Christian Dance | भ्रष्ट मानवजाति की त्रासदी | Praise Song

25 अप्रैल, 2025

1

मनुष्य परमेश्वर का अनुसरण करते हुए

इन सभी अलग-अलग अवधियों में चला है,

फिर भी वह यह नहीं जानता है कि

परमेश्वर सभी चीजों और जीवित प्राणियों के भाग्य पर संप्रभु है,

न ही वह यह जानता है कि परमेश्वर सभी चीजों की

कैसे योजना बनाता और निर्देशित करता है।

यह बात आज के मनुष्य

और यहाँ तक कि अनादि काल के मनुष्य से बचती रही है।

जहाँ तक कारण का सवाल है,

ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर के कर्म बहुत छिपे हुए हैं,

न इसलिए कि परमेश्वर की योजना अभी तक साकार नहीं हुई है,

बल्कि इसलिए है

कि मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर से बहुत दूर हैं,

उतनी दूर, जहाँ मनुष्य परमेश्वर का अनुसरण करते हुए

भी शैतान की सेवा में बना रहता है—

और उसे इसका भान भी नहीं होता।

2

कोई भी सक्रिय रूप से

परमेश्वर के पदचिह्नों और उसके प्रकटन को नहीं खोजता

और कोई भी परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में

रहने के लिए तैयार नहीं है।

इसके बजाय, वे इस दुनिया के

और बुरी मानवजाति द्वारा अनुसरण किए जाने वाले

अस्तित्व के नियमों के अनुकूल होने के लिए,

उस दुष्ट शैतान और राक्षस द्वारा किए जाने वाले क्षरण को

स्वीकारने को तैयार हैं।

इस बिंदु पर, मनुष्य का हृदय और आत्मा

वह श्रद्धांजलि बन जाते हैं जो मनुष्य शैतान को पेश करता है

और उसका भोजन बन गए हैं।

इससे भी अधिक, मानव हृदय और आत्मा

एक ऐसा स्थान बन जाते हैं, जिसमें शैतान रहता है

और उसका उचित खेल का मैदान बन जाते हैं।

3

मनुष्य अनजाने में

ही मानवीय आचरण के सिद्धांतों की समझ खो देता है

और मानव-अस्तित्व के मूल्य और महत्व के बारे में

अपनी समझ खो देता है।

परमेश्वर के नियम और परमेश्वर और मनुष्य के बीच की वाचा

धीरे-धीरे मनुष्य के दिल में धुंधली पड़ती जाती है

और वह परमेश्वर की तलाश करना

या उस पर ध्यान देना बंद कर देता है।

समय गुजरने के साथ मनुष्य ने

परमेश्वर द्वारा उसे सृजित किए जाने के महत्व के बारे में

अपनी समझ खो दी है

और न ही वह परमेश्वर के मुख से निकलने वाले वचनों को

और परमेश्वर से आने वाली सभी बातों को समझता है।

मनुष्य फिर परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधानों का

प्रतिरोध करना शुरू कर देता है

और उसका दिल और आत्मा सुन्न हो जाते हैं...।

परमेश्वर उस मनुष्य को खो देता है, जिसे उसने शुरू में बनाया था,

और मनुष्य उस मूल को खो देता है जो मूल रूप से उसके पास था :

यही इस मानवजाति की त्रासदी है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है

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