परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 16

09 जून, 2020

वर्तमान में किए गए कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना में कार्य आगे बढ़ाया है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने आगे प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? इसका अर्थ है कि आज के दिन का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य का उत्थान है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से सम्बंधित हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु के द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? यदि यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूसीकरण, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को अब भी पूरा किए जाने की आवश्यकता होती। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि यह कि युग आगे बढ़ गया है, और यहाँ तक कि कार्य पहले से भी अधिक ऊँचा हो गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण एक नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना समझा जा सकता है। यह चरण अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर किया जाता है। यदि कार्य के ये दो चरण असम्बंधित हैं, तो इस चरण में सलीब पर चढ़ना क्यों नहीं है? मैं मनुष्य के पापों को क्यों नहीं उठाता हूँ? मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान के माध्यम से नहीं आता हूँ न ही मैं मनुष्य के पापों को उठाने के लिए सलीब पर चढ़ाया जाऊँगा। बल्कि, मैं यहाँ मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से ताड़ना देने के लिए हूँ। यदि मैंने सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद मनुष्य को ताड़ना नहीं दी, और अब मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण के माध्यम से नहीं आता, तो मैं मनुष्य को ताड़ना देने के योग्य नहीं होता। यह ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि मैं यीशु के साथ एक ही हूँ जो प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को ताड़ना देने और उसका न्याय करने के लिए आता हूँ। कार्य का यह चरण पूरी तरह से पिछले चरण पर ही निर्मित है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा कार्य ही चरण-दर-चरण मनुष्य को उद्धार तक ला सकता है। यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारी देहों का कोई सम्बंध नहीं है, किन्तु हमारी पवित्रात्माएँ एक ही हैं; यद्यपि हम जो करते हैं और जिस कार्य को हम वहन करते हैं वे एक ही नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम सदृश्य हैं; हमारी देहें भिन्न रूप धारण करती हैं, और यह ऐसा युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की आवश्यकता के कारण है; हमारी सेवकाईयाँ सदृश्य नहीं हैं, इसलिए जो कार्य हम लाते और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और प्राप्त करता है वह अतीत के असमान है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनकी देहों के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और यद्यपि वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे थे, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु उनकी पवित्रात्माएँ एक हैं। यद्यपि उनकी देहें किसी भी तरीके से रक्त या शारीरिक सम्बंध साझा नहीं करती हैं, किन्तु इससे यह इनकार नहीं होता है कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं, यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या सामान्य मानव भाषा (एक पुरुष था जिसने यहूदियों की भाषा बोली और दूसरी स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलती है) को साझा नहीं करते हैं। यह इन्हीं कारणों से है कि उन्हें जो कार्य करना चाहिए उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों में करते हैं। इस तथ्य के बावजूद भी वे एक ही पवित्रात्मा हैं, एक ही सार को धारण किए हुए हैं, उनकी देहों के बाहरी आवरणों के बीच बिल्कुल भी पूर्ण समानताएँ नहीं है। वे मात्र एक ही मानजाति को साझा करते हैं, परन्तु उनकी देहों का प्रकटन और जन्म सदृश्य नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि, आखिरकार, वे एक ही पवित्रात्मा हैं और कोई भी उन्हें अलग नहीं कर सकता है। यद्यपि वे रक्त द्वारा सम्बंधित नहीं हैं, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनकी पवित्रात्माओं के द्वारा निर्देशित होता है, जिसकी वजह से, उनकी देह एक ही का वंशज साझा नहीं करने के साथ, वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में भिन्न-भिन्न कार्य का उत्तरदायित्व लेते हैं। उसी तरह, यहोवा का पवित्रात्मा यीशु के पवित्रात्मा