दंभ से बच निकलना आसान नहीं होता

19 जुलाई, 2022

हुआंऐ, जापान

जुलाई 2020 में, वीडियो कार्य की जरूरतों के कारण, मेरे पर्यवेक्षक ने मुझे वीडियो बनाने का काम सौंपा। तब, मैं बहुत खुश थी, लेकिन मुझे यह एहसास भी हुआ कि अपने नए काम में मेरे सामने कुछ समस्याएँ और दिक्कतें आएँगी, तो मुझे न समझ आने पर सीखना और पूछना होगा। लेकिन वीडियो बनानेवाली बहन लियू ने मुझे अपना काम सौंपते समय, कहा कि उसके नए कर्तव्य में काम का भारी बोझ है और वह मेरा काम जल्द निपटाना चाहती है। मैं समझ गई वह जाने के लिए मेरे इस काम में महारत हासिल करने तक इंतजार नहीं करना चाहती थी। मैं परेशान हो गई। "यह काम बहुत जटिल है। क्या मैं एकाएक यह सारा काम सँभाल सकूँगी?" फोन रखने से पहले, बहन लियू ने पूछा कि मुझे कोई दिक्कत तो नहीं। मैं अपनी चिंताएं बताने ही वाली थी, मगर फिर मैंने सोचा, "मैं इससे अभी-अभी मिली हूँ, पहली छाप अहम होती है। वह अपना नया काम संभालने की जल्दी में है, मैं उसे नहीं रोक सकती। काम शुरू करने से पहले ही अगर मैं उसे अपनी दिक्कतें और जरूरतें बताऊँ, तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी? क्या उसे नहीं लगेगा कि एक बेवकूफ उसका काम संभालने चली है, और मैं उस काम के लिए गलत इंसान हूँ?" इसलिए, अपनी इच्छा के विरुद्ध मैंने कहा, "कोई सवाल नहीं हैं।" यह साबित करने के लिए कि मुझमें काबिलियत है, और मैं समस्याएँ खोज सकती हूँ, मैंने उसकी बताई हुई व्यावसायिक प्रक्रियाओं के बारे में कुछ सुझाव भी दे डाले। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपनी कमियाँ छिपाने के लिए अपनी खूबियों का इस्तेमाल कर रही थी। अगर उसने गलती से सोच लिया कि मुझमें अच्छी काबिलियत है और उसने सिखाने का समय घटा दिया, और इससे काम में मेरे धीरे-धीरे महारत हासिल करने से काम पिछड़ गया तो? फिर मैंने सोचा यह बात मैं बोल चुकी हूँ, ये शब्द वापस नहीं ले सकती। भविष्य में समस्याएँ होने पर मैं उससे मदद माँग सकती हूँ।

अगले दिन, बहन लियू ने मुझे बताया कि भविष्य में, मेरे काम में बहन वांग मेरी सहभागी होगी। उसने कहा कि वीडियो बनाने का काम शुरू किए हुए बहन वांग को महीना भर भी नहीं हुआ है, उसने तेजी से सीख लिया, अब वह अपना कर्तव्य स्वतंत्र रूप से निभा सकती है। फिर, जब मैंने बहन वांग से काम के बारे में चर्चा की, तो उसने मुझे काम का क्रम बड़ी कुशलता से समझाया, काम बाँटने, सहयोग करने, आदि-आदि के बारे में चर्चा की। लगा उसे अपने काम के बारे में सब-कुछ मालूम है। मुझे मालूम था कि मैं बहन वांग से कम काबिल हूँ, लेकिन बहन लियू मेरे और बहन वांग के बीच के अंतर को न देख सके, इसके लिए मैं उसके इर्द-गिर्द बेहद सतर्क रहती, अपनी कमियाँ उजागर करने को लेकर परेशान रहती। जब मेरे सामने ऐसी समस्याएं आतीं जिन्हें मैं नहीं सुलझा पाती, तो मैं उससे पूछने के बजाय ज्यादा-से-ज्यादा जानकारी पढ़कर खुद सुलझाने की कोशिश करती। कड़ी मेहनत के बावजूद, मेरी प्रगति धीमी थी। जब अगुआ हमारा काम देखने आईं, तो बहुत-सी बारीकियाँ ऐसी थीं, जिन्हें मैं नहीं समझ पाई। बहन वांग ने अगुआ के लगभग सारे सवालों के जवाब दे दिए। इससे मैं उदास हो गई, लगा मैं बेकार हूँ। जल्दी ही, एक हफ्ता गुजर गया, और मेरे स्वतंत्र रूप से काम न कर पाने के कारण, बहन लियू अपना नया काम शुरू नहीं कर पाई थी। इससे मुझे और भी ज्यादा शर्मिंदगी हुई। लेकिन मैंने यह भी सोचा, अगर उसे पता चल गया कि तेजी से न सीख पाने के कारण मैं आसानी से उदास हो जाती हूँ, तो शायद वह यह सोचे कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है, मेरी काबिलियत कम है और मैं नाकाबिल हूँ। उस दौरान, मुझे लगा मैं सूखी घास के ढेर में छिपी हुई हूँ। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बुरी हालत कोई देखे। बस जितनी जल्दी हो सके, मैं सब-कुछ जानकर समूह में काम शुरू कर देना चाहती थी, ताकि आखिरकार बहन लियू जा सके, और मुझे हर दिन उसके सामने शर्मिंदा न होना पड़े। लेकिन मेरा विकास अब भी बहुत धीमा था, मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था। दुखी होकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना और याचना की, और मदद की विनती की ताकि खुद को जान सकूँ। एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह अंश पढ़ा, "जब लोग हमेशा मुखौटा लगाए रहते हैं, हमेशा खुद को अच्छा दिखाते हैं, हमेशा ऐसा ढोंग करते हैं जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें, और अपने दोष या कमियाँ नहीं देख पाते, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह एक दुष्ट स्वभाव है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत')। "लोग स्वयं सृष्टि की वस्तु हैं। क्या सृष्टि की वस्तुएँ सर्वशक्तिमान हो सकती हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकती हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकती हैं, हर चीज समझ सकती हैं, हर चीज की असलियत देख सकती हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकती हैं? वे ऐसा नहीं कर सकतीं। हालांकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे और हैसियत वाले लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी असाधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या ऊँची हस्ती के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, 'जल्दी ही, जल्दी ही!' लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, 'मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!' यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, उन्होंने अपना सारा विवेक खो दिया है! वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, ऊँचे व्यक्ति, कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक कमजोरियों, कमियों, अप्रबुद्धताता, मूर्खता और सामान्य मानवता के भीतर समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को इन्हें देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'अपनी आस्था में सही पथ पर होने के लिए आवश्यक पाँच अवस्थाएँ')। परमेश्वर के वचनों ने मेरी हालत का सटीक खुलासा किया। काम संभालने के बाद, मैं बस यही सोचती थी कि काम पर जल्द-से-जल्द महारत कैसे हासिल करूँ, ताकि सभी देख सकें कि मेरी काबिलियत अच्छी है और मैं काम कर सकती हूँ। काम संभालने के बाद, मैंने जाना कि बहन लियू जाने की जल्दी में थी। जाहिर है, मैं इतनी छोटी अवधि में इतने सारे कौशल और प्रक्रियाओं पर महारत हासिल नहीं कर सकती थी, लेकिन मैं इतनी-सी बात भी कहने की हिम्मत नहीं कर पाई कि "मैं इतना सारा याद नहीं रख सकती, आप कुछ और दिन मुझे सिखाएं, तो ठीक रहेगा।" मैंने तिकड़में भी कीं, मुझमें व्यावसायिक काबिलियत है, यह साबित करने के लिए, बहन को जान-बूझ कर सुझाव दिए। मैं नहीं चाहती थी कि बहन लियू मुझे बहन वांग से हीन समझे, तो मैंने ज्यादा से ज्यादा अपनी असलियत छिपाने की कोशिश की, और बहन लियू के इर्द-गिर्द सतर्कता बरतती, क्योंकि मुझे डर था कि गलती से अपनी कमियाँ उजागर न कर दूँ। साथ ही, मुझे लगा यह समय काम संभालने का है, तो मेरे कामकाज पर अगुआ और भाई-बहन, सभी की नजर थी, और एक बार मेरी काबिलियत और असली आध्यात्मिक कद उजागर हो गया, तो लोग मुझे नीची नजर से देखेंगे। अगर अगुआ ने देख लिया कि मुझमें काबिलियत नहीं है, मैं वीडियो बनाने लायक नहीं हूँ और मुझे निकाल दिया, तो बड़ी शर्मिंदगी होगी। इसलिए सवाल और दिक्कतें होने पर भी मैं पूछना नहीं चाहती थी। मैं इस तरह हमेशा अपनी असलियत छिपाती रही, तो मैं तरक्की कैसे कर सकती थी? जब लोग नया काम शुरू करते हैं, तो सब-कुछ अनजाना होता है, इसलिए बहुत-सी ऐसी चीजों का होना आम होता है, जिन्हें वे नहीं समझ पाते। ऊपर से, मेरी कार्य-क्षमता उतनी अच्छी नहीं थी, इसलिए मुझे सवाल पूछ कर ज्यादा खोजना चाहिए था, लेकिन मैं बहुत ज्यादा घमंडी थी। मैं साबित करना चाहती थी कि अपने दम पर ठीक हूँ, काम कर सकती हूँ, इसलिए मैंने हमेशा चीजों को समझ लेने का नाटक किया और असलियत छिपाई, जिससे जो चीजें मुझे समझनी थीं, उनमें रुकावट पैदा हो गई, काम सौंपने में विलंब हो गया और बहन लियू के लिए जाना नामुमकिन हो गया। मैंने जो किया वह दरअसल नुकसानदेह था। मैंने हमारे काम में देर की और एक बार भी दोषी महसूस नहीं किया, बस परेशान रही कि लोग मेरी असली योग्यता पहचान जाएँगे, या मुझे नीची नजर से देखा जाएगा। मैं पूरी तरह से गलत थी।

