परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 24

20 मार्च, 2021

यहोवा के कार्य के बाद, यीशु मनुष्यों के बीच में अपना कार्य करने के लिये देहधारी हो गया। उसका कार्य एकाकीपन में नहीं किया गया, बल्कि यहोवा के कार्य पर किया गया। यह नये युग के लिये एक कार्य था जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का समापन कर दिया था। इसी प्रकार, यीशु का कार्य समाप्त हो जाने के बाद, परमेश्वर ने तब भी अगले युग के लिये अपने कार्य को जारी रखा, क्योंकि परमेश्वर का सम्पूर्ण प्रबंधन सदैव आगे बढ़ता है। जब पुराना युग बीत जाएगा, उसके स्थान पर नया युग आ जाएगा, और एक बार जब पुराना कार्य पूरा हो जाएगा, तो एक नया कार्य परमेश्वर के प्रबंधन को जारी रखेगा। यीशु के कार्य के पूरा होने के बाद यह देहधारण परमेश्वर का दूसरा देहधारण है। निस्संदेह, यह देहधारण अकेले नहीं हुआ है, बल्कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के बाद कार्य का तीसरा चरण है। परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक नया चरण सदैव एक नया आरंभ और एक नया युग लाता है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव में, उसके कार्य करने के तरीके में, उसके कार्य के स्थल में, और उसके नाम में भी परिवर्तन होते हैं। तब कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के लिये नये युग में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना कठिन है। परंतु इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य द्वारा उसका कितना विरोध किया जाता है, परमेश्वर सदैव अपना कार्य करता रहता है, और सदैव समस्त मानवजाति को आगे बढ़ने में अगुवाई करता रहता है। जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो वह अनुग्रह का युग लाया, और उसने व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस बार जब उसने देहधारण किया, तो उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और परमेश्वर के राज्य का युग ले आया। उन सब को जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करते हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया है, उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना, मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। शैतान के प्रभाव से मनुष्य को पूरी तरह बचाने के लिये यीशु को न केवल पाप-बलि के रूप में मनुष्यों के पापों को लेना आवश्यक था, बल्कि मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से पूरी तरह मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़े कार्य करने की आवश्यकता थी जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था। और इसलिए, मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिए जाने के बाद, एक नये युग में मनुष्य की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर वापस देह में लौटा, और उसने ताड़ना एवं न्याय के कार्य को आरंभ किया, और इस कार्य ने मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में पहुँचा दिया। वे सब जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़ी आशीषें प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे, और सत्य, मार्ग और जीवन को प्राप्त करेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना

अंत के दिनों का मसीह लाया है राज्य का युग

1

जब यीशु जहां में आया, उसने व्यवस्था के युग का अंत किया, और अनुग्रह का युग लाया। अंत के दिनों में ईश्वर दोबारा देह बना, अनुग्रह के युग का अंत करके वो राज्य का युग लाया। जो स्वीकारते ईश्वर के दूसरे देहधारण को, वो ले जाए जाएँगे राज्य के युग में, ईश-मार्गदर्शन स्वीकारेंगे। जब इंसान को मिली उसके पापों की क्षमा, तब ईश्वर उसकी अगुआई करने देह में लौटा। वो उसे एक नए युग में ले जाएगा। उसने शुरु कर दिया है न्याय का काम इंसान को ऊँचे क्षेत्र में ले जाने को। जो समर्पण करते, वो ऊँचे सत्य का आनंद लेंगे, ज्यादा बड़े आशीष पाएँगे, सच में रोशनी में जिएँगे। सत्य, मार्ग और जीवन पाएँगे।

2

यीशु ने काफी काम किया इंसान के बीच। पर उसने इंसान को छुटकारा दिलाने का काम ही पूरा किया। वो इंसान के लिए पापबलि तो बना, पर उसने इंसान को उसके भ्रष्ट स्वभाव से नहीं छुड़ाया, नहीं छुड़ाया। इंसान को शैतान से बचाने के लिए, यीशु को उसके पाप स्वयं पर लेने पड़े, शैतान के भ्रष्ट स्वभाव से इंसान को छुड़ाने के लिए जरूरी था कि ईश्वर और बड़ा काम करे। जब इंसान को मिली उसके पापों की क्षमा, तब ईश्वर उसकी अगुआई करने देह में लौटा। वो उसे एक नए युग में ले जाएगा। उसने शुरु कर दिया है न्याय का काम इंसान को ऊँचे क्षेत्र में ले जाने को। जो समर्पण करते, वो ऊँचे सत्य का आनंद लेंगे, ज्यादा बड़े आशीष पाएँगे, सच में रोशनी में जिएँगे। सत्य, मार्ग और जीवन पाएँगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना से रूपांतरित

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