मेरी बेटी को ल्यूकेमिया होने के बाद

16 दिसम्बर, 2025

ली हान, चीन

नवंबर 2005 में जब मेरी बेटी नौ महीने की थी, मेरे पति को अचानक तीव्र माइलॉयड ल्यूकेमिया, टाइप M5 होने का पता चला। एक महीने के अंदर ही उसका निधन हो गया। उस समय मैं सिर्फ 23 वर्ष की थी और मैं अत्यधिक संताप में थी। मैंने इतनी कम उम्र में अपने पति को खो दिया था। मैं अपनी बाकी जिंदगी कैसे काट पाऊँगी? मेरी बेटी को स्वस्थ बचपन के लिए अच्छा पारिवारिक माहौल मिले, इसके लिए मेरे ससुराल वालों ने मुझसे मेरी बेटी के चाचा के साथ रहने का आग्रह किया। पति के निधन के एक साल बाद मैं अपने देवर से शादी करने के लिए सहमत हो गई। उस समय मैं इस बात को लेकर चिंतित थी कि क्या मेरी बेटी आनुवंशिक रूप से अपने पिता की बीमारी के प्रति ग्रहणशील होगी, इसलिए मैंने एक विशेषज्ञ से सलाह ली। विशेषज्ञ ने कहा, “इस बात के आसार हैं कि यह ग्रहणशीलता उसमें जा सकती है। लेकिन तुम्हारी बेटी अभी छोटी है, इसलिए इसकी इतनी जल्दी जाँच करने की कोई जरूरत नहीं है।” मुझे बहुत चिंता थी कि मेरी बेटी भी ल्यूकेमिया से पीड़ित हो जाएगी और अपने पिता की तरह मुझे छोड़ कर चली जाएगी, इसलिए मैं हमेशा चिंता और बेचैनी में जीती थी। मेरी सास भी मेरे प्रति कठोर थी और अक्सर गुस्सा हो जाती थी। मुझे लगता था कि जीवन निरर्थक है और मैंने कई मौकों पर मरने के बारे में सोचा। लेकिन अपनी बच्ची की खातिर मैंने जीने के लिए संघर्ष किया।

नवंबर 2008 में मेरी माँ और एक बहन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। मैंने अपने परिवार में जो कुछ हुआ था, उसके बारे में बात करना शुरू किया। फिर बहन ने मेरे साथ संगति की, “मनुष्यों द्वारा अनुभव किए जाने वाला यह सारा दुख शैतान द्वारा लाया गया है। मनुष्य का सृजन परमेश्वर ने किया था और चूँकि परमेश्वर लोगों को दुख भोगते देखना सह नहीं सकता, इसलिए वह लोगों को बचाने और शैतान द्वारा पहुँचाए गए नुकसान को उतार फेंकने में उनकी मदद के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर आया। अब से अगर हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, परमेश्वर के वचनों को अक्सर पढ़ते हैं और सत्य समझते हैं तो हम फिर कभी पीड़ित नहीं होंगे। परमेश्वर मानवजाति का सहारा है।” बहन ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों का अध्याय भी पढ़ा जिसका शीर्षक था, “परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य पर संप्रभु है।” जब मैंने परमेश्वर के वचन सुने तो ऐसा लगा मानो मैंने कोई ऐसी गोली खा ली हो जिसने चमत्कारिक रूप से मेरा मन शांत कर दिया हो। अब मुझे सहारा मिल गया था! परमेश्वर के पास अधिकार और सामर्थ्य है। वह स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजों का सृजन कर सकता है। परमेश्वर हर व्यक्ति के भाग्य का प्रभारी है। जब तक मैं परमेश्वर में सही तरीके से विश्वास रखती हूँ और अपनी बेटी को परमेश्वर को सौंपती हूँ, परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा। इसके बाद मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और सक्रियता से सभाओं में भाग लिया और अपना कर्तव्य किया। मैं बिल्कुल भी बेबस नहीं थी, न तो मुश्किलों से और न ही अपने पति के उत्पीड़न से। पूरे दिल से मैं बस अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना चाहती थी। मुझे लगा कि जब परमेश्वर मेरे प्रयासों और खपने को देखेगा तो वह निश्चित रूप से मुझे आशीष देगा। अगले कुछ वर्षों तक मेरी बेटी की सेहत बहुत अच्छी रही। उसे शायद ही कभी सर्दी-जुकाम हुआ हो। मुझे लगा कि परमेश्वर में विश्वास रखना बहुत अच्छा है और परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी इच्छा और भी मजबूत हो गई।