फिर मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास का एक मार्ग मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। जीवन में प्रवेश करने के लिए खुलकर बोलना सीखना सबसे पहला कदम है, और यह पहली बाधा है, जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक: दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना, परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जांच करेगा बल्कि अन्य लोग भी यह देख पाएंगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना किसी बंधन या पीड़ा के जिओगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे। संगति करते समय कैसे खुलना है, यह सीखना जीवन में प्रवेश करने का पहला कदम है। इसके बाद, तुम्हें अपने विचारों और कार्यों का विश्लेषण करना सीखने की आवश्यकता है, ताकि यह देख सको कि उनमें से कौन-से गलत हैं और किन्हें परमेश्वर पसंद नहीं करता, और तुम्हें उन्हें तुरंत उलटने और सुधारने की आवश्यकता है। इन्हें सुधारने का मकसद क्या है? इसका मकसद यह है कि तुम अपने भीतर उन चीजों को अस्वीकार करो जो शैतान से संबंधित हैं और उनकी जगह सत्य को लाते हुए, सत्य को स्वीकार करो और उसका पालन भी करो। पहले, तुम हर काम अपने चालाक स्वभाव के अनुसार करते थे, जो कि झूठा और धोखेबाज है; तुम्हें लगता था कि तुम झूठ बोले बिना कुछ नहीं कर सकते। अब जब तुम सत्य समझने लगे हो, और शैतान के काम करने के ढंग से घृणा करते हो, तो तुमने उस तरह काम करना बंद कर दिया है, अब तुम ईमानदारी, पवित्रता और आज्ञाकारिता की मानसिकता के साथ कार्य करते हो। यदि तुम अपने मन में कुछ भी नहीं रखते हो, दिखावा नहीं करते हो, ढोंग नहीं करते हो, मुखौटा नहीं लगाते हो, यदि तुम भाई-बहनों के सामने अपने आपको खोल देते हो, अपने अंतरतम विचारों और सोच को छिपाते नहीं हो, बल्कि दूसरों को अपना ईमानदार रवैया दिखा देते हो, तो फिर धीरे-धीरे सत्य तुम्हारे अंदर जड़ें जमाने लगेगा, यह खिल उठेगा और फलदायी होगा, धीरे-धीरे तुम्हें इसके परिणाम दिखाई देने लगेंगे। यदि तुम्हारा दिल ईमानदार होता जाएगा, परमेश्वर की ओर उन्मुख होता जाएगा और यदि तुम अपने कर्तव्य का पालन करते समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना जानते हो, और इन हितों की रक्षा न कर पाने पर जब तुम्हारी अंतरात्मा परेशान हो जाए, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तुम पर सत्य का प्रभाव पड़ा है और वह तुम्हारा जीवन बन गया है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'जो सत्य का अभ्यास करते हैं केवल वही परमेश्वर का भय मानने वाले होते हैं')परमेश्वर के वचन पढ़कर, मुझे एहसास हुआ कि अगर आपमें कमियाँ या भ्रष्ट स्वभाव है, और आप दूसरों को भ्रम में डालने के लिए अपनी असलियत छिपाते हैं, तो यह कपट और छल है, और शैतानी प्रकृति के कारण करते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं, तो कभी भी सत्य में प्रवेश नहीं कर सकते। मुझे अपने अच्छे और बुरे दोनों पक्षों के बारे में पूरा प्रकट और खुला होना चाहिए, लोगों और परमेश्वर के साथ ईमानदार होना चाहिए। इस तरह, मेरा दिल और भी ज्यादा ईमानदार बन जाएगा, मैं परमेश्वर की मौजूदगी में जी सकूंगी, समय के साथ मैं अपनी समस्याओं और भटकाव से निकल सकूँगी, और मैं शोहरत और रुतबे के पीछे भागने के गलत रास्ते पर जाने से बच सकूँगी। अभ्यास का मार्ग मिल जाने के बाद, मैंने बहन लियू से अपनी हालत के बारे में खुलकर बात की। मेरे खुल जाने के बाद, बहन लियू ने एकाएक कहा कि उसे भी एहसास हुआ है कि उसने अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाईं। वह सिर्फ अपना नया कार्यभार संभालने के बारे में ही सोच रही थी, इसलिए उसने उचित ढंग से काम नहीं सौंपा था। उसने यह भी कहा कि वह मेरे काम समझ लेने के बाद ही जाएगी। उसकी इस बात ने मेरे दिल को छू लिया। मुझे अनुभव हुआ कि खुलकर दूसरों को अपनी कमियाँ और खामियाँ बता देने से, आपको