स्टाफ-समायोजन ने मुझे उजागर कर दिया
मार्च 2021 में मैं कलीसिया के सुसमाचार-कार्य की प्रभारी थी। मैंने अगुआ को अपनी जिम्मेदारियों के व्यापक दायरे और सुसमाचार-कर्मियों की कमी की रिपोर्ट दी, तो उसने मदद के लिए बहन लियू शाओ को भेज दिया। लियू शाओ अगुआ रह चुकी थी, उसके साथ कुछ समय बिताकर मैंने पाया कि वह परमेश्वर के वचनों द्वारा संभावित सुसमाचार-प्राप्तकर्ताओं की समस्याएँ हल करने में अच्छी है। मैंने सोचा, “अगर मैं उसे ठीक से विकसित करूँ, तो वह सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने वाली बन जाएगी, फिर अगुआ कार्य करने और लोगों को प्रशिक्षित करने की क्षमता के लिए मेरी प्रशंसा करेगी।” इसके बाद, मैं लियू शाओ को साथ लेकर सुसमाचार का प्रचार करती, अक्सर उसके साथ संगति कर उसकी समस्याएँ हल करती। कुछ समय बाद उसने बहुत प्रगति कर ली, सुसमाचार-कार्य में बहुत अच्छे नतीजे प्राप्त करने लगी। मेरी खुशी का ठिकाना न था, रोजाना कर्तव्य के लिए असीम ऊर्जा से भरी रहती थी।
एक दिन अगुआ ने मुझसे पूछा, “कलीसिया में हाल ही में बहुत-से नए लोग आए हैं, अधिक सिंचन-कर्मियों की तत्काल आवश्यकता है। भाई-बहनों में से कौन सत्य समझता और नवागतों का सिंचन कर सकता है?” मैंने खुशी से जवाब दिया, “लियू शाओ में अच्छी क्षमता है, वह सत्य तेजी से सीखकर उस पर स्पष्टता से संगति करती है। वह बहुत उपयुक्त रहेगी।” इस पर अगुआ ने कहा, “ठीक है, तो लियू शाओ को सिंचन करने भेज दो।” उसे यह कहते सुनकर मेरा दिल बैठ गया मैंने मन ही मन सोचा, “उसे विकसित करने में मैंने इतनी मेहनत की है, और आप उसका तबादला कर रही हैं? मुझे सच बताना ही नहीं था। ऐसी सहायक चली गई तो किसी और को प्रशिक्षित करने में फिर से कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर पर्याप्त सिंचन-कर्मी नहीं हैं, तो आप दूसरी कलीसिया से लोगों का तबादला क्यों नहीं करतीं? लियू शाओ के तबादला से इस महीने का सुसमाचार-कार्य प्रभावी नहीं होगा। तब आप मेरे बारे में क्या सोचेंगी? क्या आप मुझे अक्षम समझकर बर्खास्त नहीं कर देंगी? बिल्कुल नहीं! मैं लियू शाओ को नहीं जाने दे सकती।” यह सोचकर मैंने अगुआ से कहा, “सिंचन-कार्य अहम है, पर क्या सुसमाचार-कार्य भी उतना ही अहम नहीं है? इस बार आप दूसरी कलीसिया से किसी को भेज दें, जरूरत पड़ने पर लियू शाओ अगली बार जा सकती है।” अगुआ समझ गई कि मैं क्या सोच रही हूँ, उसने संगति की, “हमें कलीसिया के समग्र कार्य के बारे में सोचना चाहिए। अपना बोझ हलका करने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को अपने पास रखना स्वार्थ है। अभी कलीसिया में बहुत-से नए लोग आ रहे हैं, लेकिन पर्याप्त सिंचन-कर्मी न होने से उनका समय पर सिंचन नहीं हो पा रहा, कुछ लोग पहले ही सीसीपी और धार्मिक दुनिया की अफवाहों से घबराकर सभाओं में आने से डर रहे हैं। कुछ तो छोड़कर चले भी गए हैं। सुसमाचार कार्य बीज बोने जैसा होता है। अगर तुम सिर्फ बीज बोते हो, उन्हें सींचते नहीं, तो सब बेकार है! इसलिए, अब सबसे अहम है कि नए लोगों के सिंचन के लिए जल्द लोगों की व्यवस्था की जाए। नए विश्वासियों के सिंचन के लिए लियू शाओ को सिंचन-कार्य में लगाना आवश्यक है। हमें कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए। अगर हम लोगों को सिर्फ अपना बोझ हल्का करने और अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की रक्षा करने के लिए रखना चाहते हैं, तो हम परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान नहीं दे रहे!” अगुआ सही थी। लियू शाओ नवागतों के सिंचन के लिए ज्यादा उपयुक्त थी, इसके