परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 68
21 जून, 2020
क्या तुम लोगों की सत्य की समझ तुम्हारी अपनी अवस्थाओं के साथ एकीकृत है? वास्तविक जीवन में तुम्हें पहले यह सोचना होगा कि कौन-से सत्य तुम्हारे सामने आए लोगों, घटनाओं और चीज़ों से संबंध रखते हैं; इन्हीं सत्यों के बीच तुम परमेश्वर की इच्छा तलाश सकते हो और अपने सामने आने वाली चीज़ों को उसकी इच्छा के साथ जोड़ सकते हो। यदि तुम नहीं जानते कि सत्य के कौन-से पहलू तुम्हारे सामने आई चीज़ों से संबंध रखते हैं, और सीधे परमेश्वर की इच्छा खोजने चल देते हो, तो यह एक अंधा दृष्टिकोण है और परिणाम हासिल नहीं कर सकता। यदि तुम सत्य की खोज करना और परमेश्वर की इच्छा समझना चाहते हो, तो पहले तुम्हें यह देखने की आवश्यकता है कि तुम्हारे साथ किस प्रकार की चीज़ें घटित हुई हैं, वे सत्य के किन पहलुओ से संबंध रखती हैं, और परमेश्वर के वचन में उस विशिष्ट सत्य को देखो, जो तुम्हारे अनुभव से संबंध रखता है। तब तुम उस सत्य में अभ्यास का वह मार्ग खोजो, जो तुम्हारे लिए सही है; इस तरह से तुम परमेश्वर की इच्छा की अप्रत्यक्ष समझ प्राप्त कर सकते हो। सत्य की खोज करना और उसका अभ्यास करना यांत्रिक रूप से किसी सिद्धांत को लागू करना या किसी सूत्र का अनुसरण करना नहीं है। सत्य सूत्रबद्ध नहीं होता, न ही वह कोई विधि है। वह मृत नहीं है—वह स्वयं जीवन है, वह एक जीवित चीज़ है, और वह वो नियम है, जिसका अनुसरण प्राणी को अपने जीवन में अवश्य करना चाहिए और वह वो नियम है, जो मनुष्य के पास अपने जीवन में अवश्य होना चाहिए। यह ऐसी चीज़ है, जिसे तुम्हें जितना संभव हो, अनुभव के माध्यम से समझना चाहिए। तुम अपने अनुभव की किसी भी अवस्था पर क्यों न पहुँच चुके हो, तुम परमेश्वर के वचन या सत्य से अविभाज्य हो, और जो कुछ तुम परमेश्वर के स्वभाव के बारे में समझते हो और जो कुछ तुम परमेश्वर के स्वरूप के बारे में जानते हो, वह सब परमेश्वर के वचनों में व्यक्त होता है; वह सत्य से अटूट रूप से जुड़ा है। परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप अपने आप में सत्य हैं; सत्य परमेश्वर के स्वभाव और उसके स्वरूप की एक प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। वह परमेश्वर के स्वरूप को ठोस बनाता है और उसका स्पष्ट विवरण देता है; वह तुम्हें और अधिक सीधी तरह से बताता है कि परमेश्वर क्या पसंद करता है और वह क्या पसंद नहीं करता, वह तुमसे क्या कराना चाहता है और वह तुम्हें क्या करने की अनुमति नहीं देता, वह किन लोगों से घृणा करता है और वह किन लोगों से प्रसन्न होता है। परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों के पीछे लोग उसके आनंद, क्रोध, दुःख और खुशी, और साथ ही उसके सार को देख सकते हैं—यह उसके स्वभाव का प्रकट होना है। परमेश्वर के स्वरूप को जानने और उसके वचन से उसके स्वभाव को समझने के अतिरिक्त जो सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, वह है व्यावहारिक अनुभव के द्वारा इस समझ तक पहुँचने की आवश्यकता। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को जानने के लिए अपने आप को वास्तविक जीवन से हटा लेता है, तो वह उसे प्राप्त नहीं कर पाएगा। भले ही कुछ लोग हों, जो परमेश्वर के वचन से कुछ समझ प्राप्त कर सकते हों, किंतु उनकी समझ सिद्धांतों और वचनों तक ही सीमित रहती है, और परमेश्वर वास्तव में जैसा है, वह उससे भिन्न रहती है।
