परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 194
05 नवम्बर, 2020
मानव को आज तक का समय लग गया है यह समझ पाने में कि उसे केवल आध्यात्मिक जीवन की आपूर्ति और परमेश्वर को जानने के अनुभव का ही अभाव नहीं है, बल्कि—इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है—उसके स्वभाव में परिवर्तन। मनुष्य की अपनी जाति के इतिहास और प्राचीन संस्कृति के बारे में पूरी अज्ञानता का यह परिणाम हुआ है कि वह परमेश्वर के कार्य के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं रखता। सभी लोगों को उम्मीद है कि मनुष्य अपने दिल के भीतर गहराई में परमेश्वर से जुड़ा हो सकता है, लेकिन चूँकि मनुष्य की देह अत्यधिक भ्रष्ट है, और जड़ तथा कुंठित दोनों है, इसलिए यह उसे परमेश्वर का कुछ भी ज्ञान नहीं होने का कारण बना है। आज मनुष्यों के बीच आने का परमेश्वर का प्रयोजन और कुछ नहीं, बल्कि उनके विचारों और भावनाओं, और साथ ही उनके दिलों में लाखों वर्षों से मौजूद परमेश्वर की छवि को भी बदलना है। वह इस अवसर का इस्तेमाल मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए करेगा। अर्थात, वह मनुष्यों के ज्ञान के माध्यम से परमेश्वर को जानने के उनके तरीके और अपने प्रति उनका दृष्टिकोण बदल देगा, ताकि उन्हें परमेश्वर को जानने के लिए एक विजयी नई शुरुआत करने में सक्षम बना सके, और इस प्रकार मनुष्य की आत्मा का नवीकरण और रूपांतरण हासिल कर सके। निपटना और अनुशासन साधन हैं, जबकि विजय और नवीकरण लक्ष्य हैं। मनुष्य ने एक अस्पष्ट परमेश्वर के बारे में जो अंधविश्वासी विचार बना रखे हैं, उन्हें दूर करना हमेशा से परमेश्वर का इरादा रहा है, और हाल ही में यह उसके लिए एक तात्कालिक आवश्यकता का मुद्दा भी बन गया है। काश, सभी लोग इस स्थिति पर विस्तार से विचार करें। जिस तरीके से प्रत्येक व्यक्ति अनुभव करता है, उसे बदलो, ताकि परमेश्वर का यह अत्यावश्यक इरादा जल्दी फलित हो सके और पृथ्वी पर परमेश्वर के काम का अंतिम चरण पूरी तरह से संपन्न हो सके। परमेश्वर को वह वफ़ादारी दो, जिसे देना तुम लोगों का कर्तव्य है, और अंतिम बार परमेश्वर के दिल को सुकून दे दो। काश, भाइयों और बहनों में से कोई इस जिम्मेदारी से जी न चुराए या बेमन से काम न करे। परमेश्वर ने इस बार निमंत्रण के उत्तर में, और मनुष्य की स्थिति की स्पष्ट प्रतिक्रिया के तौर पर, देह धारण किया है। अर्थात, वह मनुष्य को वह चीज़ प्रदान करने आया है, जिसकी उसे ज़रूरत है। संक्षेप में, वह हर व्यक्ति को, चाहे उसका सामर्थ्य या लालन-पालन कैसा भी हो, परमेश्वर के वचन को देखने, और उसके माध्यम से परमेश्वर के अस्तित्व और उसकी अभिव्यक्ति को देखने तथा परमेश्वर द्वारा उसे पूर्ण बनाए जाने को स्वीकार करने में सक्षम बना देगा, और ऐसा करके वह मनुष्य के विचारों और धारणाओं को बदल देगा, जिससे कि परमेश्वर का मूल चेहरा मनुष्य के दिल की गहराई में दृढ़ता से बद्धमूल हो जाए। यह पृथ्वी पर परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है। मनुष्य की जन्मजात प्रकृति चाहे कितनी ही महान हो, या मनुष्य का सार चाहे कितना भी तुच्छ हो, या अतीत में मनुष्य का व्यवहार चाहे वास्तव में कैसा भी रहा हो, परमेश्वर इन बातों पर कोई ध्यान नहीं देता। वह मनुष्य के लिए केवल यह उम्मीद करता है कि उसके अंतर्तम में परमेश्वर की जो छवि मौजूद है, वह पूरी तरह से नई हो जाए और वह मानवजाति के सार को जान सके, जिससे मनुष्य का वैचारिक दृष्टिकोण रूपांतरित हो सके और वह परमेश्वर के लिए गहराई से लालायित हो सके तथा उसके प्रति एक शाश्वत लगाव रख सके : यही एक माँग है, जो परमेश्वर मनुष्य से करता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7)
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