परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 403
आगे बढ़ने पर, परमेश्वर के वचन के बारे में बात करना वह सिद्धांत है जिसके द्वारा तुम बोलते हो। जब तुम लोग आपस में मिलते हो, तब तुम लोगों को परमेश्वर के वचन के बारे में सहभागिता करनी चाहिये, और उसी के विषय पर बातचीत करनी चाहिये; इस बारे में बात करो कि परमेश्वर के वचन के बारे में तुम लोग क्या जानते हो, तुम सब उसके वचन को अभ्यास में कैसे लाते हो, और पवित्र आत्मा कैसे काम करता है। यदि तुम परमेश्वर के वचन के बारे में सहभागिता करते हो, पवित्र आत्मा तुम्हें प्रकाशित करेगा। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे आसपास परमेश्वर के वचन का संसार बने तो तुम्हें भी सहयोग करना चाहिये। यदि तुम इसमें प्रवेश नहीं करते हो, तो परमेश्वर तुम में अपना काम नहीं कर सकता है। यदि तुम परमेश्वर के वचन के बारे में बातचीत नहीं करोगे, वह तुम्हें रोशन नहीं कर सकता है। जब भी तुम खाली हो, परमेश्वर के वचन के बारे में बात करो। व्यर्थ बातें न करो! अपने जीवन को परमेश्वर के वचन से भर जाने दो; तभी तुम एक समर्पित विश्वासी होते हो। भले ही तुम्हारी सहभागिता सतही हो, सब ठीक है। यदि सतही नहीं होगी तो गहराई भी नहीं होगी। एक प्रक्रिया है जिससे अवश्य गुजरना होगा। तुम्हारे अभ्यास करने पर तुम पवित्र आत्मा द्वारा तुम्हें दी गई रोशनी को समझने की अंर्तदृष्टि प्राप्त करते हो। और यह भी सीखते हो कि परमेश्वर के वचन को प्रभावशाली रूप में कैसे खाएं-पीएं। इस प्रकार खोजबीन में कुछ समय देने के बाद तुम परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश कर जाओगे। केवल जब तुम सहयोग करने का संकल्प करते हो तभी पवित्र आत्मा का कार्य तुम में होगा।
परमेश्वर के वचन को खाने-पीने के सिद्धांत के दो पहलू हैं: एक का संबंध ज्ञान से है और दूसरे का संबंध प्रवेश करने से है। तुम्हें कौन से वचन जानना चाहिये? तुम्हें दर्शन से जुड़े वचन जानना चाहिये (अर्थात परमेश्वर अब किस युग में प्रवेश कर चुका है, अब परमेश्वर क्या प्राप्त करना चाहता है, देहधारण क्या है, और ऐसी अन्य बातें, ये सभी बातें दर्शन से संबंधित हैं)। वह कौन सा मार्ग है जिस पर मनुष्य को जाना चाहिये? यह परमेश्वर के उन वचनों का उल्लेख करता है जिन पर मनुष्य को अमल करना और चलना चाहिये। परमेश्वर के वचन को खाने और पीने के ये दो पहलू हैं। अब से, तुम परमेश्वर के वचन को इसी तरह खाओ-पीओ। यदि तुम दर्शन के बारे में वचनों की स्पष्ट समझ है, तो अधिक पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। मुख्य बात है प्रवेश करने से संबंधित वचनों को अधिक खाना और पीना, जैसे कि किस प्रकार परमेश्वर की ओर अपने हृदय को मोड़ना है, किस प्रकार परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत करना है, और कैसे शरीर का परित्याग करना है। यही सब है जिस पर तुम्हें अमल करना है। परमेश्वर के वचन को कैसे खाये-पियें यह जाने बिना असली सहभागिता संभव नहीं है। जब एक बार तुम जान लेते हो कि परमेश्वर के वचन को कैसे खाएं-पीएं, और तुम समझ जाते हो कि कुंजी क्या है, तो सहभागिता तुम्हारे लिये आसान होगी। जो भी मसले उठेंगे, तुम उनके बारे में सहभागिता कर पाओगे और वास्तविकता को समझ लोगे। बिना वास्तविकता के परमेश्वर के वचन से सहभागिता करने का अर्थ है, तुम यह समझ पाने में असमर्थ हो कि कुंजी क्या है, और यह बात दर्शाती है कि तुम परमेश्वर के वचन को खाना-पीना नहीं जानते। कुछ लोग परमेश्वर का वचन पढ़ते समय थकान का अनुभव करते हैं। यह दशा सामान्य नहीं है। वास्तव में सामान्य बात यह है कि परमेश्वर का वचन पढ़ते हुए तुम कभी थकते नहीं, सदैव उसकी भूख-प्यास बनी रहती है, और तुम सदैव सोचते हो कि परमेश्वर का वचन भला है। और वह व्यक्ति जो सचमुच प्रवेश कर चुका है वह परमेश्वर के वचन को ऐसे ही खाता-पीता है। जब तुम अनुभव करते हो कि परमेश्वर का वचन सचमुच व्यवहारिक है और मनुष्य को इसमें प्रवेश करना ही चाहिये; जब तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर का वचन मनुष्य के लिये बहुत ही अधिक सहायक और लाभदायक है, और यह मनुष्य को जीवन देता है, यह भावना तुम्हें पवित्र आत्मा देता है, तुम्हारे पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित किये जाने के माध्यम से। यह बात साबित करती है कि पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर कार्य कर रहा है और परमेश्वर ने तुमसे मुख नहीं मोड़ा है। यह जानकर कि परमेश्वर सदैव बातचीत करता है, कुछ लोग उसके वचनों से थक जाते हैं, और वे सोचते हैं कि परमेश्वर के वचन को पढ़ने या न पढ़ने का कोई परिणाम नहीं होता। यह सामान्य दशा नहीं है। उनके हृदय वास्तविकता में प्रवेश करने की इच्छा नहीं करते, और ऐसे लोगों में पूर्ण बनाए जाने की भूख-प्यास नहीं होती और न ही वे इसे महत्वपूर्ण मानते हैं। जब भी तुम्हें लगता है कि तुम में परमेश्वर के वचन की भूख-प्यास नहीं है, तो यह संकेत है कि तुम्हारी दशा सामान्य नहीं है। अतीत में, परमेश्वर तुमसे विमुख होगा या नहीं उसका पता इस बात से चलता था कि तुम्हारे भीतर शांति है या नहीं और तुम आनंद का अनुभव कर रहे हो या नहीं। अब यह इस बात से पता चलता है कि तुममें वचन की भूख-प्यास है या नहीं। क्या उसके वचन तुम्हारी वास्तविकता है, क्या तुम निष्ठावान हो, और क्या तुम वह करने योग्य हो जो तुम परमेश्वर के लिये कर सकते हो। दूसरे शब्दों में मनुष्य को परमेश्वर के वचन की वास्तविकता के द्वारा जांचा-परखा जाता है। परमेश्वर अपने वचनों को सभी मनुष्यों की ओर भेजता है। यदि तुम उसे पढ़ने के लिये तैयार हो, वह तुम्हें रोशन करेगा, यदि तुम तैयार नहीं हो, वह तुम्हें रोशन नहीं करेगा। परमेश्वर उन्हें रोशनी देता है जो धार्मिकता के भूखे-प्यासे हैं, और परमेश्वर को खोजते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर ने वचन पढ़ने के बाद भी उन्हें रोशन नहीं किया। परमेश्वर के वचन कैसे पढ़े गये थे? यदि तुमने बीच-बीच में से पढ़ा और वास्तविकता को कोई महत्व नहीं दिया, तो परमेश्वर कैसे तुम्हें रोशन कर सकता है? कैसे वह व्यक्ति जो परमेश्वर के वचन को संजो कर नहीं रखता परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जा सकता है? यदि तुम परमेश्वर के वचन को संजो कर नहीं रखते, तब तुम्हारे पास न तो सत्य और न ही वास्तविकता होगी। यदि तुम उसके वचन को संजो कर रखते हो, तब तुम सत्य का अभ्यास कर पाओगे; और तब ही तुम वास्तविकता को पाओगे। इसलिये स्थिति चाहे जो भी हो, तुम्हें परमेश्वर के वचन को खाना और पीना चाहिये, तुम चाहे व्यस्त हो, या न हो, परिस्थितियां विपरीत हो या न हो, और चाहे तुम परखे जा रहे हो या नहीं परखे जा रहे हो। कुल मिलाकर परमेश्वर का वचन मनुष्य के अस्तित्व का आधार है। कोई भी उसके वचन से विमुख नहीं हो सकता, और उसके वचन को ऐसे खाना होगा मानों वे दिन के तीन बार के भोजन हों। क्या परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जाना और प्राप्त किया जाना इतना आसान हो सकता है? अभी तुम इसे समझो या न समझो, तुम्हारे भीतर परमेश्वर के कार्य को समझने की अंर्तदृष्टि हो या न हो, तुम्हें परमेश्वर के वचन को अधिक से अधिक खाना और पीना चाहिये। यह तत्परता और क्रियाशीलता के साथ प्रवेश करना है। परमेश्वर के वचन को पढ़ने के बाद, जिसमे प्रवेश कर सको उस पर अमल करने की तत्परता दिखाओ, तुम जो नहीं कर सकते, उसे कुछ समय के लिये दरकिनार रखो। आरंभ में हो सकता है, परमेश्वर के बहुत से वचन तुम समझ न पाओ, पर दो या तीन माह बाद, या फिर एक वर्ष के बाद तुम समझने लगोगे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिये है क्योंकि परमेश्वर एक या दो दिन में मनुष्य को पूर्ण नहीं कर सकता। अधिकतर समय, जब तुम परमेश्वर का वचन पढ़ते हो, तुम उस समय उसे नहीं समझ पाओगे। उस समय वह तुम्हें लिखित पाठ से अधिक प्रतीत नहीं होगा; केवल कुछ समय के अनुभव के बाद तुम उसे समझने योग्य बन जाओगे। परमेश्वर ने बहुत कुछ कहा है इसलिए उसके वचन को खाने-पीने के लिये तुम्हें अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिये। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा, और तुम समझने लगोगे और पवित्र आत्मा तुम्हें रोशन करेगा। जब पवित्र आत्मा मनुष्य को रोशन करता है, तब अक्सर मुनष्य को उसका ज्ञान नहीं होता। वह तुम्हें रोशन करता है और मार्गदर्शन देता है जब तुम भूखे-प्यासे होते हो, और उसे खोजते हो। पवित्र आत्मा जिस सिद्धांत पर कार्य करता है वह परमेश्वर के वचन पर केंद्रित होता है जिसे तुम खाते और पीते हो। वे सब जो परमेश्वर के वचन को महत्व नहीं देते, और उसके प्रति सदैव एक अलग तरह का दृष्टिकोण रखते हैं, लापरवाही का, और यह विश्वास करते हैं कि वे वचन को पढ़ें या न पढ़ें कुछ फर्क नहीं पड़ता, वे हैं जो वास्तविकता नहीं जानते। उन व्यक्तियों में न तो पवित्र आत्मा का कार्य और न ही उसके द्वारा की गई रोशनी दिखाई देती है। ऐसे व्यक्ति बस साथ-साथ चलते हैं, और वे बिना उचित योग्यताओं के मात्र दिखावा करने वाले लोग हैं, जैसे कि एक दृष्टांत में नैनगुओ थे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, राज्य का युग वचन का युग है
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