पलक झपकते ही 2014 खत्म हो गया और मेरी बेटी दस साल की हो गई। नए साल का जश्न मनाने के बाद मैं अपने कर्तव्य करने के लिए शहर से बाहर चली गई। मुझे गए कुछ ही दिन हुए थे कि मेरी सास ने फोन करके बताया कि मेरी बेटी को बुखार और सर्दी है और वह बिल्कुल भी ठीक नहीं हो रही है। मैंने मन ही मन सोचा, “यह तो बस एक आम बीमारी है। बस उसे अस्पताल ले जाकर चेकअप करवा लो और वह ठीक हो जाएगी।” मैंने इसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया। एक पखवाड़े बाद मेरी सास ने अचानक फोन करके मुझे तुरंत वापस आने के लिए कहा। उसने कहा कि मेरी बेटी को जाँच कराने के लिए काउंटी अस्पताल ले जाया गया था और रक्त परीक्षण से पता चला कि उसमें श्वेत रक्त कोशिकाओं का स्तर बहुत ही ज्यादा है। आशंका थी कि यह ल्यूकेमिया हो सकता है और उसे आगे की जाँच के लिए शहर के अस्पताल ले जाने की जरूरत है। जब मैंने यह खबर सुनी तो मैं अवाक रह गई और सोचने लगी, “ल्यूकेमिया? क्या यह बिल्कुल वही बीमारी नहीं है जो उसके पिता को थी? अगर उसे यह हो गई तो क्या सब कुछ खत्म नहीं हो जाएगा? उसके पिता का निधन यह बीमारी होने के एक महीने के भीतर ही हो गया था। मेरी बेटी इस बीमारी के साथ कितने समय तक जीवित रहेगी?” मेरे दिल में आतंक और भय का भाव था। मुझे चिंता थी कि मेरी बेटी मुझे कभी भी छोड़ कर चली जाएगी। मैंने अपना कार्य कुछ समय के लिए अपनी साझेदार बहन को सौंप दिया और तुरंत घर जाने के लिए बस पकड़ ली। मैं बस में लगातार रोती रही। अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, परमेश्वर से अपने दिल की रक्षा करने के लिए कहती रही ताकि यह शांत हो और इस परिस्थिति के प्रति समर्पण कर सके। तब मैंने फिर से सोचा, “मुझे अभी-अभी अगुआ चुना गया है और मैं अपना कर्तव्य कर रही हूँ। यह परमेश्वर की ओर से एक परीक्षा हो सकती है। मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी ही है। जब परमेश्वर मेरी आस्था देखेगा तो वह मेरी बेटी की बीमारी हर सकता है। या हो सकता है कि यह बस एनीमिया ही निकले।” अपने दिल में मैंने परमेश्वर से कहा, “प्रिय परमेश्वर, तुम जानते हो कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है। तुम मेरी बेटी को ल्यूकेमिया से बचा लो। मैं फिर से अपनी बेटी की जाँच कराऊँगी और कुछ दिनों बाद अपना कर्तव्य करने के लिए लौट आऊँगी।” प्रार्थना करने के बाद अब मेरे दिल में इतना दुख नहीं हुआ। जब मैं घर पहुँची, मैंने अपनी बेटी की थकी-थकी और पीली पड़ चुकी रंगत देखी। उसके होठों में कोई रंग नहीं था और उसके मुँह के कोने पर एक घाव था। मैं बहुत दुखी थी और मैंने आँसू रोकते हुए अपना चेहरा एक तरफ घुमा लिया। मैं और मेरा पति अपनी बेटी को जाँच के लिए शहर के अस्पताल ले गए। रास्ते में मैंने अपनी अंतरतम भावनाओं को नियंत्रित करने की पूरी कोशिश की, डरती रही कि अगर मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई तो मैं नियंत्रण खो दूँगी। जाँच कराने के लिए अस्पताल जाने के बाद डॉक्टर ने कहा कि मेरी बेटी की श्वेत रक्त कोशिका की गिनती खासकर ज्यादा है और उसकी लाल रक्त कोशिका और प्लेटलेट की गिनती बहुत कम है। उसका वर्तमान आकलन यह था कि यह शायद ल्यूकेमिया है। ल्यूकेमिया तीव्र लिम्फोसाइटिक या तीव्र माइलॉयड हो सकता है और उसने पता लगाने के लिए अस्थि मज्जा परीक्षण कराने की सिफारिश की। चूँकि मेरी बेटी बहुत कमजोर थी, डॉक्टर ने हमें जाँच के दौरान स्थिति पर ध्यान देने और मानसिक रूप से तैयार रहने के लिए कहा। जब मैंने डॉक्टर को यह कहते सुना तो मैं पूरी तरह से कमजोर पड़ गई। मैंने मन ही मन सोचा, “क्या यह ल्यूकेमिया नहीं है? हम निष्कर्ष से सिर्फ एक अस्थि मज्जा परीक्षण दूर हैं। मेरी बेटी को यह बीमारी कैसे हो सकती है?” जितना ज्यादा मैंने सोचा, उतनी ही ज्यादा मैं दुखी हो गई और मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाई। मैंने अपने दिल में लगातार परमेश्वर से बहस की, “परमेश्वर, मैं तुम पर सच्चे दिल और गंभीरता से विश्वास रखती हूँ और मैंने अपनी बेटी तुम्हें सौंपी है। फिर भी मेरी बेटी को इतनी गंभीर बीमारी कैसे हो सकती है? परमेश्वर, मैंने तुम पर सिर्फ कुछ वर्षों से विश्वास किया है और मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है। अगर मुझे अपना बच्चा खोना पड़ा तो मैं इसे सहन नहीं कर पाऊँगी!” जब मैं पीड़ा और यातना में इंतजार कर रही थी तो मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उम्मीद करती रही कि वह मेरे दिल को अपने सामने शांत रखेगा।