अलावा, नवागतों के सिंचन के लिए लोगों की सख्त जरूरत थी। मैं सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के बारे में सोच रही थी, लियू शाओ के तबादले से सुसमाचार-कार्य के प्रभावित होने के विचार से परेशान थी। लेकिन दोबारा सोचने पर लगा, नवागतों के सिंचन में देरी नहीं की जा सकती, इसलिए मैंने अगुआ से बस इतना ही कहा, “आप जैसा चाहें करें। तबादला जरूरी है तो करें...।” घर पहुँचकर भी यही सब सोचती रही, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! मैं जानती हूँ कि लियू शाओ को सिंचन के लिए भेजने की अगुआ की व्यवस्था सिद्धांतों के अनुरूप है, पर मैं इसे स्वीकार नहीं कर पा रही। कृपया मुझे प्रबुद्ध कर मुझे मेरे भ्रष्ट स्वभाव की पहचान करवाओ।”
तब मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े। “परमेश्वर के घर के कार्य के दायरे में, कार्य की समग्र आवश्यकताओं के आधार पर, कुछ कर्मियों का तबादला हो सकता है। अगर किसी कलीसिया से कुछ लोगों का तबादला कर दिया जाता है, तो उस कलीसिया के अगुआओं को समझदारी के साथ इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? अगर वे समग्र हितों के बजाय सिर्फ अपनी कलीसिया के काम से ही सरोकार रखते हैं, तो इसमें क्या समस्या है? कलीसिया-अगुआ के रूप में, क्यों वे परमेश्वर के घर की समग्र व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में असमर्थ रहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील और कार्य की पूरी तस्वीर के प्रति सचेत होता है? अगर वह परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में समग्र रूप से नहीं सोचता, बल्कि सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों के बारे में सोचता है, तो क्या वह बहुत स्वार्थी और घृणित नहीं है? कलीसिया-अगुआओं को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, और परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं और समन्वय के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यही सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप है। जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो, तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए, और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता स्वर्ग द्वारा आदेशित और पृथ्वी द्वारा स्वीकृत है, जिसकी किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती। जब तक कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई गलत तबादला नहीं करता, जो सिद्धांत के अनुसार न हो—जिस मामले में उसकी अवज्ञा की जा सकती है—तब तक परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए, और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य-सुसमाचार का विस्तार शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है, और उसमें कोई ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है, तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। फिर भी, जब इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़े तो मसीह-विरोधियों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे इन उपयुक्त लोगों को अपने हाथों में रखने के लिए तरह-तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं, ताकि उनसे अपनी सेवा करवा सकें। वे केवल दो सामान्य लोगों की पेशकश करते हैं, और फिर तुम पर शिकंजा कसने के लिए कोई बहाना ढूँढते हैं, या तो यह कहते हुए कि उनके पास काम बहुत है या यह कि उनके पास लोग कम हैं, लोगों का मिलना मुश्किल होता है, यदि इन दोनों को भी