परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 521

04 मार्च, 2021

पतरस के अनुभवों में पराकाष्ठा तब आई, जब उसका शरीर लगभग पूरी तरह से टूट गया, किंतु यीशु ने फिर भी उसे भीतर से प्रोत्साहन दिया। और एक बार, यीशु पतरस के सामने प्रकट हुआ। जब पतरस अत्यधिक पीड़ा में था और महसूस करता था कि उसका हृदय टूट गया है, तो यीशु ने उसे निर्देश दिया : "तू पृथ्वी पर मेरे साथ था, और मैं यहाँ तेरे साथ था। यद्यपि पहले हम स्वर्ग में एक-साथ थे, पर यह अंतत: आध्यात्मिक संसार के बारे में है। अब मैं आध्यात्मिक संसार में लौट आया हूँ, और तू पृथ्वी पर है, क्योंकि मैं पृथ्वी का नहीं हूँ, और यद्यपि तू भी पृथ्वी का नहीं है, किंतु तुझे पृथ्वी पर अपना कार्य पूरा करना है। चूँकि तू एक सेवक है, इसलिए तुझे अपना कर्तव्य निभाना होगा।" पतरस को यह सुनकर सांत्वना मिली कि वह परमेश्वर की ओर लौट पाएगा। उस समय पतरस ऐसी पीड़ा में था कि वह लगभग बिस्तर पर पड़ा था; उसे इतना पछतावा हुआ कि वह कह उठा : "मैं इतना भ्रष्ट हूँ कि मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ हूँ।" यीशु उसके सामने प्रकट हुआ और बोला : "पतरस, कहीं ऐसा तो नहीं कि तू उस संकल्प को भूल गया है, जो तूने एक बार मेरे सामने लिया था? क्या तू वास्तव में वह सब-कुछ भूल गया है, जो मैंने कहा था? क्या तू उस संकल्प को भूल गया है, जो तूने मुझसे किया था?" यह देखकर कि यह यीशु है, पतरस अपने बिस्तर से उठ गया, और यीशु ने उसे इस प्रकार सांत्वना दी : "मैं पृथ्वी का नहीं हूँ, मैं तुझे पहले ही कह चुका हूँ—यह तुझे समझ जाना चाहिए, किंतु क्या तू कोई और बात भी भूल गया है, जो मैंने तुझसे कही थी? 'तू भी पृथ्वी का नहीं है, संसार का नहीं है।' अभी कुछ कार्य है, जो तुझे करना है, तू इस तरह से दुःखी नहीं हो सकता। तू इस तरह से पीड़ित नहीं हो सकता। हालाँकि मनुष्य और परमेश्वर एक ही संसार में एक-साथ नहीं रह सकते, मेरे पास मेरा कार्य है और तेरे पास तेरा कार्य है, और एक दिन जब तेरा कार्य समाप्त हो जाएगा, तो हम दोनों एक क्षेत्र में एक-साथ रहेंगे, और मैं हमेशा के लिए अपने साथ रहने में तेरी अगुआई करूँगा।" इन वचनों को सुनने के बाद पतरस को सांत्वना मिली और वह आश्वस्त हुआ। वह जानता था कि यह पीड़ा उसे सहन और अनुभव करनी ही है, और तब से वह प्रेरित हो गया। यीशु हर महत्वपूर्ण क्षण में उसके सामने प्रकट हुआ, उसे विशेष प्रबुद्धता और मार्गदर्शन दिया, और उसने उस पर बहुत कार्य किया। और पतरस को सबसे अधिक किस बात का पछतावा हुआ? पतरस के यह कहने के शीघ्र बाद कि "तू जीवित परमेश्वर का पुत्र है", यीशु ने पतरस से एक और प्रश्न पूछा (यद्यपि यह बाइबल में इस प्रकार से दर्ज नहीं है)। यीशु ने उससे पूछा : "पतरस! क्या तूने कभी मुझसे प्रेम किया है?" पतरस उसका अभिप्राय समझ गया और बोला : "प्रभु! मैंने एक बार स्वर्गिक पिता से प्रेम किया था, किंतु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने तुझसे कभी प्रेम नहीं किया।" तब यीशु ने कहा, "यदि लोग स्वर्गिक परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, तो वे पृथ्वी पर पुत्र से कैसे प्रेम कर सकते हैं? और यदि लोग परमपिता परमेश्वर द्वारा भेजे गए पुत्र से प्रेम नहीं करते, तो वे स्वर्गिक पिता से कैसे प्रेम कर सकते हैं? यदि