आखिर मैंने गलत आचरण की रिपोर्ट करने की हिम्मत दिखाई
एक अगुआ के रूप में काम करते हुए मैंने एक बहन को कलीसिया से निकाल दिया, जो निकाले जाने के काबिल नहीं थी। मैंने अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी और सिद्धांतों के अभाव के कारण ही यह अनुचित फैसला लिया था। बाद में, उस बहन को कलीसिया में वापस ले लिया गया और मुझे एक झूठी अगुआ ठहराकर वास्तविक काम न करने के कारण अपने पद से बर्खास्त कर दिया गया। कलीसिया ने मुझे कुछ समय तक आत्म-चिंतन करने के लिए कहा, और मैं सचमुच ही आत्म-चिंतन से खुद को समझने और प्रायश्चित करने के लिए तैयार थी। उस समय मैं बहन क्विन केन के साथ रह रही थी। ली जिंग नाम की एक कलीसिया अगुआ अक्सर क्विन केन के पास आकर अपने कर्तव्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में पूछती रहती थी। वह उसे दूसरे भाई-बहनों में दिखाई देने वाली कमियों के बारे में भी बताती रहती थी, और यह भी कि उसने उनकी किस तरह काट-छांट की। मैंने पहले तो इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब उसने इसी तरह की बातें करना जारी रखा तो कुछ समय बाद मैं सोचने लगी : “क्या तुम दूसरों की पीठ पीछे उनकी आलोचना और निंदा सिर्फ अपनी खूबियों के दिखावे के लिए नहीं कर रही हो? क्या तुम सत्य पर संगति करके भाई-बहनों की समस्याएँ हल करने के बजाय, उन्हें बुरा-भला कहकर सच में नतीजे हासिल कर सकती हो?” मैंने ली जिंग से इस बारे में बात करने की सोची, लेकिन फिर मुझे लगा : “मैं अपनी बर्खास्तगी के बाद आत्म-चिंतन के दौर में हूँ—अगर उसने मेरी बात को स्वीकार न किया और यह कहा कि मैं आत्म-चिंतन के दौरान सही व्यवहार नहीं कर रही हूँ? अगर ऊपर के अगुआओं ने मेरी अवस्था पर गौर किया और ली जिंग ने कहा कि मैं बदली नहीं हूँ, तो पता नहीं कब मुझे कोई नया कर्तव्य सौंपा जाएगा? चलो छोड़ो, मैं कुछ न ही कहूँ तो बेहतर होगा।” लेकिन इसके बाद भी मैं काफी बेचैन महसूस करती रही। ली जिंग में इस समस्या को देखकर भी अनदेखा करना किसी बात की परवाह न करने जैसा था। बाद में, जब मैंने एक बार फिर ली जिंग को दूसरे भाई-बहनों की बुराई और अपनी बड़ाई करते सुना तो मैंने उससे यह बात कह ही दी। उसने ऊपर से तो मेरी आलोचना को स्वीकार कर लिया, पर वैसा ही व्यवहार करना जारी रखा। मैंने कई बार उसके सामने यह बात उठाई, पर वह जरा-भी नहीं बदली। मैं सोचने लगी : “लगता है उसे अपनी समस्या का पता है, पर वह अपने व्यवहार को नहीं बदल रही। वह सत्य को नहीं स्वीकार रही। शायद मुझे उससे अकेले में बात करके सत्य को स्वीकार कर पाने में उसकी अक्षमता का विश्लेषण और उसके साथ संगति करनी चाहिए। इससे उसे मदद मिलेगी।” पर फिर मैंने सोचा : “मैं पहले ही कई बार उसके साथ यह विषय उठा चुकी हूँ। अगर इसे दोबारा छेड़ने पर उसने न सिर्फ इसे स्वीकार न किया बल्कि मुझे ही भला-बुरा कहने लगी तो क्या होगा? मैं आत्म-चिंतन की अवधि में हूँ—अगर मुझे निष्कासित कर दिया गया तो क्या मेरे बचाव की कोई संभावना बचेगी? जाने दो, बेहतर होगा अगर मैं अपनी सीमा में रहूँ और चुप रहूँ।”
बाद में, मैं दो बहनों, क्विन केन और शिया यू की मेजबानी करने लगी। एक सुबह मैंने ली जिंग को कलीसिया के शोधन का काम धीमी रफ्तार से करने के कारण उन्हें डांटते हुए सुना। उसने कहा कि इस वजह से उसकी अगुआ उसके बारे में अच्छा नहीं सोचेगी। दोनों बहनों ने जवाब देते हुए कहा : “कलीसिया के किसी सदस्य को निष्काषित करना मामूली बात नहीं है। हमें कोई कदम उठाने से पहले स्थिति के सभी पहलुओं को समझकर पुष्टि करनी पड़ती है। अगर हम जल्दबाज़ी करेंगे तो हम लोगों की अनुचित निंदा कर बैठेंगे।” पर ली जिंग यह मानने को तैयार नहीं थी। उसने कहा कि वह बहन चांग जिंग की एक बुरे व्यक्ति के रूप में निंदा करके उसे निष्कासित करवाना चाहती है। दरअसल, बहन चांग जिंग का अहंकारी स्वभाव था—सुसमाचार उपयाजक के रूप में वह समस्याओं के समाधान के लिए सत्य पर संगति नहीं कर पाती थी, और हमेशा लोगों को डांटती और उन्हें लाचार महसूस करवाती रहती थी। पर उसमें एक