स्थानांतरित कर दिया गया, तो इसका काम पर असर पड़ेगा। और वे तुमसे ही पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हें दोषी महसूस कराते हैं। क्या यह शैतान के काम करने का तरीका नहीं है? अविश्वासी लोग इसी तरह से काम किया करते हैं। जो लोग कलीसिया में हमेशा अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं—क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने वाले लोग होते हैं? बिल्कुल नहीं। वे अविश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। और क्या यह काम स्वार्थी और नीच नहीं है?” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि परमेश्वर उन स्वार्थी लोगों से घृणा करता है, जो सिर्फ अपने निजी हितों की रक्षा करते हैं। यह इन वचनों से विशेष रूप से स्पष्ट हुआ : “क्या यह शैतान के काम करने का तरीका नहीं है? अविश्वासी लोग इसी तरह से काम किया करते हैं। ... वे अविश्वासी और गैर-विश्वासी हैं।” मुझे लगा, जैसे परमेश्वर मेरे सामने खड़ा होकर मुझे उजागर कर रहा था, शर्म से सिर नहीं उठा पाई। कलीसिया में सिंचन-कर्मियों की बहुत कमी थी, समय पर सिंचन न किए जाने से कई नवागत छोड़कर जा रहे थे, अगुआ का लियू शाओ को उनके सिंचन के लिए भेजना पूरी तरह से उपयुक्त और सिद्धांतों के अनुरूप था, पर मैंने कलीसिया के कार्य पर कोई ध्यान न देकर सिर्फ अपने हितों पर ध्यान दिया। मुझे डर था कि अगर लियू शाओ का तबादला हुआ, तो मुझे और मेहनत कर ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। मुझे कार्य की प्रभावशीलता में गिरावट से प्रतिष्ठा और हैसियत को होने वाले नुकसान की भी चिंता थी। इस वजह से, मैंने अगुआ के आड़े आने और लियू शाओ का तबादला रोकने की कोशिश की “सुसमाचार-कार्य भी अहम है, उसमें देरी नहीं की जा सकती” ऐसा बहाना बनाया। मैं वाकई स्वार्थी और नीच थी। मैं सिर्फ अपने हितों के बारे में सोच रही थी। मैं सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बढ़ाने के लिए लियू शाओ को अपने साथ रखना चाहती थी। क्या मैं किसी अविश्वासी जैसी ही नहीं थी? अविश्वासियों की दुनिया में कॉर्पोरेट बॉस लोगों को कुछ कौशल सिखाते हैं, और चाहते हैं कि वे पूरी तरह से उनके लिए काम करें। इसी तरह, मैंने सोचा कि मैंने अकेले लियू शाओ को विकसित किया है, इसलिए उसे मेरे साथ रहना और मेरी व्यवस्थाओं को समर्पित होना चाहिए। मैं वाकई अनुचित थी। कलीसिया ने मेरे लिए सुसमाचार-कार्य की देखरेख की व्यवस्था की थी। यह मेरी जिम्मेदारी और मेरा कर्तव्य था, जो मुझे निभाना था। यह मेरा निजी उद्यम नहीं था; यह कलीसिया का कार्य था। जहाँ तक कर्मियों के तबादले और व्यवस्था की बात थी, यह अगुआ का निर्णय था कि लोगों को सिद्धांतों के अनुसार कैसे लगाया जाए, मैं हस्तक्षेप करने योग्य नहीं थी, मुझे उसके आड़े आने का अधिकार तो बिलकुल नहीं था। मुझे समर्पित होकर स्वीकार करना चाहिए था; सिर्फ यही सही था। इस विचार से मैं अपने कार्यों और आचरण को लेकर पश्चात्ताप और आत्म-निंदा से भर गई। पश्चात्ताप से भरकर मैं परमेश्वर के सामने आई, और स्वार्थपूर्ण इरादे त्यागकर कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार हो गई। अगले दिन, मैंने लियू शाओ के साथ उसके नवागतों का सिंचन करने जाने के बारे में संगति की। इस तरह अभ्यास करने से मुझे बहुत शांति और राहत महसूस हुई।
