Christian Song | परमेश्वर मानव के सृजन के अर्थ को पुनर्स्थापित करेगा

09 सितम्बर, 2020

परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया,

उसे पृथ्वी पर रखा,

और उसकी आज के दिन तक अगुआई की।

उसने तब मानवजाति को बचाया और मानवजाति के लिये पापबली के रूप में कार्य किया।

अंत में उसे अभी भी मानवजाति को जीतना चाहिए,

मानवजाति को पूर्णतः बचाना चाहिए

और उसे उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना चाहिए।

यही वह कार्य है जिसमें वह आरंभ से लेकर अंत तक संलग्न रहा है—

मनुष्य को उसकी मूल छवि में और उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना।

वह अपना राज्य स्थापित करेगा

और मनुष्य की मूल समानता पुनर्स्थापित करेगा,

मनुष्य की मूल समानता पुनर्स्थापित करेगा,

जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी पर अपने अधिकार को पुनर्स्थापित करेगा,

और समस्त प्राणियों के बीच अपने अधिकार को पुर्नस्थापित करेगा।

शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने पर मनुष्य ने,

परमेश्वर की अवज्ञा करने वाले शत्रु बनते हुए,

अपना धर्मभीरू हृदय गँवा दिया है और उस कार्य को गँवा दिया

जो परमेश्वर के सृजित प्राणियों में से एक के पास होना चाहिए।

मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहा

और उसने उसके आदेशों का पालन किया;

इस प्रकार, अपने प्राणियों के बीच कार्य करने का परमेश्वर के पास कोई मार्ग नहीं था,

और तो और अपने प्राणियों से परमेश्वर का भय प्राप्त करने में असमर्थ था।

मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजित था,

और उसे परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए थी,

परंतु मनुष्य ने वास्तव में परमेश्वर की ओर से पीठ फेर ली और शैतान की आराधना की।

शैतान मनुष्य के हृदय में प्रतिमा बन गया।

इस प्रकार, परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में अपना स्थान खो दिया,

जिसका मतलब है कि उसने मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को खो दिया,

और इसलिए मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को पुनर्स्थापित करने के लिए

उसे अवश्य मनुष्य की मूल समानता को पुनर्स्थापित करना चाहिए,

और मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुड़ाना चाहिए।

शैतान से मनुष्य को वापस प्राप्त करने के लिए,

उसे अवश्य मनुष्य को पाप से बचाना चाहिए।

केवल इसी तरह से वह धीरे-धीरे मनुष्य की मूल समानता को

पुनर्स्थापित कर सकता है और मनुष्य के मूल कार्य को पुनर्स्थापित कर सकता है,

और अंत में अपने राज्य को पुनर्स्थापित कर सकता है।

अवज्ञा करने वाले उन पुत्रों को अंतिम रूप से इसलिए भी नष्ट किया जाएगा

ताकि मनुष्य को बेहतर ढंग से परमेश्वर की आराधना करने दी जाए

और पृथ्वी पर बेहतर ढंग से जीने दिया जाए।

जो राज्य वह स्थापित करना चाहता है, वह उसका स्वयं का राज्य है।

जिस मानवजाति की वह इच्छा करता है वह है जो उसकी आराधना करती है,

जो पूर्णतः उसकी आज्ञा का पालन करती है और उसकी महिमा रखती है,

उसकी महिमा रखती है।

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