मुझे याद आया कि कैसे अय्यूब का परीक्षण हुआ था और उसने परमेश्वर के बारे में शिकायत किए बिना अपने बच्चों को गँवा दिया था। मैंने चुपचाप अपना एमपी5 प्लेयर चालू किया और गुप्त रूप से परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर द्वारा शैतान से यह कहने के बाद कि ‘जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना,’ शैतान चला गया, जिसके तुरंत बाद अय्यूब के ऊपर अचानक और भयंकर हमले होने लगे : पहले, उसके बैल और गधे लूट लिए गए और उसके कुछ सेवकों को मार दिया गया; फिर, उसकी भेड़-बकरियों और कुछ और सेवकों को आग में भस्म कर दिया गया; उसके पश्चात्, उसके ऊँट ले लिए गए और उसके कुछ और सेवकों की हत्या कर दी गई; अंत में, उसके पुत्र और पुत्रियों की जानें ले ली गईं। हमलों की यह श्रृंखला अय्यूब द्वारा अपने पहले प्रलोभन के दौरान झेली गई यातना थी। जैसा कि परमेश्वर द्वारा आदेशित था, इन हमलों के दौरान शैतान ने केवल अय्यूब की संपत्ति और उसके बच्चों को लक्ष्य बनाया था, और स्वयं अय्यूब को हानि नहीं पहुँचाई थी। तथापि, अय्यूब विशाल संपदा से संपन्न धनवान मनुष्य से तत्क्षण ऐसे व्यक्ति में बदल गया जिसके पास कुछ भी नहीं था। कोई भी व्यक्ति यह विस्मयकारी अप्रत्याशित झटका सहन नहीं कर सकता था या इसके प्रति समुचित प्रतिक्रिया नहीं कर सकता था, फिर भी अय्यूब ने अपने असाधारण पहलू का प्रदर्शन किया। पवित्र शास्त्र नीचे लिखा विवरण प्रदान करते हैं : ‘तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया।’ यह सुनने के पश्चात् कि अय्यूब ने अपने बच्चे और अपनी सारी संपत्ति गँवा दी थी, यह अय्यूब की पहली प्रतिक्रिया थी। सबसे बढ़कर, वह आश्चर्यचकित, या घबराया हुआ नहीं दिखा, उसने क्रोध या नफ़रत तो और भी व्यक्त नहीं की। तो, तुम देखते हो कि वह अपने हृदय में पहले से ही पहचान गया था कि ये आपदाएँ आकस्मिक घटनाएँ नहीं थीं, या मनुष्य के हाथों से उत्पन्न नहीं हुई थीं, वे प्रतिफल या दण्ड का आगमन तो और भी नहीं थीं। इसके बजाय, यहोवा की परीक्षाएँ उसके ऊपर आ पड़ी थीं; वह यहोवा ही था जो उसकी संपत्ति और बच्चों को ले लेना चाहता था। उस समय अय्यूब बहुत शांत और सोच-विचार में स्पष्ट था। उसकी अचूक और खरी मानवता ने उसे अपने ऊपर आ पड़ी आपदाओं के बारे में तर्कसंगत और स्वाभाविक रूप से सटीक परख करने और निर्णय लेने में समर्थ बनाया, और इसके परिणामस्वरूप, उसने असामान्य शांत मन से व्यवहार किया : ‘तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुँड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया।’ ‘बागा फाड़’ का अर्थ है वह निर्वस्त्र था, और कुछ भी धारण नहीं किए था; ‘सिर मुँडाने’ का अर्थ है वह नवजात शिशु के समान परमेश्वर के समक्ष लौट आया था; ‘भूमि पर गिरा, और दण्डवत् किया’ का अर्थ है वह इस संसार में नग्न आया था, और आज भी उसके पास कुछ नहीं था, वह परमेश्वर के पास लौट आया था मानो नवजात शिशु हो। अय्यूब पर जो कुछ बीता था उस सबके प्रति उसके जैसे रवैये को कोई सृजित प्राणी हासिल नहीं कर सकता था। यहोवा में उसका विश्वास, विश्वास के क्षेत्र से आगे चला गया था; यह परमेश्वर के प्रति उसका भय, परमेश्वर के प्रति उसका समर्पण था; वह न केवल उसे देने के लिए, बल्कि उससे लेने के लिए भी परमेश्वर को धन्यवाद दे पाने में समर्थ था। इतना ही नहीं, वह स्वयं आगे बढ़कर वह सब करने में समर्थ था, जो अपना सब कुछ, अपने जीवन सहित, परमेश्वर को लौटाने के लिए आवश्यक था(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। “परमेश्वर के प्रति अय्यूब का भय और समर्पण मनुष्यजाति के लिए एक उदाहरण है, और उसकी पूर्णता और खरापन मानवता की पराकाष्ठा थी जिन्हें मनुष्य को धारण करना ही चाहिए। यद्यपि उसने परमेश्वर को नहीं देखा था, फिर भी उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर सचमुच विद्यमान था, और इस एहसास के कारण वह परमेश्वर का भय मानता था, और परमेश्वर के अपने इसी भय के कारण, वह परमेश्वर के प्रति समर्पण कर पाया था। उसने परमेश्वर को वह सब जो उसका था लेने की खुली छूट दे दी, फिर भी उसे कोई शिकायत नहीं थी, और वह परमेश्वर के समक्ष गिर गया और उसने उससे कहा कि, बिल्कुल इसी क्षण, यदि परमेश्वर उसकी देह भी ले ले, तो वह, शिकायत किए बिना, ख़ुशी-ख़ुशी उसे ऐसा करने देगा। उसका समूचा आचरण उसकी अचूक और खरी मानवता के कारण था(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II)। मैंने देखा कि जब उसके बच्चों की मृत्यु हुई और उसकी संपत्ति जब्त की गई तो अय्यूब ने कभी भी बहस या शिकायत नहीं की। उसने कभी परमेश्वर से नहीं पूछा, “मैं तुम पर विश्वास रखता हूँ तो मैंने अपने बच्चों और अपनी संपत्ति को क्यों गँवा दिया?” वह समझता था कि ये घटनाएँ उसके साथ परमेश्वर की अनुमति से हुई हैं और वह इनसे शांति से निपटने में सक्षम था। उसने अपने होठों से पाप नहीं किया और वह दंडवत होने और परमेश्वर की आराधना करने तक में सक्षम था, उसने कहा था, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। अय्यूब ने परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और सच्ची आज्ञाकारिता दिखाई। जब मुझे पता चला कि मेरी बेटी को बहुत संभवतया ल्यूकेमिया है तो मुझे डर था कि वह मुझे किसी भी समय छोड़कर चली जाएगी और मैंने शिकायत की कि परमेश्वर ने उसकी रक्षा नहीं की, न ही उसे आशीष दिया। मैं अपने दिल में परमेश्वर से बहस कर रही थी, क्योंकि मैं अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थी। मैंने देखा कि मुझमें परमेश्वर के प्रति कतई कोई समर्पण नहीं था। मैंने न सिर्फ परमेश्वर के बारे में शिकायत की, बल्कि मैंने परमेश्वर से बहस भी की और परमेश्वर से माँगें भी कीं। अय्यूब की तुलना में मुझमें सचमुच बिल्कुल भी विवेक नहीं था! अतीत में मुझे लगता था कि मैं परमेश्वर से सचमुच प्रेम करती हूँ। जब यह घटना मेरे साथ घटी, तभी मैं देख पाई कि मेरे विश्वास में अशुद्धियाँ थीं। मैं परमेश्वर से आशीष और अनुग्रह प्राप्त करना चाहती थी, चाहती थी कि परमेश्वर मेरी बेटी को उसके पिता की तरह ल्यूकेमिया से पीड़ित होने से बचाए। मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरा विश्वास वाकई परमेश्वर का इस्तेमाल करने, परमेश्वर के साथ सौदेबाजी करने और परमेश्वर को धोखा देने की कोशिश कर रहा था। मैं परमेश्वर में सच्ची विश्वासी नहीं थी। जब मुझे यह बात समझ में आई तो मैंने अपने दिल में व्यथा महसूस की। मैं परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस कर रही थी। मैं जल्दी से किसी ऐसे स्थान पर छिप गई जहाँ कोई भी आस-पास न हो और आँसू बहाते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मुझे ये वचन पढ़ने की अनुमति देने के लिए मैं तुम्हारा धन्यवाद करती हूँ। मैं अय्यूब का अनुकरण करने, तुम्हारी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने की इच्छुक हूँ। अगर मेरी बेटी को ल्यूकेमिया है तो मैं इसे स्वीकार करने और इसके प्रति समर्पण करने की इच्छुक हूँ।” परमेश्वर के वचनों की अगुआई से मेरा दिल बहुत बेहतर महसूस कर रहा था और मैं वास्तविकता का सामना करने की इच्छुक थी।

