परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 347
19 जुलाई, 2022
तुम लोगों की देह, तुम लोगों की असाधारण इच्छाएँ, तुम लोगों का लोभ और तुम लोगों की वासना तुम लोगों में गहराई तक जमी हुई हैं। ये चीजें तुम लोगों के हृदयों को निरंतर इतना नियंत्रित कर रही हैं कि तुम लोगों में अपने उन सामंती और पतित विचारों के जुए को अपने ऊपर से उतार फेंकने की शक्ति नहीं है। तुम लोग न तो अपनी वर्तमान स्थिति को बदलने के लिए लालायित हो, न ही अंधकार के प्रभाव से बच निकलने के लिए। तुम बस इन चीजों से बँधे हुए हो। भले ही तुम लोग जानते हो कि यह जीवन इतना दर्दनाक है और मनुष्यों की यह दुनिया इतनी अंधकारमय, फिर भी तुम लोगों में से किसी एक में भी अपना जीवन बदलने का साहस नहीं है। तुम केवल इस जीवन की वास्तविकताओं से पलायन करने, आत्मा की इंद्रियातीतता हासिल करने और एक शांत, सुखद, स्वर्ग जैसे परिवेश में जीने की अभिलाषा करते हो। तुम लोग अपने वर्तमान जीवन को बदलने के लिए कठिनाइयाँ सहने को तैयार नहीं हो; न ही तुम इस न्याय और ताड़ना के अंदर उस जीवन की खोज करने की इच्छा रखते हो, जिसमें तुम लोगों को प्रवेश करना चाहिए। इसके विपरीत, तुम देह से परे उस सुंदर संसार के बारे में अवास्तविक स्वप्न देखते हो। जिस जीवन की तुम लोग अभिलाषा करते हो, वह एक ऐसा जीवन है जिसे तुम बिना कोई पीड़ा सहे अनायास ही प्राप्त कर सकते हो। यह पूरी तरह से अवास्तविक है! क्योंकि तुम लोग जिसकी आशा करते हो, वह देह में एक सार्थक जीवनकाल जीने के लिए जीवनकाल के दौरान सत्य प्राप्त करने के लिए, अर्थात्, सत्य के लिए जीने और इंसाफ़ के लिए अडिग रहने के लिए नहीं है। यह वह नहीं है, जिसे तुम लोग उज्ज्वल, चकाचौंध करने वाला जीवन मानोगे। तुम लोगों को लगता है कि यह एक मोहक या सार्थक जीवन नहीं होगा। तुम्हारी नज़र में, ऐसा जीवन जीना अन्याय जैसा लगता होगा। भले ही तुम लोग आज इस ताड़ना को स्वीकार करते हो, फिर भी तुम लोग जिसकी खोज कर रहे हो, वह सत्य को प्राप्त करना या वर्तमान में सत्य को जीना नहीं है, बल्कि इसके बजाय बाद में देह से परे एक सुखी जीवन में प्रवेश करने में समर्थ होना है। तुम लोग सत्य की तलाश नहीं कर रहे हो, न ही तुम सत्य के पक्ष में खड़े हो, और तुम निश्चित रूप से सत्य के लिए अस्तित्व में नहीं हो। तुम लोग आज प्रवेश की खोज नहीं कर रहे हो, बल्कि इसके बजाय तुम्हारे विचारों पर भविष्य का और इस बात का कब्ज़ा है कि एक दिन क्या हो सकता है : तुम नीले आसमान पर टकटकी लगाए हो, कड़वे आँसू बहा रहे हो, और किसी दिन स्वर्ग में ले जाए जाने की अपेक्षा कर रहे हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के सोचने का तरीका पहले से ही वास्तविकता से परे है? तुम लोग सोचते रहते हो कि अनंत दया और करुणा करने वाला उद्धारकर्ता एक दिन निसंदेह इस संसार में कठिनाई और पीड़ा सहने वाले तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए आएगा, और कि वह निसंदेह तुम्हारी ओर से बदला लेगा, जिसे कि सताया और उत्पीड़ित किया गया है। क्या तुम पाप से भरे हुए नहीं हो? क्या तुम अकेले हो, जिसने इस