परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 319

02 अगस्त, 2021

तुम सभी परमेश्वर के समक्ष पुरस्कृत होने और उसका अनुग्रह पाने की इच्छा रखते हो; सभी ऐसी चीजों की आशा करते हैं, जब वे परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, क्योंकि सभी उच्चतर चीजों की खोज में लीन रहते हैं, और कोई भी दूसरों से पीछे नहीं रहना चाहता। लोग बस ऐसे ही हैं। यही कारण है कि तुम लोगों में से बहुत-से लोग लगातार स्वर्ग के परमेश्वर की चापलूसी करके उसका अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वास्तव में, परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता अपने प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता से बहुत कम है। मैं यह क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि मैं परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा को बिलकुल भी स्वीकार नहीं करता, और इसलिए भी, क्योंकि मैं उस परमेश्वर के अस्तित्व को नकारता हूँ, जो तुम लोगों के दिलों में है। दूसरे शब्दों में, जिस परमेश्वर की तुम लोग आराधना करते हो, जिस अस्पष्ट परमेश्वर का तुम लोग गुणगान करते हो, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। मैं यह इतनी निश्चितता से इसलिए कह सकता हूँ, क्योंकि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से बहुत दूर हो। तुम लोगों की निष्ठा का कारण तुम लोगों के दिलों के भीतर की मूर्ति है; इस बीच, मेरी नज़र में, जिस परमेश्वर को तुम लोग मानते हो, वह न तो बड़ा है और न ही छोटा, तुम लोग उसे केवल शब्दों से स्वीकार करते हो। जब मैं कहता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर से बहुत दूर हो, तो मेरा मतलब है कि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से दूर हो, जबकि अस्पष्ट परमेश्वर निकट प्रतीत होता है। जब मैं कहता हूँ, "बड़ा नहीं," तो यह इस संदर्भ में है कि आज तुम लोग जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हो, वह केवल महान क्षमताओं से रहित कोई व्यक्ति प्रतीत होता है, ऐसा व्यक्ति जो बहुत बुलंद नहीं है। और जब मैं "छोटा नहीं" कहता हूँ, तो इसका मतलब है कि हालाँकि यह व्यक्ति हवा को नहीं बुला सकता और बारिश को आज्ञा नहीं दे सकता, फिर भी वह परमेश्वर के आत्मा को वह कार्य करने के लिए बुलाने में सक्षम है, जो आकाश और पृथ्वी को हिला देता है, और लोगों को पूरी तरह से भौचक्का कर देता है। बाहरी तौर पर, तुम सभी पृथ्वी पर इस मसीह के प्रति अत्यधिक आज्ञाकारी दिखाई देते हो, किंतु सार में, तुम लोगों को उसमें विश्वास नहीं है, और न ही तुम उससे प्यार करते हो। दूसरे शब्दों में, जिसमें तुम लोग वास्तव में विश्वास रखते हो, वह तुम लोगों की खुद की भावनाओं का अस्पष्ट परमेश्वर है, और जिसे तुम लोग वास्तव में प्यार करते हो, वह वो परमेश्वर है जिसके लिए तुम दिन-रात तरसते हो, किंतु जिसे तुमने व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं देखा है। किंतु इस मसीह के प्रति तुम्हारा विश्वास खंडित और शून्य है। विश्वास का अर्थ है आस्था और भरोसा; प्रेम का अर्थ है व्यक्ति के हृदय में श्रद्धा और प्रशंसा, कभी वियोग नहीं। किंतु आज के मसीह के प्रति तुम लोगों का विश्वास और प्रेम इससे बहुत कम है। जब विश्वास की बात आती है, तो तुम लोग कैसे उसमें विश्वास रखते हो? जब प्यार की बात आती है, तो तुम लोग किस तरह से उससे प्यार करते हो? तुम लोगों को उसके स्वभाव की कोई समझ ही नहीं है, उसके सार को तो तुम बिलकुल भी नहीं जानते, तो फिर तुम लोग उसमें विश्वास कैसे रखते हो? उसमें तुम लोगों के विश्वास की वास्तविकता कहाँ है? तुम लोग उसे कैसे प्यार करते हो? उसके प्रति तुम लोगों के प्यार की वास्तविकता कहाँ है?

बहुत-से लोगों ने आज तक बिना किसी हिचकिचाहट के मेरा अनुसरण किया है। इसी तरह, तुम लोगों ने भी पिछले कई वर्षों में बहुत मेहनत की है। तुममें से प्रत्येक के सहज चरित्र और आदतों को मैंने शीशे की तरह साफ़ समझा है; तुममें से प्रत्येक के साथ बातचीत अत्यधिक दुष्कर रही है। अफ़सोस की बात यह है कि यद्यपि मैंने तुम लोगों के बारे में बहुत-कुछ समझा है, लेकिन तुम लोग मेरे बारे में कुछ भी नहीं समझते। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग कहते हैं कि तुम लोग पलभर को भ्रमित होकर किसी की चाल में आ गए। वास्तव में, तुम लोग मेरे स्वभाव के बारे में कुछ नहीं समझते, और इसकी थाह तो तुम पा ही नहीं सकते कि मेरे मन में क्या है। आज, मेरे बारे में तुम लोगों की गलतफहमियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, और मुझमें तुम लोगों का विश्वास एक भ्रमित विश्वास बना हुआ है। यह कहने के बजाय कि तुम लोगों को मुझमें विश्वास है, यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि तुम लोग चापलूसी से मेरा अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हो और मेरी खुशामद कर रहे हो। तुम लोगों के इरादे बहुत सरल हैं : जो भी कोई मुझे पुरस्कृत कर सकता है, मैं उसी का अनुसरण करूँगा और जो भी कोई मुझे महान आपदाओं से बचाएगा, मैं उसी में विश्वास रखूँगा, चाहे वह परमेश्वर हो या कोई ईश्वर-विशेष हो। इनमें से किसी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम लोगों के बीच ऐसे कई लोग हैं, और यह स्थिति बहुत गंभीर है। अगर किसी दिन इस बात की परीक्षा हो जाए कि तुम लोगों में से कितनों को मसीह में उसके सार में अंतर्दृष्टि के कारण विश्वास है, तो मुझे डर है कि तुम लोगों में से एक भी मेरे लिए संतोषजनक नहीं होगा। इसलिए तुममें से प्रत्येक के लिए इस प्रश्न पर विचार करना दुखदायी नहीं होगा : जिस परमेश्वर में तुम लोग विश्वास करते हो, वह मुझसे बहुत अलग है, और ऐसा होने के कारण, परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास का सार क्या है? जितना अधिक तुम लोग अपने तथाकथित परमेश्वर में विश्वास रखते हो, उतना ही अधिक तुम लोग मुझसे दूर भटक जाते हो। तो फिर, इस मुद्दे का सार क्या है? यह निश्चित है कि तुम लोगों में से किसी ने भी कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार नहीं किया है, लेकिन क्या तुम लोगों को इसकी गंभीरता का एहसास हुआ है? क्या तुम लोगों ने इस तरह से विश्वास रखते रहने के परिणामों के बारे में सोचा है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

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