किस तरह मैं लगभग एक मूर्ख क्वाँरी बन गयी थी
ली फेंग, चीन 2002 की शरद ऋतु में कलीसिया की मेरी शाखा, द चर्च ऑफ़ ट्रुथ, की बहन झाओ, प्रभु के आगमन का महान समाचार देने, अपनी भतीजी, सिस्टर...
हम परमेश्वर के प्रकटन के लिए बेसब्र सभी साधकों का स्वागत करते हैं!
जनवरी 2019 में एक दोस्त ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मुझ पर बहुत गहरा असर डाला। मेरे लिए यह नए सत्य का आगमन था—मेरी खुशियाँ आसमान छूने लगीं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बाइबल के रहस्य, देहधारण के रहस्य, इंसान की भ्रष्टता की जड़ें और पाप से छुटकारे का रास्ता, शुद्ध होना और बचाया जाना समझाया है। कोई इंसान ऐसे वचन नहीं बोल सकता। मुझे लगा कि यह परमेश्वर की वाणी है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। इसलिए मैंने खुशी-खुशी इसे स्वीकारा और अपने परिवार को यह अद्भुत खबर सुनाई। मेरी माँ, चाची और कुछ भाई-बहनों ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार लिया। हम परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए रोज सभा करते और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के व्यक्त सत्यों का आनंद लेते थे। हमें लगा कि धर्म में इतने साल रहने से कहीं ज्यादा लाभ हमें अब हो रहा है।
जल्दी ही हमारे गाँव में स्थानीय पादरी और उपयाजकों को मेरी आस्था के बारे में पता चल गया। एक शाम अचानक एक उपयाजक ने मेरे घर आकर मुझसे पूछा, “तुम और तुम्हारी माँ सेवा कार्यों में क्यों नहीं आ रहे हैं?” मैंने कहा, “मैं अब कलीसिया नहीं जा रहा हूँ क्योंकि प्रभु यीशु लौट आया है—वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के काफी सारे वचन पढ़ चुका हूँ और हैरान हूँ—ऐसी अनूठी चीज पहले कभी पढ़ने को नहीं मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बाइबल के कई रहस्य खोल दिए हैं। मैंने देख लिया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वह लौटकर आया प्रभु यीशु है जिसका हमें बरसों से इंतजार है।” मेरी बात सुनकर उसने संदेह जताते हुए पूछा, “लौटकर आया प्रभु यीशु? यह कैसे हो सकता है?” मैंने उसे बताया, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने राज्य का युग शुरू किया है, वह नया कार्य कर रहा है। अनुग्रह का युग बीत चुका है और पवित्र आत्मा अब धार्मिक कलीसियाओं में कार्य नहीं कर रहा है। ठीक वैसे ही, जैसे प्रभु यीशु के कार्य करने के समय हुआ था। लोगों ने मंदिर छोड़कर उसका अनुसरण किया। अब हमें परमेश्वर के नए कार्य के साथ चलने की जरूरत है ताकि अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकें।” सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर मेरा पक्का विश्वास देखकर उसने कहा कि अब मुझे निकाल दिया जाएगा और फिर चला गया। इसके बाद पादरी और उपयाजकों ने परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य हाल ही में स्वीकारने वाले एक परिवार के पास जाकर उसका उत्पीड़न किया। पादरी ने उनसे कहा, “तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में शामिल हो गए हो और हमारे सेवा कार्यों में नहीं आ रहे हो। तुम्हें उल्लू बनाया गया है—प्रभु लौटकर नहीं आया है। मैं पादरी हूँ, बाइबल की हर चीज जानती हूँ। यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई लौटकर आया प्रभु यीशु होता, तो बेशक मैं भी इस बारे में जानती।” वह यह भी बोली, “अगर तुम कलीसिया छोड़ने पर आमादा रहे, तो सबके सामने कहना पड़ेगा कि तुम यीशु को नहीं मानते। और कलीसिया तुम्हारी कोई मदद भी नहीं करेगी। रविवार को तुम्हें कलीसिया आकर अपने नाम कटवाने पड़ेंगे और भरी सभा में यह ऐलान करना होगा। वरना तुम्हें गाँव से भगा दिया जाएगा।” मैं गुस्से में था। हर किसी को आस्था की आजादी का अधिकार है, लेकिन वे ऐसी नीचता पर उतारू होकर लोगों को सच्चा रास्ता परखने से रोक रहे थे। अगर वे भले सेवक होते तो उनका खोजी दिल होता, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में जानने की कोशिश करते। लेकिन प्रभु की वापसी का सामना होने पर उन्होंने बिना सोचे-समझे इसे रोका और इसकी निंदा की। ये सच्चे साधक कैसे हो सकते हैं? अगले दिन मैं उस परिवार से मिलने गया जिसे पादरी ने परेशान कर रखा था। भाई ने कहा, उन्हें विश्वास है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच्चा परमेश्वर है, वे उस पर विश्वास करते रहेंगे, भले ही उन्हें गाँव से भगा दिया जाए। उसके बाद पादरी ने लोगों को सच्चा रास्ता परखने से रोकने के लिए निराधार अफवाहें और भ्रांतियाँ फैलाईं। इसने साबित किया कि परमेश्वर पर विश्वास रखना और उसका अनुसरण करना आसान नहीं है। मैंने सोचा कि जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आया तो उसे कैसे यहूदी धर्म ने सताया था। तब उसका अनुसरण ज्यादा लोगों ने नहीं किया। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य करने आया है, उसे भी धार्मिक जगत सता रहा है। ज्यादातर लोग पादरी वर्ग पर विश्वास करते हैं, उन्हीं की सुनते हैं, इसलिए वे प्रभु की वापसी नहीं स्वीकारेंगे। इससे यह तथ्य भी स्पष्ट हो गया : सच्चे रास्ते को प्राचीन काल से ही दबाया जाता रहा है। सच्चे रास्ते को स्वीकारने और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले कम ही लोग होते हैं, जबकि ज्यादातर लोग मनुष्यों को पूजते और पादरियों का अनुसरण करते हैं। भले ही पादरी ने हमें रोका और सताया, लेकिन हम तो सच्चा रास्ता स्वीकार कर शाश्वत जीवन का मार्ग खोज चुके थे। हम धन्य हैं। इस बात को समझकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अनुसरण के लिए मेरी आस्था और पक्की हो गई।
बाद में उसने कलीसिया संघ से शिकायत कर दी कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ। एक शाम वह कई लोगों को लेकर मेरे घर आ धमकी। उसने मुझसे कहा कि मैं एक उपयाजक के घर चलकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर अपने विश्वास के बारे में सभी पादरियों और सहकर्मियों को समझाऊँ। वे इतने बुरे थे, अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा कर रहे थे। उनका सामना करने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। लेकिन जानता था कि अगर मैं उनसे मिलने नहीं गया तो वे निराधार अफवाहें फैलाते रहेंगे। परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया था, उसकी वाणी सुनकर मैं कुछ सत्य समझ चुका था। अब जब उसे अपने कार्यों की गवाही की जरूरत थी, मैं पीठ नहीं दिखा सकता था। इसलिए मैंने प्रार्थना की : “हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे राह दिखाओ और मेरी जरूरत के हिसाब से वचन दो ताकि तुम्हारे कार्यों की गवाही देने का विश्वास मुझमें रहे।” उपयाजक के घर जाकर मैं एक कुर्सी पर बैठ गया और दर्जन भर से ज्यादा लोग मुझे घेरकर बैठ गए, इनमें कलीसिया संघ के पाँच पादरियों के साथ ही गाँव का पादरी वर्ग और संगत के कई सदस्य भी थे। इतने सारे लोगों को देखकर मुझे फिर से डर लगा, नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है। मैं दिल ही दिल में लगातार शांत रहने की दुआ कर रहा था। धीरे-धीरे मेरा डर जाता रहा क्योंकि जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरे साथ है। कलीसिया संघ की एक उम्रदराज पादरी ने मुझसे सख्त लहजे में पूछा, “तुम, तुम्हारी माँ और दादी सेवा कार्यों में क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या तुम्हें पता है कि कलीसिया क्या होती है? क्या तुम्हें पता है कि इसे छोड़ना प्रभु यीशु को धोखा देना है और वह तुम्हें त्याग देगा?” मैंने उससे कहा, “प्रभु यीशु ने कहा है, ‘क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठा होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ’ (मत्ती 18:20)। सच्ची कलीसिया क्या होती है? कलीसिया होने के लिए यह मायने नहीं रखता कि यह कहाँ है या इसमें कितने सदस्य हैं। चाहे जितने लोग इकट्ठे हों, जब तक इसके पास पवित्र आत्मा का कार्य है, इसमें परमेश्वर की मौजूदगी और सत्य का पोषण है, तब तक यह कलीसिया है। अगर हम आज की कलीसिया को देखें, तो क्या इसके पास पवित्र आत्मा का कार्य है? क्या परमेश्वर के वचन पढ़कर प्रबोधन मिलता है? क्या धार्मिक सेवाएँ आनंददायक हैं, क्या वे पोषण प्रदान करती हैं? पादरी उन्हीं पुरानी चीजों पर उपदेश देते हैं, इससे लोगों को प्रभु को जानने के अपने अनुसरण में बिल्कुल भी मदद नहीं मिलती। विश्वासियों को कोई जीवन पोषण नहीं मिलता। वे कमजोर और नकारात्मक हैं, दौलत के पीछे भागते हैं और दूसरी सांसारिक चीजों में लिप्त रहते हैं। आज की कलीसिया प्रभु यीशु के जमाने के मंदिर जैसी है—यह पवित्र आत्मा का कार्य गँवा चुकी है और सच्ची कलीसिया नहीं कही जा सकती है। अब हम सेवा कार्यों में जाना बंद कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास क्यों करना चाहते हैं? क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जो