संसार में दुःख झेला है? तुम स्वयं ही शैतान के अधिकार-क्षेत्र में गिरे हो और तुमने दुःख झेला है, क्या परमेश्वर को अभी भी सचमुच तुम्हारा बदला लेने की आवश्यकता है? जो लोग परमेश्वर की इच्छाएँ पूरी करने में असमर्थ हैं—क्या वे परमेश्वर के शत्रु नहीं हैं? जो लोग देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते—क्या वे मसीह-विरोधी नहीं हैं? तुम्हारे अच्छे कर्म क्या मायने रखते हैं? क्या वे परमेश्वर की आराधना करने वाले किसी हृदय का स्थान ले सकते हैं? तुम सिर्फ़ कुछ अच्छे कार्य करके परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं कर सकते, और परमेश्वर केवल इसलिए तुम्हारे साथ किए गए अन्याय का बदला नहीं ले सकता कि तुम्हें उत्पीड़ित किया गया और सताया गया है। जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और फिर भी परमेश्वर को नहीं जानते, परंतु जो अच्छे कर्म करते हैं—क्या वे सब भी ताड़ित नहीं किए जाते? तुम सिर्फ़ परमेश्वर पर विश्वास करते हो, सिर्फ़ यह चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हारे विरुद्ध हुए अन्याय का समाधान करे और उसका बदला ले, और तुम चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हें तुम्हारा दिन प्रदान करे, वह दिन, जब तुम अंतत: अपना सिर ऊँचा कर सको। लेकिन तुम सत्य पर ध्यान देने से इनकार करते हो और न ही तुम सत्य को जीने की प्यास रखते हो। तुम इस कठिन, खोखले जीवन से बच निकलने में सक्षम तो बिलकुल भी नहीं हो। इसके बजाय, देह में अपना जीवन बिताते हुए और अपना पापमय जीवन जीते हुए तुम अपेक्षापूर्वक परमेश्वर की ओर देखते हो कि वह तुम्हारी शिकायतें दूर करे और तुम्हारे अस्तित्व के कोहरे को हटा दे। परंतु क्या यह संभव है? यदि तुम्हारे पास सत्य हो, तो तुम परमेश्वर का अनुसरण कर सकते हो। यदि तुम जीवन जीते हो, तो तुम परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्ति हो सकते हो। यदि तुम्हारे पास जीवन हो, तो तुम परमेश्वर के आशीषों का आनंद ले सकते हो। जिन लोगों के पास सत्य होता है, वे परमेश्वर के आशीष का आनंद ले सकते हैं। परमेश्वर उन लोगों के कष्टों का निवारण सुनिश्चित करता है, जो उसे संपूर्ण हृदय से प्रेम करते हैं और जो कठिनाइयाँ और दुःख सहते हैं, उनके नहीं जो केवल अपने आप से प्रेम करते हैं और जो शैतान के धोखों का शिकार हो चुके हैं। उन लोगों में अच्छाई कैसे हो सकती है, जो सत्य से प्रेम नहीं करते? उन लोगों में धार्मिकता कैसे हो सकती है, जो केवल देह से प्रेम करते हैं? क्या धार्मिकता और अच्छाई दोनों सत्य के संदर्भ में नहीं बोली जातीं? क्या वे उन लोगों के लिए आरक्षित नहीं हैं, जो परमेश्वर से संपूर्ण हृदय से प्रेम करते हैं? जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते और जो केवल सड़ी हुई लाशें हैं—क्या वे सभी लोग बुराई को आश्रय नहीं देते? जो लोग सत्य को जीने में असमर्थ हैं—क्या वे सब सत्य के शत्रु नहीं हैं? और तुम्हारा क्या हाल है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है
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