जब प्रभु द्वार पर दस्तक देने आएंगे तो हम उनका स्वागत कैसे करेंगे?
परमेश्वर पर विश्वास करने में मेरे प्रवेश के बाद, भाइयों और बहनों को "द गुड मैन इज़ नॉकिंग एट द डोर" ('भला आदमी दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है') नामक एक स्तुतिगान पसंद था, जिसके शब्द हैं: "भला आदमी दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है, उसके बाल ओस से गीले हैं; आओ, हम जल्दी से उठें और दरवाज़ा खोलें, और उस भले आदमी को लौट कर चले जाने न दें..."। जब भी हम इस स्तुतिगान को गाते थे, तो हमारे दिल गहराई से द्रवित और प्ररित हो जाते थे। हम सभी उस भले आदमी से रात भर रुक जाने के लिए कहना चाहते हैं, इसलिए जब वह भला आदमी आता है और दरवाज़े पर दस्तक देता है, तो हम उस भले आदमी की पहली आवाज़ सुनते ही प्रभु का स्वागत करेंगे। यह कहा जा सकता है कि हमारी सभी की, जो प्रभु में विश्वास करते हैं, एक ऐसी ही आशा है। लेकिन जब प्रभु आता है, वह कैसे दस्तक देगा? जब प्रभु दस्तक देता है, तो हमें यह सुनिश्चित करने के लिए क्या करना चाहिए कि हम उसका प्रभु के रूप में स्वागत कर रहे हैं? यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में उन लोगों को जो प्रभु में विश्वास करते हैं, सोचना चाहिए।
जब प्रभु यीशु अनुग्रह के युग में उद्धार का कार्य करने के लिए आया, तो प्रभु द्वारा किए गए चमत्कारों के समाचार और प्रभु के वचन यहूदिया के पूरे इलाके में फैल गए। उसके नाम ने यहूदिया में एक बड़ी हलचल भी पैदा कर दी, और उस समय के लोगों के लिए दरवाज़े पर हुई दस्तक, प्रभु यीशु के नेतृत्व में हर जगह स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हुए उसके शिष्यों की, थी। प्रभु यीशु ने कहा "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)। प्रभु को यह उम्मीद है कि लोग पश्चाताप करने और अपने पापों को कबूल करने के लिए प्रभु के सामने आएँगे। ऐसा करने से, उन्हें उनके पापों से छुटकारा मिलेगा, और वे नियम की निंदा और फटकार से मुक्त हो जाएँगे और परमेश्वर द्वारा छुड़ाए जाएँगे। उस समय, कई यहूदी लोगों ने प्रभु यीशु द्वारा किए गए चमत्कारों को देखा। उन्होंने परमेश्वर के वचन में अधिकार और शक्ति को भी देखा, जैसे कि प्रभु यीशु पाँच रोटी और दो मछलियों के साथ 5,000 लोगों को भोजन कराने में सक्षम था। एक वचन के साथ, प्रभु यीशु हवा और समुद्र को भी शांत करने में सक्षम था, साथ ही लाज़र को मरने के तीन दिनों बाद उसकी क़ब्र से प्रकट करा सकता था।... प्रभु यीशु के वचन के अनुसार जो कुछ भी कहा जाता है, वह पूरा हो जाता है, जिससे हम प्रभु के वचन में अधिकार और शक्ति को देख पाते हैं। प्रभु यीशु के वचन लोगों को सिखाने और फरीसियों को दंडित करने के लिए भी हैं। ये वचन सत्य हैं और ये वो शब्द नहीं हैं जिन्हें हम कह सकते हों। प्रभु यीशु द्वारा बोले गए वचन और उसने जो कार्य किये वे परमेश्वर के स्वभाव को, तथा परमेश्वर के पास क्या है और वह क्या है, उसको प्रकट करते हैं। वे परमेश्वर के अधिकार और शक्ति को प्रकट करते हैं और मनुष्यों के दिलों को हिला देते हैं। उस समय के यहूदी लोगों ने पहले ही परमेश्वर की दस्तक की आवाज़ को सुना था, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार किया?
