उत्पीड़न और आपदा ने पनपने में मेरी सहायता की
पहले, मैं सिर्फ इतना ही जानती थी कि परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की साज़िश के आधार पर किया जाता था, यह कि परमेश्वर बुद्धिमान परमेश्वर है और यह कि शैतान सिद्धांत रूप से हमेशा ही परमेश्वर का पराजित शत्रु होगा, लेकिन मुझे इस बारे में कोई वास्तविक समझ या ज्ञान नहीं था। बाद में, केवल परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित वातावरण के भीतर ही मुझे सत्य के इस पहलू का कुछ वास्तविक अनुभव प्राप्त हुआ।
एक दोपहर, मैं एक सभा में थी, तभी अचानक एक जिला अगुआ तेजी से दौड़ते हुए मेरे पास आया और उसने कहा, "बड़ा लाल अजगर तुम्हारी माँ को ले गया है। कुछ समय तक घर मत जाओ। कलीसिया तुम्हारे लिए एक मेजबान परिवार की व्यवस्था करेगा।" यह समाचार मुझ पर आकाशीय बिजली की तरह गिरा और इसने मुझे इतना ज्यादा कँपा दिया कि मैं अचानक ही स्तब्ध रह गई: क्या? बड़ा लाल अजगर मेरी माँ को ले गया है? लाल बड़ा अजगर उन्हें कैसी यातनाएँ देगा? क्या वह इसे सहन कर पाएगी? संभवत: मैं दोबारा अपनी माँ को न देख पाऊँ। मैं क्या करूँ? इन बातों को सोचकर, मेरे दिल को बहुत कष्ट हुआ और मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पा रही थी। इस सभा के समाप्त होने के बाद, मुझे मेरे लिए व्यवस्थित मेजबान परिवार के पास ले जाया गया और, मेरे स्थिर हो जाने के बाद, मेरे विचार पुन: मेरी माँ की ओर लौट आए। घर में, मैं अपनी माँ के सबसे नज़दीक थी। यद्यपि मेरा अविश्वासी पिता मुझ पर परमेश्वर का त्याग करने पर जोर देने की कोशिश करता था, मेरी बड़ी बहन परमेश्वर में मेरे विश्वास की वजह से मुझे नज़रअंदाज़ करती थी और मेरे अन्य सभी रिश्तेदारों ने भी मेरा त्याग कर दिया था, फिर भी मैंने कभी भी अकेला महसूस नहीं किया, क्योंकि तब भी मेरे पास मेरी माँ थी जो परमेश्वर में विश्वास करती थी। चाहे आध्यात्मिक रूप से हो या शारीरिक रूप से हो, मेरी माँ हमेशा ही मेरा ख्याल रखती थी, मुझ पर स्नेह लुटाती थी, और अक्सर मेरी मदद करती थी। जब भी मुझे कोई समस्या आती तो मैं हमेशा ही उस बारे में उससे बात कर सकती थी; तुम कह सकते हो कि वह मेरा आश्रय थी। मगर अब वह एकमात्र व्यक्ति जिस पर मैं निर्भर रह सकती थी, उसे भी बड़ा लाल अजगर ले गया था। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं अचानक ही अनाथ हो गई थी, यह नहीं जानती थी कि मार्ग में आगे कैसे चला जाए, न ही यह जानती थी कि अगर मुझ पर कठिनाईयाँ आएँ तो मैं किसके पास जाऊँ। अगले कुछ दिनों तक, मैं दिन भर रोती री थी, लगातार पीड़ा में रही थी और बहुत निराश महसूस करती रही थी। जब मैं खुद को मुक्त करने में असक्षम, इस स्थिति में जी रही थी, तब भीतर एक मार्गदर्शन था: "क्या तू शैतान को तुझे मूर्ख बनाने देते हुए, वास्तव में हमेशा अंधकार में जीने की इच्छा रखती है? और क्या तू वाकई परमेश्वर को उसके कार्य में समझना और रोशनी में जीना नहीं चाहती है?" इन वचनों में मुझे फ़ौरन जगा दिया। मैंने सोचा, यह सही है। क्या मैं शैतान को मुझे मूर्ख बनाने देते हुए, वाकई अंधकार में इसी तरह से जीने जा रही हूँ? नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती! यह स्थिति जो मुझ पर आ गई है, इसमें निश्चित रूप से परमेश्वर की दयालुता होनी चाहिए। इसके बाद, मैं प्रार्थना करने और परमेश्वर की तलाश करने के लिए कई बार परमेश्वर के समक्ष गई, परमेश्वर से मुझे प्रबुद्ध करने के लिए याचना की ताकि मैं उसकी इच्छा को समझ सकूँ।