कुछ भी कहा, वह सत्य है। उसने बाइबल के कई गुप्त रहस्यों से पर्दा हटाया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने वाकई मेरी आँखें खोल दी हैं, मेरे दिल को रोशनी और आत्मा को पोषण दिया है। यह पवित्र आत्मा के कार्य का प्रभाव है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चे परमेश्वर का प्रकटन है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ही सच्ची कलीसिया है। प्रभु के आगमन का इंतजार कर रहे विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के कई सच्चे विश्वासी आज अलग-अलग साधनों के जरिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ऑनलाइन पढ़ रहे हैं। उन्हें पक्का यकीन है कि यह परमेश्वर की वाणी है। आप इसे क्यों नहीं खोजते और इस पर गौर क्यों नहीं करते? आप पादरी हैं, कलीसिया में प्रचारक हैं। आपको सक्रिय ढंग से विश्वासियों की अगुआई कर प्रभु का स्वागत करना चाहिए। इसी का मतलब उनके जीवन की जिम्मेदारी उठाना होगा!” मेरी बात सुनकर वे खामोश हो गए।
पादरी ने मुझसे पूछा : “तुमने कहा कि प्रभु यीशु लौट आया है। तुम्हें कैसे पता चला?” फिर उसने बाइबल खोलकर एक पद दिखाते हुए मुझसे कहा : “बाइबल कहती है, ‘उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता’ (मत्ती 24:36)। इसका अर्थ है कि प्रभु कब आएगा, यह किसी को पता नहीं चलेगा। तो तुमने कैसे जान लिया?” मैंने कहा, “अगर किसी को पता ही नहीं चला कि वह आ चुका है, तो हम उसका स्वागत कैसे करेंगे? बाइबल के कथन ‘उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता’ का अर्थ है कि उसके आगमन काल के बारे में कोई नहीं जानता, लेकिन आने के बाद वह वचन बोलेगा; वह अपना कार्य करने के लिए प्रकट होगा। जब हम प्रभु की वाणी सुनेंगे और उसके द्वारा व्यक्त सत्य देखेंगे, तो क्या हम जान नहीं जाएँगे कि वह आ चुका है? जैसे कि प्रभु यीशु ने कहा, ‘आधी रात को धूम मची : “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो”’ (मत्ती 25:6)। ‘देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ’ (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इसलिए प्रभु के स्वागत के लिए उसकी वाणी सुनना सबसे अहम है। अगर हम किसी को यह कहते सुनें कि दूल्हा आ चुका है, यानी यह गवाही सुनें कि प्रभु लौट आया है, तो हमें उससे मिलने जाना चाहिए और शराफत से उसकी वाणी सुननी चाहिए। जो इंसान प्रभु का स्वागत कर उसके साथ दावत कर सकता है, केवल वही बुद्धिमान कुँवारी है। आपके हिसाब से तो प्रभु के आगमन के बाद भी कोई जान नहीं सकेगा कि वह आ चुका है। तो फिर बाइबल के ये सारे पद कैसे समझाए जा सकते हैं, ये कैसे पूरे होंगे?” मैंने उनके सामने एक उदाहरण भी रखा। मैंने कहा, “उस समय के बारे में सोचिए जब प्रभु यीशु कार्य करने आया। शुरू में, उसे परमेश्वर के रूप में किसी ने नहीं पहचाना। जब वह कार्य करने और वचन बोलने लगा तो पवित्र आत्मा ने गवाही दी : ‘यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ’ (मत्ती 3:17)। उसके बाद वह संकेत और चमत्कार दिखाने लगा, उसने रोगियों को ठीक किया, राक्षसों को बाहर निकाला, पश्चात्ताप के मार्ग का प्रचार किया और लोगों के पाप माफ किए। वह अनुग्रह के युग का छुटकारे का कार्य करने लगा। तब कहीं जाकर लोगों ने प्रभु यीशु को मानवजाति के उद्धारक के रूप में, स्वयं परमेश्वर के रूप में पहचाना। क्या प्रभु पर हमारा विश्वास केवल उसके कार्य और वचनों पर आधारित नहीं है? बड़ी-बड़ी आपदाएँ आने लगी हैं—प्रभु के आगमन की सभी भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं। वह लौट आया है और काम कर रहा है। वह मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सत्य बताता जा रहा है और न्याय के कार्य की शुरुआत परमेश्वर के घर से कर चुका है। उसने विजेताओं का समूह बना लिया है। ये ऐसे तथ्य हैं जिन्हें कोई झुठला नहीं सकता। हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के कार्य का मूल्यांकन कर चुपचाप कयामत का इंतजार करते नहीं रह सकते। इस तरह तो हम प्रभु के स्वागत का मौका ही गँवा बैठेंगे।” उसके बाद कलीसिया संघ की एक युवा पादरी ने गुस्से में मुझसे पूछा : “यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है कहाँ? क्या तुमने उसे देखा है? अगर नहीं तो फिर कैसे कह सकते हो कि वह लौटकर आया प्रभु यीशु है?” इसके जवाब में मैंने उससे एक सवाल किया : “आप प्रभु यीशु पर विश्वास करती हैं—क्या आपने उसे देखा है? हममें से किसी ने प्रभु को नहीं देखा, तो फिर हम उस पर विश्वास क्यों करते हैं?” किसी ने जवाब नहीं दिया। तब मैंने कहा, “जब प्रभु यीशु देह रूप में कार्य कर रहा था, तो क्या बहुत से लोगों ने उसे देखा नहीं था? मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने प्रभु का चेहरा देखा था, पर क्या उन्होंने उसे प्रभु के रूप में पहचाना? क्या उन्होंने उसका अनुसरण किया? उसका अनुसरण करना तो दूर रहा, उन्होंने निंदा करके उसे नकार दिया, अंत में प्रभु यीशु को सूली चढ़ा दिया गया। इससे हमें क्या पता चलता है? भले ही आप प्रभु का चेहरा देख लो, अगर आप उसे जानते नहीं हैं, उसकी वाणी नहीं पहचानते, तो उसका विरोध करते रहेंगे और खुद उसकी निंदा का पात्र बन जाएँगे। अगर आप उस युग में पैदा हुए होते, प्रभु यीशु को देखा होता, उसके उपदेश सुने होते, तो क्या उसे मसीह के रूप में पहचान लेते? कहना मुश्किल है।” जब मेरी बात पूरी हो गई तो पादरी ने जवाब दिया, “तुम कहते हो कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। किस आधार पर?” मैंने जवाब दिया, “प्रभु यीशु ने कहा, ‘मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं’ (यूहन्ना 10:27)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्या परमेश्वर का ही प्रकटन है, यह तय करने के लिए हमें देखना होगा कि क्या वह सत्य बोलता है। मैं आपको सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाता हूँ और आप खुद देख लें कि क्या यह परमेश्वर की वाणी है। तब आप जान लेंगे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है या नहीं।” फिर मैंने उन्हें अपने फोन पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “पूरे ब्रह्मांड में मैं अपना कार्य कर रहा हूँ और पूरब में असंख्य गर्जनाएँ निरंतर जारी हैं और सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरे कथन ही हैं जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में ले आए हैं। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लेता हूँ, उन्हें इस धारा में बहाता हूँ और उनसे अपने आगे घुटने टेकवाता हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा वापस लेकर उसे नए सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा देखने के लिए लालायित नहीं होता? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं करता? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता के लिए नहीं तरसता? कौन प्रकाश में नहीं आएगा? कौन कनान की समृद्धि नहीं देखेगा? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन उसकी आराधना नहीं करता, जो सामर्थ्य में महान है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं अपने चुने हुए लोगों के सामने आकर उनसे और अधिक वचन बोलूँगा, जैसे शक्तिशाली गर्जन जो पर्वतों और नदियों को हिला देता है। पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खजाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य छोड़ना नहीं चाहता और साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। एक नवजात शिशु की तरह, सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक रूप से मनुष्यों की जाति में प्रवेश करूँगा, ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। स्वयं द्वारा विकीर्ण महिमा और अपने मुँह से निकले वचनों से मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएँगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में ‘जैतून के पर्वत’ पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, अब यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ, जिसकी आराधना अब से असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे अब से असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामय मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरा संपूर्ण इरादा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है और साथ ही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी : हर राष्ट्र मेरी आराधना करे, हर जिह्वा मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और हर मनुष्य मेरी अधीनता स्वीकार करे!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ गरजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। “अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग विनियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों से नियंत्रित होते हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की जाती, वे हमेशा मुर्दे, शैतान के खिलौने और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत् खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को खारिज करने की कोशिश नहीं करते, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के कदम उमड़ती लहरों और घुमड़ते गर्जनों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निष्क्रियता से बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी मूर्खता से चिपके हो और कुछ नहीं करते। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)।
वे दंग रह गये और कानाफूसी करते रहे। फिर उसी उम्रदराज पादरी ने मेरी ओर इशारा कर कहा, “मुझे नहीं लगता कि अभी-अभी तुमने जो कुछ पढ़ा वे परमेश्वर के वचन हो सकते हैं। परमेश्वर के वचन रहमदिल होते हैं, ये तो बहुत कड़े हैं। ये परमेश्वर के वचन नहीं हैं।” मैंने कहा, “आपको लगता है कि परमेश्वर रहमदिल है और वह लोगों को उजागर करने और शाप देने के लिए कड़े वचन नहीं बोलेगा। क्या आपको पक्का पता है कि यह राय तथ्यों से मेल खाती है? प्रभु यीशु ने लोगों को फटकारने वाली कई बातें कहीं। क्या आप वाकई भूल गए? उसने यह कहकर फरीसियों को लानतें दीं और उनकी निंदा की, ‘हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो’ (मत्ती 23:13)। ‘हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो’ (मत्ती 23:15)। ऐसी बहुत सी बातें हैं। इससे साबित होता है कि परमेश्वर के स्वभाव में करुणा और प्रेम ही नहीं, प्रताप और कोप भी है। हम परमेश्वर के कार्यों और वचनों को अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के हिसाब से नहीं माप सकते। इससे तो हम परमेश्वर का आकलन और उसे सीमित करने की गलती कर बैठेंगे।” मैं कहता गया : “बाइबल अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य की भी भविष्यवाणी करती है : ‘क्योंकि वह समय आ चुका है कि परमेश्वर के घर से न्याय शुरू किया जाए’ (1 पतरस 4:17)। अंत के दिनों में परमेश्वर सत्य व्यक्त कर मानवजाति का न्याय करता है, सबको उनकी किस्म के अनुसार छाँटता है, भेड़ों को बकरियों से, गेहूँ को जंगली घास से और अच्छे सेवकों को बुरे सेवकों से अलग करता है। यदि परमेश्वर अंत के दिनों में कार्य करने आए और धार्मिक न्याय और शाप की भावना के बिना दया और प्रेम से ही सराबोर रहे, तो इस युग का अंत कब होगा?” फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश उन्हें सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “मान लो कि लोगों के परिणामों के प्रकट होने के अंत के दिनों में अगर परमेश्वर अभी भी लोगों पर असीम दया और करुणा बरसाता रहता और उनसे प्रेम करता रहता, उन्हें धार्मिक न्याय के अधीन करने के बजाय उनके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और क्षमा दर्शाता रहता और उन्हें माफ करता रहता, चाहे उनके पाप कितने भी गंभीर क्यों न हों, उन्हें रत्ती भर भी धार्मिक न्याय के अधीन न करता, तो फिर परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का समापन कब होता? कब इस तरह का कोई स्वभाव सही मंजिल की ओर मानवजाति की अगुआई करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, किसी ऐसे न्यायाधीश को लो जो लोगों के प्रति हमेशा प्रेममय है, एक उदार चेहरे और सौम्य हृदय वाला न्यायाधीश। लोगों ने चाहे जो भी अपराध किए हों वह उनसे प्यार करता है, और वे चाहे जो भी हों वह उनके प्रति प्रेममय और सहिष्णु रहता है। ऐसी स्थिति में वह कब न्यायोचित निर्णय पर पहुँचने में सक्षम होगा? अंत के दिनों के दौरान केवल धार्मिक न्याय ही लोगों को उनकी किस्म के अनुसार पृथक कर सकता है और उन्हें एक नए क्षेत्र में ला सकता है। इस तरह से परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धार्मिक स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। यह सुनकर उन्होंने कोई जवाबी हमला नहीं किया। मगर कुछ पल बाद, बूढ़ी पादरी ने मुझे डाँटने के लहजे में कहा : “क्या तुम जानते हो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया कहाँ से है? यह चीन से है और चीनी सरकार ने इस पर पाबंदी लगा रखी है। उस देश की सरकार इसे सच्चा रास्ता नहीं मानती, तो फिर तुम क्यों इस पर विश्वास करते हो?” मैंने सवाल किया : “चीनी सरकार कौन है? क्या वह परमेश्वर की अनुयायी है, या फिर