जल्दी ही, मैंने पाया कि बहन पेंग हुईझेन और भाई यांग जी में ऐसी खूबियाँ हैं, जो सुसमाचार-कार्य में अच्छी रहेंगी, मैं सुसमाचार-प्रचार में अक्सर उन्हें साथ लेकर, उन्हें विकसित करने लगी। कुछ समय बाद, उन्होंने सुसमाचार-कर्मियों के रूप में जल्द प्रगति कर अच्छे नतीजे हासिल किए। मैं बहुत खुश हुई, समूह में दो और सुसमाचार-कर्मी होने से कार्य में भी सुधार हुआ, और मेरी प्रेरणा शक्ति बढ़ी। लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ, जब कुछ हफ्ते बाद अगुआ ने मुझसे कहा, “दूसरी कलीसियाओं में बहुत सुसमाचार-कार्य किया जाना है, लेकिन पर्याप्त सुसमाचार-कर्मी नहीं हैं। मैं भाई यांग जी और लू मिंग को भेजकर इस कमी को पूरा करना चाहती हूँ। हुईझेन में भी अच्छी क्षमता है, वह विकसित किए जाने लायक है। मैं उसे नवागतों के सिंचन-कार्य की देखरेख में लगाना चाहती हूँ।” यह सुनकर मेरा दिल डूब गया अचानक पूरी तरह से अशक्त महसूस करते हुए मैं अपनी कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गई, हिलने-डुलने में असमर्थ हो गई। मैंने मन में सोचा, “एक व्यक्ति का तबादला करना तो ठीक था, लेकिन अब आप तीन लोगों का तबादला कर रही हैं? आप मेरी मुश्किलें बढ़ा रहीं हैं। अगर आप मेरे इन सहायकों का तबादला कर देती हैं और कार्य को नुकसान पहुँचता है, तो क्या आप यह नहीं कहेंगी कि मैं व्यावहारिक कार्य नहीं करती और एक नकली अगुआ हूँ? बर्खास्त हो गई, तो फिर अपना मुँह कैसे दिखाऊँगी? ऐसा लगेगा, जैसे मैं इस कार्य के लिए अक्षम हूँ।” यह सब सोचकर मैंने तल्खी से कहा, “क्या आप एक को भी नहीं छोड़ सकतीं? क्या तीनों को एक-साथ भेजने से सुसमाचार-कार्य में देरी नहीं होगी?” अगुआ ने देखा कि मैं कितनी प्रतिरोधी हूँ, और मेरे साथ संगति की, पर मैंने उसकी एक न सुनी। अगुआ के जाने के बाद मैं अपने तीन सहायकों के तबादले को लेकर असंतोष की भावना से भर गई। उनका तबादला होने पर मुझे नए लोगों को प्रशिक्षित करना होगा, इसमें मेहनत लगेगी, फिर अगर कार्य अपेक्षित स्तर का न हुआ, तो हर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा? क्या वे यह नहीं कहेंगे कि नई थी तो ऊर्जा थी, अब जोश ठंडा पड़ते ही मैं पूरी तरह से अक्षम हो गई हूँ? जितना सोचा, उतनी परेशान होती गई। मैं उदास हो गई और मेरी सारी प्रेरणा खो गई। इसके बाद, मैंने अपने कर्तव्य में कोई दायित्व नहीं उठाया, मुश्किलें हल करने का ईमानदारी से प्रयास नहीं किया। अगुआ ने बाद में कुछ अन्य लोगों को सुसमाचार-कार्य के लिए भेजा, पर मेरी उन्हें प्रशिक्षित करने की इच्छा नहीं हुई। मैं जानती थी कि सुसमाचार-कार्य शुरू करने पर कई समस्याएँ होंगी, जिन्हें वे हल नहीं कर पाएँगे, पर मैंने कोई ध्यान नहीं दिया बस उनके सीधे सुसमाचार का प्रचार करने की व्यवस्था कर दी। धीरे-धीरे, मेरा दिल अधिकाधिक अंधकारमय होता गया, मुझे लगा, मानो मैं अपने कर्तव्य में पिछड़ रही हूँ। मैं जानती थी कि मेरी स्थिति गलत है, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर खुद को जानने के लिए चिंतन किया।
भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े। “अगर मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी क्षमता वाले व्यक्ति को दूसरा कर्तव्य निभाने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है, और उसमें अगुआ या समूह-प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके ‘दाएँ हाथ जैसे व्यक्ति’ का तबादला उनके काम की उत्पादकता और प्रगति को प्रभावित करेगा, और परिणामस्वरूप उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा प्रभावित होगी, जिससे उन्हें उत्पादकता की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं, और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है, तो वे बहुत हंगामा करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम करने से भी मना कर देते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, टीम-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, जब वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं, तो क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे अपना काम गड़बड़ा देंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं, तो यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए, तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : ‘ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।’ जिन लोगों में विवेक और समझ होती है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए, और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनके अंदर ऐसी ही समझ होनी चाहिए। जब परमेश्वर के घर को कोई विशेष आवश्यकता हो, तो परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा अंतःकरण और समझ नहीं होती। वे सब स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिलकुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की संपत्ति को—अपने अधीन सभी चीजों को—निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। यह उन पर होता है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें, और परमेश्वर के घर को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं, और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है, उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन करना होता है, और उनसे इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधी के चरित्र के स्वार्थ और नीचता का प्रकटन होता है। वे सिद्धांत का जरा भी पालन नहीं करते, वे परमेश्वर के घर के हितों पर कोई ध्यान नहीं देते, और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव के सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने बहुत व्यथित और असहज महसूस किया। परमेश्वर कहता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से स्वार्थी और मानवता-विहीन होते हैं। समस्याएँ आने पर वे सिर्फ प्रतिष्ठा और हैसियत की सोचते हैं। लोगों को अपने अँगूठे के नीचे रखते हैं, कलीसिया में व्यवस्थाएँ और समायोजन नहीं होने देते, कलीसिया के कार्य की परवाह नहीं करते। क्या मेरे कार्य और आचरण मसीह-विरोधी जैसे ही नहीं थे? बतौर निरीक्षक मुझे प्रतिभाशाली व्यक्तियों का विकास करना चाहिए था। यह मेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य था। कलीसिया कार्य की अपेक्षाओं के साथ प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा के अनुसार कर्मियों का समायोजन करती है। मुझे अपना कर्तव्य बनाए रखना, उसका पालन और निर्वाह करना चाहिए था। लेकिन मैंने कलीसिया के समग्र कार्य पर विचार नहीं किया, सिर्फ अच्छी क्षमता वाले इन प्रतिभाशाली सुसमाचार-कर्मियों को साथ रखना चाहा, ताकि मेरी प्रतिष्ठा और हैसियत बढ़ सके। जैसे ही अगुआ ने लोगों को मेरी पहुँच से बाहर भेजना चाहा, मैं प्रतिरोधी, असंतुष्ट हो गई, यहाँ तक कि मैंने नाराज होकर पद भी छोड़ना चाहा। मैं लगातार चिंतित रही कि इन सहायकों का तबादला किए जाने से कार्य प्रभावित होगा, मेरी प्रतिष्ठा और हैसियत खतरे में पड़ जाएगी। मैं वास्तव में स्वार्थी और नीच थी। क्या मुझमें जरा भी मानवता या विवेक था? मेरे द्वारा प्रकट किया गया स्वभाव मसीह-विरोधी के स्वभाव से कैसे अलग था? मैंने फरीसियों और आधुनिक धार्मिक दुनिया के पादरियों के बारे में सोचा। जब परमेश्वर कार्य करने आया, तो अपनी हैसियत और आजीविका बचाने के लिए उन्होंने