परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 313

19 नवम्बर, 2020

परमेश्वर के कार्य की बाधाएं कितनी बड़ी हैं? क्या कभी किसी को पता चला है? गहरे जमे अंधविश्वासी रंगों से घिरे लोगों में से कौन परमेश्वर के सच्चे चेहरे को जानने में सक्षम है? इतने उथले और बेतुके पिछड़े सांस्कृतिक ज्ञान के साथ वे कैसे परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों को पूरी तरह से समझ सकते हैं? यहां तक कि आमने-सामने बोले जाने और मुंह से मुंह में डाले जाने पर भी वे कैसे समझ सकते हैं? कभी-कभी ऐसा लगता है, मानो परमेश्वर के वचन बहरे कानों पर पड़ रहे हों : लोगों की थोड़ी-सी भी प्रतिक्रिया नहीं होती, वे अपना सिर हिलाते हैं और कुछ नहीं समझते। यह चिंताजनक कैसे नहीं हो सकता? इस "दूरस्थ, प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास और सांस्कृतिक ज्ञान" ने लोगों के ऐसे बेकार समूह को पाला-पोसा है। यह प्राचीन संस्कृति—बहुमूल्य विरासत—कबाड़ का ढेर है! यह बहुत पहले ही एक चिरस्थायी शर्मिंदगी बन गई, और उल्लेख करने लायक भी नहीं है! इसने लोगों को परमेश्वर का विरोध करने की चालें और तकनीकें सिखा दी हैं, और राष्ट्रीय शिक्षा के "सुव्यवस्थित, सौम्य मार्गदर्शन" ने लोगों को परमेश्वर के प्रति और भी अधिक अवज्ञाकारी बना दिया है। परमेश्वर के कार्य का हर हिस्सा अत्यंत कठिन है, और पृथ्वी पर अपने कार्य का हर कदम परमेश्वर के लिए परेशानी का कारण है। पृथ्वी पर उसका कार्य कितना कठिन है! पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य के कदमों में बड़ी कठिनाई शामिल है : मनुष्य की कमज़ोरी, कमियों, बचपने, अज्ञानता और मनुष्य की हर चीज़ के लिए परमेश्वर सूक्ष्म योजनाएँ बनाता है और ध्यानपूर्वक विचार करता है। मनुष्य एक कागज़ी बाघ की तरह है, जिसे कोई छेड़ने या भड़काने की हिम्मत नहीं करता; हल्के-से स्पर्श से ही वह काट लेता है, या फिर नीचे गिर जाता है और अपना रास्ता खो देता है, और ऐसा लगता है, मानो एकाग्रता की थोड़ी-सी कमी होने पर वह पुनः वापस चला जाता है, या फिर परमेश्वर की उपेक्षा करता है, या अपने शरीर की अशुद्ध चीज़ों में लिप्त होने के लिए अपने सूअरों और कुत्तों जैसे माता-पिताओं की ओर भागता है। यह कितनी बड़ी बाधा है! व्यावहारिक रूप से परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक कदम पर उसे प्रलोभन दिया जाता है, और लगभग हर कदम पर परमेश्वर को बड़े खतरे का जोखिम होता है। उसके वचन निष्कपट, ईमानदार और द्वेषरहित हैं, फिर भी कौन उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार है? कौन पूरी तरह से समर्पित होने के लिए तैयार है? इससे परमेश्वर का दिल टूट जाता है। वह मनुष्य के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करता है, वह मनुष्य के जीवन के लिए चिंता से घिरा रहता है, और वह मनुष्य की कमज़ोरी के साथ सहानुभूति रखता है। उसने अपने द्वारा बोले गए सभी वचनों के लिए अपने कार्य के प्रत्येक चरण में कई मोड़ों और घुमावों का सामना किया है; वह हमेशा एक चट्टान और सख्त जगह के बीच फंसा रहता है, और दिन-रात बार-बार मनुष्य की कमज़ोरी, अवज्ञा, बचपने और भेद्यता ... के बारे में सोचता है। इसे कभी भी किसने जाना है? वह किस पर विश्वास कर सकता है? कौन समझ पाएगा? वह हमेशा मनुष्य के पापों, हिम्मत की कमी और दुर्बलता से घृणा करता है, और वह हमेशा मनुष्य की भेद्यता के बारे में चिंता करता है, और वह मनुष्य के आगे के मार्ग के बारे में विचार करता है। हमेशा, जब वह मनुष्य के वचनों और कर्मों को देखता है, तो वह दया और क्रोध से भर जाता है, और हमेशा इन चीज़ों को देखने से उसके दिल में दर्द पैदा होता है। निर्दोष, आखिरकार, सुन्न हो चुके हैं; परमेश्वर क्यों हमेशा उनके लिए चीज़ों को मुश्किल करे? कमज़ोर मनुष्य में दृढ़ता की बहुत कमी होती है; परमेश्वर क्यों हमेशा उसके लिए अदम्य क्रोध रखे? कमज़ोर और निर्बल मनुष्य में थोड़ा-सा भी जीवट नहीं रहता; परमेश्वर क्यों हमेशा उसकी अवज्ञा के लिए उसे झिड़के? स्वर्ग में परमेश्वर की धमकियों का कौन सामना कर सकता है? आखिरकार, मनुष्य नाज़ुक है, और हताशा की स्थितियों में है, परमेश्वर ने अपना क्रोध अपने दिल की गहराई में धकेल दिया है, ताकि मनुष्य धीरे-धीरे आत्म-चिंतन कर सके। फिर भी मनुष्य, जो गंभीर संकट में है, परमेश्वर की इच्छा की थोड़ी-सी भी सराहना नहीं करता; उसे शैतानों के बूढ़े राजा द्वारा अपने पैरों तले कुचल दिया गया है, फिर भी वह पूरी तरह से अनजान है, वह हमेशा स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध रखता है, या