हम अभी जिस बारे में संवाद कर रहे हैं, वह सब बाइबल में दर्ज कहानियों के दायरे में है। इन कहानियों के माध्यम से, और घटित हुई इन चीज़ों के विश्लेषण के माध्यम से, लोग उसके स्वभाव और उसके स्वरूप को, जो उसने प्रकट किया है, समझ सकते हैं, जो उन्हें परमेश्वर के हर पहलू को और अधिक व्यापकता से, अधिक गहराई से, अधिक विस्तार से और अधिक अच्छी तरह से समझने देता है। तो क्या परमेश्वर के स्वभाव के हर पहलू को जानने का एकमात्र तरीका इन कहानियों के माध्यम से जानना ही है? नहीं, यह एकमात्र तरीका नहीं है! क्योंकि राज्य के युग में परमेश्वर जो कहता है और जो कार्य वह करता है, वे परमेश्वर के स्वभाव को जानने में, और उसे पूरी तरह से जानने में लोगों की बेहतर सहायता कर सकते हैं। किंतु मुझे लगता है कि बाइबल में दर्ज कुछ उदाहरणों और कहानियों के माध्यम से, जिनसे लोग परिचित हैं, परमेश्वर के स्वभाव को जानना और उसके स्वरूप को समझना थोड़ा आसान है। यदि मैं तुम्हें परमेश्वर को जानने में सक्षम करने के लिए न्याय और ताड़ना के उन वचनों और सत्यों को, जिन्हें आज परमेश्वर प्रकट करता है, शब्दशः लेता हूँ, तो तुम इसे बहुत उबाऊ और थकाऊ महसूस करोगे, और कुछ लोग तो यहाँ तक महसूस करेंगे कि परमेश्वर के वचन सूत्रबद्ध प्रतीत होते हैं। परंतु यदि मैं बाइबल की इन कहानियों को उदाहरणों के रूप में लेता हूँ, ताकि परमेश्वर के स्वभाव को जानने में लोगों को मदद मिल सके, तो वे इसे उबाऊ नहीं पाएँगे। तुम कह सकते हो कि इन उदाहरणों की व्याख्या करने के दौरान, उस समय जो परमेश्वर के हृदय में था, उसका विवरण—उसकी मनोदशा या मनोभाव, या उसके विचार और मत—लोगों को मनुष्य की भाषा में बताए गए हैं, और इस सबका उद्देश्य उन्हें यह समझाना और महसूस कराना है कि परमेश्वर का स्वरूप सूत्रबद्ध नहीं है। यह कोई पौराणिक या कुछ ऐसा नहीं है, जिसे लोग देख और छू नहीं सकते। यह कुछ ऐसा है, जो सचमुच मौजूद है, जिसे लोग महसूस कर सकते हैं और समझ सकते हैं। यह चरम लक्ष्य है। तुम कह सकते हो कि इस युग में रहने वाले लोग धन्य हैं। वे परमेश्वर के पिछले कार्य की विस्तृत समझ प्राप्त करने के लिए बाइबल की कहानियों का उपयोग कर सकते हैं; वे उसके द्वारा किए गए कार्य से उसके स्वभाव को देख सकते हैं; वे उसके द्वारा व्यक्त किए गए इन स्वभावों से मानवजाति के लिए परमेश्वर की इच्छा को समझ सकते हैं, और उसकी पवित्रता की ठोस अभिव्यक्तियों और मनुष्यों के लिए उसकी देखरेख को समझ सकते हैं, और इस प्रकार वे परमेश्वर के स्वभाव के अधिक विस्तृत और गहरे ज्ञान तक पहुँच सकते हैं। मुझे विश्वास है कि तुम सभी लोग अब इसे महसूस कर सकते हो!
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III
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