धन-दौलत का त्याग : एक निजी सफर
मेरा जन्म एक ग्रामीण परिवार में हुआ। मेरे बचपन में हमारा परिवार इतना गरीब था कि पेट भरने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था और हर कोई हमें नीची निगाहों से देखता था। मैंने मन ही मन सोचा : “बड़े होकर मैं खूब पैसा कमाऊँगा और अपने परिवार की जिंदगी आसान बनाऊँगा, तब लोग हमें हिकारत से नहीं देखेंगे, हमारा मखौल नहीं उड़ाएँगे।” जल्द ही मेरी माँ बीमार पड़ी तो हमारी सारी बचत खर्च हो गई। दोस्त और रिश्तेदार घबराने लगे कि कहीं हम उनसे पैसा न माँगने लगें, इसलिए वे हमसे बचने के बहाने बनाने लगे। जब हमारे पास कोई चारा नहीं बचा था, तभी मेरी चाची ने हमें प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाया। प्रभु को पाकर मेरी माँ चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गई, और तभी मेरी आस्था के बीज भी पड़ गए। भले ही तब मैं छोटा था, धन-दौलत को लेकर मेरे ख्वाब कभी बदले नहीं। ज्यादा पैसा और नाम कमाने के लिए मैं 13 साल की उम्र में ही बाजार में माचिस, सिगरेट और सूरजमुखी के बीज बेचने लगा; 15 साल में जगह-जगह स्टॉल लगाने लगा; और 18 साल में इमारती लकड़ी के कारोबार में हाथ आजमाने लगा। लेकिन मेरे पास पूँजी की कमी थी, इसलिए मेरा भाई मुझे कर्ज दिलाने के लिए गाँव में एक सहपाठी के घर ले गया। मैंने इस साधन-संपन्न धनी परिवार को देखा, वे गर्मी के दिनों में ए.सी. में बैठकर तरबूज खा रहे थे, उन्हें देखकर मुझे बहुत जलन हुई। हमारे घर में तो पंखा तक नहीं था। चाहे जितनी गर्मी पड़े, हम सिर्फ हाथ वाले पंखे झलते रहते थे और प्यास बुझाने के लिए केवल कुएँ का पानी होता था। हमारे परिवारों में इतना फर्क क्यों था? धनी परिवार अच्छे से रहते थे—मैं कब उनकी तरह रह सकूँगा? तब से मेरी शान-शौकत की जिंदगी जीने की चाहत बढ़ गई। शादी के बाद भी मैं अपने काम से ज्यादा नहीं कमा पा रहा था। मैं और मेरी पत्नी काम के लिए कहीं और जाते थे, और अलग से कुछ पैसा कमाने के लिए रिक्शा चलाते थे। लेकिन साल बीतते गए और हम जो कुछ कमाते थे वह सिर्फ गुजारे लायक होता था।
फरवरी 2000 की बात है। मैंने कपड़ा कारोबार में कई कमर्शियल एजेंट बने लोगों को खूब पैसा कमाते देखा था और मैं खुद भी इसमें उतरना चाहता था। आखिरकार मैं प्रांत का जनरल एजेंट बन गया। शुरुआत में कोई भी ग्राहक ऑर्डर देने नहीं आया, तो मैं घर-घर जाकर अपने उत्पाद दिखाने लगा। कारोबार बढ़ाने के लिए मैंने खुद हर चीज का ख्याल रखा : उत्पाद खरीदने से लेकर ग्राहकों को बिल भेजने, पैकिंग करने से लेकर ऑर्डर भेजने तक…. मैं रोज करीब 16 घंटे काम कर रहा था। मैं अक्सर इतना व्यस्त रहता कि खा भी नहीं पाता था। लेकिन कुछ साल की कड़ी मेहनत के बाद मैं कुछ पैसे कमाने लगा। मैंने एक घर खरीदा, एक कार भी ले ली, मेरे संगी-साथियों, दोस्तों और परिवार ने मेरी काबिलियत का लोहा मान लिया। मैं जहाँ भी जाता, लोग मेरा अभिवादन करते। जब मैं नए लूनर ईयर पर घर गया, तो हर जगह लोगों ने मुझे सराहना भरी नजरों से देखा और मैं जहाँ कहीं भी गया, मुझे “मिस्टर बिग शॉट” कहा गया। ये तारीफें सुनकर मैं खुश हो गया और अपनी सारी पीड़ा भूल गया। लेकिन पूरे साल व्यस्त रहने के कारण मैं बेवक्त खाना खाता जिससे खाना खाते ही पेट में तेज दर्द की शिकायत रहने लगी। लंबे समय तक ज्यादा काम करने से मेरा एक लंबर डिस्क भी टेढ़ा हो गया और कभी-कभी मेरे हाथ सुन्न पड़ जाते या ऐंठ जाते, लेकिन कारोबार बढ़ाने और ज्यादा पैसे कमाने के लिए, मैं शारीरिक तकलीफें भूलकर कारोबार बढ़ाने में जुटा रहा। कभी-कभी लगता था कि मेरा शरीर वाकई झेल नहीं सकेगा, लेकिन साल दर साल बिक्री के आँकड़े बढ़ते देखकर और कंपनी को सालाना दस लाख युआन कमाई होने पर, मैं अपनी तकलीफ भूल कर काम करता रहा। एक साल देश भर में हुई बिक्री में हमारी शाखा दूसरे स्थान पर रही और हमें तीन लाख युआन से ज्यादा सिर्फ बोनस के रूप में मिले। दूसरे सभी एजेंटों ने मुझे ईर्ष्या भरी नजरों से देखा। कंपनी ने मुझे और भी बड़ा बिक्री का लक्ष्य सौंपकर चाहा कि मैं नंबर 1 बनने की ओर बढ़ूँ। यह ऐसा लक्ष्य था जिसे पाने के लिए मैं मुद्दत से जुटा था, क्योंकि जितना बेहतर मेरा प्रदर्शन होगा, उतना ज्यादा मैं कमाऊँगा और उतना ही अच्छा बोनस मिलेगा। मैं चाहे जहाँ जाऊँ मुझे दूसरों की सराहना मिलेगी और मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी। लेकिन जब मैं अपने काम से बहुत खुश था और नंबर एक बनने की ओर बढ़ रहा था, उसी दौरान मेरी सेहत गिरती जा रही थी। मेरे पेट की समस्या बढ़ती गई, मेरी पीठ अक्सर दुखने लगती और मैं ज्यादा देर खड़ा भी नहीं रह सकता था। मैं इलाज के लिए अस्पताल गया तो डॉक्टर ने कहा : “तुम्हारा लंबर डिस्क टेढ़ा हो गया है। तुम्हें ज्यादा आराम करने और कड़ी मेहनत से बचने की जरूरत है। अगर मेरी सलाह न मानी, तो नसें दबने से तुम्हें लकवा होने की आशंका है।” तब मैं काम में इतना डूबा था, आराम करने की फुर्सत कहाँ थी? काम करते हुए मैं अपने बीमार शरीर को बस घसीटता जा रहा था। सुबह सबसे पहले यही सोचता कि पैसा कैसे कमाऊँ और व्यस्त दिन बीतने के बाद बिस्तर पर जाते ही मैं गहरी नींद में चला जाता। मेरी पत्नी ने कहा कि मुझे जिंदगी से ज्यादा पैसा प्यारा है। दिन भर मैं काम में इतना डूबा रहता कि अपनी बीमारियाँ भी भूल जाता था, लेकिन रात में बिस्तर पर लेटकर नींद नहीं आती थी, दर्द के कारण करवटें बदलता रहता था, मैं सोचता था : “मैंने कुछ पैसा कमाया है, मैं बड़े आराम की जिंदगी जी रहा हूँ और लोग मेरी सराहना करते हैं, लेकिन अभी मैं 40 साल का भी नहीं हुआ और बिखरता जा रहा हूँ। कौन जानता है कि बूढ़ा होने पर मेरी क्या दुर्गति होगी।” मेरी बीमारियों की पीड़ा, मानसिक दबाव, मेरी पेशेवर जिंदगी के छल-कपट और आंतरिक संघर्ष अक्सर मुझे असहनीय दर्द देकर तोड़ देते थे। मेरी धन-दौलत ने मुझे खुशी क्यों नहीं दी? मुझे कोई आंतरिक शांति या सुकून नहीं था, न किसी चीज का सहारा ही था। क्या मैंने सच में पैसे और नाम के पीछे भागते हुए अपनी सारी जिंदगी खालीपन और दर्द के साथ नहीं बिता दी? क्या मैं यही जिंदगी चाहता था?
दर्द और उलझन की इस स्थिति में मुझे और मेरी पत्नी को 2009 में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार मिला। परमेश्वर के वचन पढ़ने और कलीसिया का जीवन जीने से मैं समझ गया कि अंत के दिनों में परमेश्वर सत्य व्यक्त करने के लिए देहधारण कर चुका है, वह लोगों के साथ न्याय कर उन्हें स्वच्छ बनाने का काम कर रहा है, और जो उसके न्याय और स्वच्छता को स्वीकारेंगे, सिर्फ वही लोग अच्छी मंजिल पाएँगे। मैं और मेरी पत्नी परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को लेकर तुरंत आश्वस्त हो गए। मैं रोज उत्सुक होकर परमेश्वर के वचन पढ़कर इनके सिंचन का आनंद लेता। मेरा मन शांति और आनंद से भर उठा। उस समय मैंने सोचा : “मैं पहले सिर्फ अमीर बनने और खुशियों भरी जिंदगी जीने की सोचता था, लेकिन पैसा कमाने के बाद मैं खुश क्यों नहीं हूँ, खालीपन और पीड़ा से क्यों भरा हूँ?” मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मेरी उलझन दूर कर दी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “तुम्हारे दिल में एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में तुमने कभी नहीं जाना है, क्योंकि तुम एक प्रकाशविहीन दुनिया में रह रहे हो। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा शैतान द्वारा छीन लिए गए हैं। तुम्हारी आँखें अंधकार से धुंधला गई हैं, तुम न तो आकाश में सूर्य को देख सकते हो और न ही रात के उस टिमटिमाते तारे को। तुम्हारे कान भ्रामक शब्दों से भरे हुए हैं, तुम न तो यहोवा की गरजती वाणी सुनते हो, न ही सिंहासन से बहने वाले पानी की आवाज सुनते तो। तुमने वह सब कुछ खो दिया है जिस पर तुम्हारा हक है, वह सब भी जो सर्वशक्तिमान ने तुम्हें प्रदान किया था। तुम दुःख के अनंत सागर में प्रवेश कर चुके हो, तुम्हारे पास खुद को बचाने की ताकत नहीं है, न जीवित बचे रहने की कोई उम्मीद है। तुम बस संघर्ष करते हो और भाग-दौड़ करते हो...। उस क्षण से, तुम दुष्ट के द्वारा पीड़ित होने के लिए शापित हो गए थे, सर्वशक्तिमान के आशीषों से दूर, सर्वशक्तिमान के प्रावधानों की पहुंच से बाहर, ऐसे पथ पर चलते हुए जहां से लौटना संभव नहीं। ... तुम्हें कुछ पता नहीं है कि तुम कहाँ से आए, क्यों पैदा हुए, या तुम क्यों मरोगे। तुम सर्वशक्तिमान को एक अजनबी के रूप में देखते हो; तुम उसके उद्गम को नहीं जानते, तुम्हारे लिए जो कुछ उसने किया है, वो जानने की तो बात ही दूर है। उससे जो कुछ भी आता है वह तुम्हारे लिए घृणित हो गया है; तुम न तो इसकी कद्र करते हो और न ही इसकी कीमत जानते हो। तुम उस दिन से शैतान के साथ-साथ चलते हो, जबसे तुमने सर्वशक्तिमान का प्रावधान प्राप्त किया है। तुमने शैतान के साथ हजारों वर्षों के संकटों और तूफानों को सहा है, और तुम उसके साथ उस परमेश्वर के खिलाफ खड़े हो जो तुम्हारे जीवन का स्रोत है। तुम पश्चाताप के बारे में कुछ नहीं जानते, तो यह जानने की तो बात ही छोड़ो कि तुम अपने पतन के कगार पर आ गए हो। तुम यह भूल गए हो कि शैतान ने तुम्हें बहकाया और पीड़ित किया है; तुम अपने आरंभ को भूल गए हो। इस तरह शैतान ने आज तक, तुम्हें पूरे रास्ते, हर कदम पर कष्ट दिया है। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा सुन्न हो गए हैं, सड़ गए हैं। तुमने इंसानी दुनिया के संताप के बारे में शिकायत करना बंद कर दिया है; तुम तो अब यह भी नहीं मानते कि दुनिया अन्यायपूर्ण है। सर्वशक्तिमान का अस्तित्व है या नहीं इसकी परवाह तो तुम्हें और भी कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने बहुत पहले शैतान को अपना सच्चा पिता मान लिया था और तुम उससे अलग नहीं हो सकते। यह तुम्हारे दिल के भीतर का रहस्य है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। इंसान को परमेश्वर ने बनाया और हम उसकी देख-रेख और सुरक्षा में रहा करते थे। लेकिन शैतान की धोखेबाजी और भ्रष्टता के कारण इंसान ने परमेश्वर को धोखा दे दिया और उससे दूरी बना ली, उसे जीवन के महत्व और मायनों का कुछ भी पता नहीं था, वह धन-दौलत, शोहरत और सांसारिक सुखों की चाह में शैतान की दुष्ट चालों के अनुरूप चलता रहा और शैतान के शोषण का शिकार बन गया। मुझ पर शैतान का असर था। मैं बस अमीर बनकर आला जिंदगी जीना चाहता था और ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में मैंने अपने शरीर की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। यहाँ तक कि जब मुझे असहनीय दर्द होता, तब भी मैं पैसा बनाने का कोई मौका नहीं चूकता था। शैतान के छल-कपट और नुकसान के कारण मैं खोखली और दर्दनाक जिंदगी जी रहा था। परमेश्वर ने अंत के दिनों में फिर से देह धारण किया है ताकि वह सत्य जारी कर सके, इंसान को शैतान के असर से बचा सके, और शैतान की भ्रष्टता और नुकसान से दूर रखकर इंसान को अच्छी मंजिल की ओर ले जा सके। परमेश्वर के उद्धार और रहम के कारण मैं खुशनसीब था कि प्रभु की वापसी का स्वागत कर सृष्टिकर्ता की वाणी सुन सका। इसके बाद मैं धीरे-धीरे कारोबारी मामलों से दूर रहने लगा, सभाओं में जाने और परमेश्वर के वचन पढ़ने में ज्यादा से ज्यादा समय लगाने लगा। धीरे-धीरे मुझे कुछ सत्य समझ में आने लगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करना और न्याय का कार्य करना परमेश्वर की 6000 साल की प्रबंधन योजना का अंतिम चरण है, और जो लोग अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय नहीं स्वीकारेंगे और स्वच्छ नहीं किए जाएँगे, वे आखिरकार आपदाओं में नष्ट होकर सजा भुगतेंगे। लेकिन मेरे आसपास कई लोग हैं जिन्होंने अभी तक न तो परमेश्वर की वाणी सुनी है, न प्रभु की वापसी का स्वागत ही किया है। इससे मैं सचमुच परेशान हो गया। जब मैंने दूसरों को सुसमाचार का प्रचार करते और परमेश्वर के बारे में गवाही देते देखा, जबकि मैं अब भी कंपनी के मामलों में उलझकर कोई कर्तव्य नहीं निभा रहा था, तो मुझे लगा कि मैं परमेश्वर को नीचा दिखा रहा हूँ, लेकिन मैं नहीं जानता था कि क्या करूँ। इसलिए मैंने प्रार्थना में अपने विचार और अपनी समस्याएँ परमेश्वर के सामने रखीं और उससे इस स्थिति में राह दिखाने की प्रार्थना की।
प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “क्या तू अपने कधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी कौंधती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दुःख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? सभी बातों को नज़र में रखते हुए, तू एक असाधारण जीवन व्यतीत करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की व्याख्या कैसे करेगा? क्या सच में तुझमें एक धर्म-परायण, परमेश्वर-सेवी जैसा अर्थपूर्ण जीवन जीने का संकल्प और विश्वास है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन से कैसे पेश आना चाहिए?)