शोहरत और दौलत की चाह ने मुझे सिर्फ़ दुख-दर्द दिए

22 अक्टूबर, 2021

टियान टियान, चीन

एक बार बसंत ऋतु में, मैं और कुछ वरिष्ठ डॉक्टर पिकनिक पर गए थे। रास्ते में, वहां के कुछ ग्रामीणों ने डॉ. वांग को पहचान लिया। वे बहुत खुश और आभारी दिख रहे थे। उन्होंने उनका बड़े प्यार से स्वागत किया। खाना बनाते समय हमें महसूस हुआ कि हमारे पास कुछ सामान की कमी है। ग्रामीण लोग बड़े ही दयालु थे। जब उन्होंने देखा कि हमें कुछ चीज़ों की ज़रूरत है, तो तुरंत उनका इंतज़ाम किया। उन दिनों रोजमर्रा की ज़रूरत की कुछ चीज़ें बड़ी मुश्किल से और बहुत महंगी मिलती थीं। जैसे कि दूध मुश्किल से मिलता था। लोगों को दूध के लिए लाइन में इंतजार करना पड़ता था। लेकिन डेयरी फैक्ट्री के लोग सीधे हमारे लिए दूध ले आए। यह सब डॉ. वांग की प्रतिष्ठा के कारण था। मैंने देखा कि डॉ. वांग की आँखें मुस्कुरा रहीं थीं। मुझे उनसे जलन हुई। मैंने सोचा, "लोगों के मन में डॉ. वांग के लिए कितना आदर है! वह जहां भी जाती हैं, लोग उनका सम्मान करते हैं। उन्हें किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं। बस अपना चेहरा दिखाओ और काम हो गया। मैं तो बस एक चिकित्सक हूँ जिसे कोई नहीं जानता। मेरे नसीब में ऐसा सम्मान कहां। मैं बस उनका दामन थामकर चल सकती हूँ।" लेकिन जब निराश होकर मैंने डॉ. वांग के सफ़ेद बालों की तरफ देखा तो मैंने सोचा : "क्या मैं अभी भी कम उम्र की नहीं हूँ? अगर मैं चिकित्सा की पढ़ाई ठीक से करके अनुभवी डॉक्टरों से सीखती हूँ, और मेहनत करती हूँ तो एक न एक दिन मैं उनकी तरह मशहूर होकर सम्मान पाउंगी।"

फिर, एक महीने की लगातार कोशिश के बाद, मुझे ड्यूटी पर अकेले रहकर सर्जरी का अभ्यास करने का मौका भी मिला। लेकिन यह सिर्फ पहला कदम था। मुझे अभी और मेहनत करनी थी। इसलिए लगातार चिकित्सा सिद्धांतों की पढ़ाई करके मैंने एक कौशल परीक्षा दे दी। मैंने काम के बाद रिमेडियल क्लास ज्वाइन की। अगर कोई आकस्मिक ऑपरेशन होता, तो काम का समय हो या न हो, मैं सर्जरी का अभ्यास करने का मौका कभी नहीं गंवाती। कभी-कभी मैं ऑपरेशन में इतनी व्यस्त होती थी कि बहुत भूख लगने पर भी मैं अपने शरीर की परवाह न करती, क्योंकि सर्जरी में गलतियों के लिए कोई जगह नहीं होती। कभी-कभी मुझे चौबीसों घंटे काम करना पड़ता था। काम से लौटने के बाद मेरा सर फटने लगता और शरीर थकान से चूर हो जाता था। मैं आराम करने के लिए तरसने लगती थी, लेकिन तभी मुझे पिताजी की बात याद आती, "तुम जितना अधिक सहोगे, उतना अधिक सफल होगे," लक्ष्यों को पाने के लिए कड़ी मेहनत करने की कहानियां भी याद आती थीं। इसलिए कोशिश जारी रखने के लिए मैं खुद की हिम्मत बढ़ाती, कड़ी मेहनत करने के लिए खुद को मजबूर करती। रात को घर लौटते ही मैं बिस्तर पर गिर जाती। मैं अपने थके हुए शरीर को तानकर आराम करती। आंखें बंद करके सोने की कोशिश करती तो ऑपरेशन की सारी बातें दिमाग में दौड़ने लगतीं। मुझे डर था कि मेरी इस मानसिक स्थिति के कारण सर्जरी में मुझसे कोई गलती न हो जाए। मैं उन पुराने साथियों के बारे में सोचने लगती जिनको काम में छोटी-छोटी गलतियों के कारण ऑपरेशन करने से मना किया गया था। अगर कुछ गलत हुआ तो मैं कभी सफल नहीं हो पाउंगी। फिर मुझे तुरंत तनाव, थकान, डर और चिंता सताने लगती। मेरा तन-मन पूरी तरह से थक गया था। कभी-कभी मैं अगले दिन की जाने वाली सर्जरी के बारे में सोचती और घर पहुंचने पर चाहे कितनी भी देर हो जाए, मैं अगले दिन के उस ऑपरेशन के लिए ज़रूरी चिकित्सा ज्ञान की बार-बार जांच-परख करती ताकि मुझसे कोई गलती न हो जाए। मैं बहुत थकी हुई होने पर भी खुद को प्रेरित करती ताकि किसी दिन मैं सफल हो सकूं : "कड़ी मेहनत करो! सुरंग के अंत में रोशनी होती है!"

