परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 546
06 अक्टूबर, 2020
परमेश्वर में विश्वासी होने का अर्थ है कि तेरे सारे कृत्य उसके सम्मुख लाये जाने चाहिए और उन्हें उसकी छानबीन के अधीन किया जाना चाहिए। यदि तू जो कुछ भी करता है उसे परमेश्वर के आत्मा के सम्मुख ला सकते हैं लेकिन परमेश्वर की देह के सम्मुख नहीं ला सकते, तो यह दर्शाता है कि तूने अपने आपको उसके आत्मा की छानबीन के अधीन नहीं किया है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? कौन है वो व्यक्ति जिसकी परमेश्वर द्वारा गवाही दी जाती है? क्या वे एक समान नहीं है? अधिकांश उसे दो अलग अस्तित्व के रूप में देखते हैं, ऐसा विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का आत्मा केवल उसका है, और परमेश्वर जिसकी गवाही देता है वह व्यक्ति मात्र एक मानव है। लेकिन क्या तू गलत नहीं है? किसकी ओर से यह व्यक्ति काम करता है? जो लोग देहधारी परमेश्वर को नहीं जानते, उनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। परमेश्वर का आत्मा और उसका देहधारी देह एक ही हैं, क्योंकि परमेश्वर का आत्मा देह रूप में प्रकट हुआ है। यदि यह व्यक्ति तेरे प्रति निर्दयी है, तो क्या परमेश्वर का आत्मा दयालु होगा? क्या तू भ्रमित नही है? आज, जो कोई भी परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार नहीं कर सकता है, वह परमेश्वर की स्वीकृति नहीं पा सकता है, और जो देहधारी परमेश्वर को न जानता हो, उसे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। अपने सभी कामों को देख और समझ कि जो कुछ तू करता है वह परमेश्वर के सम्मुख लाया जा सकता है कि नहीं। यदि तू जो कुछ भी करता है, उसे तू परमेश्वर के सम्मुख नहीं ला सकता, तो यह दर्शाता है कि तू एक दुष्ट कर्म करने वाला है। क्या दुष्कर्मी को पूर्ण बनाया जा सकता है? तू जो कुछ भी करता है, हर कार्य, हर इरादा, और हर प्रतिक्रिया, अवश्य ही परमेश्वर के सम्मुख लाई जानी चाहिए। यहाँ तक कि, तेरे रोजाना का आध्यात्मिक जीवन भी—तेरी प्रार्थनाएँ, परमेश्वर के साथ तेरा सामीप्य, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का तेरा ढंग, भाई-बहनों के साथ तेरी सहभागिता, कलीसिया के भीतर तेरा जीवन, और साझेदारी में तेरी सेवा—परमेश्वर के सम्मुख उसके द्वारा छानबीन के लिए लाई जानी चाहिए। यह ऐसा अभ्यास है, जो तुझे जीवन में विकास हासिल करने में मदद करेगा। परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करने की प्रक्रिया शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। जितना तू परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करता है, उतना ही तू शुद्ध होता जाता है और उतना ही तू परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होता है, जिससे तू व्यभिचार की ओर आकर्षित नहीं होगा और तेरा हृदय उसकी उपस्थिति में रहेगा; जितना तू उसकी छानबीन को ग्रहण करता है, शैतान उतना ही लज्जित होता है और उतना अधिक तू देहसुख को त्यागने में सक्षम होता है। इसलिए, परमेश्वर की छानबीन को ग्रहण करना अभ्यास का वो मार्ग है जिसका सभी को अनुसरण करना चाहिए। चाहे तू जो भी करे, यहाँ तक कि अपने भाई-बहनों के साथ सहभागिता करते हुए भी, यदि तू अपने कर्मों को परमेश्वर के सम्मुख ला सकता है और उसकी छानबीन को चाहता है और तेरा इरादा स्वयं परमेश्वर की आज्ञाकारिता का है, इस तरह जिसका तू अभ्यास करता है वह और भी सही हो जाएगा। केवल जब तू जो कुछ भी करता है, वो सब कुछ परमेश्वर के सम्मुख लाता है और परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करता है, तो वास्तव में तू ऐसा कोई हो सकता है जो परमेश्वर की उपस्थिति में रहता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं
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