परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 105

23 अप्रैल, 2021

देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है, तथा मसीह परमेश्वर के आत्मा के द्वारा धारण किया गया देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है बल्कि आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण परमेश्वरत्व दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती है। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियों को बनाए रखती है, जबकि दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य करती है। चाहे यह उसकी मानवता हो या दिव्यता, दोनों स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति समर्पित हैं। मसीह का सार पवित्र आत्मा, अर्थात्, दिव्यता है। इसलिए, उसका सार स्वयं परमेश्वर का है; यह सार उसके स्वयं के कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं करेगा, तथा वह संभवतः कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जो उसके स्वयं के कार्य को नष्ट करता हो, ना वह ऐसे वचन कहेगा जो उसकी स्वयं की इच्छा के विरूद्ध जाते हों। इसलिए, देहधारी परमेश्वर अवश्य ही कभी भी कोई ऐसा कार्य नहीं करेगा जो उसके अपने प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करता हो। यह वह बात है जिसे सभी मनुष्यों को समझना चाहिए। पवित्र आत्मा के कार्य का सार मनुष्य को बचाना तथा परमेश्वर के अपने प्रबंधन के वास्ते है। इसी प्रकार, मसीह का कार्य मनुष्य को बचाना है तथा यह परमेश्वर की इच्छा के वास्ते है। यह देखते हुए कि परमेश्वर देह बन जाता है, वह अपने देह में अपने सार का, इस प्रकार एहसास करता है कि उसका देह उसके कार्य का भार उठाने के लिए पर्याप्त है। इसलिए देहधारी होने के समय के दौरान परमेश्वर के आत्मा का संपूर्ण कार्य मसीह के कार्य के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, तथा देहधारण के पूरे समय के दौरान संपूर्ण कार्य के केन्द्र में मसीह का कार्य होता है। इसे किसी भी अन्य युग के कार्य के साथ मिलाया नहीं जा सकता है। और चूँकि परमेश्वर देहधारी हो जाता है, इसलिए वह अपनी देह की पहचान में कार्य करता है; चूँकि वह देह में आता है, इसलिए वह अपनी देह में उस कार्य को समाप्त करता है जो उसे करना चाहिए। चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या वह मसीह हो, दोनों परमेश्वर स्वयं हैं, तथा वह उस कार्य को करता है जो उसे करना चाहिए है तथा उस सेवकाई को करता है जो उसे करनी चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है

मसीह का सार तय होता है उसके काम और अभिव्यक्तियों से

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मसीह का सार तय होता है उसके काम और अभिव्यक्तियों से। सच्चे दिल से पूरा करता है वो काम जो सुपुर्द है उसके, स्वर्ग के परमेश्वर को पूजता है और अपने पिता की इच्छा तलाशता है। ये सब तय होता है उसके सार से, और उसी से उसके कुदरती प्रकाशन तय होते हैं। वो कुदरती प्रकाशन कहलाते हैं, चूंकि उसकी अभिव्यक्तियां नकल नहीं हैं, ना ही इंसान के बरसों के सुधार या तालीम का नतीजा हैं। ना तो इन्हें उसने सीखा है, ना ख़ुद पर सजाया है, बल्कि सहज हैं। ना तो इन्हें उसने सीखा है, ना ख़ुद पर सजाया है, बल्कि सहज हैं, बल्कि सहज हैं, सहज हैं, सहज हैं।

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इंसान उसके काम को, अभिव्यक्तियों को, मानवता को नकार सकता है, वे उसके सामान्य मानवता के जीवन को भी नकार सकते हैं, मगर उसके सच्चे दिल को नहीं जब वो स्वर्ग में परमेश्वर को पूजता है। कोई नकार नहीं सकता कि वो स्वर्गीय पिता की इच्छा को पूरा करने की ख़ातिर यहां है। और कोई नकार नहीं सकता जिस सच्चाई से वो पिता परमेश्वर को खोजता है। शायद उसकी छवि इंद्रियों को ना भाए, शायद उसके उपदेश का लहजा निराला ना हो, शायद उसका काम धरती-या-आकाश को उतना ना हिला पाए, जितना इंसान अपनी कल्पना में मानता है। मगर वो सचमुच मसीह है, जो पूरा करता है इच्छा अपने पिता की, पूरे दिल से, पूरे समर्पण से, मौत की हद तक आज्ञापालन से। ऐसा इसलिये कि उसका सार मसीह का है। इन्सान के लिये इस सच पर यकीन करना मुश्किल है, मगर जो सचमुच वजूद में है, इन्सान के लिये इस सच पर यकीन करना मुश्किल है, मगर जो सचमुच वजूद में है, इन्सान के लिये इस सच पर यकीन करना मुश्किल है, मगर जो सचमुच वजूद में है।

— 'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से

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