जाँच के नतीजे आने के बाद डॉक्टर ने कहा कि मेरी बेटी को ल्यूकेमिया होने की पुष्टि हुई है और यह कोई साधारण ल्यूकेमिया नहीं है, बल्कि M5 प्रकार का माइलॉयड ल्यूकेमिया है जिसे पूरी तरह ठीक करना बहुत मुश्किल है। डॉक्टर ने कहा, “बच्ची को बहुत लंबे समय से बुखार है और उसे अस्पताल लाने में काफी देर हो गई है। बीमारी पहले से ही बदतर हो चुकी है और कीमोथेरेपी करना भी खतरनाक है। अगर तुम्हारे पास पैसे हैं तो हम तुम्हारी बेटी का बोन मैरो ट्रांसप्लांट करवा सकते हैं, लेकिन ट्रांसप्लांट करवाने से भी शायद उसकी जान न बच पाए। इस बीमारी में जीवित रहने की दर 10 लाख में 1 है और वह ज्यादा से ज्यादा तीन महीने ही जीवित रह पाएगी। इसके अलावा कीमोथेरेपी के दौरान तुम्हारी बेटी खाना नहीं खा पाएगी, उसे उल्टी होगी और उसके बाल झड़ जाएँगे। तुम्हारी बेटी बहुत कमजोर है और अगर वह कीमोथेरेपी बर्दाश्त नहीं कर पाती है तो उसे किसी भी समय जान से हाथ धोने का खतरा हो सकता है। तुम्हें मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।” जब मैंने डॉक्टर को यह कहते सुना तो मैं पूरी तरह हताश हो गई। मेरी बेटी बहुत छोटी थी और अगर कीमोथेरेपी उसके बर्दाश्त से बाहर हुई तो वह कभी भी मर सकती थी। मैंने परमेश्वर से विनती करते हुए प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, डॉक्टर ने कहा है कि मेरी बेटी ज्यादा से ज्यादा तीन महीने ही जीवित रह सकती है। अगर वह कीमोथेरेपी बर्दाश्त नहीं कर पाती है तो वह हमें कभी भी छोड़कर जा सकती है। हे परमेश्वर, पिछले कुछ साल से मैं अपने कर्तव्य करने के लिए लगातार घर से दूर रही हूँ और मैं अपने बच्चे के साथ नहीं रही हूँ। जब मेरे परिवार ने मुझे रोकने की कोशिश की या मेरे रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने मेरा मजाक उड़ाया तो मैंने कभी शिकायत नहीं की। क्या तुम मेरे प्रयासों और खपने की खातिर मेरे बच्चे को कुछ और समय जीने दे सकते हो ताकि मैं उसकी थोड़ी और देखभाल कर सकूँ और अपने बच्चे के प्रति अपना ऋण चुका सकूँ?” प्रार्थना करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि शायद परमेश्वर से ऐसे माँग करके मैं अविवेकी हो रही हूँ। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्‍हें चुनौतियों और क्लेशों का सामना नहीं करना पड़ेगा,” “धूल-मिट्टी तुम्‍हारे चेहरे को छू भी न पाए।” जब लोगों का ध्यान नहीं था, मैंने जल्दी से अपना एमपी5 प्लेयर चालू किया और परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्‍हें चुनौतियों और क्लेशों या कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम हमेशा निरर्थक चीजों के पीछे भागते हो, और तुम जीवन के विकास को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्‍मे हो! तुम सूअर की तरह जीते हो—तुममें और सूअर और कुत्ते में क्या अंतर है? जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, बल्कि शरीर से प्यार करते हैं, क्या वे सब पूरे जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिनमें आत्मा नहीं है, चलती-फिरती लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच कितने सारे वचन कहे गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच केवल थोड़ा-सा ही कार्य किया गया है? मैंने तुम लोगों के बीच कितनी आपूर्ति की है? तो फिर तुमने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तुम्हें किस बात की शिकायत है? क्या यह बात नहीं है कि तुमने इसलिए कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तुम देह से बहुत अधिक प्रेम करते हो? क्योंकि तुम्‍हारे विचार बहुत ज्यादा निरर्थक हैं? क्योंकि तुम बहुत ज्यादा मूर्ख हो? यदि तुम इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम परमेश्वर को दोष दोगे कि उसने तुम्‍हें नहीं बचाया? तुम परमेश्वर में विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करना चाहते हो—ताकि अपनी संतान को बीमारी से दूर रख सको, अपने पति के लिए एक अच्छी नौकरी पा सको, अपने बेटे के लिए एक अच्छी पत्नी और अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पति पा सको, अपने बैल और घोड़े से जमीन की अच्छी जुताई कर पाने की क्षमता और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छा मौसम पा सको। तुम यही सब पाने की कामना करते हो। तुम्‍हारा लक्ष्य केवल सुखी जीवन बिताना है, तुम्‍हारे परिवार में कोई दुर्घटना न हो, आँधी-तूफान तुम्‍हारे पास से होकर गुजर जाएँ, धूल-मिट्टी