विश्वासियों को परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने के लिए सब आजमाया। अपनी हैसियत और आजीविका की खातिर उन्होंने विश्वासियों को हमेशा अपने अँगूठे के नीचे रखा। नतीजतन, वे मसीह-विरोधी बन गए, परमेश्वर द्वारा दंडित और शापित किए गए। अपना व्यवहार देखूँ तो, मैंने भाई-बहनों को सुसमाचार प्रचार के लिए विकसित करने को छोटी कीमत चुकाई, उन्हें अकेले काम करते देख मैंने इसे अपनी क्षमता और प्रतिभा दिखाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करना चाहा, ताकि दूसरों की प्रशंसा पा सकूँ। इस वजह से, मैं नहीं चाहती थी कि अगुआ लोगों को मेरी जिम्मेदारी के दायरे से बाहर भेजें। मैं इन क्षमतावान और कर्तव्य अच्छी तरह निभाने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने साथ रखकर उनका अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी। क्या मेरे व्यवहार का सार फरीसियों और धार्मिक जगत के मसीह-विरोधियों जैसा नहीं था? परमेश्वर के घर का कार्य बँटा हुआ नहीं है। जहाँ भी कार्य के लिए लोगों की जरूरत हो, उन्हें भेजा जाना चाहिए। कर्मियों के तबादले का यही उचित तरीका है। पर जब मैंने अच्छी कार्यक्षमता वाले भाई-बहनों को एक-एक करके दूर भेजे जाते देखा, तो लगा, जैसे मेरा दायाँ हाथ नहीं रहा, जिसका मेरे कार्य पर सीधा असर पड़ेगा। ऐसा लगा, जैसे मेरी प्रतिष्ठा और हैसियत खतरे में पड़ रही है, इसलिए मैं उन्हें जाने नहीं देना चाहती थी। जब अगुआ ने मुझसे बात की, तब भी मैंने बहाने बनाने, सहायकों को पकड़े रहने की कोशिश की। खुद को अपने क्षेत्र की मालकिन समझकर, सोचा कि मेरे द्वारा विकसित प्रतिभाएँ, सिर्फ मेरे लिए हैं। मैं तानाशाह जैसी बन गई थी, किसी जगह को अपनी जागीर बता रही थी। जब इन लोगों का तबादला किया गया, तो मुझे चिंता हुई कि कार्य प्रभावित होगा, प्रतिष्ठा और हैसियत पाने की मेरी इच्छा अपूर्ण रह जाएगी, इसलिए मैं अपने कार्य में सुस्त हो गई, यहाँ तक कि यह जानने के बावजूद कि सुसमाचार-कार्य के लिए नए कर्मी अभी भी कई सिद्धान्त नहीं समझते, मैंने उनकी उपेक्षा की और उन्हें सुसमाचार फैलाने के लिए कह दिया। मैं उन्हें प्रशिक्षित नहीं करना चाहती थी। अपने व्यवहार को याद करूँ तो, मेरा जमीर, विवेक और मानवता कहाँ थी? कलीसिया ने मेरे लिए सुसमाचार-कार्य की देखरेख की व्यवस्था की थी, ताकि मैं भाई-बहनों के साथ सुसमाचार का प्रसार कर सकूँ और हम अपने स्थान पर कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकें। पर मुझमें शर्म नहीं थी, मैंने भाई-बहनों का मनचाहा इस्तेमाल करने के लिए उन्हें अँगूठे के नीचे रखा। ऐसा करके मैं परमेश्वर का विरोध कर रही थी, और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी! अगर परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन और तथ्यों का प्रकटन न होता, तो मैं अभी भी अपने मसीह-विरोधी स्वभाव की गंभीरता न जान पाती न ही ये कि मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर हूँ, बुराई और परमेश्वर का विरोध कर रही हूँ। जितना ज्यादा इस बारे में सोचा, उतनी ही ज्यादा डरी, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर पश्चात्ताप किया, कहा कि मैं परमेश्वर का विरोध नहीं बल्कि समर्पण कर अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना चाहती हूँ।