बुरे व्यक्ति का सार नहीं था और वह निष्कासन की शर्तों को पूरा नहीं करती थी। उस समय, क्विन केन और शिया यू ने ली जिंग से असहमति जताई और कहा कि चांग जिंग का व्यवहार निष्कासन के मानकों को पूरा नहीं करता था। उन्होंने यह भी कहा कि चांग जिंग ने आत्म-चिंतन से अपने अतीत के अपराधों को समझा था। पर ली जिंग ने न सिर्फ उनके तर्क को अनसुना कर दिया, बल्कि उन्हें फटकार भी लगाई, और कहा कि चांग जिंग को निष्कासित न करके वे एक बुरे व्यक्ति का साथ देंगी और कलीसिया को स्वच्छ करने के काम में रुकावट डालेंगी। यह सब सुनकर मैं सोचने लगी : “कलीसिया के शोधन का काम बहुत महत्वपूर्ण है, और यह सिद्धांतों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। ली जिंग मनमाने ढंग से सिर्फ अपना रुतबा और साख बचाने के लिए एक ऐसी सदस्य को निंदा और निष्कासन की शिकार बनाकर कुकर्म कर रही है, जो निष्कासन की शर्तों पर खरी नहीं उतरती!” मैं ली जिंग का इस तरफ ध्यान दिलाना चाहती थी, पर फिर मैंने सोचा : “मैं भाई-बहनों की सिर्फ मेजबान हूँ और मेरी बात का कोई महत्व नहीं है। अगर मैं यह मुद्दा उठाऊँगी तो भी शायद वह मेरी आलोचना नहीं स्वीकारेगी। बेहतर होगा मैं इस झंझट में न ही पडूँ।” यह सोचकर मैंने अपना मुंह बंद ही रखा। उस दोपहर, मैंने सुना कि ली जिंग ने दोनों बहनों को चांग जिंग के निष्कासन की तैयारी के लिए सारी सूचनाएँ इकट्ठी करने के लिए कहा है। दोनों बहनों ने एक बार फिर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि चांग जिंग का व्यवहार निष्कासन की शर्तों को पूरा नहीं करता और उसे थोड़ी और खोजबीन करनी चाहिए। पर ली जिंग कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी और एक बार फिर उन्हें कलीसिया के शोधन के काम में रुकावट डालने और एक बुरे व्यक्ति को बचाने के कारण भला-बुरा कहने लगी। यह सब बोलकर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गई। मुझे अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार न निभाने का अपना अतीत याद आ गया, कि कैसे मैंने अनुचित ढंग से कलीसिया की एक सदस्य की निंदा कर उसे निष्कासित कर दिया था, क्योंकि मैंने निष्कासन के लिए उसके मामले की जानकारी की पुष्टि नहीं की थी। जब मैं उस बहन से क्षमा मांगने के लिए गई तो उसने कहा कि उसे इस बात से बहुत तकलीफ पहुंची थी कि वह अब सभाओं में नहीं जा पाएगी और परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाएगी। यह सुनकर मैं पछतावे और अपराध-बोध से भर गई थी। मैंने उस बहन को जो दुख पहुंचाया था और उसकी जिंदगी को जो नुकसान पहुंचाया था उसकी भरपाई नहीं हो सकती थी। इस घटना ने एक विश्वासी के रूप में मेरी जिंदगी पर हमेशा के लिए एक धब्बा लगा दिया था। अगर चांग जिंग के निष्कासन के मामले को सिद्धांतों पर तोला जाए तो उसका व्यवहार निष्कासित किए जाने जितना गंभीर नहीं था। फिर भी अपनी साख और रुतबे को बचाने के लिए ली जिंग उसे निष्कासित करने पर तुली हुई थी। यह एक कुकर्म था! उस रात मैं बिस्तर में करवटें बदलती रही, और सो नहीं पाई। मैं बार-बार यह सोचती रही कि जब दोनों बहनों ने ली जिंग के साथ संगति की थी तो वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं हुई थी और उल्टे उन दोनों पर ही मनमाने लांछन लगाने लगी थी। क्या वह उन दोनों को दबाने और चुप कराने के लिए अपने रुतबे का गलत इस्तेमाल नहीं कर रही थी? मुझे लगा कि कलीसिया के काम की रक्षा के लिए मुझे ली जिंग से मिलकर उसके साथ संगति करनी चाहिए। पर तभी मैंने सोचा कि ली जिंग ने पहले मेरे सुझावों को कैसे स्वीकार नहीं किया था। अगर मैंने दोबारा बात छेड़ी और उसने मुझ पर कलीसिया के शोधन के काम में बाधा और व्यवधान डालने का आरोप लगा दिया तो क्या होगा? मुझे पहले ही एक अपराध के लिए बर्खास्त किया जा चुका है और मैं अभी भी आत्म-चिंतन की अवधि में हूँ। अगर इन आरोपों के आधार पर मुझे कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया तो मैं क्या करूंगी? यह ख्याल आते ही मेरा मन डगमगाने लगा।
