परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 365

20 अगस्त, 2020

पृथ्वी पर, सब प्रकार की दुष्ट आत्माएँ आराम करने के लिए एक स्थान की ओर चुपके चुपके निरन्तर आगे बढ़ती हैं, और वे लगातार मनुष्यों की लाशों की खोज कर रही हैं कि उन्हें खा सकें। मेरी प्रजा! तुम लोगों को मेरी देखभाल और सुरक्षा के भीतर रहना होगा। कामुकता का व्यवहार कभी भी न करो! बिना सोचे समझे कभी भी व्यवहार न करो! उसके बजाए, मेरे घराने में अपनी वफादारी अर्पित करो, और केवल वफादारी से ही तुम शैतान की धूर्तता के विरूद्ध पलटकर वार कर सकते हो। किसी भी परिस्थिति में तुम्हें अतीत के समान बर्ताव नहीं करना है, मेरे सामने एक कार्य करना और मेरे पीठ पीछे दूसरा कार्य करना-उस दशा में तुम पहले से ही छुटकारे से बाहर हो जाते हो। निश्चित रूप से मैंने इस तरह के काफी ज़्यादा वचन कहे हैं, क्या मैंने नहीं कहे हैं? यह बिलकुल वैसा ही है क्योंकि मनुष्य का पुराना स्वभाव असाध्य है जिसके बारे में मैंने उसे बार बार स्मरण दिलाया है। मेरी बातों से ऊब मत जाना! वह सब जो मैं कहता हूँ वह तुम लोगों की नियति को सुनिश्चित करने के लिए है! जो शैतान को चाहिए वह निश्चित रूप से एक घृणित और अपवित्र स्थान है; तुम लोग छुटकारा पाने के लिए जितना ज़्यादा आशाहीन होते हो, और तुम लोग जितना ज़्यादा दूषित होते हो, और आत्म संयम के अधीन होने से मना करते हो, उतनी ही अधिक अशुद्ध आत्माएँ चुपके से भीतर घुसने के लिए किसी भी अवसर का लाभ उठाएँगी। जब तुम लोग एक बार इस दशा में आ जाते हो, तो तुम लोगों की वफादारी बिना किसी वास्तविकता के निष्क्रिय बकवास होगी, और तुम लोगों के दृढ़ निश्चय को अशुद्ध आत्माओं के द्वारा खा लिया जाएगा, और वह अनाज्ञाकारिता या शैतान के छल प्रपंचों में बदल जाएगा, और उसे मेरे काम में गड़बड़ी डालने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस के कारण कभी भी और कहीं भी जब भी मुझे अच्छा लगे मैं तुम लोगों पर प्रहार करके तुम लोगों को मार डालूँगा। कोई भी इस परिस्थिति की गम्भीरता को नहीं जानता है; जो कुछ वे सुनते हैं सभी उन्हें अत्यंत उत्तेजित वार्तालाप की बातें मानते हैं और थोड़ी सी भी सावधानी नहीं बरतते हैं। जो कुछ अतीत में किया गया था मैं उसे स्मरण नहीं करता हूँ। क्या तुम अभी भी मेरा इन्तज़ार करते हो कि मैं एक बार फिर से सब कुछ भूल कर तुम्हारे प्रति उदार हो जाऊँ? यद्यपि मानवता ने मेरा विरोध किया है, फिर भी मैं उसके विरूद्ध अपने हृदय में कुछ भी नहीं रखूँगा, क्योंकि मनुष्य की हस्ती बहुत ही छोटी है, और इसलिए मैं उस से अधिक मांग नहीं करता हूँ। मैं बस उससे यही अपेक्षा करता हूँ कि उसे अपने आपको दूर नहीं करना चाहिए, और आत्म संयम के लिए अपने आपको सौंप देना चाहिए। निश्चित तौर पर इस एक निर्देश को पूरा करना तुम लोगों की क्षमता के बाहर नहीं है? अधिकांश लोग मेरा इन्तज़ार कर रहे हैं कि मैं उनके लिए अधिक से अधिक रहस्यों को प्रकाशित करूँ जिससे वे अपनी आँखों को आनन्दित कर सकें। और फिर भी, अगर तुम्हें स्वर्ग के सारे रहस्यों की समझ हो भी जाए, तो तुम उस ज्ञान के साथ क्या कर सकते हो? क्या यह मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम को बढ़ाएगा? क्या यह मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम को प्रज्वलित कर देगा? मैं मनुष्य को कम नहीं आंकता हूँ, न ही मैं आसानी से उसका न्याय करने की स्थिति में पहुँच पाता हूँ। यदि प्रमाणित सत्य नहीं हैं, तो मैं कभी भी संयोग से मनुष्य के माथे पर नाम पट्टी नहीं लगाता हूँ कि वह उसे मुकुट के रूप में पहने। अतीत के बारे में सोचो क्या कभी ऐसा समय आया जब मैंने तुम लोगों को कलंकित किया? कोई ऐसा समय जब मैं ने तुम लोगों को कम आंका? कोई ऐसा समय जब मैंने तुम लोगों की वास्तविक परिस्थितियों पर ध्यान न देते हुए तुम लोगों के ऊपर निगरानी रखी? कोई ऐसा समय जब जो कुछ मैंने दृढ़ता के साथ कहा वह तुम लोगों के हृदयों और तुम लोगों के मुँह को संतुष्ट करने में असफल हो गया? कोई ऐसा समय जब मैंने तुम लोगों के भीतर अत्यंत गुंजायमान तार को बजाए बिना कुछ कहा हो? तुम लोगों में से कौन है जिसने इस बात से अत्यंत भयभीत होते हुए कि मैं उसे मार कर अथाह कुण्ड में डाल दूँगा, बिना डरे और कांपते हुए मेरे वचनों को पढ़ा है? कौन मेरे वचनों के अंतर्गत परीक्षाओं को नहीं सहता है? मेरे वचनों के भीतर अधिकार निवास करता है, किन्तु यह मनुष्य पर संयोग से न्याय करने के लिए नहीं है; उसके बजाए, मनुष्य की वास्तविक परिस्थितियों के प्रति सचेत होते हुए, मैं लगातार मनुष्य के सामने उस अर्थ को प्रकट करता हूँ जो मेरे शब्दों में निहित है। असल में, क्या कोई मेरे वचनों के सर्वसामर्थी बल को पहचानने के योग्य है? क्या कोई है जो स्वयं सबसे शु़द्ध सोने को प्राप्त कर सकता है जिससे मेरे वचन बने हैं? मैंने कितने सारे वचन कहे हैं, परन्तु क्या कभी किसी ने उन्हें संजोकर रखा है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 10

