परमेश्वर के दैनिक वचन : अंत के दिनों में न्याय | अंश 81

01 मार्च, 2021

परमेश्वर किसी भी युग में अपने कार्य को दोहराता नहीं है। चूँकि अंत के दिन आ गए हैं, इसलिए वह उस कार्य को करेगा, जो वह अंत के दिनों में करता है, और अंत के दिनों के अपने संपूर्ण स्वभाव को प्रकट करेगा। अंत के दिनों के बारे में बात करना एक पृथक् युग को संदर्भित करता है, वह युग जिसमें यीशु ने कहा था कि तुम लोग अवश्य ही आपदा का सामना करोगे, और भूकंपों, अकालों और महामारियों का सामना करोगे, जो यह दर्शाएँगे कि यह एक नया युग है, और अब अनुग्रह का युग नहीं है। मान लो अगर, जैसा कि लोग कहते हैं, परमेश्वर हमेशा अपरिवर्तनशील हो, उसका स्वभाव हमेशा करुणामय और प्रेममय हो, वह मनुष्य से ऐसे ही प्यार करे जैसे वह स्वयं से करता है, और वह हर मनुष्य को उद्धार प्रदान करे और कभी भी मनुष्य से नफ़रत न करे, तो क्या उसका कार्य कभी समाप्त हो पाएगा? जब यीशु आया और उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, तो सभी पापियों के लिए स्वयं को बलिदान करके और स्वयं को वेदी पर चढ़ाकर उसने छुटकारे का कार्य पहले ही पूरा कर लिया था और अनुग्रह के युग को समाप्त कर दिया था। तो उस युग के कार्य को अंत के दिनों में दोहराने का क्या मतलब होता? क्या वही कार्य करना यीशु के कार्य को नकारना नहीं होगा? यदि परमेश्वर ने इस चरण में आकर सलीब पर चढ़ने का कार्य न किया होता, बल्कि वह प्रेममय और करुणामय ही बना रहता, तो क्या वह युग का अंत करने में समर्थ होता? क्या एक प्रेममय और करुणामय परमेश्वर युग का समापन करने में समर्थ होता? युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का स्वभाव ताड़ना और न्याय का है, जिसमें वह वो सब प्रकट करता है जो अधार्मिक है, ताकि वह सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय कर सके और उन लोगों को पूर्ण बना सके, जो सच्चे दिल से उसे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ें उनके प्रकार के अनुसार अलग की जाएँगी और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाएँगी। यही वह क्षण है, जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को उजागर करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जा सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंग दिखाता है, जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरे को बुरे के साथ रखा जाएगा, भले को भले के साथ, और समस्त मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार अलग किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, ताकि बुरे को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँ। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से पूरा करना होगा। चूँकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपांतरित कर सकता है और उसे पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दंडित कर सकता है। इसलिए, इसी तरह का स्वभाव युग के महत्व के साथ व्याप्त होता है, और प्रत्येक नए युग के कार्य की खातिर उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन अभिव्यक्त किया जाता है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने और निरर्थक ढंग से प्रकट करता है। मान लो अगर, अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का परिणाम प्रकट करने में परमेश्वर अभी भी मनुष्य पर असीम करुणा बरसाता रहता और उससे प्रेम करता रहता, उसे धार्मिक न्याय के अधीन करने के बजाय उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और क्षमा दर्शाता रहता, और उसे माफ़ करता रहता, चाहे उसके पाप कितने भी गंभीर क्यों न हों, उसे रत्ती भर भी धार्मिक न्याय के अधीन न करता : तो फिर परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का समापन कब होता? कब इस तरह का कोई स्वभाव सही मंज़िल की ओर मानवजाति की अगुआई करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, एक ऐसे न्यायाधीश को लो, जो हमेशा प्रेममय है, एक उदार चेहरे और सौम्य हृदय वाला न्यायाधीश। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता है, और वह उनके प्रति प्रेममय और सहिष्णु रहता है, चाहे वे कोई भी हों। ऐसी स्थिति में, वह कब न्यायोचित निर्णय पर पहुँचने में सक्षम होगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धार्मिक न्याय ही मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार पृथक् कर सकता है और उन्हें एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धार्मिक स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

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