का पिता नहीं है, वैसे ही जैसे कि यीशु का पवित्रात्मा यहोवा के पवित्रात्मा का पुत्र नहीं है। वे एक ही आत्मा हैं। ठीक वैसे ही जैसे आज का देहधारी परमेश्वर और यीशु हैं। यद्यपि वे रक्त के द्वारा सम्बंधित नहीं हैं; वे एक ही हैं; ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी पवित्रात्माएँ एक ही हैं। वह दया और करुणा का, और साथ ही धर्मी न्याय का और मनुष्य की ताड़ना का, और मनुष्य पर श्राप लाने का कार्य कर सकता है। अंत में, वह संसार को नष्ट करने और दुष्टों को सज़ा देने का कार्य कर सकता है। क्या वह यह सब स्वयं नहीं करता है? क्या यह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता नहीं है? वह मनुष्य के लिए व्यवस्था निर्धारित करना और आज्ञाएँ जारी करना दोनों कर सकता है, और आरंभिक इस्राएलियों को पृथ्वी पर अपने जीवन जीने के लिए अगुवाई भी कर सका था और मंदिर और वेदियाँ बनाने, समस्त इस्राएलियों पर शासन करने के लिए उनका मार्ग दर्शन कर सका था। अपने अधिकार के कारण, वह पृथ्वी पर उनके साथ दो हजार वर्षों तक रहा। इस्राएलियों ने विद्रोह करने का साहस नहीं किया; सब यहोवा का भय मानते और आज्ञाओं का पालन करते थे। यह सब कार्य उसके अधिकार और उसकी सर्वशक्तिमत्ता की वजह से ही किया जाता था। अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के लिए आया। उसने मनुष्य के प्रति दया और करुणा दिखायी। मनुष्य ने अनुग्रह के युग में जिस यीशु को देखा वह करुणा से भरा हुआ और हमेशा ही प्रेममय था, क्योंकि वह मनुष्य को पाप से मुक्त कराने के लिए आया था। जब तक उसके सूली पर चढ़ने ने मानव जाति को वास्तव में पाप से मुक्त नहीं कर दिया तब तक वह मनुष्य के पाप माफ कर सकता था। उस समय के दौरान, परमेश्वर मनुष्य के सामने दया और करुणा के साथ प्रकट हुआ; अर्थात्, वह मनुष्य के लिए एक पापबलि बना और मनुष्य के पापों के लिए सलीब पर चढ़ाया गया ताकि उन्हें हमेशा के लिए माफ कर दिया जाए। वह दयालु, करुणामय, सहनीय और प्रेममय था। और वे सब जिन्होंने अनुग्रह के युग में यीशु का अनुसरण किया था उन्होंने भी सारी चीजों में सहनीय और प्रेममय बनने की इच्छा की। उन्होंने सभी कष्ट सहे, और यहाँ तक कि यदि पीटे गए, शाप दिए गए या पत्थर मारे गए तो भी लड़ाई नहीं की। परन्तु इस अंतिम चरण में ऐसा नहीं है, बहुत कुछ जैसा कि यीशु का और यहोवा का कार्य सदृश्य नहीं था यद्यपि उनकी पवित्रात्माएँ एक ही थीं। यहोवा का कार्य युग का अंत करना नहीं था बल्कि इसकी अगुवाई करना और पृथ्वी पर मानवजाति का सूत्रपात करना था। हालाँकि, अब कार्य अन्य जाति के राष्ट्रों में गहराई से भ्रष्ट मनुष्यों को जीतना और न केवल चीन के परिवार की बल्कि समस्त विश्व की अगुआई करना है। तुम इस कार्य को सिर्फ चीन में ही होते हुए देखते हो, परन्तु वास्तव में इसने पहले से ही विदेश में फैलना शुरू कर दिया है। ऐसा क्यों है कि विदेशी बार-बार सच्चे मार्ग को खोजते हैं? यह इसलिए है क्योंकि पवित्रात्मा ने अपना कार्य पहले से ही शुरू कर दिया है, और ये वचन अब समस्त विश्व के लोगों की ओर निर्देशित हैं। आधा कार्य पहले से ही हो चुका है। विश्व के सृजन के बाद से परमेश्वर के आत्मा ने इतना महान कार्य किया है; उसने विभिन्न युगों के दौरान, और भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कार्य किए हैं। प्रत्येक युग के लोग उसके भिन्न स्वभाव को देखते हैं, जो कि उस भिन्न कार्य के माध्यम से प्राकृतिक रूप से प्रकट होता है जिसे वह करता है। वह दया और करुणा से भरा हुआ परमेश्वर है; वह मनुष्य और मनुष्य के चरवाहे के लिए पापबलि है, फिर भी वह मनुष्य पर न्याय, ताड़ना, और श्राप भी है। वह मनुष्य की पृथ्वी पर दो हजार साल तक रहने में अगुआई कर सका और भ्रष्ट मानवजाति को पाप से छुटकारा दिला सका था। और आज, वह उस मानवजाति को जीतने में भी सक्षम है जो उसे नहीं जानती है और उसे अपने प्रभुत्व के अधीन करने में सक्षम है, ताकि सभी पूरी तरह से उसके प्रति समर्पण कर दें। अंत में, वह समस्त विश्व में मनुष्यों के अंदर जो कुछ भी अशुद्ध और अधर्मी है उसे जला कर दूर कर देगा, ताकि उन्हें यह दिखाए कि वह न सिर्फ दया, करुणा, बुद्धि, आश्चर्य और पवित्रता का परमेश्वर है, बल्कि इससे भी अधिक, वह एक ऐसा परमेश्वर है जो मनुष्य का न्याय करता है। मानवजाति के बीच बुरों के लिए, वह प्रज्वलन, न्याय करने वाला और दण्ड है; जिन्हें पूर्ण किया जाना है उनके लिए, वह क्लेश, शुद्धिकरण, और परीक्षण, और साथ ही आराम, संपोषण, वचनों की आपूर्ति, व्यवहार करने वाला और काँट-छाँट है। और जिन्हें अलग कर दिया जाता है उनके लिए, वह सजा, और साथ ही प्रतिशोध भी है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने

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