परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 555
27 सितम्बर, 2020
परमेश्वर द्वारा पूर्ण होना परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने से होने वाली पूर्णता तक सीमित नहीं हो सकती है। इस प्रकार का अनुभव बहुत एक पक्षीय होता है और अधिक क्षेत्र में विस्तार नहीं कर पाता; अपितु यह तो बहुत ही सीमित क्षेत्र में मनुष्य को रोक कर रख देता है। इस दशा में मनुष्य को बहुत जरूरी आत्मिक पोषक तत्वों की कमी होती है। यदि तुम लोग परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनना चाहते हो, तो तुम लोगों को सब कुछ अनुभव करना सीखना होगा और उन सब बातों में प्रबुद्ध होना होगा जिनका सामना तुम लोग करते हो। जब तेरा सामना किसी चीज से हो, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, तुझे उससे लाभ लेना चाहिए और उसे तुझे निष्क्रिय नहीं बना देना चाहिए। कुछ भी क्यों न हो, तुझे परमेश्वर की तरफ खड़े होकर उस पर विचार करने में सक्षम होना चाहिए और इसका मानवीय दृष्टिकोण से विश्लेषण या अध्ययन (यह तेरे अनुभव में भटकना है) नहीं करना चाहिए। यदि यही तेरे अनुभवों का ढंग है, तब जीवन के बोझ तेरे हृदय पर कब्जा जमा लेंगे; तू परमेश्वर के हाव-भाव की रोशनी में निरंतर जीएगा और अपने अभ्यास में आसानी से विचलित नहीं होगा। इस प्रकार के व्यक्ति के लिए बड़ी-बड़ी संभावनाएँ हैं। परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने के बहुत अधिक अवसर। यह सब इस बात पर निर्भर करता है क्या वो तुम लोग हो जो सच में परमेश्वर से प्यार करते हैं अथवा क्या तुम लोगों में परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने, परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाने, और उसकी आशीषें और धरोहर पाने का संकल्प है। तुम लोगों के लिए केवल संकल्प होना काफी नहीं होगा। तुम लोगों को अत्यधिक ज्ञान रखना होगा, अन्यथा तुम लोग अपने अभ्यास में हमेशा विचलित होगे। परमेश्वर तुम लोगों में से प्रत्येक को पूर्ण बनाने की इच्छा रखता है। वर्तमान स्थिति में, यद्यपि लंबे समय से अधिकांश लोगों ने परमेश्वर के कार्यों को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने अपने आपको मात्र परमेश्वर के अनुग्रह में आनंद लेने तक सीमित कर लिया है और उससे देह के कुछ सुख पाने के लिए लालायित हैं। वे और अधिक और उच्च स्तरीय प्रकाशनों को पाने के लिए इच्छुक नहीं है, जो दिखाता है कि मनुष्य का हृदय अब भी बाहरी बातों में लगा हुआ है। यद्यपि मनुष्य के कार्य, उसकी सेवा, और परमेश्वर के लिए उसके प्रेमी हृदय में कुछ अशुद्धताएं रहती हैं, जहाँ तक मनुष्य के भीतरी सार और उसके अप्रबुद्धता विचार का संबंध है, मनुष्य अब भी शारीरिक भाव से शांति और आनंद की खोज में निरंतर लगा हुआ है और परमेश्वर द्वारा मनुष्य को पूर्ण बनाए जाने की शर्तों और अभिप्रायों की चिंता नहीं करता है। अतः अधिकांश लोगों का जीवन अभी भी असभ्य और पतनशील है और उनमें बाल बराबर भी परिवर्तन नहीं है। वे परमेश्वर में विश्वास को एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में नहीं लेते हैं। बल्कि यह कुछ ऐसा है जैसे वे बस दूसरों के लिए परमेश्वर का विश्वास जताते हैं, लगन या समर्पण के बिना काम करते हैं, और न्यूनतम से काम चलाते हैं, उद्देश्य बिना अस्तित्व में बहते रहते हैं। कुछ हैं जो सब बातों में परमेश्वर के वचनों में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, अधिक से अधिक समृद्ध वस्तुओं को पाते हैं, परमेश्वर के भवन में आज बड़े धन वाले बन गए हैं, और परमेश्वर की आशीषें बहुतायत से पाते जा रहे हैं। यदि तू सब बातों में परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनना चाहता है और पृथ्वी में परमेश्वर के वादों का वारिस बन पाने में समर्थ है; यदि तू सब क्षेत्रों में परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध होना चाहता है और समय को बेकार गुजरने नहीं देता, तो सक्रियता से प्रवेश करने का यह आदर्श मार्ग है। केवल इसी रीति से तू परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के योग्य और पात्र है। क्या तू सचमुच वह है जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की कोशिश करता है? क्या तू सचमुच वह है जो सभी बातों में गंभीर है? क्या तुझमें पतरस के समान परमेश्वर से प्रेम करने का जोश है? क्या तुझमें यीशु ने जैसे परमेश्वर से प्रेम किया, वैसे प्रेम करने की इच्छा है? तूने अनेक वर्षों से यीशु पर विश्वास रखा है; क्या तूने देखा है कि यीशु परमेश्वर को कैसे प्यार करता था? क्या वास्तव में वह यीशु है जिसमें तू विश्वास रखता है? तू आज के दिन के व्यावहारिक परमेश्वर पर विश्वास करता है; क्या तूने देखा है कि शरीर वाला व्यावहारिक परमेश्वर, स्वर्ग के परमेश्वर से कितना प्यार करता है? तुझे प्रभु यीशु मसीह में विश्वास है; यह इसलिए है क्योंकि मनुष्य को छुड़ाने के लिए यीशु का क्रूसारोपण और उसके द्वारा किए गए चमत्कार सामान्यतः स्वीकृत सत्य है। तथापि मनुष्य का विश्वास यीशु मसीह के ज्ञान और समझ से नहीं आता है। तू मात्र यीशु मसीह के नाम में विश्वास रखता है परंतु उसके आत्मा में विश्वास नहीं रखता है, क्योंकि तू इसके प्रति आदर नहीं दिखाता है कि यीशु ने परमेश्वर से कैसे प्यार किया। तेरा परमेश्वर पर विश्वास बहुत ही तरुण है। यद्यपि तू यीशु मसीह पर अनेक वर्षों से विश्वास करता आया है, तुझे नहीं पता है कि परमेश्वर को कैसे प्यार करना है। क्या यह तुझे संसार का सबसे बड़ा मूर्ख नहीं बनाता? यह दिखाता है कि तूने अनेक वर्षों से प्रभु यीशु मसीह के भोजन को व्यर्थ में खाया है। न सिर्फ मैं ऐसे व्यक्ति को नापसन्द करता हूँ, मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि प्रभु यीशु मसीह भी ऐसा ही करता है, जिसकी तू आराधना करता है। ऐसा व्यक्ति कैसे पूर्ण बनाया जा सकता है? क्या तू शर्मिंदा नहीं हैं? क्या तू लज्जित नहीं है? क्या तुझमें अभी भी प्रभु यीशु मसीह का सामना करने की उद्दंडता है? क्या तुम लोग मेरे वचनों को समझते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रतिज्ञाएँ उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं
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