एक पादरी का असली रूप

04 नवम्बर, 2020

मैं अपनी पुरानी कलीसिया में पादरी ली का वाकई आदर करती थी। उन्होंने अपना परिवार और केरियर छोड़ दिया, प्रभु के लिए काम करने की खातिर वे सब जगह घूमे। मुझे लगा कि वे वाकई बहुत धर्मनिष्ठ और नेक सेवक हैं। मैं उनके आने-जाने का खर्च उठाकर उनकी मदद करती, मेरे पति और मैं उन्हें सुसमाचार साझा करने के लिए बहुत-सी जगहों पर गाड़ी में ले जाते। मैं अपनी अमदनी का दसवां हिस्सा भी उन्हें दिया करती। जब भी वे कलीसिया आते, हमारे ही घर ठहरते, हर शाम वे बाइबल के बारे में चर्चा करते और समय मिलने पर हमारे साथ प्रार्थना करते। वे हमें आशीष देते, वे परिवार के एक सदस्य जैसे ही थे। उस समय, मुझे लगता कि अपनी आस्था में मेरा पादरी ली का अनुसरण करना परमेश्वर को ज़रूर मंज़ूर होगा, मैं ग़लत नहीं हो सकती। लेकिन फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया, फिर जैसे-जैसे सच्चाइयां प्रकट होने लगीं, धीरे-धीरे पदरी का असली रूप प्रकट होने लगा।

पांच साल पहले, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को सुनने का सौभाग्य मिला। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को पहचान लिया, और पक्का कर लिया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है, जिसकी मुझे आशा थी। हमारे पूरे परिवार ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। मैं पादरी ली को यह शानदार ख़बर बताना चाहती थी, सोच रही थी कि कितना बढ़िया होगा अगर वे भी परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लें, और मेमने के पदचिह्नों पर सबको आगे बढ़ायें। मगर तब मुझे याद आया कि वे हमें कई बार बता चुके हैं कि चमकती पूर्वी बिजली की खोजबीन न करें, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों से कोई नाता न रखें। वे हमेशा कहते कि प्रभु एक बादल पर आयेगा, और उसके देहधारी होकर आने की हर गवाही झूठी है। वे कहते, "प्रभु यीशु के बादल पर आने की बात को छोड़ कर किसी भी बात को बिल्कुल स्वीकार न करो।" इस बात ने मुझे चिंता में डाल दिया। अगर मैं उनके साथ सुसमाचार साझा करूं तो क्या वे स्वीकार करेंगे? फिर मैंने एक और तरह से सोचा : वे बहुत पुराने और बड़े मेहनती विश्वासी हैं। यकीनन वे प्रभु की वापसी के लिए लालायित होंगे? मुझे लगा कि अगर मैं उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ कर सुनाऊँ, तो वे परमेश्वर की वाणी को ज़रूर पहचान लेंगे।

करीब एक महीने बाद पादरी ली हमारे घर रहने आये, तो मैंने उनसे कहा, "पादरी ली, प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियों को लेकर मुझे कुछ नयी समझ हासिल हुई है। लूका 17:24-25 में कहा गया है, 'क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।' और मत्ती 24:27 में कहा गया है, 'क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा।' इन पदों में मनुष्य-पुत्र के आने का साफ़ तौर पर ज़िक्र है। इससे स्पष्ट है कि प्रभु अंत के दिनों में मनुष्य-पुत्र के रूप में प्रकत होकर कार्य करने के लिए वापस आयेगा। मनुष्य-पुत्र मनुष्य की संतान है, उसमें सामान्य इंसानियत है। यह संदर्भ परमेश्वर के देहधारी होने को लेकर है। परमेश्वर के आत्मा या आध्यात्मिक देह को 'मनुष्य-पुत्र' नहीं कहा जाएगा। 'मनुष्य-पुत्र के आने' का संदर्भ अंत के दिनों में प्रभु के देहधारी होकर कार्य करने के लिए आने से है।" मुझे लगा कि मेरी संगति के इस बिंदु पर पादरी ली कुछ सोच-विचार करेंगे, या इस बारे में अधिक जानना चाहेंगे, लेकिन मुझे हैरानी हुई कि उन्होंने मुझे चुप करा दिया। उन्होंने कहा, "हो ही नहीं सकता! प्रकाशितवाक्य में स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की गयी है, 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे' (प्रकाशितवाक्य 1:7)। प्रभु सबकी आँखों के सामने एक बादल पर आयेगा। वह देहधारी होकर कैसे आ सकता है?" मैंने जवाब दिया, "पादरी ली, उसके आने के बारे में सिर्फ़ यही एक भविष्यवाणी नहीं है। बहुत-सी दूसरी भविष्यवाणियाँ भी हैं कि वह गुप्त रूप से देहधारी होकर आयेगा। उदाहरण के लिए, 'आधी रात को धूम मची : "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो"' (मत्ती 25:6)। 