आखिरकार, सात साल की कड़ी मेहनत और दृढ़ता के बाद, मैं एक प्रमाणित डॉक्टर बन गई। उस समय, मेरे दिमाग में ये शब्द गूंज रहे थे : मेहनत रंग लायी! जब मेरा ओहदा बढ़ गया तो मेरी फीस भी बढ़ गई। मैं वे सभी ऑपरेशन करती थी जो एक प्रमाणित डॉक्टर कर सकता है, मेरा नाम मुख्य सर्जनों की सूची में आ गया। मेरी तनख़्वाह और रुतबा भी बढ़ गया, जबकि मेरे साथी पिछड़ गए। मुझे जो ख़ुशी होती थी उसे बयान करना मुश्किल है, खासकर जब भीड़ भरी सड़कों पर लोग मुझे पहचान लेते। मैं उन्हें नहीं जानती थी, लेकिन वे मुझे जानते थे। एक अच्छी सर्जन होने के लिए वे मेरी तारीफ भी करते थे। मरीजों की सराहना भरी नजरें और उनकी कही हुई बातें : "मैं पहले आपसे इलाज कराने आया था और जल्द ही ज़्यादा पैसे खर्च किए बिना मैं ठीक हो गया जबकि मेरे दूसरे डॉक्टर के बरसों इलाज करने का कुछ भी फायदा नहीं हुआ।" कुछ लोग कहते : "फलाने ने बताया कि आप बहुत अच्छी डॉक्टर हैं। उसने कहा कि मैं आपसे इलाज कराऊं। आजकल आपसे मुलाकात करना बहुत मुश्किल है।" इस तरह की बातें सुनकर मैं फूली न समाती। मेरा मन खिल उठता। लोगों को लंबे समय बाद भी ये बातें याद रहती थीं। दूसरे लोग मेरे पास आते थे क्योंकि मैं मशहूर थी। अचानक मुझे लगा कि मेरा बड़ा नाम हो गया है। अब मैंने सफलता हासिल कर ली है। लेकिन उस खुशी के बाद, मैंने सोचा कि मैं अटेंडिंग फिजिशियन बनने से बहुत दूर थी। मैं सिर्फ मामूली ऑपरेशन कर सकती थी। अगर मैं अटेंडिंग फिजिशियन बन जाऊं तो मैं और भी मुश्किल ऑपरेशन कर पाउंगी, फिर मरीज मेरी और भी सराहना करेंगे और ज़्यादा लोग मुझसे इलाज करवाना चाहेंगे। क्या उनकी आँखों में मेरा रुतबा और भी ऊंचा नहीं होगा?