बाद में, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े: “जो लोग सत्य को व्यवहार में लाने में सक्षम हैं, वे अपने कार्यों में परमेश्वर की जाँच को स्वीकार कर सकते हैं। जब तुम परमेश्वर की जाँच स्वीकार करते हो, तो तुम्हारा हृदय निष्कपट हो जाता है। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही काम करते हो, हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहते हो, लेकिन परमेश्वर की जाँच स्वीकार नहीं करते, तो क्या तुम्हारे हृदय में परमेश्वर है? ऐसे लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा नहीं होती। हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत पर विचार मत कर। तुझे सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उसे अपनी पहली प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुझे परमेश्वर की इच्छा की परवाह करनी चाहिए, इस पर चिंतन करने के द्वारा आरंभ कर कि तू अपने कर्तव्य को पूरा करने में अशुद्ध रहा है या नहीं, तू वफादार रहा है या नहीं, तूने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही क्या तूने अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार किया है। तुझे इन चीज़ों के बारे में विचार करने की आवश्यकता है। इन पर बार-बार विचार कर और इन्हें समझ, और तू आसानी से अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभा पाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “अपने कर्तव्य को निभाने वाले उन तमाम लोगों के लिए, चाहे सत्य की उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, अपनी स्वार्थी इच्छाओं, व्यक्तिगत इरादों, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है। तुम्हें पहले परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान रखना चाहिए, परमेश्वर की इच्छा के प्रति विचारशील होना चाहिए, कलीसिया के कार्य का ध्यान रखना चाहिए, और इन चीजों को पहले स्थान पर रखना चाहिए; उसके बाद ही तुम अपने रुतबे की स्थिरता या दूसरे लोग तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता कर सकते हो। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि जब तुम इसे इन चरणों में बाँट देते हो और कुछ समझौता कर लेते हो तो यह थोड़ा आसान हो जाता है? यदि तुम ऐसा कुछ समय के लिए इस तरह अभ्यास करते हो, तो तुम यह अनुभव करने लगोगे कि परमेश्वर को संतुष्ट करना मुश्किल नहीं है। इसके साथ ही, तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, अपनी स्वार्थी इच्छाएँ, व्यक्तिगत अभिलाषाएँ और इरादे त्याग देने चाहिए, परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। इस तरह से कुछ समय अनुभव करने के बाद, तुम पाओगे कि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। नीच या निकम्मा व्यक्ति बने बिना, यह सरलता और नेकी से जीना है, न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है, एक नीच और ओछे व्यक्ति की तरह नहीं। तुम पाओगे कि किसी व्यक्ति को ऐसे ही जीना और काम करना चाहिए। धीरे-धीरे, अपने हितों को पूरा करने की तुम्हारी इच्छा घटती चली जाएगी” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। ईश-वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया, कि तुम कुछ भी दूसरों को दिखाने के लिए न करो, बल्कि तुम्हें परमेश्वर की जाँच स्वीकारनी चाहिए। समस्याएँ आएँ, तो पहले सही रवैया अपनाकर कलीसिया के कार्य को प्राथमिकता दो, परमेश्वर की इच्छा पर और हर समय कलीसिया के कार्य पर ध्यान दो। कर्तव्य में परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होने का यही तरीका है। बतौर सुसमाचार-कार्य-निरीक्षक, मुझे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को ध्यानपूर्वक विकसित करना चाहिए, ताकि वे राज्य का सुसमाचार फैलाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकें। तब से, मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना शुरू किया।