भाई-बहनों की मदद और सहारा मिल सकता है, आप अपने कार्य में भाई-बहनों के साथ सहभागिता कर सकते हैं, और उससे भी बढ़कर, आप एक ईमानदार और आज्ञाकारी रवैये से काम कर सकते हैं। यह है परमेश्वर की मौजूदगी में जीवन जीना और परमेश्वर के आदेश के प्रति जिम्मेदार होना, जिससे परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती है। इसके बाद, मैंने बहन को सच्चाई से बता दिया कि मैं काम को कितना समझ पाई थी, और उसने सिलसिलेवार ढंग से मेरी मदद की, जिससे मैं बहुत-कुछ सीख पाई। काम करना मेरे लिए मुश्किल क्यों था, मैं इसका कारण भी समझ पाई, दरअसल मैं सारे काम एक-साथ समझ कर उन पर महारत हासिल कर, यह साबित करना चाहती थी कि मुझमें काम करने की क्षमता है, इस कारण काम को प्राथमिकता नहीं दे पाई और तरक्की में पिछड़ गई। इसके बाद, मैंने काम को श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकता के अनुसार व्यवस्थित कर दिया, ताकि एक लक्ष्यबद्ध और संगठित तरीके से काम कर सकूँ, और फिर मैं शीघ्र काम समझ गई। इस अनुभव से, मैंने सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों पर चलने की मिठास का स्वाद चखा। मैंने अपने कर्तव्य में सही इरादे और एक ईमानदार रवैया होने का महत्व भी समझा। सिर्फ इसी तरह मुझे परमेश्वर का मार्गदर्शन और आशीष मिल सकेंगे। इसके बाद, जब मेरा सामना ऐसी समस्याओं से हुआ जिन्हें मैं नहीं समझ सकी, तो मैंने हल ढूँढ़ने के लिए आगे बढकर भाई-बहनों से चर्चा की। कुछ समय तक इस प्रकार अभ्यास करने के बाद, मुझे लगा शोहरत और रुतबे की मेरी आकांक्षा कम हो चुकी है, खुल जाने और ईमानदार इंसान होने के अभ्यास में मैं थोड़ा प्रवेश कर पाई थी। मगर जल्दी ही, परमेश्वर ने मेरा खुलासा करने के लिए एक माहौल की व्यवस्था की, और अपने बारे में मेरी राय बदल गई।

करीब एक महीने बाद, काम के लिए मेरे योग्य न होने, और वीडियो कार्य के घटने पर कार्मिकों की संख्या कम हो जाने के कारण, अगुआ ने मुझे नए सदस्यों के सिंचन का काम सौंप दिया। इससे मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, जिन भाई-बहनों के साथ मैं नए सदस्यों का सिंचन किया करती थी, मैं उनके सामने नहीं जाना चाहती थी। इसके बजाय, चाहती थी कि सुसमाचार का प्रचार करूँ, लेकिन लौटकर नए सदस्यों का सिंचन करना टल नहीं सकता था। मैं एक पिचकी हुई गेंद की तरह हो गई, सिर झुकाए, उठने में नाकाम। तब, मेरे पास की एक बहन ने देखा कि मेरी हालत ठीक नहीं है, उसने मुझे आज्ञाकारिता के बारे में परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा और कहा कि वह मेरे साथ बात करना चाहती है। मैं फौरन सतर्क हो गई। "क्या बहन ने देख लिया था कि मेरी हालत ठीक नहीं है? अगर वह जानती हो कि मुझे वीडियो समूह से निकाला गया है, तो क्या वह मुझे नीची नजर से देखेगी? अगर उसे मालूम हो कि मैं अपनी छवि न छोड़ पाने के कारण नकारात्मक हूँ, तो क्या वह सोचेगी कि मैंने सत्य की वास्तविकता हासिल किए बिना ही बरसों परमेश्वर में आस्था रखी है? कहीं वह यह तो नहीं सोचेगी कि मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया?" इसलिए, मैंने विनम्रता से अपना बचाव किया, "अब वीडियो कार्य खत्म हो रहा है, तो देर-सवेर मेरा तबादला हो जाएगा। बहन झाऊ का भी वापस तबादला हो गया था।" मैंने बहन झाऊ का जिक्र इसलिए किया कि वह मूल रूप से सिंचन कार्य की देखरेख करती थी, और अगर वह वापस आ गई है, तो मेरा वापस आना भी सामान्य बात थी। यह सुनकर, बहन ने कुछ और नहीं पूछा। मैंने सोचा कि इस पड़ाव पर, मैं कमजोर नहीं पड़ सकती। मुझे दृढ़ होकर सक्रियता से अपना कर्तव्य निभाना होगा, ताकि सभी लोग देख सकें कि तबादले से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा और मैं इसमें समर्पित हो सकती हूँ। मैंने अपनी असलियत छिपाने और दृढ़ होने का नाटक करने की भरसक कोशिश की, लेकिन मैं वास्तव में परेशान और उदास थी। कभी-कभार बहन की मदद ठुकराने की बात सोचकर मुझे पछतावा होता, "उसने बड़े प्यार से मदद की पेशकश की, तो मैंने अपनी छवि बचाए रखने के लिए उसे क्यों ठुकरा दिया? मैंने खुलकर उससे बात क्यों नहीं की?"