कुछ समय बाद, मैंने पाया कि मैंने उस सत्य में थोड़ा प्रवेश करना शुरू कर दिया था जिसे मैं पहले नहीं समझती थी या जिसे अभ्यास में लाने में मैं पहले समर्थ नहीं थी। मैं घर में बिगाड़ दी जाया करती थी, और खाने, कपड़े और मजे करने में मेरा ज्यादातर समय बर्बाद होता था। मेरा शरीर कोई भी ज़ुल्म सहन नहीं कर सकता था और थोड़ी सी भी कठिनाई नहीं सह सकता था। मेरे घर छोड़ने और मेजबान परिवार के साथ रहने के कुछ दिन बाद, मैं जैसा चाहूँ वैसा अब और कुछ नहीं कर सकती थी, जैसा मुझे अच्छा लगे मैं वैसा अब और नहीं कर सकती थी जैसा कि मैं अपने घर में किया करती थी। धीरे-धीरे, मेरी लाड़-प्यार वाली प्रकृति और बुरी आदतें कम हो गई, और मैंने जाना कि जीवन में खाना और कपड़े पाना संतुष्ट होने के लिए है। मुझे देह के सार में एक परिज्ञान भी मिला, कि दोबारा कभी भी देह की संतुष्टि की खोज नहीं करते रहना है, और मैंने जाना कि परमेश्वर को संतुष्ट करने की कोशिश करना ही ऐसा सबसे महत्वपूर्ण कार्य है जो एक सृजन कर सकता है। इससे पहले, जब मेरी माँ घर पर थी, तो चाहे मुझे शारीरिक समस्या या जीवन में दिक़्कतें क्यों न आतीं, मैं हमेशा उस पर निर्भर रहती थी और उन्हें हल करने के लिए उसकी मदद लेती थी। जब मुझ पर समस्याएँ आती, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करती थी, सत्य की तलाश नहीं करती थी, न ही परमेश्वर के साथ मेरा सामान्य संबंध था। मेरी माँ को पकड़ कर ले जाने के बाद, मेरे पास ऐसा कोई नहीं था, जिस पर मैं कठिनाइयाँ आने पर निर्भर रह सकूँ। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने, परमेश्वर के ज्यादा से ज्यादा वचनों को खाने और पीने, अक्सर उसकी इच्छा की तलाश करने के लिए, केवल परमेश्वर के समक्ष ही जा सकती थी। धीरे-धीरे, मेरे दिल में अपनी माँ के लिए जो स्थान था वह छोटा होता गया, जबकि मेरे दिल में परमेश्वर का स्थान बड़ा होता गया। मैं महसूस करती थी कि जब भी मुझे जरूरत होगी परमेश्वर मेरी मदद कर सकता है, कि मैं परमेश्वर को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ सकती हूँ। इससे भी बढ़कर, मैंने अपनी समस्याओं को हल करने के लिए प्रार्थना पर भरोसा करना और सत्य के अपने अनुसरण पर भरोसा करना भी सीख लिया था, और मैंने शांति, स्थिरता और निर्भरता की उस भावना का अनुभव किया था जो मेरे साथ परमेश्वर के होने से आती है। जब मैं घर में रहती थी, तब भले ही मैं यह जानती थी कि विश्वासी और अविश्वासी दो ऐसे प्रकार के लोग हैं, जो एक-दूसरे के साथ असंगत हैं, फिर भी मैं महसूस करती थी मानो कि केवल मेरे माता-पिता और मेरी बड़ी बहनें ही मेरा परिवार हैं, और मैं कलीसिया के अपने भाइयों और