'देख, मैं चोर के समान आता हूँ' (प्रकाशितवाक्य 16:15)। फिर प्रकाशितवाक्य 3:20 भी है : 'देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।' इनमें जिक्र है, 'आधी रात को धूम मची,' 'मैं चोर के समान आता हूँ' और 'मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ।' इन सबमें कहा गया है कि वह गुप्त रूप से, चुपचाप आयेगा। अगर मनुष्य-पुत्र के रूप में उसके आने के पदों के साथ जोड़ कर देखें, तो हम समझ सकते हैं कि जब प्रभु अंत के दिनों में वापस आयेगा, तो वह मनुष्य-पुत्र के रूप में देहधारी होकर गुप्त रूप से आयेगा। अगर वह सबकी नज़रों के सामने खुले तौर पर आये, तो लोग क्यों चिल्लायेंगे कि 'देखो, दूल्हा आ रहा है'? अगर प्रभु बादल पर आये, तो वह दरवाज़े पर दस्तक क्यों देगा? अगर वह बादल पर ही आये, किसी और तरह से नहीं, तो प्रभु के गुप्त रूप से आने की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी? यह स्पष्ट है कि उसका आगमन दो चरणों में होता है। पहले, वह देहधारी होकर गुप्त रूप से आता है फिर वह खुले तौर पर बादल पर प्रकट होता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों में प्रकटन और कार्य प्रभु के गुप्त रूप से आने की भविष्यवाणियों को पूरा करता है।" जैसे ही मैंने यह कहा, पादरी ली के चेहरे का भाव पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने मुझे गुस्से से रोक कर कहा, "तुम चमकती पूर्वी बिजली में शामिल हो गयी हो, है न?" मैंने उनसे बेबाक होकर कहा, "हाँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ प्रभु यीशु है। वह देहधारी होकर गुप्त रूप से बहुत पहले ही इंसान के बीच आ चुका है। उसने लाखों वचन व्यक्त किये हैं, इंसान को शुद्ध कर बचाने के लिए वह परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय-कार्य कर रहा है। परमेश्वर का गुप्त रूप से किया जाने वाला कार्य अब समाप्त होने को है, उसने चीन में विजेताओं का एक समूह बना दिया है। महाविपत्तियाँ अब शीघ्र आयेंगी, अब परमेश्वर लोगों के कर्मों पर गौर करके नेक लोगों को इनाम और दुष्ट लोगों को दंड देगा। उसके बाद, वह सभी राष्ट्रों और सभी लोगों के सामने एक बादल पर प्रकट होगा। उस वक्त, वे सभी लोग जिन्होंने अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा कर उसका विरोध किया, वे विपत्तियों में डूब जाएँगे, रोयेंगे, अपने दांत भींचेंगे। सभी राष्ट्रों के लोग बुरी तरह रोयेंगे, इससे प्रकाशितवाक्य 1:7 पूरा होगा : 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे।'" जब पादरी ली ने चिल्ला कर मुझे ज़बान पर लगाम देने को कहा, तो मैं चौंक गयी। उन्होंने कहा, "तुम्हारी बात चाहे जितनी भी वाजिब हो, मैं प्रभु यीशु के बादल पर आने की बात के अलावा किसी भी दूसरी बात को नहीं मानूंगा। इससे पहले मुझे मर जाना पसंद होगा!" उनका यह रवैया देख कर मैं हक्का-बक्का रह गयी। ये वो पादरी कैसे हो सकते हैं, जिन्हें मैंने प्रार्थना में रोते हुए, प्रभु की वापासी को लालायित देखा था? उनके मन में खोज करने की ज़रा-सी भी इच्छा क्यों नहीं है, इसके बजाय वे प्रभु के आने की ख़बर का इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? मैंने उन्हें दिल से यह सुझाव दिया : "पादरी ली, क्या हम प्रभु के वापस आने के लिए लालायित नहीं हैं? अब जब वह सच में आ चुका है, तो हमें शांति और ईमानदारी से इसकी जांच-पड़ताल करनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर की वाणी हैं। तब हम जान पायेंगे कि वह वापस आया हुआ प्रभु यीशु है