फिर, एक बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा और गहराई से मैंने अपनी स्थिति को जाना। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "भ्रष्ट मनुष्य छद्मवेश धारण करने में कुशल होते हैं। चाहे वे कुछ भी करें या किसी भी तरह कीभ्रष्टता प्रदर्शित करें, वे हमेशा छद्मवेश धारण करते ही हैं। अगर कुछ गलत हो जाता है या वे कुछ गलत करते हैं, तो वे दूसरों पर दोष मढ़ना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अच्छी चीजों का श्रेय उन्हें मिले और बुरी चीजों के लिए दूसरों को दोष दिया जाए। क्या वास्तविक जीवन में इस तरह का छद्मवेश बहुत अधिक धारण नहीं किया जाता? ऐसा बहुत होता है। गलतियाँ करना या छद्मवेश धारण करना : इनमें से कौन-सी चीज स्वभाव से संबंधित है? छद्मवेश धारण स्वभाव का मामला है, इसमें अहंकारी स्वभाव, बुराई और विश्वासघात शामिल होता है; लोग इस चीज से घृणा करते हैं और परमेश्वर को भी इससे घृणा है। छद्मवेश धारण करने में क्या समस्या है? वास्तव में, जब तुम छद्मवेश धारण करते हो, तो हर कोई समझता है कि क्या हो रहा है, लेकिन तुम्हें लगता है कि दूसरे इसे नहीं देखते, और तुम अपनी इज्जत बचाने और इस प्रयास में कि दूसरे सोचें कि तुमने कुछ गलत नहीं किया, बहस करने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? दूसरे इस बारे में क्या सोचते हैं? वे कैसा महसूस करते हैं? ऊबा हुआ और विरक्त। यदि कोई गलती करने के बाद तुम उसे सही तरह से ले सको, और हर किसी को उसके बारे में बात करने, चर्चा करने, समझने और मुक्त रूप से उसका मूल्यांकन करने दे सको, और उसके बारे में खुलकर उसका विश्लेषण कर सको, तो तुम्हारे बारे में सभी की राय क्या होगी? वे कहेंगे कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो, क्योंकि तुम्हारा दिल परमेश्वर के प्रति खुला है। तुम्हारे कार्यों और व्यवहार के माध्यम से वे तुम्हारे दिल को देख पाएँगे। लेकिन अगर तुम खुद को छिपाने या हर किसी को धोखा देने की कोशिश करते हो, तो लोग तुम्हें तुच्छ समझेंगे और कहेंगे कि तुम मूर्ख और नासमझ व्यक्ति हो। यदि तुम ढोंग करने या बहाने बनाने की कोशिश न करो, यदि तुम अपनी गलतियाँ स्वीकार सको, तो सभी लोग कहेंगे कि तुम ईमानदार और बुद्धिमान हो। और तुम्हें बुद्धिमान क्या चीज बनाती है? सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने तुम को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार, और मनुष्य की भ्रष्टता के असली चेहरे को पहचान जाते हो, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही तुम दूसरों की गलतियों पर शिकंजा कसते हो, बल्कि दोनों को संतुलित ढंग से देखते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और बेवकूफी की बातें नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं और वे हमेशा पर्दे के पीछे चोरी-छिपे अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर देर तक बात किया करते हैं। देखकर घृणा होती है। वास्तव में, तुम जो कुछ भी करते हो, वह दूसरों पर तुरंत जाहिर हो जाता है, फिर भी तुम खुल्लम-खुल्ला वह काम करते रहते हो। लोगों को यह मसखरी का प्रदर्शन लगता है। क्या यह बेवकूफी नहीं है? यह सच में बेवकूफी ही है। मूर्ख लोगों में कोई अक्ल नहीं होती। वे कितने भी उपदेश सुन लें, फिर भी उन्हें न तो सत्य समझ में आता है, न ही वे चीजों की असलियत देख पाते हैं। वे हमेशा अहंकार से भरे रहते हैं और सोचते हैं कि वे बाकी सबसे अलग और अधिक सम्माननीय हैं; यह अहंकार और आत्मतुष्टि है, यह मूर्खता है" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत')। मैं ही वह बेवकूफ थी, जिसका खुलासा परमेश्वर के वचनों में हुआ था, हमेशा एक जोकर की तरह सबके सामने नाटक करनेवाली। उन दिनों, अपने तबादले के कारण मुझे लगा मैंने शोहरत और रुतबा गँवाकर गलतफहमियाँ और नकारात्मकता पैदा कर ली है। बहन मेरी मदद करना चाहती थी, लेकिन उससे मिलकर सत्य खोजने के लिए मैंने खुलकर बात नहीं की ताकि अपनी समस्याएँ और तकलीफें