तुम्‍हारे चेहरे को छू भी न पाए, तुम्‍हारे परिवार की फसलें बाढ़ में न बह जाएं, तुम किसी भी विपत्ति से प्रभावित न हो सको, तुम परमेश्वर के आलिंगन में रहो, एक आरामदायक घरौंदे में रहो। तुम जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा दैहिक सुख के पीछे भागता है—क्या तुम्‍हारे अंदर एक दिल है, क्या तुम्‍हारे अंदर एक आत्मा है? क्या तुम एक पशु नहीं हो? मैं बदले में बिना कुछ मांगे तुम्‍हें एक सत्य मार्ग देता हूँ, फिर भी तुम उसका अनुसरण नहीं करते। क्या तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं तुम्‍हें एक सच्चा मानवीय जीवन देता हूँ, फिर भी तुम अनुसरण नहीं करते। क्या तुम कुत्ते और सूअर से भिन्न नहीं हो? सूअर मनुष्य के जीवन की कामना नहीं करते, वे शुद्ध होने का प्रयास नहीं करते, और वे नहीं समझते कि जीवन क्या है। प्रतिदिन, उनका काम बस पेट भर खाना और सोना है। मैंने तुम्‍हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है : तुम्‍हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में एक सूअर का जीवन जीते रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के जिंदा रहने का क्या अर्थ है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी मनोदशा सटीक ढंग से उजागर कर दी। मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। मैं बहुत सारे वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखे हुई थी और अपना कर्तव्य पूरी लगन से निभाती थी लेकिन इसका उद्देश्य सत्य का अनुसरण और परमेश्वर के प्रति समर्पण करना नहीं, बल्कि सिर्फ अपने परिवार की सुरक्षा और अपनी बेटी को बीमारी से मुक्त रखना था। परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारने के बाद मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर लोगों की नियति पर शासन करता है और परमेश्वर लोगों को बचा सकता है, इसलिए मैंने परमेश्वर को अपना सहारा माना और ऐसा महसूस किया कि परमेश्वर में विश्वास करके मैं एक तिजोरी में प्रवेश कर चुकी हूँ। परमेश्वर से आशीष पाने के लिए मैं सक्रिय होकर अपना कर्तव्य निभाती थी और चाहे मेरे परिवार ने मुझे कितना भी रोकने की कोशिश की हो या मेरे रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने मेरा कितना भी मजाक उड़ाया हो, मैं बाधित नहीं हुई। जब डॉक्टर ने कहा कि मेरी बेटी के पास जीने के लिए ज्यादा से ज्यादा तीन महीने हैं और अगर वह कीमोथेरेपी सहन नहीं कर पाई तो वह कभी भी मर सकती है, मैंने परमेश्वर से शर्तों पर सौदेबाजी करने की कोशिश की, क्योंकि मुझे अपनी बेटी को खोने का डर था। मैं चाहती थी कि मेरे प्रयासों और खपने के कारण परमेश्वर मेरी बेटी को ज्यादा समय तक जीवित रखे। मेरी बेटी की बीमारी ने मेरे आशीष पाने के इरादे को समग्र रूप से प्रकट कर दिया। जब मैंने परमेश्वर में विश्वास किया और अपना कर्तव्य निभाया तो मैं सिर्फ परमेश्वर का इस्तेमाल करने और परमेश्वर को धोखा देने का प्रयास कर रही थी। धर्म में लोग सिर्फ परमेश्वर से आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे परमेश्वर का कार्य या परमेश्वर का स्वभाव नहीं समझते हैं, न ही वे परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हैं। भले ही वे अंत तक विश्वास कर लें, फिर भी वे परमेश्वर की स्वीकृति कभी नहीं हासिल कर पाएँगे। आज परमेश्वर न्याय और शुद्धिकरण का अपना कार्य कर रहा है। अगर मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया और अपने स्वभाव बदलने का प्रयास नहीं किया, इसके बजाय सिर्फ आशीष प्राप्त करना चाहा, तो क्या मैं भी धार्मिक लोगों की तरह नहीं थी? तभी मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर इस परिस्थिति का उपयोग मुझे शुद्ध करने और बचाने के लिए कर रहा था। वरना मैं अपने भीतर मौजूद भ्रष्टता, अशुद्धियों और शैतानी स्वभावों को कभी नहीं समझ पाती। मुझे बहुत पछतावा हुआ और मैंने परमेश्वर से पश्चात्ताप किया। मैं अब परमेश्वर से कोई माँग नहीं करूँगी। मेरा कर्तव्य कुछ ऐसा है जिसे मुझे अपने अधिकारों के अनुसार निभाना चाहिए। मुझे अपने द्वारा किए गए प्रयासों के आधार पर परमेश्वर से कोई माँग नहीं करनी चाहिए। मैं इस बात की इच्छुक थी कि अपनी बेटी परमेश्वर को सौंप दूँ, परमेश्वर को हर चीज का संप्रभु होने दूँ और हर चीज की व्यवस्था करने दूँ। जब तक मेरी बेटी जीवित रहे, मैं एक-एक दिन करके उसकी देखभाल करूँगी। रही बात वह कितने दिन जिएगी तो यह परमेश्वर के आयोजन की दया पर निर्भर रहेगा।

