे खींच कर ले जाते देख बच्चे चीख-चीख कर रोने लगे, "मम्मी! मत जाओ!" जैसे ही मैं आखिरी बार उनका चेहरा देखने के लिए पीछे मुड़ी, उन अफ़सरों ने दरवाज़ा बंद कर दिया। अचानक मेरी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे, क्योंकि मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मैं वापस आकर दोबारा उन्हें कभी देख पाऊँगी भी या नहीं। वो लोग मुझे सीधा पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो के पूछताछ वाले कमरे में लेकर गए, जहाँ उन्होंने मुझे एक मेटल की कुर्सी से बाँध दिया। कई लोग मेरी ओर गुस्से से देख रहे थे। मैं बहुत डरी हुई थी, इसलिए मैं तुरंत बिना रुके परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, मैंने कहा, "हे परमेश्वर! मैं नहीं जानती कि ये पुलिसवाले मुझ पर कैसा अत्याचार करेंगे और मेरा आध्यात्मिक कद भी बहुत छोटा है। परमेश्वर, मुझे भरोसा दो, ताकि मैं तुम्हारे लिए गवाही दे सकूँ।" उस पल मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये। परमेश्वर कहते हैं, "अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मुझे भरोसा मिला, यह सोचकर कि परमेश्वर मेरे साथ खड़ा है, मेरा डर काफी कम हो गया। चाहे पुलिसवाले कितने भी निर्दयी हों, मेरी किस्मत परमेश्वर के हाथों में थी, वो लोग मुझे कैसी भी यातना दें, मैं तय कर चुकी थी कि मुझे यहूदा नहीं बनना। मैंने परमेश्वर के लिए गवाही देने की कसम खाई!

फिर, उनमें से एक अफ़सर मुझसे पूछताछ करने लगा। उसने कहा, "तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के लिए किसने कहा? तुम्हारा अगुआ कौन है? कलीसिया की सारी भेंटें कहाँ रखी हैं?" मैंने कहा, मैं कुछ नहीं जानती। वो मुझे क्रूरता से देखते हुए मेरे आगे-पीछे चलता रहा और कहा, "तो तुम अपना मुँह नहीं खोलोगी? मैं तुम्हारा मुँह खुलवा कर रहूँगा!" ऐसा कहते ही, उसने एक मैगज़ीन हाथ में लेकर उसे मोड़ा, मैंने मार खाने के अंदाज़े से अपनी आँखें बंद कर लीं। तभी, मैंने नेशनल सिक्योरिटी ब्रिगेड के डायरेक्टर को यह कहते सुना, "आज हमने तुम्हारा घर ढूँढा है क्योंकि हमारे पास तुम्हारी आस्था का सबूत पहले से मौजूद था। तुम एक शब्द भी ना कहो, तब भी हम तुम्हें अपराधी साबित कर सकते हैं। लेकिन अगर तुम हमें सारी जानकारी दे दोगी, तो हम तुम्हें घर जाने देंगे।" उसे यह भी कहा, "तुम्हारे बच्चे बहुत छोटे हैं—अगर उनका ध्यान रखने के लिए उनकी माँ नहीं होगी, तो कितना बुरा होगा। अगर उनके टीचरों और सहपाठियों को पता चला कि उनकी माँ जेल में है, तो सब उन्हें ताने देंगे और उनका मज़ाक उड़ाएँगे। क्या ये सब उनकी मानसिक स्थिति के लिए ठीक होगा?" फिर उसने मुझसे पूछा, "क्या तुम इसके लिए तैयार हो? तुम अपने धर्म के लिए अपने बच्चों को अनदेखा नहीं करोगी, है ना?" उसकी बात सुनकर तुरंत मेरे बच्चों का डरा हुआ चेहरा मेरे सामने आ गया और मैं चिंता में पड़ गई। उस दिन जो कुछ भी हुआ, उन सबके बारे में सोचने लगी कि इन सबसे मेरे बच्चों को कैसी चोट पहुँची होगी। अगर मुझे जेल हो गई, तो उनका ध्यान कौन रखेगा? खासकर मेरा बेटा, जो आम तौर पर बीमार पड़ता रहता है, वो अपनी माँ के बिना अपना ख़याल कैसे रखेगा? जब टीचर और सहपाठी उन्हें ताने देंगे और उनका मज़ाक उड़ाएँगे, तो उन्हें कौन संभालेगा? ये सब सोचकर मेरी आँखों से लगातार आँसू बहते रहे और मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी: "परमेश्वर! मुझे अपने बच्चों की चिंता हो रही है, मैं अपनी बर्बादी देख पा रही हूँ। कृपा करके मेरी रक्षा करो, ताकि मेरे मन को शांति मिल सके, और मैं तुम्हें धोखा दिए बिना तुम्हारे लिए गवाही दे सकूँ।"

फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया। परमेश्वर कहते हैं, "तू उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देता है? क्या तू मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं करता है? या क्या ऐसा है कि तुझे डर है कि मैं तेरे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तू हमेशा अपने देह के परिवार के बारे में चिंता क्यों महसूस करता है? तू हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप करता है! क्या तेरे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। परमेश्वर के वचनों ने फ़ौरन मेरे दिल को रोशन कर दिया। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, सबकी किस्मत उसके हाथों में ही है। मेरे बच्चों के साथ भविष्य में जो कुछ भी होगा, उसमें परमेश्वर की मर्ज़ी होगी, इसलिए मेरी चिंता व्यर्थ है। मुझे परमेश्वर में आस्था रखकर, उस पर भरोसा करके, अपने बच्चों को उसके हवाले करना होगा। यह सोचकर, बच्चों को लेकर मेरी चिंता काफी कम हो गई। फिर मैं सोचने लगी कि मेरी आस्था किसी कानून को नहीं तोड़ती। मैं तो बस परमेश्वर के वचनों को पढ़ती हूँ, सभा करती हूँ और सुसमाचार का प्रचार करती हूँ। पुलिसवालों ने मुझे ग़ैरकानूनी तरीके से गिरफ़्तार किया और मेरे सामान्य पारिवारिक जीवन को तहस-नहस कर दिया। बच्चों की फ़िक्र ना करने को लेकर मेरी आस्था पर सवाल उठाना क्या उनके लिए सही था? मन में यह सवाल आते ही मैंने उनसे पूछा, "क्या ये सब मेरे धर्म की वजह से हो रहा है, या इसलिए कि तुम लोगों ने मुझे यहाँ बंद कर रखा है? परमेश्वर में विश्वास करना गैरकानूनी नहीं है। हम तो बस परमेश्वर के वचन पढ़कर अच्छे इंसान बनने की कोशिश करते हैं। आखिर तुम लोग विश्वासियों को गिरफ़्तार क्यों कर रहे हो?" मेरे ऐसा कहते ही वो लोग क्रूरता से मुझ पर हँसने लगे और एक अफ़सर ने कहा, "कैसा बेतुका सवाल है। अगर सभी परमेश्वर में विश्वास करने लगेंगे, तो सीसीपी की कौन सुनेगा? पार्टी किस पर हुकुम चलाएगी? इसलिए हम तुम लोगों को विश्वासी नहीं बनने दे सकते, विश्वासियों को गिरफ़्तार होना ही पड़ेगा!" उसे इस तरह से बात करते सुन मुझे बहुत गुस्सा आया। इससे मुझे परमेश्वर की यह बात याद आ गई: "इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों से, मैं सीसीपी के सार को समझ सकी। वो लोग दुष्ट और स्वर्ग की सत्ता के खिलाफ़ हैं। परमेश्वर ने बड़ी स्पष्टता से सभी चीज़ों का निर्माण किया, इंसानियत बनाई, वो परमेश्वर ही है जो पूरी मानवजाति का पालन-पोषण करते हुए सबको संभाल रहा है। परमेश्वर की पूजा करना स्वाभाविक और उचित है, मगर कम्युनिस्ट पार्टी लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने और उसका अनुसरण करने से रोकती है, लोगों को गुमराह करने के लिए वे नास्तिकता और विकासवाद का प्रचार करते हैं। वे तो बेशर्मों की तरह ये भी कहते हैं कि इस दुनिया में कोई परमेश्वर नहीं है और लोगों की सारी खुशियाँ पार्टी से जुड़ी हुई हैं। वो चाहते हैं कि लोग उनके आभारी रहें, उनकी बातें सुनें और उनका पालन करें। यह पार्टी बेहद दुष्ट और नीच है! परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए खुद धरती पर आया, उसने लाखों वचन व्यक्त किए। इसलिए उन्हें इस बात का डर है कि लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद सत्य को समझकर पार्टी का असली चेहरा देख लेंगे, और इससे लोग उनके काबू में ना रहकर परमेश्वर की ओर मुड़ जाएँगे। यही वजह है कि ये इतनी बेसब्री से ईसाइयों को गिरफ़्तार करने में लगे हैं, ये बेकार में ही परमेश्वर के कार्य को नष्ट करके लोगों पर हमेशा के लिए राज करना चाहते हैं। उनके अत्याचार को निजी तौर पर अनुभव करके, मैं परमेश्वर के दुश्मन की तरह सत्य से नफ़रत करनेवाले उनके राक्षसी सार को पहचान सकी और इन परमेश्वर विरोधी दुष्ट राक्षसों से नफ़रत करने लगी। फिर चाहे मुझे कितनी भी तकलीफ़ों का सामना क्यों ना करना पड़े, मैंने दृढ़ता से परमेश्वर का अनुसरण करके उसके लिए गवाही देने का संकल्प कर लिया।