दूर कर सकूँ। इसके बजाय, मैंने तुरंत अपना बचाव शुरू कर दिया। मुझे लगा वह जान गई है कि मैं नकारात्मक और अवज्ञाकारी हूँ, तो मैं अपनी कमजोरियाँ छिपाकर खुद को अच्छा दिखाने के तरीके ढूँढ़ने लगी। मैं बहुत छली थी! हालाँकि ऐसा करके मैंने अपनी छवि और रुतबा तो बचा लिया, लेकिन बहन के साथ छल किया, मैं उसका समर्थन और सहायता नहीं ले पाई। मेरी नकारात्मक हालत समय रहते ठीक नहीं हो पाई, मैं अंधकार और पीड़ा में जीने लगी। क्या यह बेवकूफी नहीं थी? मैंने ऐसा खुद के साथ किया, और मुझे कष्ट मिलना ही चाहिए था! बरसों परमेश्वर में विश्वास रखकर भी, मेरा भ्रष्ट स्वभाव ज्यादा नहीं बदला था, और जब भी मेरी छवि और रुतबे की बात आती, मैं अपनी असलियत छिपा लेती। मैंने भाई-बहनों से कभी मन की बात नहीं कही, और शैतान के बंधन में एक कैदी की तरह हर दिन अंधकार में बिताने लगी। मैं परेशान और कमजोर थी और निकल नहीं पा रही थी। मेरी हालत दयनीय थी। मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की। "हे परमेश्वर, मैं सराहना पाने के लिए अपनी असलियत छिपाए रहती हूँ, और दुख में जीती हूँ। मेरी मदद करो, मेरी अगुआई करो, ताकि मैं खुद को समझ कर खुद से घृणा कर सकूं, और सच्चा प्रायश्चित कर बदल सकूँ।"

एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसमें मसीह-विरोधियों का खुलासा किया गया था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य निभा रहे हों, वे यह छाप छोड़ने की कोशिश करेंगे कि वे कमजोर नहीं हैं, कि वे हमेशा मजबूत, आत्मविश्वास से भरे हुए रहते हैं, कभी नकारात्मक नहीं होते। वे कभी अपना असली आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति अपना असली रवैया प्रकट नहीं करते। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते? क्या वे वाकई मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता नहीं भरी है? बिलकुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और सम्मानजनक पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपनी साख, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर करेंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट करेंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए वे अपनी कमजोरी, विद्रोह और नकारात्मकता को सख्ती से अपने तक ही रखना पसंद करते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिलकुल नहीं बदले, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे अपने भीतर किसी भ्रष्ट स्वभाव का होना स्वीकार करते हैं, एक सामान्य व्यक्ति होना जो छोटा और महत्वहीन है, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी श्रद्धा और आदर खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, कुछ भी हो जाए, वे बस लोगों के सामने नहीं खुलेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करते हैं, और कभी हार नहीं मानते। ... वे कभी भी भाई-बहनों के सामने अपनी कमज़ोरियों को नहीं बताते हैं, न ही वे कभी अपनी कमियाँ और दोष पहचानते हैं; इसके बजाय, वे उन्हें ढँकने की पूरी कोशिश करते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, 'तुमने इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास किया है, क्या तुम्हें कभी परमेश्वर के बारे में कोई संदेह हुआ है?' वे उत्तर देते हैं, 'नहीं'। उनसे पूछा जाता है, 'तुमने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया है, तुमने इतना कुछ दिया है और खुद को इतना अधिक खपाया है, क्या तुम्हें कभी इस पर कोई अफ़सोस हुआ है?' वे उत्तर देते हैं, 'नहीं।' 