। परमेश्वर के वचनों से मुझे उसकी फौरन पूरी की जाने वाली इच्छा का पता चला। मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य बहुत जल्द पूरा हो जाएगा, लेकिन अब भी बहुत सारे लोगों ने न तो उसकी वाणी सुनी है, न उसके प्रकट होने का स्वागत ही किया है, और वे अंधेरे में कष्ट भोग रहे हैं, खास कर वे जो बरसों से प्रभु पर विश्वास करते आए हैं। वे खुद को अंधेरे से बचाए जाने के लिए प्रभु यीशु के प्रकट होने और कार्य करने की उम्मीद लगाए हुए हैं, लेकिन पादरियों और एल्डरों की बातों से गुमराह होने के कारण उन्होंने अभी तक प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं किया है, और उन्हें सख्त दरकार है कि कोई आकर उन्हें अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्यों की गवाही दे और परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने के लिए उसकी शरण में ले जाए। सृजित प्राणी के रूप में, मेरे पास विवेक और अंतरात्मा होनी चाहिए, परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए मुझे उसकी इच्छा का ख्याल रखना चाहिए, और उसका उद्धार स्वीकारने के लिए और अधिक लोगों को उसकी शरण में लाना चाहिए। यही सबसे धार्मिक उद्देश्य है, मेरा अडिग कर्तव्य और दायित्व है। परमेश्वर की इच्छा और अपेक्षाओं से सामना होने पर, मैं जानता था कि अगर मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा और परमेश्वर के प्रेम का कर्ज नहीं चुकाया, तो इसका मतलब होगा कि मुझमें अंतरात्मा और विवेक नहीं है और मैं इंसान कहलाने लायक नहीं हूँ। मुझे अपनी जिम्मेदारी के महत्व का एहसास हुआ, मैं फौरन सुसमाचार का प्रचार करना चाहता था। इसलिए मैंने कंपनी की जिम्मेदारी सौंपने के लिए अपनी पत्नी से बात की ताकि सत्य खोजने और कर्तव्य निभाने के लिए मेरे पास ज्यादा समय और ऊर्जा रहे। उसने मुझसे कहा : “हमने इन वर्षों में परमेश्वर के अनुग्रह और आशीष का इतना सुख भोगा है, इसलिए हमें राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए अपना सब कुछ झोंक देना चाहिए। अगर हमने यह अवसर खो दिया और कर्तव्य के जरिए परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए उसके साथ काम नहीं किया, तो हम उसकी तौहीन कर रहे होंगे और हमारी अंतरात्मा उसका सामना नहीं कर पाएगी।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर मेरे कंपनी छोड़ने के फैसले पर मुहर लग गई। लेकिन जब मैं कंपनी में लौटा और कर्मचारियों को माल पैक कर भेजने में व्यस्त पाया, तो मुझे कंपनी छोड़ने के ख्याल से गहरा दुख हुआ क्योंकि इसे मैंने अपने हाथों से खड़ा किया था। इतनी बड़ी कंपनी बनाना और इतनी सारी संपत्तियाँ जोड़ना आसान नहीं था, इसलिए इसे छोड़ने का मन नहीं किया। मैंने अपने उन बरसों के बारे में सोचा जब मैं रिक्शा चलाता था, मजदूरी करता था, किसी घोड़े की तरह काम में जोता जाता था, और इतनी सारी मेहनत के बाद अब मेरी अपनी कंपनी है, मेरे पास ग्राहकों का बहुत बड़ा तबका है और मुझे पक्की आमदनी हो रही है। अगर मैंने कंपनी छोड़ दी तो क्या मैं आमदनी का सारा जरिया नहीं गँवा बैठूँगा और तेजी से अपनी बचत खर्च कर खाली हाथ हो जाऊँगा? तो क्या आखिर में मुझे पहले जैसी कष्ट भरी जिंदगी जीनी पड़ेगी? लोग मेरी सराहना बिल्कुल नहीं करेंगे; मुझे नीची निगाह से देखेंगे। लेकिन कारोबार में दिन बिताकर पैसा कमाने से मुझे कर्तव्य निभाने का समय नहीं मिलता और मैं परमेश्वर के सामने शांत नहीं रह पाता। इस तरह की आस्था के साथ मैं कैसे सत्य हासिल कर सकता हूँ? फिर मैंने एक उपाय सोचा। मैं प्रशासन और प्रबंधन सँभालने के लिए कंपनी को दो प्रबंधकों के हाथ में सौंप दूँगा ताकि कंपनी की एजेंसी मेरे ही पास रहे। इस तरह उनका प्रबंधन लाभांश घटाने के बाद भी मुझे हर साल 16 लाख युआन मिलता रहेगा। तब मेरे पास पक्की आमदनी होगी और कर्तव्य निभाने के लिए समय भी मिलेगा। मैं एक तीर से दो निशाने लगा लूँगा, है ना? लेकिन बाद में मुझे चिंता हुई कि प्रबंधक मेरे खिलाफ एकजुट हो जाएँगे। तब आमदनी तो हाथ से जाएगी ही, मैं कंपनी का प्रारंभिक मूल्य भी गँवा बैठूँगा। क्या यह अपने ही घाव पर नमक छिड़कने जैसा नहीं होगा? यह विचार आने पर मुझे इस तरह कंपनी सौंपने की बात सहन नहीं हुई।
