रुतबे की लालसा पर चिंतन

21 अप्रैल, 2023

यह 2019 की बात है, जब मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। उस वक्त मैं मुख्य रूप से वीडियो बनाने का काम देखता था। कुछ टीम अगुआओं से सीखकर मैं धीरे-धीरे वीडियो बनाने के कुछ सिद्धांतों में माहिर हो गया और अपना नजरिया भी विकसित कर लिया। चर्चा के दौरान मेरी कुछ बातों को सबकी स्वीकृति मिल जाती। जैसे-जैसे हमारे वीडियो बेहतर होते गए, दूसरी कलीसियाओं के भाई-बहन भी हमसे सीखने आने लगे। इस उपलब्धि का भान होने पर मैंने सोचा : “मैं कलीसिया का काम तो संभाल ही सकता हूँ, वीडियो बनाने की समस्याएँ भी पता लगा सकता हूँ। कलीसिया में लोग किसी चीज पर अटकते हैं तो अक्सर मुझसे सलाह माँगने आते हैं। कुल मिलाकर, सोचता हूँ कि मैं काबिल अगुआ हूँ।”

बाद में, काम न सँभाल पाने पर मेरे सहयोगी भाई को बदल दिया गया और बहन लीसा मेरी नई सहयोगी बन गई। उसके आते ही मैं जोड़-तोड़ करने लगा : लीसा मुझसे कहीं ज्यादा सूझ-बूझ भरी संगति करती है, लेकिन वीडियो बनाने के काम का प्रभारी मैं पहले से हूँ और मुझे तजुर्बा भी ज्यादा है। वह मेरे हुनर की बराबरी नहीं कर सकती, वह अपनी कथनी और करनी में भी कुछ ढीली है। कुल मिलाकर, बढ़त अब भी मेरे पास थी और अपने काम में मुख्य रूप से मुझे ही मार्गदर्शन करना था। लेकिन लीसा जैसे-जैसे कलीसिया का काम समझती गई, वैसे-वैसे वह ज्यादा असरदार संगति और समस्याओं का समाधान करने लगी। भाई-बहन अपने सवाल लेकर उसके पास जाने लगे और अब मैं कलीसिया में अकेला ही सबसे काबिल नहीं रहा। जब मैंने देखा कि लीसा अपने काम में मेहनती और जिम्मेदार है, और परमेश्वर के वचनों की मुझसे ज्यादा व्यावहारिक संगति करती है तो मैं अनजाने में ही असुरक्षित महसूस करने लगा। खास कर जब टीम के अगुआ उसके विचारों को अक्सर मंजूरी देने लगे तो मैं उससे और भी ज्यादा जलने लगी। अगर चीजें इसी तरह चलती रहीं, तो देर-सबेर सारा ध्यान वही बटोर लेगी और मेरी अहमियत घटती चली जाएगी। मैंने सोचा, ऐसे नहीं चल सकता। उसे मात देने की तरकीब निकालनी जरूरी है।

उसके बाद जब हम टीम अगुआओं के साथ कार्य पर चर्चा करते, तो मैं सबसे पहले अपने विचार साझा कर देता। एक बार जब हम वीडियो में किसी समस्या पर चर्चा कर रहे थे, तो मैंने सलाह दे डाली, लेकिन दूसरों ने इसे सिद्धांत का मसला नहीं माना और मेरा विचार सिरे से खारिज कर विषय ही बदल दिया। मैंने थोड़ा अपमानित महसूस किया। मेरा विचार उम्दा था, मगर अपनी बात समझा क्यों नहीं सका? सबसे अहम मौके पर मैं चूक गया। अपने ही हाथों मात खाकर मैंने दिखा दिया कि मैं लीसा के बराबर भी नहीं हूँ। जब लीसा ने संगति की पेशकश की तो लगा कि मेरी रही-सही इज्जत भी नहीं बची है और मेरी ईर्ष्या बढ़ गई। एक बार, चर्चा के बाद, एक टीम अगुआ निजी तौर पर मेरे पास आकर बोला : “इन दिनों तुम कुछ हड़बड़ी में दिखते हो। चर्चा का मुद्दा समझने से पहले ही सबसे पहले बोलने पर तुले रहते हो, इससे हमारी सोच-विचार की प्रक्रिया बाधित हो रही है। तब तुम्हें सब कुछ दुबारा समझाना पड़ता है और इससे हमारे काम की प्रगति में देरी हो जाती है। तुम्हें इस पर सोच-विचार करना चाहिए।” यह सुनकर मैं बहुत निराश हुआ। पहले टीम अगुआओं के साथ चर्चा में मेरे ज्यादातर विचार मंजूर कर लिए जाते थे। लेकिन लीसा के आने के बाद से, लोगों के बीच मेरा रुतबा धीरे-धीरे कम हो चुका था, मेरे कहे की कोई परवाह नहीं करता था, और मैं कलीसिया का काम भी बाधित कर रहा था। क्या मैं मुँह दिखाने लायक भी हूँ? मैंने आत्म-चिंतन तो किया नहीं, सारा दोष लीसा के सिर पर मढ़ दिया। कई दिनों तक मैं कुढ़ता रहा और उदासी में डूबता गया और मेरे काम का असर घटता चला गया। एक दिन एक बड़ा अगुआ मुझे बताने आया कि मेरी निगरानी वाले काम का एक हिस्सा लीसा को सौंपा जाएगा। मैं इससे खुश नहीं था, लेकिन कहा कुछ नहीं। मैंने सोचा : “यह काम मिलने के बाद लीसा कलीसिया के अधिकांश कार्यों की निगरानी कर रही होगी और मैं उसका सहायक रहूँगा। कहीं लोग यह न सोचें कि मैं यह काम सँभाल नहीं पाया, इसलिए दूसरे को सौंपा गया? मैं कलीसिया के सारे कार्यों का मुखिया और भागीदार हुआ करता था, लेकिन अब सारा ध्यान लीसा ने खींच लिया है। जब तक वह यहाँ है, मैं हाशिये पर ही रहूँगा।” मैंने इस बारे में जितना सोचा, उतना ही बुरा लगा और मैं भारी मन से दफ्तर से निकला। सोने के कमरे में लौटकर, मैं बिस्तर पर ढीला पड़ा रहा, इस नई हकीकत को गले नहीं उतार पाया। लीसा की काबिलियत और कार्य क्षमता मुझसे बेहतर तो नहीं थी। मैंने काफी समय तक वीडियो कार्य की निगरानी की थी और इसमें अनुभवी था, तो फिर वह मुझसे बेहतर कैसे साबित हो रही है? मुझे इस तरह नहीं दबाया जा सकता। चाहे जो हो, मुझे अपनी इज्जत और रुतबा दुबारा हासिल करना था! उसके बाद से, मैं इसी ताक में