उसके बाद मैं शोहरत और पैसों की तरफ तेज़ी से बढ़ने लगी। मेरे पति शिकायत करते, मुझसे बहस करते कि मैं उनके साथ बहुत कम समय बिताती हूँ। मुझे बड़ी थकान और तकलीफ़ महसूस होती थी। मैंने बार-बार खुद से पूछा : "मैंने इतनी सारी मेहनत क्यों की? क्या मैंने यह सब सफल करियर और अच्छे जीवन के लिए नहीं किया? क्या मैंने कुछ गलत किया? बिलकुल नहीं। मेरे पति विवेक से काम नहीं ले रहे हैं। उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।" मैंने आंसू पोंछ लिए और अपने चिकित्सा कौशल को और बेहतर बनाकर अटेंडिंग फिजिशियन बनने के इरादे से आगे की पढाई का मौका पाने के लिए नगरपालिका स्तर की चिकित्सा इकाई में आवेदन किया। यह एक दुर्लभ मौका था जिसकी मुझे बड़ी चाह थी। लेकिन प्रशिक्षण के दौरान, मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि मैं गर्भवती थी। खुद को गर्भवती पाकर मैं समझ नहीं पाई कि क्या करूँ। बच्चे को जन्म देने के लिए मुझे यह समय बिलकुल सही नहीं लग रहा था। इस मौके को पाने के लिए मैंने बहुत पापड़ बेले थे, बच्चे के लिए इसे छोड़कर मैं अपने भविष्य को बर्बाद नहीं कर सकती थी। लेकिन फिर मैंने बच्चे के बारे में सोचा। मैं बच्चा गिराना नहीं चाहती थी। मैं ऑपरेशन में बड़ी देर तक खड़ी रहकर बहुत ज़्यादा काम करती थी और आकस्मिक ऑपरेशन करने के लिए खाना भी छोड़ देती थी, इस वजह से बाद में मेरा गर्भपात हो गया। लेकिन मैंने एक पल के लिए भी शोहरत और पैसों के पीछे भागना नहीं छोड़ा। गर्भ निकालने के अगले दिन मैं अस्पताल जाकर काम करना चाहती थी, लेकिन उस दिन मेरा शरीर बड़ा कमज़ोर था। मेरा अंग-अंग टूट रहा था। मेरे पेट में दर्द था और मेरे हाथ-पैर लड़खड़ा रहे थे। आराम करने के अलावा मैं कुछ न कर सकी। लेकिन अपने खोये बच्चे या खुद के शरीर की देखभाल के बारे में सोचने के बजाय मुझे सिर्फ अपनी पढाई में आई रुकावट और मेरे ग्रेजुएशन पर होने वाले इसके असर की चिंता हो रही थी। क्या मेरी सारी मेहनत बेकार थी?

आखिरकार और सात सालों की निचोड़ डालने वाली मेहनत के बाद मुझे अपने सपनों का अटेंडिंग फिजिशियन का दर्जा मिल गया। जिन मरीजों का मैंने इलाज किया था उन्होंने मुझे देखकर मेरा स्वागत किया। वे औरों से कहने लगे, "डॉ. टियान ने मेरा ऑपरेशन करके मुझे बचा लिया।" कुछ लोग अपनी खास स्थानीय चीज़ें लेकर मेरे घर आ जाते। कुछ लोग आभार व्यक्त करने के लिए उपहार और शॉपिंग वाउचर ले आते। कभी-कभी मैं रेस्तरां में खाना खाने जाती तो मुझे देखकर वे लोग मुझे बिना बताए मेरा बिल चुका देते थे। भले ही इन सब से लोगों को जलन होती थी, लेकिन मेरी खुशी ज़्यादा देर नहीं टिकती थी। उस खुशी के पीछे छिपी मेरी मुसीबतों और दर्द को कोई नहीं जानता था। ऑपरेशन के समय मैं थोड़ी-सी भी गलती नहीं कर सकती थी, उसके परिणामों के बारे में सोच भी नहीं सकती। मुझे हर वक्त चिंता लगी रहती कि कहीं मुझसे ऐसी गलती न हो जाए जो मुझे बर्बाद कर दे। मैं बड़ी चौकन्नी रहती थी, मानों तलवार की धार पर चल रही हूँ। मैं इतने तनाव में थी कि मेरा मन बर्दाश्त नहीं कर पाया। मेरी सेहत बिगड़ चुकी थी। मेरा वजन लगभग 90 पाउंड हो गया था। लंबे समय तक बहुत ज़्यादा काम करने से मेरी सेहत खराब हो गई थी, जिससे मुझे नींद न आना, पेट-दर्द और पित्ताशय की सूजन की समस्याएं सता रही थीं। मैं ना खा पाती थी, ना सो पाती थी। मैं रात भर तारे गिनती रहती थी, चार-चार नींद की गोलियां खाती थी, लेकिन सब बेकार। दिन भर मुझे चक्कर आते थे। मुझमें ताकत ही नहीं थी। चार कदम चलना भी मुश्किल हो गया था। यह सब बहुत ही मुश्किल था। कड़वी मुस्कुराहट के साथ मैं सोचती