मैंने कंपनी सौंपने का मामला परमेश्वर के सामने रखकर प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! तुम्हारे प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए मैं अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहता हूँ, लेकिन अपनी कंपनी किसी और को सौंपने के ख्याल से मुझे सड़क पर आ जाने का डर है। मैं एक तरफ कुआँ तो दूसरी ओर खाई जैसी स्थिति में फँस गया हूँ और मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा है। अभ्यास का मार्ग खोजने में मेरा मार्गदर्शन करो।” इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहते हैं : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निराशा से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है? क्या तुम मेरे वचनों के प्रति समर्पण करोगे या उनसे विमुख रहोगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। मुझे लगा मानो मैं परमेश्वर का आमना-सामना कर रहा हूँ और वह मुझसे गंभीरता से पूछ रहा है कि क्या मैं धन-दौलत चुनूँगा या सत्य। परमेश्वर को मुझसे उचित जवाब की उम्मीद थी, लेकिन मैंने तो धन-दौलत चुना था। यह सोचकर मैं आत्मग्लानि से भर उठा। मैंने अपने कुछ भाई-बहनों के बारे में सोचा। परमेश्वर की इच्छा समझने के बाद उसका अनुसरण करने, कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया था। लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, मेरी आस्था सभाओं में जाने और परमेश्वर के वचन पढ़ने तक सीमित थी। मैंने सृजित प्राणी का कर्तव्य नहीं निभाया और मुझे लगा कि मैं अंतरात्मा और विवेक से खाली हूँ। मैं अपना कर्तव्य टालना नहीं चाहता था, लेकिन अपनी आमदनी का जरिया भी बंद नहीं करना चाहता था। मैं ठीक वैसा ही था, जैसा परमेश्वर ने खुलासा किया था : “इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को।” मैं दो नावों पर सवार होना चाहता था, लिहाजा मुझे कोई सत्य हासिल नहीं हुआ। आखिरकार मैं परमेश्वर के हाथों बहिष्कृत होकर रहूँगा। मुझे लूत की पत्नी के सदोम से भागने के प्रसंग का ख्याल आया। उसने धन-दौलत के लालच में पीछे मुड़कर देखा और नमक के खंभे में बदलकर शर्म का प्रतीक बन गई। मैं उससे कैसे अलग था? मैंने प्रभु यीशु के ये वचन याद किए : “जो कोई हल पर हाथ रखकर पीछे की ओर देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं” (लूका 9:62)। परमेश्वर मुझे अनगिनत संपदाएँ देकर मेरे खाने-पहनने का इंतजाम करता रहा, फिर भी मुझे धन-दौलत की भूख थी और मैं कर्तव्य नहीं निभा रहा था। मैं ऐसे साँप की तरह था जो हाथी को निगलने की कोशिश करता है और कभी संतुष्ट नहीं होता! मैं धन-दौलत के लिए संघर्ष करने और जिंदगी दाँव पर लगाने के लिए तैयार था, लेकिन सत्य के लिए कुछ भी देने का इच्छुक नहीं था। मैं परमेश्वर के राज्य के लायक बिल्कुल नहीं था। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जागो, भाइयो! जागो, बहनो! मेरे दिन में देरी नहीं होगी; समय जीवन है, और समय को थाम लेना जीवन बचाना है! वह समय बहुत दूर नहीं है! यदि तुम लोग महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते, तो तुम पढ़ाई कर सकते हो और जितनी बार चाहो फिर से परीक्षा दे सकते हो। लेकिन, मेरा दिन अब और देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। याद रखो! याद रखो! मैं इन अच्छे वचनों के साथ तुमसे आग्रह करता हूँ। दुनिया का अंत खुद तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो रहा है, और बड़ी-बड़ी आपदाएँ तेज़ी से निकट आ रही हैं। क्या अधिक महत्वपूर्ण है : तुम लोगों का जीवन या तुम्हारा सोना, खाना-पीना और पहनना-ओढ़ना? समय आ गया है कि तुम इन चीज़ों पर विचार करो। अब और संशय में मत रहो, और सच्चाई से भागो मत!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 30)। परमेश्वर के हर वचन ने मेरे दिल के तार झंझोड़ दिए और सचेत किया कि जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण है या दौलत। अंत के दिनों में परमेश्वर ने सत्य जारी करने और न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण किया है। अपना कर्तव्य निभाने, सत्य हासिल करने और परमेश्वर के हाथों पूर्ण होने का यह अच्छा अवसर था। अगर यह मौका गँवा दिया तो मैं जिंदगी भर पछताऊँगा। जब बड़ी-बड़ी आपदाएँ आएंगी तो फिर मेरी धन-संपदा का क्या उपयोग रह जाएगा। क्या मैं तब भी नहीं मरूँगा? उसके बाद मैंने कंपनी किसी और को सौंपने का मामला एक बार फिर परमेश्वर के सामने रखा और अपना मन पक्का कर परमेश्वर से रास्ता खोलने की प्रार्थना की।