उन्होंने मुझ पर कानून लागू करने की प्रक्रिया को कमज़ोर करने और सामाजिक व्यवस्था में रुकावट डालने का आरोप लगाया, और मुझे अठारह दिनों तक गिरफ्तार करके रखा। उस दौरान, उन्होंने लोगों से मेरी पहचान एक कलीसिया की अगुआ के रूप में कराने की कोशिश की और मुझसे मेरी आस्था का त्याग करवाने के लिए मेरे पति को भी हिरासत केंद्र में बुलाया। परमेश्वर के वचनों ने शैतान की चालों को समझने में मेरा मार्गदर्शन किया, ताकि मैं उनके झाँसे में ना आऊँ। बाद में, मेरे पति ने किसी को पैसे देकर मुझे जमानत पर छुड़वा लिया। जिस दिन मुझे छोड़ा गया, एक अफ़सर ने कहा, "तुम्हारे मौजूदा बर्ताव को देखकर तो यही लगता है कि तुम बेशक अब भी विश्वासी बनी रहोगी। वैसे हमारी नज़र तुम पर रहेगी, अगर हमने तुम्हें कहीं भी सभा करते या सुसमाचार का प्रचार करते देख लिया, तो तुम्हें दोबारा गिरफ़्तार कर लेंगे!" इसलिए गिरफ़्तारी से बचकर अपनी आस्था का अभ्यास करने और सामान्य तौर पर अपना कर्तव्य निभाने के लिए, मैं अपनी जगह बदलती रही। उन दिनों मेरे पति एक टाउनशिप के डिप्टी हेड थे, मेरी आस्था के लिए मुझे गिरफ़्तार किये जाने के कारण उनके प्रमोशन के सारे रास्ते बंद हो गये। फिर अप्रैल 2007 में, एक शाम मेरे पति घर आए और कहने लगे, "जल्द ही शहर में कुछ कैडरों का प्रमोशन किया जाएगा और इस बार मैं यह मौका नहीं गंवाना चाहता। तुम्हारी आस्था के चक्कर में, इससे पहले कई बार जब मुझे मौके मिले, तो मैं राजनीतिक पृष्ठभूमि की जाँच में पास नहीं हो पाया था। मैंने अपने लीडर से कहा है, इस बार मैं फ़ील्ड का हिस्सा बनना चाहता हूँ, उनका कहना था कि जब तक तुम अपनी आस्था का त्याग नहीं करोगी, वे मेरी सिफ़ारिश नहीं करेंगे। तुम्हें हम सबके लिए अपनी आस्था त्यागनी होगी, ताकि हमें अच्छा जीवन मिल सके और हम अपने बच्चों को एक स्थायी घर दे सकें। अगर तुम अपनी आस्था पर अड़ी रही, तो हमें तलाक लेना होगा। मैं अब इन पचड़ों में नहीं पड़ सकता। इस बात का ध्यान रखना!" फिर वो दूसरे कमरे में चले गए। उस वक्त उनके मुँह से ये सब सुनकर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। वो हमेशा मेरा बहुत ख़याल रखते थे, और हमारे दो प्यारे-प्यारे, समझदार बच्चे भी तो हैं। उनके पास नौकरी थी, मैं अपना कारोबार कर रही थी, हमारा जीवन बहुत खुशहाल हुआ करता था। चीनी सरकार के अत्याचार के कारण हमारा खूबसूरत परिवार बिखरने लगा था। जहाँ तक तलाक की बात है, मुझे खुद को या अपने बच्चों को लेकर कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या पता इससे उन्हें कितनी चोट पहुँचेगी। इन विचारों से मुझे बहुत बुरा महसूस होने लगा। मैं बहुत टूट गई थी, मैं लाचार और बहुत दुखी थी। लग रहा था जैसे मेरे दिल को चीरकर दो टुकड़े किये जा रहे हों। मैं बता भी नहीं सकती। मैंने फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, "परमेश्वर, मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती, लेकिन मैं अपने घर, अपने पति और अपने बच्चों को भी नहीं छोड़ सकती। मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ, कौन सा रास्ता चुनूँ।" मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, "परमेश्वर, मैं क्या करूँ? मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकूँ।"