'जब तुम बीमार और दुखी थे, तो क्या तुम्हें घर की याद सताती थी?' और वे जवाब देते हैं, 'कभी नहीं।' तो तुम देखते हो, मसीह-विरोधी खुद को बहुत पक्के, दृढ़-इच्छाशक्ति वाले, अहं का त्याग करने और खुद को खपाने में सक्षम व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो बस निर्दोष, त्रुटिरहित या समस्याविहीन हो। अगर कोई उनकी भ्रष्टता और कमियों की ओर इशारा करता है, उनके साथ किसी सामान्य भाई या बहन के रूप में बराबरी का व्यवहार करता है, और उनके साथ खुलकर सहभागिता करता है, तो वे मामले को कैसे देखते हैं? वे स्वयं को सच्चा और सही ठहराने, खुद को सही साबित करने और अंतत: लोगों को यह दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं कि उनके साथ कोई समस्या नहीं है, और वे अब भी अपने को वैसा परिपूर्ण, आध्यात्मिक व्यक्ति मानते हैं जैसा लोग सोचते हैं कि वे हैं। क्या यह सब ढोंग नहीं है? जो कोई भी सोचता है कि वह परिपूर्ण और सर्वसमर्थ है, केवल दिखावा कर रहा है। मैं क्यों कहता हूँ कि वह केवल दिखावा कर रहा है? मैं उन सभी को एक ही रंग में क्यों रंग रहा हूँ? क्या तुम लोगों को लगता है कि कोई भी परिपूर्ण है? क्या कोई सर्वसमर्थ होता है? 'सर्वसमर्थ' का क्या अर्थ है? क्या इसका मतलब सर्वशक्तिमान है? क्या इस ब्रह्मांड की दुनिया में कोई भी है, जो सर्वशक्तिमान है? (नहीं।) बिलकुल नहीं है। केवल परमेश्वर ही सर्वसामर्थ्यवान है, और केवल परमेश्वर ही सर्वशक्तिमान है। तो लोग क्या होते हैं अगर वे खुद के सर्वसमर्थ और सर्वशक्तिमान होने का दावा करते हैं? वे राक्षस हैं, वे महादूत हैं, और वे लोगों के बीच मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधी यह ढोंग करते हैं कि वे सर्वसमर्थ हैं, कि वे परिपूर्ण हैं" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दस)')। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैं बहुत व्याकुल हो गई। मसीह-विरोधी लोगों के बीच अपना ओहदा और छवि बनाए रखने के लिए, अपनी असलियत छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, ताकि लोगों से छल कर उन्हें गुमराह कर सकें, और खुद को पूर्ण और आध्यात्मिक दिखा सकें, जिन्हें कभी कमजोरी महसूस नहीं होती, या जो भ्रष्टता नहीं दिखाते। वे ऐसा लोगों के बीच ओहदा और आदर पाने के लिए करते हैं। मैंने अपने बर्ताव पर गौर किया और समझ गई कि यह मसीह-विरोधियों के समान ही था। बोलते और पेश आते समय मैं नाटक करती, अपनी असलियत छिपाती। वीडियो बनाते समय मैं अपने सवालों और मुश्किलों का हल खोजने के लिए खुलकर बात नहीं करती थी, मैं अपना रुतबा और छवि बनाए रखने के लिए काम को लटकाती थी। अपना तबादला होने पर मुझे डर लगा कि बहन को पता चल जाएगा कि मुझमें जन्मजात कौशल की कमी है, तो मैंने अपनी नकारात्मक हालत छिपाने के लिए बहाना बनाया, और जताया कि सिंचन कार्य में मेरी जरूरत होने के कारण मेरा तबादला किया गया है। मेरा तरीका घिनौना और दुष्ट था। मैंने इस पर भी विचार किया कि कई बार, मुश्किलों और नकारात्मक स्थिति में, अपमान के डर से, मैं कभी खुलकर नहीं बोली, और बोली भी तो सिर्फ अनमने ढंग से। ज्यादातर, मैं अपने सकारात्मक अभ्यास के बारे में ही बोलती थी, ताकि लोगों को लगे कि मेरा कद आध्यात्मिक है और समझ आ जाने पर सत्य का अनुसरण कर सकती हूँ। मैं अपनी छवि और रुतबा बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करती थी, मैं अपनी असलियत छिपाती और नाटक करती थी। नाकामियों और रुकावटों का सामना होने पर, मैं दूसरों के मुकाबले ज्यादा बड़ा आध्यात्मिक कद दिखाना चाहती थी, ताकि लोग मुझे आदर से देखें। मैंने परमेश्वर के घर से निष्कासित मसीह-विरोधियों के बारे में सोचा। उनमें से बहुत-से ऐसे थे, जो अक्सर धर्मसिद्धांतों की बातें कहते और नारे लगाते थे, और सत्य के पक्के अनुयायियों का भेस धरते थे, मानो शैतान ने उन्हें भ्रष्ट न किया हो। हालाँकि कुछ समय तक उनकी सराहना और आराधना हुई थी, पर अंत में, सत्य को पसंद न करने और उससे घृणा करने की उनकी प्रकृति और बहुत दुष्टता करने के कारण, परमेश्वर ने उनका खुलासा कर उन्हें बहिष्कृत कर दिया। परमेश्वर अपने स्वभाव का अपमान नहीं सहता। परमेश्वर ऐसे पाखंडियों की निंदा करता है और उन्हें बिल्कुल बचाता। अगर मैंने सत्य का अनुसरण करने से इनकार किया और अपने शैतानी स्वभाव के आधार पर अपनी असलियत छिपाई, तो यह सिर्फ अपने जीवन को नुकसान पहुँचाने का मामला नहीं था। परमेश्वर मेरी निंदा कर मुझे निकाल देगा! तब, मुझे एहसास हुआ कि मेरी हालत बहुत खतरनाक है। मैं अब पाखंडी नहीं होना चाहती थी। बस प्रायश्चित कर बदलना चाहती थी।

