परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 481

14 सितम्बर, 2020

वह सब जिसकी पतरस खोज करता था वह परमेश्वर के हृदय के अनुसार था। उसने परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की कोशिश की थी, और क्लेश एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी, वह फिर भी परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार था। परमेश्वर में किसी विश्वासी के द्वारा इससे बड़ा अनुसरण नहीं हो सकता है। जो कुछ पौलुस खोजता था उसे उसके स्वयं के शरीर के द्वारा, उसकी स्वयं की धारणाओं के द्वारा, और उसकी स्वयं की योजनाओं एवं युक्तियों के द्वारा कलंकित किया गया था। वह किसी भी मायने में परमेश्वर का एक योग्य प्राणी नहीं था, वह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसने परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण करने की कोशिश की थी। परतस ने परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होने की कोशिश की थी, और हालाँकि वह कार्य बड़ा नहीं था जिसे उसने किया था, फिर भी उसके अनुसरण के पीछे की प्रेरणा एवं वह पथ जिस पर वह चला था वे सही थे; हालाँकि वह अनेक लोगों को पाने में सक्षम नहीं था, फिर भी वह सत्य के मार्ग की खोज करने में सक्षम था। इस कारण से ऐसा कहा जा सकता है कि वह परमेश्वर का एक योग्य प्राणी था। आज, भले ही तू एक कार्यकर्ता नहीं हैं, फिर भी तुझे परमेश्वर के प्राणी के कर्तव्य को निभाने में सक्षम होना चाहिए, और परमेश्वर के सभी आयोजनों के प्रति समर्पित होने की कोशिश करनी चाहिए। परमेश्वर जो कुछ भी कहे तुझे उसका पालन करने, और सभी प्रकार के क्लेशों एवं परिष्करण का अनुभव करने में सक्षम होना चाहिए, और हालाँकि तू कमज़ोर है, फिर भी तुझे अपने हृदय में अभी भी परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम होना चाहिए। ऐसे लोग जो अपने स्वयं के जीवन की ज़िम्मेदारी लेते हैं वे परमेश्वर के प्राणी के कर्तव्य को निभाने के लिए तैयार हैं, और अनुसरण के प्रति ऐसे लोगों का दृष्टिकोण ही सही दृष्टिकोण है। ये ऐसे लोग हैं जिनकी परमेश्वर को ज़रूरत है। यदि तूने अधिक कार्य किया होता, और दूसरों ने तेरी शिक्षाओं को पाया होता, परन्तु तू स्वयं न बदलता, और कोई गवाही नहीं देता, या तेरे पास कोई सही अनुभव नहीं होता, कुछ इस तरह कि तेरे जीवन के अन्त पर, और जो कुछ तूने किया है उसमें से कोई अभी भी गवाही नहीं देता है, तो तू ऐसा इंसान है जो बदल चुका है? क्या तू ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता है? उस समय, पवित्र आत्मा ने तेरा उपयोग किया था, परन्तु जब उसने तेरा उपयोग किया था, तो उसने तेरे उस भाग का उपयोग किया था जो कार्य कर सकता था, और उसने तेरे उस भाग का उपयोग नहीं किया था जो कार्य नहीं कर सकता था। यदि तूने बदलने की कोशिश की होती, तो तुझे उपयोग किए जाने की प्रक्रिया के दौरान धीरे धीरे पूर्ण बनाया गया होता। फिर भी पवित्र आत्मा कोई ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं करता है कि अन्ततः तुझे हासिल किया जाएगा या नहीं, और यह तेरे अनुसरण के तरीके पर निर्भर करता है। यदि तेरे व्यक्तिगत स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हैं, तो यह इसलिए है क्योंकि तेरे अनुसरण के प्रति तेरा दृष्टिकोण ग़लत है। यदि तुझे कोई प्रतिफल नहीं दिया जाता, तो यह तेरी स्वयं की समस्या है, और क्योंकि तूने स्वयं ही सत्य को अभ्यास में नहीं लाया है, और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ है। और इस प्रकार, तेरे व्यक्तिगत अनुभवों से बढ़कर कुछ भी अत्यधिक महत्वपूर्ण नहीं है, और तेरे व्यक्तिगत प्रवेश की अपेक्षा कुछ भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है! कुछ लोग यह कहते हुए समाप्त करते हैं, "मैं ने तेरे लिए इतना अधिक कार्य किया है, और हालाँकि उत्सव मनाने योग्य उपलब्धियां तो शायद नहीं हैं, फिर भी मैं अपने प्रयासों में अब भी परिश्रमी हूँ। क्या तू बस मुझे स्वर्ग में प्रवेश करने नहीं दे सकता है ताकि मैं जीवन के फल को खाऊं?" तुझे जानना होगा कि मैं किस प्रकार के लोगों की इच्छा करता हूँ; ऐसे लोग जो अशुद्ध हैं उन्हें राज्य में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई है, ऐसे लोग जो अशुद्ध हैं उन्हें पवित्र भूमि को गंदा करने की अनुमति नहीं दी गई है। हालाँकि तूने शायद अधिक कार्य किया है, और कई सालों तक कार्य किया है, फिर भी अन्त में तू दुखदाई रूप से मैला है—यह स्वर्ग की व्यवस्था के लिए असहनीय है कि तू मेरे राज्य में प्रवेश करने की कामना करता है! संसार की नींव से लेकर आज तक, मैं ने कभी भी उन लोगों को अपने राज्य के लिए आसान मार्ग का प्रस्ताव नहीं दिया है जो अनुग्रह पाने के लिए मेरी खुशामद करते हैं। यह स्वर्गीय नियम है, और इसे कोई तोड़ नहीं सकता है! तुझे जीवन की खोज करनी ही होगी। आज, ऐसे लोग जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा वे पतरस के ही समान हैं: वे ऐसे लोग हैं जो अपने स्वयं के स्वभाव में परिवर्तनों की कोशिश करते हैं, और वे परमेश्वर के लिए गवाही देने, और परमेश्वर के प्राणी के रुप में अपने कर्तव्य को निभाने के लिए तैयार हैं। केवल ऐसे ही लोगों को सिद्ध बनाया जाएगा। यदि तू केवल प्रतिफलों की ओर ही देखता है, और अपने स्वयं के जीवन स्वभाव को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करता है, तो तेरे सारे प्रयास व्यर्थ होंगे—और यह एक अटल सत्य है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है

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