बहनों को हमेशा बाहरी व्यक्तियों के रूप में देखती थी, हमेशा ही हमारे बीच कुछ दूरी महसूस करती थी। मुझे मेरे घर से बाहर "निकालने" के लिए, परमेश्वर द्वारा इस वातावरण का उपयोग करने के बाद, मैं सुबह से रात तक अपने मेजबान परिवार में अपने भाइयों और बहनों के साथ थी, और मेरे प्रति उनकी चिंता और परवाह, उनकी सहिष्णुता और समझ को महसूस करती थी। हम समान भाषा बोलते थे, समान आकांक्षाएँ साझा करते थे और जीवन में एक-दूसरे की मदद करते थे; अपने दिल से, मुझे महसूस होता था कि यही मेरा एकमात्र सच्चा परिवार है, कि कलीसिया में मेरे भाई और बहनें ही मेरे पिता, माँ और सहोदर हैं। मेरे और कलीसिया में मेरे भाइयों और बहनों के बीच अब कोई भी मनमुटाव, कोई दूरी नहीं रह गई थी, और न मैं एक बड़े परिवार से आने वाले जोश का अनुभव करती थी। अपने भाइयों और बहनों के साथ इस वातावरण के माध्यम से, मैंने यह भी जाना कि कैसे हम जीवन में एक-दूसरे से प्रेम कर सकते हैं, एक-दूसरे को माफ़ और एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, जिसकी वजह से मेरी सामान्य मानवता फिर से हासिल हो गई थी। यह वह सत्य था जिसे जब मैं घर पर रहती थी और सभाओं और धर्मोपदेशों पर भरोसा थी, तब मैं अभ्यास में नहीं ला सकी थी। बड़े लाल अजगर द्वारा मेरी माँ को ले जाने और मेरे जबरदस्ती घर छोड़ने के बाद, इन असाधारण और मेरे लिए अनजान परिस्थितियों में, परमेश्वर ने इस सच्चाई को मेरे भीतर गढ़ा और धीरे-धीरे इसके बारे में मेरी समझ को गहरा किया। इस सत्य में मेरे प्रवेश करने के परिणामस्वरूप, मेरा दिल जो परमेश्वर को प्रेम और संतुष्ट करने की कोशिश करता था और भी ज़्यादा मजबूत हो गया और परमेश्वर के लिए अपनी पूरी जिंदगी जीने की मेरी इच्छा भी और ज़्यादा दृढ़ हो गई। वह व्यक्ति जो मैं पहले हुआ करती थी—जो परमेश्वर में विश्वास करती थी लेकिन जिसका कोई उद्देश्य नहीं था, जो किसी भी समस्या के आने पर कमज़ोर हो जाती थी—उसमें धीरे-धीरे बदलाव आ रहा था। परमेश्वर ने मुझे जो प्रदान किया था, वह वाकई मेरी सोच से ज्यादा था, और मेरा दिल उसके प्रति आभार और प्रशंसा से भर गया था।
एक दिन, अपनी आध्यात्मिक प्रार्थनाओं के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जो कहते हैं: "यह सब कार्य करते हुए, यहोवा परमेश्वर ने न केवल शैतान द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी मनुष्यजाति को अपने द्वारा महान उद्धार को प्राप्त करने की अनुमति दी है, बल्कि उसे अपनी बुद्धि, सर्वशक्तिमत्ता और अधिकार को देखने की अनुमति भी दी है। इसके अलावा, अंत में वह मानवजाति को दुष्टों को दंड, और अच्छों को पुरस्कार देने वाला अपना धार्मिक स्वभाव देखने देगा। उसने आज के दिन तक शैतान के साथ युद्ध किया है और कभी भी पराजित नहीं हुआ है। इसलिए, क्योंकि वह एक बुद्धिमान परमेश्वर है, वह अपनी बुद्धि शैतान के षड्यंत्रों के आधार पर प्रयोग करता है। ... वह आज भी अपने कार्य को उसी यथार्थवादी तरीके से संपन्न करता है; इसके अतिरिक्त, जब वह अपने कार्य को करता है, तो वह अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को