लोग वास्तव में पृथ्वी पर पुत्र से प्रेम करते हैं, तो वे स्वर्गिक पिता से भी वास्तव में प्रेम करते हैं।" जब पतरस ने इन वचनों को सुना, तो उसने महसूस किया कि उसमें क्या कमी है। उसे अपने इन शब्दों पर कि "मैंने एक बार स्वर्गिक पिता से प्रेम किया था, किंतु मैंने तुझसे कभी प्रेम नहीं किया," हमेशा इतना पछतावा महसूस होता था कि उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे। यीशु के पुनर्जीवित होने और स्वर्गारोहण करने के बाद उसे अपने इन शब्दों पर और भी अधिक पछतावा और दुःख महसूस हुआ। अपने अतीत के कार्यों और अपनी वर्तमान कद-काठी को याद कर, वह प्राय: प्रार्थना करने के लिए यीशु के सामने आता, परमेश्वर की इच्छा पूरी न कर पाने और परमेश्वर के मानकों पर खरा न उतर पाने के कारण हमेशा पछतावा और ऋण महसूस करता। ये मामले उसका सबसे बड़ा बोझ बन गए। उसने कहा : "एक दिन मैं तुझे वह सब अर्पित कर दूँगा, जो मेरे पास है और जो मैं हूँ, मैं तुझे वह दूँगा जो सबसे अधिक मूल्यवान है।" उसने कहा : "परमेश्वर! मेरे पास केवल एक ही विश्वास और केवल एक ही प्रेम है। मेरे जीवन का कुछ भी मूल्य नहीं है, और मेरे शरीर का कुछ भी मूल्य नहीं है। मेरे पास केवल एक ही विश्वास और केवल एक ही प्रेम है। मेरे मन में तेरे लिए विश्वास है और हृदय में तेरे लिए प्रेम है; ये ही दो चीज़ें मेरे पास तुझे देने के लिए हैं, और कुछ नहीं।" पतरस यीशु के वचनों से बहुत प्रोत्साहित हुआ, क्योंकि यीशु को सलीब पर चढ़ाए जाने से पहले उसने पतरस से कहा था : "मैं इस संसार का नहीं हूँ, और तू भी इस संसार का नहीं है।" बाद में, जब पतरस एक अत्यधिक पीड़ादायक स्थिति में पहुँचा, तो यीशु ने उसे स्मरण दिलाया : "पतरस, क्या तू भूल गया है? मैं इस संसार का नहीं हूँ, और मैं सिर्फ अपने कार्य के लिए ही पहले चला गया। तू भी इस संसार का नहीं है, क्या तू सचमुच भूल गया है? मैंने तुझे दो बार बताया है, क्या तुझे याद नहीं है?" यह सुनकर पतरस ने कहा : "मैं नहीं भूला हूँ!" तब यीशु ने कहा : "तूने एक बार मेरे साथ स्वर्ग में एक खुशहाल समय और मेरी बगल में एक समयावधि बिताई थी। तू मुझे याद करता है और मैं तुझे याद करता हूँ। यद्यपि सृजित प्राणी मेरी दृष्टि में उल्लेखनीय नहीं हैं, फिर भी मैं किसी निर्दोष और प्यार करने योग्य प्राणी को कैसे प्रेम न करूँ? क्या तू मेरी प्रतिज्ञा भूल गया है? तुझे धरती पर मेरा आदेश स्वीकार करना चाहिए; तुझे वह कार्य पूरा करना चाहिए, जो मैंने तुझे सौंपा है। एक दिन मैं तुझे अपनी ओर आने के लिए निश्चित रूप से तेरी अगुआई करूँगा।" यह सुनने के बाद पतरस और भी अधिक उत्साहित हो गया तथा उसे और भी अधिक प्रेरणा मिली, इतनी कि जब वह सलीब पर था, तो यह कहने में समर्थ था : "परमेश्वर! मैं तुझे पर्याप्त प्यार नहीं कर सकता! यहाँ तक कि यदि तू मुझे मरने के लिए कहे, तब भी मैं तुझे पर्याप्त प्यार नहीं कर सकता! तू जहाँ कहीं भी मेरी आत्मा को भेजे, चाहे तू अपनी पिछली प्रतिज्ञाएँ पूरी करे या न करे, इसके बाद तू चाहे जो कुछ भी करे, मैं तुझे प्यार करता हूँ और तुझ पर विश्वास करता हूँ।" उसके पास जो था, वह था उसका विश्वास और सच्चा प्रेम।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस ने यीशु को कैसे जाना

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