इसके बाद, मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना और सत्य की खोज की और उसके वचनों का यह अंश पढ़ा : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों के न्याय ने मुझे शर्मसार कर दिया और मैं अपना मुंह छिपा लेना चाहती थी। बर्खास्त किए जाने के बाद मैं यह तो कहती रही कि मैं आत्म-चिंतन करके प्रायश्चित करना चाहती हूँ, पर मेरे व्यवहार में प्रायश्चित जैसा कुछ भी नहीं था। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि शोधन के काम में ली जिंग अपनी साख और रुतबे की खातिर सिद्धांतों के खिलाफ जा रही थी, और ऐसा करके वह भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश और कलीसिया के काम को नुकसान ही पहुंचाएगी। पर मुझे यह चिंता थी कि अगर मैंने उसके साथ संगति की तो वह इसे स्वीकार नहीं करेगी, और मुझ पर कलीसिया के शोधन के काम में बाधा और व्यवधान डालने का आरोप लगाकर मुझे निष्कासित कर देगी। खुद को बचाने की खातिर मैंने कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं की थी, जबकि मुझे एक समस्या साफ-साफ दिख रही थी। मुझमें न्याय की भावना का सर्वथा अभाव था। मुझे एहसास हुआ कि अगर ली जिंग ने चांग जिंग को सचमुच निष्कासित कर दिया तो वह सिर्फ उसे ही नुकसान नहीं पहुंचाएगी, बल्कि खुद पर भी अपराध का धब्बा लगा लेगी। मैं जानती थी कि मुझे लोगों को खुश करना छोड़ देना चाहिए। अब जब मैं देख रही थी कि ली जिंग विफलता के उसी रास्ते पर चल रही है जिस पर कभी मैं चली थी, मुझे उसका ध्यान इस मुद्दे पर दिलाना था और उसे सचेत करना था कि उसके इन कदमों के कितने गंभीर नतीजे होंगे। इसके बाद, मैं ली जिंग से मिली और मैंने सिद्धांतों के आधार पर किसी को निष्कासित न करने के कारण किसी पर गलत आरोप लगाने के अपने अनुभव पर संगति की। पर ली जिंग मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं थी, और उल्टा मुझसे यह कहने लगी कि मुझे भाई-बहनों की मेजबानी करने पर ही ध्यान देना चाहिए और शोधन के काम में दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि मैं बर्खास्त होने के बाद अभी भी आत्म-चिंतन की अवधि में थी। उसकी यह बात सुनकर मैं थोड़ी मायूस हो गई, और सोचने लगी : “क्या मैं अपनी सीमा लांघ रही हूँ? अगर मैंने फिर से यह बात छेड़ी तो क्या वह मुझे और भी नापसंद करने लगेगी? अगर मैंने उसे सचमुच नाराज कर दिया तो क्या वह मेरा जीना दूभर कर देगी? पर ली जिंग के स्वभाव का सार सचमुच बहुत गंभीर है, और उसका इसी तरह काम करते रहना बहुत खतरनाक होगा!” यह एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके इस मामले में मेरा मार्गदर्शन करने की विनती की।
दो दिन बाद, ली जिंग मेरे घर पर आई और मुझे एक तरफ ले जाकर कहने लगी कि वह क्विन केन को बर्खास्त करने की सोच रही है, क्योंकि उसने अपने कर्तव्य पर भावनाओं को हावी होने दिया और शोधन के काम में रुकावट डाली। उसने मेरी राय जाननी चाही तो मैंने कहा : “क्विन केन अपने कर्तव्य में काफी बोझ उठाती है और उसने चांग जिंग के मामले में सिद्धांतों के अनुसार काम किया है। मेरी समझ में नहीं आता कि वह शोधन के काम में रुकावट कैसे डाल रही है।” लेकिन ली जिंग इस बात पर अड़ी रही कि चांग जिंग एक बुरी इंसान थी और उसे निष्कासित किया जाना चाहिए। उसने यह भी दावा किया कि शोधन के काम में कोई प्रगति न होने का भी यही कारण था कि क्विन केन चांग जिंग का बचाव कर रही थी। उसकी यह बात सुनकर मैं स्तब्ध-सी रह गई—क्विन केन सिद्धांतों को ध्यान में रखकर ही चांग जिंग के निष्कासन का विरोध कर रही थी। ली जिंग उसे ऐसे मनमाने ढंग से कैसे बर्खास्त कर सकती थी? मैंने झट-से कहा : “हम मनमाने ढंग से लोगों को बर्खास्त या निष्कासित नहीं कर सकते। अपनी साख और रुतबे को बचाने की खातिर भाई-बहनों की जिंदगियों को गंभीरता से न लेना ठीक नहीं! मेरे रेकॉर्ड में अपराध का धब्बा लग चुका है, क्योंकि मैंने अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार नहीं निभाया—मेहरबानी करके तुम भी उसी रास्ते पर न चलो, जिस पर चलकर मैं नाकाम हो