या नहीं। अगर हम सिर्फ़ उसके बादल पर आने की भविष्यवाणियों पर ही गौर करें, और दूसरी भविष्यवाणियों को नज़रअंदाज़ कर दें, तो मुमकिन है हम उसका स्वागत करने का अपना मौक़ा गँवा दें। फिर हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पायेंगे! इसके अलावा, परमेश्वर के सामने हम तो बस धूल के कण हैं। हम परमेश्वर के कार्य की थाह कैसे पा सकते हैं? अगर हम यह सोच कर कि प्रभु मनुष्य-पुत्र के रूप में देहधारी होकर नहीं, बल्कि सिर्फ़ बादल पर ही आयेगा, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहें, तो क्या हम परमेश्वर के कार्य को सीमाओं में बाँध नहीं देंगे? क्या यह वाकई अहंकार नहीं होगा?" मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि पादरी ली एकाएक उठ खड़े हुए, उनका चेहरा लाल हो गया, वे अपने हाथ हिलाते हुए तेज़ी से आगे-पीछे चलते रहे। वे मुझ पर जोर से चीखे, "मैं अहंकारी हूँ? मैंने हज़ारों लोगों को उपदेश देकर बपतिस्मा किया है। मुझे यकीन है कि स्वर्ग में कम-से-कम पांच मुकुट मेरा इंतज़ार कर रहे हैं। मैं भला राज्य में प्रवेश कैसे नहीं करूंगा?" फिर वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की बुराई करते रहे, उन्होंने कहा, "तुम्हारा दावा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस आया हुआ देहधारी प्रभु यीशु है, जो गुप्त रूप से चीन में आया है। तो क्या मैं उसे देखने जा सकता हूँ? जब उसे देखूंगा तो विश्वास कर लूंगा।" फिर वे गुस्से में अपने कमरे में चले गये।

मेरी भावनाओं की खिचड़ी बन गयी, इसलिए मैं जल्दी से परमेश्वर के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगी, उससे रास्ता दिखाने की विनती की। प्रार्थना करने के बाद मुझे बहुत सुकून मिला, फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक वीडियो देखा। उसमें शामिल इस अंश ने वाकई मुझे प्रेरित किया : "यदि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, किंतु बिलकुल थोमा के समान इस बात की पुष्टि, सत्यापन और अनुमान करने के लिए कि परमेश्वर का अस्तित्व है या नहीं, हमेशा प्रभु के पंजर को छूना और उसके कीलों के निशानों को महसूस करना चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें त्याग देगा। इसलिए प्रभु यीशु लोगों से अपेक्षा करता है कि वे थोमा के समान न बनें, जो केवल उसी बात पर विश्वास करते हैं जिसे वे अपनी आँखों से देख सकते हैं, बल्कि शुद्ध और ईमानदार व्यक्ति बनें, परमेश्वर के प्रति संदेहों को आश्रय न दें, बल्कि केवल उस पर विश्वास करें और उसका अनुसरण करें। इस प्रकार के लोग धन्य हैं। यह लोगों से प्रभु यीशु की एक बहुत छोटी अपेक्षा है, और यह उसके अनुयायियों के लिए एक चेतावनी है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III)। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया, तो थॉमस ने उसे अनेक सत्य व्यक्त करते हुए सुना और अनेक चमत्कार करते हुए देखा। लेकिन उसके पुनर्जीवित होकर अपने अनुयायियों के सामने प्रकट होने के बाद भी, वह उसे नहीं पहचान पाया। यकीन करने से पहले उसने यीशु के हाथों के दाग़ छूने की जिद की। इसीलिए, प्रभु यीशु ने कहा, "तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया" (यूहन्ना 20:29)। थॉमस सिर्फ़ अपनी आँखों कर यकीन करता था, और परमेश्वर वैसे विश्वास को स्वीकार नहीं करता। जब मैं पादरी ली के बर्ताव पर गौर करती हूँ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-सारे सत्य व्यक्त करने के बावजूद वे उस पर गौर नहीं करना चाहते, यकीन करने से पहले वे अपनी आँखों से देहधारी परमेश्वर को देखने की जिद करते हैं, तो क्या यह थॉमस जैसा ही बर्ताव नहीं है? प्रभु यीशु का एक भी अनुयायी ऐसा नहीं है, जो उसका चेहरा देखने के बाद ही उस पर विश्वास करता हो। हमने तय कर लिया है कि वह एक सच्चा परमेश्वर है, और हम उसके सत्य