भी प्रकट करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को अचानक प्रकाशित कर दिया, और मैं अंदर गहराई से आह प्रकट करने के अलावा कुछ नहीं कर सकी: परमेश्वर वास्तव में एक बुद्धिमान परमेश्वर है! परमेश्वर के कर्म वास्तव में अद्भुत और अप्रत्याशित हैं! यह स्थिति आज मुझ पर घटित हुई और, देखने में, ऐसा लगता है कि मानो बड़ा लाल अजगर मेरी माँ को ले गया है, मेरे एकमात्र आश्रय को ले गया है, उसने मेरा घर लौटना कठिन बना दिया है, परमेश्वर में मेरे विश्वास को बाधित करने और मुझे तोड़ने, या अपने प्रभाव से मुझे डरा कर कमज़ोर करने या हराने के लिए इसका प्रयोग करने का व्यर्थ प्रयास किया है। लेकिन परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की साज़िशों के आधार किया जाता है, और परमेश्वर ने इसका प्रयोग गहरे प्रभाव के लिए किया था। उसने मुझे मेरे सुखद स्थान से उछाल दिया और, इस वातावरण के माध्यम से, मेरी इच्छा को संयमित किया, यातना सहने की मेरी इच्छा को सिद्ध बनाया, स्वतंत्र रूप से जीने हेतु क्षमता रखने के लिए मुझे प्रशिक्षित किया, मुझे सिखाया कि सामान्य मानवता कैसे जीएँ और कैसे एक यथार्थ व्यक्ति बने; यह सत्य कुछ ऐसा था जिसे समझने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, सहजता और आराम के वातावरण में प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं था। इस वातावरण के माध्यम से, परमेश्वर ने अपना सत्य, और वह क्या है इसे मेरे अंदर गढ़ा, जिसकी वजह से मैंने बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न की वजह से न केवल हार नहीं मानी, बल्कि इसके विपरीत, मैंने उस सत्य को प्राप्त किया जो परमेश्वर ने मुझे प्रदान किया था और मुझे परमेश्वर के उद्धार के अंदर लाया गया था। इसके अलावा, बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न के माध्यम से, मैंने ज्यादा स्पष्ट रूप से उसके निर्दयी, क्रूर चेहरे और उसकी प्रतिक्रियावादी प्रकृति को देखा जो परमेश्वर का विरोध करता है। अपने दिल से, मुझे इससे और भी अधिक घृणा हो गई थी, परमेश्वर के प्रेम को तलाशने वाला मेरा दिल और भी ज़्यादा मजबूत हो गया था।
मैं परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ! इस अनुभव से, मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की कुछ व्यावहारिक समझ मिली, और इस तथ्य का कुछ व्यावहारिक अनुभव मिला कि पमरेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की साज़िशों के आधार पर किया जाता है। मैं समझ गई कि घटित होने वाली हर चीज़ जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होती है, उसमें परमेश्वर के अच्छे इरादे होते हैं। शैतान अपनी साज़िशों को चाहे जितना भी लागू क्यों न कर दे, परमेश्वर हमेशा ही बुद्धिमान परमेश्वर रहेगा, और शैतान हमेशा ही परमेश्वर का पराजित शत्रु रहेगा। इसे समझकर, परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी इच्छा अब और दृढ़ हो गई है, और मैं आगे के मार्ग के लिए निष्ठा से भर गई हूँ!
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