गई! हमें पूरी तरह से सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।” ली जिंग ने गुस्से से कहा : “मैं क्विन केन को बर्खास्त करने का फैसला कर चुकी हूँ। तुम्हारे कुछ भी कहने से मेरा फैसला नहीं बदलेगा।” यह सुनकर मुझे गुस्सा भी आया और बेबसी भी महसूस हुई। मैं सोचने लगी : “मैं तुम्हें नाराज करने का खतरा नहीं उठा सकती, इसलिए मुझे खुद पर नियंत्रण रखना होगा। वैसे भी, मैंने तुम्हें अपनी राय बता दी है, अब मानना न मानना तुम्हारे ऊपर है।” इसके बाद, मैं खामोश ही रही। आखिर, ली जिंग ने क्विन केन को बर्खास्त कर दिया और मुझे अपना कर्तव्य निभाने के लिए दूर-दराज के एक इलाके में भेज दिया। उसने कहा कि उसने यह कदम मेरी सुरक्षा के लिए उठाया था—क्योंकि सीसीपी ने दमन और गिरफ्तारियों की गतिविधियां तेज कर दी थीं, और यह देखते हुए कि मैं एक अगुआ रह चुकी थी और कलीसिया के बारे में बहुत कुछ जानती थी, तो सबसे अच्छा यही होगा कि मैं भाई-बहनों से सीधे कोई संपर्क न रखूँ। उसने यह भी कहा कि आगे से मेरे पास आने वाले या मेरी तरफ से जाने वाले सारे पत्र पहले उसके पास जाएंगे। मेरे कोई जवाब देने से पहले ही वह यह कहकर कि “मुझे अब कई और जरूरी काम हैं,” अपनी बाइक पर सवार होकर उड़न-छू हो गई। मैं घर की दहलीज पर खड़ी उसे जाते देखती रही, और बरबस ही मेरी आँखें छलक उठीं। मैं सोचने लगी : “तो अब तुम मुझ पर अंकुश लगा रही हो और मुझे अपने नियंत्रण में रखना चाहती हो?” मैं जितना ज्यादा सोचती, उतनी ही घुटन महसूस करती। मैं इस पूरी अवधि में ली जिंग के व्यवहार के बारे में सोचने लगी : जब मैंने उसे अपना सुझाव दिया था तो उसने इसे नहीं माना था, बल्कि मुझे धमकाते हुए कहा था कि मैं बस भाई-बहनों की मेजबानी पर ध्यान दूँ और अपनी सीमा में रहूँ। और फिर इस चिंता से कि कहीं उसके कुकर्मों का पर्दाफाश न हो जाए, उसने मुझे दूर-दराज की जगह पर भेज दिया था और मेरी रक्षा करने का बहाना करते हुए मुझे भाई-बहनों से संपर्क करने से मना कर दिया था। वह कितनी कुटिल और धूर्त थी! अपने रुतबे और साख को बनाये रखने के लिए वह अपने आदेशों का पालन न करने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने दमन और निंदा का शिकार बना सकती थी। वह शैतान के इस नियम में विश्वास करती थी कि “जो मेरा अनुपालन करते हैं उन्हें फूलने-फलने दो और जो मेरा विरोध करते हैं उन्हें नष्ट होने दो।” क्या वह एक मसीह-विरोधी जैसा व्यवहार नहीं कर रही थी? मैं जानती थी कि मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकती, और मुझे ली जिंग की रिपोर्ट करके उसके कुकर्मों को उजागर करना होगा। पर समस्या यह थी कि मैं जो कुछ भी लिखती वह पहले उसके पास पहुंचता। अगर उसे पता चल गया कि मैंने उसकी रिपोर्ट करते हुए पत्र लिखा है तो मुमकिन है कि वह मेरा और भी ज्यादा दमन करेगी। अगर उसने मुझ पर कोई आरोप लगाकर मुझे कलीसिया से निष्कासित कर दिया तो मुझे बचाए जाने की क्या संभावना रह जाएगी? यह ख्याल आते ही मैं फिर पीछे हट गई और गहरी यंत्रणा से तड़पती रही।
अगले कुछ दिनों तक, ली जिंग के साथ मेरी पिछली मुलाकातों के दृश्य मेरे दिमाग में घूमते रहे। अपने काम में मेरा मन ही नहीं लग रहा था। एक रात, आखिर मैंने ली जिंग की रिपोर्ट करते हुए एक पत्र लिखने का फैसला कर लिया। लेकिन लिखते-लिखते मैं सोचने लगी : “अगर मैंने उसकी रिपोर्ट की तो क्या दूसरे भाई-बहन यह सोचेंगे कि मैं आत्म-चिंतन की अवधि के दौरान उपयुक्त व्यवहार नहीं कर रही हूँ? जब क्विन केन को बर्खास्त किया गया था तो मुझे याद नहीं पड़ता कि उसने ली जिंग की रिपोर्ट की हो। मैं उसकी रिपोर्ट करूंगी तो भाई-बहन इसे मेरा दिखावा तो नहीं समझेंगे? मैंने पहले तो ली जिंग को कुछ सुझाव दिए और अब उसकी रिपोर्ट कर रही हूँ। अगर ली जिंग को यह पता चल गया तो क्या वह यह सोचेगी कि मैं उसकी समस्या को लेकर उसके पीछे ही पड़ गई हूँ?” यह एहसास होते ही मैंने पत्र को डिलीट कर दिया, पर ऐसा करते हुए मुझे अपराध-बोध होता रहा। यह देखते हुए कि ली जिंग मुझे कितना दबा रही थी, अगर मैंने उसकी रिपोर्ट नहीं की तो पता नहीं कल को वह और किसे ऐसे ही दबाएगी। उस रात मैं मुश्किल से ही सो पाई। मैंने परमेश्वर के सामने जाकर प्रार्थना की, कहा : “हे परमेश्वर, मैं ली जिंग की रिपोर्ट करना चाहती हूँ, पर मुझे डर है कि उसे यह बात पता चलने के बाद वह मुझे और ज्यादा दबाने लगेगी। हे परमेश्वर, मुझे नहीं मालूम कि मैं इस स्थिति का सामना कैसे करूँ। कृपा करके मेरा मार्गदर्शन करो।”