रहता कि कब लीसा गलती करे और कब मैं हिसाब चुकता करूँ। एक बार, टीम अगुआओं के साथ कार्य की चर्चा से पहले लीसा ने मुझसे संपर्क नहीं किया, मुझे बताए बिना काम शुरू कर दिया। मैंने इस मौके का फायदा उठाया और मनमानी करने के उलाहने देकर अपनी सारी भड़ास निकाल दी। मैंने कहा कि मैं तो मुखौटा भर हूँ, टीम अगुआ के काम में मेरा कोई दखल नहीं बचा है। मेरे बोलते ही, लीसा का चेहरा लाल पड़ गया। इस मौके का इस्तेमाल अपनी भड़ास निकालने के लिए करने के बावजूद मैं अब भी अंदर से बहुत हताश-निराश था। हमारे अगुआ ने उसी दौरान एक प्रोजेक्ट शुरू किया था, लेकिन कई कारणों से इसमें कोई प्रगति नहीं हुई। सच कहूँ तो इसमें मदद करने के लिए मेरे पास काफी वक्त था, लेकिन मैंने सोचा : “इस प्रोजेक्ट की मुख्य सुपरवाइजर लीसा है, इसलिए अगर यह ठीक से पूरा हो भी गया तो मुझे इसका श्रेय कहाँ मिलेगा। इसलिए लीसा का काम लीसा ही जाने। अगर वह नाकाम हो जाती है तो और भी अच्छा रहेगा—इस तरह लोग उसकी इज्जत करना बंद कर देंगे।” उस दौरान मैं अपनी इज्जत और निजी लाभ की होड़ में पड़ा रहता था। कोई बोझ उठाना नहीं चाहता था और कलीसिया का कार्य आधे-अधूरे मन से करता था। मैं अपने काम में मसले भी हल नहीं कर पाया और इसमें ज्यादा से ज्यादा समस्याएँ आने लगीं। इनका सामना होने पर भी मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया और मेरी हताशा बढ़ती गई। मेरा सारा ध्यान अक्सर दूसरों की गलतियों पर लगा रहता, मैं उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बताता और काम बाधित करता रहता था। बड़ी अगुआ को पता चला तो उसने संगति करके मेरी समस्या उजागर की। लेकिन अंदर से मैं विरोध कर रहा था : “जिस काम में नतीजे नहीं निकल रहे हैं, उसके लिए अकेले मैं ही जिम्मेदार नहीं हूँ। मुझ पर ही उंगली क्यों उठाई जा रही है?” उस समय मैं अपने बारे में जागरूक नहीं था और मैंने सारा दोष लीसा के ऊपर डाल दिया। मैंने अगुआओं पर भी दोष मढ़ा कि उन्होंने सिद्धांतों का पालन नहीं किया। अगुआ की बार-बार की संगति स्वीकार न पाने और व्यावहारिक कार्य न करने पर उसने मुझे बर्खास्त कर दिया। बर्खास्त होने के बाद मैं अंदर से खालीपन, वेदना और निराशा से भर गया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और इस स्थिति से सबक लेने के लिए मार्गदर्शन माँगा।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े जिनसे मुझे कुछ आत्म-ज्ञान मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “और किसी भी समूह में मसीह-विरोधियों का तकियाकलाम क्या होता है? वह यह होता है : ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए!’ असल में, ऐसे लोग जरूरी नहीं कि सर्वोच्च पद प्राप्त करना या लोगों पर बहुत अधिक नियंत्रण हासिल करना चाहते हों; वे भीतर से ऐसे ही होते हैं, उनका एक खास स्वभाव, एक खास मानसिकता होती है, वह उन्हें ये काम करने का निर्देश देती है। वह मानसिकता क्या है? वह यह है, ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए!’ तीन ‘प्रतिस्पर्धाएँ’ क्यों, एक ही ‘प्रतिस्पर्धा’ क्यों नहीं? (प्रतियोगिता उनका जीवन बन गई है, वे इसी के सहारे जीते हैं।) यह उनका स्वभाव है। वे ऐसे स्वभाव के साथ पैदा हुए थे, जो बेतहाशा अहंकारी है और जिसे नियंत्रित करना मुश्किल है। वे खुद को किसी से कम नहीं समझते और बेहद दंभी होते हैं। कोई भी उनका यह बेहद अहंकारी स्वभाव कम नहीं कर सकता; वे खुद भी इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। इसलिए उनका जीवन लड़ने और प्रतिस्पर्धा करने वाला होता है। वे किसके लिए लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं? स्वाभाविक रूप से, वे प्रतिष्ठा, हैसियत, सम्मान और अपने हितों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चाहे उन्हें जिन भी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़े, अगर हर कोई उनके प्रति समर्पण करता है, और अगर उन्हें अपने लिए लाभ और प्रतिष्ठा मिलती है, तो उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया होता है। प्रतिस्पर्धा करने की उनकी इच्छा कोई अस्थायी मनोरंजन नहीं होता; यह एक प्रकार का स्वभाव है, जो शैतानी प्रकृति से आता है। यह बड़े लाल अजगर के स्वभाव जैसा है, जो स्वर्ग से लड़ता है, पृथ्वी से लड़ता है, और लोगों से लड़ता है। अब, जब मसीह-विरोधी कलीसिया में दूसरों से लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो वे क्या चाहते हैं? निस्संदेह, वे प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। लेकिन अगर वे हैसियत हासिल कर लेते हैं, तो इससे उन्हें क्या फायदा होता है? अगर दूसरे उनकी बात सुनते हैं, उनकी प्रशंसा और आराधना करते हैं, तो इसमें उनकी क्या भलाई है? खुद मसीह-विरोधी भी इसे स्पष्ट नहीं