मैंने सुना कि कंपनी सौंपने की बात पता लगने पर आपके ससुर ने भी खूब विरोध किया था? वह आग बबूला होकर मुझ पर चीखे : “जिस कंपनी को खड़ा करने में तुमने इतनी मेहनत की है, उसे यूँ ही किसी और को सौंप देना चाहते हो? यह कंपनी हर साल करीब बीस लाख युआन कमा रही है; मैं इसे यूँ ही किसी और को नहीं सौंपने दूँगा!” उनकी इस बात से मैं खासा सिहर गया। कारोबार मेरी उम्मीदों से बढ़कर हो रहा था और यह साल तो खास कर अच्छा रहा था, कोई नहीं जानता था कि चीजें कितनी अच्छी हो सकती हैं। अगर मैंने कारोबार यूँ ही किसी को सौंप दिया, और अपनी नगदी को खाने-पीने में खर्च कर बैठे, तब कौन दोस्त और परिवार वाले हमारी इज्जत करेंगे? मैंने कुछ शेयर अपने पास रखते हुए अपने दायित्व दूसरों को सौंपने की सोची ताकि हमें हर साल लाभांश से कुछ आमदनी होती रहे। मैंने यह प्रस्ताव अपनी पत्नी को सुनाया तो उसने कहा : “मैं तो कहती हूँ कि तुम सब कुछ छोड़ दो ताकि तुम्हारा मन शेयरों में न फँसा रहे। तभी तुममें सत्य खोजने की शक्ति रहेगी, तुम्हारे कर्तव्य निभाने में देरी नहीं होगी। जब आपदाएँ आएंगी तो पैसा कितना भी हो, हमें बचा नहीं पाएगा। तुम्हें यह बात साफ-साफ समझ लेनी चाहिए।” उसने आगे कहा : “अब हमारे लिए सबसे अहम बात यह है कि हम सत्य खोजने में ज्यादा समय दें। सत्य हासिल करना और अच्छे कर्म तैयार करना धन-दौलत जमा करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।” मेरे बच्चों ने भी हमारा साथ देकर कहा कि मुझे कंपनी किसी और को सौंप देनी चाहिए। कई दिनों तक मैं इस बारे में सोच-विचार करता रहा। मैं इस मामले को परमेश्वर के पास प्रार्थना में लेकर गया : “हे परमेश्वर! मैं यह सिद्धांत जानता हूँ कि कोई व्यक्ति अमीरी की जिंदगी जीएगा या गरीबी की, यह सब तुम्हारे हाथ में है, लेकिन अपनी धन-दौलत छोड़ना मेरे लिए वाकई बहुत कठिन है। मुझे आस्था दो ताकि मैं सही फैसला कर सकूँ।”
इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। परमेश्वर कहते हैं : “हर दिन तुम हिसाब लगाते हो कि मुझसे कुछ कैसे प्राप्त किया जाए। हर दिन तुम गणना करते हो कि तुमने मुझसे कितनी संपत्ति और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त की हैं। हर दिन तुम लोग खुद पर और अधिक आशीष बरसने की प्रतीक्षा करते हो, ताकि तुम लोग और अधिक मात्रा में, और ऊँचे स्तर की उन चीजों का आनंद ले सको, जिनका आनंद लिया जा सकता है। तुम लोगों के विचारों में हर क्षण मैं या मुझसे आने वाला सत्य नहीं, बल्कि तुम लोगों के पति या पत्नी, बेटे, बेटियाँ, और तुम लोगों के खाने-पीने की चीजें रहती हैं। तुम लोग यही सोचते हो कि तुम और ज्यादा तथा और ऊँचा आनंद कैसे पा सकते हो। लेकिन अपने पेट फटने की हद तक खाकर भी क्या तुम लोग महज लाश ही नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग खुद को बाहर से इतने सुंदर परिधानों से सजा लेते हो, तब भी क्या तुम लोग एक चलती-फिरती निर्जीव लाश नहीं हो? तुम लोग पेट की खातिर तब तक कठिन परिश्रम करते हो, जब तक कि तुम लोगों के बाल सफेद नहीं हो जाते, लेकिन मेरे कार्य के लिए तुममें से कोई बाल-बराबर भी त्याग नहीं करता। तुम लोग अपनी देह और अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार सक्रिय रहते हो, अपने तन को थकाते रहते हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट देते रहते हो—लेकिन मेरे इरादों के लिए तुममें से कोई एक भी चिंता या परवाह नहीं दिखाता। वह क्या है, जो तुम अब भी मुझसे प्राप्त करने की आशा रखते हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी सटीक स्थिति दिखा दी। धन-दौलत या कर्तव्य में से एक को चुनने में मैं हमेशा हिचकता था। परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की सोचने से पहले मैं हमेशा अपने सांसारिक फायदों की सोचता था। मेरी आस्था में बहुत घालमेल था और मैंने परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से नहीं खपाया। मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर पूरे दिल से काम करता है, अपनी जिंदगी भी बलिदान कर देता है। लेकिन मैं कभी पूरे मन से परमेश्वर को समर्पित नहीं रहा। मैंने उसकी इच्छा न तो कभी समझी, न ही उसका ख्याल रखा। मेरे लिए धन-दौलत किसी भी चीज से बढ़कर थी। मैंने देखा कि मैं निहायत स्वार्थी हूँ! मुझे प्रभु यीशु के वचन याद