फिर, मैं परमेश्वर के वचनों के इस अंश के बारे में सोचने लगी। परमेश्वर कहते हैं, "एक विश्वास करने वाले पति और विश्वास न करने वाली पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वास करने वाले बच्चों और विश्वास न करने वाले माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश से पहले एक व्यक्ति के रक्त-संबंधी होते हैं, किंतु एक बार जब उसने विश्राम में प्रवेश कर लिया, तो उसके कोई रक्त-संबंधी नहीं होंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मैंने जाना, आस्तिक लोगों और नास्तिक लोगों में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। जीवन और मूल्यों को लेकर दोनों का नज़रिया अलग-अलग है। मैं आस्था और सत्य के अनुसरण के सही मार्ग पर चल रही थी, और मेरे पति उन्नति करके पैसे कमाने के मार्ग पर चल रहे थे। प्रमोशन पाने के लिए तलाक का रास्ता चुनकर, वे हमारे सालों के रिश्ते और बच्चों की भावनाओं को दांव पर लगाने के लिए तैयार थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके लिए उनका रुतबा और भविष्य बहुत पहले ही मुझसे और हमारे बच्चों से ज़्यादा ज़रूरी हो गया था। भले ही उनका कहना था कि वो बच्चों को एक स्थायी घर और ख़ुशहाल जिंदगी देना चाहते हैं, मगर ये बस एक धोखा था। वो मेरे साथ अच्छा व्यवहार कर रहे थे क्योंकि मैं उनके निजी हितों में दखल नहीं दे रही थी, लेकिन अब, मेरी आस्था और गिरफ़्तारी से उनके करियर पर असर पड़ रहा था। यह उनके प्रमोशन और पैसे कमाने के रास्ते में रुकावट बन रही थी, इसलिए वो तलाक लेना चाहते थे। इस बारे में ऐसा सोचकर मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे एहसास हुआ कि इंसानों के बीच असली प्रेम या स्नेह जैसी कोई चीज़ नहीं है, सब कुछ बस धोखा और एक-दूसरे का फायदा उठाने की कोशिश है। दरअसल, मेरे पति भी अच्छे से जानते थे कि कम्युनिस्ट पार्टी दुष्ट और तानाशाह है, लेकिन फिर भी वो उनकी तरफ़दारी करते रहे, मुझसे मेरी आस्था त्यागने को कहते रहे। इस बार वो मुझ पर तलाक लेने का दबाव बना रहे थे। हमारा नज़रिया बिलकुल अलग था और हम अलग-अलग मार्ग पर चल रहे थे, इसलिए हम साथ रहने के बावजूद कभी खुश नहीं रह पाते। इसका एहसास होते ही मैं समझ गई कि मुझे क्या करना है। अगली सुबह हम अपने तलाक की कागज़ी कार्यवाही के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो गए, रास्ते में उन्होंने मुझसे कहा, "तुम जानती हो, मैं तलाक नहीं लेना चाहता, लेकिन मेरे पास कोई और चारा भी नहीं है। अपना और बच्चों का अच्छे से ध्यान रखना।" उन्हें ये कहते सुनकर अचानक मेरा गला भर आया। मैं उन सभी मुश्किलों, तानों और भेद-भाव के बारे में सोच रही थी जो मुझे तलाक लेने के बाद सहने पड़ेंगे और इसलिए मैं बहुत दुखी थी। मैंने फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे कहा कि वो मेरे मन को शक्ति दे और मुझे भटकने से बचाए, ताकि मैं उसके लिए गवाही दे सकूँ। फिर, मैंने उसके कुछ वचनों को याद किया। "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक घिनौना जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान')। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि चाहे किसी को धरती पर कितना भी अच्छा जीवन मिले, चाहे लोग उनसे कितनी भी नफ़रत करें या कितनी भी प्रशंसा करें, इन सबका कोई मतलब नहीं है। सिर्फ़ सत्य का अनुसरण करके और सृजित इंसान का कर्तव्य निभाकर ही परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती है, यही ईमानदारी और आत्मसम्मान भरा जीवन है, केवल यही सार्थक और अनमोल जीवन है। ये सोचकर मेरे मन का बोझ हल्का हो गया और मैंने तलाक की कार्यवाही बिना किसी आशंका के अच्छे से पूरी की। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन का धन्यवाद, जो मैं प्रेम की जंजीरों से मुक्त होकर सही फैसला लेने में सक्षम रही!