कुछ समय बाद मेरी नजर परमेश्वर के वचनों के इस अंश पर पड़ी : “तुम्हें सकारात्मकता की ओर से प्रवेश करना चाहिए; तुम्हें सक्रिय रहना चाहिए, निष्क्रिय नहीं। तुम्हें किसी भी स्थिति में किसी भी व्यक्ति या वस्तु से विचलित नहीं होना चाहिए, और किसी के भी शब्दों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। तुम्हारा स्वभाव स्थिर होना चाहिए; लोग चाहे कुछ भी कहें, तुम्हें फौरन उसी पर अमल करना चाहिए जिसे तुम सत्य के रूप में जानते हो। तुम्हारे भीतर मेरे वचन सदैव कार्यरत रहने चाहिए, फिर चाहे तुम्हारे सामने कोई भी हो; तुम्हें मेरे लिए अपनी गवाही में दृढ़ और मेरे दायित्वों के प्रति विचारशील रहना चाहिए। तुम्हें बिना अपने विचारों के, लोगों से आँख मूँदकर सहमत नहीं होना चाहिए; बल्कि तुम में खड़े होकर उन चीजों का विरोध करने का साहस होना चाहिए, जो सत्य के अनुरूप न हों। अगर तुम स्पष्ट रूप से जानते हो कि कुछ गलत है, फिर भी तुममें उसे उजागर करने का साहस न हो, तो तुम सत्य का अभ्यास करने वाले व्यक्ति नहीं हो। तुम कुछ कहना चाहते हो, लेकिन तुरंत कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाते, तुम बातों को गोल-गोल घुमाते रहते हो और फिर विषय को बदल देते हो; तुम्हारे अंदर का शैतान तुम्हें रोक रहा है, जिससे तुम जो बोलते हो उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता और तुम अंत तक टिके रहने में असमर्थ हो जाते हो। तुम्हारे दिल में अभी भी डर बैठा हुआ है और क्या इसकी वजह यह नहीं है कि तुम्हारा दिल अब भी शैतान के विचारों से भरा हुआ है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 12)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि परमेश्वर कलीसिया के काम की रक्षा करने वालों से प्रेम करता है। जब वे देखते हैं कि किसी बात से सिद्धांतों का उल्लंघन और कलीसिया के हितों का नुकसान हो रहा है, तो वे कलीसिया के काम की रक्षा के लिए सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं। इसके उलट, परमेश्वर को उन लोगों से कोफ्त होती है जो आँख मूंदकर दूसरों से सहमत हो जाते हैं और सिर्फ अपने निजी हितों को देखते हुए स्वार्थी और घृणित व्यवहार करते हैं। वे कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचते देखकर भी बेपरवाह रहते हैं। मैंने उस समय के अपने व्यवहार के बारे में सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि यह जानते हुए भी कि ली जिंग दूसरों की पीठ के पीछे उनकी आलोचना करती और अपनी शेख़ी बघारती थी, जो अनुचित था, पर मैं इसी चिंता में रही कि उसके खिलाफ बोलकर कहीं मैं उसे नाराज न कर बैठूँ। इसलिए अपने हितों की रक्षा के लिए मैंने उसके मुद्दे का जिक्र करते हुए इस मामले पर पूरा जोर नहीं दिया। ली जिंग अपनी साख और रुतबे की खातिर क्विन केन और चांग जिंग को बुरा व्यक्ति ठहराने और निष्कासित करने पर अड़ी रही, उसने क्वीन केन और शिया यू पर शोधन के काम में अड़चन डालने का आरोप लगाकर क्विन केन को बर्खास्त कर दिया। मैं जानती थी कि उसका यह आचरण सिद्धांतों का उल्लंघन था, और वह दुष्टता और परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी। पर मुझे यह चिंता थी कि अगर मैंने उसके इन कृत्यों के सार को सीधे-सीधे उजागर कर दिया तो वह मेरा जीना दूभर कर देगी, और मुझ पर कलीसिया के शोधन के काम में रुकावट और अड़चन डालने का आरोप लगाकर मुझे निष्कासित कर देगी। इसलिए मैंने बस उसे थोड़ी सलाह दी और उसे अपना व्यवहार बदलने के लिए उकसाया, और इस तरह उसे अपना कुकर्मी अभियान खुल्लम-खुल्ला जारी रखने की छूट दे दी। इस डर से