फिर वह न तो उसके प्रति उत्साहित है, न उदासीन। परमेश्वर ने कई वचन कहे हैं, फिर भी किसने उन्हें कभी गंभीरता से लिया है? मनुष्य परमेश्वर के वचनों को नहीं समझता, फिर भी वह बेफ़िक्र और उत्कंठा-रहित रहता है, और कभी भी उसने वास्तव में बूढ़े शैतान का सार नहीं जाना है। लोग अधोलोक में, नरक में रहते हैं, लेकिन मानते हैं कि वे समुद्र-तल के महल में रहते हैं; उन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा सताया जाता है, पर वे स्वयं को देश के "कृपापात्र" समझते हैं; शैतान द्वारा उनका उपहास किया जाता है, पर उन्हें लगता है कि वे देह के उत्कृष्ट कला-कौशल का आनंद ले रहे हैं। कैसा मलिन, नीच अभागों का समूह है यह! मनुष्य दुर्भाग्य का सामना कर चुका है, लेकिन उसे इसका पता नहीं है, और इस अंधेरे समाज में वह एक के बाद एक दुर्घटनाओं का सामना करता है, फिर भी वह इसके प्रति जागा नहीं है। कब वह अपनी आत्म-दया और दासता के स्वभाव से छुटकारा पाएगा? क्यों वह परमेश्वर के दिल के प्रति इतना लापरवाह है? क्या वह चुपचाप इस दमन और कठिनाई को माफ़ कर देता है? क्या वह उस दिन की कामना नहीं करता, जब वह अंधेरे को प्रकाश में बदल सके? क्या वह एक बार फिर धार्मिकता और सत्य के विरुद्ध हो रहे अन्याय को दूर नहीं करना चाहता? क्या वह लोगों द्वारा सत्य का त्याग किए जाने और तथ्यों को तोड़े-मरोड़े जाने को देखते रहने और कुछ न करने के लिए तैयार है? क्या वह इस दुर्व्यवहार को सहते रहने में खुश है? क्या वह गुलाम होने के लिए तैयार है? क्या वह इस असफल राज्य के गुलामों के साथ परमेश्वर के हाथों नष्ट होने को तैयार है? कहां है तुम्हारा संकल्प? कहां है तुम्हारी महत्वाकांक्षा? कहां है तुम्हारी गरिमा? कहां है तुम्हारी सत्यनिष्ठा? कहां है तुम्हारी स्वतंत्रता? क्या तुम शैतानों के राजा, बड़े लाल अजगर को अपना पूरा जीवन अर्पित करना चाहते हो? क्या तुम ख़ुश हो कि वह तुम्हें यातना देते-देते मौत के घाट उतार दे? गहराई का चेहरा अराजक और काला है, जबकि सामान्य लोग ऐसे दुखों का सामना करते हुए स्वर्ग की ओर देखकर रोते हैं और पृथ्वी से शिकायत करते हैं। मनुष्य कब अपने सिर को ऊँचा रख पाएगा? मनुष्य दुर्बल और क्षीण है, वह इस क्रूर और अत्याचारी शैतान से कैसे मुकाबला कर सकता है? वह क्यों नहीं जितनी जल्दी हो सके, परमेश्वर को अपना जीवन सौंप देता? वह क्यों अभी भी डगमगाता है? वह कब परमेश्वर का कार्य समाप्त कर सकता है? इस प्रकार निरुद्देश्य ढंग से तंग और प्रताड़ित किए जाते हुए उसका पूरा जीवन अंततः व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा; उसे आने और विदा होने की इतनी जल्दी क्यों है? वह परमेश्वर को देने के लिए कोई अनमोल चीज़ क्यों नहीं रखता? क्या वह घृणा की सहस्राब्दियों को भूल गया है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मानव-जाति के प्रबंधन का उद्देश्य

The Flesh Can Ruin Your Destination

I

If people see clearly life’s right path and God’s purpose in managing man, they would not hold their destinies as treasure in their heart. They’d no longer wish to serve their own “parents,” ones who are truly worse than pigs and dogs. People should have a thorough grasp on what they should enter into during tribulation and during trials of fire. Do not always serve your flesh, worse than ants and bugs. Why should you think so hard and agonize over this? If people see clearly life’s right path and God’s purpose in managing man, they would not hold their destinies as treasure in their heart. They’d no longer wish to serve their own “parents,” ones who are truly worse than pigs and dogs.

II

Flesh is not yours but God’s, who controls you and commands Satan. You’re living in fleshly torment, but is this flesh under your control? Why bother pleading to God for the sake of your putrid flesh, condemned, cursed, and defiled by unclean spirits? Why hold Satan’s minions so close to your heart? Don’t you know flesh could ruin your future, hopes, and true destination? If people see clearly life’s right path and God’s purpose in managing man, they would not hold their destinies as treasure in their heart. They’d no longer wish to serve their own “parents,” ones who are truly worse than pigs and dogs.

from Follow the Lamb and Sing New Songs

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