रहती : "मेरे पास रुतबा और मान-सम्मान है, लेकिन मैं एक साधारण इंसान की तरह सो या खा-पी नहीं सकती।" मैं तो काम पर जाना भी टालना चाहती थी, सब कुछ छोड़कर बस गहरी नींद सोना चाहती थी लेकिन यह ख़याली पुलाव बनकर रह गया था। सबसे बुरी बात यह थी कि जब मुझे देखभाल की ज़रूरत थी तो मेरे पति अपने दोस्तों के साथ शराब में मस्त होकर मजे कर रहे थे। मुझे अपना दुख अकेले ही सहना पड़ता था। उन खाली रातों में, मैं बड़ी दुखी और असहाय होती थी। मुश्किल से नींद आती थी। मैं अक्सर सपना देखती थी कि मैं अंधेरे में इधर-उधर लड़खड़ा रही हूँ, कहां जा रही हूँ या मेरा घर कहां है, मैं कुछ भी नहीं देख पाती थी। मैं घबरा रही थी और जूझ रही थी। एक बार मैं चौंककर जग गई और चिल्लाई, "आह!" मेरे माथे पर पसीना था। बत्ती जलाकर मैं बिस्तर के किनारे बैठ गई, मरीजों से मिले सम्मान और अपने परिवार से मिली तारीफ के बारे में सोचने लगी, लेकिन उससे मेरा दर्द कम न होता। इतने सालों की मेहनत के बारे में सोचकर, मैं खुद से पूछती रहती : "आगे बढ़ने के लिए मैंने अपनी आधी जिंदगी कड़ी मेहनत करने में लगाई, लेकिन आखिर में गौरव के उन छोटे पलों के अलावा मुझे बस एक बीमार शरीर, एक धोखेबाज़ पति और बेहद दुख-दर्द ही मिला। ऐसा क्यों? एक सार्थक और उपयुक्त जीवन पाने के लिए किस तरह जीना चाहिए?" मैं सच में उस दर्द से छुटकारा पाना चाहती थी। मैं एक ज्योतिषी से मिली, मैंने मशहूर लोगों के उद्धरणों में जवाब ढूंढें और जिस "सकारात्मक ऊर्जा" को लोग इतना तलाशते हैं, उसमें भी डुबकियां लगाई। बौद्ध धर्म में जवाब खोजने के लिए मैं ऑनलाइन गई, लेकिन न तो कोई संतोषजनक जवाब मिला, न ही उन्होंने मेरी समस्याओं का समाधान किया। जब मेरी बीमारियां बेहद दर्दनाक हो रही थीं, जब मेरे जीवन में कोई आशा नहीं बची थी या कोई रास्ता नहीं दिख रहा था, ठीक उसी समय मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का बचाने वाला अनुग्रह पाया।

परमेश्वर में आस्था पाने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों में जवाब मिले। परमेश्वर के वचन कहते हैं : "लोग सोचते हैं कि जब एक बार उनके पास प्रसिद्धि एवं लाभ आ जाए, तो वे ऊँचे रुतबे एवं अपार धन-सम्पत्ति का आनन्द लेने के लिए, और जीवन का आनन्द लेने के लिए इन चीजों का लाभ उठा सकते हैं। वे सोचते हैं कि प्रसिद्धि एवं लाभ एक प्रकार की पूंजी है, जिसका उपयोग करके वे मौजमस्‍ती और देहसुख का आनंद लेने का जीवन हासिल कर सकते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ, जो मनुष्‍य को इतना प्‍यारा है, के लिए लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीरों, मनों, वह सब जो उनके पास है, अपने भविष्य एवं अपनी नियतियों को ले जा कर शैतान के हाथों में सौंप देते हैं। लोग वास्तव में इसे एक पल की हिचकिचाहट के बगैर सदैव करते हैं, और इस सब कुछ को पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान होकर ऐसा करते हैं। क्या लोगों के पास तब भी स्वयं पर कोई नियन्त्रण हो सकता है जब एक बार वे इस प्रकार से शैतान की शरण ले लेते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं? कदापि नहीं। उन्हें पूरी तरह से और सर्वथा शैतान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। साथ ही वे पूरी तरह से और सर्वथा दलदल में धंस गए हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ हैं। एक बार जब कोई प्रसिद्धि एवं लाभ के दलदल में पड़ जाता है, तो वह आगे से उसकी खोज नहीं करता है जो उजला है, जो धार्मिक है या उन चीज़ों को नहीं खोजता है जो खूबसूरत एवं अच्छी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रसिद्धि एवं लाभ की जो मोहक शक्ति लोगों के ऊपर है वह बहुत बड़ी है, वे लोगों के लिए उनके पूरे जीवन भर और यहाँ तक कि पूरे अनंतकाल तक अनवरत अनुसरण करने की चीज़ें बन जाती हैं। क्या यह सत्य नहीं है?" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा हृदय रोशन कर दिया। मुझे डॉ. वांग के साथ पिकनिक पर जाना याद आया जब मैंने अपने दिल में ठान लिया था कि अगर मेरे पास रुतबा और बेहतर चिकित्सा कौशल होगा तो लोग मेरा सम्मान करेंगे, मेरे साथ खास बर्ताव होगा और ज़िंदगी गुलजार हो जाएगी। मैंने ये शैतानी ज़हर भी पी लिए थे, जैसे "एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है," "भीड़ से ऊपर उठो," और "आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है," इस हद तक कि शोहरत और पैसों के पीछे भागना ज़िंदगी में मेरे उद्यम और लक्ष्य बन गए थे। करियर में आगे बढ़ने के लिए मैं लगातार कड़ी मेहनत कर रही थी। अपने आसपास के लोगों का सम्मान और तारीफ पाकर मुझे लगा कि मैं सच में सफल हो चुकी हूँ जिसने मुझे गलत रास्ते पर रखा था, मैंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। अपने परिवार और अजन्मे बच्चे की बलि चढ़ाकर मैंने शोहरत और पैसों के पीछे भागने में अपनी जिंदगी के 10 बेहतरीन साल बिता दिए। मेरी सेहत बर्बाद हो चुकी थी, मेरा बीमार शरीर बचा था। शर्म की बात है कि इतने त्याग के बाद ही मैं यह सोच पाई : "यह शोहरत और पैसा मेरे किस काम के? इनके पीछे भागकर मुझे थकान और दुख ही मिले। आखिरकार इन्हें पाने के बाद भी मैं इतनी दुखी हूँ कि मैं बयान नहीं कर सकती। जाहिर है, शोहरत और पैसों के पीछे भागना गलत रास्ता है।" आखिरकार मैं समझ गई कि शोहरत और पैसों के पीछे भागना एक बुरी ताकत है जो लोगों को रस्सी की तरह लपेटकर उनका दम घोंट देती है। यह शैतान का जुआ था जिसे मेरे कन्धों पर रखकर उसने मुझे दुख झेलने और सब कुछ दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था। अंत में शैतान ने मुझे पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया था। बिलकुल उसी तरह जैसे परमेश्वर के वचन कहते हैं : "शैतान मनुष्य के विचारों को नियन्त्रित करने के लिए प्रसिद्धि एवं लाभ का तब तक उपयोग करता है जब तक लोग केवल और केवल प्रसिद्धि एवं लाभ के बारे में सोचने नहीं लगते। वे प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए कठिनाइयों को सहते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि एवं लाभ के लिए जो कुछ उनके पास है उसका बलिदान करते हैं, और प्रसिद्धि एवं लाभ के वास्ते वे किसी भी प्रकार की धारणा बना लेंगे या निर्णय ले लेंगे। इस तरह से, शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनके पास इन्हें उतार फेंकने की न तो सामर्थ्‍य होती है न ही साहस होता है। वे अनजाने में इन बेड़ियों को ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पाँव घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि एवं लाभ के वास्ते, मनुष्यजाति परमेश्वर को दूर कर देती है और उसके साथ विश्वासघात करती है, तथा निरंतर और दुष्ट बनती जाती है। इसलिए, इस प्रकार से एक के बाद दूसरी पीढ़ी शैतान के प्रसिद्धि एवं लाभ के बीच नष्ट हो जाती है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। मैं समझ गई कि शैतान सच में कितना घिनौना है और मैंने तहे दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया। जब शैतान ने मुझे पूरी तरह घेर लिया था, तब परमेश्वर बस बैठकर देखता नहीं रहा। उसने अपना उद्धार का हाथ मेरी