कि कहीं मैं उसकी इन हरकतों की रिपोर्ट न कर दूँ, ली जिंग ने मुझे अलग-थलग करके दूसरे भाई-बहनों से संपर्क रखने से मना कर दिया। मैं साफ देख रही थी कि वह अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही थी। मुझे उसे उजागर करने और उसकी रिपोर्ट करने में तत्परता दिखानी चाहिए थी, पर मुझे उसकी नाराजगी का डर था और मैं एक रिपोर्ट पत्र लिखने की भी हिम्मत नहीं बटोर पाई थी। मैं एक गरिमाहीन जीवन जी रही थी और इतनी डरपोक थी कि सत्य का अभ्यास करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मैं कलीसिया के काम को ध्यान में नहीं रख रही थी, न ही भाई-बहनों के जीवन को होने वाली क्षति की परवाह कर रही थी। मुझमें न्याय-भावना का कितना अभाव था और मैं कितनी स्वार्थी और घृणित थी!
सत्य की खोज के दौरान मुझे परमेश्वर के वचनों के ये अंश दिखाई दिए : “अंतरात्मा और विवेक दोनों ही व्यक्ति की मानवता के घटक होने चाहिए। ये दोनों सबसे बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। वह किस तरह का व्यक्ति है जिसमें अंतरात्मा नहीं है और सामान्य मानवता का विवेक नहीं है? सीधे शब्दों में कहा जाये तो, वे ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें मानवता का अभाव है, वह बहुत ही खराब मानवता वाला व्यक्ति है। अधिक विस्तार में जाएँ तो ऐसा व्यक्ति किस लुप्त मानवता का प्रदर्शन करता है? विश्लेषण करो कि ऐसे लोगों में कैसे लक्षण पाए जाते हैं और वे कौन-से विशिष्ट प्रकटन दर्शाते हैं। (वे स्वार्थी और नीच होते हैं।) स्वार्थी और नीच लोग अपने कार्यों में लापरवाह होते हैं और अपने को उन चीजों से अलग रखते हैं जो व्यक्तिगत रूप से उनसे संबंधित नहीं होती हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते हैं और परमेश्वर के इरादों का लिहाज नहीं करते हैं। वे अपने कर्तव्य को करने या परमेश्वर की गवाही देने की कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं, और उनमें उत्तरदायित्व की कोई भावना होती ही नहीं है। ... कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो चाहे कोई भी कर्तव्य निभाएँ पर कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे पता चलने वाली समस्याओं की रिपोर्ट भी तुरंत अपने वरिष्ठों को नहीं करते। लोगों को विघ्न-बाधा डालते देखकर वे आँखें मूँद लेते हैं। जब वे दुष्ट लोगों को बुराई करते देखते हैं, तो वे उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते। वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते, न ही इस बात पर विचार करते हैं कि उनका कर्तव्य और जिम्मेदारी क्या है। जब ऐसे लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; वे खुशामदी लोग हैं और सुविधा के लालची होते हैं; वे केवल अपने घमंड, साख, हैसियत और हितों के लिए बोलते और कार्य करते हैं, और वे अपना समय और प्रयास ऐसी चीजों में लगाना चाहते हैं, जिनसे उन्हें लाभ मिलता है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचनों के खुलासे से मैंने जाना कि मैं अपना जीवन ऐसे शैतानी और जहरीले फलसफ़ों के आधार पर जी रही थी : “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं,” “राज्य के अधिकारियों की तुलना में स्थानीय अधिकारियों के पास ज्यादा नियंत्रण रहता है,” और “भिखारी अपनी पसंद नहीं चुन सकते।” मैं बेहद स्वार्थी और चालबाज हो गई थी और सिर्फ अपने हितों पर ध्यान दे रही थी। एक झूठी अगुआ को कुकर्म करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुंचाते देखकर भी मैं कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपनी चेतना और सूझबूझ खो चुकी थी। मैं बिल्कुल भी एक सच्चे इंसान की तरह नहीं जी रही थी। मैंने ली जिंग द्वारा चांग जिंग के निष्कासन की घटना को याद किया। मुझे पता था कि चांग जिंग के व्यवहार में ऐसा कोई गंभीर दोष नहीं था कि उसे निष्कासित करने की जरूरत होती। इससे उसे बहुत ज्यादा आध्यात्मिक कष्ट होता और उसके जीवन-प्रवेश पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता। फिर