व्यक्त करने, और इंसान के छुटकारे का कार्य करने के कारण उसका अनुसरण करते हैं। परमेश्वर अंत के दिनों में फिर से देहधारी हो गया है, वह इंसान को शुद्ध करके बचाने वाला संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है। सभी संप्रदायों के बहुत-से लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को पहचाना है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ गये हैं। इससे साफ़ है कि कोई व्यक्ति सच्चे मार्ग को तभी स्वीकार कर पाता है, जब वह सत्य से प्रेम करे और परमेश्वर की वाणी को पहचान सके। पादरी ली की बात मानें, तो लोग उसे देखे बिना देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं रखेंगे। लेकिन फरीसियों ने प्रभु यीशु का मुंह देखने के बावजूद, उसे स्वीकार क्यों नहीं किया? उन्होंने पागलों की तरह क्यों उसका विरोध कर उसे आंका और उसका तिरस्कार किया, और आखिरकार उसे सूली पर चढ़वा दिया? मेरे मन में अचानक इसका जवाब कौंध गया। पादरी ली सच्चे मन से परमेश्वर को बिल्कुल भी नहीं खोज रहे थे। प्रभु के आने को लेकर उनकी आशा उसे सिर्फ़ बदल पर देखने और फिर सीधे राज्य में ले जाए जाने की है। वे सत्य से प्रेम नहीं करते, न ही परमेश्वर के प्रकटन के लिए सच में लालायित हैं।

लेकिन यह सोच कर कि पादरी ली किस तरह हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं, मैं अभी भी उलझन में थी, वे अब एक अजनबी, एक दुश्मन बन गये हैं। मैं यह भी नहीं समझ पायी कि वे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का इतना प्रतिरोध, यहाँ तक कि निंदा क्यों कर रहे हैं। उनके मन में परमेश्वर के प्रति ज़रा भी आदर नहीं है। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, खोजती रही, फिर परमेश्वर की प्रबुद्धता पाकर मैंने फरीसियों के सार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों के एक अंश को याद किया। मैं तुरंत उसे खोजने लगी। परमेश्वर के वचन कहते है, "क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन-सत्य की खोज नहीं की। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के नाम के साथ व्यर्थ ही चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या ये दृष्टिकोण हास्यास्पद और बेतुके नहीं हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)। परमेश्वर के वचन फरीसियों की अपनी आस्था में परमेश्वर-विरोधी सार को पैने ढंग से उजागर करते हैं। वे हठी और अहंकारी थे। वे पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते थे, सत्य की बिल्कुल खोज नहीं करते थे। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया, तो उन्होंने साफ़ तौर पर देखा कि उसका कार्य और वचन बहुत सामर्थ्यवान और आधिकारिक हैं, लेकिन उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल नहीं की। इसके बजाय वे बाइबल के शाब्दिक अर्थ से चिपके रहे। प्रभु यीशु को मसीहा नहीं कहा जाता था और वह विश्राम नहीं रखता था, तो उन लोगों ने इसे पाप माना, और अंधाधुंध तरीके से आंक कर उसका तिरस्कार किया और उसकी निंदा की। आखिरकार उन्होंने उसे सूली पर चढ़वा दिया। मैंने इन सबकी तुलना पादरी ली से की। वे बिल्कुल फरीसियों जैसा ही काम कर रहे हैं, जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया था। वे बाइबल को अच्छी तरह जानते हैं, और धर्मोपदेशों में प्रभु की वापसी के लिए रोते और प्रार्थना करते हैं, लेकिन जब मैंने प्रभु के वापस आ जाने की गवाही दी, तो उनके मन में इसकी खोज करने की कोई इच्छा नहीं हुई। उन्होंने इसका विरोध कर इसकी निंदा की, यह भी कहा कि यीशु के बादल पर आने से कम किसी भी दूसरी बात को वे स्वीकार नहीं करेंगे, इससे पहले वे मर जाना पसंद करेंगे! इस बात से पता चलता है कि वे प्रभु के आने के प्रति सच में लालायित नहीं रहे हैं। मैंने सोचा था कि अगर मेरी गवाही स्पष्ट हो, मैं उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ कर सुनाऊं, तो वे इसे ज़रूर स्वीकार कर लेंगे। मैंने उन्हें जो बताया, उसे काटा नहीं जा सकता था, फिर भी वे उसे खोजने की ज़रा-सी भी इच्छा दिखाये बिना, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहे। उन्होंने बिल्कुल उन फरीसियों की तरह हठी और अहंकारी होकर बहाने बनाये। उन्होंने सत्य और मसीह के प्रति घृणा दिखायी, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य से वे एक फरीसी के रूप में उजागर हो गये। मैं सोचा करती थी कि पादरी ली का अनुसरण करके मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकूंगी, लेकिन अब मैं समझ गयी हूँ कि यह बहुत बड़ी बेवकूफ़ी थी। वे अंधों की अगुआई करने वाले अंधे हैं, सभी को बरबादी की तरफ ले जा रहे हैं। मैं जान गयी कि मुझे इस प्रकार के झूठे अगुआ से दूर हो जाना चाहिए।

अगले दिन जब पादरी ली चले गये, तो मैंने उन्हें यात्रा के लिए पैसा या दसवां हिस्सा नहीं दिया। वे वाकई नाराज़ होकर चले गये। उन्होंने मेरे छोटे भाई को तुरंत संदेश भेज दिया, निंदा से भरपूर, यह कहते हुए कि मैं ग़लत रास्ते पर निकल पड़ी हूँ, और पूरे परिवार को भटका रही हूँ। उन्होंने वीचैट ग्रुप में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों की निंदा और बदनामी करते हुए, लोगों को सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल करने से रोकने की कोशिश करते हुए, थोड़ी भ्रांतियां और झूठ भी फैलाये। और भी ज़्यादा हैरानी की बात यह कि उन्होंने घर-घर जाकर भाई-बहनों से मेरे परिवार से रिश्ते-नाते तोड़ने को कहा। नतीजा यह हुआ कि हमारे सभी साथी विश्वासी, रिश्तेदार और हमारे गाँव के अच्छे मित्र भी हमसे बच कर रहने लगे। और-तो-और मेरी सबसे अच्छी मित्र भी मुझे सड़क पर देखती, तो मुझसे बचने की पूरी कोशिश करती। उन दिनों, घर से बाहर निकलते ही लोग मेरे पीछे लगकर मेरी तरफ इशारा करते। और-तो-और मेरा छोटा भाई और उसके बच्चे भी मेरी पीठ पीछे मुझे आंकने लगे। मेरे परिवार के बाकी सदस्य भी इससे प्रभावित होकर कमज़ोर पड़ने लगे। मेरे लिए वाकई यह बड़ा मुश्किल वक्त था, इसलिए मैं परमेश्वर के सामने झुक कर बहुत प्रार्थना करने लगी।

एक दिन मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन कौंधे : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। ... जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। प्रभु यीशु ने यह भी कहा, "धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। तब आनन्दित और मगन होना, क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है। इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्‍ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था" (मत्ती 5:11-12)। परमेश्वर के इन वचनों पर विचार करने से मुझे थोड़ा सुकून मिला। याचक-वर्ग मुझे ठुकरा कर मेरी निंदा करते थे, मेरे रिश्तेदार और मित्र मुझसे बचने लगे थे, लेकिन मैं परमेश्वर के पदचिह्नों के साथ चलकर परमेश्वर के वचनों के न्याय और शुद्धिकरण का अनुभव कर रही थी। यह एक अद्भुत आशीष था। मैं समझ गयी कि चाहे मेरा किसी मुश्किल से सामना हो या मैं कितने भी कष्ट झेलूँ, यह पक्का होने के कारण कि यही सच्चा मार्ग है, परमेश्वर का कार्य है, मुझे परमेश्वर का अनुसरण करते रहना चाहिए। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से, इन सबका सामना करने के लिए मैंने अपनी आस्था को फिर से पा लिया। मेरे परिवार के बाकी लोगों ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, याजक वर्ग के परमेश्वर-विरोधी सार को समझ लिया। अब वे लाचार महसूस नहीं कर रहे थे।