उस समय के यहूदी पुजारियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों को स्पष्ट रूप से पता था कि प्रभु यीशु द्वारा बोले गए सभी वचन और उसके द्वारा किए गए सारे चमत्कार परमेश्वर से आए थे, परन्तु उनके पास परमेश्वर का सम्मान करने वाले दिल बिलकुल नहीं थे। उन्होंने प्रभु यीशु के कार्य की खोज या जाँच नहीं की, बल्कि हर समय वे बाइबल की भविष्यवाणियों के शब्दों से चिपके रहे, उनका मानना था कि जो आने वाला था उसका नाम इमानुअल या मसीहा होगा, और वह एक कुंवारी से पैदा होगा। जब उन्होंने देखा कि मरियम का पति था, तो उन्होंने यह निर्धारित कर लिया कि प्रभु यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भस्थ नहीं हुआ था, न ही वह एक कुंवारी से पैदा हुआ था। उन्होंने मनमाने निर्णय भी दिए, और कहा कि प्रभु यीशु एक बढ़ई का बेटा था और इसलिए वह सिर्फ एक साधारण व्यक्ति था। उन्होंने इस बात का इस्तेमाल प्रभु यीशु को नकारने और आरोपित करने के लिए किया। उन्होंने प्रभु यीशु की निन्दा तक की और कहा कि वह राक्षसों को बाहर निकालने के लिए राक्षसों के शासक बालज़बूल पर भरोसा किया करता था। अंत में, उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिए वे रोमन सरकार के साथ हो गए। अधिकांश यहूदी लोग मानते थे कि प्रभु यीशु को एक मंदिर में पैदा होना चाहिए था, और रोमन शासन से उन्हें बचाने के लिए वह उनका राजा होगा। जब फरीसी अफ़वाहें और बदनामी फैला रहे थे और प्रभु यीशु की निंदा कर रहे थे, तो वे बिना किसी विवेक के अंधाधुंध आज्ञाकारी बन रहे थे। प्रभु यीशु के उद्धार और फरीसियों द्वारा बोले गए बदनामी के शब्दों में से, उन्होंने फरीसियों की अफ़वाहों और झूठी बातों को सुनना चुना, और प्रभु यीशु द्वारा प्रचारित तरीके को अस्वीकृत कर दिया। जब परमेश्वर ने दरवाज़े पर दस्तक दी, तो उन्होंने अपने दिलों को परमेश्वर की ओर बंद कर दिया। यह बिलकुल वैसा ही है जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा: "उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है : तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा। क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ" (मत्ती 13:14-15)। क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ को सुनने से इनकार कर दिया और परमेश्वर के उद्धार के कार्य को स्वीकार नहीं किया, इन यहूदी लोगों ने प्रभु यीशु के अनुसरण का मौका गँवा दिया। परमेश्वर का विरोध करने के परिणामस्वरूप, उन्होंने परमेश्वर की सजा पाई, जिससे इज़राइल में 2000 वर्षों का विनाश आया। इसके विपरीत, उन शिष्यों के पास, जिन्होंने प्रभु यीशु का अनुसरण किया था जैसे कि पतरस, यूहन्ना, याकूब और नतनएल, ऐसे दिल थे जो सच्चाई से प्यार करते थे। प्रभु यीशु के वचन और कार्य के प्रति अपने व्यवहार में उन्होंने अपने स्वयं की अवधारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा नहीं किया, बल्कि उन्होंने निष्ठापूर्वक खोज की, सावधानीपूर्वक जाँच की, और पवित्र आत्मा के प्रबोधन को प्राप्त किया। उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी और यह पहचान लिया कि प्रभु यीशु ही आने वाला मसीहा था, और इस तरह वे प्रभु के क़दमों के साथ हो लिए और प्रभु के उद्धार को प्राप्त कर लिया। हम देख सकते हैं कि फरीसियों और यहूदी लोगों की विफलता इसमें निहित थी कि परमेश्वर की अभिव्यक्ति और कार्य को स्वीकार करने में उन्होंने बाइबल की भविष्यवाणियों के केवल शाब्दिक अर्थ पर भरोसा किया था। इसके परिणामस्वरूप वे ऐसे लोग बन गए जो परमेश्वर में विश्वास तो करते थे लेकिन परमेश्वर का विरोध करते थे। इससे हम देख सकते हैं कि यदि परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति स्वयं अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर पेश आते हैं, तो न केवल वे परमेश्वर के आगमन का स्वागत करने में अक्षम होंगे, बल्कि वे आसानी से उन लोगों में शामिल हो सकते हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और फिर भी उसका विरोध करते हैं। वह कितना शोकास्पद होगा? प्रभु यीशु ने कहा: "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। ...धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे" (मत्ती 5:3,6)। हम यहाँ देख सकते हैं कि अगर हम पतरस और यूहन्ना की तरह परमेश्वर की आवाज़ सुनें, अगर हमारे पास ऐसे दिल हों जो धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे हों, और सक्रिय रूप से तलाश और जाँच करें, केवल तभी हम परमेश्वर की वापसी का स्वागत कर सकते हैं।