कीमोथेरेपी के दौरान उसे उल्टी नहीं हुई और उसे कोई दर्दनाक प्रतिक्रिया नहीं हुई। वह ठीक से खाने में सक्षम थी। इस बीच उसके आस-पास के कुछ रोगियों को भयंकर उल्टियाँ होने लगीं, वे कुछ खा नहीं पा रहे थे और उन्हें बुखार आ गया। उन्हें बहुत गंभीर जटिलताएँ थीं। जब मैंने यह सब देखा तो मुझे एहसास हुआ कि यह परमेश्वर द्वारा मेरी बेटी की सुरक्षा थी। लेकिन एक पखवाड़े बाद मेरी बेटी ने अपनी नाक खुजाई और उसमें संक्रमण हो गया। शुरू में उसने कहा कि उसकी नाक में दर्द है, फिर कुछ दिनों बाद उसने कहा कि उसके सिर में दर्द है। डॉक्टर ने कहा कि उसकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कम है क्योंकि उसमें श्वेत रक्त कोशिकाएँ कम थीं। उसकी नाक में संक्रमण ने पूरे शरीर में सूजन पैदा कर दी है जिससे दूसरी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। उसका सिरदर्द वायरल संक्रमण हो सकता है जो उसके मस्तिष्क तक पहुँच गया था। अगर वायरस उसके मस्तिष्क में फैल गया तो इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होगा। गंभीर मामलों में क्रैनियोटॉमी यानी खोपड़ी के एक हिस्से को निकालने की जरूरत होगी। इसमें बहुत पैसा खर्च होता है और मृत्यु का जोखिम होता है। डॉक्टर के जाने के बाद मेरे पति ने मुझसे कहा, “अगर हमारे पास पैसा होता तो हम अपनी बेटी को कई बार कीमोथेरेपी दे पाते और वह कुछ महीने और जी पाती, लेकिन हमारे पास कीमोथेरेपी के एक चक्र के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है।” फिर उसने मुझे पैसे न कमाने के लिए दोषी ठहराया, वरना हम अपनी बेटी के लिए कीमोथेरेपी के ज्यादा चक्रों का भुगतान करने में सक्षम होते। जब मैंने अपने पति को यह कहते सुना तो मेरा दिल वाकई बहुत परेशान हो गया। अगर वायरस ने सचमुच उसके मस्तिष्क को संक्रमित कर दिया था तो हमारे पास जो पैसा था, वह एक दौर की कीमोथेरेपी के लिए भी पर्याप्त नहीं था। इसके बाद हम और पैसे कहाँ से लाते? अगर हमने कीमोथेरेपी छोड़ दी तो हमारी बेटी कभी भी मर सकती है और हम उसे फिर कभी नहीं देख पाएँगे। जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मुझे दुख हुआ। जब से मैंने कई साल पहले अपनी नौकरी छोड़ी थी, तब से मैं काम पर जाकर पैसे कमाने के बजाय नवागंतुकों का सिंचन कर रही थी और सुसमाचार का प्रचार कर रही थी। अगर मैंने तब अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या मैं इन सालों में अपनी बेटी का इलाज करवाने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पाती? इस पल मुझे एहसास हुआ कि मेरे विचार गलत थे। क्या मैं परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं कर रही थी? मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, विनती की कि वह मेरे दिल की रक्षा करे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने की जरूरत है। परमेश्वर के वचनों के बिना मैं अडिग नहीं रह पाऊँगी। मैंने अपनी बेटी से कहा, “मैं तुम्हारे लिए कुछ खाना बनाने के लिए वापस जा रही हूँ। तुम एक युवा ईसाई हो : अगर तुम्हारा सिर दर्द कर रहा है तो तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए।” उसने कहा, “माँ, मैं प्रार्थना करने को तैयार हूँ।”

