परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 190

05 दिसम्बर, 2020

परमेश्वर के 6,000 वर्षों के प्रबधंन-कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है : व्यवस्था का युग, अनुग्रह का युग और राज्य का युग। कार्य के ये तीनों चरण मानव-जाति के उद्धार के वास्ते हैं, अर्थात् ये उस मानव-जाति के उद्धार के लिए हैं, जिसे शैतान द्वारा बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया गया है। किंतु, साथ ही, वे इसलिए भी हैं, ताकि परमेश्वर शैतान के साथ युद्ध कर सके। इस प्रकार, जैसे उद्धार के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, ठीक वैसे ही शैतान के साथ युद्ध को भी तीन चरणों में बाँटा जाता है, और परमेश्वर के कार्य के ये दो पहलू एक-साथ संचालित किए जाते हैं। शैतान के साथ युद्ध वास्तव में मानव-जाति के उद्धार के वास्ते है, और चूँकि मानव-जाति के उद्धार का कार्य कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे एक ही चरण में सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता हो, इसलिए शैतान के साथ युद्ध को भी चरणों और अवधियों में बाँटा जाता है, और मनुष्य की आवश्यकताओं और मनुष्य में शैतान की भ्रष्टता की सीमा के अनुसार शैतान के साथ युद्ध छेड़ा जाता है। कदाचित् मनुष्य अपनी कल्पना में यह विश्वास करता है कि इस युद्ध में परमेश्वर शैतान के विरुद्ध शस्त्र उठाएगा, वैसे ही, जैसे दो सेनाएँ आपस में लड़ती हैं। मनुष्य की बुद्धि मात्र यही कल्पना करने में सक्षम है; यह अत्यधिक अस्पष्ट और अवास्तविक सोच है, फिर भी मनुष्य यही विश्वास करता है। और चूँकि मैं यहाँ कहता हूँ कि मनुष्य के उद्धार का साधन शैतान के साथ युद्ध करने के माध्यम से है, इसलिए मनुष्य कल्पना करता है कि युद्ध इसी तरह से संचालित किया जाता है। मनुष्य के उद्धार के कार्य के तीन चरण हैं, जिसका तात्पर्य है कि शैतान को हमेशा के लिए पराजित करने हेतु उसके साथ युद्ध को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। किंतु शैतान के साथ युद्ध के समस्त कार्य की भीतरी सच्चाई यह है कि इसके परिणाम कार्य के अनेक चरणों में हासिल किए जाते हैं : मनुष्य को अनुग्रह प्रदान करना, मनुष्य के लिए पापबलि बनना, मनुष्य के पापों को क्षमा करना, मनुष्य पर विजय पाना और मनुष्य को पूर्ण बनाना। वस्तुतः शैतान के साथ युद्ध करना उसके विरुद्ध हथियार उठाना नहीं है, बल्कि मनुष्य का उद्धार करना है, मनुष्य के जीवन में कार्य करना है, और मनुष्य के स्वभाव को बदलना है, ताकि वह परमेश्वर के लिए गवाही दे सके। इसी तरह से शैतान को पराजित किया जाता है। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के माध्यम से शैतान को पराजित किया जाता है। जब शैतान को पराजित कर दिया जाएगा, अर्थात् जब मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा, तो अपमानित शैतान पूरी तरह से लाचार हो जाएगा, और इस तरह से, मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। इस प्रकार, मनुष्य के उद्धार का सार शैतान के विरुद्ध युद्ध है, और यह युद्ध मुख्य रूप से मनुष्य के उद्धार में प्रतिबिंबित होता है। अंत के दिनों का चरण, जिसमें मनुष्य को जीता जाना है, शैतान के साथ युद्ध का अंतिम चरण है, और यह शैतान के अधिकार-क्षेत्र से मनुष्य के संपूर्ण उद्धार का कार्य भी है। मनुष्य पर विजय का आंतरिक अर्थ मनुष्य पर विजय पाने के बाद शैतान के मूर्त रूप—मनुष्य, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है—का अपने जीते जाने के बाद सृजनकर्ता के पास वापस लौटना है, जिसके माध्यम से वह शैतान को छोड़ देगा और पूरी तरह से परमेश्वर के पास वापस लौट जाएगा। इस तरह मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। और इसलिए, विजय का कार्य शैतान के विरुद्ध युद्ध में अंतिम कार्य है, और शैतान की पराजय के वास्ते परमेश्वर के प्रबंधन में अंतिम चरण है। इस कार्य के बिना मनुष्य का संपूर्ण उद्धार अंततः असंभव होगा, शैतान की संपूर्ण पराजय भी असंभव होगी, और मानव-जाति कभी भी अपनी अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करने या शैतान के प्रभाव से छुटकारा पाने में सक्षम नहीं होगी। परिणामस्वरूप, शैतान के साथ युद्ध की समाप्ति से पहले मनुष्य के उद्धार का कार्य समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य का केंद्रीय भाग मानव-जाति के उद्धार के वास्ते है। आदिम मानव-जाति परमेश्वर के हाथों में थी, किंतु शैतान के प्रलोभन और भ्रष्टता की वजह से, मनुष्य को शैतान द्वारा बाँध लिया गया और वह इस दुष्ट के हाथों में पड़ गया। इस प्रकार, परमेश्वर के प्रबधंन-कार्य में शैतान पराजित किए जाने का लक्ष्य बन गया। चूँकि शैतान ने मनुष्य पर कब्ज़ा कर लिया था, और चूँकि मनुष्य वह पूँजी है जिसे परमेश्वर संपूर्ण प्रबंधन पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है, इसलिए यदि मनुष्य को बचाया जाना है, तो उसे शैतान के हाथों से वापस छीनना होगा, जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य को शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाने के बाद उसे वापस लेना होगा। इस प्रकार, शैतान को मनुष्य के पुराने स्वभाव में बदलावों के माध्यम से पराजित किया जाना चाहिए, ऐसे बदलाव, जो मनुष्य की मूल विवेक-बुद्धि को बहाल करते हैं। और इस तरह से मनुष्य को, जिसे बंदी बना लिया गया था, शैतान के हाथों से वापस छीना जा सकता है। यदि मनुष्य शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो जाता है, तो शैतान शर्मिंदा हो जाएगा, मनुष्य को अंततः वापस ले लिया जाएगा, और शैतान को हरा दिया जाएगा। और चूँकि मनुष्य को शैतान के अंधकारमय प्रभाव से मुक्त किया जा चुका है, इसलिए एक बार जब यह युद्ध समाप्त हो जाएगा, तो मनुष्य इस संपूर्ण युद्ध में जीत के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ लाभ बन जाएगा, और शैतान वह लक्ष्य बन जाएगा जिसे दंडित किया जाएगा, जिसके पश्चात् मानव-जाति के उद्धार का संपूर्ण कार्य पूरा कर लिया जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

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