परमेश्वर के भवन में अपनी निष्ठा अर्पित करो

1

तलाश में रहती हैं अ‍पने शिकार की सदा, हर तरह की दुष्ट आत्मायें धरती पर, रहती हैं आरामगाह की खोज में–इंसानों को निगल जाने की फ़िराक में। पहले जैसा बर्ताव न करना, किसी भी हालत में, परमेश्वर के सामने कुछ करना और उसकी पीठ पीछे कुछ और करना। यही बर्ताव रखा अगर, तो पा न सकोगे छुटकारा कभी। क्या कितनी ही बार परमेश्वर ने कहे नहीं हैं तुमसे ऐसे वचन? परमेश्वर-जन! रहोगे उसकी देखभाल और सुरक्षा में तुम। परमेश्वर-जन! आवारा या लापरवाह न बनो तुम! परमेश्वर-जन! उसके घर में अर्पित करो अपनी वफ़ादारी तुम। हैवान की धूर्तता को अपनी वफ़ादारी से ही नकार सकते हो तुम। परमेश्वर-जन! परमेश्वर-जन!

2

चूँकि इंसानी प्रकृति सुधरती नहीं है, तुम लोगों की ख़ातिर ही इसे याद दिलाया है परमेश्वर ने बार-बार। सुनिश्चित करने नियति तुम्हारी, ये सब कहता है परमेश्वर बार-बार। चाहिये शैतान को बस–गन्दी और दूषित जगह एक। छुटकारे के अवसर जितने कम होंगे, उतने ही ज़्यादा तुम लम्पट बनोगे, संयम जितना कम होगा तुम्हारा, मैली रूहें उतनी ही हमला करेंगी तुम पर।

3

फँस गये इन हालात में अगर एक बार तुम, तो खोखली बात बन जायेगी वफ़ादारी तुम्हारी, खा जायेंगे हैवान संकल्प तुम्हारा, बदल जायेगा नाफ़रमानी और शैतान की चालबाज़ी में संकल्प तुम्हारा। तुम डालोगे रुकावट परमेश्वर के काम में, देगा मौत की सज़ा तुम्हें वो। संगीन हैं हालात फिर भी, सचमुच परवाह नहीं है किसी को। परमेश्वर-जन! रहोगे उसकी देखभाल और सुरक्षा में तुम। परमेश्वर-जन! आवारा या लापरवाह न बनो तुम! परमेश्वर-जन! उसके घर में अर्पित करो अपनी वफ़ादारी तुम। हैवान की धूर्तता को अपनी वफ़ादारी से ही नकार सकते हो तुम।

4

क्या हुआ था याद नहीं रखेगा परमेश्वर, मगर क्या तुम उसकी प्रतीक्षा करोगे, तुम्हारे प्रति वो दयालु हो जाये, अगली बार फिर तुम्हें माफ़ी मिल जाये? इंसान बहुत बार परमेश्वर का विरोधी हुआ है, मगर रखता नहीं अपने दिल में कुछ भी वो, क्योंकि कद इंसान का सचमुच छोटा बहुत है, इसलिये इंसान से परमेश्वर को ज़्यादा अपेक्षा नहीं है। इंसान से परमेश्वर बस यही उम्मीद करता है, संयम बरते और न बनाये आवारा ख़ुद को। क्या इतना आज्ञापालन भी तुम लोगों के लिये मुमकिन नहीं है?

— 'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से

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