जब मैं वापस आई तो मैंने अपना एमपी5 प्लेयर चालू किया और परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “चूँकि लोग परमेश्वर के आयोजनों और परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं जानते हैं, इसलिए वे हमेशा अवज्ञापूर्ण ढंग से और एक विद्रोही दृष्टिकोण के साथ नियति का सामना करते हैं और इस निरर्थक उम्मीद में कि वे अपनी वर्तमान परिस्थितियों को बदल देंगे और अपनी नियति को पलट देंगे, हमेशा परमेश्वर के अधिकार और उसकी संप्रभुता तथा उन चीजों को छोड़ देना चाहते हैं जो उनकी नियति में होती हैं। परन्तु वे कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं; वे हर मोड़ पर नाकाम रहते हैं। उनकी आत्मा की गहराइयों में घटित होने वाला यह संघर्ष उन्हें पीड़ा देता है और यह पीड़ा उनकी हड्डियों में समा जाती है और साथ ही यह उन्हें अपना जीवनबरबाद करने पर मजबूर कर देती है। इस पीड़ा का कारण क्या है? क्या यह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण है या इसलिए है क्योंकि वह व्यक्ति अभागा ही जन्मा था? स्पष्ट है कि दोनों में कोई भी बात सही नहीं है। वास्तव में, लोग जिस मार्ग पर चलते हैं, जिस तरह से वे अपना जीवन बिताते हैं, उसी कारण से यह पीड़ा होती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित होता है। यूँ तो ऊपरी तौर पर लगता था कि मेरी बेटी को यह बीमारी होने का खतरा अपने पिता से विरासत में मिला था, लेकिन वास्तव में यह परमेश्वर की संप्रभुता थी। इस तरह से कष्ट झेलना उसका भाग्य था। जबकि मैं अपनी ही क्षमताओं का उपयोग करके अपनी बेटी का भाग्य बदलना चाहती थी। मैंने सोचा कि अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं उसके लिए लंबे समय तक उपचार का खर्च उठा सकती थी और उसे जीवित रख सकती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझती थी। मैंने पड़ोस के एक गाँव के बच्चे के बारे में सोचा जिसे ल्यूकेमिया हो गया था। उसके परिवार के पास इलाज के लिए पैसे थे, लेकिन इलाज के कुछ महीनों के बाद ही उसकी मौत हो गई। पैसा किसी व्यक्ति के जीवन को लंबा नहीं कर सकता। परमेश्वर किसी व्यक्ति के जीवन और मरण का संप्रभु है और वह इसकी व्यवस्था करता है। जब किसी व्यक्ति की नियत जीवन अवधि पूरी हो जाती है तो चाहे कितना भी पैसा हो, यह उसे बचा नहीं सकता। मैंने उस समय के बारे में सोचा जब अय्यूब ने अपने बच्चों को गँवा दिया था। भले ही उसे बहुत दर्द और उदासी महसूस हुई, उसने कभी अपने होठों से पाप नहीं किया और कभी परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की। वह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर पाया। अब्राहम ने सौ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया। जब बाद में परमेश्वर ने उससे अपने बेटे की परमेश्वर के लिए कुर्बानी देने को कहा तो उसे दर्द और जुदाई की तकलीफ हुई, लेकिन वह परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने में सक्षम था। उसने परमेश्वर से बहस नहीं की या शर्तों पर सौदेबाजी नहीं की और अंत में उसने इसहाक की कुर्बानी दे दी। अपनी तकलीफ के वक्त में अय्यूब और अब्राहम परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में सक्षम थे। वे परमेश्वर का भय मानते थे और उसके प्रति समर्पित थे, स्नेह से बंधकर नहीं जीते थे। जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया, तब से अब तक मैं लगातार स्नेह के बंधन में जीती रही। मैंने कभी भी परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण नहीं किया और हमेशा चाहती थी कि परमेश्वर मेरी बेटी को सुरक्षित रखे, परमेश्वर के साथ शर्तों पर सौदेबाजी करने की कोशिश करती रही। मेरे पास विवेक की पूरी तरह से कमी थी! जब मुझे यह एहसास हुआ तो मुझे अपनी बच्ची की बीमारी की उतनी चिंता नहीं रही।