आए : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)। अगर मैंने सत्य हासिल नहीं किया या अपना भ्रष्ट स्वभाव नहीं बदला, तो इन चीजों के मायने क्या हैं? क्या मैं तब भी आखिर में नष्ट नहीं हो जाऊँगा? पैसा कितना भी हो, वह मेरा जीवन नहीं बचा सकता या मुझे उद्धार का मौका नहीं दिला सकता। मुझे एक मशहूर उद्यमी की याद आई जिसकी मिल्कियत दुनिया भर के देशों में फैली थी, और जिसकी कंपनियाँ उसे हर सेकंड अमीर से और अमीर बना रही थीं। वह गजब का धनी-मानी था, दुनिया घूम चुका था, सुख-साधनों से भरी जिंदगी के मजे लेता था, लेकिन उसने चाहे जितनी धन-दौलत कमाई, उसे खालीपन घेरे रहता था। वह जिंदगी में कोई मूल्य या मायने नहीं खोज सका, इसलिए उसने समुद्र में कूदकर जान दे दी। कोई धन-दौलत और नाम के पीछे जितना ज्यादा भागता है, वह आध्यात्मिक रूप से उतना ही ज्यादा परेशान और खोखला होता है, और अंत में इससे एक इंसान नष्ट हो जाता है। मुझे ख्याल आया कि पैसा और नाम कमाने के लिए मैं कैसे मशीन की तरह दिन भर बिना रुके काम किया करता था, और कैसे इस कारण मैं इतना बीमार पड़ गया। मैं ठीक से खा या सो नहीं सकता था, हमेशा दर्द झेलता रहता था। अंत के दिनों में इंसान के न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर आ चुका है, लेकिन मैं गरीबी के कुएँ में गिरने और सम्मान खोने के विचार से डर रहा था। मैं पैसे का मोह नहीं छोड़ पा रहा था। मैंने चाहे जितना पैसा कमाया, अगर मैंने सत्य के साथ खुद को बचाए जाने का मौका भी गँवा दिया, तो पैसा कितना भी हो, इसके क्या मायने रह जाएँगे? अंत के दिनों में परमेश्वर ने सत्य जारी करने और न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण किया है। परमेश्वर चाहता है कि उसका सुसमाचार फैलाने के लिए अधिक लोग आगे आएंगे ताकि जो उसके प्रकट होने के लिए तड़प रहे हैं, वे उसकी वाणी सुन सकें और उसके सृष्टिकर्ता रूप के सामने लौट सकें। यही नहीं, परमेश्वर अपेक्षा करता है कि उसके कार्य के जरिए हम स्वच्छ होकर बदल जाएँगे और अंत में हम उसके हाथों बचा लिए जाएँगे। लेकिन मैं परमेश्वर की सबसे अहम इच्छा का महत्व न समझकर अपने पैसे से चिपका रहा। मैं इतना मूर्ख और अंधा था! मुझे अगर कुछ करना था तो बस यह कि परमेश्वर के लिए खुद को खपा दूँ और सत्य खोजूँ। बस यही मायने रखता है। मैंने अपने ससुर के कड़े विरोध को अनदेखा कर अपनी कंपनी अपने भाई के नाम कर दी।
उसके बाद से मैंने कंपनी के प्रबंधन की बिल्कुल भी फिक्र नहीं की। इतने बरसों का बोझ और दबाव अचानक हट गया, मेरी जिंदगी कुछ सामान्य हुई, और मैं जिन बीमारियों से जूझ रहा था, वे धीरे-धीरे लेकिन चमत्कारिक रूप से ठीक होती गईं। यह वास्तव में परमेश्वर का अनुग्रह था। मैं सुसमाचार कार्यकर्ताओं की टोली में शामिल हो गया और मैंने परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने और इसकी गवाही देने में दूसरों के साथ मिल-जुलकर काम किया। इस तरह जीवन जीकर मैं तृप्त हो गया। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के जरिए, बाद के अनुभवों में मैंने साफ देखा कि धन-दौलत न छोड़ पाने की वजहें मेरी आस्था में निहित थीं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “‘पैसा दुनिया को नचाता है’ यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है। यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है; तुम कह सकते हो, यह एक रुझान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है, जिन्होंने पहले तो इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? ... शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है? ... तो क्या जब शैतान द्वारा तुम्हें गुमराह और भ्रष्ट किया जाता है, तो तुम इसे महसूस कर पाते हो? तुम नहीं कर पाते। अगर तुम शैतान को अपने सामने खड़ा नहीं देख सकते, या यह महसूस नहीं कर सकते कि यह शैतान है जो छिपकर कार्य कर रहा है, तो क्या तुम शैतान की दुष्टता देख पाओगे? क्या तुम जान पाओगे कि शैतान मानवजाति को कैसे भ्रष्ट करता है? शैतान हर समय और हर जगह मनुष्य को भ्रष्ट करता है। शैतान मनुष्य के लिए इस भ्रष्टता से बचना असंभव बना देता है और वह इसके सामने मनुष्य को असहाय बना देता है। शैतान अपने विचारों, अपने दृष्टिकोणों और उससे आने वाली दुष्ट चीज़ों को तुमसे ऐसी परिस्थितियों में