मई 2011 में एक सभा के दौरान, मुझे दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया। वो वही दस साल पहले वाले अफ़सर थे। उसने मेरी आईडीई ढूँढकर मुझे नाम से बुलाया और कहने लगे, "इन दस सालों में हम अनेकों बार तुम्हारे घर गये, मगर तुम हमें वहाँ नहीं मिली, मगर अब हमारे हाथ वाकई सोना लग गया है। इस बार हम तुम्हें जाने नहीं देंगे!" यह कहते-कहते, उसने मुझे हथकड़ियाँ पहनाकर पुलिसवाली गाड़ी में डाल दिया। गाड़ी में मैं उन तीन बहनों के बारे में सोचने लगी जिन्हें पहले गिरफ्तार किया गया था, पुलिसवालों ने उन पर करीब एक महीने तक क्रूर यातनाएं दीं। उनमें से एक बहन का बायां हाथ हमेशा के लिए बेकार हो गया था क्योंकि उन्हें काफी समय तक लटकाकर रखा गया था। ये सब सोचकर मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। मुझे डर था कि वो लोग मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे या अपंग बना देंगे। मैंने फ़ौरन मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, मैंने कहा, "परमेश्वर! आज तुमने मुझे दोबारा गिरफ़्तार करवाया है और मैं तुम्हारे आयोजनों के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार हूँ, मगर परमेश्वर, मैं बहुत कमज़ोर हूँ और मेरा आध्यात्मिक कद भी बहुत छोटा है। कृपा करके इस अनुभव में मेरी रक्षा करो और मेरा मार्गदर्शन करो। परमेश्वर, मैं तुम्हारे लिए अपना जीवन समर्पित करने को तैयार हूँ, मैं यहूदा की तरह तुम्हें धोखा नहीं दूँगी। मैं तुम्हारे लिए गवाही दूँगी।" प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया। परमेश्वर कहते हैं, "तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और अपने को मेरे द्वारा दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। इससे, मैंने जाना कि मेरी जिंदगी और मेरी मौत, दोनों परमेश्वर के हाथों में है, वे लोग परमेश्वर की अनुमति के बिना मुझसे मेरी जिंदगी नहीं छीन सकते। शैतान कितना भी दुष्ट क्यों न हो, वह अभी भी परमेश्वर के आयोजनों का ही एक हिस्सा है, वह कभी परमेश्वर के अधिकार से आगे नहीं निकल सकता। मैंने उस पल को याद किया जब अय्यूब अपनी परीक्षा दे रहा था। परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब के जीवन को नुकसान नहीं पहुँचाने दिया और शैतान परमेश्वर की बात काटने में अक्षम रहा। इससे मेरे मन को थोड़ी शांति मिली और मुझे आने वाली मुश्किलों का सामना करने की हिम्मत मिली। मैंने परमेश्वर के सामने कसम खायी: "चाहे मुझे कितना भी अत्याचार सहना पड़े या चाहे मेरे साथ जो भी हो, मैं हमेशा तुम्हारे लिए गवाही दूँगी और तुम्हारा अनुसरण करूँगी!" बाद में, नेशनल सिक्योरिटी ब्रिगेड का वो प्रमुख मुझसे पूछताछ करने लगा। उसने कहा, "यह अब हमारे शहर के लिए बड़ा गंभीर मामला बन चुका है। तुम्हें 2001 में गिरफ्तार किया गया था, और फिर 2009 में किसी ने सूचना दी कि तुम दोबारा सुसमाचार का प्रचार कर रही हो। हम तुम्हें गिरफ़्तार करने में कितनी बार नाकाम हुए। इस बार, हमने तुम्हें सभा में रंगे हाथों पकड़ लिया, इसलिए अगर तुम अपना मुँह नहीं खोलोगी, तो भी हम तुम्हें सात से दस साल के लिए तो अंदर करवा ही देंगे। एक बार तुम्हें जेल हो गई, तो फिर तुम्हारे बच्चों को कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा और उन्हें कभी सिविल सेवा की नौकरी भी नहीं मिलेगी। हर कोई उन्हें बुरा-भला कहेगा क्योंकि उन्हें तुम्हारी जैसी माँ मिली। उनके भविष्य की बर्बादी का कारण तुम होगी। वो जिंदगी भर तुमसे नफ़रत करेंगे!" फिर उसने कहा, "अपना नहीं, तो कम-से-कम अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचो। अगर तुम हमारी बात मानकर हमें सारी जानकारी दे दोगी, अपने अगुआ का नाम बता दोगी और कलीसिया का सारा पैसा हमें दे दोगी, तो हम तुम्हें जाने देंगे।" उसे ऐसा कहते सुनकर मुझे उससे घिन आने लगी। कम्युनिस्ट पार्टी ईसाइयों पर अत्याचार करने के लिए कुछ भी कर सकती है, यहाँ तक उनके बच्चों को यूनिवर्सिटी से दूर भी करवा सकती है। उन्होंने मुझे कलीसिया को धोखा देने और परमेश्वर से गद्दारी पर मजबूर करने के लिए, मेरे बच्चों को शिक्षा से दूर रखने की घिनौनी चाल चली, और फिर कहा कि मेरी आस्था के कारण उनका भविष्य खराब हो रहा है। कितनी गंदी सोच है! कम्युनिस्ट पार्टी हद से ज़्यादा दुष्ट है! वो लोग परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने और लोगों को उसकी ओर मुड़ने से रोकने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उनकी बातें तो शहद जैसी होती हैं, मगर उनके कर्मों में ज़हर भरा होता है! इस बात का एहसास होते ही, मैंने ठान लिया कि मैं इस जाल में नहीं फँसने वाली, क्योंकि मुझे परमेश्वर के लिए गवाही देनी है। वो लोग मुझसे रात के दो बजे तक पूछताछ करते रहे और जब मैंने अपना मुँह नहीं खोला, तो उन्होंने मुझे हिरासत केंद्र भेज दिया। एक अफ़सर ने कहा, "इस बार तो तुम्हें जेल जाना ही होगा और तुम वहीं चक्की पिसोगी!"