जब मैं अस्पताल वापस आई तो मेरी बेटी ने कहा, “माँ, मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता देख ली है। तुम्हारे जाने के बाद मेरे सिर में फिर से दर्द होने लगा और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना करने के बाद मेरे सिर में फिर से दर्द नहीं हुआ।” तब से मेरी बच्ची के सिर में फिर कभी दर्द नहीं हुआ और वायरस उसके मस्तिष्क में नहीं फैला। मैंने लगातार अपने दिल में परमेश्वर का धन्यवाद किया। जब मेरी बच्ची अस्पताल में थी तो वह हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना करती थी और वह धीरे-धीरे कीमोथेरेपी के अनुकूल हो गई। उसकी हालत मूल रूप से स्थिर हो गई। एक साल एक झटके में बीत गया और मेरी बेटी की हालत और खराब नहीं हुई। पलक झपकते ही अप्रैल 2016 आ गया और मेरी बेटी की कीमोथेरेपी के सातवें दौर का समय हो गया। इस समय उसे हल्की खांसी हो गई थी और जब जाँच के नतीजे आए तो इससे पता चला कि वायरस फिर से फैल गया था और उसके फेफड़े संक्रमित हो गए थे। स्थिति पहली बार से ज्यादा गंभीर थी। यह पहले से ही उच्च जोखिम वाला दौर था और उसकी जान को किसी भी समय खतरा था। जब मैंने यह सुना तो मुझे अवर्णनीय दुख हुआ। मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी बेटी के लिए आवंटित जीवनकाल का अंत हो सकता है। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे परमेश्वर के बारे में शिकायत न करने और समर्पण करने की शक्ति दे। इस बार चिकित्सा खर्च काफी ज्यादा था और हमारे पास अब और भुगतान करने के साधन नहीं थे। नर्स बिलों का भुगतान करने के लिए दबाव डाल रही थीं। मेरी बेटी ने यह सब सुन लिया और दुखी होकर बोली, “माँ, अगर मेरी दवा बंद कर दी गई तो क्या मैं मर जाऊँगी?” बाद में उसने मेरे लिए एक नोट लिखा, जिसमें लिखा था, “मुझे यह बीमारी क्यों हुई? मैं बहुत छोटी हूँ, मैं स्कूल जाना चाहती हूँ। मैं मरना नहीं चाहती। मैंने अभी तक इस दुनिया का आनंद नहीं लिया है...” जब मैंने इसे पढ़ा तो मैं इतनी व्यथित हो गई कि ऐसा लगा मानो मेरा दिल कुचला जा रहा हो। हालाँकि मुझे पता था कि मेरी बच्ची का जीवन परमेश्वर के हाथों में है, फिर भी मैं उसे खोना नहीं चाहती थी।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “किसी जीवित प्राणी की मृत्यु—दैहिक जीवन का अंत—यह दर्शाता है कि वह जीवित प्राणी भौतिक संसार से आध्यात्मिक क्षेत्र में चला गया है, जबकि एक नए दैहिक जीवन का जन्म यह दर्शाता है कि जीवित प्राणी आध्यात्मिक क्षेत्र से भौतिक संसार में आ गया है और उसने अपनी भूमिका ग्रहण करनी और निभानी शुरू कर दी है। चाहे प्राणी का प्रस्थान हो या आगमन, दोनों आध्यात्मिक क्षेत्र के कार्य से अविभाज्य हैं। जब तक कोई व्यक्ति भौतिक संसार में आता है, तब तक परमेश्वर द्वारा आध्यात्मिक क्षेत्र में उचित व्यवस्थाएँ और परिभाषाएँ पहले ही तैयार की जा चुकी होती हैं, जैसे कि वह व्यक्ति किस परिवार में आएगा, किस युग में आएगा, किस समय आएगा, और क्या भूमिका निभाएगा। इसलिए इस व्यक्ति का संपूर्ण जीवन—जो काम वह करता है, और जो मार्ग वह अपनाता है—जरा-से भी विचलन के बिना, आध्यात्मिक क्षेत्र में की गई व्यवस्थाओं के अनुसार चलेगा। इसके अतिरिक्त, दैहिक जीवन जिस समय, जिस तरह और जिस स्थान पर समाप्त होता है, वह आध्यात्मिक क्षेत्र के सामने स्पष्ट और प्रत्यक्ष होता है। परमेश्वर भौतिक संसार पर शासन करता है, और वह आध्यात्मिक क्षेत्र पर भी शासन करता है, और वह किसी आत्मा के जीवन और मृत्यु के साधारण चक्र को विलंबित नहीं करेगा, न ही वह उस चक्र की व्यवस्थाओं में कभी कोई त्रुटि कर सकता है। आध्यात्मिक क्षेत्र के आधिकारिक पदों के सभी परिचारक अपने-अपने कार्य करते हैं, और परमेश्वर के निर्देशों और नियमों के अनुसार वह करते हैं, जो उन्हें करना चाहिए। इस प्रकार, मनुष्य के संसार में, मनुष्य द्वारा देखी जाने वाली हर भौतिक घटना व्यवस्थित होती है, और उसमें कोई अराजकता नहीं होती। यह सब-कुछ सभी चीजों पर परमेश्वर के व्यवस्थित शासन की वजह से है, और साथ ही इस तथ्य के कारण है कि उसका अधिकार प्रत्येक वस्तु पर शासन करता है। उसके प्रभुत्व में भौतिक संसार, जिसमें मनुष्य रहता है, के अलावा मनुष्य के पीछे का अदृश्य आध्यात्मिक क्षेत्र भी शामिल है। इसलिए, अगर मनुष्य अच्छा जीवन चाहते हैं, और अच्छे परिवेश में रहने की आशा करते हैं, तो संपूर्ण दृश्य भौतिक संसार प्रदान किए जाने के अलावा उसे वह आध्यात्मिक क्षेत्र भी प्रदान किया जाना चाहिए, जिसे कोई देख नहीं सकता, जो मानवजाति की ओर से प्रत्येक जीवित प्राणी को नियंत्रित करता है और जो व्यवस्थित है। इस प्रकार, यह कहने के बाद कि परमेश्वर सभी चीजों के जीवन का स्रोत है, क्या हमने ‘सभी चीजों’ के बारे में अपनी जागरूकता और समझ नहीं बढ़ाई है? (हाँ।)” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि परमेश्वर लोगों के जीवन का संप्रभु है और इसे व्यवस्थित करता है। हर एक आत्मा जब आती है और फिर चली जाती है या दोबारा लौटने के लिए चली जाती है तो उसका एक मिशन होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में किसी व्यक्ति के जीवन और मरण की व्यवस्था परमेश्वर द्वारा लेशमात्र भी त्रुटि के बिना की जाती है। किसी व्यक्ति की आत्मा आध्यात्मिक क्षेत्र में कब लौटेगी, यह भी परमेश्वर के हाथ में है जो उपयुक्त व्यवस्थाएँ कर चुका है। प्रत्येक व्यक्ति के आवंटित जीवनकाल की लंबाई परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित होती है। मुझे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए और अपनी बेटी की मृत्यु का सामना शांति से करना चाहिए। जब मैंने यह समझा, मैंने अपनी बेटी के साथ संगति की, “आध्यात्मिक क्षेत्र में हममें हर कोई अकेला भटकता मुसाफिर है। यह परमेश्वर ही था जो हमें इस भौतिक दुनिया में लाया और जिसने हमें परमेश्वर द्वारा बनाई गई सभी चीजों का आनंद लेने दिया। हमारे फेफड़ों में साँस परमेश्वर द्वारा दी गई थी। अगर परमेश्वर ने तुम्हें यह साँस न दी होती तो मेरे द्वारा जन्म देने के बाद भी तुम जीवित न रह पातीं। देखो, कुछ बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं। कम से कम तुम इतने लंबे समय तक तो जी चुकी हो और परमेश्वर ने हमें जो कुछ भी दिया है, उसका आनंद तो लिया है। क्या यह उनके जीवन से बेहतर नहीं है? तो चाहे हम कितने भी लंबे समय तक जिएँ, हमें परमेश्वर की व्यवस्था के आगे समर्पण करना ही होगा।” यह सुनने के बाद मेरी बेटी उतनी डरी हुई नहीं थी। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मेरी बेटी अपनी सहेलियों के साथ खेली। वह बहुत खुश दिख रही थी। उसने मुझसे कहा, “माँ, हर दिन परमेश्वर मुझे जीने देता है, मैं परमेश्वर को यह साँस देने के लिए धन्यवाद देती हूँ। अगर एक दिन मेरा नियत जीवनकाल पूरा हो जाता है तो मैं समर्पण करूँगी।” दो महीने बाद 26 जून 2016 को मेरी बेटी हमेशा के लिए मुझे छोड़कर चली गई। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण मैं अपनी बेटी की मृत्यु को सही तरीके से स्वीकार पाई और मेरा दिल बहुत शांत था।

उन दुख भरे दिनों में ये परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मुझे एक-एक कदम कर बाहर निकाला और मुझे यह सक्षम बनाया कि मैं चीजों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखूँ, अपने विश्वास में आशीष पाने के अपने भ्रामक दृष्टिकोणों को समझूँ यह एहसास करूँ कि जीवन और मृत्यु दोनों ही परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं, अपनी बेटी की मृत्यु का सामना शांति से करूँ और अपनी वेदना से बाहर निकलूँ। मैंने वाकई अनुभव किया कि कैसे परमेश्वर के वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

जब बीमारी फिर से आए

यांग यी, चीन1998, मैंने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकारा और प्रभु के लौटने का स्वागत किया। परमेश्वर के वचन पढ़कर,...

बीमारी के बीच समर्पण करना सीखना

टोंग यू, चीनबचपन से ही मेरा शरीर कमजोर था और मैं हमेशा बीमार रहती थी, इससे मुझे शरीर स्वस्थ रखने की चाहत रहती थी। मार्च 2012 में मुझे अंत...

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें