परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप | अंश 260
22 दिसम्बर, 2020
इस दुनिया में आने वाले सभी लोगों को जीवन और मृत्यु से गुजरना होता है, और उनमें से अधिकांश मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से गुजर चुके हैं। जो जीवित हैं, वे शीघ्र ही मर जाएँगे और मृत शीघ्र ही लौट आएँगे। यह सब परमेश्वर द्वारा प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए व्यवस्थित जीवन का क्रम है। फिर भी यह क्रम और यह चक्र ठीक वह सत्य है, जो परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य देखे : कि परमेश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया जीवन असीम और भौतिकता, समय या स्थान से मुक्त है। यह परमेश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किए गए जीवन का रहस्य है, और इस बात का प्रमाण है कि जीवन उसी से आया है। यद्यपि हो सकता है कि बहुत-से लोग यह न मानें कि जीवन परमेश्वर से आया है, फिर भी मनुष्य अनिवार्य रूप से उस सब का आनंद लेता है जो परमेश्वर से आता है, चाहे वह परमेश्वर के अस्तित्व को मानता हो या उसे नकारता हो। यदि किसी दिन परमेश्वर का अचानक हृदय-परिवर्तन हो जाए और वह दुनिया में विद्यमान हर चीज़ वापस प्राप्त करने और अपना दिया जीवन वापस लेने की इच्छा करे, तो कुछ भी नहीं रहेगा। परमेश्वर सभी चीज़ों, जीवित और निर्जीव दोनों, को आपूर्ति करने के लिए अपने जीवन का उपयोग करता है, और अपनी शक्ति और अधिकार के बल पर सभी को सुव्यवस्थित करता है। यह एक ऐसा सत्य है, जिसकी किसी के द्वारा कल्पना नहीं की जा सकती या जिसे किसी के द्वारा समझा नहीं जा सकता, और ये अबूझ सत्य परमेश्वर की जीवन-शक्ति की मूल अभिव्यक्ति और प्रमाण हैं। अब मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूँ : परमेश्वर के जीवन की महानता और उसके जीवन के सामर्थ्य की थाह कोई भी प्राणी नहीं पा सकता। यह अभी भी वैसा ही है, जैसा अतीत में था, और आने वाले समय में भी यह ऐसा ही रहेगा। दूसरा रहस्य जो मैं बताऊँगा, वह यह है : सभी सृजित प्राणियों के लिए जीवन का स्रोत, चाहे वे रूप या संरचना में कितने ही भिन्न हों, परमेश्वर से आता है। तुम चाहे किसी भी प्रकार के जीव हो, तुम उस जीवन-पथ के विपरीत नहीं चल सकते, जिसे परमेश्वर ने निर्धारित किया है। हर हाल में, मेरी इच्छा है कि मनुष्य इसे समझे : परमेश्वर की देखभाल, रखरखाव और भरण-पोषण के बिना मनुष्य वह सब प्राप्त नहीं कर सकता, जो उसे प्राप्त करना था, चाहे वह कितनी भी तत्परता से कोशिश क्यों न करे या कितना भी कठिन संघर्ष क्यों न करे। परमेश्वर से जीवन की आपूर्ति के बिना मनुष्य जीवन के मूल्य और उसकी सार्थकता के बोध को गँवा देता है। परमेश्वर उस मनुष्य को इतना बेफिक्र कैसे होने दे सकता है, जो मूर्खतापूर्ण ढंग से अपने जीवन की सार्थकता को गँवा देता है? जैसा कि मैंने पहले कहा है : मत भूलो कि परमेश्वर तुम्हारे जीवन का स्रोत है। यदि मनुष्य वह सब सँजोने में विफल रहता है, जो परमेश्वर ने प्रदान किया है, तो परमेश्वर न केवल उसे वापस ले लेगा जो उसने शुरुआत में दिया था, बल्कि वह मनुष्य से क्षतिपूर्ति के रूप में उस सबका दोगुना मूल्य वसूल करेगा, जो उसने दिया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है
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