हिरासत केंद्र में, उन लोगों ने मुझे कातिलों, मानव तस्करों, वेश्याओं और जालसाजों के साथ हवालात में बंद कर दिया। मेरी हालत बहुत खराब थी, मैं बहुत दुखी थी। वहाँ पर चारों तरफ़ अँधेरा और एक अजीब सी दुर्गंध फ़ैली हुई थी। उस माहौल में, मेरी गठिया और दिल की बीमारी बद-से-बदतर होती जा रही थी, मेरा एक-एक जोड़ दुख रहा था। हर रात दो घंटे मेरी निगरानी की जाती थी, कुछ देर खड़े रहने के बाद मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती और छाती में अकड़न होने लगती। वो अनुभव भयानक था। मैंने उस अफ़सर के बारे में सोचा जिसने कहा था कि मुझे सात से दस साल तक की जेल होगी और अपना हिसाब लगाने लगी, सात सालों में और फिर दस सालों में कितने दिन होंगे। इसमें तो हज़ारों दिन-रात बेकार हो जाएंगे? मैं अंधकार की इस नर्क से कैसे निकल पाऊँगी? क्या मैं यहाँ से निकलने के लिए ज़िंदा भी बचूँगी? ये सब सोचकर, मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाई और अपने दिल पर अँधकार का साया मंडराता महसूस करने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरी हालत ठीक नहीं है, इसलिए मैं फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, मैंने उससे मेरे मन को शाँत करने और उसके रास्ते से भटकने से बचाने में मदद करने की गुहार लगाई। फिर, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया: "इस विशाल संसार में, कौन मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से जाँचा गया है? किसने मेरे आत्मा के वचन व्यक्तिगत रूप से सुने हैं? बहुत सारे लोग अँधेरे में इधर-उधर टटोलते और खोजबीन करते हैं; बहुत सारे विपत्ति के बीच प्रार्थना करते हैं; बहुत सारे भूखे और ठण्डे, आशा से देखते हैं; और बहुत सारे शैतान द्वारा जकड़े हुए हैं; फिर भी बहुत सारे नहीं जानते हैं कि कहाँ जाएँ, बहुत सारे अपनी प्रसन्नता के बीच मुझे धोखा देते हैं, बहुत सारे कृतघ्न हैं, और बहुत सारे शैतान के कपटपूर्ण कुचक्रों के प्रति निष्ठावान हैं। तुम लोगों के बीच अय्यूब कौन है? पतरस कौन है? मैंने बार-बार अय्यूब का उल्लेख क्यों किया है? मैंने इतनी अधिक बार पतरस का उल्लेख क्यों किया है? क्या तुम लोगों ने कभी सुनिश्चित किया है कि तुम लोगों के लिए मेरी आशाएँ क्या हैं? तुम लोगों को ऐसी बातों पर विचार करते हुए अधिक समय बिताना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 8)। इस पर विचार के बाद, मैं समझ गई कि परमेश्वर पतरस और अय्यूब जैसे लोगों को इसलिए स्वीकार करता है क्योंकि वे मुश्किलों और परीक्षणों का सामना करते हुए परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं। अय्यूब को ही देख लीजिए—जब वह परीक्षणों से गुज़र रहा था, तो उससे उसके पैसे और बच्चे, दोनों ही छीन लिए गए और उसका शरीर फोड़ों से भर गया था। बावजूद इसके वह शैतान को नीचा दिखाते हुए, परमेश्वर का गुणगान करने में सक्षम रहा। वहीं पतरस तो परमेश्वर के लिए सूली पर चढ़ गया, उसके लिए गवाही देते हुए मौत आने तक आज्ञाकारी बना रहा। जहाँ तक मेरी