तरफ बढ़ाया, अपने वचनों से मुझे धीरज दिया, मुझे प्रेरित किया और मेरे दर्द का मूल ढूंढने में मेरी मदद की। परमेश्वर ही इंसान को सबसे ज़्यादा प्यार करता है, हमें अच्छाई-बुराई और सकारात्मक-नकारात्मक का भेद सिखाने के लिए सत्य व्यक्त करने को वह देहधारी हुआ। मैं जान गई कि शोहरत और पैसों के पीछे भागने में अपनी जिदंगी बिताकर मैं गलत राह पर चलना जारी नहीं रख सकती। मुझे सृष्टिकर्ता की आराधना करनी चाहिए। उसके बाद, मैंने अपना खाली समय परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और जो समझ नहीं आया उस पर अपने भाई-बहनों के साथ सहभागिता करने में बिताया, और हमने एक दूसरे की मदद और सहारा दिया। बहुत जल्द मुझे कुछ सत्य समझ आए और कुछ चीज़ों की जानकारी हुई। मेरा मन बहुत ही शांत हो गया। धीरे-धीरे मुझे अच्छी नींद आने लगी, मेरा पेट का दर्द और पित्ताशय की समस्या भी ठीक हो गई। शोहरत और पैसों के पीछे भागकर मुझे ये चीज़ें हासिल न होतीं। मैंने वाकई आध्यात्मिक स्वतंत्रता की खुशी महसूस की।

बाद में, मैंने देखा कि मेरे सभी साथी प्रमोशन के लिए मेहनत कर रहे थे, मुझसे कम पेशेवर कौशल वाले लोग, जिनमें से कुछ ऐसे साथी भी थे, जिन्हें मैंने प्रशिक्षित किया था, सभी असिस्टेंट प्रोफेसर बन चुके थे। मुझे कुछ खोने का एहसास हुआ। मैंने सोचा कि अगर मेरी खराब सेहत ने मुझे दस साल पीछे न खींचा होता तो अपने विशेष कौशल से मैं कम से कम असिस्टेंट प्रोफेसर तो बन ही जाती। लेकिन प्रमोशन के पीछे भागकर कैसे मुझे बीमार शरीर, दुख और दर्द मिले, यह सोचकर मैं समझ गई कि यह शैतान की एक शातिर चाल थी। शोहरत और पैसों के भंवर में मुझे वापस बहकाने के लिए शैतान मेरी इच्छाओं का इस्तेमाल कर रहा था। अगर मैं फिर से शोहरत और पैसों के पीछे भागने लगूं तो शायद मैं अपनी ज़िंदगी भी खो दूं। इससे क्या हासिल होगा? मुझे प्रभु यीशु की कही हुई बात याद आई : "यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?" (मत्ती 16:26)। और सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : "एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के प्रति प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम सबका असली भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और महत्वपूर्ण है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। मैंने परमेश्वर के वचनों से उसकी इच्छा को समझ लिया। किसी व्यक्ति का रुतबा चाहे जितना ऊंचा हो या उसकी प्रतिष्ठा चाहे जैसी भी हो, शोहरत और पैसों के पीछे भागना गलत राह है, यह मौत की ओर जाने वाली राह है। इस राह पर चलने वालों को परमेश्वर की आशीष या सुरक्षा नहीं मिल सकती। सत्य का अनुसरण करके अपने कर्तव्य को निभाने से, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके, उसे जानने की कोशिश करके अपनी भ्रष्टताओं से खुद को छुड़ाने से ही हम एक अर्थपूर्ण जीवन और मूल्य प्राप्त कर सकते हैं, और आखिरकार परमेश्वर की आशीष पा सकते हैं। इंसान का यही असल भविष्य होना चाहिए। अगर मैं शरीर के हितों को पूरा करने की कोशिश करती रही, तो न केवल परमेश्वर मुझे आशीष नहीं देगा, बल्कि वह मुझसे घृणा करने लगेगा। ये असल जिंदगी के कुछ लोगों के उदाहरण हैं जिन्हें मैं जानती हूँ : मेरे बॉस की बेटी ने कॉलेज से स्नातक करके विदेश में रहकर अच्छा करियर बनाया था। लेकिन सालों की प्रचंड स्पर्धा और बहुत ज़्यादा तनाव में रहने के बाद, निराश होकर उसने एक इमारत से कूदकर जान दे दी। मेरे एक दोस्त के बेटे ने कम उम्र में मैनेजर बनकर सफलता हासिल की, लेकिन उसे पार्टियों में बहुत ज़्यादा शराब पीने से लीवर का सिरोसिस हुआ। छह महीनों के भीतर उसकी मौत हो गई और उस दर्द से मेरे दोस्त के बाल सफ़ेद हो गए। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "लोगों को समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। शोहरत और पैसा लोगों को दुखों से छुटकारा दिलाकर उनकी जान नहीं बचा सकते। वे सिर्फ पल दो पल की खुशियों के बाद लोगों को मृत्यु के रसातल में वापस खींच सकते हैं। इसे समझने के बाद, मैं कभी भी अपने आसपास के लोगों से परेशान या प्रभावित नहीं होउंगी। मैं सत्य का अनुसरण करके परमेश्वर को जानने, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार जीवन जीने और परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने में अपना सीमित समय बिताने के लिए तैयार हो गई।

एक दिन, मुझे दूसरे अस्पताल के निदेशक का फोन आया। उन्होंने कहा, "अब आप रिटायर हो गई हैं, तो इस अवसर पर हम एक दावत की योजना बना रहे हैं, हम उस सहयोग पर भी चर्चा कर सकेंगे जिसके बारे में हमने पहले बात की थी। आपके पुराने मरीजों को लुभाने के लिए हम अपने अस्पताल में आपका अटेंडिंग फिजिशियन का लाइसेंस लगाना चाहते हैं। आप भी हमारे लिए काम कर सकती हैं, या शेयरधारक बन सकती हैं। जैसा भी आप चाहें।" यह सुनकर मैं सोचने लगी, "ज़िंदगी भर शोहरत और पैसों के पीछे भागने के बावजूद मुझे क्या मिला? क्या मैं अपनी पूरी ज़िंदगी शोहरत और पैसों के तले दबकर गुज़ारने वाली हूँ? शोहरत और पैसों के पीछे लगने के दर्द को छुड़ाना आसान नहीं था। अब मैं रातों को तारे गिनना या पूरे दिन चिंता और डर के साथ जीना नहीं चाहती थी। मैं परमेश्वर में विश्वास करने और सत्य को समझने से मिलने वाली मन की शांति का अनुभव कर चुकी हूँ। मुझे इस खुशी को कसकर पकड़ना होगा। इसके अलावा, भले ही मुझे अस्पताल में सिर्फ अपना लाइसेंस लटकाना था, लेकिन अगर कोई समस्या होगी, तो मुझे वहां जाना ही पड़ेगा, क्या इससे मुझे अपना कर्तव्य निभाने में अड़चनें नहीं होंगी?" मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन याद आए : "इस समय तुम लोगों के जीवन का हर दिन निर्णायक है, और यह तुम्हारे गंतव्य और भाग्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, अतः आज जो कुछ तुम्हारे पास है, तुम्हें उससे आनंदित होना चाहिए और गुजरने वाले हर क्षण को सँजोना चाहिए। ख़ुद को अधिकतम लाभ देने के लिए तुम्हें जितना संभव हो, उतना समय निकालना चाहिए, ताकि तुम्हारा यह जीवन बेकार न चला जाए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर को खोजने का यह दुर्लभ अवसर पाना मेरी खुशकिस्मती थी। परमेश्वर ने ही मुझे जीवन का अर्थ समझाकर मुझे दर्द के रसातल से बाहर निकाला। मैं अब शैतान के आलिंगन में वापस कैसे लौट सकती थी? परमेश्वर का कार्य समाप्त होने को था और मुझे अभी तक सत्य हासिल नहीं हुआ था। मुझे हर एक दिन संजोकर अपने सीमित समय में सत्य का अनुसरण करना था। सुंदर जीवन यही तो है! परमेश्वर की इच्छा को समझने के बाद, मैंने निदेशक का सुझाव ठुकरा दिया। फोन को नीचे रखते ही मुझे मुक्ति का एहसास हुआ। मैं बोल पड़ी, "शोहरत और पैसों के पीछे भागना मुझे बहुत पहले बंद कर देना चाहिए था।" दूसरे अस्पतालों ने मेरे साथ मिलकर काम करना चाहा, लेकिन मैंने उन सभी को मना कर दिया। अभी, मैं अपना कर्तव्य निभाने में लगी हूँ। मैं हर दिन बड़ा सुकून और संतोष महसूस करती हूँ। कोई भी भौतिक आनंद या शोहरत या रुतबा यह सुकून नहीं दे सकता। मुझे बचाने के लिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ!

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