आज, अंतिम दिनों में प्रभु के दूसरे आगमन की भविष्यवाणियाँ मूल रूप से पूरी हुई हैं। जब प्रभु अंतिम दिनों में फिर से आता है, हमें और अधिक सतर्क और तैयार रहना चाहिए, परमेश्वर की आवाज़ पर ध्यान देना चाहिए, और हमारे दिल ऐसे हों जो किसी भी समय दरवाज़े पर प्रभु की दस्तक की प्रतीक्षा करने के लिए, धार्मिकता की तलाश करते हों और उसके लिए तरसते हों। केवल इसी तरह से हम प्रभु के दूसरे आगमन का स्वागत कर सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशित वाक्य अध्याय 2-3 में भी कई बार इसकी भविष्यवाणी की गई है: "जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" हम धर्मशास्त्रों से देख सकते हैं कि जब प्रभु यीशु लौटता है तो वह फिर से बात करेगा और नया कार्य करेगा। प्रभु का हमारे लिए दरवाज़े पर दस्तक देना, साथ ही साथ हमारे दिलों के दरवाज़ों पर दस्तक देने के लिए अपने वचन का उपयोग करना भी, यही है। जो लोग प्रभु के कथन को सुनते हैं और सक्रिय रूप से प्रभु की आवाज़ की तलाश करते हैं और सुनते हैं, वे बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं। अगर वे पहचानते हैं कि प्रभु बोल रहे हैं तो वे प्रभु की वापसी का स्वागत करने में, और परमेश्वर के वचन से सिंचन और आपूर्ति प्राप्त करने में, सक्षम होते हैं। यह प्रभु के वचन को पूरा करता है: "तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूँगा" (योएल 2:29)। प्रभु विश्वसनीय है, और इस समय वह उन सभी को जो उसके लिए तरसते हैं और उसकी खोज करते हैं, उसकी आवाज़ सुनने देगा। बहरहाल, परमेश्वर के ज्ञान को समझना हम मनुष्यों के लिए मुश्किल है, और जब प्रभु लौटता है तो वह दरवाज़े पर उस तरह दस्तक नहीं देगा, जैसा कि अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं में हमें लगता है। यह हमारे प्रति किसी की पुकार हो सकती है, "प्रभु वापस आ गया है"। यह बात वैसी ही है जैसी कि प्रभु यीशु ने हमें चेतावनी दी थी: "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)। हम उन कलीसियाओं से जो परमेश्वर की वापसी के सुसमाचार को फैलाते हैं, या इंटरनेट, रेडियो, फेसबुक या अन्य जगहों से परमेश्वर की आवाज़ को सुन सकते हैं और परमेश्वर को सभी कलीसियाओं से बात करते हुए देखत सकते हैं। फिर भी, चाहे परमेश्वर हमारे दरवाज़ों पर जैसे भी दस्तक दे, हमें परमेश्वर की दस्तक के साथ यहूदी लोगों की तरह बर्ताव बिलकुल ही नहीं करना चाहिए। हमें अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर खोज या जाँच नहीं करनी चाहिए और न ही झूठ और अफवाहों को अंधाधुंध सुनना चाहिए। ऐसा करके हम परमेश्वर की पुकार को अस्वीकार कर देंगे और परमेश्वर का स्वागत करने और स्वर्ग के राज्य में उठाये जाने का मौका चूक जाएँगे। प्रकाशित वाक्य की पुस्तक ने भविष्यवाणी की है: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रभु यीशु कहता है: "मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। प्रभु की इच्छा यह है कि हम सभी बुद्धिमान कुंवारियाँ बनें और हमेशा प्रभु की आवाज़ सुनने में सावधान बने रहें। जब हम प्रभु की आवाज़ सुनें तो हमें इसे खुले दिमाग से देखना चाहिए और नेकी से इसकी जाँच करनी चाहिए, और जब हम परमेश्वर की आवाज़ को पहचान लेते हैं तो हमें परमेश्वर का स्वागत करने के लिए बाहर भाग निकलना चाहिए। जब तक हमारे पास खोज करने वाले दिल हैं, परमेश्वर निश्चित रूप से हमारी आध्यात्मिक आँखों को खोलेंगे। इस तरह, हम परमेश्वर के सिंहासन के सामने उठाए जा सकेंगे और मेमने के भोज में उपस्थित हो सकेंगे!
सारी महिमा परमेश्वर के लिए है!
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