कर सकते। वास्तव में, उन्हें प्रतिष्ठा और हैसियत का आनंद लेना, हर एक का उन्हें देखकर मुस्कुराना, और चापलूसी और खुशामद के साथ अपना स्वागत किया जाना पसंद है। इसलिए, हर बार जब कोई मसीह-विरोधी कलीसिया जाता है, तो वह एक काम करता है : दूसरों से लड़ना और प्रतिस्पर्धा करना। सत्ता और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बाद भी उनका काम पूरा नहीं होता। अपनी हैसियत बचाने और अपनी सत्ता सुरक्षित रखने के लिए वे दूसरों से लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं। ऐसा वे मरते दम तक करते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों का फलसफा है, ‘जब तक तुम जीवित हो, लड़ना बंद मत करो।’ अगर इस तरह का कोई दुष्ट व्यक्ति कलीसिया के भीतर मौजूद है, तो क्या इससे भाई-बहन परेशान होंगे? उदाहरण के लिए, अगर हर कोई चुपचाप परमेश्वर के वचन खा-पी रहा है और सत्य पर संगति कर रहा है, तो माहौल शांतिपूर्ण और मनःस्थिति सुखद होगी। इसी समय कोई मसीह-विरोधी गुस्से से लाल-पीला हो जाएगा। वह सत्य पर संगति करने वालों से ईर्ष्या और घृणा करेगा। वह उन पर आक्रमण करना और उनकी आलोचना करना शुरू कर देगा। क्या इससे शांतिपूर्ण माहौल बिगड़ेगा नहीं? वह एक दुष्ट व्यक्ति है, जो दूसरों को परेशान करने और उनसे घृणा करने आया है। मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। कभी-कभी मसीह-विरोधी उन लोगों को नष्ट या पराजित करने की कोशिश नहीं करते, जिनके साथ वे प्रतिस्पर्धा करते और जिन्हें दबाते हैं; अगर वे प्रतिष्ठा, हैसियत, गौरव और सम्मान प्राप्त कर लेते हैं और लोगों से अपनी प्रशंसा करवा लेते हैं, तो उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। “तुम जितना अधिक संघर्ष करोगे, उतना ही अंधेरा तुम्हारे आस-पास छा जाएगा, तुम उतनी ही अधिक ईर्ष्या और नफरत महसूस करोगे, और कुछ पाने की तुम्हारी इच्छा अधिक मजबूत ही होगी। कुछ पाने की तुम्हारी इच्छा जितनी अधिक मजबूत होगी, तुम ऐसा कर पाने में उतने ही कम सक्षम होगे, जैसे-जैसे तुम चीज़ें प्राप्त नहीं कर पाओगे, तुम्हारी नफरत बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे तुम्हारी नफरत बढ़ती है, तुम्हारे अंदर उतना ही अंधेरा छाने लगता है। तुम्हारे अंदर जितना अधिक अंधेरा छाता है, तुम अपने कर्तव्य का निर्वहन उतने ही बुरे ढंग से करोगे; तुम अपने कर्तव्य का निर्वहन जितने बुरे ढंग से करोगे, परमेश्वर के घर के लिए तुम उतने ही कम उपयोगी होगे। यह एक आपस में जुड़ा हुआ, कभी न ख़त्म होने वाला दुष्चक्र है। अगर तुम कभी भी अपने कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो धीरे-धीरे तुम्हें निकाल दिया जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार कर मैंने जाना कि इज्जत और फायदों की होड़ बिल्कुल वैसा ही मसीह-विरोधी स्वभाव है जिसे परमेश्वर ने उजागर किया है। जब से मैंने देखा कि लीसा के नतीजे मुझसे बेहतर हैं और वह भाई-बहनों का सम्मान हासिल कर रही है, तो मेरे अंदर यह साबित करने की इच्छा सुलगने लगी कि वह मुझसे बेहतर नहीं है और वह मुझे पीछे नहीं छोड़ सकती। मैं सिर्फ पासा पलटने की तरकीबें सोचता रहता था। कार्य की चर्चा के दौरान मैं अपने विचार बताने के लिए बीच में कूद पड़ता, खुद को बेहतर दिखाकर लीसा को मात देना चाहता था, यह भी नहीं सोचा कि इससे हमारे काम पर तो असर नहीं पड़ेगा। और जब बड़े अगुआ ने मेरा कुछ काम लीसा को सौंप दिया तो मैं यह सोचकर और ज्यादा जलने लगा कि उसने सारा ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। फिर मेरी दुर्भावना जोर मारने लगी—मैं लीसा की भूल-चूक से फायदा उठाने की ताक में रहने लगा और अपना मकसद साधने के लिए उस पर भड़ास निकालने लगा, फिर चाहे उसे कितना ही नुकसान क्यों न हो। जब एक खास प्रोजेक्ट रुका पड़ा था, तो समस्याएँ जानने और मदद के लिए समय होने के बावजूद मैंने दखल देने की जरूरत नहीं समझी क्योंकि इसकी निगरानी का जिम्मा लीसा के पास था। मैंने उसकी नाकामी और शर्मसार होने तक की तमन्ना की। मैंने देखा कि मुझमें इज्जत और रुतबे की लालसा बहुत ज्यादा है, मैं निर्दयी हूँ और कलीसिया के काम की सुरक्षा बिल्कुल भी नहीं कर रहा हूँ। मैं हमेशा दूसरों को पछाड़ने की कोशिश में बिना सोचे-समझे काम करता था, इज्जत और रुतबा पाने की होड़ में लगा रहता था। मैं जिस काम की निगरानी करता था वह बिल्कुल रुक चुका था और मैं अंधेरे में खो चुका था। इस “होड़” ने मुझे एक दुष्चक्र में फँसा दिया था। जैसे कि परमेश्वर कहता है, “अगर तुम कभी भी अपने कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो धीरे-धीरे तुम्हें निकाल दिया जाएगा।” मैंने कलीसिया का काम अस्त-व्यस्त कर दिया और आत्म-चिंतन करने की भी नहीं सोची। अगर मैं वैसे का वैसा रहता तो क्या पता मेरा व्यवहार कितना विध्वंसक हो सकता था। हद से हद, मुझे निकाला भी जा सकता था। शुक्र है, और बुरा करने से पहले ही मुझे बर्खास्त कर दिया गया। इसके जरिए परमेश्वर मुझे आत्म-चिंतन कर खुद को जानने के साथ ही इज्जत और रुतबा पाने की लालसा से निपटने का अवसर भी दे रहा था। मुझे एहसास हुआ कि यही परमेश्वर का उद्धार है और यही मुझे बचाने का उसका तरीका है। मैंने परमेश्वर को धन्यवाद कहा और मेरी स्थिति काफी सुधर गई। मैंने व्यावहारिक रूप से अपना कर्तव्य निभाने के साथ ही इज्जत और फायदों की होड़ छोड़ने का संकल्प लिया।

उसके बाद मैं सादगी के साथ अपने काम करने लगा। जब मुझे सामान्य काम सौंपा जाता था और मामूली-से, अटपटे काम करने होते थे, मैं समर्पण के लिए तैयार रहता यह सोचकर कि परमेश्वर ने मुझे पश्चात्ताप के लिए यह मौका दिया है, इसलिए व्यावहारिक रूप से काम करना चाहिए। बहुत जल्द, एक नया वीडियो प्रोजेक्ट शुरू किया गया और मैं चौंक पड़ा क्योंकि इसे बनाने के लिए हर किसी ने मुझे ही चुना। मैंने इस अवसर को संजो कर मेहनत और शोध करके संबंधित सिद्धांतों की खोज की। कुछ समय में ही, वीडियो अच्छे बनने लगे और इन्हें देखकर मैं खुद से काफी खुश रहने लगा। एक बार फिर नाम और रुतबा पाने की मेरी इच्छा ने जोर मारा। मैंने सोचा : “मुझे अगुआ के पद से भले ही बर्खास्त कर दिया गया हो, मगर होनहार इंसान के दिन जरूर बहुरते हैं। मुझे इस मौके का फायदा उठाना होगा और अपनी खूबियाँ दिखाकर प्रतिभा साबित करनी होगी।” मैंने सोचा : “लीसा भले ही सत्य की संगति और समस्याएँ हल करने में मुझसे बेहतर हो, लेकिन पेशेवर हुनर के मामले में तो मैं ही आगे हूँ। जैसे ही मैं समय लगाकर इस वीडियो को ठीक से बना लूँगा, हर कोई मेरा निखरा हुआ काम देखेगा, शायद मैं अगुआ बनकर लीसा को पीछे छोड़ दूँ।”

एक दिन मैंने सुना कि काम की प्रगति बहुत धीमी है और वीडियो में सिद्धांतों का उल्लंघन होने पर अगुआ ने लोगों की काट-छाँट की है। यह सुनकर मुझे दूसरों के दुःख में सुख मिला। “देख लो, मेरी बर्खास्तगी के बाद से वीडियो बनाने के काम में सुधार नहीं है। यह पहले से बिगड़ चुका है। पहले, मैं समस्याओं का पता लगाकर अपने विचार देता था, लिहाजा अगर उनकी रफ्तार रुक जाती है तो अच्छा ही रहेगा। वे समझ जाएँगे कि मैं ही नहीं, लीसा भी अपना काम ठीक से नहीं कर रही थी।” बाद में, मैंने सुना कि कुछ दिनों से लीसा की हालत खराब चल रही है—सभाओं में उसकी संगति से कोई रोशनी नहीं मिल रही है, और लोग भी समस्याओं से घिरकर नकारात्मक हो चुके हैं। मैंने मन ही मन सोचा : “अगर ऐसा ही चलता रहा, तो शायद वीडियो कार्य में गंभीर समस्या आने से लीसा को बर्खास्त कर दिया जाएगा। हो सकता है कि मुझे अगुआ चुन लिया जाए और मैं इस काम की निगरानी जारी रखूँ।” इसलिए वीडियो कार्य करते हुए मैंने लीसा की स्थिति पर भी करीबी निगाह बनाए रखी। जब मैंने सुना कि निपटे जाने और काट-छाँट होने से लीसा ने सबक ले लिया है, उसकी दशा सुधर चुकी है, भाई-बहनों ने नाकामियों और झटकों के जरिए कुछ सिद्धांत समझ लिए हैं और अब वे बेहतर नतीजे पा रहे हैं तो मैं कुछ निराश और उदास हुआ। खासकर जब एक सभा में, लीसा ने इन सबसे मिले अनुभवों और उपलब्धियों पर संगति की और सबकी स्वीकृति पा ली तो मैं और भी नाखुश हो गया। ईर्ष्या और घृणा भरे विचारों का सैलाब आ गया। ऐसा लगा कि मेरी वापसी की कोई उम्मीद नहीं है। उसके बाद मेरा उत्साह जाता रहा और वीडियो बनाते हुए मैं खोया-खोया रहने लगा। कुछ दिनों बाद वीडियो बन गया। लेकिन मैं हैरान रह गया जब इसकी समीक्षा के दौरान मेरी अगुआ ने एक बड़ी गलती पकड़ ली, इसके संपादन का जिम्मा किसी और को सौंपा, उसके बाद मुझे कोई और काम नहीं दिया। मुझे काटो तो खून नहीं। वीडियो बनाने का काम छिन जाने से मेरे दिखावे का साधन भी छिन गया। एक ओर जहाँ सारे भाई-बहन अपने कामों में व्यस्त होते, मैं निठल्ला होकर किसी अजूबे जैसा दिखता। मुझे बहुत बुरा लगा—मैं अकेला, उदास, परेशान और कष्टों का मारा था। मैंने रोते हुए प्रार्थना की : “प्रिय परमेश्वर, जानता हूँ कि तुम्हारी धार्मिकता के कारण ही मुझे इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। बर्खास्त होने के बाद मैंने सचमुच आत्म-चिंतन करके खुद को नहीं जाना, बल्कि वापसी करने और अपनी अलग पहचान बनाने के तरीके खोजता रहा। दुर्भावना और अहंकार के कारण मैंने तुम्हें नाराज कर दिया है। अब मैं कोई काम नहीं कर सकता और कलीसिया में मुफ्तखोर बन गया हूँ। हे परमेश्वर, मैं अब इज्जत और फायदे की लालसा नहीं रखना चाहता। मुझे प्रबुद्ध करो और अपने बारे में सच्चा ज्ञान हासिल करने दो, ताकि मैं खुद से नफरत करके अपनी इच्छाओं का त्याग करूँ और पुराने रास्तों पर चलना छोड़ दूँ।”

इसके बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला : “मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ये लोग कुटिल, धूर्त और दुष्ट ही नहीं, बल्कि अत्यधिक विद्वेषपूर्ण भी होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी हैसियत खतरे में है, या जब उन्होंने लोगों के दिलों में अपना स्थान खो दिया होता है, जब वे लोगों का समर्थन और स्नेह खो देते हैं, जब लोग उनका आदर-सम्मान नहीं करते, और वे बदनामी के गर्त में गिर जाते हैं, तो वे क्या करते हैं? वे अचानक बदल जाते हैं। जैसे ही वे अपनी हैसियत खो देते हैं, वे कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह घटिया होता है, और उनकी कुछ भी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती। लेकिन यह सबसे खराब अभिव्यक्ति नहीं होती। सबसे खराब अभिव्यक्ति क्या होती है? जैसे ही ये लोग अपनी हैसियत खो देते हैं और कोई उनका सम्मान नहीं करता, कोई उनके बहकावे में नहीं आता, तो उनकी घृणा, ईर्ष्या और प्रतिशोध बाहर आ जाता है। उन्हें न केवल परमेश्वर का कोई भय नहीं रहता, बल्कि उनमें आज्ञाकारिता का कोई अंश भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, उनके दिलों में परमेश्वर के घर, कलीसिया, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से घृणा करने की संभावना होती है; वे दिल से चाहते हैं कि कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आ जाएँ या वह ठप हो जाए; वे कलीसिया, और भाई-बहनों पर हँसना चाहते हैं। वे उस व्यक्ति से भी घृणा करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करता है और परमेश्वर का भय मानता है। वे उस व्यक्ति पर हमला करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं, जो अपने कर्तव्य के प्रति वफादार और कीमत चुकाने का इच्छुक होता है। यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है—और क्या यह विद्वेषपूर्ण नहीं है? ये स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं; मसीह-विरोधी अपने सार में बुरे लोग होते हैं। यहाँ तक कि जब सभाएँ ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं, अगर वे देखते हैं कि सिग्नल अच्छा है, तो वे मन-ही-मन कोसते हैं और कहते हैं : ‘काश कि सिग्नल चला जाए! काश कि सिग्नल चला जाए! बेहतर है, कोई उपदेश न सुन पाए!’ ये लोग क्या हैं? (राक्षस।) वे राक्षस हैं! वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी की प्रकृति कितनी दुष्ट होती है। जैसे ही वे अपना रुतबा और दूसरों का सहारा गँवाते हैं, वे अपने काम अनमने होकर तो करते ही हैं, नफरत, डाह और प्रतिशोध से भी भर उठते हैं, कलीसिया के काम में समस्याएँ होने की कामना करते हैं, ताकि वे परमेश्वर के घर और दूसरों पर दुर्भावना के साथ हँस सकें। मैंने देखा कि मेरा व्यवहार भी ठीक वैसा ही था, जैसा परमेश्वर ने उजागर किया। बर्खास्त होने और रुतबा गँवाने के बाद मैं जलन और प्रतिशोध से भर उठा। जब मैंने सुना कि लीसा की निगरानी वाले कामों में समस्याएँ आई हैं और उससे निपटा गया है, तो मैंने चुपचाप खुशी मनाई, और ऐसी गंभीर समस्या का इंतजार करने लगा जिससे लीसा बर्खास्त हो जाए, ताकि मैं उसकी जगह सँभाल सकूँ। जब मैंने सुना कि लीसा की दशा में सुधार आया है, दूसरों ने भी कुछ सीखा है और कलीसिया के कार्य में अनुकूल मोड़ आया है तो मैं उदास हो गया। मैं ठीक मसीह-विरोधी जैसे पेश आ रहा था। मसीह-विरोधी और दुष्ट शैतान ही परमेश्वर और सत्य से नफरत करते हैं, यह सोचकर कि कलीसिया का कार्य ठप पड़ जाएगा, हर कोई नकारात्मक बनकर परमेश्वर का उद्धार गँवा बैठेगा और आखिरकार उनके साथ नरक में जाएगा। मैं कलीसिया का ऐसा सदस्य हूँ जिसे परमेश्वर का वचनों का इतना अधिक पोषण मिला है, फिर भी मैंने सत्य की जगह इज्जत और रुतबे को खोजा, कलीसिया का कार्य बिगाड़ा और पश्चात्ताप करने में नाकाम रहा। चूँकि रुतबे के लिए मेरी हवस बुझी नहीं थी, इसलिए मैंने चाहा कि कलीसिया के काम में समस्याएँ उठें ताकि लीसा मुझसे बेहतर नजर न आए। ये जहरीले और घिनौने विचार थे। परमेश्वर के घर के लोगों का दिल उससे मिला होना चाहिए। ज्यादा लोगों को सत्य खोजते हुए, अपने कर्तव्य ठीक से निभाकर और परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान देकर वे खुश होते हैं। जब कलीसिया के काम में बाधा आती है तो वे उसे दूर करने का दायित्व उठाते हैं। लेकिन मुझे देखो, मैंने वीडियो बनाने के काम में समस्याएँ और दूसरों को निष्क्रिय देखकर भी उनकी समस्याओं के समाधान में मदद नहीं की और दुर्भावना से उन पर हँसा। जब उनकी हालत सुधर गई और वीडियो बनाने के काम ने तेजी पकड़ी, तो मैं असल में नाखुश था। मेरे विचार वाकई विषैले थे। मैं कलीसिया के कार्य की सुरक्षा बिल्कुल नहीं कर रहा था और परमेश्वर के घर में रहने लायक नहीं था। मैं कैसा बेशर्म था जो अगुआ बनने की सोचता था?

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा जिससे मुझे अपना शैतानी स्वभाव समझने में मदद मिली : सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “किसी भी व्यक्ति को स्वयं को पूर्ण या प्रतिष्ठित और कुलीन या दूसरों से भिन्न नहीं समझना चाहिए; यह सब मनुष्य के अभिमानी स्वभाव और अज्ञानता से उत्पन्न होता है। हमेशा अपने आप को विशिष्ट समझना—यह अभिमानी स्वभाव के कारण होता है; कभी भी अपनी कमियाँ स्वीकार न कर पाना, और कभी भी अपनी भूलों एवं असफलताओं का सामना न कर पाना—अभिमानी स्वभाव के कारण होता है; वह कभी भी दूसरों को अपने से ऊँचा नहीं होने देता है, या अपने से बेहतर नहीं होने देता है—ऐसा उसके अभिमानी स्वभाव के कारण होता है; दूसरों को कभी खुद से श्रेष्ठ या ताकतवर न होने देना—यह एक अहंकारी स्वभाव के कारण होता है; कभी दूसरों को अपने से बेहतर विचार, सुझाव और दृष्टिकोण न रखने देना, और, ऐसा होने पर नकारात्मक हो जाना, बोलने की इच्छा न रखना, व्यथित और निराश महसूस करना, तथा परेशान हो जाना—ये सभी चीजें उसके अभिमानी स्वभाव के ही कारण होती हैं। अभिमानी स्वभाव तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा बचाने वाला बना सकता है, दूसरों के मार्गदर्शन को स्वीकार करने, अपनी कमियों का सामना करने, तथा अपनी असफलताओं और गलतियों को स्वीकार करने में असमर्थ बना सकता है। इसके अतिरिक्त, जब कोई व्यक्ति तुमसे बेहतर होता है, तो यह तुम्हारे दिल में उस व्यक्ति के प्रति घृणा और जलन पैदा कर सकता है, और तुम स्वयं को विवश महसूस कर सकते हो, कुछ इस तरह कि अब तुम अपना कर्तव्य निभाना नहीं चाहते और इसे करने में लापरवाह हो जाते हो। अभिमानी स्वभाव के कारण तुम्हारे अंदर ये व्यवहार और आदतें उत्पन्न हो जाती हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में मैंने आत्म-चिंतन किया : लीसा से हमेशा होड़ करने का कारण यह था कि मुझे अपने अहंकारी स्वभाव की सच्ची समझ नहीं थी और नहीं जानता था कि मैं वास्तव में किस मिट्टी का बना हूँ। अब तक यही माना था कि मैं योग्य और बहुत अनुभवी हूँ। मुझे इस पर घमंड था और खुद को लीसा से मजबूत मानता था। मुझे लगता था कि काम ठीक से पूरे करने के लिए ये योग्यताएँ काफी हैं, इसलिए जब लीसा मुझसे बेहतर नतीजे लाने लगी और बड़े अगुआ ने मेरे कुछ दायित्व उसे सौंप दिए, तो मैं परेशान हो गया, सोचने लगा कि वह मुझसे बिल्कुल भी बेहतर नहीं है। बर्खास्त होने के बाद भी मैंने वापसी करनी चाही। दुबारा सोचने पर, मैंने देखा कि काम में मैं बस थोड़ा-सा ज्यादा जानकार और अनुभवी हूँ और वीडियो बनाने में सलाह दे सकता हूँ, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं अगुआ बनने के लिए ही बना था। एक अगुआ का मुख्य काम दूसरों को परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य में प्रवेश करने की राह दिखाना और कलीसिया में होने वाली सभी समस्याओं को हल करना है ताकि इसका काम सामान्य गति से चलता रहे। लेकिन, अगुआ के रूप में मैंने व्यावहारिक समस्याएँ हल नहीं कीं। जब टीम अगुआ आपस में उलझते, अक्सर बहस करते और कोई भी झुकने को राजी नहीं होता, तो मैं समस्या हल करने और सद्भाव बनाने के लिए सत्य की संगति करना नहीं जानता था। यही नहीं, जब कुछ भाई-बहन अनमने होकर काम करने लगे और उन्हें सहारा देने के लिए परमेश्वर के वचनों की संगति जरूरी थी, तो मेरा अनुभव कम था, मेरी संगति में गहराई नहीं थी और मैं उनकी समस्याएँ हल नहीं कर पाया। कलीसिया के काम के सभी पहलुओं में मैं मानकों पर खरा नहीं उतरता था। हो सकता है कि लीसा की कार्य कुशलता में कुछ कमियाँ रही हों, लेकिन वह कलीसिया के काम में आने वाली सभी दिक्कतें हल कर सकती थी। बड़े अगुआ ने कलीसिया की खातिर ही उसे कुछ काम सौंपा था, लेकिन मैं बड़ा अहंकारी था और मुझे अपनी क्षमताओं की अच्छी समझ नहीं थी। मैं लीसा के आसपास कहीं नहीं टिकता था, फिर भी खुद को बेहतर मानकर पीछे हटने को तैयार नहीं था और हमेशा होड़ करता रहता था। मैं ऐसा मतिहीन अहंकारी था! उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को देखा : “जब लोग रुतबे के पीछे भागते हैं, तो परमेश्वर को इससे बेहद घृणा होती है, क्योंकि रुतबे के पीछे भागना शैतानी स्वभाव है, यह एक गलत मार्ग है, यह शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है, परमेश्वर इसका तिरस्कार करता है और परमेश्वर इसी चीज का न्याय और शुद्धिकरण करता है। लोगों के रुतबे के पीछे भागने से परमेश्वर को सबसे ज्यादा घृणा है और फिर भी तुम अड़ियल बनकर रुतबे के लिए होड़ करते हो, उसे हमेशा संजोए और संरक्षित किए रहते हो, उसे हासिल करने की कोशिश करते रहते हो। क्या इन तमाम चीजों की प्रकृति परमेश्वर-विरोधी नहीं है? लोगों के लिए रुतबे को परमेश्वर ने नियत नहीं किया है; परमेश्वर लोगों को सत्य, मार्ग और जीवन प्रदान करता है, और अंततः उन्हें परमेश्वर का एक स्वीकार्य प्राणी, परमेश्वर का एक छोटा और नगण्य प्राणी बनाता है—वह इंसान को ऐसा व्यक्ति नहीं बनाता जिसके पास रुतबा और प्रतिष्ठा हो और जिसकी हजारों लोगों द्वारा आराधना की जाती हो। और इसलिए, इसे चाहे किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए, रुतबे के पीछे भागने का मतलब एक अंधी गली में पहुँचना है। रुतबे के पीछे भागने का तुम्हारा बहाना चाहे जितना भी उचित हो, यह मार्ग फिर भी गलत है, और परमेश्वर इसकी प्रशंसा नहीं करता। तुम चाहे कितना भी प्रयास करो या कितनी बड़ी कीमत चुकाओ, अगर तुम रुतबा चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें वह नहीं देगा; अगर परमेश्वर तुम्हें रुतबा नहीं देता, तो तुम उसे पाने के संघर्ष में नाकाम रहोगे, और अगर तुम संघर्ष करते ही रहोगे, तो उसका केवल एक ही परिणाम होगा : तुम्हें उजागर करके निकाल दिया जाएगा, जिसके आगे कोई मार्ग नहीं है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। इसे पढ़कर मैं अपनी करतूतों से डर गया, खास तौर पर यह अंश पढ़ने के बाद : “अगर तुम रुतबा चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें वह नहीं देगा; अगर परमेश्वर तुम्हें रुतबा नहीं देता, तो तुम उसे पाने के संघर्ष में नाकाम रहोगे, और अगर तुम संघर्ष करते ही रहोगे, तो उसका केवल एक ही परिणाम होगा : तुम्हें उजागर करके निकाल दिया जाएगा, जिसके आगे कोई मार्ग नहीं है।” परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि कैसे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का अपमान नहीं किया जा सकता। कलीसिया ने मुझे यह कर्तव्य निभाने का मौका दिया था, ताकि मैं काम में सत्य खोजना सीखूँ और आखिर में एक योग्य सृजित प्राणी बनूँ। लेकिन मैं लगातार रुतबे की होड़ में लगा रहा। क्या मैं जानबूझकर परमेश्वर की अपेक्षाओं के विरुद्ध नहीं जा रहा था? परमेश्वर इससे अधिक घृणा और किसी से नहीं करता। कलीसिया में लंबे समय से यह कर्तव्य निभाने के बावजूद, जब मुझे वीडियो बनाने को कहा गया तो मैं इसे ठीक से नहीं बना सका। मेरे अगुआ रहते जब हमें वीडियो में अच्छे नतीजे मिले, तो यह सब पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन और हमारी टीम के प्रयासों का फल था, मेरे योगदान का नतीजा नहीं। लेकिन मैं इन उपलब्धियों को ताज की तरह सिर पर सजाए रखता था ताकि लोग मेरी चमक न छीन लें, मैं हमेशा रुतबे की होड़ में लगा रहा और कलीसिया का काम पूरी तरह बिगाड़ दिया। मैंने जो कुछ किया वह बुरा था, परमेश्वर के विरुद्ध और घिनौना था। तभी, मैंने एक बहन को याद किया जो साल भर पहले मेरी सहयोगी थी। वह इज्जत और रुतबे के लिए लालायित रहती और अपने ओहदे से चिपकी रहती थी। जो कोई उसके ओहदे के लिए खतरा बनता, वह उसे दबा देती या उस पर प्रहार करती, और उसने अपना रुतबा बचाने के लिए कलीसिया का काम बिगाड़ने में भी देर नहीं लगाई। फिर, वह अपनी सभी बुराइयों के लिए मसीह-विरोधी के रूप में उजागर होकर निकाल दी गई। जहाँ तक मेरी बात है, मैं साफ तौर पर व्यावहारिक कार्य न करके भी होड़ करना चाहता था, जिससे कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा आई। अगर मैं पश्चात्ताप न करता और इसी तरह जीता रहता तो परमेश्वर के हाथों निकाले जाने की पूरी संभावना थी। यह बोध होने पर मैंने प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, कलीसिया ने मुझे अगुआ के रूप में प्रशिक्षण पाने का अवसर दिया, लेकिन मैंने अपने कर्तव्य नहीं निभाए, सही रास्ते पर नहीं चला, बल्कि नाम और फायदे के पीछे भागता रहा। मेरे सभी विचार और कर्म बुराई से भरे हैं, और अगर मुझे दंडित किया जाता है तो मैं इसका पूरा हकदार होऊँगा। प्यारे परमेश्वर, मैं ऐसी घिनौनी जिंदगी नहीं जीना चाहता। मैं पश्चात्ताप करके नई शुरुआत करने को तैयार हूँ!”

कई दिनों बाद, अगुआ ने संदेश भेजा कि मुझे एक भजन के वीडियो में एक भूमिका सौंपी गई है और पहले मुझे भजन सीख लेना चाहिए। संदेश देखकर मैं बहुत खुश हो गया। मैंने एक और मौका देने पर तहेदिल से परमेश्वर को धन्यवाद कहा। मुझे जो भजन याद करना था उसका नाम है “मानवजाति पर परमेश्वर की दया”। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “यद्यपि नीनवे का नगर ऐसे लोगों से भरा हुआ था, जो सदोम के लोगों के समान ही भ्रष्ट, बुरे और हिंसक थे, किंतु उनके पश्चात्ताप के कारण परमेश्वर का मन बदल गया और उसने उन्हें नष्ट न करने का निर्णय लिया। चूँकि परमेश्वर के वचनों और निर्देशों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया ने एक ऐसे रवैये का प्रदर्शन किया, जो सदोम के नागरिकों के रवैये के बिलकुल विपरीत था, और परमेश्वर के प्रति उनके सच्चे समर्पण और अपने पापों के लिए उनके सच्चे पश्चात्ताप, और साथ ही साथ हर लिहाज से उनके सच्चे और हार्दिक व्यवहार के कारण, परमेश्वर ने एक बार फिर उन पर अपनी हार्दिक करुणा दिखाई और उन्हें अपनी करुणा प्रदान की। परमेश्वर द्वारा मनुष्य को दी जाने वाली चीज़ें और उसकी करुणा की नकल कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है, और परमेश्वर की दया, उसकी सहनशीलता, या किसी भी व्यक्ति में मनुष्य के प्रति परमेश्वर की सच्ची भावनाएँ होना असंभव है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II)। परमेश्वर के वचनों से मैंने मानवजाति को बचाने के उसके इरादे जाने। नीनवे के लोगों की भ्रष्टता और बुराई से क्रुद्ध होकर परमेश्वर उन्हें नष्ट करने चला था, लेकिन जब नीनवे वासियों ने सच्चे मन से पश्चात्ताप किया, तो परमेश्वर ने अपना कोप शांत कर उन्हें नष्ट नहीं किया। इससे मुझे बोध हुआ कि परमेश्वर लोगों के सच्चे पश्चात्ताप को अहमियत देता है। कलीसिया के कार्य को बाधित करने का अपराध करने के बावजूद परमेश्वर ने मुझे नहीं निकाला। उसने मेरी बर्खास्तगी, निपटान और काट-छाँट का प्रयोग मुझे आत्म-चिंतन के लिए बाध्य करने में किया। यह सब परमेश्वर का उद्धार था। मैं पछतावे और अकर्मण्यता की जिंदगी जीते रहना नहीं चाहता था। मुझे परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप कर सत्य खोजना था और अपना भ्रष्ट स्वभाव दूर करना था ताकि आगे से कोई बुरे कर्म और परमेश्वर का विरोध न करूँ।

एक बार भक्ति के दौरान, परमेश्वर के वचनों के एक अंश को पढ़कर मुझे अभ्यास मार्ग मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “प्रतिष्ठा और हैसियत छोड़ना आसान नहीं है—यह लोगों के सत्य का अनुसरण करने पर निर्भर करता है। केवल सत्य समझकर ही व्यक्ति खुद को जान सकता है, प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे दौड़ने का खोखलापन स्पष्ट रूप से देख सकता है और मानवजाति की भ्रष्टता का सत्य पहचान सकता है। तभी व्यक्ति वास्तव में हैसियत और प्रतिष्ठा त्याग सकता है। भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा पाना आसान नहीं है। शायद तुम पहचान गए हो कि तुममें सत्य की कमी है, तुम कमियों से घिरे हो और बहुत अधिक भ्रष्टता प्रकट करते हो, फिर भी तुम सत्य का अनुसरण करने का कोई प्रयास नहीं करते और पाखंडपूर्वक छद्मवेश धारण कर लोगों को विश्वास दिलाते हो कि तुम कुछ भी कर सकते हो। यह तुम्हें खतरे में डाल रहा है—यह देर-सबेर तुम्हारे लिए समस्या खड़ी कर देगा। तुम्हें स्वीकारना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य नहीं है, और पर्याप्त बहादुरी से वास्तविकता का सामना करना चाहिए। तुम कमजोर हो, भ्रष्टता प्रकट करते हो और हर तरह की कमियों से घिरे हो। यह सामान्य है—तुम एक सामान्य व्यक्ति हो, तुम अलौकिक या सर्वशक्तिमान नहीं हो, और तुम्हें यह पहचानना चाहिए। ... जब तुम्हें रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की निरंतर तीव्र इच्छा होती है, तो तुम्हें यह बात पता होनी चाहिए कि अगर इस तरह की स्थिति को अनसुलझा छोड़ दिया जाए तो कैसी बुरी चीजें हो सकती हैं। इसलिए समय बर्बाद न करते हुए सत्य खोजो, इससे पहले कि रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा बढ़कर प्रबल हो जाए, इसे मिटा दो और इसके स्थान पर सत्य का अभ्यास करो। जब तुम सत्य का अभ्यास करने लगोगे, तो रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की तुम्हारी इच्छा कम हो जाएगी और तुम कलीसिया के काम में हस्तक्षेप नहीं करोगे। इस तरह, परमेश्वर तुम्हारे कार्यों को याद रखेगा और उनकी प्रशंसा करेगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि इज्जत और रुतबे की इच्छा त्यागने के लिए पहले आत्म-ज्ञान होना, अपनी गलतियाँ तुरंत कबूल कर सकना और दूसरों को अपनी असली हालत देखने देना जरूरी है। जब होड़ करने की इच्छा दुबारा जोर मारे, तो आपको सचेत होकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी होगी, खुद की इच्छाओं का त्याग कर दूसरों के साथ सहयोग करना होगा। तभी आप अच्छे से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। मैंने आत्म-चिंतन और आत्म-ज्ञान पर ध्यान नहीं दिया। मैं बहुत ईर्ष्यालु बन गया और अपनी हालत के बारे में खुलकर नहीं बताता, समाधान के लिए सत्य भी नहीं खोजता था। लिहाजा, नाम और फायदे के लिए मेरे संघर्ष ने कलीसिया के काम को बिगाड़ा। आगे से मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलना था। उसके बाद से, काम के दौरान मैं अपनी दशा के बारे में सचेत होकर खुलने लगा और सहयोगियों से सीखने के लिए सक्रिय कोशिश करने लगा। कुछ समय बाद, मैंने देखा कि सभी भाई-बहनों में कुछ न कुछ ऐसी खूबियाँ थीं, जो मुझमें नहीं थीं। अपने अहंकार और अज्ञानता पर मुझे और भी शर्म आई। अतीत के बारे में सोचने लगा कि मैंने इज्जत और रुतबे की होड़ में लगे रहकर कैसे कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाया, इससे मुझे और अधिक पछतावा हुआ। मैंने शांत होकर प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, उजागर और बर्खास्त होकर मैं थोड़ा-सा जागरूक हुआ हूँ। पहले, मैं इज्जत और फायदे की होड़ में लगा रहता था और कलीसिया के हितों की सोचता तक नहीं था। मैंने कलीसिया का काम तो बिगाड़ा ही, अपने भाई-बहनों को भी नुकसान पहुँचाया। मैं इंसान कहलाने लायक नहीं हूँ! आगे से अपने काम में, मैं तुम्हारे वचनों के अनुसार अभ्यास करने, दूसरों की खूबियों से सीखने और सद्भाव के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हूँ।”

बाद में, एक नए वीडियो प्रोजेक्ट में कुछ समस्याएँ सामने आईं तो बड़े अगुआ ने मुझे और लीसा को मिलकर इनके समाधान का जिम्मा सौंपा। इस बार की साझेदारी में मैंने लीसा के साथ होड़ नहीं की। जब समस्याएँ आईं तो सक्रिय होकर उससे चर्चा की, राय ली और तभी आगे बढ़े जब हम दोनों सहमत हो गये। कभी-कभी जब लीसा के विचार मुझसे अधिक स्पष्ट और गहरी समझ वाले होते, तो मैं अनजाने में ही खुद को साबित करने में जुट जाता था। लेकिन तुरंत ही मुझे दुबारा होड़ करने का एहसास होता और मैं परमेश्वर से प्रार्थना कर खुद की इच्छाओं का त्याग करता, लीसा के सुझाव स्वीकार करता और उन पर सोच-विचार और सत्य खोजने के लिए मेहनत करता। मैंने जाना कि लीसा के विचार वाकई मुझसे बेहतर थे और मैं उन्हें तहेदिल से स्वीकारने लगा। इस तरह अभ्यास कर मैंने वाकई शांत और सहज महसूस किया। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अच्छे से सहयोग करना औरमानवता का प्रतीक बनकर जीना सिखाया।

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