भी, अपने निजी हितों की रक्षा के लिए, मैंने ली जिंग को ऐसा मनमाना कदम उठाने से नहीं रोका था। मैं कितनी स्वार्थी थी और मुझमें इंसानियत की कितनी कमी थी! जब ली जिंग ने क्विन केन को बर्खास्त किया तो मैं यह चिंता करती रही कि अगर मैंने ली जिंग को नाराज कर दिया तो मुझसे मेरा काम छिन जाएगा, इसलिए मैंने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए उसके इस कुकर्म को रोकने की हिम्मत नहीं की। मैंने खुद जानबूझकर ये अपराध नहीं किए थे, पर ली जिंग को कुकर्म देख मैं बेपरवाह रही थी, और उसे कलीसिया के काम को नुकसान पहुंचाने और मेरी बहनों को दबाने और दंडित करने की छूट देती रही थी। क्या मैं शैतान के पाले में नहीं खड़ी थी और दुष्ट को दुष्टता करने में मदद नहीं कर रही थी? यह एहसास होते ही मुझे खुद से घृणा होने लगी। परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और नाराज न किया जा सकने वाला है। वह गरिमाहीन जीवन जीने वालों को नापसंद करता है, जो सिर्फ अपनी सोचते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं करते। अगर मैंने ली जिंग के कुकर्मों को उजागर करने में तत्परता न दिखाई, और उसे कलीसिया के काम में रुकावट डालने और कलीसिया में कुकर्म करने देती रही, तो यह उसके कुकर्म पर पर्दा डालना होगा और परमेश्वर मुझसे घृणा करेगा। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश दिखाई दिया, जिसमें कहा गया है : “कलीसिया में मेरी गवाही में दृढ़ रहो, सत्य पर टिके रहो; सही सही है और गलत गलत है। काले और सफ़ेद के बीच भ्रमित मत होओ। तुम शैतान के साथ युद्ध करोगे और तुम्हें उसे पूरी तरह से हराना होगा, ताकि वह फिर कभी न उभरे। मेरी गवाही की रक्षा के लिए तुम्हें अपना सब-कुछ देना होगा। यह तुम लोगों के कार्यों का लक्ष्य होगा—इसे मत भूलना” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों से मुझे अभ्यास का एक रास्ता मिला। जब भी मैं ऐसा कुछ देखूँ जो सिद्धांतों से मेल नहीं खाता तो मुझे निजी हितों को भूलकर सत्य सिद्धांतों पर अमल करना चाहिए और कलीसिया के काम की रक्षा करनी चाहिए। एक सृजित प्राणी के रूप में यह मेरी जिम्मेदारी भी है और सभी विश्वासियों के लिए आचरण का सिद्धांत भी। मैं अपने भविष्य और नियति को लेकर चिंता में डूबे रहकर और सिर्फ अपने निजी हितों की रक्षा के लिए एक गरिमाहीन जीवन नहीं जी सकती थी। मुझे सत्य का अभ्यास करना था और कलीसिया के काम को बचाना था—मुझे ली जिंग के कुकर्मों को उजागर करने और उसकी रिपोर्ट करने में तत्परता दिखानी थी।
इसके बाद, मैंने इस विषय पर भी चिंतन-मनन किया कि मैं यह चिंता क्यों करती रही थी कि ली जिंग की रिपोर्ट करने से मेरी प्रगति की संभावनाओं और मेरी नियति पर बुरा असर पड़ेगा। मुझे एहसास हुआ कि मेरे विचार ही भ्रामक थे। मुझे लगता था कि बर्खास्तगी के बाद मैं अभी आत्म-चिंतन की अवधि में थी, इसलिए अगर मैंने किसी अगुआ को उसकी समस्या बताई, तो लोग सोचेंगे कि मैं आत्म-चिंतन की अवधि के दौरान उपयुक्त व्यवहार नहीं कर रही हूँ। मुझे लगता था कि मैं सिर्फ एक मेजबान हूँ, और मेरे पास कोई रुतबा और साख नहीं है और मेरे शब्दों का कोई महत्व नहीं है। इसलिए जब मैंने ली जिंग को मनमाने ढंग से लोगों को निष्कासित और बर्खास्त करते देखा तो मैं उससे टकराने से घबराती रही। मुझे लगता था कि क्योंकि ली जिंग एक अगुआ थी, इसलिए अगर मैंने उसे नाराज कर दिया तो वह मेरा जीना दूभर कर देगी और मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा पाऊँगी। मुझे यह भी लगता था कि अगर मुझे निष्कासित कर दिया गया तो मैं बचाए जाने के अवसर को खो बैठूँगी। मैंने यह गलत धारणा पाल ली थी कि मेरी नियति ली जिंग के हाथ में थी, और यह उस पर निर्भर करता था कि मैं अपना कर्तव्य निभा पाऊँगी या नहीं और उद्धार प्राप्त कर पाऊँगी या नहीं। मुझे यह विश्वास नहीं था कि परमेश्वर का घर परमेश्वर और सत्य द्वारा शासित होता है। इस तरह का विचार ईशनिंदा और परमेश्वर को समझने में गलतफहमी का परिणाम था। मेरी नियति परमेश्वर के हाथ में