नास्तिक, शैतानी सत्ता है? पादरी के तौर पर आप कैसे शैतानी सत्ता के शब्दों पर विश्वास कर सकती हैं? यह मूर्खता है। आपकी दलील मानें तो सरकार जिस किसी चीज को इजाजत न दे, वह सच्चा रास्ता नहीं हो सकता। क्या यह हकीकत से मेल खाता है? जब प्रभु यीशु ने आकर काम किया, तो क्या उसने सरकार से निंदा और उत्पीड़न नहीं सहा? उसे सूली पर क्यों चढ़ाया गया? क्या यह रोमन सरकार के साथ फरीसियों की मिलीभगत नहीं थी, जिसने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़वा दिया? आपकी दलील मान लें तो, जिसे भी सरकार उत्पीड़ित और प्रतिबंधित करे वह सच्चा रास्ता नहीं हो सकता। तो फिर आपको प्रभु यीशु के कार्य की निंदा कर इसे नकार नहीं देना चाहिए? क्या यह बेतुकी और हास्यास्पद बात नहीं है? बाइबल कहती है, ‘सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है’ (1 यूहन्ना 5:19)। सारा संसार शैतान के हाथों में है। अधिकारी भी भ्रष्ट इंसान हैं—क्या वे परमेश्वर को जानते हैं? आज तक हमने ऐसा कोई राष्ट्रीय अगुआ नहीं देखा जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्यों की सक्रिय तौर पर जाँच-पड़ताल करे या उसकी आराधना में लोगों की अगुआई करे। इससे क्या साबित होता है? देश चाहे धार्मिक हो या नास्तिक, कोई भी शासक ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जाने। फिर वे सच्चे और झूठे रास्तों में फर्क कैसे कर सकते हैं? उनके पास ऐसी कोई समझ नहीं है। उनके आकलन का तरीका पूरी तरह शैतानी दलील पर आधारित है और इसमें कोई सत्य नहीं होता।” मेरी बात सुनकर वे अवाक रह गए।
काफी देर बाद बूढ़ी पादरी ने मेरी ओर देखकर नाराज होते हुए कहा, “अगर तुम कलीसिया छोड़ देते हो और तुम्हारे परिवार के सदस्यों को कुछ होता है तो पादरी उनके लिए प्रार्थना नहीं करेंगे। वे ठीक नहीं होंगे और जब वे मरेंगे तो उनकी आत्मा स्वर्ग में नहीं पहुँचेगी। तब तुम क्या करोगे?” मैं जानता था कि मुझे वश में करने के लिए वह गाँव के इन पुराने रीति-रिवाजों को आजमा रही है। हम सचमुच पादरियों की चापलूसी करते थे और अपने लिए प्रार्थना करने के लिए उन पर निर्भर रहते थे। पादरियों का विश्वासी बहुत सम्मान करते थे और हर चीज के लिए उन पर भरोसा करते थे। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद मैंने जाना कि पादरी वर्ग न तो परमेश्वर का प्रतिनिधि है, न वे यह तय करते हैं कि मृत्यु के बाद इंसान स्वर्ग में जाएगा या नहीं। लिहाजा मैंने उनसे कहा, “अगर मेरे परिवार में आगे कुछ हुआ तो हमें आपसे प्रार्थना कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” तब उस युवा पादरी ने पूछा, “अगर किसी ने दफनाने में मदद नहीं की तो तुम क्या करोगे?” मैंने निर्णायक जवाब दिया, “मेरे परिवार में किसी की मृत्यु हुई तो हम खुद दफना लेंगे। दफनाने के लिए किसी रस्म की जरूरत नहीं है। बाइबल कहती है, ‘एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” यीशु ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे हो ले, और मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे”’ (मत्ती 8:21-22)। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु और प्रभु की आज्ञा में से ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है? प्रभु का साफ निर्देश है कि हम उसकी राह पर चलें और महान मानकर उसका सम्मान करें। यही सबसे महत्वपूर्ण है। आप लोग सत्य खोजने और प्रभु की वापसी का स्वागत करने के बजाय बेमतलब के कर्मकांडों से क्यों चिपके पड़े हैं? इंसान के परिणाम और मंजिल परमेश्वर के हाथ में हैं। इन्हें कोई इंसान तय नहीं कर सकता। और किसी पादरी की प्रार्थना से लोग स्वर्ग में नहीं जा सकते—यह बेतुकी बात है।” मैंने सुनाता रहा, “अब प्रभु लौट आया है, कई सत्य व्यक्त कर चुका है। उसने हमें पाप से छुटकारे का रास्ता दिखाया है ताकि हम शुद्ध होकर बचाए जा सकें। यदि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते या उसके वचनों का न्याय और शुद्धिकरण स्वीकार नहीं करते, बल्कि बेमतलब के धार्मिक कर्मकांडों में फँसे रहते हैं, तो क्या यह वाकई शुद्ध होने के लिए काफी है?” यह सुनकर उनके पास मेरी बात काटने के लिए शब्द नहीं बचे। फिर एक और पादरी ने मुस्कराते हुए मुझसे कहा, “जेमंग, तुम काबिल और समझदार इंसान हो। कलीसिया तुम्हारा मान करती है। अगर तुम कलीसिया में काम करते रहो और ज्यादा लोगों को इसमें लाओ, तो कलीसिया और मजबूत हो जाएगी। हम सब मिलकर परमेश्वर का