कुछ समय बाद, मुझे पादरी ली से अचानक एक संदेश मिला। इसमें लिखा था, "बहन झांग, क्या तुम दसवां हिस्सा दे रही हो? क्या तुम अपना चढ़ावा बचा रही हो? मैं एक इंजील रैली आयोजित करने वाला हूँ। क्या तुम कुछ योगदान कर सकती हो?" उनका यह संदेश देख कर मुझे मतली आने लगी, बहुत गुस्सा आया। मैंने मना कर दिया। मगर बस दो-चार दिन बाद ही, उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा और उसे बदनाम करने वाले झूठ का एक पुलिंदा भेज दिया। वे फिर से मेरी आस्था में रोड़ा बनने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए मैंने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्हें ऐसा बर्ताव करते देख कर मुझे प्रभु यीशु की वो बातें याद आयीं, जो उसने फरीसियों को फटकारते समय कही थीं : "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। याजक वर्ग परमेश्रावर के राज्य में नहीं जा पा रहा है, वह हमें भी इससे बाहर रखने के लिए हर तरह की चाल चल रहा हैं। हमें नरक के बच्चे बनाने के लिए उन्होंने हमें नरक में घसीटना तय कर रखा है। क्या यह दुष्टता नहीं है? फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचनों को याद किया : "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत सच्चे हैं! पादरी ली बाइबल को गहराई से जानते हैं, लेकिन वे विश्वासियों को गुमराह करने के लिए हमेशा अपने बाइबल और अध्यात्मविद्या का ज्ञान परोसते थे। विश्वासियों को लगता कि पादरी ली प्रभु को किसी और से बेहतर प्रेम करते और समझते हैं। लेकिन दरअसल, उन्हें परमेश्वर के कार्य की ज़रा भी समझ नहीं है और वे सत्य से बेहद घृणा करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को सामने पाकर भी, उन्होंने बिल्कुल खोजना नहीं चाहा, बल्कि बस पागल की तरह विरोध कर वे उसकी निंदा करते रहे। उन्होंने उसे स्वीकार नहीं करना चाहा, साथ ही उन्होंने विश्वासियों को भटकाने के लिए झूठ भी फैलाये। उन्होंने कलीसिया की तालाबंदी और कलीसिया के सदस्यों को सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल करने से रोकने की कोशिश की। हमारे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लेने के बाद, पहले तो उन्होंने झूठ बोल कर हमें गुमराह करने की कोशिश की, फिर उन्होंने हमें ठुकराने और निष्कासित करने के लिए दूसरों का इस्तेमाल किया। इस तरह उन्होंने हमें सच्चे मार्ग को छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश की। आखिरकार मुझे एहसास हुआ कि पादरी ली का प्रचार विश्वासियों को उन्नत करने और परमेश्वर की गवाही देने योग्य बनाने, या परमेश्वर के सामने लाने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ़ लोगों से अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के लिए होता है। वे धर्म के दायरे के अंदर लोगों को काबू में करके उनके दिये पैसे से गुज़र-बसर करना चाहते हैं। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा और उसका विरोध करने, अपने रुतबे और आमदनी को बनाये रखने के लिए परमेश्वर की भेड़ों को चुराने में खुद को झोंक दिया। क्या वे मसीह-विरोधी नहीं हुए? क्या वे लोगों को नुकसान पहुँचाने वाला, उनकी आत्मा को निगलने वाला दुष्ट दानव नहीं बन गये हैं, वे सचमुच परमेश्वर से शापित होने लायक हैं!

उस अनुभव से मैं याजक वर्ग के सत्य से घृणा करने और परमेश्वर के शत्रु होने के सार को समझ गयी, मैंने उन्हें पूरी तरह से ठुकरा दिया। मैंने यह भी अनुभव किया कि राज्य की राह पर सत्य को खोजे बिना आँख मूँद कर किसी एक इंसान की खुशामद और उसका अनुसरण करने से, झूठ और भ्रांतियों से जकड़ कर धोखा खा जाना, और परमेश्वर का उद्धार गँवा कर राज्य से कट जाना आसान हो जाता है। मेरा आज धार्मिक दुनिया के मसीह-विरोधी दुष्ट सेवकों से आज़ाद होकर परमेश्वर के सामने आना, पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों से मुझे मिली समझ का ही परिणाम है। मेरे लिए यही परमेश्वर का उद्धार है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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