परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 67

13 मार्च, 2021

"मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है" वाक्य लोगों को बताता है कि परमेश्वर से संबंधित हर चीज़ भौतिक प्रकृति की नहीं है, और यद्यपि परमेश्वर तुम्हारी सारी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, लेकिन जब तुम्हारी सारी भौतिक आवश्यकताएँ पूरी कर दी जाती हैं, तो क्या इन चीज़ों से मिलने वाली संतुष्टि तुम्हारी सत्य की खोज का स्थान ले सकती है? यह स्पष्टत: संभव नहीं है! परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप, जिसके बारे में हमने संगति की है, दोनों सत्य हैं। इनका मूल्य भौतिक वस्तुओं से नहीं मापा जा सकता, चाहे वे कितनी भी मूल्यवान हों, न ही इनके मूल्य की गणना पैसों में की जा सकती है, क्योंकि ये कोई भौतिक वस्तुएँ नहीं हैं, और ये हर एक व्यक्ति के हृदय की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए इन अमूर्त सत्यों का मूल्य ऐसी किसी भी भौतिक चीज़ से बढ़कर होना चाहिए, जिसे तुम मूल्यवान समझते हो, या नहीं? यह कथन ऐसा है, जिस पर तुम लोगों को सोच-विचार करने की आवश्यकता है। जो कुछ मैंने कहा है, उसका मुख्य बिंदु यह है कि परमेश्वर का स्वरूप और उससे संबंधित हर चीज़ प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें हैं और उन्हें किसी भौतिक चीज़ से बदला नहीं जा सकता। मैं तुम्हें एक उदाहरण दूँगा : जब तुम भूखे होते हो, तो तुम्हें भोजन की आवश्यकता होती है। यह भोजन कमोबेश अच्छा हो सकता है, या कमोबेश असंतोषजनक हो सकता है, किंतु यदि उससे तुम्हारा पेट भर जाता है, तो भूखे होने का वह अप्रिय एहसास अब नहीं रहेगा—वह मिट जाएगा। तुम चैन से बैठ सकते हो, और तुम्हारा शरीर आराम महसूस करेगा। लोगों की भूख का भोजन से समाधान किया जा सकता है, किंतु जब तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और तुम्हें यह एहसास होता है कि तुम्हें उसके बारे में कोई समझ नहीं है, तो तुम अपने हृदय के खालीपन का समाधान कैसे करोगे? क्या इसका समाधान भोजन से किया जा सकता है? या जब तुम परमेश्वर का अनुसरण कर रहे होते हो और उसकी इच्छा तुम्हारी समझ में नहीं आती, तो तुम अपने हृदय की उस भूख को मिटाने के लिए किस चीज़ का उपयोग कर सकते हो? परमेश्वर के माध्यम से उद्धार के अपने अनुभव की प्रक्रिया में, अपने स्वभाव में परिवर्तन की कोशिश करने के दौरान, यदि तुम उसकी इच्छा को नहीं समझते हो या यह नहीं जानते कि सत्य क्या है, यदि तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझते, तो क्या तुम बहुत व्याकुल महसूस नहीं करोगे? क्या तुम अपने हृदय में ज़बरदस्त भूख और प्यास महसूस नहीं करोगे? क्या ये एहसास तुम्हें तुम्हारे हृदय में शांति महसूस करने से रोकेंगे नहीं? तो तुम अपने हृदय की उस भूख की भरपाई कैसे कर सकते हो—क्या इसके समाधान का कोई तरीका है? कुछ लोग खरीददारी करने चले जाते हैं, कुछ लोग मन की बात कहने के लिए मित्रों को खोजते हैं, कुछ लोग लंबी तानकर सो जाते हैं, अन्य लोग परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ते हैं, या वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए और कड़ी मेहनत और प्रयास करते हैं। क्या ये चीज़ें तुम्हारी वास्तविक कठिनाइयों का समाधान कर सकती हैं? तुम सभी इस प्रकार के अभ्यासों को पूर्णत: समझते हो। जब तुम शक्तिहीन महसूस करते हो, जब तुम परमेश्वर से प्रबुद्धता पाने की दृढ़ इच्छा महसूस करते हो जो तुम्हें सत्य की वास्तविकता और उसकी इच्छा ज्ञात करा सके, तो तुम्हें सबसे ज़्यादा किस चीज़ की आवश्यकता होती है? तुम्हें जिस चीज़ की आवश्यकता होती है, वह भरपेट भोजन नहीं है, और वह कुछ उदार वचन नहीं हैं, देह का क्षणिक आराम और संतुष्टि का तो कहना ही क्या—तुम्हें जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह यह है कि परमेश्वर तुम्हें सीधे और स्पष्ट रूप से बताए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए, तुम्हें स्पष्ट रूप से बताए कि सत्य क्या है। जब तुम इसे समझ लेते हो, चाहे थोड़ा-सा ही क्यों न समझो, तो क्या तुम अपने हृदय में उससे अधिक संतुष्ट महसूस नहीं करोगे, जितना कि अच्छा भोजन करने पर महसूस करते हो? जब तुम्हारा हृदय संतुष्ट होता है, तो क्या तुम्हारा हृदय और तुम्हारा संपूर्ण अस्तित्व सच्ची शांति प्राप्त नहीं करता? इस उपमा और विश्लेषण के द्वारा, क्या तुम लोग अब समझे कि क्यों मैं तुम लोगों के साथ इस वाक्य को साझा करना चाहता था, "मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है"? इसका अर्थ है कि जो परमेश्वर से आता है, जो उसका स्वरूप है, और उसका सब-कुछ किसी भी अन्य चीज़ से बढ़कर है, जिसमें वह चीज़ या वह व्यक्ति भी शामिल है, जिस पर तुम किसी समय विश्वास करते थे कि उसे तुमने सबसे अधिक सँजोया है। अर्थात्, यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के मुँह से वचन प्राप्त नहीं कर सकता या उसकी इच्छा को नहीं समझता, तो वह शांति प्राप्त नहीं कर सकता। अपने भविष्य के अनुभवों में तुम लोग समझोगे कि मैं क्यों चाहता था कि आज तुम लोग इस अंश को देखो—यह बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर जो कुछ करता है, वह सब सत्य और जीवन होता है। सत्य वह चीज़ है, जिसकी लोग अपने जीवन में कमी नहीं कर सकते, और यह वह चीज़ है, जिसके बिना उनका कभी काम नहीं चल सकता; तुम यह भी कह सकते हो कि यह सबसे बड़ी चीज़ है। यद्यपि तुम उसे देख या छू नहीं सकते, फिर भी तुम्हारे लिए उसके महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता; यही वह एकमात्र चीज़ है, जो तुम्हारे हृदय में शांति ला सकती है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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