है और किसी भी इंसान का इसमें कोई दखल नहीं है, किसी अगुआ द्वारा इसका फैसला किया जाना तो दूर की बात है। अतीत में, अहंकारी और निरंकुश मसीह-विरोधी अपनी दुष्टता से कलीसिया को नुकसान पहुँचाते रहे हैं, कुछ तो कलीसिया का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर खुद के स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश करते रहे हैं। पर अंत में सब-के-सब निष्कासित कर दिए गए। परमेश्वर का घर सत्य और पवित्र आत्मा द्वारा शासित है। कोई भी बुरा व्यक्ति या मसीह-विरोधी कलीसिया में अपनी जड़ें नहीं जमा सकता और आखिर परमेश्वर उन सबको बेनकाब कर हटा देता है। अगर मुझे दबाया जाता है, दंडित किया जाता है, या एक झूठी अगुआ को उजागर करने और उसकी रिपोर्ट करने के कारण निष्कासित भी कर दिया जाता है, तो भी यह सिर्फ अस्थाई होगा, और इसका मतलब उद्धार से हमेशा के लिए वंचित हो जाना नहीं होगा। कलीसिया की एक सदस्य के रूप में, भले ही मैंने कोई भी कर्तव्य निभाया हो, कोई भी अपराध किया हो, और भले ही अतीत में मुझे बर्खास्त किया गया हो, अगर मैं किसी झूठे अगुआ या मसीह-विरोधी को कुकर्म करते, कलीसिया के काम को नुकसान पहुंचाते या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को दबाते देखती हूँ, तो मुझे तत्परता से ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट करना और उसे उजागर करना चाहिए। यह मेरी जिम्मेदारी भी है और दायित्व भी।
जब मैं यह सोच रही थी कि अपनी रिपोर्ट में क्या लिखूँ तो अचानक शिया यू से मेरी भेंट हो गई। उसने छलकती आँखों से मुझे बताया कि कलीसिया के शोधन के काम में सिद्धांतों का ध्यान न रखे जाने के कारण उसने ली जिंग को कुछ सुझाव दिए थे। पर ली जिंग ने उसकी सलाह को ठुकरा दिया और उसे बर्खास्त कर दिया। शिया यू की आंसू भरी कहानी ने मेरे सामने यह बात और भी साफ कर दी कि जब झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी कलीसिया पर शासन करते हैं तो यह न सिर्फ भाई-बहनों के लिए नुकसानदायक होता है, बल्कि कलीसिया के कामकाज में भी बाधा और व्यवधान डालता है। अगर मैं जल्दी-से-जल्दी ली जिंग को उजागर नहीं करती और उसकी रिपोर्ट नहीं करती तो कलीसिया के काम को और भी बड़ा नुकसान पहुंचेगा। मैंने उसी रात ली जिंग के कुकर्मों का खुलासा करते हुए एक पत्र लिखने का फैसला किया और कुछ भाई-बहनों को इसे ऊपर के अगुआओं तक पहुंचा देने के लिए कहा। मुझे थोड़ी हैरानी हुई जब मैंने घर लौटते ही उच्च-दर्जे के अगुआओं का यह संदेश देखा कि मैं उनसे आकर मिलूँ। मैं जानती थी कि परमेश्वर ने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया है। हम लोग मिले तो मैंने उन्हें ली जिंग के सारे कुकर्मों का कच्चा चिट्ठा सौंप दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें हाल ही में ली जिंग के बारे में रिपोर्ट करने वाले कई संदेश मिले थे, और वे सभी आरोपों की जांच और पुष्टि करके जल्दी-से-जल्दी सिद्धांतों के अनुरूप फैसला लेंगे। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई कि आखिर मैं थोड़े-से सत्य का अभ्यास करने में सफल रही थी। आखिरकार मेरा दिल इस दबाव से मुक्त हो गया था।
कुछ दिन बाद, मुझे ऊपर के अगुआओं का संदेश मिला कि छानबीन के बाद ली जिंग मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलने वाली एक झूठी अगुआ निकली है। इस मामले की प्रकृति काफी गंभीर है, इसलिए पहले उसे बर्खास्त किया गया है। अगर वह प्रायश्चित करने में विफल रही तो उसके साथ एक मसीह-विरोधी की तरह निपटा जाएगा। यह सुनकर मुझे सचमुच ऐसा लगा कि परमेश्वर के घर में मसीह और सत्य का राज है। कलीसिया के मामलों में किसी एक इंसान का फैसला अंतिम फैसला नहीं हो सकता और कोई भी कुकर्मी परमेश्वर के घर में अपनी जगह नहीं बना सकता। मुझे यह भी एहसास हुआ कि सत्य का अभ्यास और कलीसिया के काम की रक्षा करके ही हम परमेश्वर के इरादों के अनुरूप चल सकते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!
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