कार्य कर सकते हैं—यह कितनी अद्भुत बात होगी!” मैं कह सकता हूँ कि वे सचमुच पाखंडी थे। उन्हें बस इससे मतलब था कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके नीचे रहें, तभी उन्हें ज्यादा चढ़ावा चढ़ेगा। उनमें परमेश्वर के प्रकटन की तड़प नहीं थी। मैंने उनसे कहा, “प्रभु का स्वागत करना किसी भी चीज से ज्यादा अहम है। आप चाहे जो कहें, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना बंद नहीं करूँगा! आप लोग कलीसिया के पादरी हैं। आप प्रभु के आगमन का विरोध और निंदा करने के बजाय, उसके स्वागत में विश्वासियों की अगुआई क्यों नहीं करते? क्या आपको परमेश्वर के विरुद्ध जाने और उससे दंड पाने से डर नहीं लगता?” युवा पादरी ने मेरी बात काटकर गुस्से में कहा, “हम जो कुछ भी कर रहे हैं, अपना झुंड बचाने के लिए कर रहे हैं। तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने पर तुले हुए हो, इसलिए कलीसिया तुम्हें निकाल देगी और हम तुम्हें अपनी भेड़ें चुराने कलीसिया में नहीं आने देंगे!” उसकी बात सुनकर मेरा पारा और चढ़ गया। प्रभु लौट आया है और अपनी भेड़ें खोजना चाहता है। कलीसिया के इन अगुआओं को पहल करनी चाहिए वे विश्वासियों को साथ लेकर सच्चे रास्ते को परखें और परमेश्वर की भेड़ों को उसकी शरण में ले जाएँ। वफादार सेवक यही करेगा। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। अपने रुतबे और रोजी-रोटी को बचाने के लिए वे झुंड को बचाने की आड़ में विश्वासियों को गुमराह कर धोखा देते हैं, लोगों को अपने साथ रखने के लिए परमेश्वर के कार्य का विरोध और उसकी निंदा करते हैं। वे इतने पाखंडी हैं—बिल्कुल दुष्ट सेवक हैं! इससे मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एक उद्धरण याद आ गया। “आज कई लोगों ने उसी तरह की ग़लती की है। वे अपनी समस्त शक्ति के साथ परमेश्वर के आसन्न प्रकटन की घोषणा करते हैं, मगर साथ ही उसके प्रकटन की निंदा भी करते हैं; उनका ‘असंभव’ परमेश्वर के प्रकटन को एक बार फिर उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर कैद कर देता है। और इसलिए मैंने कई लोगों को परमेश्वर के वचनों के आने के बाद जँगली और कर्कश हँसी का ठहाका लगाते देखा है। लेकिन क्या यह हँसी यहूदियों के तिरस्कार और ईशनिंदा से किसी भी तरह से भिन्न है? तुम लोग सत्य की उपस्थिति में श्रद्धावान नहीं हो, और सत्य के लिए तरसने की प्रवृत्ति तो तुम लोगों में बिल्कुल भी नहीं है। तुम बस इतना ही करते हो कि अंधाधुंध अध्ययन करते हो और पुलक भरी उदासीनता के साथ प्रतीक्षा करते हो। इस तरह से अध्ययन और प्रतीक्षा करने से तुम क्या हासिल कर सकते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हें परमेश्वर से व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिलेगा? यदि तुम परमेश्वर के कथनों को नहीं समझ सकते, तो तुम किस तरह से परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन जो उजागर करते हैं वह पूरी तरह स्पष्ट हैं। सत्य या परमेश्वर के कार्यों को ये पादरी रत्ती भर सम्मान से नहीं देखते। ये मसीह-विरोधी, दुष्ट सेवक हैं जिनका खुलासा अंत के दिनों में परमेश्वर कर चुका है। इन्हें परमेश्वर का प्रकटन देखने का कोई अधिकार नहीं है। आखिरकार, जब उन्होंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर मेरा विश्वास अडिग है, मुझे जाने देने के सिवाय उनके पास कोई चारा बचा।
उन्होंने विश्वासियों में धारणाएँ और भ्रांतियाँ फैलाईं। उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के विश्वासियों से मिलने-जुलने नहीं दिया, उसका विरोध करने के लिए गुमराह किया। उन्होंने हर एक व्यक्ति को चेतावनी दी कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण किया तो कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाएगा। उनके गुमराह करने और पाबंदी लगाने के कारण काफी सारे लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को परखने का साहस नहीं किया। पादरी वर्ग को परमेश्वर के कार्य के विरोध पर अड़े देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं उनसे तर्क-वितर्क करना चाहता था। लेकिन जानता था कि मेरे प्रयास बेकार जाएँगे। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और आगे क्या करूँ, यह जानने के लिए उससे प्रबोधन माँगा। बाद में एक बहन ने मेरे साथ संगति की, “उस ज़माने में फरीसियों ने दबाव डाला था कि सलीब से उतरकर प्रभु यीशु साबित करे कि वह मसीहा है, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। भले ही उसने उन्हें दिखाने के लिए यह साबित नहीं किया, तो क्या उसका सुसमाचार पूरे संसार में नहीं फैला? हर चीज की कमान और व्यवस्था परमेश्वर के हाथ में है। वह इन मसीह-विरोधियों के कर्मों से हमें अच्छे-बुरे का भेद करना सिखाता है। इनके जरिए ही हम देखते हैं कि शैतान कैसे लोगों को गुमराह कर परमेश्वर का प्रतिरोध करता है। हम शैतान की बुराई और बेशर्मी देखकर इससे नफरत कर धार्मिक पादरी वर्ग को खारिज कर सकते हैं। यही परमेश्वर की बुद्धि है।” उसकी संगति ने मेरे दिल को रोशनी दी और अब मैं पादरी वर्ग से और बेबस नहीं था। पादरियों ने अपनी कलीसिया को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया था, इसलिए हम सुसमाचार का प्रचार करने पहले दूसरे स्थानों पर गए। जल्दी ही, बहुत सारे लोगों ने अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य जाँच कर स्वीकार लिया।
उसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कई और अंश पढ़े। इनसे पादरियों के परमेश्वर विरोधी सार की और स्पष्ट समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “क्या तुम लोग इसकी जड़ जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन सत्य का अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है। तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का आज्ञापालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। “ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे ‘मज़बूत देह’ वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। मैं सचमुच पादरियों का मान-सम्मान करता था। उन्होंने प्रभु के लिए बरसों काम किया, वे बाइबल को बखूबी जानते थे। बाहर से लगता था कि उनमें दूसरों के लिए बहुत स्नेह है। वे विश्वासियों को उपदेश देते थे कि वे होशियार रहें और प्रभु के आगमन का धैर्यपूर्वक इंतजार करें, इसलिए मुझे लगता था कि वे सच्चे विश्वासी हैं, प्रभु के आगमन का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के उजागर होने और तथ्यों के प्रकाशन ने मेरी इस सोच को पूरी तरह मिटा दिया। वे दिखते तो भक्त थे, लेकिन जब उन्होंने सुना कि कोई प्रभु के आगमन का समाचार फैला रहा है तो उनकी परमेश्वर का प्रतिरोध और परमेश्वर से घृणा करने वाली प्रकृति सामने आ गई। जब मैंने उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही दी, वे बेहद अहंकारी निकले और बाइबल के शब्दों से हठपूर्वक चिपके रहे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन चाहे जितने भी अधिकार और सामर्थ्य से भरे हों, वे उन्हें स्वीकारेंगे नहीं, बल्कि इनका विरोध और निंदा करते रहेंगे। उन्होंने तो धमकियों और भय का सहारा लेकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्यों पर गौर करने से विश्वासियों को रोकना चाहा। अपने रुतबे और रोजी-रोटी की खातिर उन्होंने जान-बूझकर साजिशें रचकर सच्चा रास्ता परखने से विश्वासियों को रोका। उन्हें डर था कि अगर हर कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने लगेगा तो उनका चढ़ावा बंद हो जाएगा और वे अपने पद गँवा बैठेंगे। उन्होंने जो कुछ किया, वह ठीक वैसा ही था जैसा फरीसियों ने 2000 साल पहले प्रभु यीशु के खिलाफ किया था, और जिसकी परमेश्वर ने निंदा की और शाप भी दिया। जैसे प्रभु यीशु ने फरीसियों की यह कहते हुए निंदा की थी : “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो” (मत्ती 23:13)। “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:15)।
उनके साथ आमने-सामने के वाद-विवाद में मुझे पूरी तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर से शक्ति मिली और यह सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर सीखे कुछ सत्यों का ही नतीजा है। यह मेरे जीवन का वाकई विशेष अनुभव था। अगर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास कर उसके वचन नहीं पढ़े होते, तो मैं भी दूसरे विश्वासियों की तरह होता, विश्वास तो परमेश्वर पर रखता लेकिन अनुसरण इंसानों का करता। उन पाखंडी फरीसियों, मसीह-विरोधियों में भेद करने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं होता। मैं गलत रास्ते पर चल रहा होता क्योंकि मैं पादरी वर्ग की पूजा करता और परमेश्वर के हाथों त्याग करके हटा दिया गया होता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद!
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