परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 371

31 अगस्त, 2020

मेरी नज़रों में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कम मात्रा में अधिकार नहीं दिया है, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों—पहाड़ो के ऊपर की घास, जंगलों के बीच जानवरों, और जल की मछलियों—का प्रबन्ध करने की अनुमति दी है। फिर भी इसकी वजह से खुश होने के बजाए, मनुष्य चिंता से व्याकुल है। उसका पूरा जीवन एक मनस्ताप का, और वह यहाँ-वहाँ भागने का, और खालीपन में कुछ मौज मस्ती जोड़ने का है, और उसके पूरे जीवन में कोई नए अविष्कार और नई रचनाएँ नहीं हैं। कोई भी अपने आप को इस खोखले जीवन से छुड़ाने में समर्थ नहीं है, किसी ने कभी भी सार्थक जीवन की खोज नहीं की है, और किसी ने कभी भी एक वास्तविक जीवन का अनुभव नहीं किया है। यद्यपि आज सभी लोग मेरे चमकते हुए प्रकाश के नीचे जीवन बिताते हैं, फिर भी वे स्वर्ग के जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। यदि मैं मनुष्य के प्रति दयालु नहीं हूँ और मनुष्य को नहीं बचाता हूँ, तो सभी लोग व्यर्थ में आए हैं, पृथ्वी पर उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं है, और वे व्यर्थ में चले जाएँगे, और उनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं होगा। हर पंथ, समाज के हर वर्ग, हर राष्ट्र, और हर सम्प्रदाय के सभी लोग पृथ्वी पर खालीपन को जानते हैं, और वे सभी मुझे खोजते हैं और मेरी वापसी का इन्तज़ार करते हैं—फिर भी जब मैं आता हूँ तो कौन मुझे जानने में सक्षम है? मैंने सभी चीज़ों को बनाया, मैंने मानवजाति को बनाया, और आज मैं मनुष्य के बीच उतर गया हूँ। हालाँकि, मनुष्य पलटकर मुझ पर वार करता है, और मुझ से बदला लेता है। क्या जो कार्य मैं मनुष्य पर करता हूँ वह उसके किसी लाभ का नहीं है? क्या मैं वास्तव में मनुष्य को संतुष्ट करने में अक्षम हूँ? मनुष्य मुझे अस्वीकार क्यों करता है? मनुष्य मेरे प्रति इतना निरूत्साहित और उदासीन क्यों है? पृथ्वी लाशों से क्यों भरी हुई है? क्या वास्तव में संसार की स्थिति ऐसी ही है जिसे मैंने मनुष्य के लिए बनाया था? ऐसा क्यों हैं कि मैंने मनुष्य को अतुलनीय समृद्धि दी है, फिर भी वह बदले में मुझे दो खाली हाथ प्रदान करता है? मनुष्य मुझसे सचमुच में प्रेम क्यों नहीं करता है? वह कभी भी मेरे सामने क्यों नहीं आता है? क्या मेरे सारे वचन वास्तव में व्यर्थ हैं? क्या मेरे वचन पानी में से गर्मी की तरह ग़ायब हो गए हैं? क्यों मनुष्य मेरे साथ सहयोग करने का अनिच्छुक है? क्या मेरे आगमन का दिन मनुष्य के लिए वास्तव में मृत्यु का दिन है? क्या मैं वास्तव में उस समय मनुष्य को नष्ट कर सकता हूँ जब मेरे राज्य का गठन होता है? मेरी प्रबन्धन योजना के दौरान, क्यों कभी भी किसी ने मेरे इरादों को नहीं समझा है? क्यों मनुष्य मेरे मुँह के वचनों को सँजोने के बजाए, उनसे घृणा करता है और उन्हें अस्वीकार करता है? मैं किसी की भी निंदा नहीं करता हूँ, परन्तु मात्र सभी लोगों को शांत करवाता हूँ और उनसे आत्म-चिंतन का कार्य करवाता हूँ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 25

लोग परमेश्वर से ईमानदारी से प्रेम क्यों नहीं करते?

1

ईश्वर ने हर चीज़ बनाई, इंसान बनाए, और आज वो लोगों के बीच आ गया है, पर इंसान उस पर वार करे, बदला ले। क्या ईश्वर के काम से उसे लाभ नहीं? क्या वो उसे संतुष्ट नहीं कर पाता? इंसान ईश्वर को नकारता क्यों है? इंसान इतना रूखा, उदासीन क्यों है? धरती लाशों से ढकी क्यों है? क्या ईश्वर की बनाई दुनिया की हालत ये है? जिस इंसान को वो इतनी संपदा देता, उस इंसान के हाथ उसके लिए ख़ाली क्यों हैं? इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं? इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है? ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस, इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।

2

ईश्वर ने सब चीज़ें बनाईं, इंसान बनाए, और आज वो लोगों के बीच आ गया है, पर इंसान उस पर वार करे, बदला ले। क्या ईश्वर के काम से उसे लाभ नहीं? क्या वो उसे संतुष्ट नहीं कर पाता? इंसान ईश्वर से सच्चा प्रेम क्यों नहीं करता? इंसान कभी उसके सामने क्यों नहीं आता? क्या बेकार हो गए उसके सारे वचन? क्या पानी से ताप की तरह गायब हो गए उसके वचन? इंसान उससे सहयोग करने को तैयार क्यों नहीं है? इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं? इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है? ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस, इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।

3

क्या ईश्वर का दिन इंसान की मौत का पल है? क्या ईश्वर कर सकता उसे तबाह ईश-राज्य बनने पर? उसकी प्रबंधन योजना के दौरान, किसी ने भी समझी क्यों नहीं इच्छा उसकी? इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं? इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है? ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस, इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे। ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस, इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 25 से रूपांतरित

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