बात है, मैंने परमेश्वर के वचनों से मिलने वाले पोषण का बहुत लाभ उठाया, लेकिन ज़रा सी तकलीफ़ का सामना होते ही इससे दूर भाग जाना चाहती थी। मैंने जाना कि मेरी आस्था या आज्ञाकारिता सच्ची नहीं थी, मैं गवाही देने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाने से कतरा रही थी। मैं परमेश्वर की अपेक्षा से काफ़ी दूर थी। मैं अपनी जिंदगी से इस कदर चिपकी हुई थी, फिर परमेश्वर के लिए गवाही कैसे दे सकती थी? मुझे बहुत पछतावा होने लगा और मैं खुद को दोषी समझने लगी इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की: "परमेश्वर! मैं अपनी जिंदगी और मौत तुम्हारे हवाले करके तुम्हारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहती हूँ। चाहे मुझे कितने साल की भी जेल हो जाए या कितना भी अत्याचार सहना पड़े, फिर भी, मैं तुम्हारे लिए गवाही ज़रूर दूँगी, ताकि शैतान को नीचा दिखा सकूँ।" हैरानी की बात है कि जैसे ही मैं खुद को परमेश्वर के प्रति समर्पित करके देह की इच्छाओं के बंधनों से आज़ाद हुई, हिरासत केंद्र में रहने के 28वें दिन मुझे वहाँ से रिहा कर दिया गया। बाद में, मुझे पता चला कि मेरे पूर्व पति ने किसी को रिश्वत देकर मुझे आज़ाद करवा लिया, क्योंकि उन्हें यह डर था कि मेरे जेल जाने से हमारे बच्चों को यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिलेगा। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर को धन्यवाद किया।

मेरे हिरासत केंद्र से रिहा होने के दिन मेरे पूर्व पति मुझसे वहाँ मिलने आए। उन्होंने देखा कि एक महीने के अंदर ही मैं बहुत कमज़ोर हो चुकी थी, मैं बिल्कुल अलग दिख रही थी, उन्होंने मुझसे पूछा, "तुम एक महीने में ही कितनी पतली हो गई हो, कई सालों तक जेल में रहना तो तुम्हारे लिए नामुमकिन होता। इस बार तुम अपनी आस्था त्याग दोगी, है ना?" जब मैंने उनके सवाल का जवाब नहीं दिया, तो वे मुझ पर दबाव बनाने लगे: "बोलो, अब तुम अपनी आस्था त्याग दोगी?" मुझे एहसास हुआ कि यह अब आध्यात्मिक संसार का संघर्ष बन गया है और इस बार मुझे परमेश्वर के लिए गवाही देनी ही होगी। मैंने उन्हें एकदम शांत मन से कहा, "मैं अपना विश्वास नहीं त्याग सकती! आस्था रखना सही और स्वाभाविक है, जब तक मैं जिंदा हूँ, विश्वासी बनी रहूँगी।" मेरी बात सुनकर, उन्होंने गुस्से से स्टीयरिंग व्हील पर जोर से हाथ मारा, आह भरी और अपना सिर हिलाते हुए, मुझ पर चिल्ला उठे, "मैं तुम्हारे परमेश्वर के बारे में एक बात ज़रूर कहूँगा! पार्टी लोगों का दिल जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है, मगर ऐसा नहीं कर पाती, जबकि तुम विश्वासी बिना किसी फायदे के और कई बार गिरफ़्तार होने के बावजूद विश्वास करने पर अड़ी रहती हो। कुछ बात तो है तुम्हारे परमेश्वर में!" उन्हें यह कहते सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा, मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि उसने मुझे अपने लिए गवाही देने, शैतान को नीचा दिखाने और उसे हराने का रास्ता दिखाया। परमेश्वर का धन्यवाद!

मेरे रिहा होने के कुछ दिनों बाद मेरा बेटा स्कूल से घर वापस आया, मैंने उसका पसंदीदा मशरूम चिकन डिश बनाया था। खाना खाने के बाद, उसने बहुत दृढ़ता से मुझसे बात की। उसने कहा, "मम्मी, आज आपको फैसला करना ही होगा। अगर आप मुझे अपना बेटा मानती हैं, तो आपको अपनी आस्था त्यागनी होगी। अगर आप अपने धर्म पर अड़ी रहीं, तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊँगा और फिर आप मुझे कभी नहीं देख पाएंगीं।" मैं चौंक गई। वह हमेशा से मेरे दिल के बहुत करीब था, उसने पहले कभी मेरी आस्था का विरोध भी नहीं किया था। पता नहीं उस दिन उसने ऐसी बात क्यों कही, वो मुझे अचानक किसी अजनबी जैसा लगने लगा। एक पल के लिए तो मैं अवाक रह गई। उस वक्त मुझे बहुत तकलीफ़ हुई और मुझे एहसास हुआ कि आस्था का यह मार्ग वाकई कठिनाइयों और उतार-चढ़ाव से भरा है। हर कदम पर एक फैसला लेना पड़ता है। उस वक्त मेरे लिए फैसला लेना बहुत मुश्किल हो गया था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, मैंने कहा, "हे परमेश्वर, मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती, लेकिन मैं अपने बेटे को भी नहीं खोना चाहती। परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकूँ।" प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया। परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे साफ़ तौर पर दिखाया कि मैं एक और आध्यात्मिक संघर्ष का सामना कर रही हूँ। ऐसा लग रहा था जैसे मेरा बेटा मुझसे फैसला लेने के लिए कह रहा हो, लेकिन असल में शैतान मुझे लुभाने और मुझ पर वार करने की कोशिश कर रहा था। मुझे लगा जैसे इस बार परमेश्वर भी मेरे फ़ैसले का इंतज़ार कर रहा था। परमेश्वर देखना चाहता था कि मैं सांसारिक मोह में आकर अपने बेटे को चुनूँगी या फिर उसे। मैं परमेश्वर को निराश नहीं करना चाहती थी, मैं जानती थी कि मुझे गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाना है। इसलिए मैंने अपने बेटे से कहा, "मैं परमेश्वर से अलग नहीं हो सकती। परमेश्वर को छोड़ने का फैसला करना वैसा ही होगा जैसे आज तुम मुझे छोड़ने का फैसला कर रहे हो। ऐसा करना नासमझी होगी और इससे परमेश्वर बहुत नाराज़ होगा। मैं हमेशा परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। यही मेरा फैसला है!" मुझे ऐसा कहते सुनकर, वो रोते हुए वहाँ से चला गया। उस वक्त मेरा भी दिल टूट गया था, मगर मैं जानती थी कि मैंने सही फैसला लिया है।

करीब आधे घंटे बाद, वह वापस आया और मुझसे कहने लगा, "मम्मी, मैं गलत था। मुझे तुमसे ऐसा फैसला करने के लिए नहीं कहना चाहिए था। पापा ने मुझसे कहा था कि पुलिसवालों ने उन्हें आप पर नज़र रखने और यह पक्का करने के लिए कहा था कि आप अपनी आस्था त्याग देंगी। क्योंकि आप पहले ही दो बार गिरफ्तार हो चुकी हैं, अगर आप फिर से गिरफ़्तार हो गईं, तो कभी बाहर नहीं आ पाएँगी और फिर मैं अपनी माँ को खो दूँगा। मैं उसी तरकीब का इस्तेमाल करके आपसे आपकी आस्था त्यागने को मजबूर करना चाहता था।" उसकी यह बात सुनकर मेरा मन परमेश्वर विरोधी कम्युनिस्ट पार्टी के उन राक्षसों के प्रति घृणा से भर गया। अपनी आस्था के इतने सालों में, मुझे कई बार ग़ैरकानूनी ढंग से गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया, जिससे मेरा परिवार बिखर गया, मेरे पति और बच्चों को भी बहुत नुकसान पहुँचा। ये सब पार्टी की चाल थी। मैंने सब कुछ त्याग कर दृढ़ता से परमेश्वर का अनुसरण करने का निश्चय कर लिया!

इन सभी प्रलोभनों के बीच परमेश्वर के वचन शैतान की चालों को समझने, परमेश्वर में मेरी आस्था को मजबूत करने और उसका अनुसरण करने में मेरा मार्गदर्शन करते रहे। मैं परमेश्वर के वचनों की सामर्थ्य और अधिकार को देख पा रही थी, मैं जाना कि शैतान की चालों पर जीत हासिल करके ही परमेश्वर की बुद्धि का पता चलता है। पार्टी भले ही कितनी भी दुष्ट या निर्दयी क्यों न हो, वह परमेश्वर के कार्य के रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। परमेश्वर उनके जुल्मों को हमारे सामने इसलिए आने देता है, ताकि वह विजेताओं का एक समूह बना सके। इस तरह, मैंने जाना कि परमेश्वर कितना बुद्दिमान और सर्वशक्तिमान है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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