आने वाले दिनों में, मैंने सचेत होकर परमेश्वर के वे वचन ढूँढ़े, जो शोहरत और रुतबे का अनुसरण करने और एक ईमानदार इंसान बनने को लेकर थे। मुझे मिले एक अंश में कहा गया था, "चाहे कुछ भी हो जाए, अगर तुम्हें झूठ नहीं बोलना, अगर तुम्हें ईमानदार बनना है, तो तुम्हें अपना घमंड और दर्प अलग रखना होगा। अगर तुम्हें कोई चीज समझ नहीं आती, तो कह दो; अगर तुम्हें कोई चीज स्पष्ट नहीं है, तो बता दो। इससे मत डरो कि लोग तुम्हें कम समझेंगे या तुम्हें नीची निगाह से देखेंगे। अगर तुम हमेशा दिल से बोलते हो और सच्चे हो, तो तुम्हारे दिल में खुशी और शांति, और स्वतंत्रता और आजादी होगी, और फिर तुम अपने घमंड और दर्प से नियंत्रित नहीं होगे। एक ईमानदार रवैये का मतलब है कि चाहे तुम किसी के साथ भी बातचीत कर रहे हो, तुम अपने दिल की बात जाहिर करने में सक्षम हो, तुम अपना दिल खोल देने में सक्षम हो, और जब तुम कोई चीज नहीं समझते, तो कभी समझने का दिखावा नहीं करते। और उन अवसरों पर तुम्हें क्या करना चाहिए, जब लोग तुम्हें नीची निगाह से देखते हैं, कहते हैं कि तुम मूर्ख हो, क्योंकि जो कुछ भी तुम कहते हो, वह सच्चा होता है? कहो, 'भले ही तुम सभी कहो हो कि मैं मूर्ख हूँ, मैं ईमानदार बनूँगा, धूर्त नहीं, मैं सच्चाई से बोलूँगा। और हालाँकि मैं परमेश्वर के सामने कुछ भी नहीं हूँ, फिर भी मैं झूठ नहीं बोलूँगा, ढोंग नहीं करूँगा, नकली नहीं बनूँगा।' जब तुम इस प्रकार बोलते हो, तो अपने दिल में तुम शांत और दृढ़ रहोगे। ईमानदार होने के लिए जरूरी है कि तुम अपना घमंड और दर्प अलग रख दो, दूसरों के द्वारा उपहास किए जाने या नीचा दिखाए जाने से मत डरो, क्योंकि तुम्हारी बातें सच्ची हैं और दिल से बोली गई हैं; इसका मतलब है लोगों द्वारा तुम्हें बेवकूफ समझे जाने पर बहस न करना या खुद को सही ठहराने की कोशिश न करना। अगर तुम इस तरह सत्य का अभ्यास कर सकते हो, तो तुम एक ईमानदार इंसान बनने में सक्षम होगे" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'ईमानदार होकर ही कोई सच्ची मानव सदृशता जी सकता है')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का एक मार्ग दिखाया। हमारी भ्रष्टता और कमजोरी जो भी हो, या कुछ ऐसी चीजें हों, जो हम नहीं समझते, और दूसरे जो भी सोचते हों, अपने बारे में खुलकर, सत्य खोजकर और एक ईमानदार इंसान बनने का प्रयास करके ही, हम धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव के बंधन और नियंत्रण से निकल सकते हैं, और आजादी से खुलकर जी सकते हैं। मैंने शपथ ली कि मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करूँगी और खुलकर अपनी बात कहूँगी। नए सदस्यों के सिंचन-कार्य में वापसी के बाद, मैं पहले की तरह अपनी असलियत नहीं छिपाना चाहती थी। सभाओं में, इस दौरान मैंने अपनी असली हालत के बारे में भाई–बहनों से खुलकर बात की। हालाँकि मैंने सबके सामने अपनी छवि और रुतबा बनाए रखने के तरीके की भद्दी सच्चाई उजागर की, कम-से-कम वे मेरी असली हालत के बारे में जान तो सके। ऐसा करने से, मानो मेरे दिल से एक भारी बोझ उतर गया था, और मैंने बड़ी राहत और सुकून की सांस ली। भाई-बहनों ने भी मुझे नीची नजर से नहीं देखा, वे मेरे अनुभव से कुछ सबक सीख पाए। मेरी हालत के बारे में जानने के बाद, अगुआ ने मेरे साथ संगति की, मेरी मदद की और सहारा दिया, जिससे मुझे शोहरत और रुतबे के पीछे भागने के खतरों और परिणामों का थोड़ा ज्ञान मिला।

इस अनुभव से, मुझे एहसास हुआ कि किसी के सामने खुलना सिर्फ एक बाहरी व्यवहार नहीं है, यह ईमानदारी से सत्य का अभ्यास करना है, और यह परमेश्वर के सामने सच्चे प्रायश्चित के रवैये की नुमाइंदगी करना है। यह प्रकाश का मार्ग खोजने का व्यावहारिक पथ है। सिर्फ एक ईमानदार इंसान बनकर और सत्य का अभ्यास करके ही रास्ता व्यापक और उजला हो सकता है।

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