स्वीकार करवाता है, जहाँ तुम अज्ञानता में होते हो, और जब तुम्हें इस बात का पता नहीं चलता कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है। लोग इन चीज़ों को स्वीकार कर लेते हैं और इन पर कोई आपत्ति नहीं करते। वे इन चीज़ों को सँजोते हैं और एक खजाने की तरह सँभाले रखते हैं, वे इन चीज़ों को अपने साथ जोड़-तोड़ करने देते हैं और उन्हें अपने साथ खिलवाड़ करने देते हैं; और इस तरह लोग शैतान के सामर्थ्य के अधीन जीते हैं और अनजाने ही शैतान की आज्ञा का पालन करते हैं, और शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना और अधिक गहरा होता जाता है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचनों ने आज के समाज की स्थिति और मेरी सच्ची दशा को उजागर कर दिया। बचपन से ही ऐसे शैतानी जहर ने मुझ पर गहरा असर डाला था, जैसे “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है,” “पैसे वाला आदमी बिना पैसे वाले से ज्यादा सम्मान पाता है,” “पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं” जिनकी वजह से मैं पैसे को किसी भी चीज से ज्यादा अहमियत देने लगा। इनके कारण मैं सोचने लगा कि पैसा होना सब कुछ है, अगर आपके पास पैसा है तो आप आराम से जीते हुए सिर ऊँचा करके चल सकते हैं, आप जहाँ भी जाएँगे आपको समर्थन, सम्मान और सराहना मिलेगी, और जीने का यही तरीका सम्मानजनक और सार्थक है। मैं सोचता था कि पैसों के बिना लोग आपका अनादर और उत्पीड़न करेंगे, इसलिए मुझे लगता था कि पैसा ही वह लक्ष्य है जिसका पीछा किया जाना चाहिए। शुरुआत में, पैसा कमाने और ग्राहकों का दिल जीतने के लिए मैंने अपना दिमाग मथ डाला था, चापलूसी और चिकनी-चुपड़ी बातों का सहारा लिया और बिना रुके काम करता रहा। इससे मैं थक कर चूर हो गया और बीमार भी पड़ गया। मैं एक दिन के लिए भी आराम नहीं कर सका, लिहाजा मेरे शरीर की दुर्गति हो गई। मुझे पेट में और कमर में ऊपर से नीचे तक हर तरह की दिक्कतें रहने लगीं, जिससे मेरी जिंदगी इतनी दर्द भरी हो गई कि मैं ठीक से खा या सो भी नहीं पाता था। लेकिन इस हालत में भी मैं पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत करता रहता। मैं जीवन बचाने के शैतानी नियमों के अनुसार चल रहा था और निहायत ही स्वार्थी और लालची हो गया था। मैं पैसे का गुलाम बन चुका था। शैतान ने मुझे पूरी तरह भ्रष्ट बनाने के लिए पैसे और नाम का इस्तेमाल किया। कर्तव्य निभाने के लिए मेरा अपनी कंपनी और पैसे को छोड़ना परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन और मार्गदर्शन का ही नतीजा था। मुझे बचाने के लिए मैं सच में परमेश्वर का आभारी हूँ। मुझे इस दुर्लभ अवसर को सँजोकर परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने के लिए अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़े जिन्होंने मुझे वाकई प्रेरित किया। परमेश्वर कहते हैं : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। “इस समय तुम लोगों के जीवन का हर दिन निर्णायक है, और यह तुम्हारे गंतव्य और भाग्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, अतः आज जो कुछ तुम्हारे पास है, तुम्हें उससे आनंदित होना चाहिए और गुजरने वाले हर क्षण को सँजोना चाहिए। ख़ुद को अधिकतम लाभ देने के लिए तुम्हें जितना संभव हो, उतना समय निकालना चाहिए, ताकि तुम्हारा यह जीवन बेकार न चला जाए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों ने और भी स्पष्ट कर दिया कि मेरा कारोबार छोड़ने का फैसला करना, परमेश्वर का अनुसरण करना और कर्तव्य निभाना सही रास्ता है और यही जीने का सबसे सही और सार्थक तरीका है। अब आखिरकार मैं समझ चुका हूँ आस्था और कर्तव्य स्वाभाविक और सही होते हैं और ये किसी भी व्यक्ति के जीवन के लक्ष्य होते हैं। जीने का सबसे सही और सार्थक तरीका परमेश्वर की इच्छा का पालन करना है, वह इन्हें किसी भी और चीज से ज्यादा याद रखकर आशीष देगा। अब मेरे कर्तव्य में सत्य का अनुसरण करने के लिए ज्यादा अवसर नहीं हैं। मुझे हर दिन को सँजोना होगा, परमेश्वर के वचन ज्यादा पढ़कर सुसमाचार का प्रचार करना होगा, और मेरे पास जो भी समय बचा है, उसमें परमेश्वर के प्रेम का कर्ज चुकाने और उसके दिल को सुकून पहुँचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
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