एक महीने बाद, एक सभा में बहन डोंग की संगति के दौरान, मैंने पाया कि उसने स्पष्टता के साथ सत्य पर संगति की वह जिनके सामने प्रचार कर रही थी, उनके अहम मुद्दे हल करते समय मुख्य बातें समझ सकी। मैंने सोचा, अगर मैं उसे अच्छी तरह प्रशिक्षित करूँ, तो वह बहुत जल्दी अकेले सुसमाचार फैला पाएगी। कुछ समय के अभ्यास के बाद, डोंग शिन को सुसमाचार-कार्य में अच्छे नतीजे मिल गए, वह उन नए लोगों का सिंचन करने में भी सक्षम थी, जिन्होंने उससे सुसमाचार स्वीकारा था। मैंने मन में सोचा, “डोंग शिन की क्षमता नवागतों का सिंचन करने के लिए सबसे उपयुक्त लगती है। अगुआ हाल ही में मुझसे सिंचन-कर्मी उपलब्ध कराने के लिए कह रही थी, तो क्या मुझे डोंग शिन को भेज देना चाहिए?” लेकिन फिर यह विचार आया, “उसे अपने कर्तव्य में इतने अच्छे नतीजे मिल रहे हैं , वह समूह की ताकत है। उसे नवागतों के सिंचन के लिए भेजा, तो मेरी देखरेख वाला कार्य प्रभावित नहीं होगा?” तभी अचानक मुझे समझ आया, “क्या मैं फिर से अपनी प्रतिष्ठा, हैसियत और हितों की नहीं सोच रही?” ईश-वचनों में लिखा है, “निस्वार्थ ढंग से काम करना, कलीसिया के काम के बारे में सोचना, और वही करना जिससे परमेश्वर संतुष्ट होता है, यह धार्मिक और सम्मानजनक है और इससे तुम्हारे अस्तित्व का महत्व होगा। पृथ्वी पर इस तरह का जीवन जीते हुए तुम खुले दिल के और ईमानदार रहते हो, सामान्य मानवता और मनुष्य की सच्ची छवि के साथ जीते हो, और न सिर्फ तुम्हारी अंतरात्मा साफ रहती है बल्कि तुम परमेश्वर की सभी कृपाओं के भी पात्र बन जाते हो। तुम जितना ज्यादा इस तरह जीते हो, खुद को उतना ही स्थिर महसूस करते हो, उतनी ही सुख-शांति और उतना ही उज्जवल महसूस करते हो। इस तरह, क्या तुम परमेश्वर में अपनी आस्था के सही रास्ते पर कदम नहीं रख चुके होगे?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि कलीसिया के सदस्य के नाते हमेशा परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ और योजनाएँ किनारे रखनी चाहिए। ऐसा करने से लोग उदार, कर्तव्यनिष्ठ और विवेकशील बन सकते हैं। मैं अपनी हैसियत, प्रतिष्ठा और हितों पर विचार नहीं कर सकती थी। मुझे अपने हित और योजनाएँ अलग रखनी थीं, सही इरादे से ईश-वचनों के अनुसार अभ्यास करना था। यह सोचकर मैंने अगुआ को डोंग शिन के बारे में बताते हुए एक पत्र भेजा। जल्दी ही उसने डोंग शिन के अन्य कलीसिया में नए लोगों का सिंचन करने की व्यवस्था कर दी। इस तरह अभ्यास करने से मुझे काफी राहत महसूस हुई।
इस अनुभव के जरिये मैंने सीखा कि जब मैंने सही उद्देश्य अपनाए, कलीसिया के कार्य को प्राथमिकता देकर अपने हितों पर विचार नहीं किया, तब मेरा दिल सच्चा दायित्व उठा पाया। मैं सुसमाचार फैलाने का अभ्यास करने के लिए उपयुक्त लोग ढूँढ़ने और कार्य में समस्याएँ दूर करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने लगी। जब मैंने इस तरह असली कीमत चुकाई, तो कार्य में गड़बड़ नहीं, बल्कि असल में सुधार हुआ! डोंग शिन के तबादले के जरिये मैंने सीखा कि जब मैंने कर्तव्य में स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ अलग रखके, परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान दिया, और कलीसिया का कार्य पहले रखा, तो न सिर्फ मैं कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ पूरी कर पाई, बल्कि शांति और सुकून की भावना के साथ कर्तव्य में नतीजे भी हासिल किए। परमेश्वर का धन्यवाद!
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