परमेश्वर के दैनिक वचन : मंज़िलें और परिणाम | अंश 582

19 अप्रैल, 2021

मेरे वचनों के पूर्ण होने के बाद, राज्य धीरे-धीरे पृथ्वी पर आकार लेने लगता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्य हो जाता, और इस प्रकार पृथ्वी पर मेरे हृदय में राज्य स्थापित हो जाता है। उस राज्य में, परमेश्वर के सभी लोगों को सामान्य मनुष्य का जीवन वापस मिल जाता है। बर्फीली शीत ऋतु चली गई है, उसका स्थान बहारों के संसार ने ले लिया है, जहाँ साल भर बहार बनी रहती है। लोग आगे से मनुष्य के उदास और अभागे संसार का सामना नहीं करते हैं, और न ही वे आगे से मनुष्य के शांत ठण्डे संसार को सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ाई नहीं करते हैं। एक दूसरे के विरूद्ध युद्ध नहीं करते हैं, वहाँ अब कोई नरसंहार नहीं होता है और न ही नरसंहार से लहू बहता है; पूरी ज़मीं प्रसन्नता से भर जाती है, और यह हर जगह मनुष्यों के बीच उत्साह को बढ़ाता है। मैं पूरे संसार में घूमता हूँ, मैं ऊपर सिंहासन से आनन्दित होता हूँ, और मैं सितारों के मध्य रहता हूँ। और स्वर्गदूत मेरे लिए नए नए गीत गाते और नए नए नृत्य करते हैं। अब उनके चेहरों से उनकी स्वयं की क्षणभंगुरता के कारण आँसू नहीं ढलकते हैं। मैं अब अपने सामने स्वर्गदूतों के रोने की आवाज़ नहीं सुनता हूँ, और अब कोई मुझ से किसी कठिनाई की शिकायत नहीं करता है। आज, तुम लोगमेरे सामने रहते हो; कल तुम लोग मेरे राज्य में बने रहोगे। क्या यह सब से बड़ा आशीष नहीं है जिसे मैं मनुष्य को देता हूँ? उस कीमत के कारण जो तुम लोग आज चुकाते हो, तुम लोग भविष्य की आशीषों को विरासत में प्राप्त करोगे और मेरी महिमा के मध्य रहोगे। क्या तुम लोग अभी भी मेरे आत्मा के मुख्य तत्व के साथ शामिल नहीं होना चाहते हो? क्या तुम लोग अभी भी अपने आप को खत्म करना चाहते हो? लोग उस प्रतिज्ञा का अनुसरण करने के इच्छुक हैं जिसे वे देख सकते हैं, भले ही वे अल्पजीवी हैं, फिर भी कोई भी कल की प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है, भले ही वे पूरे अनन्त काल के लिए हों। वे चीज़ें जो मनुष्य को दिखाई देती हैं वे ऐसी चीज़ें हैं जिनका मैं सम्पूर्ण विनाश करूँगा, और ऐसी चीज़ें जो मनुष्य के लिए दृष्टिगोचर नहीं है वे ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें मैं पूरा करूँगा। परमेश्वर और मनुष्य के बीच में यही अन्तर है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20

सबसे बड़ी आशीष जो ईश्वर मानव को प्रदान करता है

1

परमेश्वर के शब्दों के समापन के साथ, उसका साम्राज्य है बन रहा। फिर से मानव के होने से सामान्य, प्रभु का साम्राज्य बना। साम्राज्य में रहते परमेश्वर के जन, फिर पाओगे तुम मनुष्योचित जीवन। आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल। आनंद – सौहार्द से भरी धरती सारी। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।

2

बर्फीले ठण्ड के स्थान पर है ऐसी एक दुनिया, जहां है बहारें साल भर, जब इंसां ना झेलेगा इस दुनिया के दर्द-ओ-ग़म को। ना होंगें झगड़े इंसानों में, ना तो जंग होंगे मुल्कों में, ना होगी हिंसा, ना ही खून। उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल। आनंद – सौहार्द से भरी धरती सारी। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।

3

प्रभु विचरता है इस जग में, रस लेता अपने सिंहासन से। रहता है वो सितारों में, फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। फरिश्ते अब रोते नहीं, अपनी कमजोरियों पर। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। अब ना प्रभु कभी, सुनेगा रोना फरिश्तों का। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं। फरिश्ते उसके लिए नाचें-गाएं।

4

तकलीफों की फरियाद करेगा ना कोई। आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल। क्या नहीं, आशीष ये सबसे बड़ी है प्रभु ने दी जो इंसानों को? साम्राज्य में रहते परमेश्वर के जन, फिर पाओगे तुम मनुष्योचित जीवन। आज, तुम जीते हो प्रभु के समक्ष; उसके साम्राज्य में जिओगे तुम कल। आनंद – सौहार्द से भरी धरती सारी। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना। धरती पर प्रभु का साम्राज्य बना।

— 'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से

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